Monday, September 5, 2011

कालीकान्त झा "बूचक" कविता संग्रह "कलानिधि" लोकार्पण १० सितम्बर २०११ केँ हजारीबागमे

कालीकान्त झा "बूचक" कविता संग्रह "कलानिधि" लोकार्पण १० सितम्बर २०११ केँ हजारीबागमे।

कालीकांत झा "बूच" 1934-2009- हिनक जन्म, महान दार्शनिक उदयनाचार्यक कर्मभूमि समस्तीपुर जिलाक करियन ग्राममे 1934 ई. मे भेलनि । पिता स्व. पंडित राजकिशोर झा गामक मध्य विद्यालयक प्रथम प्रधानाध्यापक छलाह । माता स्व. कला देवी गृहिणी छलीह । अंतरस्नातक समस्तीपुर काॅलेज, समस्तीपुरसँ कयलाक पश्चात् बिहार सरकारक प्रखंड कर्मचारीक रूपमे सेवा प्रारंभ कयलनि । बालहिं कालसँ कविता लेखनमे विषेश रूचि छल । मैथिली पत्रिका - मिथिला मिहिर, माटि - पानि, भाखा तथा मैथिली अकादमी पटना द्वारा प्रकाशित पत्रिकामे समय - समय पर हिनक रचना प्रकाशित होइत रहलनि । जीवनक विविध विधाकेँ अपन कविता एवं गीत प्रस्तुत कयलनि । साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित मैथिली कथाक विकास (संपादक डाॅ बासुकीनाथ झा ) मे हास्य कथा कारक सूची मे डाॅ विद्यापति झा हिनक रचना ‘‘धर्म शास्त्राचार्यक उल्लेख कयलनि । मैथिली अकादमी पटना एवं मिथिला मिहिर द्वारा प्रशंसा पत्र भेजल जाइत छल ।श्रृंगाररस एवं हास्य रसक संग-संग विचार मूलक कविताक रचना सेहो कयलनि । डाॅ दुर्गानाथ झा श्रीश संकलित मैथिली साहित्यक इतिहासमे कविक रूपमे हिनक उल्लेख कएल गेल अछि । प्रकाशित कृति (मृत्योपरांत) : कलानिधि- कविता-संग्रह।


बूच जीकेँ मैथिलीक छद्म साहित्यकार लोकनि द्वारा जाइ तरहे कतिया देल गेल से एकटा रहस्य अछि। विदेहमे मृत्योपरान्त हिनकर कविता सभक धारावाहिक प्रस्तुति मैथिली साहित्य जगतमे हड़कंप आनि देलक। रवि भूषण पाठक आ गजेन्द्र ठाकुरक बूच जीक कविताक कएल समीक्षा आ विश्वभरिक मैथिली भाषीक स्नेहसँ शिक्त ऐ संग्रह "कलानिधि"क लोकार्पण हजारीबागमे १० सितम्बर २०११क साँझमे हएत। दिनांक १० सितम्बर २०११ क साँझमे "सगर राति दीप जरए" गृह रक्षा वाहिनी ट्रेनिंग सेन्टर कैम्पसमे (पटना दिससँ हजारीबागमे प्रवेशसँ पहिने नेशनल हाइवेपर विनोबा भावी विश्वविद्यालय गेट छै, विश्वविद्यालय गेटसँ एक मिनट बाद दहिनामे एकटा बड़का मैदान छै, वएह छै होमगार्ड्स ट्रेनिंग सेन्टर। ओही गेटपर सिपाहीसँ पुछारी करू तँ ओ हॉल धरि पहुँचा देत।) श्याम दरिहरे जीक संयोजकत्वमे हएत। ओतहि ऐ पोथीक लोकार्पण हएत। अहाँ सभ सादर आमन्त्रित छी। बूच जीक सम्बन्धमे गजेन्द्र ठाकुर कहै छथि- "एतए शब्दसँ नै मुदा स्फोटसँ अर्थक संप्रेषण कवि द्वारा तोहर ठोर आ ऐ संग्रहक आन कविता सभमे जाइ तरहेँ भेल अछि, से संसारक सभसँ लयात्मक आ मधुर भाषा मैथिली मे (यहूदी मेनुहिनक शब्दमे) विद्यापतिक बादक सभसँ लयात्मक कविक रूपमे बूचजी केँ प्रस्तुत करैत अछि आ मैथिली कविताकेँ ऐ रूपमे फेरसँ परिभाषित करैत अछि।" गजेन्द्र ठाकुर आ रविभूषण पाठक जीकक बूचजीक कविताक समीक्षा अविकल रूपमे नीचाँ देल जा रहल अछि:

