Saturday, November 1, 2008

पीरारक फड़ - जगदीश प्रसाद मण्डल



गोल-गोल हरियर-हरियर भुआ जेकाँ सोहरी लगल डारिमे जेहने हरियर पात तेहने फड़, वएह थिक पीरारक फड़। पाँचेटा पुरान गाछ गाममे, बड़का-बड़का आम, जामुन सीसो गाछक जन्म ओ पाँचो पीरारक गाछ देखने। सए बरखक करिया बाबा कहैत जे जहियासँ मोन अछि ओ पाँचो गाछ ओहिना बुझि पड़ैत अछि। एते ठनका खसल, बिहाड़ि आएल मुदा ओइ पाँचो गाछक रुइयाँ भग्न नहि भेलै। दस गजसँ नमहर नहि, ने मेघडम्मर जेकाँ बहुत पसरल आ ने छिड़िआएल। छोट-छीन बरखाकेँ रोकि पानिक बुन्नकेँ माटिक मुँह नहि देखै दैत घनगर पात सजा कऽ सजल। सहतक कोथी जेकाँ चोखगर काँट, डारि रुपी पहरुदारकेँ सजौने। छड़गर-छड़गर डारिमे चौरगर-चौरगर पात जेना इन्द्रकमल वा तगड़ फूलक होइत। तहिना फूलो।
पाँचो पीरारक गाछ सइयो बिहाड़ि, हजारो बरखा, नमहरसँ छोट धरि सइयो बेर पाथरक चोट खेलक, बाढ़ि रौदीकेँ हँसैत-हँसैत सहलक। जहिना गामक उत्तरबरिया बाधमे एक्के आड़िपर पतिआनी लगा पाँचो गाछ ठाढ़। देखबोमे पाँचो एक्के रंग। ने नमहर ने छोट डारि, जे एक-दोसरसँ हक-हिस्सा लेल झगड़ैत। पाँचोमे अटूट प्रेम। जखन पाँचो फूलसँ सजैत तखन बुझि पड़ैत जे एक-दोसरक जुआनीक रंग देखि हृदयसँ खिलखिला-खिलखिला हँसैत होअए। एतेक नमहर जिनगीमे ने कियो जड़िकेँ तामि-कोड़ि पानि देलक आ ने ठारिकेँ छकड़ि-छुकड़ि गाछकेँ सुन्दर बनौलक। सोलहो आना देखभाल भगवानेक उपर। तेँ पाँचो गाछ स्वाभिमानसँ भरल जे ककरो एहसान रुपी कर्ज जिनगीमे नहि लेलौं। सदिखन पाँचो हँसैत-इठलाइत मन्द हवामे झुमैत।
पहिने पाँचो गाछक फूल फुला कऽ फड़ बनि झड़ि जाइत। बादमे फड़ पूर्ण जिनगीक सुख भोगि अंतिम अवस्थामे पकलापर पवन रुपी न्योतहारीकेँ पठा चिड़ै-चुनमुनीकेँ बजा अपन शरीर दान करैत, यएह पाँचो गाछक जिनगी भरिक धर्म रहल।
ओहि गाछसँ हटिये कऽ लोक सभ खेतक जोत-कोर कऽ उपजबैत। जे ओहि गाछपर सुगवा साँप रहैत छैक। सुगवा साँप लोककेँ देखैमे अबिते ने छैक ओ हरियर-लत्ती जेकाँ रहैत छैक। जकरा कटलासँ स्वर्ग-नरकक द्वार अनेरे खुजि जाइत छैक। बीचमे कतौ कोनो रुकावट नहि होइत छैक।
उत्तरवारि बाधक रखबारि रतना करैत छल। दू साल पहिने दुनू परानी मरि गेल। दू सालसँ क्यो बाधक रखबारि करैले तैयारे ने होइत। डर होइत जे पीरारक गाछपर सुगवा साँप रहैत छैक तेँ के अपन जान गमौत, दू-चारि सेर अन्न सालमे हेतै की नहि।
