Saturday, October 4, 2008

बिसाँढ़- जगदीश प्रसाद मण्डल




पछिला चारि सालक रौदी भेने गामक सुरखिये बेदरंग भऽ गेल। जे गाम हरियर-हरियर गाछ-बिरीछ, अन्नसँ लहलहाइत खेत, पानिसँ भरल इनार-पोखरि, सैकड़ो रंगक चिड़ै-चुनमुनी, हजारो रंगक कीट-पतंगसँ लऽ कऽ गाए महीस आ बकरीसँ भरल रहैत छल ओ मरनासन्न भऽ गेल। सुन-मसान जेकाँ। बीरान। सबहक मनमे एक्केटा विचार अबैत जे आब ई गाम नै रहत। जँ रहबो करत तँ खाली माटियेटा। किएक तँ जहि गाममे खाइक लेल अन्न नहि उपजत, पीबैक लेल पानि नहि रहत, तहि गामक लोक की हवा पीबि कऽ रहत? जहि मातृभूमिक महिमा अदौसँ सभ गबैत अएलाह ओ भूमि चारिये सालक रौदीमे पेटकान लाधि देलक। मुदा तैयो लोकक टूटैत आशाक वृक्षमे नव-नव फुलक कोढ़ी टुस्साक संग जरुर निकलि रहल अछि। किएक तँ आखिर जनकक राज मिथिला छियै की ने। जहि राज्यमे बारह-बर्खक रौदीक फल सीता सन भेटल तहि राजमे, हो न हो, जँ कहीं ओहने फल फेर भेटए। एक दिशि रौदीक सघन मृत्युवाण चलैत तँ दोसर दिशिसँ आशाक प्रज्वलित वाण सेहो ओकर मुकाबला करैत। जेकर हसेरियो नमहर। एहनो स्थितिमे दुनू परानी डोमनक मनमे जीबैक ओहने आशा बनल रहल, जेहने सुभ्यस्त समएमे। कान्हपर कोदारि नेने आगू-आगू डोमन आ माथपर सिंगही माछ आ बिसाँढ़सँ भरल पथिया नेने पाछु-पाछु सुगिया, बड़की पोखरिसँ आंगन, जिनगीक गप-सप्पा करैत अबैत। चानिक पसीना दहिना हाथसँ पोछि, मुस्कुराइत सुगिया बाजलि- ‘जकरा खाइ-पीबैक ओरियान करैक लूरि बुझल छैक ओ कथीक चिन्ता करत?’’, पत्नीक बात सुनि डोमन पाछू घुरि सुगियाक चेहरा देखि बिनु किछु बजनहि, नजरि निच्चाँ केने आगू डेग बढ़बए लगल। किएक तँ खाइक ओते चिन्ता मनमे नहि, जते पानि पीबैक।
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डोमनकेँ अपन खेत-पथार नहि। मुदा दुनू बेकती तेहन मेहनती जे नहियो किछु रहने नीक-नहाँति गुजर करैत। गिरहस्तीक सभ काजक लूरि रहितहुँ ओ कोनो गिरहस्तसँ बन्हाएल नहि, ओना समए-कुसमए अपना काज नहि रहने बोइनो कऽ लैत। अपना खेत नहि रहने खेती तँ नहिये करैत मुदा दस कट्ठा मड़ुआ सभ साल बटाइ रोपि लैत, जाहिसँ पाँच मन अन्नो घर लऽ अबैत। मड़ुआ बीआ उपजबैमे बेसी मिहनत होइत अछि। सभ दिन बीआ पटबए पड़ैत अछि। शुरुहे रोहणिमे बड़की पोखरिक किनछरिमे डोमन बीआ पाड़ि लैत। लगमे पानि रहने पटबैयोक सुविधा। आरु बीरार तेँ बीओ नीक उमझैत। पनरहे दिनमे बीआ रोपाउ भऽ जाइत। मिरगिसियामे पानि होइतहि अगते मड़ुआ रोपि लैत। मुदा एहि बेर से नञि भेलै। बरखा नहि भेने बीआ बीरारेमे बुढ़हा गेल। एक्को धुर मड़ुआक खेती गाममे नहि भेलै। आ ने कियो अखन धरि धानक बीरारक खेत जोतलक आ ने बीआ बाओग केलक। रौदीक आगम सबहक मनमे हुअए लगल। मुदा तैयो ककरो मनमे अन्देशा नहि! किएक तँ ढ़ेनुआर नक्षत्र सभ पछुआइले अछि।
  जहिना रोहणि-मिरगिसिया फांेक गेल तहिना अद्रो। समए सेहो खूब तबि गेलै। दस बजेसँ पहिनहि सभ बाधसँ आंगन आबि जाएत। किएक तँ लू लगैक डर सबहक मनमे। मड़ुआ खेती नहि भेने दुनू परानी डोमनक मनमे चिन्ता पैसए लगल। बड़की पोखरिसँ दुनू परानी पुरैनिक पातक बोझ माथपर नेने अंगना अबैत। बाटमे सुगिया बाजलि- ‘‘अइ बेर एक्को कनमा मड़ुआ नञि भेल। बटाइयो केने आन साल ओते भऽ जाइत छल जे सालो भरि जलखै चलि जाइ छलाए। अइ बेर तँ जलखइओ बेसाहिये कऽ चलत।’’
  माथ परक पुरैनिक पातक बोझसँ पानि चुबैत। जे डोमनो आ सुगियोकेँ अधभिज्जु कऽ देने। नाक परक पानि पोछैत डोमन उत्तर देलक- ‘‘कोनो कि हमरेटा नञि भेल आकि गामेमे ककरो नै भेलै। अनका होइतै आ अपना नै होइत तखन ने दुख होइत। मुदा जब ककरो नै भेलै तँ हमरे किअए दुख हएत। जे दसक गति हेतै से हमरो हएत। अपना तँ पुरैन-पातक बिक्रीक रोजगारो अछि आ जेकरा इहो ने छै?’’