गजेन्द्र ठाकुर- बूच जीक कविताक -मार्क्सवाद, ऐतिहासिक दृष्टि, संरचनावाद, जादू-वास्तविकतावाद, उत्तर-आधुनिक , नारीवादी आ विखण्डनवाद दृष्टिसँ अध्ययन संगमे भारतीय सौन्दर्यशास्त्रक दृष्टिसँ सेहो अध्ययन जेठी करेह: बूच जीक कविता जेठी करेह कवितामे कवि कहै छथि जे ई भोरमे उधिआइ अछि, बर्खा हेठ भेलोपर उपलाइत अछि। ओकर खतराक बिन्दु बड्ड ऊपर छै तखन ओ किए अकुलाइत अछि। आ आखिरीमे कहै छथि जे बान्ह तोड़ि ई प्रलय मचाओत से बुझाइत अछि।ई भेल ऐ कविताक सामान्य पाठ। आब एतए एकरा संरचनावादी दृष्टिकोणसँ देखी तँ लागत जे करेह सवेरे उधिआइ अछि तँ आशा करू जे आन बेरमे ई नै उधिआइत होएत। बरखा हेठ भेने उपलाइत अछि मुदा से नै हेबाक चाही। इन्होर पानिक चमकब, मोरपर भौरी देब आ तकर परिणाम जे डीहक करेजकेँ ई अपनामे समा लैत अछि।ओकर रेतक बढ़लासँ कविक धैर्य चहकै छन्हि। आब कने संरचनावादसँ हटि कऽ एकर ऐतिहासिक विश्लेषणपर आउ। ई नव युगक लेल एकटा नव अर्थ देत। खतराक बिन्दु जे कविक समएमे ऊँचगर लगैत हएत आब बान्हक बीचमे भेल जमा धारक मवादक चलते ओतेक ऊँच नै रहि गेल। से नव पीढ़ी लेल कविक कविता कविसँ फराक एकटा नव स्वरूप लऽ लैत अछि। आब कने संरचनावादसँ हटि कऽ विखण्डनवाद दिस आउ। विखण्डनवादी कहत जे संरचनावादीक ध्रुव दार्शनिक स्वरूप लैत अछि। बर्खा हेठ भेलै, तैयो उपलायब, बान्ह बनबैबला इंजीनियरक करेहकेँ बान्हबाक प्रयासक बुरबकीक रूप लेब आ कविक करेह द्वारा बान्ह तोड़ि प्रलय मचेबाक भविष्यवाणी स्वयं कविक ध्रुवीकरणक स्थायी वा क्षणिक होएबापर प्रश्नचिन्ह लगेबाक प्रमाण अछि। आब फेर कने कविताक ऐतिहासिकतापर जाउ। जादू-वास्तविकतावादी साहित्यमे भूतकालमे गेलापर हम देखै छी जे ६०क दशकमे बान्ह बनेबाक भूत सवार रहै, बान्ह, ऊँच आ चाकर, जे धारकेँ रोकि देत आ मनुक्ख लेल की-की फाएदा ने करत। ओइ स्थितिमे जादू-वास्तविकताबला साहित्यक पात्र लग ई कविता जाएत तँ ओ ऐ कविताक तेसरे अर्थ लगाओत। कविक अस्तित्व ओतए खतम भऽ जाएत आ शब्दशास्त्र अपन खेल शुरू करत। जादू-वास्तविकताबला साहित्यक ओ पात्र जे भविष्यमे जीयत तकरा लेल सेहो ई एकटा अलगे अर्थ लेत, ओ धारक खतराक निशानक ऊँच होमयबला गप बुझबे नै करत आ कविक कविताक भावक ताकिमे रहत। मुदा विखण्डनवाद तकरा बाद अपने जालमे फँसि जाएत, बहुत रास बात नै रहत मुदा बहुत रास बात रहत। बरखा रहत, धार सेहो परिवर्तित रूपमे रहबे करत, रौदमे ओकर पानि इन्होर होइते रहत।उधियेनाइ आ उपलेनाइ रहबे करत। स्वागत गान: स्वागत गानक सामान्य पाठ- कवि सभक स्वागत कऽ रहल छथि मुदा मिथिलाक उपटैत धरतीक करुण क्रन्दनक बीच उल्लासक गीत कोन होएत। भ्रमर पियासल, फलक गाछ मौलायल तखन ई समारोही गोष्ठीसँ की होएत? कविताक संग लाठी आ रसक संग खोरनाठी लिअए पड़त। कविताक नीचाँमे सूचना अछि- विद्यापति स्मृति पर्व समारोह १९८४, ग्राम-बैद्यनाथपुर, प्रखंड-रोसड़ा, जिला-समस्तीपुरमे आगत अतिथिक स्वागत। ओ कालखण्ड मिथिलासँ पड़ाइनक प्रारम्भ छल। हाजीपुरमे गंगा पुल बनि गेल छल। विकासक प्रतिमान लागल जेना विफल भऽ गेल। पैघ बान्हक प्रति मोहभंग भऽ गेल छल। कृषिक आ कृषकक दुर्दशाक लेल बाढ़िक विभीषिका छल तँ स्थानीय फसिल आधारित औद्योगीकरण निपत्ता छल आ शिक्षाक अभियान कतौ देखबामे नै आबि रहल छल। आ ताइ स्थितिमे समारोही गोष्ठीक स्वागतक भार कविजी सम्हारने रहथि। ध्वनि सिद्धान्त: आनन्दवर्धन ध्वन्यालोकमे साहित्यक उद्देश्य अर्थकेँ परोक्ष रूपेँ बुझाएब वा अर्थ उत्पन्न करब कहैत छथि। ई सिद्धान्त दैत अछि परोक्ष अर्थक संरचना आ कार्य, रस माने सौन्दर्यक अनुभव आ अलंकारक सिद्धान्त।