साल भरि पहिने पिचकुन नोकरी करैले मोरंग गेल। रौदियाह समए भेने किसानोक दशा नीक नहि। जन-बोनिहारक चर्चे की। साँझक-साँझ चुल्हि नहि पजरैत। गरीब-गुरबा गाए-बकरी बेचि-बेचि मोरंग, सिलीगुड़ी, आसाम नोकरी करए गेल। पिचकुनमा सेहो रखवारीवाली नवकी कनियासँ पनरह रुपैआ कर्जा लऽ गेल रहए। अखन धरि गाममे पिचकुनमाकेँ बकलेले-ढहलेेले बुझैत छल। जते गोटेक मेड़िया नोकरी करए गेल छल ओहिमे सँ किछु गोटे विराटनगर, किछु गोटे रंगैली, किछु गोटे सिलीगुड़ी आ किछु गोटे आसाम गेल। पिचकुनमाकेँ बकलेल बुझि सभ छोड़ि अपन-अपन गर लगबै गेल। असकरे पिचकुनमा इटहरी चौकसँ थोड़े आगू जा एकटा गाछक निच्चाँमे बैसि चूड़ा आ घुघनी खाए लगल। खाइते छल आकि दू गोटेकेँ उत्तर मुँहे जाइत देखि चूड़ा-घुघनीकेँ गमछाक खोंचड़ि बना खाइते संगे बिदा भेल। खेबो करै आ गप्पो-सप्प करै।
जाइत-जाइत धनकुटासँ कोस भरि पाछुए पहुँचल। जहि दुनू गोड़ेक संग रहै ओ दुनू किसान। एक गोटे मंगत राम पिचकुनकेँ नोकरी रखि लेलक। मरद-मौगी मिला पचासोटा जन मंगतराम खटबैत। सखुआक तीन महला घर बनौने। किछु खेत पहाड़ोपर रहै। जइमे मड़ुआ, सामी-कौनी उपजैत। नेबो सनतोला सभक गाछ सेहो रहैक। पहाड़क उपरमे रौद देखि पिचकुन उजड़ा पहाड़ बुझै। छोट-छोट गाछसँ लऽ कऽ पैघ-पैघ गाछक जंगल। छोट-छोट पहाड़सँ लऽ कऽ नमहर-नमहर पहाड़ देखि पिचकुन मने-मन सोचए जे दोसर दुनियाँमे चलि एलौं। मुदा रास्ताक ठेकान रहने भरोस रहै जे तीन दिनमे अपन गाम चलि जाएब। बड़का-बड़का बखारी, नारक टाल देखि पिचकुन मने-मन खुशी होइत जे मालिक खूब धनिक अछि। कहियो नोकरीसँ हटाओत नहि। जब गाम जाइक मन हएत छुट्टी लऽ कऽ चलि जाएब आ फेरो चलि आएब। रस्तो तँ देखले अछि।
साल भरि नोकरी केलाक बाद पिचकुनकेँ गाम अबैक मन भेलै। जहियासँ पिचकुन नोकरी कऽ रहल एक्को पाइ घर नहि पठौलक। पठबिते कोना? ने डाकघरक ज्ञान रहै आ ने ककरो अबैत-जाइत देखै। एकटा थारुनसँ पिचकुनकेँ लाट-घाट भऽ गेलै। अठारह-उन्नैस बरखक ओ थारुन। मंगते रामक जन। ओकर नाम धनिया। पिचकुनक संग अबैले धनिया राजी भऽ गेलि। साल भरिक बाद पिचकुन गाम आओत तेँ माए लेल ऊनी स्वीटर, चद्दरि आ अपनाे लेल फुलपेंट भरि बाँहिक स्वीटर चद्दरि सेहो कीनि लेलक। समाज सभ लेल सनतोला किनलक। कपड़ा, सनातोलाक मोटरी