Monday, March 31, 2014

सगर राति दीप जरयक इतिहास- कथाक कथा

सगर राति दीप जरयक इतिहास जे रमण द्वारा परसल जा रहल अछि, ओइमे एकर प्रारम्भ केना भेलसँ ल' ' अखन धरिक इतिहास मे बहुत रास विसंगति अछि । एकर प्रारम्भ केना भेलसँ ल' ' अखन धरिक इतिहासमे बहुत गोटेक योगदान बढ़ा क', बहुत गोटेक घंटा क', बहुत गोटेक परिवर्तित क' ' प्रस्तुत काल गेल तँ बहुत गोटे निपत्ता क' जेल गेला। कहल गेल जे ई स्वायत्त संस्था अछि मुदा चेतना समितिक दिससँ रमण आ अजित आजाद सम्मिलित होइत रहला आ जत' कियो माला नै उठेलक ओत' ई लोकनि चेतना समिति दिससँ माला उठेलन्हि आ संयोजकमे चेतना समितिक नाम नै आन नाम इतिहास बनबै लेल गेल गेल। चेतना समिति ( गौरीनाथक सूचनाक अनुसार) जखन गौरीनाथ, अग्निपुष्प आ प्रदीप बिहारी पर लिखित प्रतिबन्ध लगेलक तकरार बाद बिहारी द्वारा लिखित माफी ऐ मैरेज हॅाल ( चेतना समिति) सँ माँगल गेल, फेर हुनका रचना लेल नै, वरन ऐ कृत्य लेल अकादमी पुरस्कार देल गेल आ ओ सेहो ऐ मैरेज हॅालक प्रतिनिधि भ' गेला। फेर ई तिकड़ी श्याम देवघरे संग मिलि क' सगर रातिमे की सभ केलक से रमणक जातिवादी इतिहासमे नै भेटत।
की छल ओइ सगर रातिक रजिस्टरमे जकरा रमण कहि रहल छथि जे विभारानी हेरा देलन्हि। की ई रजिस्टर हेरा गेल बा हेरा जाइ देल गेल। मुदा किछु गप जे नै रमणकेँ बुझा छन्हि ने विभा । रानीकेँ से अछि जे आरती कुमारी अपन मृत्युसँ २-३ दिन पहिने ओकर फोटो स्टेट उमेश मण्डलकेँ पठा देलखिन्ह। ओ चाहितथि तँ कोने झारे झाकेँ सेहो पठा सकैत रहथि, मुदा हुनका झारेझा सभपर विश्वास नै छलन्हि, किए नै छलन्हि? कहल गेल छे जे शोनित अपन निशान छोड़ते अछि। शीघ्र सगर रातिक असली इतिहास।
दरभंगा बला गोष्ठी , जे ३१ म इ २०१४ केँ दरिहरे- रमण- बिहारी द्वारा साहित्य अकादेमी आ ऒकरा द्वारा मान्यता प्राप्त फर्जी मैथिली संस्था सभक संग रमण-दरिहरे-बिहारी सन - सन जातिवादी ब्राहमणवादी-कायस्थवादी तथाकथित साहित्यकार सभ द्वारा प्रायोजित रहत, आ अो एे तरहक (दिल्लीक बाद) दोसर गोष्ठी रहत जकरा रमण-दरिहरे-बिहारी ८३म गोष्ठी सेहो कहता। अोतए "राडक़ सुख बलाय " आदि कथाक वाचन हएत। मेहथ बला गोष्ठी मे रमण-दरिहरे-बिहारी सन जातिवादी ब्राहमणवादी-कायस्थवादी प्रतिबन्धित छथि।
कहल जाइ छै जे सगर राति दीप जरय नव कथाकारक लेल ट्रेनिंग सदृश अछि। नव कथाकार कलमाएल जाइ छथि! मुदा सत्य की अछि? की एंकर प्रवृत्ति साहित्य अकादेमीसँ भिन्न अछि? की ऐपर कब्जा लेल साहित्ये अकादमी सन छल प्रपंच नै होइ छल!
आ ७९म सगर रातिक हीरन्द्र झा आदि द्वारा बहिष्कार आ रमणक ओतै जातिवादी उद्घोष उमेश पासवानक नै, मैथिलीक विरोध छल, कब्जाक राजनीतिक प्रारम्भ ७९म सगर रातिसँ पहिनहियो छल। ७४म सगर राति -हज़ारीबागमे प्रदीप बिहारी माला उठेबाक प्रस्ताव केलन्हि आ से छल मात्र दोसराक प्रस्ताव खसेबा लेल। अपन ग्रुपक क़ब्जा लेल मात्र ई प्रस्ताव छल। ओ अपन प्रस्ताव अपन ग्रुपक पक्षमे आपिस ल' लेलन्हि। ओ ई नाटक ७५म सगर रातिमे सेहो केलन्हि। तँ की ऐ ब्लैकमेलिंगक धंधामे हुनकर उपयोग कएल जा रहल छन्हि आकि ओ ऐ ब्लैकमेलिंगक धंधाक मुख्य कलाकार छथि?हुनकर रचनामे जान नै छन्हि मुदा घृणित राजनीतिमे जान छन्हि। आ साहित्य अकादेमी पुरस्कार एहने गुणपर देल जाइ छै, से चेतना समितिसँ माफी मांगि पएर पकड़ि ओ निर्लज्जतापूर्वक लेलन्हि। से ओ ऐ ब्लैकमेलिंग धंधाक मुख्य कलाकार छथि जकरा बुझल छै जे नीक रचना लिखबापर ध्यान देनाइ मूर्खता छै, ओइसँ प्राइज नै भेटै छै, साहित्य अकादेमी लेल जोड़-तोड़ चाही आ ओइमे ओ मास्टर छथि, मैथिली गेल तेलहण्डामे।
आ ऐ परिस्थिति मे नव कथाकारक ट्रेनिंग नै भेलै, जतेक लोक सगर रातिसँ जुड़ला ओइसँ बेसी हतोत्साहित क' मैथिली साहित्यसँ दूर क' देल गेला, नेट रिजल्ट माइनसमे रहल!