आनन्दवर्धन काव्यक आत्मा ध्वनिकेँ मानैत छथि। ध्वनि द्वारा अर्थ तँ परोक्ष रूपेँ अबैत अछि मुदा ओ अबैत अछि सुसंगठित रूपमे। आ ऐसँ अर्थ आ प्रतीक दूटा सिद्धान्त बहार होइत अछि। ऐसँ रसक प्रभाव उत्पन्न होइत अछि। ऐसँ रस उत्पन्न होइत अछि। न्याय आ मीमांसा ऐ सिद्धान्तक विरोध केलक, ई दुनू दर्शन कहैत अछि जे ध्वनिक अस्तित्व कतौ नै अछि, ई परिणाम अछि अनुमानक आ से पहिनहियेसँ लक्षणक अन्तर्गत अछि। आ से सभ शब्द द्वारा वर्णित होएब सम्भव नै अछि। स्वागत गानक ध्वनि सिद्धान्तक हिसाबसँ पाठ: विद्यापति शिव स्वरूप मृत्युंजय मऽरल छथि कहि कवि अर्थ आ प्रतीक दुनू सोझाँ अनै छथि। ध्वनि सिद्धान्तक न्याय दर्शन विरोध केलक मुदा उदयनक गाम करियनक कवि बूच जी दार्शनिक नै, कवि छथि। ओ ध्वनिक जोरगर संरचना सोझाँ अनै छथि- हमरा सबहक अभाग अजरो भऽ जऽड़ल छथि, आ मात्र ई समारोही गोष्ठी सँ की हेतै ? आगाँ ओ कहै छथि- काव्य पाठ करू मुदा कान्ह पर लिअ लाठी, एक हाथ रसक श्रोत दोसर मे खोर नाठी। ऐ प्रतीक सभसँ भरल ई कविता सुगठित रूपे आगाँ बढ़ैत अछि आ अभ्यागतक स्वागत करैत अछि। मार्क्सवादी दृटिकोणसँ देखलापर लागत जे कविक काजकेँ ऐ कवितामे काव्यपाठसँ आगाँ भऽ देखल गेल अछि। ऐमे सकारबाक भावक संग ओकरा फुसियेबाक, पुरान आ नव; आ विकास आ मरण दुनूक नीक जकाँ संयोजन भेल अछि। स्वागत गान अपन परिस्थितिसँ कटि कऽ आह-बाह करऽ लगैत तँ मार्क्सवादी दृष्टिकोणसँ ई निम्न कोटिक कविता भऽ जाइत (जकर भरमार मैथिलीक स्वागत आ ऐश्वर्य गान गीत सभमे अछि), मुदा कवि एकरा एकटा गतिशील प्रक्रियाक अंग बना देलन्हि आ ई मैथिलीक सर्वश्रेष्ठ स्वागत गान बनि गेल। बेटी बनलि पहाड़: बेटी बनलि पहाड़ कविताक सामान्य पाठ: दुलरैतिन बेटी घेंटक घैल बनल छथि। बेटी अएलीह तँ उड़नखटोला चढ़ि कऽ मुदा हरि गरुड़ त्यागि कार माँगि रहल छथिन्ह। पैंतीस ग्राम सोना पुड़ेलन्हि मुदा आब बियाह रातिक खर्चा चाही आ बरियाती दस गाही अओताह; सौँसे बल्ब जड़ि रहल अछि मुदा माझे ठाम अन्हार अछि। दशरथ एको पाइ नै मँगलन्हि, रामो किछु नै बजलाह। इतिहास तँ कृष्णक लव मैरेजक छल मुदा तैसँ की। जनक वर्तमानमे हाहाकार कऽ रहल छथि। बेटाक कंठ बाप पकड़ने अछि आ घरे-घर बूचड़खाना बनल अछि आ गामे-गाम बजार लागल अछि। बेटी बनलि पहाड़ कविताक समाजशास्त्रीय समीक्षा पद्धतिक दृष्टिसँ पाठ: ई कविता काटर प्रथाक विरोधक कविता अछि। समाजमे ओइ कालमे (अखनो) काटर प्रथाक कारण उड़नखटोलापर चढ़ि कऽ आयलि दुलरैतिन बेटी बाप अपस्यांत छथि। करूण गीत: करूण गीत कविताक सामान्य पाठ: कोकिलक करुण गीत सुनि श्रवित लोचनसँ कुसमित कानन देखब! सुवर्णक सौर्य शिखरपर शान्ति सागरक सुलभ जीत! जहिना किछु आलिंगन करै छी अनेको वक्रशूल भोका जाइत अछि। सुषमा दू क्षणक लेल आयलि, (आ चलि गेलि!) प्रेमक मधु तीत भऽ गेल। रजनीक रुदन विगलित प्रभात! करूण गीत कविताक रूपवादी दृष्टिकोणसँ पाठ: कुसुमित काननक श्रवित लोचन द्वारा देखब, श्रृंगार सेज पर ज्वलित मसानक रौद्र रूपक आएब आ सुवर्णक शौर्य शिखर पर - शांति सागरक सुलभ जीत केँ देखू। भाषाक अनभुआर पक्षकेँ कवि नीक जकाँ उपयोग करै छथि। आ अहीसँ हुनकर कवितामे कवित्व आबि जाइत अछि। विरोधी शब्द सभक बाहुल्य आ संयोजनक अनभुआर प्रकृति शब्दालंकारसँ युक्त भाषा ऐ कविताकेँ विशिष्ट बनबैत अछि। फूलक शूल सन ढुकब आ एहने आन संयोजन ऐ कविताकेँ रूपवादी दृष्टिकोणसँ श्रेष्ठ बनबैत अछि। गामे मोन पड़ैए: गामे मोन पड़ैए कबिताक सामान्य पाठ: गाममे रोटी एकोण रहए आ बथुओ साग अनोन रहए मुदा तैयो कलकत्तामे गामे मोन पड़ि रहल अछि। करेहक पानि पटा कऽ मोती उपजाएब तँ बच्चा सभ बिलटत? हुगलीक बाबू रहब नीक आकि कमला कातक जोन रहब? ईडेन गार्डनसँ नीक कमला कातक बोन अछि, पति पत्नीकेँ ईडेन गार्डनमे माला पहिरा रहल छथि मुदा कमला कातक बोनमे