Tuesday, September 2, 2008

भैँटक लावा- जगदीश प्रसाद मण्डल



पछिला बाढ़ि। मोन पड़ितहि देह भुटुकि जाइत अछि। रोइयाँ-रोइयाँ ठाढ़ भऽ जाइत अछि। बाढ़िक विकराल दृश्य आँखिक आगू नाचए लगैत अछि। घोड़ोसँ तेज गतिसँ पानि दौगैत। बाढ़ियो छोटकी नहि, जुअनकी नहि, बुढ़िया। बुढ़िया रुप बना नृत्य करैत। ककरा कहू बड़की धार आ ककरा कहू छोटकी, सभ अपन-अपन चिन्ह-पहचिन्ह मेटा समुद्र जेकाँ बनि गेल। जेम्हर देखू तेम्हर पाँक घोराएल पानि, निछोहे दछिन मुहेँ दौगल जाइत। कतेक गाम-घर पजेबाक नहि रहने घर-विहीन भऽ गेल। इनार, पोखरि, बोरिंग, चापाकल पानिक तरमे डुबकुनियाँ काटए लगल। एहन भयंकर दृश्य देखि लोककेँ डरे छने-छन पियास लगलोपर पीबैक पानि नहि भेटैत। जीवन-मरण आगूमे ठाढ़ भऽ झिक्कम-झिक्का करैत बुझाए। घर खसल, घरक कोठी खसल, कोठीक अन्न भसल। जेहने दुरगति घरक तेहने गाइयो-महीसि, गाछो-बिरीछ आ खेतो-पथारक।
घरक नूआ-बिस्तर आ आनो-आन समानक मोटरी बान्हि माथपर लऽ अपनो डाँड़मे दू भत्ता खरौआ डोरी बान्हि आ बेटोक डाँड़मे बान्हि आगू-आगू मुसना आ पाछू-पाछू घरवाली जीबछी, बेटी दुखनीकेँ कोरामे लऽ कन्हा लगौने पोखरिक ऊँचका महार दिशि चलल। एखन धरि ओ महार बोन-झाड़ आ पर-पैखानाक जगह छल। जाहिमे साँप-कीड़ा बसेरा बनौने, बाढ़ि ओकरा घरारी बना देलक। जहिना इजोतमे छाँह लोकक संग नहि छोड़ैत, तहिना बरखा बाढ़िक संग छोड़ए लेल तैयार नहि। निच्चाँ पानिक तेज गति आ ऊपरसँ बरखाक नमहर बुन्न। महारपर मुसनाकेँ पहुँचैसँ पहिने बीस-पच्चीस गोटे अप्पन-अप्पन धिया-पूता, चीज-बस्तु आ माल-जालक संग पहुँचि चुकल छल। महारपर पहुँचि मुसना रहैक जगह हियाबए लगल। शौच करैक ढ़लान लग खाली जगह देखि मुसना मोटरी रखलक। मोटरी राखि बिसनाइरिक डाढ़ि तोड़ि खरड़ा बनौलक। ओहि खरड़ासँ खरड़ए लगल। एक बेर खरड़ि कऽ देखलक तँ मनमे पड़पन नञि भेलइ।
  फेर दोहरा कऽ खरड़ि चिक्कन बनौलक। चिक्कन जगह देखि दुनू बेकतीक मनमे चैन भेलै। मोटरी खोलि मुसना एकटा बोरा निकालि चारिटा बत्तीक खूँटा गाड़ि, खरौआ जौरसँ चारु खूट बान्हि, बत्तीमे बान्हि कऽ घर बनौलक। दोसर बोरा निच्चाँमे ओछा धियो-पूतोकेँ बैसौलक आ मोटरियोक समान रखलक। चिन्तासँ दुनू परानीक मूँह सुखाएल रहै। एक दिशि दुनू बच्चाकेँ मुसना देखए आ दोसर दिशि गनगनाइत बाढ़ि। माथपर दुनू हाथ दऽ जीबछी मने-मन कोसी-कमला महरानीकेँ गरिऐबो करैत आ जान बचबै लेल निहोरो करैत। दुनू बच्चो कखनो कऽ बाढ़ि देखि हँसैत तँ कखनो जाड़े कनैत।