बहिष्कारक राजनीतिसँ सुपौल, देवघर आ नरहनक गोष्ठी प्रभावित रहल तँ कब्जाक राजनीतिक अन्तर्गत काठमाण्डूक सगर रातिमे कोनो स्थानीय साहित्यकारकेँ धीरेन्द्र प्रेम र्षि हवा नै लाग' देलखिन्ह जे एहन कोनो गोष्ठी हुअएबला अछि, मनोज मुक्ति ई सूचित करै छथि।
अशोक अविचल, श्याम दरिहरे, रमण आदि देवघरक आयोजक ओमप्रकाश झापर साहित्य अकादेमीक गोष्ठी केँ सगर रातिक मान्यता देबा लेल ब्लैकमेलिंगक क' ई शर्त रखलन्हि जे तखने ओ संभ ऐमे सम्मिलित हेता आ नै तँ बहिष्कार करता।मुदा आरती कुमारीक हत्याक बाद ई पहिल मौका छल बलैकमेलर सभकेँ हरदा बजेबाक ; आ समीक्षा-प्रतिसमीक्षासँ बढ़ैत ई गोष्ठी अभूतपूर्व सफलता प्राप्त केलक, बलैकमेलर सभक बहिष्कार ओकरा आर सबल बनेलकै। दरिहरे आयोजककेँ कहलन्हि जे साहित्य अकादेमीक गोष्ठी केँ मान्यता सगर रातिक रूपये भेटए, तइ लेल मैथिली लेखक संघ,पटनाक बैसकीमे रमणक कहलासँ ओ ऐलेल फ़ोन केलखिन्ह। अविचल सेहो आयोजककेँ सएह कहलखिन्ह।
देवघर गोष्ठी ट्रेनिंग स्कूल सिद्ध भेल, रमण, दरिहरे आ बिहारी अबितथि तँ सिखितथि जे केना रचनामे ओ क्वालिटी आनि सकै छथि, मुदा ओ सभ प्रैकटिकल छथि, बुझल छन्हि प्राइज़ टा लेल लिखल जाइ छै आ से जोड़-तोड़सँ भेटै छै, क्वालिटीसँ नै, अविचल मे प्रतिभा लेशो मात्र नै छन्हि, हुनका कोनो ट्रेनिंग किछु नै द' सकतन्हि, से ओ नै आबि अपन टाइम बचेलथि आ से नीके केलथि।
सगर राति दीप जरयमे कव्ालिटी आबि जाएत तँ बिहारी-दरिहरे-रमण सन मेडियोकरकेँ के पूछत, से ओ सभ राड़केँ सुख बलायक लेखकक संग दोसर साहित्य अकादेमी गोष्ठी करता जत' ब्राह्मण युवा सभकेँ राड़केँ सुख बलाय सन् नीक कथा केना लिखल जाए तकर ट्रेनिंग रमण-बिहारी-दरिहरे द्वारा देल जाएत। नीके अछि, मूर्ख सभक प्रवेश सगर रातिमे थम्हत। आ परोक्ष रूपेँ ऐ लेल मैथिली साहित्य रमण-बिहारी-दरिहरेक आभारी रहत।
दरिहरे-बिहारी-रमणक बहिष्कारक रणनीति द्वारा सगर रातिपर कब्जाक राजनीति आरती कुमारीक संग भागलपुरमे चलि सकल मुदा वएह राजनीति २ सालक बाद देवघरमे तेनाकेँ फ़ेल भेल जे ओ सभ पहिने सगर रातिसँ पलायन केलन्हि आ फेर निकालि देल गेला। ब्राहम्णवादी भाषाक रूपमे विश्वमे ख्यात ऐ साहित्यमे कोन प्रक्रिया चलि रहल अछि जे ई संभव केलक? सगर राति दीप जरयक ब्राहम्णवादी अनुष्ठानकेँ एकर स्वयंभू पुरोहित सभ द्वारा आरती कुमारीक बलि देल जा चुकल छल। भयक ऐ वातावरणमे ई परिवर्तन केना भेल जे रमण-बिहारी-दरिहरे नै बूझि सकला?
मैथिली भाषाक ब्राह्मणवादी चरित्रमे भाषाक संग ख़ूब खेल खेलाएल गेल छै। राड़क मतलब एत' छै (ब्राहम्णक नजरिमे) भुमिहार,राजपूत, कायस्थ सहित सभ आन जाति। अपन बच्चाकेँ यौ आ राड़क बुढ़बाकेँ हौ! कहबी मे सेहो बेइमानी, जेना- दस ब्राहम्ण दस पेट, दस राड़ एक पेट! मुदा हमर माँ कहै छथि जे ई कहबी मात्र ब्राहम्णमे छै, आन सभ कहै छथि- दस राड़ दस पेट, दस ब्राह्मण एक पेट। मुदा बिहारी सन मेडियोकर साहित्यकारकेँ ई सभ गप नै बुझल छन्हि- ओ बुझै छथि जे राड़केँ सुख बलाय तँ जगदीश प्रसाद मण्डलपर रमण-बिहारी-दरिहरे लिखबेने छथि। रमण आ दरिहरे तँ ठीक सोचै छथि मुदा बिहारी तँ कायस्थ छथि आ दरिहरे-रमणक परिभाषा अनुसार राड़केँ सुख बलाय जगदीश प्रसाद मण्डलक अतिरिक्त हुनके टा पर नै वरण समस्त मिथिलाक गएर ब्राहम्णकेँ देल गारि अछि।
विदेह घरे-घरे घुसि चुकल अछि, से ३१ मइ२०१४ केँ रमण-दरिहरे-बिहारीक "राड़केँ सुख बलाय"कथा गोष्ठीमे शामिल सभ ब्राहम्ण छद्म कथाकारक लिस्ट हमरा ०१ जून २०१४ क भोरमे चाही।
२. आब आउ सगर रातिकेँ खतम करबाक साहित्य अकादेमीक मैथिली शाखा आ ओकरा द्वारा मान्यताप्राप्त फ़र्ज़ी संस्था सभक पर।
