Friday, January 16, 2009

प्रीति (प्रीति नेपाल १ टी.वी. मे दैनिक मैथिली कार्यक्रमक होस्ट छथि।)

प्रीति
(प्रीति नेपाल १ टी.वी. मे दैनिक मैथिली कार्यक्रमक होस्ट छथि।)
१.
वियाह एकटा रिश्ता के एहन अटूट बंधन अछि जकरा सामाजिक मान्यता प्राप्त छैक आ एक खास अवस्था में सब स्वेच्छा सअ अहि बंधन में बंधय चाहैत अछि। प्राचीनकाल में स्वयंबर के प्रचलन छल। यानि महिला के स्वयं वर चुनवाक सामाजिक आजादी छलन्हि। कालांतर में सामाजिक स्थिति में बदलाव आयल। बहु विवाह या दोसर वियाह पहिनुहुं व्याप्त छल मुदा महिला के नहि भेटल ई आजादी। आइयो कमोवेश दोसर वियाह पर समाज महिला के प्रति ओतेक उदार शायद नहि अछि जतेक उदार ओ पुरूषक दोसर वियाह पर अछि।
दोसर वियाह के बारे में जौं सच पुछी त समाज पुरूख के संग दैत अछि। पहिने त समाज में बहु वियाहक प्रथा छल मुदा आब यद्यपि एकरा मानयता नहि छैक तथापि समाज सअ ई प्रथा पूर्णत: खत्म नहि भेल अछि। दोसर वियाह जौं विधुर द्वारा या कोनो खास विशेष परिस्थिति में कयल जाय त एकर कारण बुझवा में अबैत अछि पर यदि मात्र शौक, दहेजक लोभ या छद्म आधुनिकता के होड़ में कयल जाय त ई अक्षम्य अपराध अछि। अहि मादे समाज आ स्वयं पुरूष के अपन सोच बदलबाक आवश्यकता अछि ।
समय बदलल संगहि लोक के सोच सेहो बदलल अछि। मुदा एखनो नहि बदलल अछि महिला के मादे पुनर्विवाह या दोसर वियाह पर समाजक नजरिया। जौं पुरूष क सकैत छथि दोसर वियाह त किएक नहि परित्यक्ता, विधवा महिला के सेहो भेटबाक चाही ई अधिकार। कतेक नींक महिला होयत जौं जवान के संतानहीन विधवा के पुनर्विवाह के अनिवार्य बना देल जाय आ बाकियो के स्वेच्छा पर छोड़ि देल जाय। जौं ई भ सकय संभव त नहि सिर्फ समाज सअ महिला आ पुरूषक भेदभाव किछु कम होयत अपितु बल्कि समाज द्वारा उपेक्षित आ एक तरहे त्यागल महिला पुन: समाज के मुख्यधारा में शामिल भय अपन जीवनक नैराश्य सअ मुक्ति पाबि सकलीह।
२.
कोजागरा पावनि आश्र्िवन शुक्ल पूर्णिमा के मनाओल जाइत अछि। नवविवाहित लड़का लेल अहि पावनि के विशेष महत्व अछि या कहू त ई पावनि खासकय हुनके सभक लेल छन्हि। नवका बरक लेल ई पावनि तहिने महत्वपूर्ण अछि जेहन नवविवाहिता लेल मधुश्रावनी। फर्क यैह अछि जे मधुश्रावनी कतेको दिन लम्बा चलैय बला पावनि अछि आ अहि में नव कन्या लेल बहुत रास विधि-विधान अछि जखनकि कोजागरा मुख्यतःमात्र एक दिन होइत अछि।
जहिना मधुश्रावनी में कनिया सासुरक अन्न-वस्त्रक प्रयोग करैत छथि तहिना कोजागरा में बर सासुर सं आयल नव वस्त्र धारण करैत छथि। कोजागरा के अवसर पर बर के सासुर सं कपड़ा-लत्ता, भार-दोर अबैत छन्हि। अहि भार में मखानक विशेष महत्व रहैत अछि। यैह मखान गाम-समाज में सेहो बरक सासुरक सनेस के रूप में देल जाइत अछि। सासुर सं आयल कपड़ा पहिरा बरक चुमाओन कयल जाइत अछि। बरक चुमाओन पर होइत अछि बहुत रास गीत-नाद।
कोजागरा में नींक जकां घर-आंगन नीपी-पोछि दोआरी सं भगवतीक चिनवारि धरि अरिपन देल जाइत अछि। भगवती के लोटाक जल सं घर कयल जाइत अछि। चिनबार पर कमलक अरिपन दय एकटा लोआ में जल भरि राखि ओहि पर आमक पल्लव राखि तामक सराई में एकटा चांदी के रूपैया राखि लक्ष्मी के पूजा कयल जाइत अछि। राति में अधपहरा दकखि बरक चुमाओन कयल जाइत अछि। आंगन में अष्टदल अरिपन द ओहि पर डाला राखि कलशक अरिपन द ताहि में धान द कलश में आमक पल्लव राखल जाइत अछि। एकटा पीढ़ी पर अरिपन देल जाइत अछि जे अष्टदलक पश्चिम राखल जाइत अछि। चुमाओनक डाला पर मखान, पांच टा नारियल, पांच हत्था केरा, दही के छांछ, पानक ढोली, गोटा सुपारी, मखानक माला आदि राखि पान, धान आ दूबि सं वर के अंगोछल जाइत अछि तहन दही सं चुमाओन कयल जाइत अछि। चुमाओन काल में बर सासुर सं आयल कपड़ा पहिरि पीढ़ी पर पूब मुंहे बैसैत छथि।
पुरहरक पातिल के दीप सं वर के चुमाओन सं पहिने सेकल जाइत छथि। फेर कजरौटा के काजर सं आंखि कजराओल जाइत छन्हि। तकर बाद पांच बेर अंगोछल जाइत छन्हि। तखने होइत छन्हि चुमाओन। चुमाओनक बाद वरकें दुर्वाक्षत मंत्र पढ़ि कम सं कम पांच टा ब्राह्मण दूर्वाक्षत दैत छन्हि। फेर पान आ मखान बांटल जाइत अछि। आ अगिला दिन धरि मखान गाम घर में बांटल जाइत अछि। (www.videha.co.in साभार विदेह)