  डोमनक उत्तर सुनि मिरमिरा कऽ सुगिया बाजलि- ‘हँ, से तँ ठीके। मुदा ठनका ठनकै छै तँ कियो अपने माथपर ने हाथ दै अए। तखन तँ ई रौदी इसरक डाँग छी, लोकक कोन साध।’’
अखन धरिक समए कियो रौदी नहि बुझलक। सबहक मनमे यएह होइत जे ई तँ भगवानक लीले छियनि। जे कोनो साल अगतेसँ पानि हुअए लगैत तँ कोनो साल अंतमे होइत। कोनो साल बेसिओ होइत तँ कोनो साल कम्मो। कोनो-कोनो साल नहिये होइत। जहि साल अगते बिहरिया हाल भऽ जाइत ओहि साल समएपर गिरहस्ती चलैत मुदा जहि साल पचता पानि होइत तहि साल अधखड़ू खेती भऽ जाइत। मुदा जखन हथिया नक्षत्र धरि पानि नहि भेल तखन सबहक मनमे अाबए लगल जे अइ बेर रौदी भऽ गेल। ओहिना जोतल- बिनु जोतल खेतसँ गरदा उड़ैत। घास-पातक कतौ दरस नहि। मुदा तेँ कि लोक हारि मानि लेत। कथमपि नहि। सभ दिनसँ गामक लोकमे सीना तानि कऽ जीबैक अभ्यास बनल अछि ओ पीठ कोना देखाओत? भऽ सकैत अछि जे इन्द्र भगवानकेँ कोनो चीजक दुख भऽ गेल हेतनि। जाहिसँ बिगड़ि कऽ एना केलनि। तेँ हुनका बौँसब जरुरी अछि। जखने फेर सुधरि जेताह तखनेसँ सभ काज सुढ़िया जाएत। यएह सोचि कियो भुखल दुखलकेँ अन्न दान तँ कियो कीर्तन-अष्टयाम-नवाह तँ कियो यज्ञ-जप चंडी, विष्णु तँ कियो महादेव पूजा लिंग इत्यादि अनेको रंगक बौँसैक ओरियान शुरु केलक। जनिजाति सभ कमला-कोशीकेँ छागर-पाठी कबुला सेहो करए लगलीह। किएक तँ जँ हुनकर महिमा जगतनि तँ बिनु बरखोक बाढ़ि अनतीह। बाढ़ि आओत पोखरि-झाखड़िसँ लऽ कऽ चर-चौरी, डीह-डाबर सभ भरत। रौदी कमत। अधा छिधा उपजो हेबे करत।
  बरखाक मकमकी देखि नेङरा काका महाजनी बन्न कऽ लेलनि। ओ बुझि गेलखिन जे अइ बेरक रौदी अगिला साल बिसाएत। मुदा सोझमतिया बौकी काकीक सभ चाउर सठि गेलनि। ओना बौकी काकीक लहनो छोट। सिर्फ चाउरेक। सेहो पावनिये-तिहार धरि समटल। हुनकर महाजनी मातृ-नवमी, पितृपक्षसँ शुरु होइत। पाहुन-परकक लेल दुर्गापूजा, कोजगरा होइत दिवाली परेब, गोवर्धनपूजा, भरदुतिया, छठि होइत सामा धरि अबैत-अबैत सम्पन्न भऽ जाइत छलनि। किएक तँ सामाकेँ सभ नवका चूड़ा खुआबैत। खुएबे टा नहि करैत संग भारो दैत। ताधरि कोला-कोली धानो पकि जाइत। मुदा से बात बौकी काकी वुझबे ने केलखिन जे अइ बेर रौदी भऽ गेल। तेँ अपनो खाइ ले किछु नहि रखलथि। जहिना बोनिहार, किसान तहिना महाजन बौकियो काकी भऽ गेलीह।