३ रम ण साहित्य अकादेमीक मैथिली शाखासँ लाखक लाख असाइनमेण्ट क़ताक सालसँ ल'रहल छथि, से हुनका ई भार देल गेलन्हि जे सगर रातिपर विदेहक प्रभावकेँ ओ ओहिना ख़त्म करथु जेना आरती कुमारीकेँ ओ बिहारी-दरिहरे संग मिलि क' ख़त्म केने रहथि। मुदा हुनकर एस्टीमेट ऐबेर गड़बड़ा गेलन्हि, मैथिली लग आब पाठक छलै, शक्ति छलै, स्तर छलै, से मेडियोकर रमण-बिहारी-दरिहरे नै बुझि सकला। ख़ून रंग आनै छै, चेन्हासी छोड़ै छै ़़़़........ख़ून खूनीकेँ ताकि लै छै़़़.
मिथिलामे दुर्गापूजामे मोटामोटी चन्दा ओसूलि क' पूजा होइ छै। बस रोकि क' चन्दा ओसूली सरस्वती पूजा लेल आब शुरू भ' गेल छै, पहिने नै होइ छलै, कारण ई पर्व व्यक्तिगत निष्ठासँ सम्बन्धित छल। ओ निष्ठा यज्ञोपवीत करबा क' मूर्खतापूर्वक मोछैल आ क्लीन शेव ( संगे प ाग पहिरने!) विद्यापतिक कोनो तत्कालीन वेशभूषाक अध्ययनसँ रहित जातिवादी कलाकार द्वारा बनाओल फोटोपर माल्यार्पणक विद्यापति पर्वमे सेहो नै भेटत। ई विद्यापति पर्व सभ , जातिवादी रंगमंच , साहित्य अकादेमीक मैथिली शाखा, प्रज्ञा संस्थान, साझा प्रकाशन आ सगर राति दीप जरय मैथिलीमे कट्टरता बढ़ेलक आकि घटेलक?
२. विश्वकर्मा पूजा, दुर्गापूजा आदि ई दाबा नै करैए जे ओ सभ मैथिली लेल काज करै छथि। मुदा ई सभ समाजमे मिलि काज केना करी से सिखबैए। एकर विपरीत विद्यापतिकेँ यज्ञोपवीत करबाकेँ जे सांस्कृतिक संस्थापर कब्जाक राजनीति सिखाओल गेल से जातिवादी रंगमंचमे पैसल, कोलकाताक कु र्मी-क्षत्रिय समाज मैथिलीसँ अलग क' देल गेल। छिट्टाक छिट्टा पोथी आ सम्मान मैथिल ब्राहम्ण आ कर्ण कायस्थ लेल रिज़र्व भ' गेल। दोसर जँ हिम्मत केलक तँ बुढ़ा सभ लफुआ युवाकेँ साहित्यकार बना क' हुलकाब' लगला। "राड़कँ सुख बलाय"क लेखक केँ श्याम दरिहरे, प्रदीप बिहारी आ रमानन्द झा रमण द्वारा हुलकाएब ऐ प्रक्रियाक टटका उदाहरण अछि। मुदा ई प्रक्रिया जे ५० सालसँ मैथिलीमे ब्राह्मणवाद आ कायस्थवादक संजीवनी बूटी छल कोना धराशायी भ' गेल। मैथिली साहित्यमे एहन की भ' रहल अछि, कोन ऐतिहासिक क्रिया- प्रतिक्रिया चलि रहल अछि जे ई संभव केलक, आ जे रमण-बिहारी- दरिहरे आ हुनकर सभक आका साहित्य अकादेमीक मैथिली विभाग आ जातिवादी रंगमंच नै बूझि सकल?
३. सगर राति दीप जरय द्वारा ब्राहम्ण युवामे जे कट्टरता ढुकाओल जा रहल छल से जखन तोड़ल गेल तँ बिहारी- रमण- दरिहरे आ आका सभ बूझि नै सकल जे की भ' रहल अछि आ अन्ततः ओ सभ अपन पेशेन्स खतम क' लेलन्हि। मुदा ऐबेर तँ दुनियेँ उनटल छल।
रहुआ संग्रामक कथा गोष्ठीमे रमणजी सहित सभ निर्णय लेलन्हि जे राति भरि कियो नै सुतता, मुदा भोजनसँ पहिने जखन सभ नामी(!!) कथाकारक पाठ क' सुति रहला तँ भोरहरबामे जे युवा सभ नामी कथाकार लोकनिक कथा सुनने रहथि, तिनकर नम्बर एलन्हि। आशीष अनचिन्हार जखन कथा पढ़ैले एला तँ संचालक ओंघा रहल छला आ मात्र अध्यक्ष शिवशंकर श्रीनिवास जागल रहथि, नै सुतबाक निर्णय लेनहार रमणजी फोंफ काटि रहल रहथि, जकर विरोधमे अध्यक्षक कहलाक उपरान्तो आशीष अनचिन्हार कथा पाठ करबा सँ मना क' देलन्हि; ओ पोस्ट माडर्न कथा बादमे "विदेह लघु कथा" मे छपल।
मुदा ब्राह्मणवादी सेंसर प्रक्रिया एतेक जब्बर छै जे ने आयोजक, ने रमण आ ने अध्यक्ष- संचालकक फर्जी सगर रातिक इतिहासमे एकर वर्णन भेटत। अरुचिकर गपकेँ झँापि देबाक ब्राह्मणवादी प्रवृत्ति एकर कारण अछि।
८१ टा सगर राति भेबो कएल आकि नै, लोक हमरासँ पुछै छथि। पहिने डाकसँ रचना आबै आ से नामी (!!) कथा सभ पढ़ल जाइ छलै, जे युवा सभ सदेह आबथि तिनकर नम्बर एबे नै करन्हि, एबो करन्हि तँ सुतलाहा बेरमे, मुन्नाजी जखन एकर विरोध केलन्हि तँ वएह कहल गेल, गप झाँपू, रजिस्टरमे ओइ नै एनिहार सभक सेहो उपस्थिति दर्ज भेल तेँ। बहुत कथा गोष्ठीमे दसो टा कथाकार नै एला, मुदा उपस्तिथि रजिस्टरमे बहुत रास उपस्थित भेटता, किछु एबे नै केला, किछु डाकसँ एला(!!) आ किछु हाजरी बना क' निपत्ता भ' गेला सेहो। जेना युद्धमे ३००० सँ कम मुइने ओकरा युद्ध नै कहल जाइए, तहिना दस टा सँ कम उपस्थितिकेँ सगर राति केना कहल जा सकत? ८१ क संख्या बड्ड कम भ' जाएत, ८१ बड्ड बेशी होइ छै, एतेमे तँ शान्त क्रान्ति भ' जइतए, से किए नै भेल तकर कारण ऊपर देल अछि।
