Thursday, January 1, 2009

बहीन - जगदीश प्रसाद मण्डल



  ‘आब अधिक दिन माए नहि खेपतीह। ओना उमेरो नब्बे बर्खक धत-पत हेबे करतनि। तहूँमे बर्ख पनरह-बीसेकसँ कहियो बोखार के कहए जे उकासियो नहि भेलनि अछि। एक तँ ओहिना पाकल उमेर तहिपर सँ देहक रोगो पछुआएल, तेँ भरिसक एहिबेरि उठि कऽ ठाढ़ हेबाक कम भरोस। किएक तँ एक ने एक उपद्रव बढ़िते जाइत छन्हि। अन्नो-पानि अरुचिये जेकाँ भेलि जाइ छनि।’’ -भखरल स्वरमे राधेश्याम पत्नीकेँ कहलखि‍न।
पतिक बात सुनि, कने काल गुम्म रहि, रागिनी बाजलि- ‘‘ककरो औरुदा तँ कियो नहिये दऽ सकैत अछि। तहन तँ जाधरि जीबैत छथि ताधरि हम-अहाँ सेबे करबनि की ने?’’
  ‘हँ, से तँ सएह कऽ सकैत छियनि। मुदा जिनगीक कठिन परीक्षाक घड़ी आबि गेल अछि। एते दिन जे केलहुँ, ओकर ओते महत्व नहि जते आबक अछि। किएक तँ कखनो पानि मंगतीह वा किछु कहती, तहिमे जँ कनियो देरी हएत आ कियो सुनि लेत तँ अनेरे बाजत जे फल्लांक माए पानि दुआरे किकिहारि कटैत रहैत छथिन। मुदा बेटा-पुतोहू तेहन जे छै घुरि कऽ एको-बेरि तकितो नहि छन्हि। ककरो मुँहमे ताला लगेबै। देखिते छियै जे गाममे कोना लोक झुठ बाजि-बाजि झगड़ो लगबैत आ कलंको जोडै़त अछि। तेँ चैबीसो घंटा ककरो नहि ककरो लगमे रहए पड़त। जँ से नहि करब तँ अंतिम समएमे कलंकक मोटरी कपारपर लेब।’’
 ‘‘कहलहुँ तँ ठीके, मुदा बच्चा सबहक हिसाबे कोन, तहन तँ दू परानी बचलहुँ। बेरा-बेरी दुनू गोटे रहब। अन्तुका काज अहूँ छोड़ि दिऔ। किएक तँ अंगनेक काज बढ़ि गेल। बहीनो सभकेँ जनतब दइये दिअनु।’’
  ‘‘अपनो मनमे सएह अछि। जँ तीनू बहीनि आबि जाएत तँ काजो बँटा कऽ हल्लुक भऽ जाएत। ओना अंगनासँ दुआरि धरि काजो बढ़बे करत। जखने सर-संबंधी, दोस्त-महिम बुझताह तँ जिज्ञासा करए अएबे करताह। जखन दरबज्जापर औताह तँ सुआगत बात करै पड़त”।
मूड़ी डोलबैत रागिनी बजलीह- ‘‘हँ, से तँ हेबे करत।’’

  ‘‘एखन निचेन छी आ काजो करैऐक अछि। तेँ अखने तीनू बहीनियो आ ममोकेँ जानकारी दइये दैत छिअनि।’’ आन कुटुम्बकेँ एखन जानकारी देब जरुरी नहि छै। मोबाइलमे मामाक नम्बर लगौलक। रिंग भेलै।

 ‘‘हेलो, मामा। हम राधेश्याम।’’
  ‘‘हँ, राधेश्याम। की हाल-चाल?’’
