Thursday, February 12, 2009

बाबी - जगदीश प्रसाद मण्डल



दुर्गापूजा शुरु होइसँ एक दिन पहिने घर छछाड़ै आ दियारी बनबैले सिरखरियावाली बुढ़िया गाछीक मटि-खोभसँ मनही छिट्टामे चिक्कनि माटि नेने अंगना अबैत छलीह। रस्ते कातक चौमासक टाटपर बाबी करैला तोड़ैत रहथि आकि सिरखरियावालीक नजरि पड़लै। नजरि पड़ितहि ओ एक हाथे छिट्टा पकड़ने आ दोसर हाथे चाइनिक घाम आंगुरसँ काछि कऽ फेकि बाबीकेँ कहलनि-‘‘बाबी, छठिक कते दिन छै?’’
बाबीक नजरि जुआइल आ सड़ल करैलापर छलनि। किएक तँ अजोह करैला तीतो बेसी आ सुअदगरो कम होइ छै। ततबे नहि, पकैयोक डर। सड़ल करैला एहि दुआरे लत्तीकेँ बिहिया-बिहिया तकैत जे जँ ओकरा तोड़ि नहि लेब तँ दोसरोकेँ सड़ाओत। सिरखरियावालीक अवाज सुनि बाबी रस्ता दिशि देखि पुनः करैला ताकए लगलीह। किएक तँ माथपर भारी देखि गप-सप्‍प करब उचित नहि बुझलनि। एक तँ भरल छिट्टा माटि तइपर खुरपी गाड़ल देखलखिन। मने-मन सोचलनि जे छठिक एखन मासोसँ बेसिये हेतै तखन एहेन कोन हलतलबी बेगरता भऽ गेलै। जँ महीना, परव तीथि जोड़ि कऽ कहए लगब तँ अनेरे देरी हेतै। जते देरी लगतै तते भारियो लगतै। तेँ बाबी आँखि उठा कऽ देखि, बिना किछु कहनहि, नजरि निच्चाँ कऽ लेलनि। मुदा ओहो रगड़ी। मनमे होइ जे एखन नहि बुझि लेब तँ फेर बिसरि जाएब। जँ बिसरि जाएब तँ किछु नहि किछु छुटिये जाएत। एखन तँ मटि खोभामे मन पड़ल जे पौरुका दशमियेक मेलामे तीनटा कोनियाँ, एकटा सूप आ एकटा छिट्टा कीनि नेने रही। जाहिसँ छठि पावनि केलहुँ। बाबीक नजरि निच्चाँ केने देखि सिरखरियावाली दोहरा कऽ बाजलि- ‘गरीब-दुखियाक बात आब थोड़े बाबी सुनै छथिन, जे सुनतिहीन।’
सिरखरियावालीक बात बाबीक करेजकेँ छुबि देलकनि। मुदा क्रोध नहि भेलनि सिनेह उमड़ि गेलनि। एकाएक बाबी अपन बोली बदलि लेलनि। चौवन्निया मुस्की दैत कहलखिन- ‘कनियाँ, मनमे आएल जे चारिटा करैला तोरो तरकारी ले दिअह। तेँ हाँइ-हाँइ करैला ताकए लगलहुँ। कनिये ठाढ़े रहह?’