ऐ समानान्तर आन्दोलनमे हमरा सहयोग चाही बा विरोध, धनाकर ठाकुर आ गंगेश गुंजनक "आइडियोजिकल न्यूट्रेलिटी"क मतलब सेहो एकेटा छै, आ से छै समानान्तर धाराक विरोध।
आ इतिहास हमरो मूल्याँकन करत आ हुनको ( विरोधी आ न्यूट्रल फिफ्थ कालमनिस्टक) ।
बहुत लोक ऐ तरहक कमेण्ट पछिला ६ सालसँ द' रहल छथि जे आब विदेह बदलि गेलै, ओकरा सभ सन भ' गेलै।विदेहक उद्देश्य ने बदलल छै आ ने बदलतै। कोन व्याख्या ककर तुष्टीकरण छै से स्पष्ट बिन केने ऐ तरहक कमेण्ट कएल जाएत अछि। हुनकर आशा जँ ई रहैए जे मैथिली साहित्य केँ युवाक उत्साह विदेहक माध्यमसँ नव दिशा प्राप्त करत आ से आब लागि रहल अछि जे से आब व्यक्तिगत कुण्ठाक मंचक रूपमे दुरुपयोगी भ' गेल अछि तँ ऐ सम्बन्ध में हमर यएह कहब अछि जे सत्यक कियो उपयोग क' सकैए आ कियो दुरुपयोग , जे हुनका दुरुपयोग आ व्यक्तिगत कुण्ठाक तुष्टीकरण आब लागि रहल छन्हि से बहुत गोटेकेँ ६ साल पहिनहिये सँ लागि रहल छन्हि, आ तकर व्याख्या हमरा लग यएह अछि जे ओ सभ मात्र विदेहसँ सिम्बोलिक विरोधक आशा करैत रहथि, असली परिवर्तन नै चाहनहारकेँ यैह असली ब्राह्मणवाद बुझेतन्हि, कारण बदलल पात्र सँ ब्राहम्णवादी मानसिकता उद्वेलित भ' गेल छै, ओ गेल तँ हम अबितौं मुदा ई सभ के आबि गेल। अहाँकेँ बुझबाक चाही जे मैथिली आगाँ एलै, जकरा जतेक प्रतिभा छलै ओ विदेहक माध्यमसँ ततेक सिखलकै आ ततेक आगां बढ़लै आ बढ़तै। किछु लोक जँ स्वार्थक लेल विदेहसँ जुड़ला मुदा आनुवंशिक जाति श्रेष्ठता हुनकासँ विदेहक निश्छल प्रयासोक बावजूद नै गेलन्हि, आ जइ विदेहकेँ ओ साहित्य आन्दोलन बुझै छला ( हृदयसँ नै) आ विदेहकेँ इमोशनल ब्लैकमेल, धमकी , हमरा आ हमरा परिवारकेँ ईमेल- फोनसँ गारि, छोड़ि क' जेबाक धमकी ( छोड़ि क' जेबाक धमकी देनिहारमे संयोगसँ अखन धरि मात्र ब्राहमणे छथि जिनका लगै छन्हि जे सिमबोलिक प्रोटेस्ट धरि मात्र विदेह सीमित रहितए), जे आब अहँू वएह (!!), बुझलौं प्राइज़ लेल, फलनाकेँ दिआबए चाहै छिऐ, व्यक्तिगत राजनीति , विदेहक भला नै हएत, ई सभ ६ सालसँ सुनि- सुनि हमर कान पाकि गेल अछि। रामदेव झा आ अमर पहिनेँ कहैत रहथि, हम अपन कनियाँकेँ पुरस्कार दिआब' चाहै छिऐ, सभ हँसि देलकन्हि जे साहित्य अकादेमीक मैथिली विभाग निर्वस्त्र अछि दोसराकेँ की सम्मानित करत तँ आब कहि रहल छथि जे उमेश मण्डल , राजदेव मण्डल, बेचन ठाकुरकेँ हम पुरस्कार दिआब' चाहै छिऐ। मोहन भारद्वाज देवशंकर नवीनक सोझाँ कहै छथि जे गजेन्द्र ठाकुर पागले ने छै जेना लखन झा छलै। दरिहरे सेहो लाल बुझक्कर छथि, हुनका आब बुझबामे आबि गेलन्हि जे हमरा साहित्य अकादमी सँ झगड़ा अछि तेँ, व्यक्तिगत राजनीति तेँ। बिहारी मुन्नाजीकेँ फ़ोन करै छथि आ कहै छथि मात्र जगदीशे मण्डलकेँ किए आगाँ बढ़ाओल जा रहल अछि (!!) ब्राहम्णवादी मानसिकता ई छिऐ, जे जगदीश मण्डल मेरिटसँ नै , बढ़ेलासँ आगाँ बढंल छथि जेना मैथिली साहित्यमे पहिने होइ छलै। प्रदीप बिहारी मुन्नाजीकेँ कहै छथि जे विदेह किए जातिवादी रंगमंचक विरोध करैए, किए समानान्तर परम्परा भ' ' मूल परम्पराक गुणवत्ताक समीक्षा करैए, समानान्तर तँ मूलसँ मिलित्े नै छै तँ किए हमर सभक नाम लै छी , अलग रहू, यएह छिऐ असल ब्राहम्णवाद- कायस्थवाद। चर्चे नै कर, काने बात नै दे!! आ ईहो संयोगे अछि जे जइ २-४ टा लोककेँ दिक़्क़त छन्हि से ब्राहम्णवादी प्रवृत्तक छथि, अनका ई दिक़्क़त किए नै छन्हि। पछिला ६ सालसँ विदेह जहिना छल ओहने रहत, अगिला कमसँ कम ३० साल धरि मैथिली साहित्य आब अहिना चलत। विदेहमे जकरा जे मेरिट छै ओ ओतेक बढ़त, चाहे ओ कोनो जाति, धर्म, क्षेत्रक होथि। विदेह जिनका बदलल लागि रहल छन्हि ओ स्वयंकेँ देखथु जे ओ तँ नै बदलि गेल छथि?