डाक्टर हेमन्त - जगदीश प्रसाद मण्डल



सभ दिन चारि बजे उठैबला डाॅक्टर हेमन्त आइ छअ बजे उठल। अबेरे कऽ नीन टुटलनि। एना किअए भेलनि? एना अइ दुआरे भेलनि जे आन दिन परिवारसँ लऽ कऽ अस्पताल धरिक चिन्ता दबने रहैत छलनि। तेँ कहियो भरि-भरि राति जगले रहि जाथि तँ कहियो-कहियो लगले-लगले निन्न टुटि जाइन। कोनो-कोनो राति अनहोनी-अनहोनी सपना देखि चहा-चहा कऽ उठैत तँ कोनो-कोनो राति पत्नीसँ झगड़ैत रहि जाइत। छअ बजे नीन टुटिते हेमन्त घड़ी देखलनि। मुदा अबेरो कऽ निन्न टुटने मनमे एक्को मिसिया चिन्ता नहि। मन हल्लुक, एकदम फुहराम। जना मनमे चिन्ताक दरस नहि। आन दिन ओछाइनेपर ढ़ेरो चिन्ता घेरि लेनि। अनेको समस्या, अनेको उलझन मनकेँ गछारि देनि। केसक की हाल अछि, बेटाकेँ नोकरी हएत की नहि। क्लीनिकमे कप्पाउण्डरक चलैत रोगी पतरा रहल अछि। चोट्टा सभ दारु पीबि-पीबि अन्ट-सन्ट करैत रहैत अछि आ पाइयेक भँाजमे पड़ल रहैत अछि। जाहिसँ मुँह-दुबर रोगी सबहक कुभेला होइ छै। अस्पतालोसँ बेर-बेर सूचना भेटैत अछि जे ड्यूटीमे लापरवाही करै छिऐ। बातो सत्य छै मुदा की करब? केस छोड़ि देब तँ पिताक अरजल सम्पत्ति बहि जाएत। क्लीनिकमे कम्पाउण्डर सभकेँ जँ किछु कहबै तँ क्लीनिके बन्न भऽ जाएत। जइसँ जेहो आमदनी अछि सेहो चलि जाएत। पुरान कम्पाउण्डर सभ अछि। सभ दिन छोट भाए जेकाँ मानैत एलिऐ तेकरा किछु कहबै सेहो उचित नहि। मुदा हमही टा तँ डाॅक्टर नहि छी, बहुतो छथि। रोगीकेँ की, जैठाम नीक सुविधा हेतइ तइ ठाम जाएत। ओझड़ाएल जिनगी हेमन्तक। तेँ सोझ-साझ बिचार मनमे अबिते नहि। मुदा आइ अबेर कऽ उठनहुँ मनमे कोनो ओझरी नहि। किएक तँ काल्हिये कोर्टमे लिखि कऽ दऽ देलखिन जे हमरा पिताक सम्पतिसँ कोनो मतलब नहि अछि, तेँ केससँ अलग कएल जाए। दोसर बेटोकेँ नोकरी भऽ गेलनि जे ज्वाइन करै काल्हिये माए आ स्त्रीक संग गेल। पिताक देल सम्पतिक लड़ाइमे अपनो बीस बर्खक कमाइ गेल रहनि। मुदा प्राप्तिक नामपर जान बचा लड़ाइसँ अलग भेलाह। हेमन्तक मनमे उठलनि जे जहिना पिताक सम्पतिमे किछु नहि प्राप्त भेल तहिना तँ रमेशोकेँ हमरा अरजल सम्पतिमे नहि हेतै। मुदा हमरा आ रमेशमे अन्तर अछि। हम तीन भाइ छी, जहिक बीच विवाद भेल मुदा रमेश तँ असकरे अछि। ओना हेमन्तक मनक चिन्ता काल्हिये समाप्त भऽ गेल रहनि मुदा काजक व्यस्तता मनकेँ असथिर हुअए नहि देलकनि। एक्के बेर आठ बजे रातिमे असथिर भेलाह। तेकर बाद पर-पखाना करैत, हाथ-पाएर धोइत, खाइत नअ बजि गेलनि। भरि दिनक झमारल तेँ ओछाइनपर पहुँचते नीन अबए लगलनि। रेडियो खोलि समाचार सुनए चाहलनि, सेहो नहि भेलनि। रेडियो बजिते अपने सुति रहलाह।
नीन टुटिते डाॅक्टर हेमन्तकेँ चाहक तृष्णा एलनि। मुदा घरमे कियो नहि। असकरे। नोकर अइ दुआरे नहि रखने जे काल्हि धरि पत्नी, बेटा-पुतोहू सभ रहनि। जे सभ घरक काज सम्हारैत। ओना चाहक सभ समचा घरेमे मुदा बनौनिहारे नहि। बिछान परसँ उठि नित्य-कर्म केलनि। मनमे एलनि जे चाह पीब। मुदा चाह आओत कतऽ सँ। से नञि तँ पहिने दाढ़िये बना लै छी आ क्लीनिक जाए लगब तँ रस्तेमे चाह पीबि लेब। मुदा भोरे-भोर चाहक दोकानपर तँ ओ जाइत, जकरा घर-परिवार नञि रहै छै। हमरा तँ सभ कुछ अछि। ओह, से नञि तँ अपने चाह बना लेब। चाह बना, कुरसीपर बैसि चाह पीबए लगलाह। फाटक परसँ आवाज आएल- ‘डाॅक्टर सहाएब, डाॅक्टर सहाएब।’
टेबुलपर कप रखि, फाटक दिशि बढ़ैत डाॅ. हेमन्त कहलखिन- ‘हँ, अबै छी।’
फाटकक बाहर डाकिया कन्हामे झोरा लटकौने हाथमे दूटा लिफाफ आ रसीद नेने ठाढ़। डाकियाकेँ देखि मुस्की दैत हेमन्त पुछलखिन- ‘भोरे-भोर कोन शुभ-सन्देश अनलहुँहेँ?’
मुदा डाकिया किछु बाजल नहि। खाँखी शर्टक उपरका जेबीसँ पेन निकालि, रसीदो आ पेनो बढ़ा देलकनि। दुनू रसीदपर हस्ताक्षर कऽ दुनू लिफाफ नेने फेर कुरसीपर बैसि चाहक चुस्की लेलक। एकटा लिफाफकेँ टेबुलपर रखि, दोसरकेँ खोलि पढ़ए लगलाह। सरकारी पत्रमे लिखल- ‘पत्र देखितहि डेरा छोड़ि दिअ। बाढ़िसँ बहुत अधिक जान-मालक नोकसान भेल अछि, तेँ आइये लछमीपुर पहुँच जएबाक अछि। तहिमे जँ कोनो तरहक आनाकानी करब तँ पुलिसक हाथे पठाओल जाएब। एक काॅपी पुलिसोक थानामे भेज देल गेल अछि।’
पत्र पढ़ितहि हेमन्तकेँ ठकमूड़ी लगि गेलनि। मने-मन सोचए लगलाह जे घरमे असकरे छी। कोना छोड़ि कऽ जाएब। समए-साल तेहेन भऽ गेल अछि जे दिनो-देखार डकैती होइत अछि। कतौ डकैती तँ कतौ चोइर, कतौ अपहरण तँ कतौ हत्या सदिखन होइते रहैए। एहना स्थितिमे घर छोड़ब उचित हएत। मुदा जखन नोकरी करै छी तँ आदेश मानै पड़त। जँ से नहि मानब तँ जहिना बीस बर्खक कमाइ कोट-कचहरीक ईंटा गनैमे गेल तहिना जे पाँच बरख नोकरी बचल अछि ओहो ससपेंड, डिस्चार्जमे जाएत। कहियो जिनगीमे चैन नहि। घोर-घोर मन होइत जाइत। चाहो सरा कऽ  पाि‍न भऽ गेल। गुन-धुन करैत दोसर पत्र खोललनि। पत्रमे लिखल- ‘डाॅक्टर हेमन्त। काल्हि चारि बजे, पछबरिया पोखरिक पछबरिया महारमे जे पीपरक गाछ अछि, ओहि गाछ लग पहुँचि हमरा आदमीकेँ दू लाख रुपैया दऽ देबै। नञि तँ परसू एहि दुनियाकेँ नहि देखि सकब।’
पत्र पढ़िते केराक भालरि जेकाँ हेमन्तक करेज डोलए लगलनि। सौँसे देहसँ पसीना निकलै लगलनि। थरथराइत हाथसँ पत्र खसि पड़लनि। मनक बिचार विवेक दिशि बढ़ए लगलनि। जहिना कियो सघन बनमे पहुँचि जाइत आ एक दिशि बाघ-सिंहक गर्जन सुनैत तँ दोसर दिशि सुरुजक रोशनी कम भेने अन्हार बढ़ैत जाइत, तहिना हेमन्तकेँ हुअए लगलनि। खाली मन छटपटा गेलनि। की करब, की नै करब, बुझबे ने करथि। जहिना भोथहा कोदारिसँ सक्कत माटि नहि खुनाइत तहिना हेमन्तोक विचार समस्याकेँ समाधान नहि कऽ पबैत। रस्तेमे विलीन भऽ जाइत। कियो दोसर नहि! जे मनक बात सुनैत, जाहिसँ मन हल्लुक होइतनि। तहि काल एकटा अस्पतालक कम्पाउण्डर रिक्शासँ आबि गेटपर पहुँचि बाजल- ‘डाॅक्टर सहाएब....।
कम्पाउण्डरक अवाज सुनि धरफड़ा कऽ उठि हेमन्त गेट दिशि बढ़लाह। गेटपर रिक्शा लागल। रिक्शापर दूटा कार्टून लादल। कम्पाउण्डरो आ रिक्शोबला रिक्शासँ हटि, बीड़ी पिबैत। डाॅक्टर हेमन्तपर नजरि पड़ितहि कम्पाउण्डर हाथक बीड़ी फेकि, आगू बढ़ि प्रणाम करैत कहलकनि- ‘लगले तैयार भऽ चलू, नञि तँ पुलिस आबि कऽ बेइज्जत करत। बेइज्जत तँ हमरो करैत मुदा पुलिस अबैसँ पहिने हम कार्टून रिक्शापर चढ़बैत रही। तेँ किछु ने कहलक। रस्तामे अबै छलौं तँ मोहनबाबूकेँ गरिअबैत सुनलियनि। तेँ देरी नञि करु। नबे बजे गाड़ी अछि। सवा आठ बजैए। अपना दुनू गोटे एक टीममे छी।’
जहिना जूड़िशीतलमे मुइलो नढ़ियापर लाठी पटकैत तहिना कम्पाउण्डरक बात सुनि हेमन्तकेँ होइन। मिरमिराइत स्वरमे बजलाह- ‘दिनेश, हमरा तँ रातिये सँ तते मन खराब अछि जे किछु नीके ने लगैए। एक्को मिसिया देहमे लज्जतिये ने अछि। होइए जे तिलमिला कऽ खसि पड़ब।’
  कम्पाउण्डर- ‘दवाइ खा लिअ। थोड़बे कालमे ठीक भऽ जाएब।’
  हेमन्त- ‘देहक दुख रहैत तखन ने, मनक दुख अछि। ओ कोना दवाइसँ छुटत।’
  हेमन्तक मन आगू-पाछू करैत देखि कम्पाउण्डर कहलकनि- ‘एक तँ ओहिना मन खराब अछि......।’
  कम्पाउण्डरक बात सुनि हेमन्तक मन आरो मौला गेलनि। मनमे अनेको प्रश्न उठए लगलनि। देरी हएत तँ जबाबो देमए पड़त। मुदा घरो छोड़ब तँ नीक नहि हएत। जखने घर छोड़ब तखने उचक्का सभ सभटा लुटि-ढ़गेरि कऽ लऽ जाएत। अपने नै रहने क्लीनिको नहिये चलत। अखन जँ रमेशोकेँ अबैले कहबै, सेहो कोना हएत? काल्हिये तँ ओहो ज्वाइन केलकहेँ। अगर जँ ओकरा माइयेकेँ अबैले कहबनि तँ ओहो जपाले। किएक तँ रोज देखै छिऐ अपहरणक घटना। हड़बड़बैत कम्पाउण्डर कहलकनि- ‘अहाँ दुआरे हमहूँ नै मारि खाएब। हम जाइ छी।’
  अधमड़ू भेल हेमन्त- ‘दू मिनट रुकह। कपड़ा बदलै छी।’
हाँइ-हाँइ कऽ हेमन्त कपड़ा बदलि, बैगमे लुंगी, गमछा, शर्ट, पेन्ट, गंजी रखि बिदा भेलाह। रिक्शापर चढ़िते रहथि आकि पुलिसक गाड़ी पहुँच गेल। तते हड़बड़ा कऽ बिदा भेल रहथि जे मोबाइल, घड़ी, दाढ़ी बनबैक वस्तु छुटिये गेलनि। पुलिसक गाड़ी देखि जे हड़बड़ा कऽ रिक्शापर चढ़ैत रहथि आकि चश्मा गिरि पड़लनि। जेकर एकटा शीशो आ फ्रेमो टूटि गेलनि। पुलिसक गाड़ीकेँ घुमैत देखि मनमे शान्ति एलनि। रिक्शापर चढ़ि थोड़े आगू बढ़ला आकि डाॅक्टर सुनीलकेँ बच्चा सबहक संग बजारसँ डेरा जाइत देखलखिन। सुनील बाबूकेँ देखि कम्पाउण्डरसँ पुछलखिन- ‘सुनीलबाबू सभकेँ ड्यूटी नहि भेटिलनि अछि, की?’
कने काल चुप रहि कम्पाउण्डर कहलकनि- ‘नीक-नहाँति तँ नञि बुझल अछि मुदा बुझि पड़ैए जे, जे सभ अस्पतालमे बेसी समए दइ छथिन हुनका सभकेँ छोड़ि देल गेलनि अछि।’
कम्पाउण्डरक बात सुनि डाॅ. हेमन्तकेँ अपनापर ग्लानि भेलनि। मन पड़लनि सुनील बाबूक परिवार आ जिनगी। सुनील बाबू सेहो डाॅक्टर। दू भाँइक भैयारी। पितो जीविते। चारि बहीन। जे सभ सासुर बसैत। बहीन सबहक सासुर देहातेमे। जइ ठाम पढ़ै-लिखैक नीक बेबस्था नहि। ओना अपनो सुनीलबाबू गामेमे रहि पढ़ने रहथि। डाॅक्टरी पास केलापर गाम छोड़लनि। भाँइयो दरभंगेक हाइ स्कूलमे शिक्षक। परिवारो नमहर। किएक तँ माए-बापक संग दुनू भाइक पत्नी आ बच्चा। तइ परसँ चारु बहीनिक पढ़ै-लिखैबला बच्चा सभ। सुनीलबाबूक जिनगी आन डाॅक्टरसँ भिन्न। मात्र दू घंटा अपन क्लीनिक चलबैत। आठ घंटा समए अस्पतालमे दैथि। अपना क्लीनिकमे चारिटा कम्पाउण्डर आ जाँच करैक सभ यंत्र रखने। जाँच करैक पाइमे सभ कम्पाउण्डरकेँ परसेनटेज दैथि। जाहिसँ काजो अधिक होइत। कम्पाउण्डरोकेँ नीक कमाइ भऽ जाइत तेँ इमानदारीसँ श्रम करैत। ओना सभ काज कम्पाउण्डरे कऽ लैत मुदा हिसाब-बाड़ी आ जाँचक चेक अपनेसँ करैत। जाहिसँ अस्पतालोक जाँच करौनिहार दोहरा कऽ अबैत। आ आन-आन प्राइवेट खानगी जाँच घरक काज सेहो पतराएल। ततबे नहि डाॅ. सुनीलक चरचा सीतामढ़ी, दरभंगा, सुपौल आ समस्तीपुर जिलाक गाम-गामक लोकक बीच होइत। जहिना धारक पानि शान्त आ अनबरत चलैत रहैत, तहिना सुनीलक परिवार। कोनो तरहक हड़-हड़ खट-खट परिवारमे कहियो नै होइत। डाॅक्टर सुनीलक परिवारक संबंधमे सोचैत-सोचैत डाॅक्टर हेमन्त अपनो परिवारक संबंधमे सोचए लगलाह। मन पड़लनि पिता। जे बंगालसँ डाॅक्टरी पढ़ि गामेमे प्रैक्टीश शुरु केलनि। किएक तँ सरकारी अस्पताल गनल-गूथल। मुदा रोगीक कमी नहि। कमी इलाज आ इलाज कर्ताक। नमहर इलाका। दोसर डाॅक्टर नहि। गाम-घरमे ओझा-गुनी, झाँड़-फूँक, जड़ी-बुट्टीसँ इलाज चलैत। ओना हेमन्तक पिता डाॅक्टर दयाकान्त सभ रोगक जानकार, मुदा तीनिये तरहक रोगक टूटल हाथ-पाएरक पलस्तर, साँपक बीख उताड़ब आ बतहपन्नीक इलाजसँ पलखति नहि। तेँ ओझो-गुनीक चलती पूर्ववते। कमाइयो नीक। जाहिसँ दू महला मकानो आ पचास बीघा खेतो किनलनि। तीनू बेटोकेँ खूब पढ़ौलनि। जेठका वकील, मझिला डाॅक्टर आ छोटका प्रोफेसर। जाधरि दयाकान्त जीबैत रहलखिन ताधरि गामो आ इलक्कोमे सुसभ्य आ पढ़ल लिखल परिबारमे गिनती होइन। तीनू भाँइयोक बीच अगाध स्नेह। जेठ-छोटक विचार सबहक मनमे। जाहिसँ माइयो-बाप खुशी। ओना माए पढ़ल-लिखल नहि मुदा परम्परासँ सभ बुझैत। जखैनकि पिता आधुनिक शिक्षा पाबि आधुनिक नजरिसँ सोचैत। तीनू भाँइक मेहनति देखि पिताकेँ ई खुशी होइत जे परिवारक गाड़ी आगू मुँहे नीक जेकाँ ससरत। बेटा सबहक बिआह इलाकाक नीक-नीक परिवारमे पढ़ल-लिखल लड़कीक संग केलनि। दहेजो नीक भेटलनि।
दयाकान्त मरि गेलखिन मुदा स्त्री जीविते। तीनू भाँइ अपन-अपन जिनगीमे ओझराएल। अपन-अपन परिवारक संग रहैत, घरपर खाली  माइये टा। तीनू भाँइक परिवारक गारजनी स्त्रीक हाथमे। एक-दोसरसँ आगू बढ़ैक सदिखन प्रयास करैत। जाहिसँ गामक संपतिपर नजरि जाइ लगलनि। गामक सम्पति अधिकसँ अधिक हाथ लगए एहि भाँजमे बौद्धिक व्यायाम नीक-नहाँति करैत। मुकदमा बाजी शुरु भेल। एकटा कोठरी आ दू बीघा खेत माएकेँ कोटसँ भेटलनि। बाकी घरो आ खेतो जब्त भऽ गेल। एक सए चौवालीस लगि गेलै। पुलिसक ड्यूटी भऽ गेलै। बीस बर्खक बाद डाॅक्टर हेमन्त लिखि कऽ कोर्टमे दऽ देलखिन जे हमरा एहि सम्पतिसँ कोनो मतलब नहि।
दरभंगा प्लेटफार्मपर डाॅ. हेमन्त देखलनि जे दर्जनो डाॅक्टर जा रहल छी। दरजनो कम्पाउण्डरो छै। मुदा सबहक मुँह लटकल। एक्को मिसिया मुँहमे हँसी नहि। जहिना ठनका ठनकलापर सभ अपने-अपने माथपर हाथ रखि साहोर-साहोर करैत तहिना बाढ़िक इलाकाक ड्यूटीसँ सबहक मनपर भारी बोझ, जाहिसँ सभ मने-मन कबुला-पाती करैत। हे भगबान, हे भगवान करैत। कियो-ककरो टोकथि नहि। आँखि उठा कऽ देखि फेर निच्चा कऽ लेथि।
निरमली जाइवाली गाड़ी पहुँचल। गाड़ी पहुँचिते सभ हड़बड़ करैत, अपनो आ समानो सभ उठा-उठा गाड़ीमे चढ़ौलनि। हेमन्तो चढ़लाह। कम्पाउण्डरकेँ बीड़ीक तृष्णा लगलै। ओ दुनू कार्टून समान चढ़ा उतरि कऽ  पानक दोकान दिशि बढ़ल। तहि काल पनरह-बीसटा तरकारीबाली आबि, डिब्बामे कियो छिट्टा चढ़बैत तँ कियो मोटा। तेसर यात्री सभ, तरकारीवालीक काँइ-कच्चर सुनि-सुनि आगू बढ़ि जाइत। कम्पाउण्डरो हाँइ-हाँइ कऽ चारि दम बीड़ी पीबि, दौगल आबि बोगीक आगूमे ठाढ़ भऽ गेल। तरकारीवाली सबहक झुण्ड देखि कम्पाउण्डरकेँ मनमे हुअए लगलै जे हमरा चढ़िये ने हएत। चुपचाप निच्चाँमे ठाढ़। गाड़ीक भीतर बैसल एकटा पसिन्जर उठि कऽ आबि एकटा मोटाकेँ निच्चाँ धकेल देलक। जइ तरकारीवालीक मोटा खसल रहै ओ ओहि आदमीक  गट्टा पकड़ि निच्चा उतारल। निच्चा उतरितहि घोरन जेकाँ सभ तरकारीवाली लुधकि गेल। गारियो खूब पढ़लक आ मारबो केलक। बोगीक मुँह खाली देखि कम्पाउण्डर चढ़ि गेल। गाड़ीकेँ पुक्की दैतहि सभ हाँइ-हाँइ कऽ चढ़ए लगल मुदा झगड़ा नै छुटलै। गारि-गरौबलि होइते रहल। जते हल्ला सैाँसे गाड़ीमे, लोकक बजलासँ होइ ओते खाली ओहि एक्के डिब्बामे होइ। अकछि कऽ डाॅक्टर हेमन्त सीट परसँ उठि समान रखैबला उपरकापर जा कऽ बैगकेँ  सिरमामे रखि सुति रहलाह। ओंघराइते अपना जिनगीपर नजरि गेलनि। मने-मन सोचै लगलाह जे पिताजी तँ हमरे सबहक सुखले ने ओते सम्पति अरजलनि। मुदा की हमरा सभकेँ ओहि सम्पतिसँ सुख होइ अए ? अपनो कमाइ तँ कम नहि अछि। मुदा चौबीस घंटाक दिन-रातिमे चैनसँ कते समए बीतैत अछि ? जहिना खाइ काल फोन अबै अए तहिना सुतै काल। की यएह छी सुखसँ जिनगी बिताएब ? मुदा एहि प्रश्नक उत्तर सोचमे ऐबे ने करनि। फेर मन उनटि कऽ  जिनगीक पाछु मुँहे घुरलनि। मनमे एलनि जे, जे माए धाकड़ सन-सन तीन बेटाक छी, बेचारीकेँ कियो एक लोटा पानि देनिहार नहि। किएक नहि बेचारीक मनमे उठैत हेतनि जे एहि बेटासँ बिनु बेटे नीक ? हमरो ऐना नै हएत, तेकर कोन गारंटी।
गाड़ी घोघरडिहा पहुँचल। यात्री सभ उतड़बो करए आ बजबो करए जे किसनीपट्टीसँ आगू लाइन डूबि गेल छै, तेँ गाड़ी आगू नै बढ़त। कम्पाउण्डर उठि कऽ  हेमन्तक पाएर डोलबैत बाजल- ‘डाॅक्टर सहाएब, नीन छिऐ।’
  ‘नै’
  ‘सभ उतरि रहल अछि। गाड़ी आगू निरमली नञि बढ़त। उतरि जाउ?’
कम्पाउण्डरक बात सुनि हेमन्तक मनमे अस्सी मन पानि पड़ि गेलनि। मुदा उपाए की? अधमड़ू जेकाँ उतरलथि। प्लेटफार्मपर रिक्शाबला, टमटमबला हल्ला करैत जे कोसीक पछबरिया बान्हपर जाएब।’
एकटा रिक्शाबलाकेँ हाथक इशारासँ कम्पाउण्डर सोर पाड़ि पूछलक- ‘हम सभ लछमीपुर जाएब। तोरा बुझल छह?’
  रिक्शाबला- ‘हमरो घर लछमियेपुर छी। बाढ़िक दुआरे ऐठाम रिक्शा चलबै छी।’
  कम्पाउण्डर- ‘अइ ठीनसँ कना-कना रस्ता हेतै? ’
  रिक्शाबला- ‘अइ ठीनसँ हम बान्हपर दऽ आएब। ओइ ठीनसँ नौ भेटत, जे लछमीपुर पहुँचा देत। अइ ठीनसँ हम नेने जाएब आ अपने भाइयक नौपर चढ़ा देब।’
  कम्पाउण्डर- ‘बड़बढ़िया, कार्टून चढ़ाबह।’
सभ कियो रिक्शापर चढ़ि बिदा भेल। पुबरिया गुमती लग, जहिठाम चाउरक बड़का मिलक खंडहर अछि, पहुँचि रिक्शावलाकेँ हेमन्त पुछलखिन- ‘लछमीपुर केहेन गाम अछि?’
  रिक्शाबला- ‘बड़ सुन्दर गाम अछि। सन्मुख कोसीसँ मील भरि पछिमे अछि। गामक सभ मेहनती। बाढ़िक समएमे हम सभ रिक्शा चलबै छी आ जखैन पाइन सटकि जाइ छै तखैन जा कऽ खेती करै छी। गाइयो-महीस पोसने छी। कते गोरे नौ चलबैए आ कते गोरे मछबारि करैए। हमरा गामक लोक पंजाब, डिल्ली नञि जाइए। आन-आन गाममे तँ पंजाब, डिल्लीक धरोहि लागि जाइ छै। से हमरा गाममे नञिए। माछक नाम सुनिते कम्पाउण्डर पुछलक- ‘तब तँ माछ खूब सस्ता हेतह?’
  ‘हँ, कोनो की जीरा रहै छै। सभ अनेरुआ। एहेन सुअदगर माछ शहर-बजारमे थोड़े भेटत। शहर-बजारक माछ तँ सड़ल-सुड़ल पानिक डबरा महक रहैए।’
कोसीक पछबरिया बान्हपर पहुँचते रिक्शाबला अपन भाइयक घाटपर रिक्शा लऽ गेल। भाइयक रिक्शा देखितहि भागेसर नाव परसँ बान्हपर आएल। दुनू भाँइ दुनू कार्टून नावपर रखलक। अधा नावपर तख्ता बिछौने आ अधा ओहिना। तख्तापर पटेरक पटिया बिछाओल। नावपर बैसि हेमन्त पूब मुँहे तकलनि तँ बुझि पड़लनि जे समुद्रमे जा रहल छी। सौंसे देह सर्द भऽ गेलनि। मनमे डर पैसि गेलनि जे कोना अइ पाइनमे जाएब। मन पड़लनि दरभंगाक पीच परक कार। मुदा एक्सिडेंट तँ ओतौ होइ छै। ओतौ लोक मरैत अछि। फेर मनमे एलनि जे महेन्द्रूक नाव जेकाँ नावमे इंजनो नै छै। जँ कहीं बीचमे लग्गी छुटि-टुटि जेतै तँ भसिये जाएब। कतऽ जाएब कतऽ नहि। अनायास मनमे एलनि जे अखन धरि कम्पाउण्डरकेँ नोकर जेकाँ बुझै छेलिऐ ओ उचित नहि। ई तँ छोट भाइक तुल्य अछि। नव विचार मनमे उठितहि कम्पाउण्डरकेँ कहलखिन- ‘बौआ, धन्य अछि ऐठामक लोक। जे सचमुच देवीक पूजो करैत अछि आ लड़बो करैत अछि। किएक ने जिबठगर हएत।’
नौ खुगलै, मांगि सोझ कऽ नञिया –नाविक कमलेसरीक गीत उठौलक। नञियाक लग्गी उठबैत आ पाइनमे रखैत देखि हेमन्त मने-मन सोचए लगलाह जे एहन मेहनति केनिहारकेँ कोन जरुरत दवाइ आ व्यायामक छैक। मन पड़लनि रामेश्वरम। समुद्रक झलकैत पानि। जहिमे लहरि सेहो उठैत। तहिना तँ ओहूठाम पानिक लहरि अछि। फेर मन पड़लनि जेसलमेरक बाउल। एहिना उज्जर धप-धप कतौसँ कतौ बाउल। कमलेसरीक गीत समाप्त होइतहि नाविक कोसीक गीत उठौलक। अजीब साजो। जहिना नावमे खट-खटक अवाज तहिना लग्गीक। लग्गीक पानि‍ देहोपर खसै मुदा तेँ की ओकर पसीना निकलब रुकलै।
डाॅ. हेमन्तक मन फेर उनटलनि। मिलबै लगलाह समुद्रक लहरि आ कोसीक धाराक। समुद्र रुपी समाजमे सेहो समुद्र जेकाँ लहरियो उठैत अछि आ धारक बेग जेकाँ सेहो रहैत अछि। कहियो काल समुद्रक लहरि जेकाँ सेहो लहरि समाजमे उठैत अछि मुदा ओ धीरे-धीरे असथिर भऽ जाइत अछि। मुदा कोसीक धार जेकाँ जे बेग चलैत ओ पैघसँ पैघ पहाड़केँ तोड़ि धारो बना दैत आ समतल खेतो। पुरानसँ पुरान गामक अधला परम्पराकेँ तोड़ि नवमे बदलि दैत। जहिना मौसम बदललापर गाछक पुरान पात झड़ि नव पातसँ पुनः लदि जाइत, तहिना। असीम विचारमे डूबल हेमन्तक मुँह अनायास नाविककेँ पुछलक- ‘कते दूर अहाँक गाम अछि?’
  नञिया- ‘छअ कोस।’
  ‘कते समए जाइमे लागत ?’
  ‘भट्ठा दिस जाएब। तेँ जलदिये पहुँच जएब।’
जल्दीक नाम सुनि हेमन्तक मनमे आशा जगल। मुदा ओ आशा लगलेमे जाए लगलनि। किएक तँ सैाँसे पाइनिये देखथि, गाम-घरक कतौ पता नहि। चिन्तित भऽ चुपचाप भऽ गेलाह। अपना सुइढ़मे नञिया गीत गबैत। मनमे कोनो विकारे नहि। मुदा हेमन्तकेँ कखनो गीत नीको लगनि आ कखनो झड़कबाहियो उठनि। तहि काल एकटा मुरदा भसल जाइत। सबहक नजरि ओहि मुरदापर पड़ल। मुरदा देखि हेमन्तक नजरि अस्पतालक मुरदापर गेलनि। मुदा दुनूक दू कारण। एकक जिनगीक अंत रोगसँ तँ दोसराक बाढ़िसँ। नब-नब समस्या उठि-उठि हेमन्तक मनकेँ घोर-मट्ठा कऽ देलकनि। मनक सभ विचार हराइ लगलनि। तहि बीच एकटा किलो चारिएक रौह माछ कुदि कऽ नावमे खसल। माछ देखि हेमन्तोक आ कम्पाउण्डरोक मन चट-पट करए लगलनि। लग्गीकेँ मांगिपर राखि भागेसर माछकेँ पकड़ि, पानि उपछैबला टीनमे रखलक। माछकेँ टीनमे रखि नञिया बाजल- ‘अहाँ सबहक जतरा बनि गेल।’
नञियाक शुभ बात सुनि हेमन्तक मन फेर ओझरा गेलनि। मनमे उठए लगलनि जे यात्रा ककरा कहबै। घरसँ बिदा भेलहुँ, तकरा कहियै आकि कार्यस्थल तक पहुँचैकेँ कहियै आकि काज सम्पन्न कऽ घर पहुँचलापर, तकरा। तहूसँ आगू जे काजक बीचोमे नव काज उत्पन्न भऽ जाइत। फेर नञियाकेँ पुछलखिन- ‘आब कते दूर अछि?’
हाथ उठा आंगुरसँ दछिन दिस देखबैत कहलकनि- ‘वएह हमर गाम छी। गोटे-गोटे जमुनीक गाछ देखै छिऐ। अधा कोस करीब हएत।’
अधा कोस सुनि कम्पाउण्डर चहकि कऽ बाजल- ‘डाॅक्टर सहाएब, पाँच बजैए। अधा घंटा आरो लागत। साढ़े पाँच बजे तक पहुँचि जाएब।’
भने सबेरे-सकाल पहुँचि जाएब। मुदा अकासमे चिड़ै सभ नहि उड़ैत। किएक तँ चिड़ै ओहि ठाम उड़ैत जहि ठाम रहैक ठौर होइत। मुदा से तँ नहि। सौँसे बाढ़िये पसरल। मुदा तैयो गोटे-गोटे मछखौका चिड़ै जरुर उड़ैत। लछमीपुर दिशि अबैत नावकेँ देखि गामक धियो-पूतो, स्त्रीगणो आ गोटे-गोटे पुरुखो घाटपर ठाढ़ भऽ एक दोसरसँ कहैत।
  ‘चाउर-आँटाबला छिऐ।’
  ‘नुओ-बसतर हेतै।’
  ‘तिरपालो हेतै।’
  ‘बड़का हाकीम सभ छिऐ।’
घाटपर आबि नाव रुकल। मुदा पेंट-शर्ट पहिरने डाॅक्टर आ कम्पाउण्डरकेँ देखि जनिजाति सभ मुँह झापए लागलि। मरद सभ सहमि गेल। घीया-पूता डरा गेल। नावकेँ बान्हि नञिया सुलोचनाकेँ कहलक- ‘गै सुलोचना डाकडर सैब सभ छथिन। बक्सामे दवाइ छिऐ। हम दवाइ उताड़ै छी तूँ टीन उतार। टीनमे एकटा नमहर माछ छौ। खूब नीक जेकाँ माछकेँ तरि डाकडर सहैबकेँ खुआ दहुन।’
माछ उतारि सुलोचना अंगना लऽ गेल। टीन रखि बाड़ीक कलपर आबि हाथ धोए, आँचरसँ हाथ पोछि, इसकूलक ओछाइन झाड़ि बिछबै लागलि। बिछान बिछा, दौड़ि कऽ आंगनसँ बड़का जाजीम आ दूटा सिरमा आनि लगौलक। हेमन्तो आ दिनेशो आगूमे ठाढ़। मुदा ओते लोकक बीच हेमन्तोक आ दिनेशोक नजरि सुलोचनेक देह आ काजपर नचैत। बिछान बिछा सुलोचना हेमन्तकेँ कहलकनि- ‘डाॅक्टर सहाएब, बिछान बिछा देलहुँ, आब आराम करु।’
दिनेश चुप्पे। मुदा हेमन्त बजलाह- ‘बुच्ची, देह भारी लगैए। ओना नावपर आरामेसँ एलहुँ। मुदा तैयो देह भरिआएल लगैए। पहिने नहाएब।’
‘बड़बढ़िया’ कहि सुलोचना आंगन बाल्टी-लोटा अानए गेलि। आंगनसँ बाल्टी-लोटा नेने कलपर पहुँचल। दुनूकेँ माटिसँ माँजि, बाल्टीमे लोटा रखि, पाइन भरि, हेमन्तकेँ कहलक- ‘डाॅक्टर सहाएब, नहा लिअ।’
चहारदेबालीसँ घेरल टंकीपर नहाइबला डाॅक्टर हेमन्त खुला धरती-अकासक बीच नहाइले जएताह। तेँ किछु सोचै-बिचारैक प्रश्न मनमे उठि गेलनि। मुदा बहुत सोचैक जरुरत नहि पड़लनि। अपना-अपना उमरबला सभकेँ डोरीबला पेंट तइ परसँ ककरो लुंगी तँ ककरो चारि हत्थी तौनी पहिरने देखलखिन। ओहो सएह केलनि। मुदा बारह बर्खक सुलोचना कल परसँ हटल नहि। मातृत्वक दुआरिपर पहुँचल सुलोचनामे फुलक टूस्सी जरुर अबि गेल छलै। मुदा हेमन्तोक मनमे डाॅक्टरक विचार। ओना डाॅक्टर हेमन्त शरीरक सभ अंगक गुण-धर्म बुझैत मुदा एहनो तँ वस्तु अछि जे गर्म हवाक रुपमे रहैत। जहिमे आनन्द आ सृजनक गुण होइत। सुलोचनोमे फूलक कोढ़ीक जे सुगंधक वाल्यावस्थामे प्रस्फुटित होइत, महमही हवामे। एक लोटा माथपर पानि ढ़ारलाक बाद हेमन्तक मनमे आएल जे अखन हम दुनियाक ओहि धरतीपर छी जहि ठाम जीवन-मरण संगे रहैत अछि। मुदा तहिठाम एहेन सौम्य, सुशील अल्हड़ बाला कते खुशीसँ चहचहा रहल अछि।
तीन साल पहिलुका बात छिऐ। जहि बाढ़िमे कतेक गाम, कतेको मनुष्य आ कतेको सम्पति नष्ट भेल छल। तेँ की? जे बचल अछि ओ ओहि गामकेँ छोड़ि देत। कथमपि नहि। मुदा बाढ़ि अनहोनी नै रहै। बरेजक फाटक खोलल गेलै। फाटको खोलैक मजबुरी रहै। किएक तँ बरेजक उत्तर तते पानिक आमदनी भऽ गेलै जे दुर्दशाक अंतिम शिखरपर पहुँच सकैत छलै। मुदा सुदूर गाममे जानकारीक साधन नहि। ने बँचैक उपए। कोसीक दुनू बान्हक बीच समुद्र जेकाँ पानि पसरि गेलै। थाहसँ अथाह धरि। कुनौलीसँ दछिन, कोसी धारक कातमे एकटा गाम। ओहि गामक सुलोचना। जेकर सभ कुछ मनुखसँ घर धरि दहा गेलै। मुदा सुलोचना जे बँचल से पढ़ैले कुनौली गेल छलि। स्कूलसँ घर जाइ काल बाढ़िक दृश्य देखलक। दृश्य देखि बान्हेपर बपहारि कटए लागलि। तहि काल लछमीपुरक चारि गोटे, बजारसँ समान खरीद नाव लग अबैत रहए। सुलोचनाकेँ कनैत देखि जीयालाल पुछलकै- ‘बुच्ची, किअए कनै छेँ?’
कनैत सुलोचना- ‘बाबा, हम पढ़ैले गेल छेलौं। तै बीच हमर गामे दहा गेल। आब हम कतऽ रहब?’
जीयालाल- -‘हमरा संगे चल। जहिना बारहटा पोता-पोतीकेँ पोसै छी तहिना तोरो पोसबौ।’
जीयालालक विचार सुनि सुलोचनाक हृदएमे जीवैक आशा जगल। कानब रुकि गेलै। मुदा कखनो-काल हिचकी होइते। नावपर सभ समान रखि चारु गोटे बान्हपर आबि चीलम पीबैक सुर-सार करए लगल। एक भागमे सुलोचनो किताब नेने बैसलि। बटुआ खोलि रघुनी चीलम, कंकड़क डिव्वा आ सलाइ निकालि बीचमे रखलक, एक गोटे चीलमक ठेकी निकालि, चीलमो आ ठेकियोकेँ साफ करए लगल। दोसर गोटे डिब्बासँ कंकड़ निकालि तरहत्थीपर औंठासँ मलए लगल। चीलम साफ भेलै। ओहिमे ठेकी दऽ कंकड़बला हाथमे देलक। कंकड़बला चीलममे कंकड़ बोझि दुनू हाथसँ चीलमक पैछला भाग पकड़ि मुहमे भिरौलक। मुँहमे भिरबितहि रघुनी सलाइ खरड़ि कंकड़मे लगबै लगल। दू-चारि बेर मुँहक इंजनसँ प्रेशर दैते चीलम सुनगि गेल। चीलमकेँ सुनगितहि तते जोरसँ दम मारलक जे धुआँक संग-संग धधरो उठि गेलै। मुदा चीलमक दुषित हवासँ धधरा मिझा गेल। बेरा-बेरी चारु चीलम पीबि मस्त भऽ नाव दिशि बिदा भेलि। साँझू पहरकेँ  जहिना गाए-महीस बाधसँ घर दिशि अबैत। जकरा पाछु-पाछु छोट-छोट नेरु पड़ड़ू झुमैत, लुदुर-लुदुर मगन भऽ चलैत, तहिना सुलोचना लछमीपुरबला सबहक संगे पाछु-पाछु नावपर पहुँचल। नावपर चढ़िते लग्गा चलौनिहार कोसी महरानीक दुहाइ देलक। सुलोचनो बाजलि- ‘जय।’
नाव खुगल। लछमीपुरक चारु गोटेक मन सुलोचनाक जिनगीपर। मुदा सुलोचनाक परिवारक बिछोह दुखसँ सुख दिशि जाए लगल। जे सुलोचना गाम आ परिवारक कतौ अता-पता नञि देखलक, ओहि सुलोचनाक मनमे उठए लगल जे गाम-घर भलेहीं दहा गेल मुदा माए-बाप जरुर जीवैत हएत। किएक तँ मनुक्ख निर्जीव नहि सजीव होइत। बुद्धि-विवेक होइत। तेँ ओ दुनू गोटे जरुर कतौ जीबैत हएत। जे आइ नै काल्हि जरुर मिलबे करत। तेँ मनमे जिनगी भरिक दुख नहि, किछु दिनक दुख अछि। जे कहुना नहि कहुना कटिये जाएत। नाव लछमीपुर पहुँचल। जीयालालक बारहोटा पोता-पोती दौड़ि कऽ नाव लग आइल। पोता-पोतीकेँ देखि जीयालाल कहलक- ‘बाउ, तोरा सभले एकटा बहीन नेने ऐलियह। सुलोचना पोता-पोती सबहक पहुन भऽ गेलि। दोसर दिन जीयालाल एकटा घर बना, सुलोचनाकेँ गामक बच्चा सभकेँ पढ़बैले कहलक। गामक बच्चा सभकेँ सुलोचना पढ़बै लागलि। वएह सुलोचना।
हेमन्तो दिनेशो नहाएल। नहाकेँ जाबे हेमन्त कपड़ा बदलि, केश सरिया, तैयार भेलाह ताबे सुलोचनो आ जीयालालक जेठकी पोती कमलियो चूड़ा भूजि, माछ तड़ि लेलक। दूटा थारीमे चूड़ाक भुजा आ तड़ल माछ साँठि दुनू बहीन दुनू थारी नेने हेमन्त लग पहुँचि आगूमे रखि देलक। बड़का फुलही थारी तइमे चूड़ाक उपरमे माछक नमहर-नमहर तड़ल कुट्टिया पसारल। थारी रखि कमली पाइन अानए गेलि। सुलोचना आगूमे बैसि गेलि। दुनू गोटे खाइत-खाइत दसो माछक कुट्टिया आ थारियो भरि चूड़ा खा लेलनि। शुद्ध आ मस्त भोजन। पानि पीबि ढ़कार करैत दिनेश बाजल- ‘डाॅक्टर सहाएब, आइ धरि हम एते नञि खेने छलौं।’
  हेमन्त- ‘से तँ हमरो बुझि पड़ैए।’
  सुलोचना- ‘डाॅक्टर सहाएब, चाहो पीबै?’
  हेमन्त- ‘पीबै तँ जरुर मुदा दू घंटाक बाद। ताबे किछु काज करब। ओना साँझ पड़ि गेल मुदा जाबे फरिच छै ताबे दसो-पाँचटा रोगी जरुर देखि लेब।’
  सुलोचना- ‘अच्छा, अहाँ तैयार होउ, हम रोगीसभकेँ बजौने अबै छी।’
कम्पाउण्डर कार्टून खोलि, दवाइ निकालि पसारि देलक। रोगी अाबए लगल। रोगी देखि-देखि हेमन्त कम्पाउण्डरकेँ कहैत जाथिन आ कम्पाउण्डर दबाइ दैत जाए। अस्पताल जेकाँ तँ सभ रंगक रोगी नहि। किएक तँ बाढ़िक इलाका तेँ गनल-गूथल रोग। दवाइयो तेहने। तीनिये दिनमे सौँसे गामक रोगीकेँ देखि डाॅक्टर हेमन्त निचेन भऽ गेलाह। मुदा सात दिनक डयूटी। तहूमे कठिन रास्ता। मुदा पाइन टूटए लगलै। पाँचम दिन जाइत-जाइत रास्ता सूखि गेल। मुदा थाल-खिचार रहबे करै।
आठम दिन भोरे हेमन्त सुलोचनाकेँ कहलखिन- ‘बुच्ची, आइ हम चलि जाएब।’
सुलोचना- ‘ई तँ मिथिला छिऐ डाॅक्टर सहाएब, बिना किछु खेने-पीने कना जाएब?’
कहि सुलोचना चाह बनबै गेलि। एकटा दोस्तसँ भेँट करए कम्पाउण्डर गेल। असकरे हेमन्त। मने-मन सोचै लगलथि जे सात दिनक समए जिनगीक सभसँ कठिन आ आनन्दक रहल। ई कहियो नै बिसरि सकै छी। बिसरैबला अछियो नहि। आइ धरि एहेन जिनगीक कल्पनो नञि केने छलहुँ, जे बीतल। एहेन मनुक्खक सेवो करैक मौका पहिल बेर भेटल। मौके नहि भेटल, बहुत किछु देखैक, भोगैक आ सीखैक सेहो भेटल। आइ धरि हम रोगीक, सचमुच जकरा जरुरत छै, सेवा नञि केने छलहुँ, खाली पाइ कमेने छलहुँ। गाम-घरमे जकरा पाइ छै वएह ने दरभंगा इलाज करबै जाइत अछि। जकरा पाइ नञि छै ओ तँ गामेमे छड़पटा कऽ मरैत अछि।
तहि बीच सुलोचना चाह नेने आइलि। कप बढ़बैत बाजलि- ‘मन बड़ खसल देखै छी, डाॅक्टर सहाएब।’
  हेमन्त- ‘नहि! कहाँ। एकटा बात मनमे आबि गेल तेँ किछु सोचै लगलहुँ।’
  सुलोचना- ‘अइ ठीन केहेन लगै अए डाॅक्टर सहाएब?’
  सुलोचनाक प्रश्नक उत्तर नहि दऽ हेमन्त चुप्प रहलाह।
  हेमन्तकेँ चुप देखि सुलोचना बाजलि- ‘हम तँ बच्चा छी डाॅक्टर सहाएब तेँ बहुत नै बुझै छी। मुदा तइयो एकटा बात कहै छी। जहिना चीनी मीठ होइत अछि आ मिरचाइ कड़ू। दुनूमे कीड़ा फड़ै छै आ ओहिमे जीवन-यापन करैत अछि। मुदा चीनीक कीड़ाकेँ जँ मिरचाइमे दऽ देल जाए तँ एको क्षण नञि जीवित रहत। उचितो भेलै। मुदा की मिरचाइक कीड़ा चीनीमे देलाक बाद जीवित रहत? एकदम नञि रहत। तहिना गाम आ बाजारक जिनगी होइत।’
सुलोचनाक बात सुनि डाॅक्टर हेमन्त मने-मन सोचए लगलथि जे बात ठीके कहलक। अहिना तँ मनुक्खोमे अछि। मुदा ओ हएत कना। जाबे समाजिक जीबनमे समरसता नञि आओत ताबे एहिना होइत रहत।
दस बजे भोजन कऽ दुनू गोटे -हेमन्त आ दिनेश- लुंगी, गंजी पहीरि सभ कपड़ो आ जूत्तोकेँ बैगमे रखि, पाएरे बिदा भेलाह। हेमन्तक बैग सुलोचना आ दिनेशक बैग कमली लऽ पाछु-पाछु चललि। किछु दूर गेलापर हेमन्त कहलखिन- ‘बुच्ची, आब तों सभ घुरि जा।’
हेमन्तक बात सुनि सुलोचनाक आँखि नोरा गेल। डाॅक्टर हेमन्तकेँ बैग पकड़बैत बाजलि- ‘अंतिम प्रणाम, डाॅक्टर सहाएब।’
एकाएक हेमन्तक हृदएसँ प्रेमक अश्रुधारा प्रवाहित हुअए लगलनि। मुँहसँ प्रणामक उत्तर नञि निकललनि। मूड़ी निच्चाँ केने आगू बढ़ि गेलाह। मुदा किछुए दूर आगू बढ़लापर बुझि पड़लनि जे चारिटा तीर -सुलोचना आ कमलीक आँखि- पाछुसँ बेधि रहल अछि। पाछु उनटिकेँ तकलनि तँ देखलखिन जे दुनू गोरे ठाढे़ अछि। मन भेलनि जे हाथक इशारासँ जाइले कहि दिअए मुदा अपना रुपपर नजरि पड़ि गेलनि। खाली पाएर जाँघ तक समटल –उलटा कऽ मोड़ल- लुंगी, देहमे सेन्डो गंजी, माथक केश फहराइत। तइ परसँ थालक छिटका घुट्ठीसँ लऽ कऽ माथ धरि पड़ल। हाथक इशारासँ सुलोचनाकेँ सोर पाड़लखिन। दुनू -सुलोचनो आ कमलियो- हँसैत आगू बढ़ल। लगमे देखि हेमन्तोक हृदएमे हँसी उपकल। मुस्की दैत हेमन्त- ‘बुच्ची, हम अपन दरभंगाक पता कहि दइ छिअह। अबिहह।’
सुलोचना- ‘हम तँ शहर-बजारमे हराइये जाएब डाॅक्टर सहाएब। अहाँ जाबे हमरा गाममे छेलौं ताबे बुझि पड़ैत छल जे दरभंगा अस्पताल गामेमे अछि।’
कहि पाएर छुबि घुरि गेल।
बान्हपर आबि दुनू गोरे थाल-कादो धोए, पेन्ट-शर्ट पहीरि स्टेशन दिशि बढ़लाह। गाड़ी पकड़ि दरभंगा पहुँचि गेलथि।