  अगहन अबैत-अबैत सभकेँ बुझि पड़ए लगलैक जे अपने की खाएब आ माल-जालकेँ की खुआएब। किएक तँ कातिक धरिक ओरियान -अपनो आ मालो-जालक लेल- तँ अधिकांश लोक पहिनहि सँ कऽ कऽ रखैत। जे नेङरा काका छोड़ि सबहक सठि गेलनि। धानोक बीआ सभ कुटि-छाँटि कऽ खा गेल। धानक कोन गप जे हालक दुआरे रब्बियो-राइ हएब कठिन। सबहक भक्क खुजल। भक्क खुजितहि मनमे चिन्ता समाइ लगल। जेना-जेना समए बीतैत तेना-तेना चिन्तो फौदाइत। एक तँ ओहिना चुल्हि सभ बन्न हुअए लगल तइ परसँ सुरसा जेकाँ समए मुँह बाबि आगूमे ठाढ़। चिन्तासँ लोक रोगाइ लगल। भोर होइतहि धिया-पूताक बाजा सौंसे गाम बाजए लगैत। मौगी पुरुखकेँ करमघट्टू तँ पुरुख मौगीकेँ राक्षसनी कहए लगल। जाहिसँ धिया-पूताक बाजाक संग दुनू परानीक नाच शुरु भऽ जाइत। मुदा एहन समए भेलोपर दुनू परानी डोमनक मनमे एक्को मिसिया चिन्ता नहि। किएक तँ जूरे-शीतलसँ पुरैनिक पातक कारोबार शुरु केलक। कारोबार नमहर। बावन बीघाक बड़की पोखरि। जहिमे सापर-पिट्टा पुरैनिक गाछ। बजारो नमहर। निरमली, घोघरडिहा, झंझारपुर स्टेशनो आ पुरनो बजार। असकरे सुगिया कते बेचत। पुरैनिक पात कीननिहार हलुआइसँ लऽ कऽ मुरही-कचड़ीवाली धरि। तइपर सँ भोज-काजमे सेहो बिकाइत। तेँ आठ दिनपर पार लगौने रहए। भरि दिन डोमन पत्ता तोड़ि-तोड़ि जमा करैत। एक दिनकेँ सुगिया पत्ता सरिअबैत, गनि-गनि तेसरा दिन भोरुके गाड़ीसँ बेचैले जाइत। जे पात उगड़ि जाय ओकरा डोमन सुखा-सुखा रखैत। किएक तँ सुखेलहो पातक बिक्री होइत।
निरमलीसँ पात बेचि कऽ सुगिया आबि पतिकेँ कहलक- ‘‘रौदी भेने अपन चलती आबि गेल।’’
  चलतीक नाम सुनि मुस्की दैत डोमन पुछलक- “से की? ’’
    ‘‘सभ पात बेचिनिहार बेपारी थस लऽ लेलक। सभ गामक पोखरि सुखि गेलै जाहिसँ सबहक कारेबार बन्न भऽ गेलै। अपने टा पात बजार पहुँचैए। आइ तँ जहाँ गाड़ीसँ उतड़लहुँ आकि दोकानदार सभ सभ-पात छानि लेलक। टीशनेपर छुहुक्का उड़ि गेल।’’
  डोमन- ‘‘अहाँकेँ लूरि नञि छलए जे दाम बढ़ा दितिऐ, एकक दू होइत।’’
  सुगिया- ‘‘अगिला खेपसँ सएह करब। आब तँ बड़िड़यो जुआइत हएत की ने?’’