तिरहुतनी अपन भोला लेल धतूर अकोन ताकि रहल छथि! नारीवादी दृष्टिकोणसँ गामे मोन पड़ैए कविताक पाठ: प्रवासक कविता अछि ई। तिरहुतनी अपन भोला लेल धतूर अकोन ताकि रहल छथि, आ भोला प्रवासमे छथि। अस्तित्ववादी दृष्टिकोणसँ देखी तँ ई भोला अपन दशा लेल, असगर जीबा लेल, चिन्ता लेल अपने जिम्मेदार छथि। सोन दाइ: सोन दाइ कविताक सामान्य पाठ: सोन दाइक जीवनमे ने हास रहतन्हि आ ने विलास, मुदा से किएक? बाल वृन्द जा रहल छथि, नव युवको चलल छथि आ तकरा बाद बूढ़-सूढ़ गलि गेल छथि। तैयो किए विश्वास छन्हि सोन दाइकेँ? ऐ सभक उत्तर आगाँ जा कऽ भेटैत अछि, देसकोस बिसरि ओ प्रवास काटि रहल छथि। आ जौँ-जौँ उमेर बढ़तै कहिया धरि सोन दाइक घरमे वास हेतै।नारीवादी दृष्टिकोणसँ सोन दाइ कविताक पाठ: नारीक लेल वएह सिद्धान्त, किए ने ओ काव्येक सिद्धान्त होए, जे पुरुष केन्द्रित समाजमे पुरुष लोकनि द्वारा बनाओल गेल अछि, समीचीन नै अछि। सोन दाइ देसकोस बिसरि ककरा लेल प्रवास काटि रहल छथि? अकाल: अकाल कविताक सामान्य पाठ: अकालक वर्णनमे कवि नाङरिमे भूखक ऊक बान्हि ओकर चारपर ताल ठोकबाक वर्णन करैत छथि।अनावृष्टिसँ अकाल आ तइसँ महगीक आगमन भेल, तइसँ जड़ैत गामक अकास लाल भऽ गेल। भारतमे लंका सन मृत्युक ताण्डव शुरू भेल अछि मुदा ऐबेर विभीषणक घर सेहो नै बाँचत कारण ओकर मुंडमाल डोरी-डोरीसँ बान्हल अछि। माए भरि-भरि पाँज कऽ धरती पकड़ि रहल छथि। दशानन अपन बीसो आँखि ओनारि माथ हिला रहल छथि। औचित्य सिद्धान्त: क्षेमेन्द्र औचित्यविचारचर्चामे औचित्यकेँ साहित्यक मुख्य तत्व मानलन्हि। आ औचित्य कतऽ हेबाक चाही? ई हेबाक चाही पद, वाक्य, प्रबन्धक अर्थ, गुण, अलंकार, रस, कारक, क्रिया, लिंग, वचन, विशेषण, उपसर्ग, निपात माने फाजिल, काल, देश कुल, व्रत, तत्व, सत्व माने आन्तरिक गुण, अभिप्राय, स्वभाव, सार-संग्रह, प्रतिभा, अवस्था, विचार, नाम आ आशीर्वादमे। कंपायमान अछि ई ब्रह्माण्ड आ ई अछि कंपन मात्र। कविता वाचनक बाद पसरैत अछि शान्ति, शान्ति सर्वत्र आ शान्ति पसरैत अछि मगजमे। अकाल कविताक औचित्य सिद्धान्तक हिसाबसँ पाठ: ई अकाल नहि, महाकाल अछि, भूखक ऊक बान्हि नाड़रि सँ, चारे पर ठोकैत ताल अछि मिथिलाक काल-देशमे अकालक ई वर्णन कविक कविताक औचित्य अछि। रावण तँ उपटबे करत, विभीषण सेहो नै बाँचत। तोहर ठोर: तोहर ठोर कविताक सामान्य पाठ: पानक ठोर आ सुन्नरिक ठोर। सुन्नरि द्वारा बातक चून लगाएब आ कऽथक सन लाल बुन्न कपोल सजाएब। मुदा प्रेमक पुंगी कतए? भोरक लाली सुन्नरिक ठोर सन, बिनु सुन्नरि व्याकुल साँझ जेकाँ। बधिक जे बनत सुन्नरिक वर तँ हम बनब विखण्डित राहु। स्वर्गोमे सुधा कम्मे अछि, तहिना सुन्नरिक ठोर सेहो कतऽ पाबी। सकरी मिल महान बनत जे हम विश्वकर्मासँ विज्ञान सीखब। आ ओइ मिलसँ बहार होएत माधुर्य। कुसियारक पाकल पोर सन सुन्नरिक ठोर अछि। पुनर्जन्ममे सेहो धान आ चिष्टान्न बनि सुन्नरि हम अहाँक लग आएब। मुदबा एतबा बादो शब्दसँ उद्देश्य कहाँ प्रगट भेल। अलंकार सिद्धान्तक हिसाबसँ तोहर ठोर कविताक पाठ: भामह अलंकारकँक समासोक्ति कहै छथि जे आनन्दक कारण बनैए। दण्डी आ उद्भट सेहो अलंकारक सिद्धान्तकेँ आगाँ बढ़बै छथि। अलंकारक मूल रूपसँ दू प्रकार अछि, शब्द आ अर्थ आधारित आ आगाँ सादृश्य-विरोध, तर्कन्याय, लोकन्याय, काव्यन्याय आ गूढ़ार्थ प्रतीति आधारपर। मम्मट ६१ प्रकारक अलंकारकेँ ७ भागमे बाँटै छथि, उपमा माने उदाहरण, रूपक माने कहबी, अप्रस्तुत माने अप्रत्यक्ष प्रशंसा, दीपक