Friday, January 9, 2009

नवेन्दु कुमार झा

नवेन्दु कुमार झा
आब प्रवासक आश-
कोसी क्षेत्रमे आएल भीषण बाढ़िसँ ई क्षेत्र तबाह भऽ गेल अछि। वर्तमान परिदृश्य महान कथाकार फणीश्वर नाथ रेणुक “परती परिकथा” दिस लोक ध्यान खींचि रहल अछि। कोसीक मारि सहैत कतेको लाखक आबादीकेँ ओहि दिन राहत भेटल छल जखन कि बिहारक शोक कहल जाएवाला नदी कोसीपर तटबंधक निर्माण भेल छल। आशा जागल जे ई क्षेत्र आब सोना उगलत। ई भेबो कएल। मुदा १८ अगस्त २००८ केँ पूरा परिदृश्य बदलि गेल। सरकारक लापरवाही चाहे ओ केन्द्र सरकारक हो कि राज्य सरकारक ई क्षेत्र एक बेर फेरसँ बालूक ढेर बनि गेल। जे नदी एहि क्षेत्रकेँ बसौलक ओहि नदीक कारण एक बेर फेर क्षेत्र विरान भऽ गेल। विकास दौरसँ ई क्षेत्र चलि गेल पचास वर्ष पाछाँ।
एशिया क्षेत्रमे सभसँ उपजाऊ मानल जाएबला एहि क्षेत्रमे एखन बाँचल अछि तँ ओऽ छथि अपन घर-घरारी छोड़ि शरणार्थी बनल बाढ़ि पीड़ित आ पसरि रहल बिमारी आ बाँचल अछि जिनगी कटबाक आशा। मलेरिया सन महामारीक लेल बदनाम एहि क्षेत्रमे किछु वर्षसँ जे हरियरी देखाइत छल ताहिपर पानि पसरि गेल। गहूम, मकई आ धानक लहराइत खेत देखबाक चिन्तामे लागल अछि लोक। खेतीपर निर्भर एहि क्षेत्रक अर्थव्यवस्थापर जे घाव भेल अछि से कतेक दिनमे भरत से निश्चित नहि बुझि पड़ैत अछि।
ओना तँ एहि क्षेत्रक एकटा पैघ आबादी एखनो प्रवासी छल मुदा जे एखन छलाह तिनको ई बाढ़ि प्रवासी बनबापर विवश कएलक अछि। खेतीक बाद जाहिसँ एहि ठामक अर्थव्यवस्था चलैत छल ओ अछि मनीआर्डर। मनीआर्डरक भरोसे लोक कहुना जिनगी कटैत छल। आब ओकरो अपन जिनगी पहाड़ लागि रहल अछि। राहत शिविर आ सुरक्षित स्थानपर शरण लेने एकटा पैघ आबादीकेँ अपन भविष्य प्रवसी बनबामे बुझि पड़ैत अछि। ओऽ आब बिचारि लेने अछि जे घर गृहस्थीकेँ पटरीपर आनब बिनु प्रवासी बनने संभव नहि अछि। कोसी क्षेत्रक कतेको रेलवे-स्टेशनपर लगातार बढ़ि रहल भीड़ एकर प्रमाण अछि। कतेको माय-बाप-भाइ-बहिन अपन-अपन परिजनकेँ घर-घरारीक चिन्ता नहि करबाक आशा देआ प्रदेशक लेल बिदा कऽ रहल छथि। किएक तँ जिनगी कटबाक एकमात्र रास्ता ओकरा मनीआर्डर बुझि पड़ैत अछि। एहि ठाम तँ सभ किछु उजड़ि गेल अछि। आब एकमात्र आशा प्रवासी बनि रहल परिजनक मनीआर्डर मात्र अछि जाहिसँ फेरसँ घर गृहस्थीकेँ पटरीपर आनल जाऽ सकैत अछि। ओकरा एहि बातक कोनो चिन्ता नहि अछि जे देशक कतेको भागमे बिहारी सभक विरुद्ध गतिविधि चलाओल जा रहल अछि। ओऽ तँ आब ई मानि लेलक अछि जे एहि ठाम एखन कोन जिन्दा छी जे प्रदेशमे कोनो अनहोनी घटनाक शिकार भऽ जाएब। ई एहि बातक प्रमाण अछि जे पेट आगिक सोझाँ प्रदेशमे होमए वाला कोनो तरहक अनहोनीक कोनो मोल नहि अछि। अपन आँखिसँ कोसीक धारमे बहैत अपन लोक, आर-परोस आ परिचितक लहाससँ एहि क्षेत्रक लोक हृदय पाथर भऽ गेल अछि। बाँचल जिनगी कटबाक लेल मृत्युक सामना करएसँ आब कोनो घबराहटि ओकरा नहि छै।
कोसीक तटबन्ध टुटलाक बाद आब सरकारी स्तरपर जाँच, कार्वाई आ आयोगक गठन आदि खानापूर्ति भऽ रहल अछि आ होएत एहिसँ ओकरा कोनो माने मतलब नहि रहि गेल छै। आब चिन्ता छै तँ बस अपन घर-घरारी बसेबाक आ अपन परिवारक भविष्य रक्षा करबाक। बाढ़ि पीड़ितक लहासपर राजनीति, राहत आ बचाव काजक नामपर सरकारी खजाना लुटाएत, वोटक लेल गोलबन्दी होएत मुदा अगिला साल फेर कोसीक तांडव नहि होएत आ राजनेता, अधिकारी आ सरकार अपन जिम्मेदारी निर्वाह करताह एकर कोनो गारंटी नहि अछि।

बिहारमे क्रिकेट

भारतीय क्रिकेट बोर्ड द्वारा बिहारकेँ एसोसिएट सदस्य बनेबाक घोषणाक बाद क्रिकेट खिलाड़ी आ क्रिकेट प्रेमीक मध्य खुशीक लहरि पसरल अछि। मुदा प्रदेशमे कतेको वर्षसँ असली संघ होएबाक दावा करएवला क्रिकेट संघक मध्य वाक युद्ध तेज भऽ गेल अछि। बिहारमे एखन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादवक नेतृत्व बला बिहार क्रिकेट एसोसिएशन, पूर्व भारतीय क्रिकेटर कीर्ति आजादक नेतृत्व बला एसोसिएशन आफ बिहार क्रिकेट तथा पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी सभक क्रिकेट एसोसिएशन आफ बिहार सक्रिय भऽ अपन-अपन संघक मान्यता देएबाक प्रयास कऽ रहल छल। झारखण्ड प्रदेश अलग भेलाक बाद क्रिकेट एसोसिएशनक सेहो बँटवारा भेल। मुदा न्यायालयक लड़ाइक चक्करमे छह वर्षसँ बिहारक प्रतिभाशाली कतेको क्रिकेटरकेँ अपन प्रतिभा देखेबाक अवसर नहि भेटि सकल छल। लालू प्रसादक नेतृत्व बाला बी सी ए केँ कन्ट्रोल बोर्ड द्वारा मान्यता देबाक घोषणाक संगहि एक बेर फेर विवाद बढ़बाक संभावना देखाई दऽ रहल अछि किएक तँ कीर्ति आजादक नेतृत्व वाला एबीसी एहि मामलाकेँ न्यायालयमे लऽ जएबाक बात कहलक अछि।
वर्ष दू हजार एक मे बी. सी. सी. आइ. क तात्कालिक अध्यक्ष ए.सी.मुथैय्या द्वारा लालू प्रसादक बी.सी.ए.केँ बोर्डक पूर्ण सदस्यता बहाल कएने छल मुदा तकर बाद बी. सी. ए. क सचिव द्वारा जगमोहन डालमियाक विरुद्ध मतदान करबाक कारण श्री डालमिया अध्यक्ष बनिते बिहारकेँ पूर्ण सदस्यता समाप्त कऽ देलनि आऽ तहियासँ क्रिकेट खिलाड़ी आऽ क्रिकेट प्रेमी सदस्यताक बहाली करबाक लेल संघर्ष करैत छलाह। एहि मामिलाक जल्दी निपटारा करबाक बदला गुटमे बटल क्रिकेट संघ अपना-अपना केँ असली क्रिकेट चिन्तक जनबैत न्यायालयक पीचपर लड़ाई लड़ैत छलाह आ एहि बहाने कन्ट्रोल बोर्ड एहि मामिलापर मूकदर्शक बनल रहल जाहिसँ प्रतिभाशाली क्रिकेटरक नोकसान भेल।
बोर्डक ७९म वार्षिक आम बैसकमे बिहारकेँ भेटल मान्यतासँ बिहारक क्रिकेट प्रेमी राहत महसूस कऽ रहल छथि। हालाँकि जाऽ धरि पूर्ण सदस्यक मान्यता नहि भेटत खिलाड़ीक संग न्याय नहि होएत। एखन बिहारकेँ बोर्ड द्वारा आयोजित १७, १९ आऽ २२ वर्षक वाला प्प्रतियोगितामे भाग लेबाक अवसर भेटत। बोर्ड आर महत्वपूर्ण प्रतियोगिता रणजी ट्राफी आदिमे ओ तखनहि भाग लऽ सकत जखन कि पूर्ण सदस्यता भेटि जाएत। बोर्डक एहि निर्णयपर अपन प्रतिक्रिया व्यक्त करैत बी.सी.ए.क कोषाध्यक्ष अजय नारायण शर्मा कहलनि अछि जे एहिसँ बिहारक खिलाड़ीकेँ प्रतिभा देखएबाक अवसर भेटत। एखन धरि जे नोकसान भेल अछि ओकरा पूरा करबाक प्रयास लालू प्रसादक सहयोगसँ करब। दोसर दिस कीर्ति आजादक नेतुत्व बाला ए.बी.सी. बोर्डक एहि निर्णयसँ असंतुष्ट अछि। एसोसिएशनक महासचिव मिथिलेश तिवारी कहलनि अछि जे बोर्ड द्वारा गठित तीन सदस्यीय स्टीयरिंग कमिटि जखन ए.बी.सी.केँ प्रदेशमे क्रिकेट गतिविधिक संचालनक जिम्मेदारी देने छल तँ बोर्ड द्वारा पक्षपात कएल गेल ई निर्णय अस्वीकार अछि आ एकर विरुद्ध न्यायालयक शरणमे जेबाक अलावा कोनो उपाय नहि अछि। ओ दुर्गापूजाक बाद ए.बी.सी.क विशेष आम सभा बजेबाक बात सेहो कहलनि अछि।
देरीसँ सही बिहार क्रिकेटकेँ आधा न्याय तँ भेटल अछि। आब १९३५क बिहार क्रिकेट एसोसिएशनक बँटवाराक बात सेहो होएत। जाहि तरहेँ राज्यक सभ किछुक बँटवारा भेल तहिना बी.सी.ए. जकर मुख्यालय जमशेदपुरमे छल, बँटवारा होबाक चाही। सभ क्रिकेट संघकेँ अपन हठधर्मिता छोड़ि प्रदेशमे क्रिकेटक गतिविधिकेँ पटरीपर अनबाक प्रयास करबाक चाही। ज्योँ फेर विवाद उठल तँ एक बेर फेर क्रिकेटपर ग्रहण लागि जाएत। आब क्रिकेटक मठाधीश संघर्ष छोड़ि भारतीय टीममे बिहारक प्रतिनिधित्व देयबाक संगठित भऽ प्रयास करथि जाहिसँ बिहारमे क्रिकेटक भविष्य बनि सकए।(साभार विदेह www.videha.co.in )