सिरखरियावाली- ‘जे पुछलियनि से कहबे ने करै छथि आ करैला दऽ कऽ फुसलबै छथि।’
विचित्र अन्तर्द्वन्द बाबीक मनकेँ घोर-मट्ठा करए लगलनि। एक दिशि माथपर भारी देखथिन आ दोसर दिशि आइसँ छठि धरि जोडै़क समए। तहूसँ उकड़ू बुझि पड़ैन जे सोझ मासक सवाल नहि अछि। दू मास बीचक बात छी। सेहो एहेन मास जे लुंगिया मिरचाइक घौंदा जेकाँ पावनिक घौंदा अछि। जाधरि सभ सोझरा कऽ नहि कहबै ताधरि अपनो मन नहि मानत आ ओहो नहि बूझत। ताल-मेल बैसबैत कहलखिन- ‘कनियाँ, एखन जाउ। हमहूँ तीमनक ओरियानमे लगल छी आ अहूँक माथपर भारी अछि।’
सिरखरियावालीक मनमे होइ जे छठि सन पाबनि, जे हिसाबसँ ओरियान नहि करैत जाएब तँ कैकटा चीज छुटिये जाएत। आन पावनि जेकाँ तँ  छठि हल्लुक नहि अछि। बड़ ओरियान बड़ खर्च। बाजलि- ‘दसमी मेलामे जे कोनियाँ, सूप छिट्टा कीनि नेने रहै छी, तँ  बुझै छिऐ जे एते काज अगुआएल रहैए।’
बाबी- ‘कनियाँ, एकटा काज करु। छिट्टाकेँ निच्चाँमे राखि दियौ जे अहूँक देह हल्लुक भऽ जाएत आ हमरो हिसाब जोड़ि-जोड़ि बुझबैमे नीक हएत।’
सिरखरयावाली बाजलि‍- ‘बाबी, भारी उठबैत-उठबैत तँ  माथ सुन्न भऽ गेल अछि। ई माटि कते भारिये अछि।’
बाबी- ‘कनियाँ, बहुत हिसाब जोड़ि कऽ बुझबए पड़त।’
सिरखरियावाली- ‘ओते अखन नै कहथु। खाली छठिये टा कहि देथु। गोटे दिन निचेनसँ आबि कऽ सभ बुझि लेब।’
आंगुरपर बाबी हिसाबो जोड़ैत आ ठोर पटपटा कऽ बजबो करथि- ‘आइ आसिनक अमवसिये छी। आइये भगवतीकेँ हकारो पड़तनि आ बघा-सँपहाक निमित्ते खाइयोले देल जेतै। काल्हि कलशस्थापनसँ दुर्गा पूजा शुरु हएत, जे नओ-दस दिन धरि चलत। दसमी तिथिकेँ यात्रा हएत। तेकर पाँचे दिन उत्तर कोजगरा हएत। कोजगरा परातसँ कातिक चढ़त। कातिक अमावश्याकेँ दियाबाती.... लक्ष्मी पूजा.... कालीपूजा। परात भेने गोधन पूजा, दोसर दिन भरदुतिता आ चित्रगुप्तो पूजा। भरदुतिया परातसँ छठिक विधि शुरु भऽ जाएत। पहिल दिन माछ-मड़ुआ बारल जाएत.... दोसर दिन नहा कऽ खाएल जाएत.... तेसर दिन खरना.... चारिम दिन छठिक सौंझुका अर्घ। पाँचम दिन भिनसुरका अर्घ भेलापर उसरि जाएत। आंगुरपर गनैत-गनैत बाबी बजलीह- ‘कनियाँ, सवा मास करीब छठिक अछि।’
सिरखरियावाली- ‘सवा मास कते भेलै बाबी?’
  ‘दू बीसमे तीन दिन कम।’
  ‘हम तँ सभ बेर दशमिये मेलामे कोनियाँ, सूप, छिट्टा कीनि लै छी। तकरा कै दिन छै?’
  ‘सात पूजाकेँ भगवतीकेँ आँखि –डिम्भा पड़लापर मेला शुरु भऽ जाइत छै। जेकरा आठ दिन छै। मुदा एकटा बात पूछै छिअह जे एते अगता किअए कीनै छह? ताबे अइ पाइसँ दोसर-दोसर काज करबह से नै। जखन पावनि लगिचा जेतै तखन कीनि लेबह?’