बान्हि, रुपैआकेँ फुलपेंटक जेबीमे लऽ मोटरीमे सेहो बन्हलक। बटखरचा लेल मुरही लऽ लेलक। धनिया अपन धएल-धड़ल रुपैआ कपड़ा सभ बान्हि रातियेमे तैयार भऽ गेलि। जंगल-झारक दुआरे रातिमे नहि निकलल। भुरुकवा उगिते दुनू गोटे अपन-अपन मोटरी लऽ चुपचाप बिदा भऽ गेल। जही रस्तासँ पिचकुन गेल रहए ओही रस्तासँ विदा भेल। इटहरी आबि दुनू गोटे बस पकड़लक। बससँ बथनाहा आबि पएरे बिदा भेल। कोसीमे नाओपर पार भऽ निरमली तक पएरे आएल। निरमलीमे गाड़ी पकड़ि गाम आएल।
फुलपेंट कमीज, पएरमे चप्पल पहिरने, बाबरी उनटौने कान्हपर मोटरी लेने आगू-आगू पिचकुन आ पाछू-पाछू धनिया आबि माएकेँ गोड़ लगलक। टोल-पड़ोसक लोक पिचकुनकेँ चिन्हबे ने करैत। पिचकुन माएकेँ गोड़ लागि ओलतीमे चप्पल रखि माएकेँ घर लऽ जा मोटरी खोलि रुपैआक गड्डी चुपचाप देखौलक। ऊसरमे दूबि जनमि गेल। रुपैआक गड्डी देखि माएक मोन उड़ि गेलै। हसोथि-पसोथि कऽ सभ कपड़ा समेटि, रुपैया तरमे घोंसिया मोटरी बान्हि धरैनपर रखलक। धनिया ओसारपर बैसलि। धनियाक संबंधमे माए पिचकुनकेँ पूछलक- ‘‘ई कनियाँ के छथुन?’’
  मुसकी दैत पिचकुन कहलक- ‘‘तोरे पुतोहु। ओतै बिआह कऽ लेलौं।’’
  एक्के-दुइये टोलक जनिजाति आबए लागलि। पिचकुनक माए सभकेँ एक-एकटा सनतोला देलक। एकटा दसटकही जेबीसँ निकालि पिचकुन माएकेँ दैत कहलक- ‘‘माए भूख लागल अछि। जो दोकानसँ बेसाहि सभ कुछ लऽ आन। पहिने भानस कर। ताबे हम नहा लै छी। तीन दिनक रस्ताक झमारल छी, ओंघीसँ देह भसिआइत अछि।’’
  पुतोहु देखि पिचकुनक माए मुनेसरी सौँसे टोल पुतोहु देखैले हकार देलक। जातिकेँ भोजो गछलक।
सातम दिन पिचकुन दुनू परानी साँझकेँ सोमनी दादी ऐठाम गेल, आंगनमे बिछान बिछा सोमनी दादी पोता-पोती सभकेँ खेलबैत रहथि। दादीकेँ पिचकुन गोड़ लागि इशारासँ धनियाकेँ सेहो गोड़ लगै लऽ कहलक। धनिओ दादीकेँ गोड़ लगलक। ओछाइनिक कोनपर बैसि पिचकुन आँखिक इशारासँ दादीकेँ जाँतै लेल कहलक। धनिया सोमनी दादीकेँ जाँतए लागलि। पिचकुन सोमनी दादीकेँ कहए लगल- ‘‘दादी, गाममे तँ सभ बकलेले-ढहलेल बुझैत छलाए। साल भरि पहिने मोरंग गेलौं। कमेबो केलौं आ ओतै बिआहो कऽ लेलौं। आब गामेमे रहब। गाममे अहाँ सभसँ पैघ छी दुनू परानीकेँ असिरबाद दिअ।’’