पछताबा - जगदीश प्रसाद मण्डल



इंजीनियरिंगक रिजल्ट निकलितहि रघुनाथ संगी-साथीक संग नोकरी करए अमेरिका जेबाक तैयारी कऽ नेने छल। सासुरसँ गाम आबि पिताकेँ कहलनि- ‘‘बाबू, आइये रौतुका गाड़ी पकड़ि चलि जाएब। परसू दस बजे, सुभाषचन्द्र एयरपोर्टसँ जहाज फ्लाइ करत।’’
  जहिना पाकल आम तोड़ै लेल कियो गाछपर चढ़ैत अछि आ आम तोड़ैसँ पहिनहि खसि पड़ैत अछि, तहिना शिवनाथोकेँ भेलनि। अचंभित होइत कहलखिन- ‘‘किए? तोरा जोकर काज अपना ऐठाम नहि छै?’’
  पिताक बात सुनि कनेकाल गुम्म भऽ रघुनाथ बाजल- ‘‘ओहिठाम अधिक दरमाहा दैत अछि। संगहि अपना ऐठामक रुपैआसँ ओतुका रुपैइयो महग छैक।’’
  अमेरिकाक संबंधमे शिवनाथ किछु नहि जनैत खाली एतबे जनैत जे ओहो एकटा देश छी। किछु काल गुम्म रहि कहलखिन- ‘‘तइसँ की? हम ओहि वंशक छी जे देशक गुलामी मेटबए लेल गोली खाए स्वतंत्र देशक उपहार-भार देलनि। तोरा सन-सन पढ़ल-लिखल जँ देशसँ चलि जाएत तँ तोहर सनक काज के करत, कोना हएत?’’
  पिताक बातकेँ अनसून करैत गोर लागि, बैग लऽ ओ चुपचाप विदा भऽ गेल। शिवनाथ दुनू परानीक नजरि ताधरि रघुनाथक पीठपर रहलनि जाधरि ओ गाछीक अढ़ नहि भऽ गेल। अढ़ होइतहि दुनूक मन एहि रुपे चूर-चूर भऽ गेलनि जहिना अएनापर पाथरक लोढ़ी खसलासँ होइत अछि। अखन धरि दुनूक मनमे पैघ-पैघ अरमान पैघ-पैघ सपना छलनि जे एकाएक फुटल बैलूनक हवा जेकाँ वायुमंडलमे मिलि गेलनि। बाढ़िक पानिमे डूबल खेतमे जहिना पानि सुखितहि नव-नव पौधाक अंकुर उगए लगैत अछि  तहिना शिवनाथोक मनमे नव-नव विचार उगए लगलनि। अखन दुनियाँ भलेहीं गामे-घरक रुपमे कि‍एक नहि बुझि पडै़त हुअए मुदा बापो बेटाक दूरी हजारो कोस हटि रहल अछि। की हम सभ फेर गुलामीक रस्ता पकड़ि रहल छी आकि आजादीक रस्ता धऽ चलि रहल छी। एक दिशि‍ मातृभूमिक लेल पिताक तियाग आ दोसर दिसि बेटाक भटकल रस्ता अछि। भलहीं बेटाक आशा हुअए मुदा एहनो लोक तँ छथि जनिका बेटा नहि छन्हि। मन पड़लनि पिताक ओ बात जे मृत्युसँ चौबीस घंटा पहिने मृत्यु-सय्यापर कहने रहथिन - ‘‘बाउ, हमर खून वीरक खून छी जे भारतमाताकेँ चढ़ौलिएनि। भलेहीं अखन लड़ाइक दौड़ अछि मुदा ओ खून स्वतंत्रता लइएकेँ छोड़त। तोँ सभ स्वतंत्र देशक स्वतंत्र मनुष्य हेबह। तेँ अपन देशकेँ परिवार बुझि सभकेँ भाए-बहीनि जेकाँ इमानदारीसँ सेवा करैत रहिहऽ। जाहिसँ हमर आत्मा अनबरत प्रसन्न रहत। सेवाक मतलब खाली एतबे नहि होइत जे देशक सीमाक रक्षा करैत अछि बल्कि ईहो होइत जे माथपर ईंटा उघि सड़क बनबैत आ हर-कोदारिसँ अन्न उपजबैत अछि।’’
  पिताक बात मन पड़ितहि शिवनाथक हृदय तरल पानिसँ ठोस पाथर बनए लगलनि। नव-नव विचार मनमे जागए लगलनि। पत्नीक खसल मन देखि कहलखिन- ‘‘अहाँ, एते सोगाएल किए छी?’’
  आँचरक खूँटसँ दुनू आँखिक नोर पोछि रुक्मिणी कपैत अबाजमे बजलीह- ‘‘की सपना मनमे रहए आकि देखि रहल छी। जँ से बुझितिऐक तँ एत्ते देहकेँ किए धौजनि करितहुँ। नढ़िया-कुकुड़ जेकाँ अनेर छोड़ि दैतिऐक।’’
  पत्नीक व्यथा सुनि शिवनाथक हृदय पसीज गेलनि। मुदा अपन व्यथाकेँ मनमे दबैत मुस्कुराइत कहलखिन- ‘‘अखन धरिक जे जिनगी रहल ओ कर्तव्यनिष्ठ रहल। अपन कर्तव्य इमानदारीसँ निमाहलहुँ। सभकेँ अपना-अपना आशापर अपन जिनगी ठाढ़ कऽ जीबाक चाही। जहिना बरखाक एक-एक बुन्न रस्ता धए चलैत-चलैत अथाह समुद्रमे पहुँच जाइत अछि तहिना अपनो सभ अपन काजकेँ परिवारसँ आगू बढ़ा समाज रुपी समुद्रमे फेटि दी। बेटा अछि तेँ बेटापर अपन भार देमए चाहैत छलहुँ  मुदा जनिका अपना बेटा नहि छन्हि ओ ककरापर अपन भार देथिन। तेँ अपनो सभ वएह बुझू! बाबूजी एते अरजि कऽ दऽ गेलथि जे इज्जतक संग हँसैत-खेलैत जिनगी जीबैत रहब।’’
सन् १९४२क असहयोग आन्दोलनसँ सुनगति-सुनगति सौँसे देश पजरि गेल। जइमे मिथिलांचलोक योगदान ककरोसँ कम नहि अछि। दसकोसी लोकक मन एत्ते उत्साहित भऽ गेलनि जे चान-सूर्जमे आजादीक झंडा फहराइत देखथि। सुतली रातिमे ओछाइनपर सँ चहा कऽ उठि नारा लगबैत सड़कपर आबि जाइत छलाह। जे मिथिला याज्ञवल्क्य, गौतम, नारद सन-सन ऋषि पैदा केलक ओ पंचानन झा आ पुरन मंडल सन वीर अभिमन्यु सेहो पैदा केने अछि। दसकोसीक वीर सिपाही माथमे कफन बान्हि, लाठीमे झंडा फहरा झंझारपुर सर्कल, रेलवे स्टेशन आ पोस्ट आफिसमे आगि लगबैक संग-संग रेल-लाइन तौड़ै लेल सर्कलक मैदानमे एकत्रित भेलाह। अंग्रेज पलटनक केन्द्र सर्कल छलैक। आन्दोलनकारीकेँ एकत्रित होइत देखि ओहो सभ अपन बन्दूकमे गोली भरि-भरि तैयार भऽ गेल। आन्दोलनकारी भारत माताक नारा जगबैत आगू बढ़ल। अनधुन गोली पलटन सभ चलौलक। एक नहि अनेक गोली पंचानन आ पुरनक छातीमे लगलनि। दुनू गोटे नारा लगबैत दम तोड़ि देलनि। सिर्फ दुइये टा गोटेकेँ गोली नहि लागल छलनि, अनेको गोटे गोलीसँ घाएल भेलाह। ओहि घाएलमे शिवनाथक पिता देवनाथो छलाह। दहिना जाँघमे गोली लागल छलनि। गोली तँ जांघक माँस, चमराकेँ कटैत हड्डी तोड़ैत निकलि गेलनि। मुदा घाइल भऽ ओहो खसि पड़लाह। पितिऔत भाए हुनकर लटकल जांघक माँसकेँ तौनीसँ बान्हि, पीठपर उठा घरपर अनलकनि। चिकित्साक समुचित व्यवस्था नहि, ताहिपर गामे-गाम सिपाही दमन शुरु केलक। गामक-गाम आगि लगौलक। मर्द-औरतकेँ पकड़ि-पकड़ि बन्दूकक कुन्दा आ पएरक बूटसँ मारि-मारि बेहोश केलकनि। ओछाइनपर पड़ल देवनाथक हृदयमे आगि धधकैत रहनि मुदा किछु करैक तँ शक्ति नहि रहि गेलनि। जीवन-मृत्युक बीच लटकल रहथि। तीसम दिन प्राण छूटि गेलनि।
दस बर्खक शिवनाथ १५ अगस्त १९४७ ई. केँ आजादीक समए पनरह बर्खक भऽ गेल। पतिक मुइने शिवनाथक माए राधाक मन टुटलनि नहि बल्कि आगिमे तपल सोना जेकाँ आरो चमकए लगलनि। पाकल आमक आंठी जेकाँ करेज आरो सक्कत भऽ गेलनि। गुलामीसँ मिझाइल दीपकेँ आजादीक नव तेल-बत्ती भेटलैक, जाहिसँ नव-ज्योति प्रज्वलित भेल। अखन धरिक अव्यवस्थित परिवारकेँ दुनू माए-बेटा मिलि सुढ़िअबए लगलथि, व्यवस्थित बनबए लगलथि। अढ़ाइ बीघा खेतकेँ अपन दुनियाँ आ कर्मक्षेत्र बुझि दुनू माए-बेटा जी-जानसँ मेहनत करए लगलथि, जहिपर परिवार नीक नहाँति ठाढ़ भऽ गेलनि। ओना शिवनाथक बिआह बच्चेमे भऽ गेल छलैक मुदा दुरागमन पछुआएल रहैक। परिवारक बढ़ैत काज देखि बेटाक दुरागमन माए करा लेलनि।
देश आजाद होइतहि गामे-गाम स्कूल बनए लगल। ओना पढ़लो-लिखल लोक कम छलाह मुदा जतबे छलाह ओ ओहि रुपे विद्या-दानमे भीड़ि गेलाह, जाहिसँ सभ गाममे तँ नहि मुदा अधिकांश गाममे लोअर प्राइमरी स्कूल ठाढ़ भऽ गेल। कतौ-कतौ मिड्लो स्कूल आ हाइयो स्कूल बनल। कतौ-कतौ कओलेजो ठाढ़ भऽ गेल। अखन धरि जे स्कूल ठाढ़ भेल ओ सामाजिके स्तरपर, सरकारी स्तरपर  बहुत कम बनल। स्कूल खोलैक पाछू लोकक मनमे धर्मस्थानक बुझब छलैक। गुरुओजी ओहने रहथि जे मात्र भोजनपर सेवा करैत रहथि। शनीचरा मात्र जीविकाक आधार छलनि। पाइ लऽ कऽ पढ़ाएब पाप बुझल जाइत छलैक। ओना मिड्ल स्कूल, हाइ स्कूल आ कओलेजमे महिनवारी फीस लगैत छल, जे संस्थागत सहयोग छल। स्कूल-कओलेज खुजने विद्याक ज्योति प्रज्वलित भेल मुदा अंडी तेलमे जरैत डिबियाक इजोत जेकाँ, जखनकि जरुरी अछि हजार वोल्ट बौलक इजोत जेकाँ। ओना ठाम-ठीम संस्कृत विद्यालय सेहो अछि, मुदा.....।
दुरागमनक तीन साल बाद शिवनाथकेँ बेटा भेलनि। रघुनाथक जन्म होइतहि राधाक हृदय खुशीसँ सूप सन भऽ गेलनि। मनमे नचए लगलनि बाँसक ओ बीट जाहिमे दिनानुदिन बेसी बाँसोक जन्म होइत आ नमगर, मोटगर सुन्दर-सुडौलौ होइत। मनक खुशीसँ दुनियाँ फुलवारी सदृश्य  बुझि पड़ए लगलनि। बाधक-बाध धानक फूल, गाछीक-गाछी आमक मंजर, जामुन, लताम इत्यादिक फूलसँ सजल ई दुनियाँ सोहनगर लगए लगलनि। मुदा जहिना आसिन मास अकाशकेँ करिया मेघ झँपने रहैत अछि आ कतौ-कतौ मेघक फाटसँ सूर्यक इजोत निकलैत अछि आ सेहो गाछे-बिरीछपर अटकि जाइत अछि, तहिना। धरती-जमीन ओहिनाक ओहिना अन्हार रहि जाइत अछि।
  छबे मासक रघुनाथकेँ राधा अपन मुँह चमका-चमका दा-दा-दा सिखबए लगलीह। दादामे देवनाथक ओ रुप देखैत छलीह जे माथपर वीरक मुरेठा बान्हि, हरोथिया लाठीमे लाल झंडा टांगि, हँसैत गोली खेने रहथि।
चारि बर्ख टपितहि शिवनाथ रघुनाथक नाओ गामक स्कूलमे लिखा देलखिन साले-साल टपैत रघुनाथ गामक स्कूल टपि गेल। मिड्ल स्कूल टपि साइंस राखि रघुनाथ केजरीवाल हाइ स्कूल झंझारपुरमे नाओ लिखौलक। जहिना विज्ञान विषए पढ़ैमे नीक लगै तहिना अंग्रेजिओ। जाहिसँ ठाकुर बाबू आ लत्ती बाबू बेसी मानथिन। चारि बर्खक बाद प्रथम श्रेणीमे मेट्रिक पास केलक। बाढ़ि-रौदिक द्वारे उपजो-बाड़ी नीक नहि होइ जाहिसँ परिवारो लड़खड़ाइते चलैत। बाहर जा कऽ आगू पढ़ब असंभव जेकाँ रहैक। मुदा संजोग नीक रहलैक जे जनतो कओलेजमे साइंसक पढ़ाइ शुरु भेलैक। रघुनाथो कओलेजमे नाओ लिखौलक।
  रघुनाथकेँ कओलेजमे नाओ लिखेलाक सालभरि उत्तर राधा -दादी- मरि गेलीह। पिताक श्राद्ध तँ शिवनाथ केनहि नहि रहथि मुदा माएक श्राद्ध नीक जेकाँ केलनि। जाहिसँ पाँच कट्ठा खेतो बिका गेलनि। ताहि लेल मन मलिन नहि भेलनि। किएक तँ भोजमे खूब जस भेलनि। दू सालक बाद रघुनाथ फस्ट डिविजनसँ आइ.एस.सी. पास केलक। सत्तरि प्रतिशतसँ उपरे नम्बर रहैक। आइ.एस.सी.क रिजल्ट सुनि शिवनाथकेँ बेटाक पढ़बैक उत्साह बढ़लनि। खेत बेचब अधलाह नहि बुझेलनि। मनमे अएलनि जे रघुनाथ पढ़ि कऽ नोकरी करत आकि खेती करत। तखन खेतक जरुरते की रहतैक। संगहि हमहूँ समाजकेँ एकटा सक्षम मनुष्य देबैक।
  इंजीनियरिंग, डॉक्टरी पढ़बैमे केहेन खर्च होइत छैक से तँ नीक जेकाँ बुझथि नहि। मनमे होइन जे पाँच-दस कट्ठा जमीन बेचि बेटाकेँ पढ़ा देबैक। मनमे उत्साह रहबे करनि तेँ महग बुझि घरारियेमे सँ दू कट्ठा बेचि इंजीनियरिंग कओलेजमे बेटाक नाओ लिखा देलनि। नाओ लिखौलाक डेढ़ बर्ख बीतैत-बीतैत अदहा जमीन बिका गेलनि। आगूक अढ़ाइ बर्ख बाकी देखि चिन्ता घेरए लगलनि। मन मानि गेलनि जे सभ खेत बेचनहुँ पार नहि लागत। सोचैत-बिचारैत तँइ केलनि जे पढ़ैक खर्चपर रघुनाथक बिआह करा देबै। बिआह भेनहुँ ओकरा पढ़ैमे बाधा थोड़े हेतैक, पाँच बर्खक बादे दुरागमन कराएब। समस्याक समाधान होइत देखि मनमे खुशी अएलनि। फेर मोनमे उठलनि जे समयो बदलि रहल अछि। पहिने माए-बाप बेटा-बेटीक बिआहकेँ अपन कर्तव्य बुझैत छलाह तेँ पुछब जरुरी नहि बुझैत छलाह। मुदा आब पूछब जरुरी भऽ गेल अछि। परिस्थिति देखि रघुनाथो बिआह करब मानि लेलक मुदा शर्त एकटा लगौलकनि जे लड़की रंग-रुपमे सुन्दर हुअए। जँ गुणवानक शर्त रहितनि तहन तँ ओझरा जएतथि। मुदा से नहि भेलनि। बिआहक चर्चा शिवनाथ चला देलखिन।
  इंजीनियर वर तेँ कथकियाक ढबाहि लागि गेलनि। मुदा कोनो गाम अधलाह बुझि पड़नि तँ कोनो परिवारक कुल-गोत्र। कतहु लड़की दब तँ कतौ उमरगर लड़की भाँज लगनि। होइत-हबाइत एकठाम कथा पटि गेलनि। गाम तँ नीक नहि मुदा लड़कीयो गोर आ पढ़ैक खर्चो गछि लेलकनि। विआह भऽ गेलैक। विआहक बाद दुनू समधि बिचारि लेलनि जे सालो भरि जे भार-दौरक फेरीमे पड़ब से नीक नहि। तेँ भार-दौरक बेबहार छोड़िए दियौक। दुनू गोटे सएह केलनि।
इंजीनियरिंगक अंतिम परीक्षा दऽ रघुनाथ सभ सामान लऽ सासुर आबि गेल। ओना दुरागमन बाकिये मुदा सासुर तँ सासुरे छी, तेँ चलि आएल। रिजल्ट निकलैमे तीन मास लागत। काजो तँ अखन किछु नहिए अछि, तेँ निश्चिन्तसँ सासुरमे रहैक विचार रघुनाथ कऽ लेलक। दसे दिनक बाद विदेशमे इंजीनियरक भेकेन्सी खूब भेलैक। सभसँ बेसी अमेरिकामे भेलैक। नव टेकनोलौजी अएने नव युगक आगमन भेल। नव मशीन नव इंजीनियरकेँ जन्म देलक। मुदा पुरना तकनीको आ इंजीनियरो, अछैते औरदे, फाँसीपर लटकए लगलाह। जहिना गामक-गाम हैजासँ मरैत अछि तहिना इंजीनियरक जमात पटपटाए लगलाह। मुदा दवाइक करखन्ने नहि जे दवाइ बनाओत।
परीक्षाक पेपर रघुनाथक नीक भेल तेँ फेल करैक अन्देशे नहि रहैक। हाइये स्कूलसँ अमेरिकाक उन्नतिक, सुख-मौजक संबंधमे किताबो-पत्रिकामे पढ़ने आ लोकोक मुँहे सुनने रहए। तेँ मनमे गुदगुदी लगैत रहै। ई भिन्न बात जे आठ मासमे अस्सीटा बैंक अमेरिकामे दिवालिया भेल।
  रघुनाथ फस्ट डिवीजनसँ पास केलक। एक तँ फस्ट डिवीजन रिजल्ट, ताहिपर अमेरिकाक नौकरी। खुशीसँ रघुनाथक मन उड़िया गेलै। आवेदन केलाक आठे दिन पछाति चिट्ठी भेटलैक। स्त्रीक गहना बेचि ओ दुनू परानीक टिकट बनबौलक। ससुर पढै़ धरिक खर्चा गछने रहनि तेँ टिकटक खर्च दैसँ इन्कार केलकनि।
  मिशिगन राज्यक राजधानीक शहर लानसिंग। ठंढ़ इलाका। ने अपना सभ जेकाँ छह ऋतुक मौसम बनैत आ ने ओकर हास-परिहास होइत। ने रंग-बिरंगक गाछ-बिरीछ अपना सभ जेकाँ होइत। लानसिंगक सत्तरह तल्लाक छोट-छोट तीन कोठरीक आंगन। जहिमे ने सभ दिन सूर्यक रोशनी अबैत अछि आ ने भोरे कौआ आबि ओसारपर बैसि सारि-सरहोजिक समाचार सुनबैत अछि। रहैत-रहैत दुनू परानी रघुनाथकेँ पनरह बर्ख बीति गेलनि। जवानीक सभ सपना मने-मन गुमसड़ि रहल छलनि।
रघुनाथकेँ अमेरिका गेने शिवनाथक जिनगीक गाछ मौलायल नहि, चतरि कऽ पाखरिक गाछ जेकाँ झमटगर भऽ गेलनि। दुनू बेकतियोक विचार सुधरलनि। वंशगत संबंध क्षीण होइत-होइत सुखि गेलनि,  सामाजिक संबंध मोटा कऽ जुआएल गाछक सील जेकाँ बनि गेलनि। जहिना कोनो समांगकेँ मुइलापर परिवारक लोक आस्ते-आस्ते बिसरि जाइत अछि, तहिना रघुनाथोकेँ दुनू प्राणी शिवनाथ सोलहन्नी बिसरि गेलाह। साल भरिक छाया आ सैएक-सए बरिसक बरखी करैक खगते नहि रहलनि। वंश अंत हएत सदः आँखिसँ शिवनाथ देखैत छलाह। स्वतंत्र देशक गुलाम बुद्धि । कोना नहि बिसरितथि? ने कहियो एक्कोटा पत्र लिखि मन राखए चाहलनि आ ने कोनो मनोरथ मनमे संयोगि कऽ रखने रहथि। पढ़ल-लिखल तँ शिवनाथ नहि मुदा ‘हरिवंश पुराण’क कथा, गप-सप्‍पक क्रममे बेसी काल दोसराक मुँहे सुनैत छलाह।
स्वतंत्रताक उपरान्त विकासपुरक लोकोक विचार सुधरलनि। कोना नहि सुधरितनि? बूढ़-बच्चा छोड़ि गामक सभ लाठी-झंडा लऽ झंझारपुर सर्कल आगि लगबए जे गेल रहथि। आँखिसँ सभ किछु देखने रहथि। ओना हजार बीघा रकबाक गाम विकासपुर, जाहिमे साढ़े चारि सए परिवार हँसी-खुशीसँ कताक पुस्तसँ एकठाम रहैत आएल छलाह। स्वतंत्राक पूर्व मलिकाना -जमीनदारक- गाम रहए। मालगुजारीक लेन-देनमे सबहक जमीन निलाम भऽ जमीनदारक हाथमे चलि गेल छलैक। कियो अपन खेतक दखल तँ हुनका नहि देलकनि मुदा बटेदार बनि उपजा बाँटि-बाँटि दिअए लगलनि। जागल गामक लोक देखि जतबे-तेतबे दाम लए मालिक खेत घुमा देलकनि। अपन खेतकेँ स्थायी पूँजी बुझि श्रमक पूँजी जोड़ि जिनगीकेँ ठाढ़ करए लगलथि। बाढ़ि-रौदीक प्रकोप सालो-साल होइतहि रहैत छलैक मुदा विचार आ कर्म बदलने ओहो अभिशाप नहि वरदान बनि गेलैक। बाढ़ि देखि माथपर हाथ लऽ नहि बैसि, ओकर प्रतिकार करैक रस्ता अपनौलनि। तहिना रौदियोक प्रति केलनि। जाहिसँ बाढ़ि-रौदीसँ बचैक उपाए कऽ लेलनि। सबहक एहन धारणा बनि गेलनि। जे बाढ़िक उपद्रव मात्र साओनसँ कातिक चारि मास होइत अछि बाकी बारह मासक सालमे आठ मास तँ बचैत अछि। जे आठ मास जमि कऽ मेहनत कएल जाए तँ बारहो मास हँसी-खुशीसँ गुजर चलि सकैत अछि। ततबे नहि, पानियो तँ आगि नहि छी जे सभ किछुकेँ जरा देत। पानियो तँ उत्पादित पूँजी छी, तेँ जरुरत अछि ओकर उपयोग करैक। तहिना रौदियोक संबंधमे धारणा बनौने रहथि। खेतमे रंग-बिरंगक अन्न, फल, तरकारी अछि। ने सभ अन्नेक लेल एक रंग पानिक जरुरत होइत अछि आ ने फले-तरकारीक लेल। अधिक वर्षा भेने अधिक पनिसहू फसल होइत अछि आ कम वर्षा भेने कम पनिसहू हएत। ताहिपर थोड़ेक सुविधा सरकारो देलक। नब्बे प्रतिशत अनुदानमे बोरिंग आ पचास प्रतिशत अनुदानमे पम्पसेट देलक। जाहिसँ पर्याप्त बोरिंग-पम्पसेट गाममे भऽ गेलैक। किसानक हाथमे पानि चलि आएल। समाजक किसानक कान्हमे कान्ह मिला शिवनाथो चलए लगलाह। कम खेत रहितहुँ हुनका अन्न-पानि उगरिये जाइत छन्हि।
छह बजे भोरे रघुनाथ धीपल-सराएल पानि मिला अधा-छिधा नहा, कपड़ा पहीरि, चाह-बिस्कुट खा ड्यूटी चलि जाथि। असकरे श्यामा डेरामे रहि जाइत छलीह। ने अंग्रेजी भाषाक बोध छन्हि जे दोकानो-दौरीक काज कऽ सकितथि आ दोसरोसँ गप-सप्‍प करैत समए बितबितथि। ओना बगलेक फ्लेटमे आरो-ओरो भारतीय -इंडियन- सभ रहैत अछि। मुदा ओहो कियो केरलक तँ कियो मद्रासक छथि। भाषाक दूरी देखि श्यामा मने-मन सोचए लगलीह जे मनुष्यसँ नीक पशु होइत अछि जे अपन स्वभावसँ एक-दोसरासँ मेलो रखैत अछि। मनुक्ख तँ मनुक्खे छी जे बोलेसँ राजा बनि जाइत अछि। जहिना पिजराक सुग्गा अकासमे उड़ैत सुग्गा देखि कनैत अछि तहिना कोठरीमे बैसलि श्यामा मने-मन कुही होइत छलीह। मनमे होइत छलनि कोन जनमक पाप कएल अछि जे एहन गति भऽ गेल अछि। नैहरसँ सासुर धरिक सभ किछु हेरा गेल।
  भिनसरे डेरासँ निकलि रघुनाथ कार्यालय पहुँचि जाइत छथि। कार्यालयेमे खाइ-पीबैक व्यवस्था सेहो छैक। मशीनेक संग-संग रघुनाथ बारह घंटा बितबैत छथि। बुद्धिसँ लऽ कऽ हाथ धरि मशीनेक संग भरि दिन रहैत-रहैत मशीन बनि गेलनि। संवेदनशून्य मनुष्य। जाहिमे दया, श्रद्धा, प्रेमक कतौ जगह नहि। मुदा आइ रघुनाथकेँ कार्यालय पहुँचतहि मनमे उड़ी-बीड़ी लगि गेलनि। काजक दिसि एको-मिसिया ध्याने नहि जाइत छलनि। छुट्टीक दरखास्त दऽ कार्यालयसँ डेरा बिदा भेलाह। डेरा आबि, देहक कपड़ा आ जुत्ता बिनु खोलनहि पलंगपर, चारु नाल चीत भऽ ओंघरा गेला। जहिना जेठ मासक तबल धरतीपर बिहरिया बरखाक बुन्न खसितहि गरमी-सरदीक बीच घनघोर लड़ाइ शुरु भऽ जाइत अछि तहिना रघुनाथक मनमे वैचारिक संघर्ष हुअए लगलनि। एहन जोर वैचारिक बिहारि मनमे उठि गेलनि जे बुद्धि चहकए लगलनि। चहकैत बुद्धिसँ अनायास निकलए लगलनि- ‘‘हमरासँ सइओ गुना ओ नीक छथि जे अपना माथपर पानिक घैल उठा मातृभूमिक फुलवारीक फूलक गाछ सींचि रहल छथि। अपन माए-बाप, समाजक संग जिनगी बिता रहल छथि। आइ जे दुनियाँक रुप-रेखा बनि गेल अछि ओ किछु गनल-गूथल लोकक बनि गेल अछि। जिनगीक अंतिम पड़ावमे पहुँचि आइ बुझि रहल छी जे ने हमरा अपन परिवार चिन्हैक बुद्धि भेल आ ने गाम-समाजक। दुनू आँखिसँ दहो-बहो नोर चुबि गालपर होइत पलंगपर खसए लगलनि।
शिवनाथ हँसैत ओछाइनपर सँ उठि पत्नीकेँ सोर केलखिन- ‘‘कत्तऽ छी, कने एम्हर आउ?’’
  मुस्की दैत लग आबि रुक्मिणी बजलीह- ‘‘भोरे-भोरे की रखने छी जे सोर पाड़लहुँ।’’
  ‘‘मनमे आबि रहल अछि जे अपन दुनू प्राणीक श्राद्ध कइये लइतहुँ। जँ हम पहिने मरि जाएब तँ अहाँक श्राद्ध हएत की नहि। नहि जँ पहिने अहीं मरि जाएब तँ हमर श्राद्ध हएत की नहि।’’
  ‘अखन हम थोड़े मरैबाली भेलहुँहेँ, जे मरब।’’
  ‘‘अपन बिआह बिसरि गेलिऐक? जखन अहाँ छह बर्खक रही आ हम सात बर्खक रही तहिये ने बिआह भेल रहए। मन अछि आकि नहि जे खरहीसँ नापि कऽ जोड़ा लगौल गेल रहए।’’
  किछु काल गुम्म रहि रुक्मिणी बजलीह- ‘‘अपन बिआह-दुरागमन आ माए-बाप जँ लोक बिसरि जाएत तँ ओहो कोनो लोके छी।’’
  मुस्की दैत शिवनाथ कहलखिन- ‘‘हमरा आँखिमे अहाँ वएह छी जे दुरागमन दिन झाँपल पालकीमे बैसि नैहरसँ सासुर आएल रही। अहीं कहू जे हमरा किए ने अहाँक चूड़ीक खनखनीक अबाजमे स्वर लहरी आ माथक सेन्नुरमे जिनगीक मधुर फल देखि पड़त। पचहत्तरि पार कऽ अस्सीक बर्खक बीच दुनू गोटे पहुँच चुकल छी तेँ खुशी अछि। आँखिक सोझमे देखैत छी जे विआहक पाँचे दिनक बाद चूड़ियो फूटि जाइत छैक आ माथो धुआ जाइत छैक। ताहि ठाम हम-अहाँ भाग्यशाली छी की नहि?’’
  पतिक बात सुनि रुक्मिणी मुस्कुराइत पतिक आँखिमे अपन आँखि गाड़ि पाछुसँ आगू धरिक जिनगी देखए लगलीह।