  ‘‘माए, बड़ जोर दुखित पड़ि गेलीह।’’
 ‘‘एखन हम एकटा जरुरी काजमे बँझल छी। साँझ धरि आबि रहल छी।’’ मोबाइल बन्न कऽ राधेश्याम जेठ बहीनि गौरीक नम्बर लगौलक।
 ‘‘हेलो, बहीनि। माए दुखित पड़ि गेलखुन।’’
  ‘‘एखन हम स्कूलेमे छी आ अपनहुँ कओलेजेमे छथि। छुट्टीक दरखास्त दइये दैत छिअए। साँझ धरि पहुँच जाएब।’’
  मोबाइल बन्न कऽ छोटकी बहीनिक नम्वर लगौलक।
  ‘‘सुनीता। हम राधेश्याम।’’
  ‘‘भैया, माए नीके अछि की ने?’’
  ‘‘एखन की नीक आ कि अधलाह। तीनि दिनसँ ओछाइन धेने अछि। तेँ किछु कहब कठिन।’’
  ‘‘हम अखने छुट्टीक दरखास्त दऽ आबि रहल छी।’’
  ‘‘बड़बढ़िया’’ कहि मझिली बहीनि रीताक नम्बर लगौलक।
  ‘‘हेलो, रीता। हम राधेश्याम। माए, बड़ जोर दुखित छथुन।’’

   ‘भैया, हम तँ अपने तते फिरीसान छी जे खाइक छुट्टी नहि भेटैत अछि। काल्हियेसँ दुनू बच्चाक प्रतियोगिता परीक्षा छियै’
बिना स्विच ऑफ केनहि राधेश्याम मोबाइल राखि अकास दिशि देखए लगल। ठोर पटपटबैत- ‘बच्चाक परीक्षा......, मृत्यु सज्जापर माए....! केकरा प्राथमिकता देल जाए? एक दिशि, जे बच्चा एखन धरि जिनगीमे पएरो नहि रखलक, सौंसे जिनगी पड़ल छैक। दोसर दिशि कष्टमय जिनगीमे पड़ल बृद्ध माए। खैर, सभकेँ अपन-अपन जिनगी होइ छैक आ अपना-अपना ढ़ंगसँ सभ जीबए चाहैत अछि। हम चारि भाए बहीनि छी तेँ ने दोसरपर ओंगठल छी। मुदा जे असकरे अछि, ओ कोना माए-बापक पार-घाट लगबैत अछि। किछु सोचितहि छल कि नव उत्साह मनमे जगल। नव उत्साह जगितहि नजरि पाछु मुँहे ससरल। चारु भाए-बहीनिमे माए सभसँ बेसी ओकरे मानैत छलि आ ओकर सेबो केलक। कारणो छलैक जे बच्चेसँ ओ रोगा गेल छलि। मुदा आश्चर्यक बात तँ ई जे जेकरा माए सभसँ बेसी सेवा केलक वएह सभसँ पहिने बिसरि रहलि अछि।
  गोसाँइ डूबैत-डूबैत मामो आ दुनू बहीनि-बहिनोइ पहुँच गेलखि‍न।
अबितहि डॉ. सुधीर -छोट बहिनोइ- आला लगा सासु माएकेँ देखि कहलखिन- ‘‘भैया, माए बँचतीह नहि। मुदा मरबो दस दिनक बादे करतीह। तेँ एखन ओते घबड़ेबाक बात नहि अछि। अखन हम जाइ छी, मुदा बहीनि डॉ. सुनिता रहतीह। ओना हमहूँ दू-दिन तीन-ि‍दनपर अबैत रहब।’’
  डॉ. सुधीरक बात सुनि सभकेँ क्षणिक संतोष भेलनि। मामा कहलखिन- ‘‘भागिन, ओना हम ककरो छींटा-कस्सी नहि करैत छिअनि मुदा अपन अनुभवक हिसाबे कहैत छिअह जे भरि दिन तँ स्त्रीगण सभ मुस्तैज रहथुन मुदा रातिमे नहि। ओना हमरो गाम बहुत दूर नहिये अछि। एखन तँ धड़फड़ाइले चलि एलहुँ। तेँ एखन जाइ छी। काल्हिसँ साँझू पहरकेँ एबह आ भोर कऽ चलि जेबह। भरि राति दुनू माम-भगिन गप-सप्‍प करैत ओगरि लेब।’’