आब फेर आउ सगर राति दीप जरय पर।
अलिखित संविधानक नामपर बहुत रास खेल भेलै। ई मुख्य रूपेँ कथावाचनक गोष्ठी छिऐ मुदा एत' आलोचनात्मक आलेख पढ़बाक सेहो अनुमति छै आ से जँ अहाँक नाम रमण अछि तखने टा, से जखन कबिलपुर गोष्ठीमे मुन्नाजी विहनि कथा पर आलेख पढ़बाक अनुमति मांगलन्हि तँ से अनुमति नै भेटलन्हि, आ एत' अलिखित संविधानक सोंगर लेल गेल, आ तकर दूटा कारण , एक तँ मुन्नाजीक नाम रमण नै छियन्हि, दोसर विहनि कथाक कनसेप्ट विदेह द्वारा आगाँ बढ़ाओल जा रहल अछि से तकर विरोध, किए नै ओ कनसेप्ट कतबो वैज्ञानिक होइ।
झंझारपुर गोष्ठी मे जे एला तिनकर कथाक पाठ नै भेलन्हि मुदा डाकसँ आएल कथाक पाठ भेल, आ जँ अहाँ अविनाश छी सुमन-अमरकेँ गारि लिखै छी यात्रीक नामपर , तँ अहूँ कथाकार, कवि सभ , नै रहितो , छी, देवघर गोष्ठीक संयोजकत्व सेहो बोनसमे अहाँकेँ भेटत। से घोंघरडीहा गोष्ठीमे जिनका सभकेँ कथा नै पढ़' देल गेलन्हि, ओ सभ युवा एकर विरोध केलन्हि, किछुकेँ कथा पढ़' देल गेलन्हि आ जिनका नै पढ़' देल गेलन्हि से अगिला कथा गोष्ठीसँ एनाइ बन्द क' देलन्हि।
जे सभ मैथिली फिल्म आ डोक्यूमेण्टरीक नामपर लोकसँ पाइ ठकलन्हि से रमण- दरिहरे- बिहारीक विदेहक विरोधमे संगी छथि, जे युवा प्राइज़ लेल मैथिलीयोमे लिखना्हि, जातिवादी सभसँ मिलि साहित्य अकादेमीक युवा पुरस्कार लेलन्हि ओ तँ स्वाभाविक रूँपे हुनकर संगी हेता।
विदेह उमेश मण्डल आ जगदीश प्रसाद मण्डलक कान्हपर बंदूक राखने अछि, यूज़ क' रहल अछि, आ जँ हुनकर सभक रचना नै छप' देल जाइत, "तिल बहब ने" छपबासँ पहिने , सकरबाबल जाइत, तखन सभ ठीक छल। ब्राहम्णवादी सभ जेकाँ विदेह कोनो काज कएलासँ पहिने "तिल बहब ने"क शर्त क़रार नै करबैए आ सएह कारण अछि , नव ब्राह्मणवादी ई नै बूझि सकला, धू, एहनो क़तौ भेलैए। बिनु जान- पहिचान, भेंट- घांटक मात्र मैथिलीक नामपर सभ एकत्रित भ' गेल से हुनका अजगुत लगलन्हि।
प्रदीप बिहारी मुन्नाजीकेँ कहै छथि आ ई विचार रामदेव झाक सेहो छन्हि जे जखन विदेह साहित्य अकादेमीक समानान्तर पुरस्कार शुरू कैए देलक तखन साहित्य अकादेमी लेल शोर किए? माने ओकरा बकसि देल जाए! अशोक अविचल शिवकुमार जीकेँ कहै छथि जे मायानाथ झा, आनन्द कुमार झा ( ऐमे गुणनाथ झा जोड़ि लिअ) आदि जिनका सभक चर्चा विदेह केलक सभकेँ साहित्य अकादेमी पुरस्कार भेटलै, तँ हुनका उत्तर भेटल छलन्हि, जँ हुनकर सभक नाममे झा नै मण्डल रहितन्हि तँ की ई संभव छल?
आ साहित्य अकादेमी कोनो मनुक्ख नै छिऐ जकरा संग भतबरी कएल जाएत आ ने ककरो पैतृक संपत्ति जकर उपयोग ब्राहम्ण कायस्थक तथाकथित साहित्यकारकेँ ख़ैरात बँटबा लेल आब कएल जा सकत।
आ हमरा विषयमे जखन सभकेँ बुझबामे आबि गेलन्हि जे नै रौ, ई अपना सभ सन नै अछि, विदेह अपना सभ सन नै छौ, तँ हुनका सभ केँ आर चिन्ता लागि गेलन्हि! रौ कहीं, ईं हो सभ हमरे सभ सन, कहीन, ई जे अपने प्राइज़ लेब' चाहैए बा दोसराकेँ दिआब' चाहैए....
ब्राह्मणवाद मैथिलीकेँ गीरि गेलै, आ सभकेँ बुझल छै जे दूटा सहोदरो एक रंग नै होइए, से पूरा जाति नीक बा अधला हेतै ई कनसेप्ट विदेहक नै छै, ओ तँ ब्राह्मणवादी कनसेप्ट छिऐ।
अतुलेश्वर झा छथि ओना तँ ब्राहम्णवाादक विरोधमे रहथि मुदा पाग आ विद्यापतिक हमर लेख क बाद अलग भ' गेला़, आ एहेन बहुत रास लोक छथि, प्रेम चन्द्र पंकज आ अभय दासकेँ कोनो ने कोनो बात ल' ' विदेहसँ घृणा भ' गेलन्हि, आ ई गप ओ सभ मुन्नाजीकेँ सूचित केलन्हि जे ओ लोकनि विदेह पढ़नाइ आब छोड़ि देलन्हि, प्राय: आब ओ सभ चोरा नुका क' विदेह पढ़ै छथि, कारण सभ गतिविधिक जानकारी हुनका सभकेँ रहै छन्हि।
आब सगर राति पर आउ, यात्री दिससँ सुमन- अमर केँ गारि देनहार आ अमर- सुमन दिससँ यात्रीकेँ गारि देनहार, मैथिली साहित्यमे ब्राहम्णवाद बचेबाक लेल विदेहक विरुद्ध दरिहरे- रमण- बिहारीक संग आबि गेल छथि अंतिम लड़ाइ लड़बा लेल।