Wednesday, January 7, 2009

जितेन्द्र झा अपने घरमे उपेक्षित मिथिला चित्रकला

जितेन्द्र झा
अपने घरमे उपेक्षित मिथिला चित्रकला



मिथिलाञ्चलक घरक भितमे बनाओल जाएबला मिथिला लोकचित्रकला विश्वभरि ख्याति कमओने अछि । मुदा एखत अपने भूमिमे एकरा पहिचान खोजबाक स्थिति छैक । मिथिला चित्रकलाके सरकार बेवास्ता कएने अछि, तें ई व्यवसायिक रुप नहि लऽ सकल अछि । एकर व्यावसायिक प्रबद्र्धन नहि भऽ सकल अछि ।
ग्रामीण क्षेत्रक महिलाके जीवनस्तर सुधार करबाक लेल बडका साधन भऽ सकैत अछि ई चित्रकला । कियाक त खासकऽ मैथिल ललनेक हाथमे नुकाएल रहैत अछि ई चित्रकलाक जादुगरी । आर्थिक, सामाजिक आ सांस्कृतिक समृद्धिक अथाह सम्भावना अछि मिथिला चित्रकलामे । लोकचित्रकलाके व्यवसायिक स्वरुप देलासं आर्थिक आ सांस्कृतिक दुनू लाभ उठाओल जा सकैत अछि । परम्परागत मिथिला चित्रकला जीवनक अंग अछि मिथिलामे । लोकचित्रकला संस्कारक द्योतक सेहो अछि ।


मुदा बढैत आधुनिकताक कारणे विस्तार प्रभावित भेल छैक । राज्य मिथिला चित्रकलाके एखनधरि चिन्ह नई सकल आरोप चित्रकारसभक छन्हि । नेपाल सरकार कलाके बढावा देबालेल ललितकला प्रज्ञा प्रतिष्ठान खोलने अछि । जत्तऽके प्राज्ञ परिषद्मे मिथिला चित्रकलास सम्बद्ध एक्कहु गोटे नहि अछि । ई एकटा प्रमाण मात्र अछि, आन बहुतो ठाम मिथिला चित्रकलासंग सौतिनिञा व्यवहार होइत आएल छैक । एना ललितकला प्रज्ञा प्रतिष्ठानक कुलपति किरण मानन्धर कहैत छथि जे मिथिला चित्रकलाके विशेष स्थान देने छी । मिथिला चित्रकलामे विशेष दखल भेनिहारि महिलाके स्थान देल जाएत से कुलपतिक कहब छन्हि । हिनक कथनी आ करनीमे कतेक समानता अछि, आबऽ बला दिने बताओत ।
जत्तऽ समग्र कलाक उन्नतिक बात होइक ओत्तऽ मिथिला पेन्टिङक चित्रकार नईं अछि, एकरा विडम्बने कहबाक चाही ।

मिथिला चित्रकलासं सम्बद्ध चित्रकारके उचित अवसर भेटबाक चाही । नेपाल पर्यटन वर्ष २०११ मना रहल अछि, एहनमे मिथिला चित्रकलाक मादे सेहो पर्यटकके आकर्षक कएल जा सकैत अछि । एहिबीच काठमाण्डूक बबरमहलस्थित सिद्धार्थ आर्ट ग्यालरीमे एस. सी. सुमनक मिथिला चित्रकला प्रदर्शनी मिथिला कसमस हालहि सम्पन्न भेल अछि । एहि प्रदर्शनीमे कलाप्रेमी मिथिला चित्रकलाक आधुनिक आयामसभसं परिचित भेलथि । सिद्धार्थ आर्ट ग्यालरीमे हुनक ११ म् प्रदर्शनी छल ई । मिथिला क्षेत्रक जीवनशैलीक झल्काबऽ बला चित्रकलासभ देखलासं ग्यालरी मिथिलामय भऽ गेल छल । एस. सी. सुमन मिथिला चित्रकला क्षेत्रमे परिचित नाम छथि । हिनक चित्रकलासभ बेस प्रशंसा पओलक । मिथिला चित्रकला सम्बन्धमे अध्ययन अनुसन्धानक सेहो बहुत खगता छैक । मिथिला लोक चित्रकलाक कुनो खास नियम वा सिद्धान्त नहि होइत अछि । तें ई स्वच्छन्दताक पर्याय सेहो अछि । मिथिलाक समृद्ध संस्कृतिक परिचायक सेहो अछि ।

सरकार कएलक सौतिनिञा व्यवहार
एस.सी सुमन
चित्रकार, मिथिला चित्रकला

मिथिला पेन्टिङ परम्परागत कला अछि, ई कला कोनो पाठशालामे नहि सिखाओल जाइत अछि । पीढीदर पीढी ई अपने आप सिखबाक काज होइत छैक । हमहु“ अपन दाइस“ सिखल“हु । कतउ सासुस“ पुतोहु सिखैत अछि त कखनो मायस“ बेटी । ताहि परिवेशमे हमहुं अपन दाइस“ मिथिला चित्रकला सिखल“हु ।
मिथिला पेन्टिङके अन्तर्राष्ट्रिय बजारमे बहुत माग अछि । ई त हट केक अछि । कलाकारके कलाकारितामे निर्भर करैत छैक ओकर मोल । जेना हमर पेन्टिङ १७ हजारस“ लऽकऽ ८० हजारधरिक अछि । जे सहजे बिका जाइत अछि ।
मिथिला पेन्टिङ व्यावसायिक रुप लेबा दिस उन्मुख अछि । कमर्सियल मार्केटमे देखी त सेरामिकमे, ब्यागमे कपडा आदिमे एकर प्रयोग भऽ रहल अछि । तें नीक बजार छैक एकर । ज“ अपन बात करी त जहन हम बजारमे अबैत छी त प्रदर्शनी लऽ कऽ हमरा कोनो दिक्कति नई होइत अछि ।
मिथिला चित्रकलाक विकासके जे आधारसभ अछि से किछु कमजोर भऽ रहल अछि जेना पहिने माटिक घर होइत छलै । भितके घरमे मिथिला चित्रकलाके नीक अभ्यास होइत छलै । माटिक घरक ठाममे आब क्रंक्रिटके जंगल अछि भऽ गेल । सामाजिक संस्कार आदिमे सेहो भितमे लिखबाक चलन छलै । मुदा आब बच्चा ज“ पेन्सिलस“ देबाल पर किछु लिखि दैत छैक त मायबाप डांटिदैत छैक । तें भितमे लिखबाक चलन प्रभावित भेल अछि । तैइयो तराईक मुसहर वस्ती, थारु आ झांगड जातिक वस्तीमे माटिक घरमे मिथिला चित्रकला देखल जा सकैत छैक ।
नेपाल सरकार एखनधरि किछु नई कऽ सकल अछि, मिथिला पेन्टिङके लेल । मिथिला पेन्टिङ जत्तऽ अछि अपने बुतापर, अपन स्थान अपने बनौने अछि । मिथिला चित्रकलामे लागल कलाकारसभ अपने मेहनतिस“ आगु बढल अछि । ललितकला प्रज्ञा प्रतिष्ठानके गठन करैत काल प्राज्ञ परिषद्मे मिथिला चित्रकलास“ सम्बद्ध एक्कहु गोटेके नहि राखल गेल । नामके लेल सभामे मिथिला पेन्टिङसं जुडल एकगोटेके जगह देल गेलै, बादमे विवाद भेलै आ ओहो पद छोडि देलनि । व्यक्तिगत रुपमे हमरा पुछी त राज्य मिथिला चित्रकलाक लेल ने किछु कएने अछि आ ने किछु कऽ सकैया । (सुमनकसंग कएल गेल बातचीतमे आधारित)



प्रगतिक पथपर मिथिला चित्रकला
धीरेन्द्र प्रेमर्षि
साहित्यकार

गुणँत्मक दृष्टिकोणसं सेहो मिथिला पेन्टिङमे बहुत काज भऽ रहल अछि । परम्परा आ आधुनिकता दुनूके जोडिकऽ एच.सी सुमन मिथिला पेन्टिङके आगू बढा रहल छथि । मदनकला देवी कर्ण, श्यामसुन्दर यादवसहितके व्यक्तिसभ परिमाणात्मक आ गुणात्मक दुनू तरहें मिथिला पेन्टिंगके आगू बढा रहल छथि । सुमनक पेन्टिङ आधुनिकताक आकाशमे सेहो भरपुर उडान भरने अछि मुदा धर्ती बिन छोडने, जे एकदम महत्वपूर्ण बात अछि । मिथिला पेन्टिंगके साधनाके रुपमे लऽ कऽ आगु बढनिहार सभ अपने आप आगु बढि रहल छथि ।

राज्यके दिसस“ मिथिला पेन्टिङके लेल कोनो खास काज नहि भऽ सकल अछि । राष्ट्रिय स्तरमे चित्रकारसभके मूल्यांकन करैत काल मिथिला पेन्टिङस“ जुडल व्यक्तित्वके जे स्थान आ सम्मान देल जएबाक चाही, से नहि भऽ सकल अछि । जनस्तर आ अन्तर्राष्ट्रिय स्तरमे मिथिला पेन्टिङ नीक सम्मान पओने अछि ।
देशमे मिथिला पेन्टिङके स्थापित कएल जाए । खास कऽ महिला सभ एकरा जोगाकऽ रखने अछि । मैथिल महिलासभ किशोर अवस्थेसं अरिपन लिखब शुरु करैत अछि । तुसारी पावनि आदि सभ सेहो मिथिला पेन्टिङ सिखएबाक अवसर अछि । विविध पूजा–आजाक माध्यमे ओ सभ चित्रकलामे प्रवेश करैत छथि । राज्यके दिसस“ मिथिला पेन्टिङके स्वीकार्यता बढाएब, व्यावसायीक सम्भावनाके खुला करब, एहिमे लगनिहारसभके सम्मानके वातावरण बनएबाक काज करबाक चाही । तहन ई राष्ट्रिय स्तरमे स्थापित भऽ सकत । एहिमे अन्तरनिहीत वैशिष्टय जे अछि ताहिस“ ई अपने अन्तर्राष्ट्रिय रुपमे स्थापित भ जाएत, व्यापक भऽ जाएत । ं(बातचीतमे आधारित)(www.videha.co.in साभार विदेह)