बाढ़िक वेगमे एकटा घर भसिआएल अबैत देखि मुसना बाँसक टोन आ कुड़हरि लऽ दौगल। पानिमे पैसि हियाबे लगल जे कोन सोझे घर आओत। ठेकना कऽ हाँइ-हाँइ पाँचटा खुट्टा ठोकलक। आस्ते-आस्ते घर आबि कऽ खुट्टामे अड़कल, खूटामे अड़ल घर देखि घरवालीकेँ सोर पाड़ि कहलक- ‘‘हाँसू नेने आउ। घरक समचा सभ उघि-उघि लऽ जाउ।’’
  घरक ऊपरमे एकटा कुकूर सेहो भसैत आएल। ओ लोकक सुन-गुन पाबि कूदि कऽ महारपर चलि गेल। ठाठक बत्तीमे जहाँ मुसना हाँसू लगौलक आकि एकटा साँप लप दऽ हाथेमे हबक मारि देलकै। घरक भार थालमे गरल खुट्टा नहि सम्हारि सकल। पाँचो खुट्टा पानिमे गिर पड़लै। घर भसि गेलै। खूब जोरसँ मुसना कनबो करैत आ हल्लो करैत जे  हौ लोक सभ, दौड़ै जाइ जा हौ, हमरा साँप काटि लेलक। मुसनाक कानब सुनि घरवाली सेहो बपहारि काटए लागलि। बपहारि कटैत घरवालीकेँ मुसना कहलक- ‘‘हे गए दुखनी माए, नाग डसि लेलकौ। छाती लग बिख आबि गेल। कनिये बाकी अछि कंठ छुबै ले। धिया-पुताकेँ सोर पाड़ि कनी मूँह देखा दे। आब नै बचबौ।’’
  जीबछी हल्लो करै आ घरबलाक बाँहि पकड़ि उपरो करैत। महारक किनछरिमे पहुँचि जहाँ उपर हुअए लगल आकि दुनू गोटे पिछड़ि कऽ तरे-उपरे निच्चाँमे खसल। दुनू परानी भीजल तँ रहबे करै, आरो नहा गेल। मुदा तइयो ओरिया-ओरिया कऽ उपर भेल। महारपर आबि जीबछी चूनक कोहीसँ चून निकालि दाढ़मे लगौलक। साँपक बिख झाड़निहार गाममे एकोटा नहि। मुदा रौदिया एहि बेर दसमीमे चनौरा गहबरमे चाटी सिखने छल। सभ कियो रौदियाक खोज करए लगल। ओ रौदिया माछ मारए लेल सहत लऽ कऽ बाध दिशि गेल छल। एक गोरे ओकरा बजा अनलक। अबिते रौदिया सहत कातमे रखि हाथ-पएर धोए मुसना लग आबि बाजल- ‘‘हौ भाय, हमर चाटी सिद्ध नहि भेल अछि, किएक तँ हम एखन धरि गंगा स्नान नै केलहुँहेँ। मुदा तइयो बिसहाराकेँ सुमरि देखै छिऐ।’’
  मुसनाकेँ आगूमे बैसा रौदिया हाथेसँ जगहकेँ झाड़ि चाटी रखलक। सभ रौदिया दिशि देखैत। मुदा चाटी चलबे ने कएल। बाढ़िक दुआरे आन गामसँ झाड़निहार आ चट्टिवाहकेँ बजाएब महाग मोसकिल रहै। सभ निराश भऽ गेल। छाती पीटि-पीटि जीबछी कनबो करै आ देवी-देवताकेँ कबुलो करै। मुदा ढ़ोढ़ साँप कटने रहए तेँ बिख लगबे ने केलै।
गोसाइ लुक-झुक करए लगल। गामक ढ़ेरबा, बूढ़ि आ जुआन स्त्रीगण, चंगेरीयो आ चंगेरोमे काँच माटिक दिआरी लऽ पोखरिक घाट लग जमा भऽ कमला महरानीकेँ साँझ दऽ गीत गाबए लागलि‍। बच्चा सभ जए-जएकार करैत। तहि बीच लुखिया कमला महरानीकेँ पाठी कबुला केलक, सुबधी एक सेर मधुर। दोसरि साँझ धरि गीत-गाबि सभ घुरि कऽ आंगन आएल।