  ‘पहिने किनलासँ दू-पाइ सस्तो होइए आ एकटा चीजोसँ निचेन भऽ जाइ छी। एक बेर एहिना नञि किनलौं तँ भेबे ने कएल। आब की करितौं तेँ पुरने कोनियो-सूपो आ छिट्टोकेँ चिक्कनसँ धो देलिऐ आ ओहीसँ पावनि कऽ लेलौं।’
सिरखरियावालीक बात सुनि बाबी व्यवहार दिशि बढ़लीह। मने-मन बुदबुदेलीह- छठि पावनिक महात्म्य बहुत बेसी अछि। खास कऽ किसानक लेल। एक दिशि पूर्वजक मिठाइ-पकवान तँ  दोसर दिशि डोमक बनाओल कोनिया, सूप, छिट्टा। तेसर दिशि कुम्हारक बनाओल कूड़ -बिनु मोड़ल कान, पनिभरा घैलमेमे मोड़ल कान होइत, जहिमे चौमुखी दीप जरैत। ढ़कना, सरबा। तँ चारिम दिस अपन उपजाओल फल-फलहरी, तीमन-तरकारीक वस्तुक संग मसल्लोक वस्तु। बहुतो अछि। तइपर सँ डुमैत सूर्यक पहिल अर्घ। मने-मन बिचारि बाबी चुप्पे रहलीह। मनमे भेलनि जे ई तँ ओहि इलाकाक छी जहि इलाकाक स्त्रीगण रौद-बसातकेँ गुदानिते ने अछि। खेतक काज करैमे भुते। भगवानोकेँ हारि मनबैवाली। बाँबीक मनमे होइन जे चुप भऽ गेलहुँ तँ बेचारी चलि जाएत।
मुदा ले बलैया, ई तँ काग-भुसुण्डी जेकाँ डूबि गेल। भानसकेँ अबेर होइत जाइत देखि बाबीकेँ अकच्छ लगनि। जखैनकि हेजाक मरीज जेकॉं। सिरखरिया बालीकेँ पियास बढ़ले जाइत। अचता-पचता कऽ बाबी पुछलखिन- ‘कनियाँ, बेटी सबहक हालत की छह?’
बेटी नाम सुनितहि सिरखरियावाली किछु मन पाड़ि बाजलि-‘बाबी, हिनकासँ लाथ कोन। तीनूक हालत हमरासँ नीक छै। भगवान गरदनि कट्टी केलनि तेँ ने, ने तँ की हमही एहिना रहितौं।’
बाबी- ‘भगवान ककरो अधला थोड़े करै छथिन जे तोरा केलखुन?’
सिरखरियाबाली- (मूड़ि डोलबैत) ‘तँ केलनि नै। हमरा पँच-पँच बरीसपर बच्चा देलनि। पाँच बरिसपर देलनि से नीके केलनि जे जखैन एकटा छँटि जाइत छल तखन दोसर होइत छल। मुदा अगता तीनू बेटिये जे देलनि से गरदनि कट्टी नै केलनि। जँ अगता तीनू बेटा रहैत, नञि तँ  मेलो-पाँच कऽ, तँ  अखैन ई भारी काज अपने करितौं की पुतोहु करितए। पचता बेटा भेल, जे अखैन लिधुरिये अछि।
बाबी- ‘जेठकी बेटीक सासुर कतऽ छह ?’
सिरखरियाबाली- ‘उत्तर भर। खुटौना टीशन लग। बेचारीकेँ खेत तँ कम्मे छै मुदा सभ तुर मेहनतिया अछि। एक जोड़ा बड़द रखने अछि। दूटा महीस लधैर खुट्टापर छै आ तीनटा पोसियो लगौने अछि। अन्नो-पानि तते उपजा लै अए जे साल-माल लगिये जाइ छै।’
बाबी- ‘नाति-नातिन छह की ने?
सिरखरियावाली- ‘हँ, तीन टा अछि। तीनू लिधुरिये अछि। तंग-तंग बेटी रहैए। तीनूक नेकरम करैत-करैत तबाह रहैए। तइपरसँ घर-गिरहस्तीक काज।’
बाबी- ‘दोसर बेटीक सासुर कत्तऽ छह ?’
सिरखरियावाली- ‘पूब भर। कोशी कात। ’
बाबी- ‘कोशी कात किअए केलह?’
सिरखरियावाली- ‘बाबी जानि कऽ कहाँ केलिऐ। गाम तँ नीके रहए मुदा कत्तऽ सँ ने कत्तऽ सँ कोशी चलि एलै। कोशियो एलै तँ अन्न-पानिक कोनो दुख नै होइ छै। मुदा अपना सभ जेकाँ चिष्टा नहि। गाममे महीस बेसी छै, जइ सँ रस्ता-पेरा हेँक-हेँक भेल रहै छै।
  बाबी- ‘छोटकी?’