घरदेखिया - जगदीश प्रसाद मण्डल



नीन्न टुटितहि लुखियाक नजरि दिन भरिक काजपर पड़लनि। काज देखि मनमे अबूह लागए लगलनि। असकता गेलीह। मुदा तैयो हूबा कऽ कऽ उठए चाहलनि आकि आँखि पुबरिया घरक छप्परपर गेलनि। बिहाड़िमे मठौठ परक खढ़ उड़िया गेल छलैक। हड्डी जेकाँ बाती झक-झक करैत। मनमे अएलनि जे ‘‘की कहत बड़तुहार?’’ कहत जे मसोमातक घर छिऐ तेँ मठौठ उजड़ल छैक। खौंझ उठलनि। ठोर पटपटबैत- ‘‘जेहने नाशी डकूबा बिहाड़ि तेहने झड़कलहा कारकौआ। जुट बान्हि-बान्हि आओत आ लोलसँ खढ़ उजाड़ि-उजाड़ि छिड़िऔत।’’ नजरि निच्चाँ होइतहि दछिनबरिया टाटपर पड़लनि। बरसातमे टाटक आलन गलि कऽ झड़ि गेल छलैक। मात्र कड़ची-बत्ती टा झक-झक करैत। जाहिसँ ओहिना दछिनबरिया बँसबिट्टी देखि पड़ैत। बेपर्द आंगन। मन खिन्न हुअए लगलनि। मनमे अएलनि जे पुरना साड़ी टाटमे टांगि देबै। मुदा बड़तुहारक आँखिमे की कोनो गेजर भेल रहतै जे नहि देखत। तहूमे साड़ीसँ कते अन्हराएत। ओहिना सभ किछु देखत। आरो मन निच्चा खसैत जाइत। बाप रे की कहत बड़तुहार? नागेसर दिओरपर तामस उठै लगलनि। कोन जरुरी छलनि जे कौल्हुके दिन दऽ देलखिन। घर-अंगना चिक्कन कऽ लैतहुँ तहन अबैक दिन दैतऽथिन। कोनो की हमर बेटा बाढ़िमे दहाइल जाइत छलए। पाँच दिन आगुएक दिन भेने की होइतै? तामस बढ़लनि। तहि बीच आँखि टाट परसँ निच्चा उतड़लनि। नजरि पड़लनि अंगनाक पनिबटपर। झक-झक करैत झुटका। उबड़-खाबड़ सौँसे आंगन। तहूमे जे झुटका सरिआममे अछि ओ तँ नहि मुदा जे अलगल अछि ओ तँ चुभ-चुभ गरैत अछि। सौँसे अंगना सरिअबैमे कमसँ कम, दस छिट्टा माटि लागत। दस छिट्टा माटि उघि, ढ़ेपा फोड़ि, सरिया कऽ पटबैमे तँ भरि दिन लगि जाएत। तखन आन काज कोना हएत ? काजक तरमे दबाए लगलीह। तामस आरो लहरै लगलनि। अबूहो लगनि। ओछाइनेपर पड़ल-पड़ल भारसँ दबैत जाएत। दुइये माए-पूत की सभ करब ? तहूमे आइ अइ छौड़ाकेँ कोना किछु करैले कहबै। ओकरे देखैले ने घरदेखिया आओत। छौँड़ाकेँ तँ अपने मारिते रास काज हेतै। कानी छटौत। अंगा-घोती खीचत। आइरन करबैले गंजपर जाएत। गमकौआ साबुनसँ नहाएत। तेल लेत। बाबरी सीटत। तेहेन ठाम कोदारि-खुरपी चलबैले कोना कहबै। लोहे छिऐ जँ किनसाइत लागिये जाए। तखन तँ आरो पहपटि हएत। कथकिया जे हाथ-पाएरमे पट्टी बान्हल देखतै तँ की कहत? मनक तामस निच्चाँ मुँहे ससरए लगलनि। तामस उतड़ितहि नजरि घरदेखियाक खेनाइ-पीनाइपर पहुँचलनि। आन काज तँ रहियो-सहि कऽ भऽ सकैत अछि मुदा दूध तँ एक दिन पहिने पौड़ल जाएत। जँ से नहि पौड़ब तँ दही कोना हएत। शुभ काजमे जँ दहिये नहि होएत तँ काजक कोन भरोस। एक तँ महीसबला सभ तेहेन अछि जे दूधसँ बेसी पानिये मिला दैत छैक। नबका मटकुरियो ने अछि, जे पानियो सोखि लइतैक। मनमे खौंझ उठए लगलनि। मुदा नजरि चाउर-दालि दिशि बढितहि तामस दबलनि। बेटाक घरदेखिया आओत, हुनका कोना खेसारी दालि आ मोटका चाउरक भात खाइले देबनि। लोको दुसत आ अपनो मन की कहत। कियो किछु कहऽ वा नहि मुदा कुल-खानदानक तँ नाक नहि ने कटा लेब। जँ इज्जतिए नहि तँ जिनगिये की? मन पड़लनि घैलमे राखल कनकजीर चाउर। कनकजीर चाउरक भात आ नवका कुटुम मनमे अबितहि लुखियाक हृदए पघिलल केरा जेकाँ पलड़ए लगलनि। मने-मन भातक प्रेमी दालिक मिलान करए लगलीह। मेही भातमे मेही दालिक मिलान नीक हएत। मुदा खेरही-मसुरी दालि तँ भोज-काजमे नहि होइत। होइत तँ बदाम-राहड़िक। मुदा राहड़ि तँ घरमे अछि नहि। बोङमरना बाढ़ियो तेना दू सालसँ अबैत अछि जे एक्को डाँॅट राहड़ि नहि होइत अछि। तत्-मत् करैत फेर मन झुझुआ गेलनि। बिना आमिले राहड़िक दालि केहेन हएत? आमक मास रहैत तँ चारि फाँक कँचके आम दऽ दितिऐ। सेहो नहि अछि। फेर मन आगू बढ़लनि, पहिल-पहिल समैध-समधीन बनब आ एगारहो टा तरकारी खाइले नहि देबनि से केहेन हएत। गुन-धुन करए लागलीह। गुन-धुन करितहि बर-बरी-अदौरी मन पड़लनि‍। एक्के दिनमे कोना ओरियान हएत? घाटिये-बेसन बनबैमे तँ तीन दिन लागत। तखन कोना होएत? फेर तामस पजरए लगलनि। मन फेर खौंझा गेलनि। बजै लागलीह-‘‘ई सभटा आगि लगौल नगेसराक छी। जाबे ओकरा छितनीसँ चानि नहि तोड़ब ताबे ओकरा बुद्धि नहि हेतै। तमसाइले नागेसरक आंगन दिशि बजैत बढ़लीह। पुरुख छी आकि पुरुखक झड़। जहि पुरुखकेँ काजक हिसाबे नहि जोड़ए आओत ओहो कोनो पुरुखे छी। ओहिसँ नीक तँ मौगी।
नागेसर नदी दिशि गेल छलाह। नागेसरकेँ नहि देखि लुखिया डेढ़िये पर अनधुन बजए लागलि। मुदा नागेसरक पत्नी भुरकुरिया चुप-चाप सुनैत। किछु बजैत नहि। किएक तँ मने-मन सोचैत जे दिओर-भौजाइ बीचक बात छी, तहि बीच हम किएक मुँह लगबी। बजैत-बजैत लुखियाक पेटक बात सठलनि। बात सठितहि तामसो उतड़लनि। बोलीक गरमीकेँ कमैत देखि भुरकुरिया बाजलि- ‘‘अंगना चलथु दीदी। बीड़ी पीबि लेथु, तखन जइहथि।’’
घरसँ बीड़ी-सलाइ निकालि दुनू गोटे ओसारपर बैसि गप-सप्‍प करए लागलि। सलाइ खरड़ैत भुरकुरिया बाजलि- ‘‘दीदी, आब पीहुओकेँ जुआन होइमे देरी नञि लगतनि। कंठ फुटि गेलै।’’
भुरकुरियाक बात सुनि लुखिया हरा गेलीह। जुआन बेटाक सुख मनमे नचए लगलनि। लुखियाकेँ आनन्दित होइत देखि पुनः भुरकुरिया बाजलि- ‘‘भइयोसँ बेसी भीहिगर जवान पीहुआ हेतनि।’’
खुशीसँ लुखियाक हृदए बमकि गेलनि, बजलीह- ‘‘कनियाँ, खाइ-पीबैमे छौँड़ाकेँ की कोनो कोताही करै छिऐ। एक तँ भगवान नउऐं-कउऐं कऽ एकटा बेटा देलनि। तेकरो जँ सुख नै होए तँ एते खटबे ककराले करै छी। बापक मन तँ परुँके बिआह करैके रहै मुदा तइ बीच अपने चलि गेल। आब साल लगलै तँ अइ बेर जेना-तेना बिआह कइये देबै।’
कहि आंगन दिशि बिदा भेलीह। अंगनासँ निकलितहि मन नागेसरपर गेलनि। सोचए लागलीह, नागेसर बेचाराक कोन दोख छैक। ओहो की कोनो अधलाह केलक। हुनको मनमे ने होइत हेतनि जे झब दे पुतोहु घर आबनि। एखन तँ वएह ने बाप बनि ठाढ़ छथिन। मुदा काज अगुताइल केलनि। गरीब छी, तेकर माने ई नहि ने जे इज्जति नहि अछि। इज्जति कऽ तँ बचा कऽ राखै पड़ैत छैक। नव कुटुमैती भऽ रहल अछि। नव कुटुम्ब दुआरपर औताह। हुनका जँ पाँच कौर खाइयो ले नहि देबनि से केहेन हएत। स्वागत की कोनो धोतिये-टाका टा सँ होइत छैक? आकि दूटा बोल आ दू कौर अन्नोसँ होइत छैक। जेहेन पाहुन रहताह तेहने ने बेबहारो करए पड़त। फेर मनमे तामस उठए लगलनि। एहेन पुरुखे की जिनका धियो-पूतोक बिआह करैक लूरि नहि होइन। तहि बीच मन पड़लनि चाह-पान। चाहो-पानक ओरियान तँ करए पड़त। एहन नहि ने हुअए जे एक दिशि करी आ दोसर दिशि छुटि जाए। चाहे-पानटा किअए, बीड़ीओ-तमाकुलक ओरियान करए पड़त ने। ई की कोनो शहर-बजार छिऐ जे लोक एक्के- आधे टा अम्मल रखैत अछि। ई तँ गाम छिऐक, एहिठाम तँ एक-एक आदमी पनरह-पनरहटा अमल डेबैत अछि। अपनहि विचारमे लुखिया ओझरा गेलीह। किछु फुड़बे ने करनि। बुकौर लगै लगलनि। आँखिमे नोर ढ़बढ़बा गेलनि। मनमे उठए लगलनि जे घर तँ पुरुखेक होइत छैक। एते बात मनमे अबितहि लुखिया बाटपर आबि नागेसरक बाट देखए लगलीह। नदी दिशिसँ अबैत नागेसरपर नजरि पड़लनि। नजरि पड़ितहि बजलीह- ‘‘काल्हि घरदेखिया औताह आ अहाँ निचेनसँ टहलान मारै छी।’’
नागेसर- ‘‘अच्छा चलू। बैसि कऽ सभ विचारि लैत छी।’’
दुनू गोटे आंगन दिस बढ़ल। ओचाओन खरड़ैत पीहुआकेँ देखि नागेसर कहलखिन- ‘‘एखन तू ऐंठार चिक्कन करै छेँ की जा कऽ बाबरी छँटा अयमे? काजक अंगना छियौ तेँ पहिने बाहरक काज समेटि लेमे की घरे-अंगनाक काज करै छेँ। जो, जल्दी जो।’’
खरड़ा राखि पीहुआ बिदा भेल। लुखियाक नजरि बदललनि। जहिना चश्माक शीशाक रंग दुनियाँक रंगकेँ बदलि दै छै, तहिना लुखियाक नजरि नागेसरक बदलल रुपकेँ देखलक। बदलल रुप देखितहि सिनेह उमड़ि पड़लनि। सिनेहसँ बजलीह- ‘एते लगक दिन किअए देलिऐ? चारि दिन आगूक दितियनि। भरिये दिनमे सभ काज सम्हारल हएत?’’
लुखियाक समस्याकेँ हल्लुक बनबैत नागेसर कहलखिन- ‘‘आइ पहिल दिन घरदेखिया घर-बर देखए औत आकि खाइन-पीउन करै ले? पसिन्न हेतनि तँ खेता-पीताह, नहि तँ अपना घरक रस्ता धरताह। एखन तँ ओ बटोही बनि कऽ औताह। तेँ हमरो ओते सुआगतक ओरियान करैक जरुरत नहि अछि। जखन पीहुआ पसिन हेतनि, बिआह करब गछताह, तखन ने किछु, आकि समधीन बनैले बड़ अगुताइल छी ? होइए जे कखैन समैधिक संग होरी खेलाइ?’’
समधिक संग होरी खेलाएब सुनि लुखियाक मन उड़िऐ लगलनि। बजलीह- ‘‘हम की कोनो समैधिये भरोसे फगुआ रखने छी, दिअर कोन दिनले रहत?’’
लुखियाक मनसँ चिन्ता पड़ा गेलनि। मुस्की दैत बजलीह-‘‘ बाटो-बटोही जँ दुआरपर औताह तँ एक लोटा पानियो नहि देबनि?’’
नागेसर- ‘‘से तँ देबे करबनि। यएह इज्जति तँ हमरा सभक बाप-दादाक देल अमोल धरोहर छी।’’
खुशीसँ भसिआइत लुखिया कहलनि- ‘‘पुरुषक थाह हम नहि पाएब।’’
नागेसर- ‘‘कनी कालमे बजार जाएब। जे सभ जरुरीक बस्तु अछि से सभ कीनि आनब। तइले एते माथा-पच्ची करैक कोन जरुरी। अतिथिक सुआगत मात्र नीक-निकुति खुऔनहि होइत ? आकि प्रेम-पूर्वक तुकपर खुऔने होइत। बैसैक लेल चद्दरि साफ केलहुँ ? सिरमो खोल खीचि लेब।’’
‘‘सिरमामे खोल कहाँ अछि ? ओहिना पुरना साड़ीक बनौने छी। ओहूले दूटा खोल किनने आएब।’’
  ‘‘बड़बढ़ियाँ।’’
  दोसर साँझ आंगनमे बैसि नागेसर पीहुआकेँ पुछलक- ‘‘तोरा जे नाम पुछथुन्ह तँ की कहबुहुन?’’
  पीहुआ- ‘‘से की हमरा नाम नइ बुझल अछि। बउओक, माइयोक आ गामोक नाम बुझल अछि।’’
  ‘‘ओते नै पुछै छियौ। अपने टा नाम बाज ?’’
  ‘‘पीहुआ’’
  ‘‘धुर बुड़िबक। पीहुआ नहि पुहुपलाल कहिहनु।’’
  ‘‘से हमर नाम पुहुपलाल कहाँ छी। पहिने सभ कहैत रहए आब तँ सभ पीहुए कहैत अछि। एहिना ने लोकक नाम बदली होइत रहै छै।’’
  मुँह बिजकबैत लुखिया कहलक- ‘‘हँसी-चौलमे लोक तोरा पीहुआ कहै छौ आकि जनमौटी नाओँ छियौ।’’
  छठियार राति, दाइ-माइ पुहुपलाल नामकरण केलखिन। जखन ओ आठ-दस बर्खक भेल, तखन जाड़क मास बाधमे फानी लगबै लगल। गहींर खेत सभमे सिल्लियो आ पीहुओ आबि-आबि धान चभैत। जकरा ओ फानी लगा-लगा फँसबैत। अपनो खाइत आ बेचबो करैत। कछु दिनक बाद स्त्रीगण सभ पीहुआबला कहै लगलैक। फेर किछु दिनक पछाति भौजाइ सभ पीहुआ कहए लगलैक। मुदा तेकर एक्को मिसिया दुख ने पीहुएकेँ होइत आ ने पीहुआ माये-बापकेँ। तेँ पुहुपलाल बदलि पीहुआ भऽ गेल।
मने-मन नागेसर बिचारलनि जे ई पीहुआ एना नहि सुधरत। अखन सिखाइयो देबै तैयो बजै कालमे बाजिये देत। से नहि तँ दोसर गरे काज लिअए पड़त। लुखियाकेँ कहलखिन- ‘‘मोटरी खोलि सभ समान मिला लिअ।’’
दुनू दिओर-भौजाइ सभ समान मिलबए लगल। धोती देखि दुनूक बीच मतभेद भऽ गेलनि। कन्यागतक विदाइक लेल एक्के जोड़ धोती नागेसर कीनि कऽ अनने छलाह। किएक तँ बुझलनि जे बेटीबला धोती नहि पहिरैत अछि। मुदा से बात लुखिया बिसरि गेल छलीह। तेँ बजलीह- ‘‘दू गोटे औताह, तखन एक जोड़ धोतीसँ की हएत? कमसँ कम तँ जोड़ो कऽ केँ करबनि। जकरा बेसी रहै छैक ओ पाँचो टूक कपड़ा बिदाइ करैत अछि।’’
सामंजस्य करैत नागेसर- ‘‘हमरो सासुरक धोती रखले अछि। काज पड़त तँ दऽ देबनि।’’
  ‘‘गुलाबिये रंगमे रंगल अछि। एकरो गुलाबियेमे रंगि लेब। रंगो कीनि कऽ नेनहि आएल छी।’’
  दोसर दिन, सवेरे सात बजे कन्यागत दुनू बापुत पहुँचलाह। कन्यागतकेँ अबैसँ पहिनहि नागेसर एकचारीमे बिछान बिछा, तैयार केने छलाह। नबका खोलक सिरमो सिरा दिशि देने छलाह। कन्यागतकेँ अबितहि नागेसर ठेेंगा-छत्ता रखि पएर धोएले लोटा बढ़ौलकनि। चाह-पान आनए लुखिया पछुआरे बाटे लफड़ल चौक दिशि बिदा भेलि। जाधरि दुनू बापुत डोमन हाथ-पाएर धोए कुशल-क्षेम करैत, बिछानपर बैसलाह ताधरि लुखियो चौक परसँ चाह-पान कीनि अनलक। नागेसरक दुनू आँखि दुनू दिस। तेँ देखि लेलनि जे चाह आबि गेल। पीहुआकेँ कहलनि- ‘‘बौआ, चाह नेने आबह?’
  पीहुआ- ‘‘पानो।’’
  ‘‘पहिने चाह लाबह। पछाति पान अनिहह।’’
पीहुआक बोली डोमन सुनि लेलनि। तेँ नाम-गाम पुछैक जरुरते नहि रहलनि। दोहारा नमगर देह। मने-मन डोमन लड़िका पसन्द कऽ लेलनि। आँखिक इशारासँ डोमन बुचनकेँ पुछलखिन। आँखिएक इशारासँ बुचन सेहो स्वीकृति दऽ देलकनि। दुनू बापूतक मुँहमे हँसी नाचि गेलनि। मुदा लगले डोमनक मनमे एकटा शंका पैसि गेलनि। शंका ई जे मरदा-मरदी परिवार नहि अछि तेँ हो ने हो कोनो छोट-छीन बाधा ने बीचमे आबि भंगठा दिअए। चाह पीबि पान खा डोमन नागेसरकेँ कहलखि‍न- ‘‘समैध, जाधरि भानस होइत अछि ताधरि बाध दिशिसँ घुमि अबैले चलू। हँ, एकटा बात तँ कहबे ने केलौं, तीमन-तरकारी बेसी नै करब। सात-आठ दिनसँ लगातार माछ खेलहुँ, पेट गड़बड़ भऽ गेल अछि। गाममे रहितहुँ तँ मड़बज्झू भात आ केेरा चाहे भांटाक सन्ना संगे खइतहुँ। मुदा से तँ ऐठाम नहि हएत। तेँ दालि-भात एकटा तरकारी-सजमनि चाहे झिंगुनीक- बना लेब। तहूमे बेसी मसल्ला नै देबैक।’’
बीड़ी-सलाइ गोलगलाक जेबीमे रखि नागेसर लुखियाकेँ कहए आंगन गेलाह। ओना टाटक अढ़सँ लुखियो सुनि लेने छलीह। तेँ जबाब दैले मन उबिआइत रहनि। अवसर पाबि लुखिया बजलीह- ‘‘एते रास जे तीमन-तरकारीक ओरिआन केने छी से की हएत। अपने नै खेताह तँ आंगनवालीले मोटरी बान्हि देबनि।’’
अपिआरीमे फँसैत माँछ जेकाँ लड़िकाक माएकेँ फँसैत देखि डोमन बजलाह- ‘‘तइले की हेतैक, हिनको मोटरी बान्हि कन्हापर नेने जेबनि।’’
आँखि दाबि नागेसर लुखियाक बोली रोकै चाहलनि। मुदा लुखिया मुँहक बात बरतुहार दिशि नहि बढ़ि नागेसरे दिशि खसलनि- ‘‘बड़ बुधियार छथि। बुझब जे बेटाक बिआह केलहुँ तँ गामो-घर आ समधियो नीक भेटलाह। तेँ जेना-तेना कुटमैती कइये लेब।’’
लुखियाक बात सुनि नागेसरक मन हल्लुक भेलनि। लुखिया अपन भार दऽ बाधा हटौलक। नहि तँ बेर-बेर बाता-बाती होइत। समए पाबि डोमन जोरसँ बजलाह- ‘‘समधीने लग नुड़िआइल रहब आकि चलबो करब?’’
लुखियाक मन भीतरसँ चप-चप होइत। बजैक लेल लुस-फुस करैत। डोमनक बात सुनि बजलीह- ‘‘हिनके टा समधीन लगड़गर छन्हि, आनकेँ कि किछु छैक ?’’
मुस्की दैत नागेसर आंगनसँ निकलि बाध दिशि बिदा भेलाह। आँखि उठा-उठा डोमन गाम-घर देखैत जाइत। टोलसँ निकलि पछिम मुँहे एक पेड़िया धेलनि। गाछी टपि हाथक इशारासँ पच्छिम मुँहे देखबैत नागेसर कहलकनि- ‘‘पछबारि भाग जे चतरलाहा गाछ देखै छिऐक ओएह गामक सीमा छी।’’
दुनू बापुत देखि डोमन पुछलखिन- ‘‘उत्तरबरिया सीमा ?’’
  ओंगरीसँ देखबैत नागेसर- ‘‘ओ ढ़िमका जे देखै छिऐ, सएह छी।’’
  ‘‘दछिनबरिया।’’
  ‘‘तीन चारिटा जे छोटका गाछ एक ठाम देखै छिऐ ओ सीमेपर अछि। पीरारक गाछ छिऐक।’’
  बाधकेँ हियासि डोमन आँखिक इशारासँ बुचनकेँ देखलखिन। दुनू गोटे मने-मन अन्दाजलनि जे दू सए बीघासँ उपरेक बाध अछि। तहि बीच नागेसर बजलाह- ‘‘बुझलहुँ, बाबूक अमलदारीमे तँ सम्मिलिते छल मुदा हमरा दुनू भाँइमे बँटबारा भऽ गेल। उत्तरसँ हमर छी आ दछिनसँ भातिजक।’’
डोमन- ‘‘खोपड़ी कतऽ बनौने छी?’’
नागेसरकेँ पैछला घटना मन पड़लनि। ओंगरीसँ देखबैत कहए लगलखिन- ‘‘ओहि बँसबाड़ि आ गाछीक बीच एकटा खाधि छैक। जहिमे बिसनारिक गाछ सभ छैक। भदवारिमे पानि भरि जाइत छैक। बाँसोक पात आ गाछो सबहक पात ओहिमे खसि-खसि सड़ैत अछि। बिसनारियोक गाछ सभ सरि जाइत छैक। जाहिसँ कारी खट-खट पानि भऽ जाइत छैक। ढ़ाकीक-ढ़ाकी मच्छर फड़ि जाइत अछि। ओहि खाधिमे भैयाकेँ कालाज्वरक मच्छर काटि लेलकनि। कतबो दवाइ-बिरो भेलनि, मुदा नहि ठहरलखिन।’’
डोमन पुछलखिन- ‘‘अहाँ सभकेँ सरकारी अस्पतालमे दवाइ नहि दइए?’’
नागेसर कहलखिन- ‘‘से जँ दैतैक तँ एत्ते लोक मरबै करैत। बीस आदमीसँ उपरे हमरा गाममे कालाजारसँ मरलहेँ। अस्पतालमे किछु छैक थोड़े, ओहिना ईंटाक घर टा ठाढ़ अछि। दवाइकेँ के कहए जे कुरसियो-टेबुल बेचि नेने अछि।’’
बजैत-बजैत नागेसरक आँखि नोरा गेल। गमछासँ आँखि पोछि आगू बढ़ि गेला। तीनू गोटे खोपड़ी लग पहुँचलाह। बाधक बीचमे कट्ठा दुइएक परती, परतियेपर दुनू फरीकक खोपड़ियो आ पाँचटा अनेरुआ गाछो, दूटा साहोरक, दू-टा पितोझिया आ एकटा बज्र-केराइक। साहोरक गाछ सभसँ पुरान मुदा देखैमे सभसँ छोट। बज्र-केराइ सभसँ कम दिनक मुदा सभसँ नमहर। पितोझिया गाछक निच्चामे तीनू गोटे दुबिपर बैसि गप-सप्‍प करए लगलाह।
डोमन पुछलखिन- ‘‘रखबाड़ि–-राखी- कोना गिरहत सभ दैत अछि?’’
नागेसर बजलाह- ‘‘बीधामे पाँच घुर धानो आ गहूमो।’’
  ‘‘रब्बी, राइ माने दलि‍हन-तेलहन?’’
  ‘‘अंदाजेसँ देलक। अपनो सभ उखाड़ि दै छिऐ। जाहिसँ बोइनो भेल आ राखियो।’’
दुनू बापूत डोमन मने-मन हिसाब जोड़ए लगलाह। अगर कट्ठामे एक क्बीन्टल उपजत तँ पच्चीस किलो बीघामे भेल। जँ से नहि पचासो किलोक कट्ठा हएत, तैयो साढ़े बारह किलो बीघा भेल। सए बीघासँ उपरेक बाध अछि। तहिसँ या तँ पच्चीस क्वीन्टल, नहि तँ साढ़े बारह क्वीन्टल राखी -धान- सालमे जरुर होइतै हेतनि। तेकर बाद गहूम भेल, मड़ुआ भेल, आरो-आरो दलिहन-तेलहन भेल। दुइये माइ-पूत कते खाएत? हमरो बेटीकेँ अन्नक दुख नहि हेतै। मुस्की दैत डोमन बेटा दिशि तकलक। बेटो बाप दिशि ताकि आँखियेसँ गप-सप्‍प कऽ लेलक। कनी काल चुप रहि डोमन नागेसरकेँ पुछलखिन- ‘‘कथी-कथीक खेती बाधमे होइत अछि?’’
नागेसर बजलाह- ‘‘पान साल पहिने तक तँ अन्ने टाक खेती होइत छल। टो-टा कऽ सेरसो-तोड़ीक खेती। मुदा आब खेती बदलि रहल अछि।’’
मुस्की दैत पुन: आगू बजलाह- ‘‘की कहब, बुझू तँ राजा छी। दू सए बीघाकेँ अपन बपौती सम्पति बुझैत छी। दुनू सए बीघाक मालिक छी। एक बेर टाँहि दैत छलिऐक तँ जुआन-जुआन घसवहिनी सभ नाङरि सुटुका कऽ पड़ा जाइत छलि। मुदा आब से नहि करैत छी। खसल-पड़ल खेत, आड़ि पड़क घास कटैले ककरो मनाही नहि करैत छिऐ......।’’
किछु मन पाड़ि फेर बजलाह- ‘‘हँ तँ कहै छलौं जे जहि दिनसँ लोक बोरिंग गरौलक आ कोशियो नहरि एलैक तहि दिनसँ तँ बुझि पड़ैत अछि जे घरसँ बाध धरि लछमी सदिकाल नचितहि रहैत छथि। ककरो देखबै धानक बीआ पाड़ैत अछि तँ कियो रोपएले बीआ उखाड़ैत अछि। कियो कमठौन करैत अछि तँ कियो धान कटैत अछि, तँ कियो बोझ उघैत अछि। कियो दाउन करैत अछि, तँ कियो धान ओसबैत अछि, तँ कियो अगोँ रखैत अछि। कियो धान उसनियो करैत अछि तँ कियो पथार सुखबैत अछि। कियो मिलपर धान कुटबैत अछि तँ कियो चाउर फटकैत अछि। कते कहब।’’
डोमन बजलाह- ‘‘आनो-आनो चीजक खेती हुअए लागल होएत?’’
नागेसर बजलाह- ‘‘ऐँह की कहब ! पचासो किस्मक तँ धानेक खेती हुअए लगल अछि। ओते धानक की नामो मन अछि। धानक संग-संग खाद-पानि दऽ कऽ गहूम, दलिहनक खेती सेहो होअए लगल अछि। एते दिन तँ सरिसोए-तोड़क खेती होइत छल। आब सूर्यमुखीक खेती सेहो होइत अछि। राशि-राशिक तीमन-तरकारी सेहो हुअए लगल अछि। बीघा दसेकमे पनरह-बीस गोटे नवका आमक कलम सेहो लगौलक अछि। ऐँह, की कहब, आन्ध्राक आम, मद्रासी आम सभ सेहो लोक लगौलकहेँ। अजीब-अजीब आमो सभ अछि। अइ बेर रोपू तँ पौरुकेँ सँ फड़ए लगत। जेहने देखैमे लहटगर लागत तेहने खाइयोमे।’’
डोमन पुछलखि‍न- ‘‘आमक ओगरबाहि कोना दैत अछि ?’’
नागेसर कहलखिन- ‘‘तीन आममे एक आम सरही आ चारि आममे एक आम कलमी। से जहि दिन तोड़ल जाएत तइ दिनक कहलौं, तहि बीच खसल-पड़ल आमक हिसाब नहि। तेहेन आम सभ अछि जे टुकलेसँ धिया-पूता खाए लगैत अछि। खटहो आमकेँ चून लगा कऽ मीठ बना लैत अछि। धियो-पूतो तते बुधियार भऽ गेल अछि जे अंगनेसँ चून नेने जाएत आ आममे लगा कऽ खाएत।’’
डोमन पुछलखिन- ‘‘आरो की सभ आमदनी बाधसँ अछि?’’
नागेसर बजलाह- ‘‘सभटा की मनो अछि। (ओंगरीसँ देखबैत) दछिनबारि भाग बीघा बीसेक गहींर खेत छल। चौरी। गोटे साल नहि, ने तँ पहिने सभ साल धान दहाइये जाइत छलैक। मुदा आब, जहियासँ पानिक सुविधा भेल, सभ गिरहत अपन-अपन खेतकेँ आरो खुनि कऽ पोखरि जेकाँ बना-बना माछ पोसए लगलहेँ। आन्ध्र प्रदेशक एकटा माछ छै ‘इलिस’। ऐँह, की कहब, (मुँह चटपटबैत) अपना सभ कहै छिऐ रौह, मुदा ओइ इलिस आगूमे किछु नहि। जहिना बढै़मे तहिना सुआद। हमरा की कोनो रोक अछि, हमहीं ओगड़ै छिऐ ने, जहिया मन भेल तहिया बन्सीमे दूटा मारि लेलहुँ। आ सभ खेलहुँ। सभसँ मुश्किल आब बनौनाइ भऽ गेल। काजेसँ ने छुट्टी। के ओते मेठैन कऽ कऽ खाएत। आब सुर्ज माथपर आबि गेल। चलू। भानसो भऽ गेल हएत। गरमे-गरम खाइमे नीक होइ छै।’’
तीनू गोटे बाधसँ घर दिसक रास्ता धेलनि। थोडे़ आगू बढ़ल तँ बँसवारिमे एकटा चिड़ै बजैत सुनलनि। बाजबो अजीब ढ़ंगक। मुस्की दैत नागेसर डोमनकेँ पुछलखिन- ‘‘कहू तँ ई चिड़ै की बजैत अछि?’’
कने अकानि कऽ डोमन बजलाह- ‘‘ई तँ पान-बीड़ी सिगरेट बजैत अछि।’’
बात सुनि नागेसर ठहाका दऽ हँसल। कने काल हँसि बजलाह- ‘‘ई चिड़ै अहाँ गाम सभ दिशि नहि अछि। जहिया कोशीक बाढ़ि अबैत छलैक तहियेसँ ई चिड़ै हमरा गाममे अछि। ई बजैत अछि- बढ़मा, बिसुन, महेश।’’
विचारक भिन्नताक कारणे डोमन पुनः चिड़ैक बोली अकानए लगल। बुचन सेहो अकानए लगल। अपना बातमे मजबूती अनैक लेल नागेेसर सेहो अकानए लगल। दुनू चुप। दुनू अपन-अपन दुविधामे। डोमन बुचनकेँ पुछलक- ‘‘बौआ, तूँ तँ इसकुलो देखने छहक, तांेही कहह?’’
मामूली सवालमे हारि मानब ककरा पसिन्न होइत। डोमनक मन विचारकेँ मथैत।
डोमनक बात सुनि बुचन बाजल- ‘‘बाबू, हमरा बुझि पड़ैत अछि जे ‘तुलसी, सूर, कबीर’ कहैत अछि।’’
तीनूक तीन मत, तेँ विवादक प्रश्ने नहि, तीनू अपन-अपन रमझौआमे ओझड़ाएल। तेँ तीनू चुपचाप आगू-पाछू घर दिशि बिदा भेलाह।
घरपर अबितहि डोमन बजलाह- ‘‘लोटा नेने आउ। कनी डोल-डाल दिशिसँ भऽ अबैत छी।’’
नागेसर आंगनसँ दू लोटा पानि आनि कऽ देलकनि। लोटामे पानि देखि बुचन बाजल- ‘‘बाबू, आगूमे कल-तल नै छैक?’’
डोमन बजलाह- ‘‘एखन तूँ बच्चा छह, नहि बुझल छह?’’ कहि आगू मुँहे गाछी दिशि बिदाह भेलाह। गाछी पहुँचि एकटा सरही आमक गाछक निच्चाँमे दुनू बापूत बैसि विचार-विमर्श करए लगलाह।
बुचन- ‘‘बाबू, कुटुमैती करै जोकर परिवार अछि। समलाइके मे बिआह-सादी, दुश्मनी आ दोस्ती छजैत छैक। लड़िकाक बाप नहि छैक तँ की हेतै। गाम-घरमे लोक मइटुगरकेँ अधलाह बुझैत छैक।’’
डोमन बुचनक बातो सुनैत आ मूड़ियो डोलबैत मुदा मने-मन परिवारक आमदनी आ ओहि आमदनीकेँ समटैक लूरि सोचैत रहथि। जहि हिसाबसँ आमदनीक जड़ि देखि रहल छी ओहि हिसाबसँ सम्हारैक लुरि नहि छैक। जँ दुनू एक सतहपर आबि जाए तँ परिवारकेँ आगू मुँहे ससरैमे बेसी समए नहि लगत। एतेटा बाध छैक। अलेल घास सभ दिन रहतै। बाध ओगड़ैमे की लगैत छैक? एक-दू बेर अइ भागसँ ओइ भाग घुमब मात्र छैक। अगर जँ अपनो काज ठाढ़ कऽ लिअए तँ बैसारियो नहि रहतैक आ आमदनियो बढ़ि जएतैक। हमरा बेटीकेँ एहि घर अएलासँ एकटा काजुल आ बुधियार समांग बढ़ि जेतै। जानकीकेँ सभ हिसाब-कनमा, अधपेइ, पौवा, असेरा, सेर, अढ़ैया, पसेरी, धार आ मन सँ लऽ कऽ बोरा-क्वीनटल धरि, जोड़ैक लूरि छै। तहिना कोड़ी -बीस वस्तु, सोरे- सोलह, सोरहा -सोलह सोरे, दर्जन–बारह, ग्रुस-बारह दर्जन, जोड़ा -धानक आँटी, दस, गाही–पाँच, गंडा–चारि, जोड़ा–दू, पल्ला- एक सभ बुझैत अछि। मनमे खुशी एलै। बाजल- ‘‘बौआ, ओना जानकी गिरहस्तीक काज सम्हारि दूटा गाइयोक सेवा कऽ लेत। मुदा तहिसँ दूधे टाक आमदनी बढ़त। जरुरत छैक खेतिओ बढ़बैक। तेँ नीक हएत जे एकटा गाए आ एकटा बड़द दऽ दिऐक। एकटा बड़द आ एकटा हरबाह भेने दू समांग अपन भऽ जेतै। जहिसँ बीघा दू बीघा खेतियो कऽ सकैत अछि।’’
बुचन- ‘‘अपना खेत जे नहि छैक?’’
बुचनक बात सुनि डोमन हँसए लगलाह। हँसैत बजलाह- ‘‘बौआ, समए एहन आबि गेल अछि जे खेतोबला सभ खेती छोड़ि नोकरियेक पाछु बौआ रहल अछि। जहिसँ खेती केनिहारक अभाव भऽ रहल छैक। गिरहस्तीक हाल बिगड़ि गेल छैक। जबकि जरुरत छैक खेतमे मेहनतिक। जे सभ किसान नहि बुझि रहलाह अछि।’’
बुचन- ‘‘कोना बुझत?’’
डोमन गंभीर होइत बजलाह- ‘‘बौआ खेतीमे बड़ बुद्धिक काज छै मुदा खेती दिन-दिन मूर्खेक हाथमे पड़ल जाइ छै, से सोचलहकहेँ?’’
तर्क-वितर्क कऽ दुनू बापुत तँइ कऽ लेलक जे कुटमैती करबे करब। मुदा एकटा जटिल प्रश्न आबि कऽ  आगूमे ठाढ़ भऽ गेलनि। ओ ई जे बिआह उट-पटाँग ढ़ंगसँ नहि होइ? रस्तासँ पाइक उपयोग होइ। गुन-धुन करैत दुनू बापूत घर दिशि बिदा भेलाह।
जाधरि डोमन पैखाना दिशिसँ अबैत ताधरि लुखिया चारि-पाँच बेर दौड़ि-दौड़ि आंगनसँ बान्हपर जा-जा देखलनि। मनमे उड़ी-बीड़ी जेना लगल रहनि। जे कुटमैतीमे कोनो तरहक गड़बड़-सड़बड़ नहि हुअए। नहि तँ लोक पीकी मारत। कहत जे मौगीक मुख्तिआरी छी ने। बिनु मरदक मौगी बेलगामक होइते अछि। कहलो गेल छै-‘‘राँड़ मौगी साँढ़।’’ फेर मनमे उठलनि जे किछु होउ बिआह तँ हमरे बेटाक होएत। तेँ ककरो ओंगरी बतबैक रस्ता नहि रहए देबैक। जहिना बड़तुहार कहताह तहिना हमहूँ करब। जँ दुनू गोटेक मिलान रहत तँ किअए कोइ आँखि उठाओत। एते बात मनमे अबितहि बड़तुहारकेँ लुखिया अबैत देखलनि। बान्ह परसँ दौड़ले आंगन आबि हाँइ-हाँइ कऽ थारी साँठए लगलीह।
हाथ-पाएर धोइतहि नागेसर डोमनकेँ कहलकनि- ‘‘पहिने भोजने कऽ लिअ।’’
आगू-आगू लोटा नेने नागेसर आ पाछु-पाछु दुनू बापुत डोमन आंगन ऐलाह। पीढ़ीपर बैसितहि नागेसर थारी आनि आगूमे देलकनि। आँखि घुमा कऽ देखि डोमन बजलाह- ‘‘समैध, समधीनियोकेँ अढ़मे बजा लिअनु। विआहक सभ गप पक्का-पक्की कइये लेब। बैसारपर जखने गप उठाएब आकि चारु दिससँ लोक आबि अन्टक-सन्ट गप चालि देत।’’
आँखिक इशारासँ नागेसर भौजाइकेँ सोर पाड़ि बैसैले कहलक। तहि बीच डोमन कहलखिन- ‘‘समैध, समधीनकेँ पुछिअनु जे कोना बेटाक बिआह करतीह?’’
नागेसरकेँ अगुआ लुखिया बजलीह- ‘‘अहाँ सभ मरदा-मरदी गप करु। हमरा कोनो चीजक लोभ नहि अछि। नीक मनुक्ख घर आबए, बस एतबे लोभ अछि।’’
मने-मन नागेसर सोचैत जे हमर कतबो मोजर अछि, तइसँ की? कोनो की हमरा बेटा-बेटीक विआह हएत? तेँ हम अनेरे मुँह दुरि किअए करब। बाजल- ‘‘समैध, अहाँ अपने मुँहसँ बजियौक जे कोना करब?’’
भात-दालि सनैत डोमन बजलाह- ‘‘समैध, जहिना अहाँक भातिजक बिआह हएत तहिना तँ हमरो बेटीक हएत.....। लुखियाकेँ खुश करै दुआरे पुन: आगू बजलाह- ‘‘हमर बेटी साक्षात् लछमी छी। साल भरि की दसोसाल घुमि कऽ लड़की ताकब तँ ओहन नहि भेटत। तहूमे आब? आब तँ लोक मनुक्ख थोड़े घर अनैत अछि, अनैत अछि रुपैआ।’’
नागेसर टाटक अढ़मे बैसलि भौज दिशि तकैत बाजल- ‘‘खर्च-बर्च करै लेल किछु तँ चाहबे करी....।’’
नागेसरक बातकेँ कटैत लुखिया बजलीह- ‘‘नै ! हम ककरो बेटीकेँ पाइ लऽ कऽ अपना घर नै आनब।’’
नागेसर भौजक गप्प सुनि चुप भऽ गेल।
मुस्की दैत लुखिया बजलीह- ‘‘जखन दुआरपर आबि बेटा मंगलनि तँ हम दऽ देलियनि। आब हमरा की अछि। दू कौर अन्न आ दू बीत कपड़ा टा चाही। घर तँ आब ओकरे सबहक -बेटे-पुतोहुक- हेतै।’’
डोमन बजलाह- ‘‘समैध, पाँच गोटे जे बरिआती चलब, हुनकर सुआगत हम नीक जेकाँ करबनि। बड़-कनियाँकेँ, जे नव घर ठाढ़ करैक वस्तु अछि से तँ देबे करब। तेकर अतिरक्ति एकटा बड़द आ एकटा लगहरि गाए सेहो देब।’’
सबहक मुँहसँ हँसी निकलल। बिआहक दिन तँइ भऽ गेल। मुस्की दैत लुखिया बजलीह- ‘‘आब की हम कहबनि जे समधीनो हमरे दऽ दोथु।’’
ठहाका दैत डोमन उत्तर देलकनि- ‘‘बाह-बाह, तब तँ दुनू रोटी चाउरेक।’’
चारि बजे सुति-उठि चाह पीबि, पान खा डोमन नागेसरकेँ कहलखिन- ‘‘समैध, सभ बात तँ तइये भऽ गेल। आब चलब।’’
दुनू जोड़ धोती नागेसर आंगनसँ आनि आगूमे रखि देलकनि। धोती देखि डोमन बजलाह- ‘‘समैध, कतबो गरीब छी तेँ की मुदा इज्जति बचा कऽ रखने छी। बेटीक दुआरपर कोना धोती पहिरब?’’
टाटक भुरकी देने लुखिया देखैत रहथि। डोमनक बात सुनि दोगसँ बाजलीह- ‘‘समैधकेँ कहिअनु जे जखन बेटी आओत तखन ने बेटीक घर हेतनि, ताबे तँ हमर छी कीने। हम दैत छिअनि।’’
ठहाका दैत डोमन बजलाह- ‘‘जखन हमर बेटी एहि घर आओत तखन ने ओ समधीन हेतीह आकि अखने?’’
तहि बीच पीहुआ, सभकेँ गोड़ लगलक। एक्कैस रुपैआ डोमन पीहुआ हाथमे देलखिन।
थोड़े दूर अरिआति नागेसर घुमैत बाजल- ‘‘समैध, आब बढ़िऔक। नवम् दिनक दिन भेल। अहाँ काजमे लगि जाउ आ हमहूँ लगि जाइ छी।’’
डोमन दुनू बापुत बिदा भेलाह। आगू बेटीक बिआहक ओरिआओन रहनि किन्तु मनपर नचैत रहनि लुखियाक गप्प- ‘ककरो बेटीकेँ पाइ लऽ कऽ अपन घर नै आनब।’ देह सिहरि गेलनि बेटा दिश तकलनि। ओहो आब विआह जोगर भऽ गेल रहए।