एक रफ्तारमे बाढ़ि पाँच दिन रहल। मुदा पोह फटितहि छठम दिन पानि कमए लगल। बाढ़िक पानि जहिना हुहुआ कऽ अबैए, तहिना जाइए। बेर झुकैत-झुकैत घर-अंगनाक पानि निकलि गेलै। मुदा थाल-खिचार रहबे करै। सातम दिनसँ लोक घर ठाढ़ करए लगल। बाढ़ि सटकितहि लोक परदेश दिशि पड़ाए लगल। गाममे ने एक्कोटा धानक गब बँचल आ ने खेत रोपए लेल बिरार। नारक टाल सभ कतए भसि कऽ गेल तेकर ठेकान नहि। गहुमक भुस्सी भुसकाँरेमे सड़ि-सड़ि गोबर बनि गेल। मनुक्खसँ बेसी दिक्कत माल-जालकेँ भऽ गेलै। आमक पात, बाँसक पात आन-आन गाछ सबहक पात काटि-काटि माल-जालकेँ खुआबए लगल। आन-आन गामसँ नार, भुस्सी कीनि-कीनि अानए लगल। मुदा माल-जाल तइयो अन-धुन मुइलै। जे बँचल रहै, ओहो सुखा कऽ संठी जेकाँ भऽ गेलै। तइ परसँ रंग-बिरंगक बीमारी सभ सेहो आबि गेलै। ककरो खुरहा तँ ककरो पेटझड़्ड़ी। किछु गोटे अपन सभ मालकेँ कुटमैती सभमे दऽ आएल।
चारिक अमल। पिसुआ भांग पीबि श्रीकान्त मैदान दिशिसँ आबि  दलानपर बैसि चाह पीबैत रहथि। सोगसँ अधमरु जेकाँ भेल। मने-मन सोचथि जे महाजनी तँ चलिये गेल आब अपनो साल भरि की खाएब? अगते धान सबाइ लगा देलहुँ। बड़ पैघ गलती भेल जे एक्को बखारी पछुआ कऽ नहि रखलौं। मुदा एक बखारी रखनहि की होइत। के ककरा मदति करत। ठीके कहब छै जे सभकेँ अपना भरोसे जीबाक चाही। भने दुआर परक बखारीक धान सठि गेल। कियो दरबज्जापर आओत तँ देखा देबै। मुदा अपनो तँ जरुरत अछि,  से कतए सँ आनब। लऽ दऽ कऽ घरक कोठीमे चाउर अछि, ओतबे अछि। एक्को धुर धान नञि बँचल अछि जे अगहनोक आशा होइत। आब अबाद कएल नै हएत। आगू रब्बीयेक आशा। जे सभ दिन कीनि-बेसाहि कऽ खाइत अछि ओकरा तँ कोनो नै, मुदा हमरा लोक की कहत? चाह पीबिते-पीबिते श्रीकान्तकेँ चौन्ह अाबए लगलनि। मन पड़लनि जे बाबा कहने रहथि जे दरबज्जापर जँ क्यो दू-सेर वा दू-टका मांगए लेल आबए तँ ओकरा ओहिना नहि घुमबिहक। ओहिसँ लछमी पड़ाइ छथि। जीबछीकेँ अबैत देखि श्रीकान्त सोर पाड़लखिन। सालो भरि जीबछी हुनके कुटाउन कऽ गुजर करैत छलि। चाउर-चूड़ा कुटैमे जीबछी गाममे सभसँ बेसी लुरिगर। श्रीकान्तक लग आबि जीबछी हँसैत कहलकनि- ‘‘एत्ते किए सोगाइल छथि कक्का, हिनका एत्ते छनि तखन एते दुख होइ छनि, हमरा तँ किछु ने अछि  तेँ कि मरि जाएब।’’
  जीबछीक बात सुनि भखरल स्वरमे श्रीकान्त कहलखिन- ‘‘जहिना सभ किछु बाढ़िमे दहा गेल तहिना जँ अपनो सभ तुर भसि जइतहुँ, से नीक होइत। जाबे परान छुटैत, ततबे काल ने दुख होइत। आगू तँ दुख नहि काटए पड़ैत।’’  मुस्की दैत जीबछी बाजलि- ‘‘एक्केटा बाढ़िमे एत्ते चिन्ता करै छथि काका,  कनी नीक की कनी अधलाह, दिन तँ बितबे करतनि।’’
