Thursday, March 27, 2014

81म सगर राति‍ दीप जरए- देवघरमे उमेश मण्‍डल पाठ केलनि‍ ''केते बेर''

केते बेर


ओना तँ केते बेर बरि‍याती जाइसँ सप्‍पत खेने छेलौं मुदा समए एने जहि‍ना देशो-कोस, दि‍नो-दुनि‍याँ बदलैए तहि‍ना वि‍चार बदलि‍ जाइ छेलए जइसँ सप्‍पत टुटि‍ जाइ छेलए। मुदा से ऐबेर नै भेल, कान पकड़ि‍ खूब अँठि‍ कऽ सप्‍पत खा लेलौं। आगूक बात पछुआ पकड़ि‍ पछुआएले छल आकि‍ बि‍च्‍चेमे दुखन भाय टोकि‍ देलनि‍-
भुमहुरक आगि‍ जकाँ तरे-तर भुमि‍आइ छेँ मुदा खोलि‍ कऽ बजमे से बकार नै फुटै छौ।
अनकर बात रहैत तँ वि‍चार करै तक अँटकबो करि‍तौं मुदा शि‍वदूतक आगू जहि‍ना नारद बाबा फँसि‍ गेला, तहि‍ना फँसि‍ गेलौं। सँझुका नढ़ि‍याक पुक्की पेबि‍ पुक्की भरलौं-
भैया, अहाँ लग लाथ कथीक, अखनि‍ तक दुइए गेटे एहेन अछि‍ जेकर बात मानि‍ लइ छि‍ऐ, दुनू लंगोटि‍या संगीक संग एक्के कि‍लासमे पढ़ि‍तो छी।
बुझबे ने केलि‍ऐ, अपने बेथाएल बेथाक भूमि‍कामे ओझरा हथि‍नी गति‍ये चाइल धेने रही मुदा जेना दुखन भायकेँ केतौ जेबाक रहनि‍ तहि‍ना फुनफुनाइत बजला-
देख, सौति‍नी खि‍स्‍सा सुनैले छुट्टी नइए!
झँटाएल मन बि‍च्‍चेमे बजा गेल-
की सौति‍नी खि‍स्‍सा?”
मुँहक मोती खसबि‍ते दुखन भाय लोकि‍ लेलनि‍-
जानि‍ए कऽ उक्‍खरि‍मे मुड़ी देब तखनि‍ मुसराक डर केने हएत, सौति‍न घर बास। तैपर खि‍स्‍सा पि‍हानी नै भेल तखनि‍ तँ पति‍वरतेक घर भेल कि‍ने?”
मनमे भेल जे जँ कहीं दुखन भाय अपने बात कहैत तरौटा जात छोड़ि‍ ससरि‍ गेला तखनि‍ तँ मुँहक मुद्रा मुहेँक बैंकमे रहि‍ जाएत। बौसैत बजलौं-
भैया, अहाँ तँ अलबेला लोक छी, अहाँले साँझ-भोरक बेलाक कोन मोल छै।
जेना नीक लगलनि‍, तहि‍ना नारि‍यल, कि‍समि‍स, मि‍सरीक त्रि‍वेणीमे स्‍नान करए लगला। हाँइ-हाँइ कऽ अपन बात नि‍कालए लगलौं-
बुझलि‍ऐ भैया की?”
लोकक आहटि‍ पाबि‍ खि‍खि‍रक कान जहि‍ना ठाढ़ रहैए तहि‍ना भैयो केलनि‍। मनमे भेल जँ तीर-धनुषक ओरि‍यान करए लगब तँ शि‍कारे छुटि‍ जाएत, तइसँ नीक गुलेतीएसँ काज चला ली। बजलौं-
भैया, बरि‍यातीमे खेबा काल तीनू गोटे एक्के ठीमन बैसलौं। गुण रहल जे बीचमे रही नै तँ खाइए काल दुनू गोटे मारि‍-मरौबलि‍ कऽ लतए। दुनू हाथ दुनू दि‍स उठेलौं तखनि‍ मारि‍ थमहल, नै तँ आने बरि‍याती जकाँ कान-कपार फोड़ेनै अबि‍तौं!
कान-कपार फोड़ेनाइ सुनि‍ दुखन भाय जेना नाँगरि‍ रोपि‍ कान ठाढ़ खि‍खि‍रक बच्‍चा जकाँ तकलनि‍। बजलौं-
भैया, कोबी तरकारी रहए, एक गोटे बजला- पछि‍ममे कोबीकेँ गोभी कहै छै आ पूबमे गोभीकेँ कोबी।
दुखन भाय बजला-
अपनो ऐठाम तँ लि‍खतनमे गोभी छै आ मुखतनमे कोबी छै। र्इ की भेल?”
कहलि‍यनि‍-
भैया, तेतबे नै ने भेल, गोभी तँ गोभकेँ कहल जाइ छै मुदा कोबीकेँ तँ फूल कहल जाइ छै।
फूल आ गोभ सुनि‍ दुखन भाय ठमकला। ठमकि‍ते गर अँटबए लगलौं जे जखने मुँह खोलता आकि‍ दोसर गर धरा थोपि‍ देबनि‍। मने-मन ओ गर लगबए लगला जे धानक गम्‍हराकेँ गोभो कहल जाइ छै, पछाति‍ फूल आ दाना होइ छै, मुदा से कोबीक नै अछि‍। जँ फूल मानि‍ लेब तँ फूलक अंति‍म अबस्‍थाक पछाति‍ गाछ नि‍कलै छै, गाछमे पीअर-पीअर फूल होइ छै तोड़ी छि‍म्‍मरि‍ जकाँ छीमी होइ छै, जइमे तोड़ीए दाना जकाँ बीआ होइ छै, ओइसँ कोबीक गाछ होइए, तखनि‍ कोबीक फूल भेल आकि‍ गोभ? मने-मन जेना ओझरा गेला। बजला कि‍छु ने। मुदा मुँहक रूखि‍ कि‍छु आरो सुनबाक बूझि‍ पड़ल। दोसर गुल्‍ली फेकलौं-
भैया, असलाहा बात तँ छुटि‍ए गेल।
बजला कि‍छु ने, मुदा मुँहक रूखि‍सँ बूझि‍ पड़ल जे मन जेना उचटि‍ रहल छन्‍हि‍। पुछलि‍यनि‍-
भैया, कोनो धड़फड़ीमे छी की?”
जान छोड़बैत दुखन भाय बजला-
बौआ, वि‍चारक प्रश्न उठेलह, मुदा नि‍चेन नै छी अखनि‍, जखनि‍ नि‍चेन रहब तखनि‍ तोहर अगि‍लो बात सुनबह।
आगू दि‍न सुनबह, सुनि‍ते मन जि‍राएल। मुदा तैयो मुँहसँ खसि‍ पड़ल-
भैया, सप्‍पत तँ केता बेर खेने छेलौं जे बरि‍याती नै जाएब, मुदा ऐबेर कान ओमठि‍ लेलौं। कहू जे जखनि‍ बरे बि‍का जाइए तखनि‍ बरि‍याती मंगनी-चंगनी छोड़ि‍ की भेल?”
मुँह मलि‍न रहि‍तो दुखन भाइक बतीसी मकैक लाबा जकाँ चमकि‍ उठलनि‍।¦¦¦
उमेश मण्‍डल

निर्मली (सुपौल) 

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