दुनू बहिनोइयो आ मामो चलि गेलखिन।
  ‘‘आइ सातम दिन माएकेँ अन्न छोड़ब भऽ गेलनि। दू-चारि चम्मच पानि आ दू-चारि चम्मच दूध, मात्र अधार रहि गेल छनि।’’ -आंगनसँ दरवज्जापर आबि रागिनी पतिकेँ कहलखि‍न।
  पत्नीक बात सुनि राधेश्याम मने-मन सोचए लगलाह। मनमे उठलनि चारु भाए-बहीनिक पारिवारिक जिनगी। कतेक आशासँ दुनू गोटे माए-पिता हमरा चारु भाए-बहीनिकेँ पोसि-पालि, पढ़ा-लिखा, विआह-दुरागमन करा परिवार ठाढ़ कऽ देलनि। जहिना गौरी जेठ बहीनि एम.ए. पास अछि। तहिना एम.ए. पास बहिनोइयो छथि। हाई स्कूलमे बहीन नोकरी करैत अछि तँ कौलेजमे बहिनोइ। परिवारक प्रतिष्ठा, समाजोमे बढ़वे केलनि जे कमलनि नहि। तहिना छोटकियो बहीनि अछि। बहीनो डॉक्टर आ बहिनोइयो डॉक्टर। तहिना तँ पिताजी मझिलियो बहीनिकेँ केलनि। दुनू परानी इंजीनियर। बम्बइमे दुनू गोटे नोकरी करैत अि‍छ।
 जहिना तीनू बहीनि पढ़ल-लिखल अछि तहिना बहिनोइयो छथि। अजीव नजरि पितोजीक छलनि। मनुष्यक पारखी। तेँ ने बहीनिक विआह समतुल्य बहिनोइक संग केलनि। एक माए-बापक तीनू बेटी, पढ़ल-लिखल, एक परिवारमे पालल-पोसल गेलि, मुदा तीनूक विचारमे एते अंतर कोना अबि गेलै। एहि प्रश्नक जबाव राधेश्यामकेँ बुझैमे अयबै नहि करनि। मन घोर-घोर होइत। एक दिशि माइक अंतिम अवस्थापर नजरि तँ दोसर दिशि मझिली बहीनिक व्यवहारपर।
विचारक दुनियाँमे राधेश्याम औनाए लगलाह। प्रश्नक जबाब भेटिबे ने करनि। अपन परिवारपर सँ नजरि हटा बहीनि सभक परिवार दिशि नजरि दौड़ौलनि।
  गौरीक ससुर उमाकान्त हाई स्कूलक शिक्षक रहथिन। अपने बी.ए. पास मुदा पत्नी साफे पढ़ल-लिखल नहि। नाओ-गाँव लिखल नहि अबनि। ओना पिता पंडित रहथिन। मुदा बेटी कऽ परिवार चलबैक लूरिकेँ बेसी महत्व देथिन। जाहिसँ कुशल गृहिणी तँ बनि जाएत, मुदा ने चिट्ठी-पुरजी पढ़ल होइछै आ ने लिखल। ओना जरुरतो नहि रहै। किऐक तँ ने पति-पत्नीक बीच चिट्ठी-पुरजीक जरुरत आ ने कुटुम्ब-परिवारक संग। मुदा दुनू परानी उमाकान्त आ सरिताक बीच असीम स्नेह। मास्टर सहाएबकेँ अपन बाल-बच्चासँ लऽ कऽ विद्यालयक बच्चा सभकेँ पढ़बै-लिखबैक मात्र चिन्ता। जहि पाछू भरि दिन लगलो रहथि। जखन कि पत्नी सरिता परिवारक सभ काज सम्हारैत। एखनुका जेकाँ लोकक जिनगियो फल्लर नहि, समटल रहै। गौरीक परिवारपर सँ नजरि हटा राधेश्याम छोटकी बहीनि डॉ. सुनिताक परिवारपर देलनि। जहिना बहीनि डॉक्टरी पढ़ने तहिना बहिनोइयो। जोड़ो बढ़ियाँ। सुनिताक ससुर बैद्य रहथिन। जड़ी-बुट्टीक नीक जानकार। जहिना जड़ी-बुट्टीक जानकार तहिना रोगो चिन्हैक। जहिसँ समाजमे प्रतिष्ठो