  चीलम पीबैत मुसना ओसारपर बैसल। कसि कऽ  दम खींचि मने-मन सोचए लगल जे दू मास अगहन-पूस मुसहनि खुनि-खुनि गुजर करै छलहुँ। दस सेर जमो भऽ जाइ छल आ गुजरो कऽ लैत छलहुँ। ओहो चलि गेल। ने एक्को गब कतौ धान बँचल आ ने गाममे एकोटा मूस। दोसर दम खींचि धूँआकेँ घोटितहि मनमे एलै जे मूसक तीमन आ धुसरी चाउरक भात जँ जाड़क मासमे भेटए तँ एहिसँ नीक दोसर की हएत। एहेन खेनाइ तँ रजो-महरजोकेँ सिहिन्ते लागल रहतनि। ओ-हो-हो, भगवान गरीबेक सुख छीनि लेलनि।
मुसनाक पहिलुका नाम मकसूदन छल। मुदा मूस आ मुसहनिसँ बेसी सिनेह रहने लोक ओकरा मुसना कहए लगल। जीबछी आंगनक चुल्हिपर रोटी पकबैत। इनारपर हाथ-पएर धोय मुसना लोटामे पानि नेने आंगन आबि जलखै करै लऽ बैसल। टिनही छिपलीमे रोटी-नून जीबछी घरबलाक आगूमे देलक। अंगनामे दुखबाकेँ नहि देखि मुसना जोरसँ शोर पाड़लक। पिताक अवाज सुनितहि दुखबा दौगल आबि धुराइले हाथे-पएरे खाइले बैसि रहल। दुनू बापुत खाए लगल। चुल्हिये लगसँ मुस्की दैत जीबछी बाजलि- ‘‘ककरो किछु होउ, जकरा लूरि रहतै ओ जीबे करत। ऐठाम तँ देखै छिऐ जे एक्के दहारमे किदनि बहारक खिस्सा अछि। सभ हाकरोस करैए।’’
  मुँहक रोटी मुसना हाँइ-हाँइ चिबा जीबछी दिशि देखि कऽ बाजल- ‘‘तते ने माछ भसि-भसि आएल अछि जे खत्ता-खुत्तीमे सह-सह करैए। कने पानि तँ कम होउ। जखने पानि कम भऽ उपछै जोकर भेल आकि मछबारि शुरु कऽ देब। खेबो करब आ बेचबो करब। सदिखन दू पाइ हाथेमे रहत।’’
  अपन नहिराक बात मन पड़ितहि  जीबछी कहए लागलि- ‘‘हमरा नैहरमे पूबसँ कोशी आ पछिमसँ गंडकक बाढ़ि सभ साल अबैत छल। एहि बीच जे धार अछि ओकर पानि तँ घुमैत-फिरैत रहिते छल। सगरे गाम साउनेसँ जलोदीप भऽ जाइ छल। टापू जेकाँ एकटा परती टा सुखल रहैत छल। ओहिपर सौँसे गामक लोक बरसाती घर बना कऽ रहैत छल। कातिक अबैत-अबैत खेत सभ जागए लगैत छलै। तकर बाद लोक खेती करैत छल। गहिंरका खेत आ खाधि-खुधिमे भैँटक गाछ सोहरी लागल जनमै छल। अगहन बीतैत-बीतैत ओ तोड़ैबला हुअए लगैत छल। हम सभ ओहि भैँटकेँ तोड़ि-तोड़ि आनी, ओकरे दाना निकालि सुखा कऽ लावा भूजी। तते लावा हुअए जे अपनो खाइ आ बेचबो करी। काल्हि गिरहत कक्काक ओहिठाम जाएब आ कहबनि जे चौरीमे मनसम्फे भैँट जनमल अछि, ओ हमरा दऽ दिअ।’’