Thursday, March 27, 2014

“81म सगर राति‍ दीप जरए :: हमरा नजरि‍मे, हम दुर्गानन्‍द मण्‍डल

81म सगर राति‍ दीप जरए कथा गोष्‍ठी देवघरमे

:: हमरा नजरि‍मे, हम दुर्गानन्‍द मण्‍डल

दि‍नांक 22/03/2014 तदनुसार दि‍न शनि, स्‍थान देवघर (बाबाधाम) झारखण्‍ड बि‍हारमे सगर राति‍ दीप जरए केर 81म कथा गोष्‍ठीक आयोजन। स्‍व. मायानन्‍द मि‍श्र एवं जीवकान्‍तक स्‍मृति‍मे समरपि‍त। स्‍थान बम्‍पास टॉनक बि‍जली कोठी-3। समए साँझ 6 बजेसँ भि‍नसर 6 बजे धरि‍। सफल सम्‍पन्न भेल। संयोजक छला श्री ओम प्रकाश झा आयोजक। हिनकर गहि‍ंकी नजरि‍ गोष्‍ठीक मादे सुक्षत्‍म बात धरि‍ राति‍ भरि‍ रहलनि‍। सफलताक श्रेय झाजीक वि‍भागीय कर्मठ सहयोगी आ मैथि‍ली प्रेमी आनो-आनो मैथि‍ल जि‍नकर सहयोग बि‍सरल नै जा सकत। दर-दतमनि‍सँ लऽ तेल साबून, जलखै-जलपान आ भोजन-भात धरि‍ सतत् रहलनि‍। जइमे कि‍छु खास चेहरा जे बि‍सरल नै जा सकै छथि‍ ओ सभ छथि‍ अवकाश प्राप्‍त अभि‍यंता श्री ओ.पी. मि‍श्रा, सुशील भारती, दि‍लीप दास इत्‍यादि‍ हुनक वि‍भागीय सहयोगीगण।
पूर्व जनतब आ मोबाइल मैसेजिंग केर अधारपर पूर्वहिंसँ नै मात्र मि‍थि‍लांचल अपि‍तु भारत भरि‍सँ मैथि‍लीक प्रेमी कथाकार लोकनि‍ अपन उपस्‍थि‍ति‍ दर्ज कऽ सगर राति‍ दीप जरए केर ऐ अनुपम गोष्‍ठीमे गोष्‍ठीक राति‍क रूपमे बन्‍हने रहला। राति‍ छोट आ कथा आ कथाकार अधि‍क भऽ गेला। ईहो एक तरहक गोष्‍ठीक सफलताक परि‍चायक छल हमरा नजरि‍मे।
गोष्‍ठीक उद्घाटनकर्ताक रूपमे मुख्‍य अति‍थि‍ श्री ओ.पी.मि‍श्राजी दीप प्रज्‍वलि‍त कऽ केलनि‍। मि‍श्रा जीक संग आयोजक ओमजी, संचालक गजेन्‍द्र ठाकुर, अध्‍यक्ष जगदीश प्रसाद मण्‍डलजी आ हम तथा हमरा संग उमेश मण्‍डलजी एवं आनो-आन जेते उपस्‍थि‍त कथाकार-साहि‍त्‍यकार रहथि‍ सभ कि‍यो देलनि‍।
पछाति‍ श्री एस.के.मि‍श्राजी मंगलाचरणक उच्‍चारण केलनि‍। मैथि‍लीक भि‍खाड़ी ठाकुर रामदेव प्रसाद मण्‍डल झारूदारजी नव सृजि‍त स्‍वागत गीत हम नै छी अहाँ योग यौ पाहुन...। गाबि‍ समस्‍त मैथि‍ल आ मि‍थि‍लाक मान बढ़ौलनि‍। बि‍जली कोठीक सभागार कथाकार लोकनि‍सँ पूर्णत: भरल काफी अइल-फइल जगह, सभ कथुक बेवस्‍थो उत्तम। सभागारक शोभामे मि‍डि‍याकर्मीक उपस्‍थि‍ति‍सँ आरो चारि‍ चान लागि‍ गेल।
शरू भेल पोथी लोकार्पण सत्र जइमे शि‍वकुमार झा टि‍ल्‍लू रचि‍त समालोचनाक पोथी अंशु’ लोकार्पणकर्ता श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल अध्‍यक्ष, राजदेव मण्‍डल आ बेचन ठाकुर छला। अंग्रेजी-मैथि‍ली शब्‍दकोष भाग-2, मैथि‍ली-अंग्रेजी कम्‍प्‍यूटर शब्‍दोकाष आ बेचन ठाकुरक ऊँच-नीच नाटकक लोकार्पण सेहो भेल। श्री गजेन्‍द्र ठाकुरक संपादि‍त दू गोट अति‍महत्‍वपूर्ण पोथी जि‍नोम मैपिंग-भाग-2 आ जि‍नि‍योलोजि‍कल मैपिंग 450 एडीसँ 2009 एडी धरि‍क मि‍थि‍लाक पंजी प्रवन्‍धक लोकार्पण आयोजक श्री ओम प्रकाश झा, डॉ. योगानन्‍द झा आ श्री राजीव रंजन मि‍श्रा जीक हाथसँ भेल।
शुरू भेल कोष्‍ठीक परि‍पेक्ष्‍यमे दू शब्‍द। दू शब्‍दक कड़ीमे श्री मान् ओ.पी. मि‍श्रा, दि‍लीप दास, सुशील भारती, ओम प्रकाश झा इत्‍यादि‍ लोक मैथि‍लीक सहज वि‍कासक लेल अपन उनमुक्‍त वि‍चार रखलनि‍। मैथि‍लीक वि‍कास दि‍नानुदि‍न हएत आ मैथिल धनी हेता। कथा गोष्‍ठीमे कुल मि‍ला कऽ सात गोट पाली बनल। कुल मि‍ला कऽ 34 गोट छोट-पैघ लघुकथा वा वि‍हनि‍ कथाक पाठ भेल। गोष्‍ठीक वि‍शेषता ई रहल जे प्रति‍येक पालीमे कथा वाचनक बाद पहि‍ले समीक्षा कएल गेल पछाति‍ समीक्षाक समीक्षा वरि‍ष्‍ठ समीक्षक लोकनि‍ द्वारा भेल। पहि‍ल सत्रमे चारि‍ गोट कथाकारक कथा जेना असली हीरा दुर्गानन्‍द मण्‍डल, रि‍क्‍शाक भाड़ा आ वुधि‍ए बताह फागुलाल साहु, बुढ़ि‍या मैया ओम प्रकाश झा आ उमेश मण्‍डल जीक केते बेर कथाक पाठ कएल गेल। ऐ पालीक समीक्षकक रूपमे डॉ. योगानन्‍द झा, श्री राजदेव मण्‍डल, श्री प्रमोद कुमार झा आ श्री अरवि‍न्‍द ठाकुरजी रहथि‍। समीक्षाक समीक्षकक रूपमे श्री नन्‍द वि‍लास राय, चन्‍दन झा आ डॉ. धनाकार ठाकुर छला। हि‍नका लोकनि‍क उपस्‍थि‍ति‍ मंचपर कथा वाचनसँ पूर्वसँ छल, जइसँ ओ लोकनि‍ पूर्णरूपेण वकोधि‍यानम् भऽ कथा श्रवण करथि‍ आ सम्‍पूर्ण रूपेँ समीक्षा हुअए।  
समीक्षाक समीक्षकक रूपमे अरवि‍न्‍द्र ठाकुरजी एकटा महतपूर्ण कही आकि‍ आर कि‍छु, टि‍प्‍पणी देलनि‍ जे सगर राति‍ दीप जरए कथा गोष्‍ठीक एकटा नि‍अम रहल जे समीक्षापर समीक्षा नै हेबक चाही। कि‍एक तँ गोष्‍ठीमे वि‍वाद उत्पन्न भऽ सकैए। दोसर गप ई जे जइ कथाकारक कथापर समीक्षा हुअए ओ स्‍वयं टि‍प्‍पणी नै करथि‍। जैपर मंच संचालक महोदय अपन महतपूर्ण वक्‍तव्‍यसँ समीक्षक लोकनि‍केँ सन्‍टुष्‍ट कएल। प्रति‍समीक्षाक क्रममे एकटा आर बात आएल जे कथाक गहराइकेँ आधुनीक पाठक स्‍वागत नै करैए जे कथाक दोष भेल। फलस्‍वरूप पाकक अभाव अछि‍ मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे।
मंच संचालक महोदय असहमति‍ ऐ प्रकारे देलनि‍ जे ई तँ भाषाक वि‍शेषाता छि‍ऐ जे कथानककेँ गहराइ प्रदान करत। पाठकक अभावक कारण आरो-आर कारण सभ रहल अछि‍। आजुक गहींरगर कथा पाठककेँ खूब जोड़ि‍ रहल अछि‍।
प्रति‍समीक्षकक रूपमे डॉ. धनाकर ठाकुरक एहेन वि‍चार आएल जेना मनो भरि‍ दूधमे पाभरि‍ फि‍टकि‍री पड़ि‍ गेल हो। जेना छोटी लाइनक गाड़ी एकाएक पाठि‍ बदलि‍ कोना दोसर लाइनपर चलि‍ गेल हो आ कोनो पैघ दुर्घटना होइत-होइत बँचल हो। हुनक बात-
अहाँ लोकनि‍क समीक्षा मुँह देखि‍ मुंगबा रहैए जे फल्‍लां एहेन कथाकार छथि‍, ई कथा एहेन अछि‍ तँए एकर समीक्षा एना-नै-एना करी।
सम्‍पूर्ण कथा गोष्‍ठीक शोभा अपन-अपन समीक्षीय वि‍चार दऽ बढ़बैत रहला।
दोसर सत्रमे श्री नन्‍द वि‍लास राय जीक भी.आई.पी. गेस्‍ट, राजदेव मण्‍डलक डरक डंका, राम वि‍लास साहुक मजबूरी आ इमानदारीक पाठ, ललन कुमार कामतक अप्‍पन माए-बाप कथाक पाठ भेल।
समीक्षक लोकनि‍ अपन-अपन वि‍चार रखलनि‍। पछाति‍ आयोजक महोदयक तरफसँ भोजन हेतु बीझो भेल। एकपति‍आनीमे बैस करीब सबा सए गोटे एक संग बैस भोजन केलनि‍। भोजनक लेल मि‍थि‍लाक माटि‍-पानि‍ परहक उपजल तीमन-तरकारीक बेवस्‍था छल। कथुक कमी नै। एहेन बुझना जाइ छल जेना मरजादी भोज हो। भोजनक घंटा भरि‍ पछाति‍ अगि‍ला सत्रक शुभारम्‍भ भेल। जइमे नि‍म्न कथाक पाठ भेल-