  सिरखरियावाली- ‘पछिम भर, पाही। ई हम्मर रानी बेटी छी। जते दिन ऐठाम रहैए रंग-बिरंगक तीमन-तरकारी खुआबैए। भानस करैक एहेन लूरि दुनूमे ककरो नै छै। जहिना भानस-भात करैमे, तहिना बोली वाणी। गीतो-नाद जे गबैए, से होइत रहतनि जे सुनिते रही। तहिना चिष्टो चर्या ओढ़बो-पहिरब।’
  बाबी- ‘बड़ बेर उठलै। आब तोहूँ जा।’
  सिरखरियावाली- ‘आइ हमरा गंजन लिखल अछि। विचारने छलौं जे माटि आनि कऽ धान काटि आनब। गरमा धान से नहिये भेल। काल्हि फेर घरे-अंगना नीपैमे लगि जाएब।’
गामक सभ बाबीकेँ मेह बुझैत। छथियो। जँ ककरो मन खराब वा कोनो आफत-असमानी होइत तँ बाबी सभसँ पहिने आबि सेवा-टहलमे लगि जाइत। तहिना जँ कहियो बाबीक मन खराब होइत तँ गामक लोक जी-जानसँ लगि जाइत। किएक तँ सबहक मनमे ई अंदेशा बनल जे बाबीक मुइने गामक बहुत विधि-व्यवहार समाप्त भऽ जाएत। ओन बाबी पढ़ल- लिखल नहि, चिट्ठिओ पुरजी नहि पढ़ल होइत छनि। जरुरतो नहि। किएक तँ सालो भरिक पावनि आ ओकर विधि, संग-संग मांगलिक काज उपनयन, विआह इत्यादि विधि कंठस्थ। कोन गीत कोन अवसरपर गाओल जाएत, सभ जीभपर राखल। तहिना पूजाक आराधनासँ लऽ कऽ आरती धरिक।
सभ कुछ रहितहुँ बाबीक मनमे एकटा कचोट समरथाइयेसँ लगल रहि गेलनि। ओ ई जे एकटा बेटा भेलाक बाद दोसर सन्ताने नहि भेलनि। अपन इच्छा रहनि जे एकटा बेटा, एकटा बेटी हुअए। मुदा बेटा तँ  भेलनि बेटी नहि। जे कचोट सभकेँ कहबो करथिन। कहथिन जे सृष्टिक विकास लेल पुरुष नारी दुनूक जरुरत अछि। नहि तँ विकास रुकि जाएत। ने एकछाहा पुरुषेसँ काज चलत आ ने एकछाहा नारियेसँ।
भरदुतियाक परात बाबी माछ-मड़ुआ बाड़लनि। काल्हि नहा कऽ खेतीह। परसू खरना करतीह। खरना दिनले बाबी सतरिया धानक अरबा चाउर सभ साल रखैत छथि। किएक तँ पनरहे घरक टोलक खरनासँ लऽ कऽ घाटपर हाथ उठबै धरिक काज बाबीएक जिम्मा। मुदा खरना दिन गज-पट भऽ जाइत छनि। किएक तँ  कियो मेहीका धानक अरबा चाउर आ गुड़ दैत छनि तँ कियो मोटका धानक अरबा चाउर आ गुड़। अरबा तँ अरबे छी। मोटका-मेहीकाक भेद नहि। तेँ बाबीकेँ खीर रन्हैमे पहपटि भऽ जाइत छनि। फुटा-फुटा कऽ कोना करतीह। तेँ सबहक अरबा चाउरकेँ खाइले रखि लै छथि आ अपन सतरिया चाउरक खरना करै छथि। खाली खरने नहि करै छथि, मनमे इहो रहै छनि जे परिवारक हिसाबसँ एत्ते खीर घुमा दिअए जे घरमे चुल्हि नै चढै़।