एखन धरि दुनू परानी मुसना, चाउर आ चूड़ाक कुट्टी करैत छल, सेहो ढ़ेकीमे। किएक तँ गाममे एक्कोटा छोटको मशीन धनकुटियाक नहि छल। अधिकतर परिवार अपन-अपन ढेकी-उखड़ि रखैत छल। मुसना सेहो कुट्टीक दुआरे अपन ढेकी-उखड़ि रखने अछि। नीक चाउर बनबैमे जीबछीक लोहा सभ मानैए। एहि बेरि तँ धनकुट्टी चलत नहि। मुदा बाढ़िमे आन गामसँ तते भैँट दहा कऽ चौरीमे आएल जे सापरपिट्टा गाछ सौँसे चौरीमे जनमि गेल अछि। तेँ जीबछी मने-मन चपचपाइत। दोसरकेँ भैँटक भाँज बुझले नहि छलै।
सभ दिन नहाइ बेरिमे जीबछी चौरी जा भैँट देखि-देखि अबैत छलि। चौरगर-चकरगर पात सौँसे चौरीकेँ छेकने। गोटि-पङरा फूल हुअए लगलै। फूल देखि जीबछीक मनमे होइ जे एत्तेटा फुलवारी इन्द्रो भगवानकेँ हेतनि की नहि। पाँचे दिनमे सौँसे चौरी फूल फुला गेल। अगता फूलक पत्ती झड़ि-झड़ि खसए लागल, फूलमे नुकाएल फड़ निकलए लगल। गोल-गोल, हरियर-हरियर। फड़ देखि जीबछी आमदनी बुझि, चौरी कातमे बैसि, नव-नव योजना मने-मन बनबए लागलि। अइ बेर एकटा खूब निम्मन महीस कीनब। जँ महीस जोकर आमदनी नै हएत तँ दूटा गाऐ कीनि लेब। अप्पन तँ सम्पति भऽ जाएत। ओकरे खूब चराएब-बझाएब। ओहीसँ तँ चारु परानीक गुजर चलत। जिनगी भरि तँ कुटौने करैत रहलहुँ मुदा एहि बेर कमलो महरानी आ कोसियो महरानी दुख हेरि लेलथि। मने-मन जीबछी दुनूकेँ गोड़ लगलकनि। अपन धन हएत, तइ परसँ मेहनत करब तँ कोन दरिदराहा दुख आबि कऽ हम्मर सुख छीनि लेत? मजगूत घर बान्हब, बेटा-बेटीक बिआह करब। नाति-पोता हएत, बाबा-दादी बनि कऽ जते दिन जीबी ओ कि देवलोकसँ कम भेलै। अही लए ने सभ हेरान अछि। कएलासँ सभ किछु होइ छै, बिनु केने पतरो फुसि।
घनगर गाछ देखि जीबछीक मनमे अएलै जे बीच-बीचमे सँ जँ गाछ उखारि देबै तँ सौरखियो करहर भऽ जाएत आ छेहर गाछ रहने फड़ो नमहर हएत। जइसँ दानो नीक हएत। एखनेसँ आमदनी शुरु भऽ जाएत। उत्साहित भऽ जीबछी कमठौन शुरु केलक। मुदा करहर उखारैमे तते डाँड़ दुखाइ जे हूबा कमि गेलै। कमठौन छोड़ि देलक। देखते-देखते फड़मे लाली पकड़ए लगलै।
  अगता फूल अगता फड़ भेल। नमहर-नमहर, पोछल-पोछल, गोल-गोल पुष्ट। रंगल फड़ देखि जीबछी बुझि गेल जे आब ई तोड़ैबला भऽ गेल। दोसर दिनसँ फड़ तोड़ैक विचार जीबछी मने-मन कऽ लेलक।
  दोसर दिन भोरे जीबछी रोटी पका, दुनू बच्चो आ अपनो दुनू परानी खा प्लास्टिकक बोरा लऽ फड़ तोड़ैले बिदा हुअए लगल आकि धक दऽ मन पड़लै जे बोरामे तँ फड़ राखब, मुदा पानिमे तोड़ि-तोड़ि कतए राखब। फड़ तोड़ैले तँ झोराक जरुरत हएत। झोरा तँ अपना अछि नहि! आब की करब? लगले जीबछी पुरना साड़ीकेँ फाड़ि दूटा झोरा सीलक। झोरा सीबि बोरो आ झोरोकेँ चौपेत एकटा झोरामे राखि, दुनू बच्चो आ दुनू गोटे अपनो चौर दिशि बिदा भेल।