Thursday, January 1, 2009

शहीद दुर्गानन्द झा- जितेन्द्र झा

जितेन्द्र झा
के राखत रुमालक इज्जति

एकटा मैल, पुरान रुमाल आ गीताक किताब चीरकालधरि सुरक्षित राखऽ चाहैत छथि अरविन्द ठाकुर । कियाकी बलिदानक चिन्हासी आ मित्रताक याद सहजने अछि ई रुमाल । जर्जर रुमाल याद दिअबैत छन्हि हिनका जेल जीवन आ दुर्गानन्दस“गे बिताओल समय ।

शहिद दुर्गानन्द झाके फांसी देलाक बाद काठमाण्डूक केन्द्रिय कारागारमे हिनका रुमाल आ गीताक पोथी सोंपल गेलनि । गीताक किताब त नहि मुदा रुमाल एखनधरि सहजने छथि अरविन्द । ओहि गीता किताबक प्रतीकके रुपमे ई एकटा ओहने गीता रखने छथि । प्रजातन्त्रक योद्धा ठाकुर ई रुमालक संरक्षण के करत से खोजि रहल छथि । एहि वास्ते ओ बहुतो नेताके आग्रह कऽ चुकल छथि, मुदा केओ हिनक आग्रह के औचित्य नहि बुझि सकल । नेपालक संग्रहालयसभ संस्कृति मन्त्रालय अन्तर्गत पडैत अछि । संस्कृतिमन्त्री नेपाली कांग्रेसक मिनेन्द्र रिजाल छथि । ठाकुर कहैत छथि जे मिनेन्द्र रिजालसहित कतेकोस“ अनुरोध कऽ चुकल छी एकर संरक्षणक लेल मुदा केओ नहि सुनलक । जत्तऽ दुर्गानन्द झाक नामे उपेक्षित अछि, ओत्तऽ हुनक रुमालके के पुछए ? ठाकुरक माग छन्हि जे रुमालके राष्ट्रिय संग्रहालयमे राखल जएबाक चाही ।
दुर्गानन्दके एकटा शहिदक रुपमे नेपाल सरकार सम्मान नहि कऽ सकल अछि एहनमे गीता आ रुमालक खोजी आ संरक्षण के करत ?
वि.स. २०२० माघ १५ गते दुर्गानन्द झाके फांसी देल गेल रहनि । ओहिके तीन दिनबाद जेलर ठाकुरके दुनू वस्तु देने रहथि । आब ४ दशक होबऽ लागल अछि ओहि दिनके, जहिया तत्कालीन राजापर बम फेकबाक आरोपमे दुर्गानन्द झाके फांसी चढाओल गेल रहनि । २०१८ सालमे जनकपुरक जानकी मन्दिरमे तत्कालीन राजा महेन्द्रपर बम प्रहार भेल छल । जाहिमे महेन्द्र सकुशल बांचि गेल छल । दुर्गानन्द आ अरविन्द बमप्रहारक आरोपमे जेल सजाय काटैत रहथि । नावालिग भेलाक कारणे अरविन्दके फांसी नहि देल गेलनि । जेल जीवनक चरम यातनाके याद करैत अरविन्दक आंखि नोरा जाइत छन्हि ।
अरविन्दक अनुसार दुर्गानन्द झाके तडपा तडपाकऽ मारने रहए तत्कालीन क्रुर शाही शासक । ठाकुर अनुसार एकबेर रस्सीपर लटकाओल गेल फेर कनी काल सांस फेरऽलेल छोडल गेल । तहन फंसरी पर लटकाकऽ यातना देल गेल । आ अन्तमे गोली दागल गेल दुर्गानन्द झापर । एतेक केलाक बादो क्रुुरता जारीए रहलै । दुर्गानन्दके शवधरि हुनक परिवार जनके नहि देल गेल छलैक ।


राज्य शहिदक जीवनीके सेहो उन्टा पुन्टाकऽ राखि देने अछि । कक्षा १० के पाठयपुस्तकमे दुर्गानन्द जीवनी अछि जाहिमे हुनक बलिदानी तिथिए गलत लिखल छैक ।

दूर्गानन्द झाक बलिदानके सम्मान करबाक राज्यके दायित्व छैक । मुदा साम्प्रदायिक मानसिकतासं जकडल नेता, मन्त्रीसभ एकरा अनदेखी करैत रहल । लगैछ जे दुर्गानन्द झाके शहिदक रुपमे चिन्हाबहोमे राज्यके लज्जाबोध छैक ।

हुनका प्रतिक विभेदसं दुखित छथि अरविन्द । नेपालमे प्रजातन्त्र एलाक बाद वएह सभ कुर्सी पओलक जे दुर्गानन्दसंगे आन्दोलनमे छल । मुदा ओ सभ कहियो दुर्गानन्द आ हुनक माय आ पत्नीके याद नहि कएलक । घरक एक्कहिटा सहारा दुर्गानन्दके फांसीक बाद घर सभदिनक लेल अन्हार अन्हार भऽ गेलै ।

प्रजातन्त्र एलाक बाद सत्तामे सभसं बेशी समय रहल नेपाली कांग्रेस दूर्गानन्द झाके अपन कार्यकर्ता कहैत गर्व करैत अछि मुदा ओकर व्यवहारमे मात्र घृणेटा देखाइ दैत छैक । शहिद झाक माय सुकुमारी देवी आ पत्नी काशी देवीके गुजर बसर करब मुश्किल छलैक । तहिया कोनो कांग्रेसी नेताके याद नहि एलै दुर्गानन्दक शोणित । काशी देवी सिकीमौनी बुनिकऽ संघर्षक पथपर आगु बढैत रहली । वएह काशी देवी आइ संविधान सभाक सदस्य छथि । तराई मधेश लोकतान्त्रिक पार्टी हुनका समानुपातिक सभासद् बनौने छन्हि ।
नेपाल एखन शहिद सप्ताह मनाबि रहल अछि । शहिदक नामपर नेता लम्बा चौडा भाषण दैत अछि । तालीक गडगडाहटि सेहो सुनाइत छै । मुदा दुर्गानन्द सनके शहिदके पुछनिहार कियो नहि । शहिद परिवारके घरमे चुल्हि जरलै की नहि से के देखत ? नेपालमे बलिदानी देनिहार सभके इएह गति छैक । शहिद परिवारक व्यथा कतबो बखानी कम्मे हएत । वंशवाद र परिवारवादसं रंगल कांग्रेस दुर्गानन्दक उपेक्षासं खिन्न छथि अरविन्द । ओ कहैत छथि हमसभ इएह दिन देखबालेल बलिदान नहि कएने रहौं ।

नेपालमे शहिदक नामसं कतेको प्रतिष्ठान, अस्पताल, ट्रष्ट संचालित अछि । मुदा दुर्गानन्दक नामसं किछु नहि । हुनक नामक पाछा कोइराला या एहने किछु थर लागल रहैत त बहुत किछु सम्भव छलै ।
दुर्गानन्दके उचित सम्मान करबास“ वि.पी. कोइराला, गिरिजाप्रसाद कोइरालासभके के रोकलकै से बुझऽ चाहैत अछि जनता । जकर शोणित पर प्रजातन्त्रक जग निर्माण भेलै तकरे सं सौतिनिञा व्यवहार किया ? कांग्रेस पार्टीए जहन कोनो मतलब नहि रखलक शहिदसं तहन दलीय राजनीतिमें आन पार्टी आ सरकारके देखबाक बाते कोन ?


गिरिजाप्रसादक मगरमच्छक नोर
संविधान सभामे जहन पहिल बेर सभासद् आ तत्कालीन कांग्रेस सभापति गिरिजाप्रसाद कोइराला काशी देवीके देखलनि त कोइरालाके आंखि नोरा गेल रहनि । घटनाक प्रत्यक्षदर्शी सभासद् वसन्तीदेवी झा कहैत जे हमही गिरिजाके याद दिऔलियनि जे ई दुर्गानन्द झाक पत्नी छथि । तहन भावविह्वल होइत गिरिजा काशीदेवीके हाथ पकरिक कहनेरहथि हम किछु नहि कऽ सकलौं । जनकपुरक सभा, सम्मेलनमे गिरिजाप्रसादसं काशीदेवीक भेट होइत छलन्हि ।
दुर्गानन्दके चिन्हाबऽ लेल एउटा शालिक बनाओल गेल अछि धनुषा जिलाक जटहीमे । देशके लेल ओहन बलिदानी देनिहारक लेल सरकारके कोनो आन महत्वपुर्ण जगह नहि भेटलै । की दुर्गानन्दक प्रतिमा लेल राजधानी काठमाण्डू छोट पडि गेल रहै ? जनकपुरक कोनो चौक खाली नहि रहै ? जानकी मन्दिरमे बम काण्ड भेल छलै, मन्दिर परिसरमे शालिक रखलासं मन्दिर अपवित्र भऽ जइतै ?
काठमाण्डूके केन्द्रमे शहिद गेट छैक, की ओत्त दुर्गानन्दके शालिक रखबाक हैसियत नहि रहै ? संघीय गणतन्त्र नेपालक राजधानी काठमाण्डूमे एखनो शाहवंशीय राजासभक शालिक आ राणा क्रुर शासक सभहक चिन्हासी शोभाक वस्तु बनल अछि ।
व्यवहारमे दुर्गानन्दसं एत्तेक भेदभाव केनिहार कांग्रेस पार्टी दुर्गानन्दके भजाबऽसं पाछु नहि अछि । दूर्गानन्द झाक नाम बेचिकऽ भोट बटोरबाक काज सेहो चुनावमे होइते अछि । ततबे नहि दूर्गानन्द झाक नाममे संघसंस्थारुपी दोकान सेहो खोलल गेल अछि । जकर काज छैक मात्र दुर्गानन्दक नामपर लोकके सहानुभूति आ पाइ बटोरब । (साभार विदेह www.videha.co.in)

बहीन - जगदीश प्रसाद मण्डल



  ‘आब अधिक दिन माए नहि खेपतीह। ओना उमेरो नब्बे बर्खक धत-पत हेबे करतनि। तहूँमे बर्ख पनरह-बीसेकसँ कहियो बोखार के कहए जे उकासियो नहि भेलनि अछि। एक तँ ओहिना पाकल उमेर तहिपर सँ देहक रोगो पछुआएल, तेँ भरिसक एहिबेरि उठि कऽ ठाढ़ हेबाक कम भरोस। किएक तँ एक ने एक उपद्रव बढ़िते जाइत छन्हि। अन्नो-पानि अरुचिये जेकाँ भेलि जाइ छनि।’’ -भखरल स्वरमे राधेश्याम पत्नीकेँ कहलखि‍न।
पतिक बात सुनि, कने काल गुम्म रहि, रागिनी बाजलि- ‘‘ककरो औरुदा तँ कियो नहिये दऽ सकैत अछि। तहन तँ जाधरि जीबैत छथि ताधरि हम-अहाँ सेबे करबनि की ने?’’
  ‘हँ, से तँ सएह कऽ सकैत छियनि। मुदा जिनगीक कठिन परीक्षाक घड़ी आबि गेल अछि। एते दिन जे केलहुँ, ओकर ओते महत्व नहि जते आबक अछि। किएक तँ कखनो पानि मंगतीह वा किछु कहती, तहिमे जँ कनियो देरी हएत आ कियो सुनि लेत तँ अनेरे बाजत जे फल्लांक माए पानि दुआरे किकिहारि कटैत रहैत छथिन। मुदा बेटा-पुतोहू तेहन जे छै घुरि कऽ एको-बेरि तकितो नहि छन्हि। ककरो मुँहमे ताला लगेबै। देखिते छियै जे गाममे कोना लोक झुठ बाजि-बाजि झगड़ो लगबैत आ कलंको जोडै़त अछि। तेँ चैबीसो घंटा ककरो नहि ककरो लगमे रहए पड़त। जँ से नहि करब तँ अंतिम समएमे कलंकक मोटरी कपारपर लेब।’’
 ‘‘कहलहुँ तँ ठीके, मुदा बच्चा सबहक हिसाबे कोन, तहन तँ दू परानी बचलहुँ। बेरा-बेरी दुनू गोटे रहब। अन्तुका काज अहूँ छोड़ि दिऔ। किएक तँ अंगनेक काज बढ़ि गेल। बहीनो सभकेँ जनतब दइये दिअनु।’’
  ‘‘अपनो मनमे सएह अछि। जँ तीनू बहीनि आबि जाएत तँ काजो बँटा कऽ हल्लुक भऽ जाएत। ओना अंगनासँ दुआरि धरि काजो बढ़बे करत। जखने सर-संबंधी, दोस्त-महिम बुझताह तँ जिज्ञासा करए अएबे करताह। जखन दरबज्जापर औताह तँ सुआगत बात करै पड़त”।
मूड़ी डोलबैत रागिनी बजलीह- ‘‘हँ, से तँ हेबे करत।’’

  ‘‘एखन निचेन छी आ काजो करैऐक अछि। तेँ अखने तीनू बहीनियो आ ममोकेँ जानकारी दइये दैत छिअनि।’’ आन कुटुम्बकेँ एखन जानकारी देब जरुरी नहि छै। मोबाइलमे मामाक नम्बर लगौलक। रिंग भेलै।

 ‘‘हेलो, मामा। हम राधेश्याम।’’
  ‘‘हँ, राधेश्याम। की हाल-चाल?’’
  ‘‘माए, बड़ जोर दुखित पड़ि गेलीह।’’
 ‘‘एखन हम एकटा जरुरी काजमे बँझल छी। साँझ धरि आबि रहल छी।’’ मोबाइल बन्न कऽ राधेश्याम जेठ बहीनि गौरीक नम्बर लगौलक।
 ‘‘हेलो, बहीनि। माए दुखित पड़ि गेलखुन।’’
  ‘‘एखन हम स्कूलेमे छी आ अपनहुँ कओलेजेमे छथि। छुट्टीक दरखास्त दइये दैत छिअए। साँझ धरि पहुँच जाएब।’’
  मोबाइल बन्न कऽ छोटकी बहीनिक नम्वर लगौलक।
  ‘‘सुनीता। हम राधेश्याम।’’
  ‘‘भैया, माए नीके अछि की ने?’’
  ‘‘एखन की नीक आ कि अधलाह। तीनि दिनसँ ओछाइन धेने अछि। तेँ किछु कहब कठिन।’’
  ‘‘हम अखने छुट्टीक दरखास्त दऽ आबि रहल छी।’’
  ‘‘बड़बढ़िया’’ कहि मझिली बहीनि रीताक नम्बर लगौलक।
  ‘‘हेलो, रीता। हम राधेश्याम। माए, बड़ जोर दुखित छथुन।’’