माने विभाजित अलंकरण, व्यतिरेक माने असमानता प्रदर्शन, विरोध आ समुच्चय माने संगबे। बातक चून लगाएब अप्रस्तुत, कऽथक सन लाल बुन्न कपोल, पानक ठोर आ सुन्नरिक ठोर, भोरक लाली सुन्नरिक ठोर सन, कुसियारक पाकल पोर सन सुन्नरिक ठोर ई सभ उपमा कवि द्वारा प्रयुक्त भेल अछि। मुदा कतऽ छह प्रेमक पुंगी हूक? मे सादृश्य-विरोध अछि। अहाँ बिनु व्याकुल वाटक माँझ मे रूपक प्रयुक्त भेल अछि। काव्यक भारतीय विचार: मोक्षक लेल कलाक अवधारणा, जेना नटराजक मुद्रा देखू। सृजन आ नाश दुनूक लय देखा पड़त। स्थायी भावक गाढ़ भऽ सीझि कऽ रस बनब- आ ऐ सन कतेक रसक सीता आ राम अनुभव केलन्हि (देखू वाल्मीकि रामायण)। कृष्ण भारतीय कर्मवादक शिक्षक छथि तँ संगमे रसिक सेहो। कलाक स्वाद लेल रस सिद्धांतक आवश्यकता भेल आ भरत नाट्यशास्त्र लिखलन्हि। अभिनवगुप्त आनन्दवर्धनक ध्यन्यालोकपर भाष्य लिखलन्हि। भामह ६अम शताब्दी, दण्डी सातम शताब्दी आ रुद्रट ९अम शताब्दी एकरा आगाँ बढ़ेलन्हि। रस सिद्धान्तक हिसाबसँ तोहर ठोर कविताक पाठ: रस सिद्धान्त:भरत:- नाटकक प्रभावसँ रस उत्पत्ति होइत अछि। नाटक कथी लेल? नाटक रसक अभिनय लेल आ संगे रसक उत्पत्ति लेल सेहो। रस कोना बहराइए? रस बहराइए कारण (विभाव), परिणाम (अनुभाव) आ संग लागल आन वस्तु (व्यभिचारी)सँ। स्थायीभाव गाढ़ भऽ सीझि कऽ रस बनैए, जकर स्वाद हम लऽ सकै छी।भट्ट लोलट:- स्थायीभाव कारण-परिणाम द्वारा गाढ़ भऽ रस बनैत अछि। अभिनेता-अभिनेत्री अनुसन्धान द्वारा आ कल्पना द्वारा रसक अनुभव करैत छथि। लोलट कविकेँ आ संगमे श्रोता-दर्शककेँ महत्व नै दै छथि। शौनक:- शौनक रसानुभूति लेल दर्शकक प्रदर्शनमे पैसि कऽ रस लेब आवश्यक बुझै छथि, घोड़ाक चित्रकेँ घोड़ा सन बूझि रस लेबा सन। भट्टनायक कहै छथि जे रसक प्रभाव दर्शकपर होइत अछि। कविक भाषाकेँ ओ भिन्न मानैत छथि। रससँ श्रोता-दर्शकक आत्मा, परमात्मासँ मेल करैए। रसक आनन्द अछि स्वरूपानन्द। आ ऐसँ होइत अछि आत्म-साक्षात्कार। रस सिद्धान्त श्रोता-दर्शक-पाठक पर आधारित अछि। ई श्रोता-दर्शक-पाठकपर जोर दैत अछि। बार्थेज संरचनावाद-उत्तर-संरचनावादक सन्दर्भमे लेखकक उद्देश्यसँ पाठकक मुक्तिक लेल लेखकक मृत्युकेँ आवश्यक मानै छथि- लेखकक मृत्यु माने लेखक रचनासँ अलग अछि आ पाठक अपना लेल अर्थ तकैत अछि। लगौलह बातक पाथर चून । आ सजौलह कऽथ कपोलक खून । विभाव अछि आ ऐ कारणसँ देखि कऽ लहरल हमर करेज अनुभाव माने परिणाम बहार होइत अछि। स्फोट सिद्धांत: भर्तृहरीक वाक्यपदीय कहैत अछि जे शब्द आकि वाक्यक अर्थ स्फोट द्वारा संवाहित अछि। वर्ण स्फोटसँ वर्ण, पद स्फोटसँ शब्द आ वाक्य स्फोटसँ वाक्यक निर्माण होइत अछि। कोनो ज्ञान बिनु शब्दक सम्बन्धक सम्भव नै अछि। ई भारतीय दर्शनक ज्ञान सिद्धान्तक एकटा भाग बनि गेल। अर्थक संप्रेषण अक्षर, शब्द आ वाक्यक उत्पत्ति बिन सम्भव अछि। स्फोट अछि शब्दब्रह्म आ से अछि सृजनक मूल कारण। अक्षर, शब्द आ वाक्य संग-संग नै रहैए। बाजल शब्दक फराक अक्षर अपनामे शब्दक अर्थ नै अछि, शब्द पूर्ण होएबा धरि एकर उत्पत्ति आ विनाश होइत रहै छै। स्फोटमे अर्थक संप्रेषण होइत अछि मुदा तखनो स्फोटमे प्राप्ति समए वा संचारक कालमे अक्षर, शब्द वा वाक्यक अस्तित्व नै भेल रहै छै। शब्दक पूर्णता धरि एक अक्षर आर नीक जकाँ क्रमसँ अर्थपूर्ण होइए आ वाक्य पूर्ण हेबा धरि शब्द क्रमसँ अर्थपूर्ण होइए।