  फड़क रुप-रंगसँ जीबछीक मन गद-गद। मुदा अनभुआर काज बुझि मुसना तर्क-वितर्क करैत। चौरक कात पहुँचि उपरका खेत जे सुखाएल छल मे दुनू बच्चो, बोरो आ रोटी-पानिकेँ रखि दुनू परानी भैँट तोडै़ले पानिमे पैसल। पानिमे पैसितहि जीबछीक नजरि भैँटक फड़क उपरे-ऊपर नाचए लगल। जहिना ककरो रुपैआक थैली भेटलासँ खुशी होइ छै, तहिना जीबछीक मनमे भेलै। एक टकसँ देखि जीबछी दुनू हाथे हाँइ-हाँइ फड़ तोड़ए लागलि। खिच्चा फड़ देखि जीबछी पतिकेँ कहलक- ‘‘जुएलके फड़ टा तोड़ब। अजोहा एखन छोड़ि दियौ। पछाति तोड़ब।’’
  झोरा भरिते जीबछी ऊपर आबि-आबि बोरामे रखैत। मुसनो सएह करैत। दुनू बोरा भरि गेल। ऊपर आबि जीबछी पतिकेँ कहलक- ‘‘कनी काल सुस्ता लिअ। पानिमे निहुड़ल-निहुड़ल डाँड़ो दुखा गेल हैत। अहाँ एत्तै रहू, हम एक बेर अंगनासँ रखने अबै छी।’’
  कहि जीबछी एकटा बोरा उठा आंगन बिदा भेलि। एक तँ पानिक भीजल, दोसर ओजनगर बस्तु। मुदा जीबछी भारी बुझबे ने करए। किएक तँ सम्पत्तिक मोटरी रहै किने। आंगन आबि ओसारपर बोरा रखि पुनः जीबछी चौर दिशि रमकल विदा भेलि। चौर पहुँचि पतिकेँ कहलक- ‘‘हम बोरा लै छी, अहाँ दुनू बच्चो आ डोलोकेँ सम्हारने चलू।’’
  आगू-आगू मुसना बेटीकेँ कोरामे दोसर हाथमे डोल आ बेटाकेँ लऽ चलल। पाछू-पाछू जीबछी माथपर बोरा लेने। थोड़े दूर बढ़लापर जीबछी पतिकेँ कहलक- ‘‘भगवान दुःख हेरि लेलनि।’’
  मुदा  स्त्रीक बात सुनि मुसनाकेँ ओ खुशी नञि एलै जे जीबछीकेँ रहै। आंगन आबि जीबछी पहिलुके बोरा लग दोसरो बोरा रखि भानसक ओरियान करै लागलि।
चारिम दिन पहिलुके खेप भैँट तोड़ै काल मुसनाकेँ एकटा ठेंगी बाँहिमे पकड़ि लेलकै। जे ओ देखबे ने केलक। मुदा जखन ठेंगी भरि पोख खून पीबि भरिया गेलै, तखन मुसनाक नजरि पड़लै। ठेंगीकेँ देखितहि ओकर परान उड़ि गेलै। थर-थर कापए लगल। खूब जोरसँ घरवालीकेँ कहलक- ‘‘बाप रे बाप! देहक सभटा खून ठेंगी पीबि लेलक। कोन पाप लागल जे अइ मौगियाक भाँजमे पड़लौं। एक तँ बाढ़िक मारल छी जे भरि पोख अन्न नै होइए। सुखा कऽ संठी भेल छी। तइपर जेहो खून देहमे छलए सेहो ठेंगिये पीबि गेल। झब दे आउ ने तँ हम पानियेमे खसि पड़ब।’’
  मुसनाक बातकेँ अनठबैत जीबछी हाँइ-हाँइ फड़ो तोड़ैत आ मने-मन बजबो करैत- ‘‘जना नाग डसि नेने होइ, तहिना अड़राइए। भभटपन ने देखू। एहने-एहने पुरुख बुते परिवार चलत?’’