  उत्तरवारि बाधमे, सभसँ बेसी खेत सोमनी दादीक। जहि बाधमे दू सालसँ रखवार नहि। पिचकुनकेँ दादी उत्तरवारि बाध रखवारि करैले कहलक। संगे पाँच कट्ठा खेत बटाइओ करैले कहलक। रोजी देखि पिचकुन गछि लेलक। पिचकुनकेँ खोपड़ी बन्हैले दादी दूटा बाँस, एक बोझ खढ़ आ एक मुट्ठी सावे गछलक।
दोसर दिन पिचकुन दुनू परानी उत्तरवारि बाध जा कऽ खोपड़ी बन्हैक जगह टेबलक। एकटा उचगर परती छल जहिपर बरसातोमे पानि नहि अटकै। धनियाक नजरि पीरारक गाछपर पड़लै, गाछ लग जा धनिया गाछमे फड़ तजबीज करए लागलि। फड़ देखि धनिया साड़ी कऽ फाँड़ बान्हि गाछपर चढ़ि गेलि। गाछमे लुबधल पीरारक फड़ देखि धनियाक मोन चपचपा गेलै। तीमन करैले दसटा तोड़िओ लेलक। जना ककरो माटिमे गड़ल रुपैआक तमघैल भेटलासँ खुशी होइत तहिना धनियाक मोन खुशी। पिचकुन कोदारिसँ परतीकेँ छिलए-बनबए लगल। मने-मन धनिया एक मनसँ उपरे फड़ एक-एकटा गाममे ठिकलक। खुशीसँ धनियाक मुहसँ गीत निकलए लगल। गीत गुनगुनाइत पिचकुनकेँ सोर पाड़ि धनिया कहलक- ‘‘तकदीर जागि गेल। देखै छिऐ गाछमे कोंकची लागल फड़ छै। काल्हिसँ तोड़ि हाट लऽ जाएब। खूब महग बिकाएत।’’
  पिचकुनकेँ बुझले ने। धनियाक बातपर बिस्वासे ने करै। खिसिया कऽ पिचकुन पुछलक- ‘‘अहाँ चिन्है छिऐ जे की छिऐ? जँ लोक खइतै तँ एहिना लुधकी लगल रहितै?’’
  पीरार देखि मने-मन धनिया अपन गरीबीकेँ खुशहाली दिशि‍ बढ़ैत देखति‍। गरीबी मनमे अमीरीक ज्योति अबैत देखलक। धनियासँ रक्का-टोकी नहि कऽ पिचकुन बाजल- ‘‘हमरा हाट-बजार करैक लूरि नै अछि। केना बेचब?’’
  धनिया नैहरोमे हाट-बाजार करैत छलि। खेतीक सभ काजक लूरि सेहो रहै। हाँस-बत्तक पोसबो करै आ हाट जा बेचबो करै। निर्भीक भऽ धनिया कहलक- ‘‘एकटा कड़चीक लग्गी बना कऽ सभ दिन तोड़बो करब आ बेचबो करब। अहाँ संगमे रहब।’’
आसिन आबि गेल। बरखा ठमकल। सबारी समए। अधिक बरखा भेने खेत सभमे धान उपरा-उपरी। जत्ते धरि नजरि जाइत तते धरि एकरंग हरिअर धान बुझि पड़ैत। बेर टगिते धानक पातपर ओसक बुन्न चमकए लगैत। जहिना कोनो बाला हरियर साड़ी हरियर आंगी पहिर माथमे मंगटीका पहिर देखबामे लगैत तहिना खेत रुपी बाला देखैमे लगैत। पुरबाक मन्द-मन्द हवा चलए लगल। जेतै बैसू तेत्तै आलस आबि जाइत। बाधमे तीन ठाम पानिक बहावक कटारि। जाहिसँ उपरका खेतक पानि निचला खेत दिशि‍ बहैत। पिचकुन तीनू कटारिकेँ दुनू भागसँ बान्हि अपिआरी बनौलक। अपिआरीक पानि उपछिते अनेरुआ माछ कूदि-कूदि अाबए लगल। धनिया