सांख्य, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा आ वेदान्त ई सभ दर्शन स्फोटकेँ नै मानैत अछि। ऐ सभ दर्शनक मानब अछि जे अक्षर आ ओकर ध्वनि अर्थकेँ नीक जेकाँ पूर्ण करैत अछि। फ्रांसक जैक्स डेरीडाक विखण्डन आ पसरबाक सिद्धान्त स्फोट सिद्धान्तक लग अछि। स्फोट सिद्धांतक आधारपर तोहर ठोर कविताक पाठ: आब उदयनक करियनक धरतीपर रहबाक अछैतो न्याय सिद्धान्तक स्फोट सिद्धान्तकेँ नै मानब कविक कविताकेँ नै अरघै छन्हि। मने मे रहल मनक सब बात कहि ओ अलभ्य चित चोर सँ सुन्नरिक ठोरक तुलना कऽ दै छथि। उदयनक गामक कवि बूच कहै छथि भऽ रहल वर्ण - वर्ण निःशेष, शब्द सँ प्रगटल नहि उद्य़ेश्य; एतए शब्दसँ नै मुदा स्फोटसँ अर्थक संप्रेषण कवि द्वारा तोहर ठोर आ ऐ संग्रहक आन कविता सभमे जाइ तरहेँ भेल अछि, से संसारक सभसँ लयात्मक आ मधुर भाषा मैथिली मे (यहूदी मेनुहिनक शब्दमे) विद्यापतिक बादक सभसँ लयात्मक कविक रूपमे बूचजी केँ प्रस्तुत करैत अछि आ मैथिली कविताकेँ ऐ रूपमे फेरसँ परिभाषित करैत अछि। -गजेन्द्र ठाकुर
 
रवि भूषण पाठक- एक टा अभिशप्त कवि : बूच बाबू ऐ आलेखक आरंभ सर्वप्रथम गाम करियनमे कविक छविसँ करैत छी। गाममे ई कविजीक रूपमे ख्यात रहलाह मुदा हिनकर उपेक्षाक कथा सेहो गामेसँ प्रारम्भ होइत अछि। प्रख्यात दार्शनिक उदयनाचार्यक भूमिमे जनमल ई कवि ने गाममे न्याय पओलक ने बाहर। गंभीर लेखनकेँ मान्यता नै भेटैत देखि कवि गामक व्याहमे अभिनंदन पत्र लेखनमे सेहो रूचि लिअ लागलाह। एहि काजसँ ने हुनका गाममे केओ रोकलक ने बाहर केओ ।सौभाग्य ई जे एहि हीन साहित्यिक वृत्तिमे रमलाक बादो कवि मैथिलीक सर्वश्रेष्ठ स्वागतगान लिखलन्हि। प्रत्यक्षदर्शी कहैत छथि जे गाम वैद्यनाथपुरमे ऐ गानक समए कतेको मंचस्थ माननीय तिलमिला उठलाह। ई गान मिथिला सहित मैथिलीक दुर्दशाक व्यथागीत बनि गेल- उल्लासक गीत कतऽ सगरो करूणा क्रन्दन उपटि रहल विपटि रहल मैथिलीक नन्दन वन भ्रमरझुण्ड प्यासल छथि, वृहगवृन्द बड़ भूखल मुरूझल छथि आम-मऽहू, रऽसक सरिता सूखल बबुरे वन कवि कोकिल, लाजे मरै छी आउ आउ आउ सब के स्वागत करै छी कवि दोसर अनुच्छेदमे मैथिली मानुसक उत्सवप्रियतापर व्यंग्य करै छथि। हम सभ विद्यापति समारोह, हिन्दी दिवस, स्वतंत्रता दिवस, गांधी जयन्तीकेँ सत्यनारायण भगवानक कथाबला रीतिनिष्ठासँ मना लैत छिऐ आ समारोहक उच्च उद्देश्य ओहिना उपेक्षित रहि जाइत अछि । मात्र ई समारोही गोष्ठीसँ की हेतै? स्थिति जहिना तहिना, संवत एतै जेतै मुरदा जगाउ लाउ पैर पकड़ै अछि आउ आउ सब के स्वागत करै छी ई गान साहित्यक उद्देश्यपर सेहो विचार करैत अछि। कोनो खंडन मंडनक गुंजाइश नै छोड़ैत, ई स्पष्ट कहैत अछि- काव्यपाठ करू मुदा कान्ह पर लिअ लाठी एक हाथ रसक श्रोत, दोसरमे खोरनाठी पुरना किछु त्यागि त्यागि, पकड़ू किछु नऽव ढ़ंग मोंछो पिजाउ बाउ श्रृंगारक संग संग अहाँ गीत गाउ मुदा हम हहरै छी रसश्रोतक संगे खोरनाठी लऽ कऽ चलएबला ई कविता साधारण नै अछि। पाश्चात्य काव्यशास्त्र ई मानैत अछि जे महान साहित्य कोनो एक भाव लऽ कऽ नै चलैत अछि। ई साहित्यमे विविध आ कखनो कखनो परस्पर विरोधी भावक संश्लेष करैत अछि। बूच बाबूक कवितामे विरूद्धक ई सामंजस्य हमरा चकित करैत अछि। हिंदी आलोचक राम चन्द्र शुक्ल विरूद्धक सामंजस्यकेँ एकटा बड़का काव्योपकरण मानैत छथिन्ह। बूच बाबूक एकटा आर कवितामे एकर दर्शन होइत अछि। ‘सोनदाय’ कविताकेँ ध्यानसँ पढ़ू।सर्वप्रथम एकरामे श्रृंगारिक लक्षण बुझाइत अछि। रहतौ ने हास बहि जेतौ विलास गय दुइ दिवसक जिनगीसँ हेवे निराश गय भरमक तरंग बीच मृगतृष्णा जागल छौ मोहक उमंग बीच प्राण किएक पागल छौ चलि जेतौ सुनें कंठ लागल पियास गय दुइ........ कवितामे दू टा भाव स्पष्ट अछि। प्रथम प्रेम निवेदन आ दोसर विरागक स्वीकृति। आ दूनू मिलि कऽ विषादक विराट रूपकेँ जन्म दैत छैक। जे ऐ कवितामे कोनो एकटा भाव रहितै, तखन ई कोनो विलक्षण कविता नै बनि सकैत छल। एहि वैशिष्ट्यकेँ बूच बाबू कवितामे कोना आनैत छथि, ई बात बेस रूचिगर अछि। कवितामे विद्वान लक्षणा आ व्यंजनाकेँ पैघ बूझैत छथिन्ह मुदा कवि बूच अभिधापर निर्भर छथि। हुनकर कवितामे अलंकारक सेहो कतहु विशेष उपयोग नै अछि। तखन ऐ वैशिष्ट्यक श्रोत की अछि? एकर श्रोत अछि हुनकर विराट जीवनानुभव। अपन समृद्ध अनुभवक आधारपर ओ शब्दक नव जाल बूनैत छथि आ अपन रचनात्मक शक्तिकेँ यादि करैत ओकरा दृढ़ आ सुरेबगर बनबैत छथि। एकटा अध्यापकक घरमे जन्म लेनिहार ई कवि सौन्दर्यक विविध रूपक साक्षात्कार कएलक। कखनहु जेठक उद्धत नदी करेह एकर मोनकेँ मोहैत अछि- ई इन्होर पानि चमकै छौ मोर मोरपर भौरी दै छौ काटि काटि डीहक करेजकें तऽरे तऽरे समाइ छौ इएह कवि नागार्जुनक कविता ‘एक फांक आंख’ जकाँ नायिकाक ठोरक रस्तासँ अभिनव सौंदर्य देखैत अछि- कि जहिना कुरकुर पानक ठोर कि तहिना सुन्नरि तोहर ठोर लगौलह बातक पाथर चून सजौलह कऽथ कपोलक खून कि रहलह एक्के बातक चूक कतऽ छह प्रेमक पुंगी हूक? ई कवि भारतक ग्राम्य सुषमाक अनन्य प्रेमी अछि। महानगरीय कृत्रिमताक स्थानपर ई सहज सौंदर्यकेँ वरेण्य मानैत अछि- ईडेन गार्डेन सँ सुन्नर अछि कोशी कातक बोन गय इएह प्रेम एकटा प्रेमिकाक ह्रदयसँ निकलैत अछि- प्रियतम चलि आबू पटनासँ गाम ऐ प्रेमक ठोस आधार अछि। कवि नगरीय जीवन, शहरीकरण आ प्रशासनिक भ्रष्टाचारकेँ निशाना बनबैत अछि- घूसखोर मच्छर उड़ीस जकाँ जीवै छै शोनित तँ ओ अवशिष्ट पीवै छै हड्डी सुखायल अछि तैयो ओ अधिकारी खगले केर तीरै छै चाम कुत्ता जहिना हड्डी सँ मांस,खून आ रस खींचैत अछि, तहिना सरकारी अधिकारी वर्ग सेहो आम जनताक संग करैत अछि। कवि स्वयं बिहार सरकारक राज्य कर्मचारी छलाह, ताइ दुआरे ऐ अनुभवसँ ओ नित्य प्रति गुजरैत हेताह। मैथिली कवितामे हिंदी कविताक तुलनामे बेटीक ब्याह, दहेज आदिक बेशी चिंता रहलैक अछि। यद्यपि ई चिंता सीता, पार्वतीक ब्याहक रूपमे धार्मिक आयाम लैत अछि, तथापि एकर मूलाधार सामाजिक अछि। अन्य मैथिल कविक संगे हुनको गौरी आ सीताकेँ कुमारी रहबाक दर्द छन्हि- चामक सेज, कुगामक वासी खन कैलाश, खनेखन काशी लागथि बुत्त भुताह हे, गौरी रहथु कुमारी ! ई मिथिला अंचल मे व्याप्त दहेज आ समएसँ बेटीक व्याह नै हेबाक चिंता अछि। कवि सेहो ऐ चिंतासँ जूझैत अछि आ बेटीक लेल एकटा अद्भुत रूपक खोजैत अछि।‘फूलडाली‘ क रूपमे बेटीक कल्पना करैत कवि बेटीमे तमाम पवित्रता आ दैवत्वकेँ रूपांतरित करैत अछि- फूलडाली सन बेटी बनलै माथे परक पहाड़ एक कवितामे कवि कोनो बेटाक बापकेँ चारिटा बेटी होएबाक व्यंग्यात्मक कल्पना करैत अछि- तोरेा कुमारि चारि दाय हो मोन पड़ि जयतह नानी एक अन्य कवितामे वरक खानदानकेँ व्यापारी देखाओल गेल अछि- बबा दलाल बाप बड़दक व्यापारी, बेटा बछौड़ बीकि गेलै हजारी कविक ख्याति हास्य आ भक्ति कविक रूपमे रहल मुदा कविक फूलडालीमे सभ तरहक फूल छलए। फूल नाममात्रक नै काव्य उपवनक सभसँ मधुर, सुगंधित आ पवित्र फूल। कवि अपन दैन्य आ निराशाकेँे भक्ति गीतमे व्यक्त कएलक, ई गीत बहुत बेसी मात्रामे अछि मुदा मात्र एक गीतक चर्चा हम करैत छी, लागैत अछि जेेना विद्यापति