  दुन झोरा भरिते जीबछी मुसना लग आबि हाथेसँ ठेंगी पकड़ि एकटा चिचोरमे बान्हि देलक। मुदा जइ ठाम ठेंगी पकड़ने रहै तइ ठामसँ छड़-छड़ खून बहैत। अपन दहिना औंठासँ जीबछी दाबि देलक। कनिये कालक बाद खून बन्न भऽ गेलै। जीबछी फेर फड़ तोड़ैले पानिमे पैसल। तोड़ि कने काल बाद जीबछी कहलक- ‘‘आउ ने, आब किछु ने हएत।’’
  जीबछीक बात सुनि मुसना आँखि गुड़रि कऽ बाजल- ‘‘ई मौगिया जान मारैपर लगल अछि। जे कहुना मरि जाए। हमरा की दुनियामे सैँएक कमी छै? दोसर कऽ लेब। दुनू बच्चा दिशि देखैत बाजल- मुदा अइ टेल्हुक सभक की हेतै? बिलटि कऽ मरत की नहि?’’  पति दिशि देखि पत्नी मुस्की दैत बाजलि- ‘‘नञि तोड़ब तँ नञि तोरु। ओतै बैसि बच्चा सभकेँ खेलाउ।’’
  दुनू बोरा भरि जीबछी आंगन अनलक। सभकेँ सम्हारने मुसना सेहो आएल। आंगन आबि जीबछी चुल्हि पजारि, भानस कऽ दुनू बच्चो आ अपनो दुनू परानी खेलक। खा कऽ जीबछी हाँसू लऽ भैँटक फड़ चीरि-चीरि दाना निकालए लागलि। लाल-लाल, गोल-गोल। मुसना सेहो दाना निकालए लगल। दुनू बच्चा दुनू भाग बैसि दूटा फड़केँ गुड़कबैत। दानाकेँ एकटा चटकुन्नीपर थोपि-थोपि रखैत जाए। मुदा कनिये काल बाद मुसनाकेँ चीलम पीबैक मन भेलै। ओ उठि कऽ चुल्हि लग जा आगियो तपए लगल आ चीलमो पीबए लगल। दानाक ढ़ेरी देखि जीबछी गर अँटबए लागलि जे एत्ते कत्तऽ कऽ राखब। गुनधुन करैत। एकाएक नैहरक बात मन पड़लै। मन पड़िते मूहसँ हँसी फुटलै। जीबछीकेँ हँसैत देखि मुसना अह्लादित भऽ कहलक- ‘‘ऐँ गै, कोन सोनाक तमघैल तोरा भेटि गेलौहेँ जे एना खिखिआइ छेँ।’’
  मुदा पाशा बदलैत जीबछी बाजलि- ‘‘एखैन तँ अन्हार भऽ गेलै, काल्हि भोरे एकटा खाधि टाटक कात अंगनेमे खुनि देबै।’’
  भोरे मुसना ढ़क जेकाँ गोल-मोल खाधि खुनलक। जीबछी दू-लेब कऽ कऽ लेबि, सुखौलक। ओहिमे भैँटक दाना सुखा-सुखा रखैत गेल। ऊपरसँ टाटक झँपना बना मुसना दऽ देलक।
  मास दिनक मेहनतिसँ जीबछीक आंगन भैँटक दानासँ भरि गेल। अनभुआर चीज तेँ चोरी-चपाटीक डरे नहि। भरल आंगन देखि जीबछीक मनमे समुद्रक लहरि जेकाँ खुशी हिलकोर मारए लगलै। कनडेरिये आँखिये मुसना दिशि देखि जीबछी मुस्किया देलक। घरवालीक मुस्की देखि मुसना खिसिया कऽ बाजल- ‘हमरा देखि-देखि तोरा हँसी लगै छौ। हँसि ले, जते हँसमे से हँसि ले। जाबे जीबै छियौ ताबे। भगवान केलखुन आ मरलियौ तखैन तोहर हँसी नगरक लोक देखतौ।’’
  मुदा जीबछीक लेल धैन-सन। किएक तँ खुशीसँ मन एते भरल रहै जे घरबलाक बात ओहिमे पैसिबे ने केलै। मने-मन जीबछी लावा भुजैक विचार करए लागलि। लावा भुजै लेल एकटा नम्हर खापड़ि चाही। बालु रखै लेल एकटा कोहा चाही। लारनि तँ अपनो खरहीसँ बना लेब। बाउलो नदी कातसँ लऽ आनब। जखन कुम्हनि ओहिठाम जाएब तँ कचकुह ताकि कऽ एकटा नमहर तौला लऽ लेब। ओकरे खापड़ि बना लेब। बालु धिपबैले मझोलको कोहासँ काज चलि जाएत। एकटा सरबाक काज सेहो पड़त। किएक तँ बालु जे देबै से तँ हाथसँ नञि हएत। ओइमे एकटा बत्तीक डाँट लगबए पड़त। लगा लेब। मुसनाकेँ कहलक- ‘‘लाबा भुजै लेल जारनक ओरियान करए पड़त।’’