नीक आ जिनगियो नीक जेकाँ चलनि। तेँ अपन चिकित्साक वंशकेँ जीवित रखैक दुआरे बेटाकेँ डॉक्टरी पढ़ौलनि। पत्नियो तेहने। अंगनाक काज सम्हारि, बाध-बोनसँ जड़िओ-बुट्टी अनैत आ खरलमे कुटबो करैत रहथि। दवाइ बैद्यजी अपने बनाबथि किऐक तँ मात्राक बोध गृहिणीकेँ नहि रहनि। छोटकी बहीनिक परिवारपर सँ नजरि हटा मझिली बहीनिक परिवारपर देलनि। रीताक ससुर मलेटरिक इंजीनियरिंग विभागमे हेल्परक नोकरी करैत। अपनहि विचारसँ मलेटरिऐक बेटीसँ विआहो -लभ-मैरिज- केने। मलेटरिक नोकरी, तेँ पाइयो आ रुआबो। हाथमे सदिखन हथियार तेँ मनो सनकल। मुदा बेटा-बेटीकेँ नीक जेकाँ पढ़ौलनि। जहिना रीता इंजीनियरिंग पढ़ने तहिना घरोबला। दुनू बम्बइक कारखानामे नोकरी करैत। कमाइयो नीक खरचो नीक, तहिना मनक उड़ानो नीक। एकाएक राधेश्यामक मनमे उठल जे आब तँ माइयक अंतिमे समए छी तेँ एक बेरि रीताकेँ फेरि फोन कऽ कऽ जानकारी दऽ दिअए। मोवाइल उठा रीताक नम्वर लगौलनि। रिंग भेल बाजलि‍-  ‘‘हेलो, हम राधेश्याम।’’
‘‘हेलो, भैया। अखन हम स्टाफ सबहक संग काजमे व्यस्त छी।’’
   रीताक जबाव सुनि राधेश्याम सन्न रहि गेलाह। रातिक दस बजैत। इजोरियाक सप्तमी अन्हार-इजोतक बीच घमासान लड़ाइ छिड़ल। किछु पहिने जहि चन्द्रमाक ज्योति अन्हारपर शासन करैत, वएह चन्द्रमा पछड़ि रहल अछि। तेज गतिसँ अन्हार आगू बढ़ि रहल अछि। तहि बीच छोटकी बहीन डॉ. सुनीता आंगनसँ आबि भाय राधेश्यामकेँ कहलक- ‘‘भैया, हम तँ भगवान नहि छी, मुदा माइयक दशा जहि तेजीसँ बिगड़ि रहल छनि, तहिसँ अनुमान करैत छी जे काल्हि साँझ धरि परान छुटि जेतनि।’’
  एक दिशि माइक अंतिम दशा आ दोसर दिशि रीताक बिचारक बीच राधेश्यामक धैर्यक सीमा डगमग करए लगलनि। विचित्र स्थिति। जिनगीक तीनिबट्टीपर वौआए लगलाह। तीनिबट्टीक तीनू रस्ता तीनि दिस जाइत। एक रास्ता देवमंदिर दिशि जाइत तँ दोसर दानवक काल-कोठरी दिशि। बीचक रास्तापर राधेश्याम ठाढ़। एकाएक निर्णय करैत राधेश्याम बहीनि सुनिताकेँ कहलखिन- ‘‘कने गौरियो कऽ बजाबह।’’
  आंगन जा सुनिता गौरीकेँ बजौने आएलि। दुनू बहीनिक बीच राधेश्याम बजलाह- ‘‘बहीनि, जहिना हमर बहीन रीता तहिना तँ तोड़़ो सबहक छिअह। तेँ, तोहूँ सभ एक बेरि फोन लगा माइक जानकारी दऽ दहक। हम निर्णय कऽ लेलहुँ जे जहिना एहि दशामे माइक रहनहुँ, ओकरा अपन धिया-पूतासँ अधिक नहि सुझैत छैक तहिना हमहूँ ओकरा भरोसे नहि जीबैत छी। तेँ जँ माए के जीवितमे नहि आओत तँ मुइलाक बाद नहो-केश कटबैक जानकारी नहि देबइ। हमरा-ओकरा बीच ओतबे काल धरि संबंध अछि जते काल माइक प्राण बँचल छैक। कहलो गेल छैक ‘भाए-बहीनि महीसिक सींग, जखने जनमल तखने भिन्न।’ मन तँ होइत अछि जे भने ओ एखन स्टाफ सभक बीच अछि, तेँ एखने सभ बात कहि दियै। मुदा कहनहुँ तँ किछु भेटत नहि, तेँ छोड़ि दैत छियै।’’