षष्ठी। आइ सौझुका अर्घ होएत। तड़गरे बाबी सुति उठि कऽ पावनिक ओरियानमे लगि गेलीह। बहुत चीज भेबो कएल आ बहुत बाकियो अछि। मुदा भरि दिन तँ  ओरिअबैक समए अछि। तहि बीच डेढ़ियापर सँ बाबी, बाबी सुनलनि। मुदा टाटक अढ़ रहने बोली नहि चीन्हि सकलीह। मनमे भेलनि जे आइ पावनि छी तेँ कियो किछु पुछैले आएल होएत। ओसारेपर सँ कहलखिन- ‘के छिअहुँ। अंगने आउ।’
पथियामे दूटा नारियल, पान छीमी केरा, दूटा टाभ नेबो, दूटा दारीम, दूटा ओल, दूटा अड़ुआ, दूटा टौकुना, दूटा सजमनि, एक मुट्ठी गाछ लागल हरदी, एक मुट्ठी आदी नेने रहमतक माए आंगन पहुँचि बाबीक आगूमे रखि बाजलि- ‘बाबी, अपनो डाली ले आ हिनकोले नेने एलिएनिहेँ।’
पथियासँ सभ वस्तु निकालि ओसारपर रखि निङहारि-निङहारि बाबी देखए लगलीह। बच्चेमे रहमत बीमार पड़ल, ओकरे कबुला माए केने रहथि। तेँ पान सालसँ ओहो छठि पावनि करैत। जे बात बाबियोकेँ बुझल। ओना बाबी अपने आंगनमे भुसबा, ठकुआ बनबैत। मुदा तेकर दाम रहमतक माए दऽ दन्हि। पथिया लऽ रहमतक माए बिदा हुअए लगली की बाबी कहलखिन- ‘कनियाँ, कनी ठाढ़ रहू। रौतुका खरनाक नेवैद्य नेने जाउ।’
घरसँ केरा पातपर खीर आनि रहमतक माएकेँ दऽ देलखिन। हाथमे नेवैद्य अबितहि रहमतक माएक मन खुशीसँ नाचि उठल। बेटाकेँ निरोग जिनगी जीबैक आशा सेहो भऽ गेलनि। मने-मन दिनकरकेँ गोड़ लागि बिदा भेलि। अंगनासँ निकलितहि छलि की एक पाँज कुसियारक टोनी नेने परीछन पहुँचि गेल। एक टोनी बाबीकेँ आ एक टोनी रहमतक माएकेँ दैत सुरसुराइले निकलि गेल। किएक तँ  अंगनेमे सभले टोनी बना नेने छल। बाबीकेँ कुसियारक टोनी दैत रहमतक माए कहलकनि- ‘हमरा आइ हाट छी बाबी, तेँ कनी देरीसँ घाटपर आएब।’
बाबी- ‘हम तँ छीहे कनियाँ, तइले तोरा किअए चिन्ता होइ छह। दिनकर-दीनानाथ ककरो अधलाह करै छथिन जे तोरा करथुन। अपन भरि निअम-निष्ठा रखैक चाही।’
रहमतक माए चलि गेल। बाबी फुटा-फुटा सभ वस्तु रखए लगलीह। तहि काल दछिनबरिया अंगनामे हल्ला सुनलखिन। ओसारपर सँ उठि डेढ़ियापर ऐली की सुनलखिन जे खुशिया बेटा केराक घौड़सँ एकटा छीमी तोड़ि कऽ खा गेलै तइले माए चारि-पाँच खोरना मरलकै। बेटाकेँ कनैत देखि खुशिया घरवालीपर बिगड़ए लगल। तेकरे हल्ला। अपने डेढ़ियापरसँ बाबी कहलखिन- ‘पावनिक दिन छिऐ। तखन तूँ सभ भोरे-भोर हल्ला करै छह। दुधमुँहा बच्चा जँ एक छीमी केरा तोड़ि कऽ खाइये गेलै तइले एते हल्ला किअए करै छह।’
बाबीक बात सुनि दुनू बेकती खुशिया तँ चुप भेल मुदा छौँड़ा हिचुकि-हिचुकि कनिते रहल। तहि बीच सोनरेवाली आबि बाबीकेँ कहलकनि- ‘बाबी, नीक की अधला तँ हिनके कहबनि की ने। देखथुन जे पाइक दुआरे ने छिट्टा भेल ने कोनियाँ।’