छि‍न्ना-झपटी- श्री शि‍व कुमार मि‍श्र (बेरमा)
बड़का मोछ- श्री कपि‍लेश्वर राउत (बेरमा)
उतेढ़क श्राद्ध- श्री शम्‍भू सौरभ (बैका)
जाति‍क भोज- श्री उमेश पासवान (औरहा)

गुरुदक्षि‍णा- डाॅ. योगानन्‍द झा (कबि‍लपुर)
अपराध- श्री पंकज सत्‍यम् (मधुबनी लगक)
ककर चरवाही आ चुनावधर्मी लोक- डॉ. उमेश नारायण कर्ण
कबाउछ- डॉ. धनाकर ठाकुर

आन्‍हर- श्री अखि‍लेश कुमार मण्‍डल (बेरमा)
सरकारीए नौकरी कि‍एक- बि‍पीन कुमार कर्ण (रेवाड़ी)
बनमानुष आ मनुष- डाॅ. शि‍वकुमार प्रसाद (सि‍मरा)
वृधापेंसन आ मजबुरी- श्री शारदानन्‍द सि‍ंह
पानि‍- श्री बेचन ठाकुर

सत्ता-चरि‍त- श्री अरवि‍न्‍द ठाकुर (सुपौल)
बापक प्राण- श्री भाष्‍करानन्‍द झा भाष्‍कर (कोलकाता)  
संबोधन- श्री चन्‍दन कुमार झा (कोलकाता)
ठीका- श्री आमोद कुमार झा
चौठि‍या- श्री अच्‍छेलाल शास्‍त्री (सोनवर्षा)

तखन, जखन- श्री गजेन्‍द्र ठाकुर (दि‍ल्‍ली)
चैन-बेचैन- श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल (बेरमा)
कथाक पाठ होइत रहल आ संक्षि‍प्‍त टि‍प्‍पणी चलैत रहल।

कथा गोष्‍ठीक वि‍शेषता ई रहल जे सम्‍पूर्ण कार्यक्रमक वि‍श्व भरि‍मे लाइव प्रसारण कएल गेल। जे सगर राति‍ दीप जरए केर पन्नामे ऐति‍हासि‍क कार्य भेल। अगि‍ला गोष्‍ठी हेतु दू गोट प्रस्‍ताव आएल। पहि‍ल श्री गजेन्‍द्र ठाकुर मेंहथ आ पंकज सत्‍यमक मुजफ्फरपुर लेल। कथा गोष्‍ठी जाएत केतए ऐपर अरवि‍न्‍द्र ठाकुरक टि‍प्‍पणी भेल- ‘अध्‍यक्ष महोदय जेतक लेल वि‍चार दथि‍।’ मुदा अध्‍यक्ष महोदय बात कटैत कहलनि‍- ‘अध्‍यक्षे टाक वि‍चार नै अपि‍तु समस्‍त कथाकार वि‍चारसँ कथा गोष्‍ठी केतए जा से निर्णए हुअए।’ अंतमे सर्वसम्‍मति‍सँ अगि‍ला कथा गोष्‍ठी मेंहथमे होबाक निर्णए भेल। जे श्री गजेनद्र ठाकुर 31 मई 2014केँ होएत। जे बाल साहि‍त्‍यपर केन्‍द्रि‍त रहत। ऐ लेल श्री ठाकुरजी समस्‍त कथाकार लोकनि‍केँ सबजाना हकार देब सेहो नै बि‍सरला। कहिए देलखि‍न- ‘सभ कि‍यो सादर आमंत्रि‍त छी मेंहथ कथा गोष्‍ठीमे।’ अहूँ सभ धि‍यान राखब। ई भेल हमर हकार।

           

81म सगर राति‍ दीप जरए- देवघरमे उमेश मण्‍डल पाठ केलनि‍ ''केते बेर''