  जहिना अकासमे उड़ैत चिड़ैकेँ बंश रहितहुँ परिवार नहि होइ छै तहिना जँ मनुक्खोक होइ तँ अनेरे भगवान किऐक बुद्धि-विवेक दइ छथिन। किऐक नहि मनुक्खोकेँ चिड़ैइये-चुनमुनी आ कि चरिटंगा जानवरेक जिनगी जीबए देलखिन।’ बजैत-बजैत राधेश्यामोक आ दुनू बहीनियोक करेज फाटए लगलनि। आँखिसँ नोर टघरए लगलनि। भाए-बहीनिक टूटैत संबंधसँ सभ अचंभित हुअए लगलथि। सबहक हृदयमे रीता नचए लगलनि। बच्चासँ विआह धरिक रीताक जिनगी सबहक आँखिमे सटि गेलनि। एक दिशि रीता बम्बइक घोड़दौड़ जिनगीक प्रतियोगितामे आगू बढ़ए चाहैत छलि तँ दोसर दिशि देवालमे टांगल फोटो जेँका सबहक हृदयमे चुहुट कऽ पकड़ने। जहिना बाँसक झोंझसँ बाँस काटि निकालैमे कड़चीक ओझरी लगैत तहिना धि‍या-पूताक ओझरीमे रीता।
  ‘तीनू ननदि-भौजाइ गौरि, सुनिता आ रागिनी माए लग बैसि मने-मन सोचए लगलीह। कियो-ककरो टोकैत नहि। तीनू गुमसुम। सिर्फ आँखि नाचि-नाचि एक-दोसरपर जाइत। मुदा मन श्वेतबान रामेश्वरम् जेँका। एक दिशि जिनगी रुपी भूमि स्थल जेँका विशाल भूभाग देखैत तँ दोसर दिशि मृत्यु रुपी अथाह समुद्र। यएह थिक जिनगी आ जिनगीक खेल। जहि पाछु पड़ि लोक आत्माकेँ बलि चढ़वैत। तहि बीच माए बाजलि- ‘रीता.....।’ रीताक नाम सुनि तीनूक हृदयमे ऐहेन धक्का लगलनि जहिसँ तीनू तिलमिला गेलीह।
रातिक एगारह बजैत। गामक सभ सुति रहल। इजोरियो डुबैपर। झल-अन्हार। दलानक आगूमे, कुरसीपर बैसि राधेश्याम आँखि मूनि अपन वंशक संबंधमे सोचैत रहथि। मनमे अएलनि जे आइ सप्तमीक चान डुबि रहल अछि, अन्हार पसरि रहल अछि, मुदा कि कल्हुका चान आइसँ कम ज्योतिक होएत? की अगिला ज्योति पैछला अन्हारक अनुभव नहि करत? सभ दिनसँ अन्हार-इजोतक बीच संघर्ष होइत आएल अछि आ होइत रहत। फेरि मनमे उठलनि जे आजुक राति हमरा लेल ओहन राति अछि जे भरिसक माइक जिनगीक अंतिम राति हएत। जनिका संग हजारो राति बीतल ओहिपर विराम लगि रहल अछि। विचारक दुनियाँमे उगैत-डूबैत राधेश्याम। तहिकाल शबाना पोतीक संग पहुँचलीह। दलान-आंगनक बीच रास्तापर दुनू गोटे चुपचाप ठाढ़ि। दुनू डेराएल। राधेश्याम आँखि मुनने तेँ नहि देखैत। परोपट्टामे हिन्दु-मुसलमानक बीच तना-तनी। जहि डरसँ शबाना दिनकेँ नहि आबि अन्हारमे आएलि। किऐक तँ सरोजनीक स्नेह खींचि कऽ लऽ अनलकै। रेहना शबानाकेँ कहलक- ‘‘दादी, अइठीन किअए ठाढ़ छीही, अंगना चल ने?’’