सोनरेवालीक बात सुनि बाबी गुम्म भऽ गेलीह। कने काल गुम्म रहि कहलखिन- ‘नै पान तँ पानक डंटियोसँ काज चलैत अछि। जकरा छै ओ सोना-चानीक कोनियाँमे हाथ उठबैए आ जकरा नञि छै ओ तँ बाँसेक सुपतीसँ काज चलबैए। तइले मन किअए ओछ केने छह। सभकेँ की सभ कुछ होइते छै। जेकरा जते विभव होइए ओ ओते लऽ कऽ पावनि करैए। तेँ की दिनकर ककरो कुभेला करै छथिन।’
तहि बीच दीपवाली पाँच बर्खक बेटाकेँ हाथ पकड़ने घिसिअबैत पहुँचि कहलकनि- ‘बाबी, देखथुन जे ई छौँड़ा तेहेन अगिलह अछि जे हाथीकेँ पटकि देलकै। ई तँ गुण भेल जे एक्केटा टाँग टुटलै, नै तँ टुकड़ी-टुकड़ी भऽ जाइत।’
मुस्की दैत बाबी कहलखिन- ‘देखहक कनियाँ, ई सभ दिखाबटी छिऐ। मनुक्खक मनमे श्रद्धा हेबाक चाही।अइले बच्चाकेँ किअए दमसबै छहक। छोड़ि दहक।’
सूर्य उगले सभ घाटपर पहुँचि डाली पसारलक। नवयुवती सभ गीत गाबए लगलीह। हाथ उठौनिहारि पानिमे दुनू हाथ जोड़ि ठाढ़ भेलीह। एक्के तालमे ढ़ोलिया ढ़ोल बजबए लगल। पोखरिक चारु महार दीपसँ जगमगा गेल। परदेशियो सभ छठि पावनि करए गाम आएल। एक गोटेकेँ नाच कबुला रहै ओ नाच करबै लगल। ताबे दूटा छौँड़ा दारु पीबि फटाका फोेेड़ए लगल। दुनू बेमत। एक गोटेक फटाकामे कम अवाज भेलै की दोसर पिहकारी मारि देलक। अपन डूमैत प्रतिष्ठाकेँ जाइत देखि ओ पिहकारी देनिहारक कालर पकड़लक। दुनू अपन-अपन परदेशिया भाषामे गारि-गरौबलि शुरु केलक। गारि-गरौबलिसँ मारि फँसि गेलै। दुनू दुनूकेँ खूब मारलक।
दोसर दिन भिनसुरका अर्घ। खुब अन्हरगरे सभ घाटपर पहुँचल। हाथ उठौनिहारि पानिमे पैसिलीह। चौमुखी दीपसँ सौँसे प्रकाश पसरि गेल। सूर्योदय होइतहि दीपक ज्योति मलिन हुअए लगल। हाथ उठै लगल।
बच्चा-बुच्चीक संग रहमतक माए पोखरिक मोहारपर आँचर नेने दुनू हाथ जोड़ि बाबीपर आँखि गड़ौने। तहि काल मुसबा गिलासमे दूध नेने पहुँचल। किनछरिमे पैसि एक ठोप, दू ठोप दूध सभ कोनियाँमे दिअए लगल।
हाथ उठा बाबी पानिसँ निकलि, साड़ी बदलि, छठिक कथा कहए लगलखिन। कथा कहि अकुड़ी छीटि पावनिक विसर्जन केलनि।
अखन धरि जे ढ़ोलिया एक तालमे ढ़ोल बजबैत छल ओ समदाउनिक ताल धेलक। नटुओ समदाउन गाबए लगल।
सभ अपन-अपन कोनियाँ समेटि छिट्टामे रखि, ढ़ोलियाकेँ एकटा ठकुआ एक छीमी केरा दऽ दऽ बिदा भेल।

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