केते बेर


ओना तँ केते बेर बरि‍याती जाइसँ सप्‍पत खेने छेलौं मुदा समए एने जहि‍ना देशो-कोस, दि‍नो-दुनि‍याँ बदलैए तहि‍ना वि‍चार बदलि‍ जाइ छेलए जइसँ सप्‍पत टुटि‍ जाइ छेलए। मुदा से ऐबेर नै भेल, कान पकड़ि‍ खूब अँठि‍ कऽ सप्‍पत खा लेलौं। आगूक बात पछुआ पकड़ि‍ पछुआएले छल आकि‍ बि‍च्‍चेमे दुखन भाय टोकि‍ देलनि‍-
भुमहुरक आगि‍ जकाँ तरे-तर भुमि‍आइ छेँ मुदा खोलि‍ कऽ बजमे से बकार नै फुटै छौ।
अनकर बात रहैत तँ वि‍चार करै तक अँटकबो करि‍तौं मुदा शि‍वदूतक आगू जहि‍ना नारद बाबा फँसि‍ गेला, तहि‍ना फँसि‍ गेलौं। सँझुका नढ़ि‍याक पुक्की पेबि‍ पुक्की भरलौं-
भैया, अहाँ लग लाथ कथीक, अखनि‍ तक दुइए गेटे एहेन अछि‍ जेकर बात मानि‍ लइ छि‍ऐ, दुनू लंगोटि‍या संगीक संग एक्के कि‍लासमे पढ़ि‍तो छी।
बुझबे ने केलि‍ऐ, अपने बेथाएल बेथाक भूमि‍कामे ओझरा हथि‍नी गति‍ये चाइल धेने रही मुदा जेना दुखन भायकेँ केतौ जेबाक रहनि‍ तहि‍ना फुनफुनाइत बजला-
देख, सौति‍नी खि‍स्‍सा सुनैले छुट्टी नइए!
झँटाएल मन बि‍च्‍चेमे बजा गेल-
की सौति‍नी खि‍स्‍सा?”
मुँहक मोती खसबि‍ते दुखन भाय लोकि‍ लेलनि‍-
जानि‍ए कऽ उक्‍खरि‍मे मुड़ी देब तखनि‍ मुसराक डर केने हएत, सौति‍न घर बास। तैपर खि‍स्‍सा पि‍हानी नै भेल तखनि‍ तँ पति‍वरतेक घर भेल कि‍ने?”
मनमे भेल जे जँ कहीं दुखन भाय अपने बात कहैत तरौटा जात छोड़ि‍ ससरि‍ गेला तखनि‍ तँ मुँहक मुद्रा मुहेँक बैंकमे रहि‍ जाएत। बौसैत बजलौं-
भैया, अहाँ तँ अलबेला लोक छी, अहाँले साँझ-भोरक बेलाक कोन मोल छै।
जेना नीक लगलनि‍, तहि‍ना नारि‍यल, कि‍समि‍स, मि‍सरीक त्रि‍वेणीमे स्‍नान करए लगला। हाँइ-हाँइ कऽ अपन बात नि‍कालए लगलौं-
बुझलि‍ऐ भैया की?”
लोकक आहटि‍ पाबि‍ खि‍खि‍रक कान जहि‍ना ठाढ़ रहैए तहि‍ना भैयो केलनि‍। मनमे भेल जँ तीर-धनुषक ओरि‍यान करए लगब तँ शि‍कारे छुटि‍ जाएत, तइसँ नीक गुलेतीएसँ काज चला ली। बजलौं-
भैया, बरि‍यातीमे खेबा काल तीनू गोटे एक्के ठीमन बैसलौं। गुण रहल जे बीचमे रही नै तँ खाइए काल दुनू गोटे मारि‍-मरौबलि‍ कऽ लतए। दुनू हाथ दुनू दि‍स उठेलौं तखनि‍ मारि‍ थमहल, नै तँ आने बरि‍याती जकाँ कान-कपार फोड़ेनै अबि‍तौं!
कान-कपार फोड़ेनाइ सुनि‍ दुखन भाय जेना नाँगरि‍ रोपि‍ कान ठाढ़ खि‍खि‍रक बच्‍चा जकाँ तकलनि‍। बजलौं-
भैया, कोबी तरकारी रहए, एक गोटे बजला- पछि‍ममे कोबीकेँ गोभी कहै छै आ पूबमे गोभीकेँ कोबी।
दुखन भाय बजला-
अपनो ऐठाम तँ लि‍खतनमे गोभी छै आ मुखतनमे कोबी छै। र्इ की भेल?”
कहलि‍यनि‍-
भैया, तेतबे नै ने भेल, गोभी तँ गोभकेँ कहल जाइ छै मुदा कोबीकेँ तँ फूल कहल जाइ छै।
फूल आ गोभ सुनि‍ दुखन भाय ठमकला। ठमकि‍ते गर अँटबए लगलौं जे जखने मुँह खोलता आकि‍ दोसर गर धरा थोपि‍ देबनि‍। मने-मन ओ गर लगबए लगला जे धानक गम्‍हराकेँ गोभो कहल जाइ छै, पछाति‍ फूल आ दाना होइ छै, मुदा से कोबीक नै अछि‍। जँ फूल मानि‍ लेब तँ फूलक अंति‍म अबस्‍थाक पछाति‍ गाछ नि‍कलै छै, गाछमे पीअर-पीअर फूल होइ छै तोड़ी छि‍म्‍मरि‍ जकाँ छीमी होइ छै, जइमे तोड़ीए दाना जकाँ बीआ होइ छै, ओइसँ कोबीक गाछ होइए, तखनि‍ कोबीक फूल भेल आकि‍ गोभ? मने-मन जेना ओझरा गेला। बजला कि‍छु ने। मुदा मुँहक रूखि‍ कि‍छु आरो सुनबाक बूझि‍ पड़ल। दोसर गुल्‍ली फेकलौं-
भैया, असलाहा बात तँ छुटि‍ए गेल।
बजला कि‍छु ने, मुदा मुँहक रूखि‍सँ बूझि‍ पड़ल जे मन जेना उचटि‍ रहल छन्‍हि‍। पुछलि‍यनि‍-
भैया, कोनो धड़फड़ीमे छी की?”
जान छोड़बैत दुखन भाय बजला-
बौआ, वि‍चारक प्रश्न उठेलह, मुदा नि‍चेन नै छी अखनि‍, जखनि‍ नि‍चेन रहब तखनि‍ तोहर अगि‍लो बात सुनबह।
आगू दि‍न सुनबह, सुनि‍ते मन जि‍राएल। मुदा तैयो मुँहसँ खसि‍ पड़ल-
भैया, सप्‍पत तँ केता बेर खेने छेलौं जे बरि‍याती नै जाएब, मुदा ऐबेर कान ओमठि‍ लेलौं। कहू जे जखनि‍ बरे बि‍का जाइए तखनि‍ बरि‍याती मंगनी-चंगनी छोड़ि‍ की भेल?”
मुँह मलि‍न रहि‍तो दुखन भाइक बतीसी मकैक लाबा जकाँ चमकि‍ उठलनि‍।¦¦¦
उमेश मण्‍डल

निर्मली (सुपौल)