  रेहनाक अवाज सुनितहि राधेश्याम आँखि तकलनि तँ दुनू गोटेकेँ ठाढ़ देखलनि। पुछलथि-  ‘‘के?’’
  शबाना बाजलि- ‘‘बेटा, राधे।’’
  ‘‘मौसी।’’
  ‘‘हँ’’
  ‘‘एत्ती राति कऽ किऐक अलेहेँ?’’
  ‘‘बौआ, से तू नै बुझै छहक जे गाम-गाममे केहेन आगि लागि रहल छैक। पाँचम दिन सुनलौं जे बहीनि बड़ जोड़ अस्सक छथि। जखने सुनलहुँ तखने मन भेल जे जाइ। मुदा की करितौं? मन छटपटाइ छलए। बेटाकेँ पुछलियै तँ कहलक जे से तू नै देखै छीही रस्ता-बाटमे इज्जत-आवरुक लुटि भऽ रहल अछि। मार-काट भऽ रहल अछि। ऐहन स्थितिमे कोना जेमए। मुदा मन नै मानलक। जिनगी भरि दुनू बहीनि संगे रहलौं, आइ बेचारी मरि रहल अछि तँ मुँहो नै देखब? जी-जाँति पोतीकेँ संग केने एलौं।’’
  कुरसीपर सँ उठि राधेश्याम शबानाक बाँहि पकड़ि आंगन दिशि बढ़ैत बहीनिकेँ कहलखि‍न- ‘‘मौसी एलखुन। पाएर धोइले पानि दहुन।’’
  राधेश्यामक बात सुनि दुनू बहीनियो -गौरी आ सुनिता- आ रागिनियो घरसँ निकलि आंगन आइलि। गौरी बजलीह- ‘‘मौसी, शबाना मौसी!’’
  शबाना बजलीह- ‘‘हँ।’’
  दुनू गोटे -शबानो आ रेहनो- पएर धोए सोझे बहीन सरोजनी लग पहुँच दुनू पएर पकड़ि कानए लगलीह। कनैत देखि सरोजनी पुछलखि‍न- ‘‘कनै किअए छेँ। हम कि कोनो आइये मरब? एत्ती रातिकेँ किअए एलैहेँ?’’
  शबाना बाजलि- ‘‘बहीनि, रस्ता-पेरा बन्न अछि। दू बर्खसँ भौरियो-बट्टा -घुमि-घुमि बेचनाइ- बन्न भऽ गेल। जखैनसँ अहाँ दऽ सुनलौं, तखैनसँ मनमे उड़ी-बीड़ी लगि गेल तेँ दिन-देखार नै आबि चोरा कऽ अखैन ऐलौंहेँ।’’
  सरोजनी बहुत कठीनसँ बाजलि- ‘‘धिया-पूता नीके छौ कीने?’’
  शबाना कहलकनि- ‘‘शरीरसँ तँ सब नीके अछि, मुदा कारबार बन्न भऽ गेल अछि।’’
  ‘‘गामो दिशि गेल छलेँ?’’