अपिआरियो ओगरै आ माछो बिछै। पिचकुन छिट्टामे लऽ हाटो जा बेचै आ गामोमे घूमि-घूमि बेचए लगल। दोसर-दोसर माछ बेचनिहार पिचकुनकेँ एकटा साइकिल कीन लै लेल कहलक। माथपर माछक छिट्टा लऽ घुमने देहो महकै। साइकिलक नाम सुनि पिचकुनक सुतल मन फुरफुरा कऽ उठल। मुदा साइकिल चढ़ब नहि आबि पिचकुन थतमतमे पड़ि गेल। मने-मन पिचकुन सोचलक जे जखन साइकिल भऽ जाएत तखन चढ़ब सिखबो करब आ जाबे सीखल नै हएत ताबे पैछला सीटपर छिट्टा राखि गुरकाइये कऽ घूमि-घूमि बेचब। हाटसँ घुमैत काल पिचकुन धनियाकेँ कहलक- ‘‘अधपुराने एकटा साइकिल कीनि लेब।’’
  आमदनीक खुशी धनियाकेँ रहबे करै। मुस्कुरा कऽ कहलक- ‘‘जखन साइकिले कीनब तँ अधपुरान किऐक कीनब? नबके कीनि लिअ।’’
जितिआ पावनि। मड़ुआ रोटी माछक पावनि। एक दिन पहिने पिचकुनकेँ माछक बेना लोक सभ दऽ गेल। सुतली रातिमे पिचकुन चहा-चहा कऽ उठै आ घरवाली धनियाकेँ कहै- ‘‘अपिआरीक सभ माछ बीछि लेलक।’’ कहि सपना बुझि फेरि सुति रहै। अन्हरोखे दुनू परानी पिचकुन टौहकी छिट्टा लऽ अपिआरी लग गेल। अन्हार रहने माछ देखबे ने करै। एकटा अपियारी लग पिचकुन बैसल। दोसर लग धनमा। बीड़ी लगा-लगा पिचकुन पीबैत। फरिच्छ होइते एकटा मे पिचकुन आ दोसरमे धनिया माछ बिछए लागलि। माछ हएत की नहि तइ दुआरे लोक-सभ अपिआरिये लग पहुचए लगल। तराजू-बटिखारा नहि रहने पिचकुन अन्दाजेसँ बेचए लागल। छिट्टासँ उपरे माछ बिक गेलै। बचलाहा माछ दुनू परानी आंगन नेने आएल। अधासँ बेसिये अंगनोमे बिकल। पावनिक दिन रहने हाटक भरोसे रहब पिचकुन नीक नहि बुझि धनियाकेँ कहलक- ‘‘झब दे जलखै बनाउ। अखने माछ बेचए जाएब।’’
  हाँइ-हाँइ कऽ धनिया रोटी पका माछक सन्ना बनौलक। साइकिलपर छिट्टा लादि पिचकुन अंगने-अंगने माछ बेचए लगल। बारह बजैत-बजैत सभटा माछ बिक गेलै।
  रउदो तीखर। पिचकुन माछ बेचि पसीखाना पहुँच गेल। पसीखाना ताड़ी पिआकसँ भरल। दुनू परानी पासी गैहिकी सम्हारैमे तंग-तंग रहै। बैसैक जगह नहि देखि पिचकुन पासी लग जा एक बम्मा ताड़ी लऽ ठाढ़े-ठाढ़ पीबि कैंचा दऽ साइकिलपर चढ़ि बिदा भेल। धनियाकेँ भाँज लगि गेलै जे पिचकुन ताड़ी पीबैत अछि। दूरेसँ पिचकुनकेँ साइकिलपर अबैत देखि धनिया ओसारपर ओछाइन ओछा सुजनी ओढ़ि कुहरै लागलि। आंगन अबिते पिचकुन धनियाकेँ कुहरैत देखलक। धनियाक लगमे जा पिचकुन पुछलक- ‘‘की-इ-इ होइ-इ-इ अए-ए-ए?’’