  लावाक नाम सुनि मुसनाक मनमे खुशी भेलै। मुस्कुराइत उत्तर देलक- ‘‘एखन टेंगारी सुढ़िया लै छी। बेरु पहर गिरहत कक्काक गाछीसँ बाँझियो आ सुखल ठौहरियो सभ आनि देब।’’
  भरि दिनमे दुनू परानी जीबछी सभ कथूक ओरियान कऽ लेलक।
लावा भुजब जीबछी शुरु केलक। दू चुल्हिया चुल्हि। एक मूहमे खापड़ि, दोसरमे कोहा। खापड़िमे भैँटक दाना भुजैत आ कोहामे बालु धिपैत। पहिल घानी भुजि जीबछी एक चुटकी चुल्हिमे दऽ दोसर घानी भुजब शुरु केलक। दोसर घानीक लावा देखि जीबछीक मन तर-उपर करए लागल। पहिलुका घानीक लावा चंगेरीमे लऽ दुनू बच्चो आ घरोबलाकेँ आगूमे देलक। आगूमे लावा देखि मुसना मने-मन सोचए लगल जे ई मौगिया बड़ लुरिगर अछि। एहन स्त्री भगवान सभकेँ देथुन। कहू जे एखैन तक हम जे बुझितो ने छलौं से आइ खाइ छी। धिया-पुताकेँ पोसब कोन बड़का भारी बात छिऐ, समाजो लेल लोक बहुत किछु कऽ सकैत अछि।
  लावाक गमक पुरबा हवामे मिलि गामकेँ सुगंधित कऽ देलक। सुगंध पाबि टोलोक आ गामोक स्त्रीगण सभ लावा कीनैक लेल एक्के-दुइये जीबछीक आंगन अाबए लगल। मुदा एक्केटा जबाब जीबछी सभकेँ दैत- ‘पहिने गिरहत कक्काकेँ खुएबनि, तखन ककरो देब। भरि दुपहर जीबछी लाबा भुजलक। दू छिट्टा। दुनू छिट्टा लावा घरमे रखि ओहिमे सँ एक मुजेला लऽ साड़ीसँ झाँपि जीबछी मुसनाकेँ कहलक- ‘‘हम गिरहत कक्का ओहिठाम जाइ छी। अहाँ अंगनेमे रहब।’’  कहि जीबछी माथपर मुजेला लेने श्रीकान्त ऐठाम बिदा भेल।
  जीबछीक माथपर मुजेला श्रीकान्त गौरसँ देखि मुस्कुराइत कहलखिन- ‘‘बड़ खुशी देखै छी लछमी महरानी। मुजेलामे की चोराकऽ अनलहुँहेँ। कने हमरो देखए दिअ?’’
  अनसुनी करैत जीबछी मुस्की दैत आंगन जा गिरहतनीक आगूमे मुजेला रखि कहलकनि- ‘‘काकी, थोड़े कऽ लाइ बना लिहथि। अखन थोड़े नोन-मरीच-तेल मिला कऽ देथु। जे कक्काकेँ दऽ अबै छिएनि।’’
  छिपलीमे लावा नेने जीबछी दरबज्जापर जा श्रीकान्तक आगूमे देलकनि। ओ छिपलीमे उज्जर-उज्जर रमदानाक लावा जेकाँ लावाकेँ निहारि-निहारि देखए लगलाह। जीबछी कहलकनि- ‘‘काका, की निङहारै छथिन, पहिने एक मुट्ठी मुँहमे दऽ कऽ देखथुन ने। भैँटक लावा छिऐ।’’
  एक मुट्ठी उठा श्रीकान्त मुँहमे देलखिन। लावाक कोमलता आ सुआद बुझि श्रीकान्त पत्नीकेँ सोर पाड़ि कहलखि‍न- ‘‘एत्ते सुन्नर वस्तुकेँ एखन धरि जनितहुँ नहि छलहुँ। धन्य अछि जीबछीक ज्ञान आ लूरि जे एहेन सुन्नर हराएल बस्तुकेँ ऊपर केलक। साक्षात् देवी छी जीबछी। जाउ, सन्दुकमे सँ एक जोड़ साड़ी आ आंगी निकालने आउ। जीबछीकेँ अपना ऐठामसँ पहिरा कऽ बिदा करब। गरीब-दुखियाक देवी छी जीबछी।’’
सभ दिन जीबछी लावा भुजैत छलि आ अंगनेसँ लोक सभ कीनि-कीनि लऽ जाइत। पनरह दिनक जमा कएल रुपैयो आ फुटकुरियो जीबछी मुसनाकेँ गनै लेल आगूमे देलक। पाइ देखि मुसनाक मन उड़ि गेल। मूहसँ ठहाका निकलल। एक टकसँ मुसना जीबछी दिशि देखि, कैँचा गनए लगल।

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