  ‘‘नै। कन्ना जाएब....। तेसर सालक बाढ़िमे अहूँक गाम कटि कऽ कमला पेटमे चलि गेल आ हमरो गाम कोसीमे। आब सुने छी जे हमरो गाम भरनापर बसल हेँ आ अहूँक गाम कमलाक पछबरिया छहरक पछबरिया बाधमे। घनश्यामपुर तक तँ रस्ता छइहो मुदा ओइसँ आगू रस्ते सबपर मोइन फोड़ि देने अछि। पौरुकाँ जे जाइत रही तँ लगमा लगमे डूबए लगलौं।’
सरोजनी गौरीकेँ इशारासँ कहलक- ‘‘दाइ, बड़ राति भेलइ। मौसीकेँ खाइले दहक।’’
  शबाना बाजलि- ‘‘बहीनि, पहिने हम कना खाएब? पहिने बौआ राधेश्यामकेँ खुआ दियौ। खा कऽ सुति रहत। हम भरि राति बहीनसँ गप-सप्‍प करब। बहुत दिनक गप्‍प पछुआइल अछि।’’
  शबानाक बात सुनि राधेश्याम मने-मन सोचए लगल जे दुनियाँमे बहीनिक कमी नहि अछि। लोक अनेरे अप्पन आ बीरान बुझैत अछि। ई सभ मनक खेल छिअए। हँसी-खुशीसँ जीवन बितबैमे जे संग रहए, ओइह अप्पन। शवानाकेँ कहलक- ‘‘मौसी, माए तँ ने सिर्फ हमरे माए छी आ ने अहींक बहीनि। सबहक अप्पन-अप्पन छिअए, तेँ कियो अप्पन करत की ने?’’
पूबरिये घरक ओसारपर राधेश्याम सुतल। बाकी सभ पूबरिया घरमे बैसि गप-सप्‍प करए लगलीह। गौरी पुछलनि- ‘‘मौसी, अहाँ दुनू बहीनि तँ दू गामक छिअए। दुनू गोरेमे चीन्हा-परिचए कहिया भेलि?’’
  शबाना बाजनि- ‘जइहेसँ ज्ञान-परान भेलि, तेहियेसँ अछि। हमरा बाप आ तोरा नाना कऽ दोसतिआरै रहनि। कोस भरि पूब हमर गाम झगड़ुआ अछि आ कोस भरि पछिम बहीनिक। अखन तँ दुनू गाम उपटि कऽ दोसर ठीन बसल अछि। मुदा पहिने बड़ सुन्दर दुनू गाम छलै।
  गौरी बाजलि- ‘‘मौसी, हम तँ बच्चेमे, बहुत दिन पहिने गेल रही। तइ दिनमे तँ बड़ सुन्दर गाम रहए।’’
  शबाना बजलीह- ‘‘हँ, से तँ रहबे करए। मुदा आब देखवहक तँ बिसबासे ने हेतह जे यएह गाम छिअए। हँ, तँ कहै छेलिहह, काकाकेँ बहुत खेत-पथार रहनि। चारि जोड़ा बड़द खुट्टापर, चारि-पाँचटा महीसियो रहनि। मुदा हमरा बापकेँ खेत-पथार नै रहए। गामेमे खादी-भंडार रहए। सौँसे गामक लोक चरखोे चलबै आ कपड़ो बीनै। सभसँ नीक कारीगर रहए हमर बाप। घरक सभ कियो सुतो काटी आ कपड़ो बनबी। सलगा, चद्देरि, गमछी आ धोती बीनैमे हमरा बापक हाथ पकड़िनिहार कियो नहि। बहीनिक गामक सभ हमरे बापसँ कपड़ा कीनए। सौँसे गामसँ अपेछा रहए। पाँचे-सात वर्खक रही तहियेसँ बहीनिक ऐठाम अइठीन जेबो करियै आ खेबो करियै।’’
  शबानाक बात सुनि गौरीकेँ अचरज लगलै। मने-मन सोचए लगली जे एक तँ गरीब तहूमे मुसलमान। तहि बीच दोस्ती। मुस्की दैत रागिनी बाजलि- ‘‘कोन पुरना खिस्सा मौसी जोति देलखिन। ई कहथु जे दुनू बहीनिक बिआह एक्के दिन भेलनि?’’