  पिचकुनक बोली सुनि धनिया आरो जोर-जोरसँ कुहरए लागलि। धनियाक मुँह उघारि पिचकुन फेर पुछलक। नकिआइत धनिया बाजलि- ‘‘मरि जाएब। बड़का दुख पकड़ि लेलक। छाती दुखाइत अछि। जाउ दोकानसँ कड़ू तेल नेने आउ। सगरे देह मालिस करू, तखने छूटत।’’
  लटपटाइते पिचकुन शीशी लऽ दोकानसँ तेल आनि धनियाकेँ मालिस करै लगल। कर घूरि-घूरि धनिया पिचकुनसँ भरि पोख मालिस करौलक। जखन पिचकुनकेँ हाथ दुखा गेलै तखन धनिया बाजलि- ‘‘कन्नी कऽ मन हल्लुक लगै अए।’’
  मन हल्लुक सुनि पिचकुनक मनमे आशा जगै। पुनः मालिस करै लगै। धीरे-धीरे पिचकुनोक निशाँ उतड़ै आ धनियोक तामस कमै। पिचकुन खुशी जे घरवाली बँचि गेलै आ धनिया खुशी जे ताड़ी पीबैक नीक सजा देलिअनि।
आसिन कातिकक आमदनीसँ पिचकुनक जिनगीक नींव पड़ल, पीरारसँ लऽ कऽ माछ तकमे नीक कमेलक। जहि पिचकुनक जिनगी गरीबीसँ जर्जर छल जे जानवरोसँ बत्तर जिनगी जीबैत छल। जहिना मनुख जानवरक विकसित रुप छी तहिना पिचकुनो जानवरक जिनगी टपि मनुखक जिनगीमे प्रवेश केलक। जहिना हमर पूर्वज खोपड़ी बना रहैत छलाह आ धीरे-धीरे आइ नीक मकानमे रहैत छथि तहिना पिचकुन माटिक भीतक देवालक घर बनबैक विचार केलक। ओना पानियोक अपना कोनो उपाए नहि अछि जेकरा लेल आगू साल जोगार करैक विचार दुनू परानी मिलि केलक। सिर्फ घरे आ पानियेक दिक्कत पिचकुनकेँ नहि। ने घरमे सुतैक लेल चौकी आ ने भानस करैले बरतन छलै जे सभ रसे-रसे जोगार करैक विचार केलक।
सौँसे बाधमे धान फुटि लबल। हरियर उज्जर लाल कारी शीशसँ बाध चमकए लगल। दुनू परानी पिचकुन घर-आंगन छोड़ि भरि-भरि दिन बाधेमे रहए लगल। जँ बाधमे नहि रहैत तँ साँढ़-पाड़ाक उपद्रव, घसवहिनीक उपद्रवसँ गिरहस्तक मुँहे फज्झति सुनैत।
साँझू पहरकेँ धनिया सोमनी दादी लग जा खेतमे लुबधल धानक प्रशंसा करैत। सोमनी दादी हृदएसँ धनियाकेँ असिरवाद दैत। सामा पाबनि भऽ गेल। गोट-पङरा खेतक धान सेहो पाकए लगल। बैसारी देखि धनिया पिचकुनकेँ कहलक- ‘‘पीरारक गाछक जड़िकेँ तामि-कोड़ि कऽ सरिआ दिऔ जे आगू नीक-नहाँति फड़त।’’
  धनियाक बात सुनि पिचकुन बढ़ियाँ जेकाँ पीरारक गाछक जड़िकेँ तामि बकरी भेरारी मिलल छाउर पाँचो गाछमे चारि-चारि पथिया दऽ दू-दू घैल पानि सेहो देलक। पनरहे दिनक बाद पाँचो गाछक रंग बदलि हरियर-कचोर भऽ गेलै। सभ मूड़ीमे नवका कलश सेहो भेलै। जहिना मनुख अपन बच्चाकेँ सेवा करैत, तहिना दुनू परानी पिचकुन पीरारक गाछकेँ करए लगल। अपन सेवा देखि पाँचो पीरारक गाछ हृदएसँ दुनू परानी पिचकुनकेँ असिरवाद देमए लगल।

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