पदावलीक कोनो पद होअए- जननि हय, जीवन हमर कठोर अध्यावधि सुख-शांति न भेटल पयलहँू विपति अघोर जननि हय जीवन हमर कठोर बूच बाबू अपन जिनगी आ कवितामे काव्यशास्त्रीय रूढ़िक पालन नै केलाह ने ओ कोनो काव्यात्मक आंदोलनसँ जुड़ि कुकुरमुतिया काव्यक रचना केलाह। ओ ह्रदएसँ कविता करैत छलाह, ताइ दुआरे हुनकर आलोचना सेहो ह्रदएसँ हेबाक चाही। बिझिआइल हाँसूसँ भरिगर गाछ नै कटत। बूच बाबूक काव्यक आलोचना सोचि समझि कऽ होएबाक चाही। यद्यपि ओ कोनो तत्कालीन आंदोलनमे रूचि नै लेलाह, परन्तु हुनकर कविता भाव आ शिल्प दुनू दृष्टिसँ रचनात्मक अछि। रचनात्मकता आ मौलिकताक औजारसँ हुनका परखल जाए तँ ओ मैथिली कविताक इतिहासमे किछु शीर्ष कविमे गणनीय छथि। मुदा हुनकर कविताक विषयमे बहुत भ्रांति अछि। कखनहु छपलाक दृष्टिसँ तँ कखनहु पुरस्कारक दृष्टिसँ हुनकर अवहेलना होइत चलि जाइत अछि। केओ आलोचक कविताक संख्याक दृष्टिसँ सेहो आपत्ति कऽ सकैत छथि! किएक तँ ई अभिनवगुप्त आ मम्मटक देश नै अछि। ई शतक आ सहस्रकम लिखएबलाक देश अछि! विडम्बना ई अछि जे कविक सुपुत्र श्री शिव कुमार झा सेहो मैथिली आलोचनासँ जुड़ल छथि आ अपन आलोचनामे ककरो निराला आ ककरो प्रसाद बनाबैत छथिन्ह मुदा मर्यादावश वा जे कारण हो पिताक रचनात्मकतापर ओ श्रद्धा तँ व्यक्त करैत छथिन्ह मुदा खुलि कऽ सोझाँ नै आबैत छथिन्ह। हम ऐठाम इएह कहब जे ओ निराला आ प्रसाद नै, ओ बूच छलाह, मैथिलीक बूच। हुनका मात्र ऐ रूपमे सम्मान दऽ हम मैथिली आलोचनाक तर्पण कऽ सकैत छी । कविक रचनात्मकताक दूटा संदर्भ आर अछि। कविक रचना ‘अकाल’ संभवतः नागार्जुनक हिंदी कविता ‘अकाल और उसके बाद’ क बाद भेलए। मुदा दुनूक दू संदर्भ आ दृश्य। नागार्जुन जाइ ठाम पशु पक्षी आ मानवक स्थितिक चित्र दऽ रहल छथि, ओइ ठाम बूच बाबूू गुजराती उपन्यासकार पन्नालाल पटेलक रचना ’मानभीनी भवाई’ जकाँ काल देवताक याद करैत छथि। ई अकाल नहि महाकाल अछि भूखक उक बान्हि नांगरिसँ चारेपर ठोकैत ताल अछि। .............................................. बीसहूँ आँखि ओनारि दसानन घुटुकि घुटुकि हिलबैत भाल अछि बूच बाबू अपन एक अन्य कविता ’राम प्रवासी’मे रामकेँ वनवासीक बदला प्रवासी कहैत छथि। मात्र ऐ शब्दक द्वारे ई कविता अपन पौराणिक केंचुलकेँ त्यागि आधुनिकता दिस संक्रमित होइत अछि। धिक धिक जीवन दीन अहाँ बिनु बीतल बरख मुदा जीवै छी जीर्ण-शीर्ण मोनक गुदड़ीकें स्वार्थक सुइ भोंकि सीबै छी निष्ठुर पिता पड़ल छथि घर मे कोमल पुत्र विकल वनवासी आउ हमर हे राम प्रवासी जीता जी हुनकर कोनो किताब नै छपल। मरलाक बाद हुनकर ९८ टा कविताक संग्रह श्रुति प्रकाशनसँ आबि रहल अछि। निन्नानबेक फेरमे हमरा जनैत कवि कहियो नै पड़लाह। जिनगीक ऐश्वर्य आ प्रेमकेँ कवि खूब नीक जकाँ भोगलाह। परन्तु ई सभ मृगतृष्णा बनि कविक जिनगीमे आबैत जाइत रहल- कयलहुँ जहिना किछु आलिंगन चुभि गेल अनेको वक्रशूल उड़ि गेल गगन दुर्लभ सुगंध झड़ि गेल धरा मकरंद प्रीत सौन्दर्यक भूमि मरूभूमि भेल रमणीय देवसरि सुखा गेल कवि जिनगीकेँ ऊँच-नीचक कविता जकाँ देखलखिन्ह अर्थात विभिन्न भाव आ रससँ परिपूर्ण। कोनो एक रस आ भावमे रमनाइ ओ नै सिखलन्हि। संभवतः काल देवता स्वयं हुनकर कीर्तिक सोझाँ आबि गेलाह अन्यथा हुनकासँ कम सामर्थ्यक कविगण बेशी यश, पुरस्कार आ सम्मानक भागीदार बनलाह। ई अभिशाप कविक कम आ मैथिली आ भारतीय साहित्य आ आलोचनाक बेसी अछि। -रवि भूषण पाठक

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