   ‘भैया, हम तँ अपने तते फिरीसान छी जे खाइक छुट्टी नहि भेटैत अछि। काल्हियेसँ दुनू बच्चाक प्रतियोगिता परीक्षा छियै’
बिना स्विच ऑफ केनहि राधेश्याम मोबाइल राखि अकास दिशि देखए लगल। ठोर पटपटबैत- ‘बच्चाक परीक्षा......, मृत्यु सज्जापर माए....! केकरा प्राथमिकता देल जाए? एक दिशि, जे बच्चा एखन धरि जिनगीमे पएरो नहि रखलक, सौंसे जिनगी पड़ल छैक। दोसर दिशि कष्टमय जिनगीमे पड़ल बृद्ध माए। खैर, सभकेँ अपन-अपन जिनगी होइ छैक आ अपना-अपना ढ़ंगसँ सभ जीबए चाहैत अछि। हम चारि भाए बहीनि छी तेँ ने दोसरपर ओंगठल छी। मुदा जे असकरे अछि, ओ कोना माए-बापक पार-घाट लगबैत अछि। किछु सोचितहि छल कि नव उत्साह मनमे जगल। नव उत्साह जगितहि नजरि पाछु मुँहे ससरल। चारु भाए-बहीनिमे माए सभसँ बेसी ओकरे मानैत छलि आ ओकर सेबो केलक। कारणो छलैक जे बच्चेसँ ओ रोगा गेल छलि। मुदा आश्चर्यक बात तँ ई जे जेकरा माए सभसँ बेसी सेवा केलक वएह सभसँ पहिने बिसरि रहलि अछि।
  गोसाँइ डूबैत-डूबैत मामो आ दुनू बहीनि-बहिनोइ पहुँच गेलखि‍न।
अबितहि डॉ. सुधीर -छोट बहिनोइ- आला लगा सासु माएकेँ देखि कहलखिन- ‘‘भैया, माए बँचतीह नहि। मुदा मरबो दस दिनक बादे करतीह। तेँ एखन ओते घबड़ेबाक बात नहि अछि। अखन हम जाइ छी, मुदा बहीनि डॉ. सुनिता रहतीह। ओना हमहूँ दू-दिन तीन-ि‍दनपर अबैत रहब।’’
  डॉ. सुधीरक बात सुनि सभकेँ क्षणिक संतोष भेलनि। मामा कहलखिन- ‘‘भागिन, ओना हम ककरो छींटा-कस्सी नहि करैत छिअनि मुदा अपन अनुभवक हिसाबे कहैत छिअह जे भरि दिन तँ स्त्रीगण सभ मुस्तैज रहथुन मुदा रातिमे नहि। ओना हमरो गाम बहुत दूर नहिये अछि। एखन तँ धड़फड़ाइले चलि एलहुँ। तेँ एखन जाइ छी। काल्हिसँ साँझू पहरकेँ एबह आ भोर कऽ चलि जेबह। भरि राति दुनू माम-भगिन गप-सप्‍प करैत ओगरि लेब।’’
दुनू बहिनोइयो आ मामो चलि गेलखिन।
  ‘‘आइ सातम दिन माएकेँ अन्न छोड़ब भऽ गेलनि। दू-चारि चम्मच पानि आ दू-चारि चम्मच दूध, मात्र अधार रहि गेल छनि।’’ -आंगनसँ दरवज्जापर आबि रागिनी पतिकेँ कहलखि‍न।
  पत्नीक बात सुनि राधेश्याम मने-मन सोचए लगलाह। मनमे उठलनि चारु भाए-बहीनिक पारिवारिक जिनगी। कतेक आशासँ दुनू गोटे माए-पिता हमरा चारु भाए-बहीनिकेँ पोसि-पालि, पढ़ा-लिखा, विआह-दुरागमन करा परिवार ठाढ़ कऽ देलनि। जहिना गौरी जेठ बहीनि एम.ए. पास अछि। तहिना एम.ए. पास बहिनोइयो छथि। हाई स्कूलमे बहीन नोकरी करैत अछि तँ कौलेजमे बहिनोइ। परिवारक प्रतिष्ठा, समाजोमे बढ़वे केलनि जे कमलनि नहि। तहिना छोटकियो बहीनि अछि। बहीनो डॉक्टर आ बहिनोइयो डॉक्टर। तहिना तँ पिताजी मझिलियो बहीनिकेँ केलनि। दुनू परानी इंजीनियर। बम्बइमे दुनू गोटे नोकरी करैत अि‍छ।
 जहिना तीनू बहीनि पढ़ल-लिखल अछि तहिना बहिनोइयो छथि। अजीव नजरि पितोजीक छलनि। मनुष्यक पारखी। तेँ ने बहीनिक विआह समतुल्य बहिनोइक संग केलनि। एक माए-बापक तीनू बेटी, पढ़ल-लिखल, एक परिवारमे पालल-पोसल गेलि, मुदा तीनूक विचारमे एते अंतर कोना अबि गेलै। एहि प्रश्नक जबाव राधेश्यामकेँ बुझैमे अयबै नहि करनि। मन घोर-घोर होइत। एक दिशि माइक अंतिम अवस्थापर नजरि तँ दोसर दिशि मझिली बहीनिक व्यवहारपर।
विचारक दुनियाँमे राधेश्याम औनाए लगलाह। प्रश्नक जबाब भेटिबे ने करनि। अपन परिवारपर सँ नजरि हटा बहीनि सभक परिवार दिशि नजरि दौड़ौलनि।
  गौरीक ससुर उमाकान्त हाई स्कूलक शिक्षक रहथिन। अपने बी.ए. पास मुदा पत्नी साफे पढ़ल-लिखल नहि। नाओ-गाँव लिखल नहि अबनि। ओना पिता पंडित रहथिन। मुदा बेटी कऽ परिवार चलबैक लूरिकेँ बेसी महत्व देथिन। जाहिसँ कुशल गृहिणी तँ बनि जाएत, मुदा ने चिट्ठी-पुरजी पढ़ल होइछै आ ने लिखल। ओना जरुरतो नहि रहै। किऐक तँ ने पति-पत्नीक बीच चिट्ठी-पुरजीक जरुरत आ ने कुटुम्ब-परिवारक संग। मुदा दुनू परानी उमाकान्त आ सरिताक बीच असीम स्नेह। मास्टर सहाएबकेँ अपन बाल-बच्चासँ लऽ कऽ विद्यालयक बच्चा सभकेँ पढ़बै-लिखबैक मात्र चिन्ता। जहि पाछू भरि दिन लगलो रहथि। जखन कि पत्नी सरिता परिवारक सभ काज सम्हारैत। एखनुका जेकाँ लोकक जिनगियो फल्लर नहि, समटल रहै। गौरीक परिवारपर सँ नजरि हटा राधेश्याम छोटकी बहीनि डॉ. सुनिताक परिवारपर देलनि। जहिना बहीनि डॉक्टरी पढ़ने तहिना बहिनोइयो। जोड़ो बढ़ियाँ। सुनिताक ससुर बैद्य रहथिन। जड़ी-बुट्टीक नीक जानकार। जहिना जड़ी-बुट्टीक जानकार तहिना रोगो चिन्हैक। जहिसँ समाजमे प्रतिष्ठो नीक आ जिनगियो नीक जेकाँ चलनि। तेँ अपन चिकित्साक वंशकेँ जीवित रखैक दुआरे बेटाकेँ डॉक्टरी पढ़ौलनि। पत्नियो तेहने। अंगनाक काज सम्हारि, बाध-बोनसँ जड़िओ-बुट्टी अनैत आ खरलमे कुटबो करैत रहथि। दवाइ बैद्यजी अपने बनाबथि किऐक तँ मात्राक बोध गृहिणीकेँ नहि रहनि। छोटकी बहीनिक परिवारपर सँ नजरि हटा मझिली बहीनिक परिवारपर देलनि। रीताक ससुर मलेटरिक इंजीनियरिंग विभागमे हेल्परक नोकरी करैत। अपनहि विचारसँ मलेटरिऐक बेटीसँ विआहो -लभ-मैरिज- केने। मलेटरिक नोकरी, तेँ पाइयो आ रुआबो। हाथमे सदिखन हथियार तेँ मनो सनकल। मुदा बेटा-बेटीकेँ नीक जेकाँ पढ़ौलनि। जहिना रीता इंजीनियरिंग पढ़ने तहिना घरोबला। दुनू बम्बइक कारखानामे नोकरी करैत। कमाइयो नीक खरचो नीक, तहिना मनक उड़ानो नीक। एकाएक राधेश्यामक मनमे उठल जे आब तँ माइयक अंतिमे समए छी तेँ एक बेरि रीताकेँ फेरि फोन कऽ कऽ जानकारी दऽ दिअए। मोवाइल उठा रीताक नम्वर लगौलनि। रिंग भेल बाजलि‍-  ‘‘हेलो, हम राधेश्याम।’’
‘‘हेलो, भैया। अखन हम स्टाफ सबहक संग काजमे व्यस्त छी।’’
   रीताक जबाव सुनि राधेश्याम सन्न रहि गेलाह। रातिक दस बजैत। इजोरियाक सप्तमी अन्हार-इजोतक बीच घमासान लड़ाइ छिड़ल। किछु पहिने जहि चन्द्रमाक ज्योति अन्हारपर शासन करैत, वएह चन्द्रमा पछड़ि रहल अछि। तेज गतिसँ अन्हार आगू बढ़ि रहल अछि। तहि बीच छोटकी बहीन डॉ. सुनीता आंगनसँ आबि भाय राधेश्यामकेँ कहलक- ‘‘भैया, हम तँ भगवान नहि छी, मुदा माइयक दशा जहि तेजीसँ बिगड़ि रहल छनि, तहिसँ अनुमान करैत छी जे काल्हि साँझ धरि परान छुटि जेतनि।’’
  एक दिशि माइक अंतिम दशा आ दोसर दिशि रीताक बिचारक बीच राधेश्यामक धैर्यक सीमा डगमग करए लगलनि। विचित्र स्थिति। जिनगीक तीनिबट्टीपर वौआए लगलाह। तीनिबट्टीक तीनू रस्ता तीनि दिस जाइत। एक रास्ता देवमंदिर दिशि जाइत तँ दोसर दानवक काल-कोठरी दिशि। बीचक रास्तापर राधेश्याम ठाढ़। एकाएक निर्णय करैत राधेश्याम बहीनि सुनिताकेँ कहलखिन- ‘‘कने गौरियो कऽ बजाबह।’’
  आंगन जा सुनिता गौरीकेँ बजौने आएलि। दुनू बहीनिक बीच राधेश्याम बजलाह- ‘‘बहीनि, जहिना हमर बहीन रीता तहिना तँ तोड़़ो सबहक छिअह। तेँ, तोहूँ सभ एक बेरि फोन लगा माइक जानकारी दऽ दहक। हम निर्णय कऽ लेलहुँ जे जहिना एहि दशामे माइक रहनहुँ, ओकरा अपन धिया-पूतासँ अधिक नहि सुझैत छैक तहिना हमहूँ ओकरा भरोसे नहि जीबैत छी। तेँ जँ माए के जीवितमे नहि आओत तँ मुइलाक बाद नहो-केश कटबैक जानकारी नहि देबइ। हमरा-ओकरा बीच ओतबे काल धरि संबंध अछि जते काल माइक प्राण बँचल छैक। कहलो गेल छैक ‘भाए-बहीनि महीसिक सींग, जखने जनमल तखने भिन्न।’ मन तँ होइत अछि जे भने ओ एखन स्टाफ सभक बीच अछि, तेँ एखने सभ बात कहि दियै। मुदा कहनहुँ तँ किछु भेटत नहि, तेँ छोड़ि दैत छियै।’’
  जहिना अकासमे उड़ैत चिड़ैकेँ बंश रहितहुँ परिवार नहि होइ छै तहिना जँ मनुक्खोक होइ तँ अनेरे भगवान किऐक बुद्धि-विवेक दइ छथिन। किऐक नहि मनुक्खोकेँ चिड़ैइये-चुनमुनी आ कि चरिटंगा जानवरेक जिनगी जीबए देलखिन।’ बजैत-बजैत राधेश्यामोक आ दुनू बहीनियोक करेज फाटए लगलनि। आँखिसँ नोर टघरए लगलनि। भाए-बहीनिक टूटैत संबंधसँ सभ अचंभित हुअए लगलथि। सबहक हृदयमे रीता नचए लगलनि। बच्चासँ विआह धरिक रीताक जिनगी सबहक आँखिमे सटि गेलनि। एक दिशि रीता बम्बइक घोड़दौड़ जिनगीक प्रतियोगितामे आगू बढ़ए चाहैत छलि तँ दोसर दिशि देवालमे टांगल फोटो जेँका सबहक हृदयमे चुहुट कऽ पकड़ने। जहिना बाँसक झोंझसँ बाँस काटि निकालैमे कड़चीक ओझरी लगैत तहिना धि‍या-पूताक ओझरीमे रीता।
  ‘तीनू ननदि-भौजाइ गौरि, सुनिता आ रागिनी माए लग बैसि मने-मन सोचए लगलीह। कियो-ककरो टोकैत नहि। तीनू गुमसुम। सिर्फ आँखि नाचि-नाचि एक-दोसरपर जाइत। मुदा मन श्वेतबान रामेश्वरम् जेँका। एक दिशि जिनगी रुपी भूमि स्थल जेँका विशाल भूभाग देखैत तँ दोसर दिशि मृत्यु रुपी अथाह समुद्र। यएह थिक जिनगी आ जिनगीक खेल। जहि पाछु पड़ि लोक आत्माकेँ बलि चढ़वैत। तहि बीच माए बाजलि- ‘रीता.....।’ रीताक नाम सुनि तीनूक हृदयमे ऐहेन धक्का लगलनि जहिसँ तीनू तिलमिला गेलीह।
रातिक एगारह बजैत। गामक सभ सुति रहल। इजोरियो डुबैपर। झल-अन्हार। दलानक आगूमे, कुरसीपर बैसि राधेश्याम आँखि मूनि अपन वंशक संबंधमे सोचैत रहथि। मनमे अएलनि जे आइ सप्तमीक चान डुबि रहल अछि, अन्हार पसरि रहल अछि, मुदा कि कल्हुका चान आइसँ कम ज्योतिक होएत? की अगिला ज्योति पैछला अन्हारक अनुभव नहि करत? सभ दिनसँ अन्हार-इजोतक बीच संघर्ष होइत आएल अछि आ होइत रहत। फेरि मनमे उठलनि जे आजुक राति हमरा लेल ओहन राति अछि जे भरिसक माइक जिनगीक अंतिम राति हएत। जनिका संग हजारो राति बीतल ओहिपर विराम लगि रहल अछि। विचारक दुनियाँमे उगैत-डूबैत राधेश्याम। तहिकाल शबाना पोतीक संग पहुँचलीह। दलान-आंगनक बीच रास्तापर दुनू गोटे चुपचाप ठाढ़ि। दुनू डेराएल। राधेश्याम आँखि मुनने तेँ नहि देखैत। परोपट्टामे हिन्दु-मुसलमानक बीच तना-तनी। जहि डरसँ शबाना दिनकेँ नहि आबि अन्हारमे आएलि। किऐक तँ सरोजनीक स्नेह खींचि कऽ लऽ अनलकै। रेहना शबानाकेँ कहलक- ‘‘दादी, अइठीन किअए ठाढ़ छीही, अंगना चल ने?’’
  रेहनाक अवाज सुनितहि राधेश्याम आँखि तकलनि तँ दुनू गोटेकेँ ठाढ़ देखलनि। पुछलथि-  ‘‘के?’’
  शबाना बाजलि- ‘‘बेटा, राधे।’’
  ‘‘मौसी।’’
  ‘‘हँ’’
  ‘‘एत्ती राति कऽ किऐक अलेहेँ?’’
  ‘‘बौआ, से तू नै बुझै छहक जे गाम-गाममे केहेन आगि लागि रहल छैक। पाँचम दिन सुनलौं जे बहीनि बड़ जोड़ अस्सक छथि। जखने सुनलहुँ तखने मन भेल जे जाइ। मुदा की करितौं? मन छटपटाइ छलए। बेटाकेँ पुछलियै तँ कहलक जे से तू नै देखै छीही रस्ता-बाटमे इज्जत-आवरुक लुटि भऽ रहल अछि। मार-काट भऽ रहल अछि। ऐहन स्थितिमे कोना जेमए। मुदा मन नै मानलक। जिनगी भरि दुनू बहीनि संगे रहलौं, आइ बेचारी मरि रहल अछि तँ मुँहो नै देखब? जी-जाँति पोतीकेँ संग केने एलौं।’’
  कुरसीपर सँ उठि राधेश्याम शबानाक बाँहि पकड़ि आंगन दिशि बढ़ैत बहीनिकेँ कहलखि‍न- ‘‘मौसी एलखुन। पाएर धोइले पानि दहुन।’’
  राधेश्यामक बात सुनि दुनू बहीनियो -गौरी आ सुनिता- आ रागिनियो घरसँ निकलि आंगन आइलि। गौरी बजलीह- ‘‘मौसी, शबाना मौसी!’’
  शबाना बजलीह- ‘‘हँ।’’
  दुनू गोटे -शबानो आ रेहनो- पएर धोए सोझे बहीन सरोजनी लग पहुँच दुनू पएर पकड़ि कानए लगलीह। कनैत देखि सरोजनी पुछलखि‍न- ‘‘कनै किअए छेँ। हम कि कोनो आइये मरब? एत्ती रातिकेँ किअए एलैहेँ?’’
  शबाना बाजलि- ‘‘बहीनि, रस्ता-पेरा बन्न अछि। दू बर्खसँ भौरियो-बट्टा -घुमि-घुमि बेचनाइ- बन्न भऽ गेल। जखैनसँ अहाँ दऽ सुनलौं, तखैनसँ मनमे उड़ी-बीड़ी लगि गेल तेँ दिन-देखार नै आबि चोरा कऽ अखैन ऐलौंहेँ।’’
  सरोजनी बहुत कठीनसँ बाजलि- ‘‘धिया-पूता नीके छौ कीने?’’
  शबाना कहलकनि- ‘‘शरीरसँ तँ सब नीके अछि, मुदा कारबार बन्न भऽ गेल अछि।’’
  ‘‘गामो दिशि गेल छलेँ?’’
  ‘‘नै। कन्ना जाएब....। तेसर सालक बाढ़िमे अहूँक गाम कटि कऽ कमला पेटमे चलि गेल आ हमरो गाम कोसीमे। आब सुने छी जे हमरो गाम भरनापर बसल हेँ आ अहूँक गाम कमलाक पछबरिया छहरक पछबरिया बाधमे। घनश्यामपुर तक तँ रस्ता छइहो मुदा ओइसँ आगू रस्ते सबपर मोइन फोड़ि देने अछि। पौरुकाँ जे जाइत रही तँ लगमा लगमे डूबए लगलौं।’
सरोजनी गौरीकेँ इशारासँ कहलक- ‘‘दाइ, बड़ राति भेलइ। मौसीकेँ खाइले दहक।’’
  शबाना बाजलि- ‘‘बहीनि, पहिने हम कना खाएब? पहिने बौआ राधेश्यामकेँ खुआ दियौ। खा कऽ सुति रहत। हम भरि राति बहीनसँ गप-सप्‍प करब। बहुत दिनक गप्‍प पछुआइल अछि।’’
  शबानाक बात सुनि राधेश्याम मने-मन सोचए लगल जे दुनियाँमे बहीनिक कमी नहि अछि। लोक अनेरे अप्पन आ बीरान बुझैत अछि। ई सभ मनक खेल छिअए। हँसी-खुशीसँ जीवन बितबैमे जे संग रहए, ओइह अप्पन। शवानाकेँ कहलक- ‘‘मौसी, माए तँ ने सिर्फ हमरे माए छी आ ने अहींक बहीनि। सबहक अप्पन-अप्पन छिअए, तेँ कियो अप्पन करत की ने?’’
पूबरिये घरक ओसारपर राधेश्याम सुतल। बाकी सभ पूबरिया घरमे बैसि गप-सप्‍प करए लगलीह। गौरी पुछलनि- ‘‘मौसी, अहाँ दुनू बहीनि तँ दू गामक छिअए। दुनू गोरेमे चीन्हा-परिचए कहिया भेलि?’’
  शबाना बाजनि- ‘जइहेसँ ज्ञान-परान भेलि, तेहियेसँ अछि। हमरा बाप आ तोरा नाना कऽ दोसतिआरै रहनि। कोस भरि पूब हमर गाम झगड़ुआ अछि आ कोस भरि पछिम बहीनिक। अखन तँ दुनू गाम उपटि कऽ दोसर ठीन बसल अछि। मुदा पहिने बड़ सुन्दर दुनू गाम छलै।
  गौरी बाजलि- ‘‘मौसी, हम तँ बच्चेमे, बहुत दिन पहिने गेल रही। तइ दिनमे तँ बड़ सुन्दर गाम रहए।’’
  शबाना बजलीह- ‘‘हँ, से तँ रहबे करए। मुदा आब देखवहक तँ बिसबासे ने हेतह जे यएह गाम छिअए। हँ, तँ कहै छेलिहह, काकाकेँ बहुत खेत-पथार रहनि। चारि जोड़ा बड़द खुट्टापर, चारि-पाँचटा महीसियो रहनि। मुदा हमरा बापकेँ खेत-पथार नै रहए। गामेमे खादी-भंडार रहए। सौँसे गामक लोक चरखोे चलबै आ कपड़ो बीनै। सभसँ नीक कारीगर रहए हमर बाप। घरक सभ कियो सुतो काटी आ कपड़ो बनबी। सलगा, चद्देरि, गमछी आ धोती बीनैमे हमरा बापक हाथ पकड़िनिहार कियो नहि। बहीनिक गामक सभ हमरे बापसँ कपड़ा कीनए। सौँसे गामसँ अपेछा रहए। पाँचे-सात वर्खक रही तहियेसँ बहीनिक ऐठाम अइठीन जेबो करियै आ खेबो करियै।’’
  शबानाक बात सुनि गौरीकेँ अचरज लगलै। मने-मन सोचए लगली जे एक तँ गरीब तहूमे मुसलमान। तहि बीच दोस्ती। मुस्की दैत रागिनी बाजलि- ‘‘कोन पुरना खिस्सा मौसी जोति देलखिन। ई कहथु जे दुनू बहीनिक बिआह एक्के दिन भेलनि?’’
  शबाना बाजलि- ‘धूर्र कनियाँ! अहाँ की बजै छी। हमरासँ बहीनि दू-तीन बरख जेठ छथि। बहीनिक विआहसँ दू वर्ख पाछु कऽ हमर विआह भेल। कक्का हमरा बापकेँ कहलखिन जे पूबरिया आ दछिनबरिया इलाका कोशिकन्हा भऽ गेल तेँ आब कथा-कुटुमैती उत्तरेभर करब नीक हएत।’
  कन्ने गुम रहि, शबाना बाजलि- ‘‘बेटी, कपारक दोख भेल। आब अपनो बुझै छी जे नैहरक काजक जे महौत छेलै से अइ काज –-भौरीक- नै अछि। मुदा की करितियै?
अइठीम उ काज अछिये नहि। ने खादी-भंडार छै आ ने कारोवार अछि।’’
  मुस्की दइत रागिनी बाजलि- ‘‘मौसी, अपना विआहमे तँ हम कनियेटा रही। सभ गप मनो ने अछि। हिनका तँ मन हेतनि, विआहमे झगड़ा किअए भेल रहए?’’
  कने काल गुम रहि शबाना ठाहाका मारि हँसि, बाजलि‍- ‘‘अहाँक बावू बड़ मखौलिया रहथि। हँसी-चौलमे ककरो नइ जीतए देथिन। घरदेखीमे एलथि। हम दुनू बहीनि खूब छकौलिएनि। पीढ़ी तरमे खपटा, झुटका बैसैले आ रुइयाँ तरि कऽ खाइले सेहो देलिएनि। खा कऽ जहाँ उठलाह कि एक डोल करिक्का रंग कपारपर उझलि देलिएनि। मुदा हुनका लिए धनि सन। तहिना बरिआतीमे ओहो छकौलकनि। सबहक धोतीमे चारि-पाँच दिनक सड़लाहा खैर लगा देलकनि। पहिने तँ बरिआती सभ अपनमे रक्का-टोकी केलक। मुदा जखन भाँज लगलै जे घरवारी सभकेँ सड़लाहा खइर लगा देलक। तखन बरिआतियो सभ टूटल। मुदा कहे-कही भऽ कऽ रहि गेलइ। मारि-पीटि नहि भैल।’’ कहि हँसै लागलि। सभ हँसल।
राधेश्याम ओसारपर सुतल रहथि। मुदा एक्को बेरि आँखि बन्न नहि भेलनि। किऐक तँ मनमे शंका होइत जे अनचोकेमे ने माए मरि जाए। खिस्से-पिहानीमे राति कटि गेल।
भोर होइतहि शबाना राधेश्यामकेँ कहलक- ‘‘बौआ, अपन मन अछि जे आब बहीनिकेँ एक काठी चढ़ाइये कऽ जाएब। मुदा गामे-गाम जे आगि लगल देखै छिअए तइसँ डर होइए।’’
  राधेश्याम- ‘‘मौसी, एहिठाम कियो किछु नहि बिगाड़ि सकैत छओ। जहिया तक तोरा रहैक मन होउ, निर्भीकसँ रह।’’
  शबाना बाजलि- ‘‘बौआ, मन होइए जे बहीनिक सभ नुआ-बिस्तर हम खीचि दिअए। फेरि ई दिन कहिया भेटत’’
  राधेश्याम- ‘‘दुनू बहीनिक बीच हम की कहबौ। जे मन फुड़ौ से कर।’’
   इम्हर आब राधेश्यामक माए सरोजनीक टनगर बोलो मद्धिम भेल जा रहल छलनि।