  शबाना बाजलि- ‘धूर्र कनियाँ! अहाँ की बजै छी। हमरासँ बहीनि दू-तीन बरख जेठ छथि। बहीनिक विआहसँ दू वर्ख पाछु कऽ हमर विआह भेल। कक्का हमरा बापकेँ कहलखिन जे पूबरिया आ दछिनबरिया इलाका कोशिकन्हा भऽ गेल तेँ आब कथा-कुटुमैती उत्तरेभर करब नीक हएत।’
  कन्ने गुम रहि, शबाना बाजलि- ‘‘बेटी, कपारक दोख भेल। आब अपनो बुझै छी जे नैहरक काजक जे महौत छेलै से अइ काज –-भौरीक- नै अछि। मुदा की करितियै?
अइठीम उ काज अछिये नहि। ने खादी-भंडार छै आ ने कारोवार अछि।’’
  मुस्की दइत रागिनी बाजलि- ‘‘मौसी, अपना विआहमे तँ हम कनियेटा रही। सभ गप मनो ने अछि। हिनका तँ मन हेतनि, विआहमे झगड़ा किअए भेल रहए?’’
  कने काल गुम रहि शबाना ठाहाका मारि हँसि, बाजलि‍- ‘‘अहाँक बावू बड़ मखौलिया रहथि। हँसी-चौलमे ककरो नइ जीतए देथिन। घरदेखीमे एलथि। हम दुनू बहीनि खूब छकौलिएनि। पीढ़ी तरमे खपटा, झुटका बैसैले आ रुइयाँ तरि कऽ खाइले सेहो देलिएनि। खा कऽ जहाँ उठलाह कि एक डोल करिक्का रंग कपारपर उझलि देलिएनि। मुदा हुनका लिए धनि सन। तहिना बरिआतीमे ओहो छकौलकनि। सबहक धोतीमे चारि-पाँच दिनक सड़लाहा खैर लगा देलकनि। पहिने तँ बरिआती सभ अपनमे रक्का-टोकी केलक। मुदा जखन भाँज लगलै जे घरवारी सभकेँ सड़लाहा खइर लगा देलक। तखन बरिआतियो सभ टूटल। मुदा कहे-कही भऽ कऽ रहि गेलइ। मारि-पीटि नहि भैल।’’ कहि हँसै लागलि। सभ हँसल।
राधेश्याम ओसारपर सुतल रहथि। मुदा एक्को बेरि आँखि बन्न नहि भेलनि। किऐक तँ मनमे शंका होइत जे अनचोकेमे ने माए मरि जाए। खिस्से-पिहानीमे राति कटि गेल।
भोर होइतहि शबाना राधेश्यामकेँ कहलक- ‘‘बौआ, अपन मन अछि जे आब बहीनिकेँ एक काठी चढ़ाइये कऽ जाएब। मुदा गामे-गाम जे आगि लगल देखै छिअए तइसँ डर होइए।’’
  राधेश्याम- ‘‘मौसी, एहिठाम कियो किछु नहि बिगाड़ि सकैत छओ। जहिया तक तोरा रहैक मन होउ, निर्भीकसँ रह।’’
  शबाना बाजलि- ‘‘बौआ, मन होइए जे बहीनिक सभ नुआ-बिस्तर हम खीचि दिअए। फेरि ई दिन कहिया भेटत’’
  राधेश्याम- ‘‘दुनू बहीनिक बीच हम की कहबौ। जे मन फुड़ौ से कर।’’
   इम्हर आब राधेश्यामक माए सरोजनीक टनगर बोलो मद्धिम भेल जा रहल छलनि।

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