  डोमन- ‘‘गोटे-गोटे जुआएलहेँ। मुदा बीछि-बीछि तोड़ए पड़त। तेँ पाँच दिन आरो छोड़ि दै छिऐ।’’
तेसर साल चढ़ैत-चढ़ैत गामक एकटा बड़की पोखरि आ पाँचटा इनार छोड़ि सभ सुखि गेल। नमहर आँट-पेटक बड़की पोखरि। किएक तँ दैतक खुनल छी की ने? लोकक खुनल थोड़े छिऐ। देव अंश अछि। तेँ ने गामक सभ अपन बेटाकेँ उपनयनो आ बिआहोमे ओही पोखरिमे नहबैए। ततबे नहि छठिमे हाथो उठबैए। हमरा इलाकाक पृथ्वी ओक बनाबटि अजीब अछि। बुझू तँ माटिक पहाड़। पाँच फुटसँ निच्चाँ धरि ने बाउल अछि आ ने पानि। शुद्ध माटि। जाहिसँ ने एक्कोटा चापाकल आ ने बोरिंग गाममे। पानिक दुआरे गामक-गाम लोककेँ पराइन लगि गेल। माल-जाल उपटि गेल। चाहे तँ लोक बेचि लेलक वा खढ़ पानिक दुआरे मरि गेल। अधासँ बेसी गाछो-बिरीछ सुखि गेल। चिड़ै-चुनमुनी इलाका छोड़ि देलक। जे मूस अगहनमे अंग्रेजी बाजा बजा सत-सतटा विआह करैत छल ओ या तँ बिलेमे मरि गेल वा कतऽ पड़ा गेल तेकर ठेकान नहि। हमरो गामक अधासँ बेसिये लोक पड़ा गेल। मुदा तैयो जिबठगर लोक गाम छोड़ैले तैयार नहि। पुरुख सभ गाम छोड़ि परदेश खटैले चलि गेल। मुदा बालो-बच्चा आ जनि-जातियो गामेमे रहल। पोखरि-इनारकेँ सुखैत देखि, पानि पीबैक लेल बड़किये पोखरिक कतबाहिमे कुप खुनि-खुनि लेलक। अपन-अपन कुप सभकेँ। पानिक कमी नहि। तीन सालक जे रौदी परोपट्टाक लेल वाम भऽ गेल वएह डोमनक लेल दहिन भऽ गेल। काज तँ आने साल जेकाँ मुदा आमदनी दोबर-तेबर भऽ गेलै। गामक जमीनोक दर घटल। जाहिसँ डोमन खेत कीनए लगल। ओना सुगियाक इच्छा खेत कीनैक नहि। किएक तँ मनमे होए जे एहिना रौदी रहत आ खेत सभ पड़ता रहत। तेँ अनेरे खेत लऽ कऽ की करब। मुदा मालो-जाल तँ घास-पानिक दुआरे नहिये लेब नीक हएत। डोमनक मनमे आशा रहए जे जहिना लुल्हियो कनियाँ बेटा जनमा कऽ गिरथाइन बनि जाइत, तहिना तँ पानि भेने परतियो खेत हएत की ने।
  योगी-तपस्वीक भूमि मिथिला अदौसँ रहल। जे अपन देह जीव-जन्तुक कल्याणक लेल गला लेलनि। ओ कि एहि बातकेँ नहि जनैत छलथिन। जनैत छलथिन। तेँ ने गाममे अट्ठारह गण्डा माने ७२ टा पोखरि, सत्ताइस गण्डा माने १०८ टा इनारक संग-संग चौरीमे सैकड़ो कोचाढ़ि-बिरइ खुनि पानिक बखारी बनौने छलाह। सोलहो आना बरखे भरोसे नहि, अपनो जोगार केने छलाह।
  तीन साल तँ दुनू परानी डोमन चैनसँ बितौलक। मुदा चारिम साल अबैत-अबैत बेचैन हुअए लगल। गामक सभ पोखरि-इनार तँ पहिनहि सुखि गेल छल। लऽ दऽ कऽ बड़की पोखरि टा बँचल। तहूमे सुखैत-सुखैत मात्र कठ्ठा पाँचेमे पानि बचल। सुखल दिशि पुरैनियो उपटि गेल। बीचमे जे पानि, ओहीमे पुरैनिक गाछ रहए, मुदा जाँघ भरिसँ उपरे गादि। पैसब महा-मोसकिल। पाएर दइते सरसरा कऽ जाँघ भरि गड़ि जाइत। के जान गमबए पैसत। निराशाक जंगलमे डोमन बौआ गेल। मनमे हुअए लगलै जे जहिना गामक लोक चलि गेल तहिना हमहूँ चलि जाएब। जानि कऽ परानो गमाएब नीक नहि। जिनगी बचत, समए-साल बदलतै तँ फेर घुरि कऽ आएब नहि तँ कतौ मरि जाएब। जहिना गामक सभ कुछ बिलटि गेल, समाजक लोक बिलटि गेल, तहिना हमहूँ बिलटि जाएब।
  पतिकेँ चिन्तित देखि सुगिया पुछलक- ‘‘किछु होइए? एना किअए मन खसल अछि?’’
  पत्निक प्रश्न सुनि डोमन आँखि उठा कऽ देखि पुनः आँखि निच्चाँ कऽ लेलक। आँखि निच्चाँ करितहि सुगिया दोहरा कऽ पुछलक- ‘‘मन-तन खराब अछि?’’
  नजरि उठा डोमन उत्तर देलक- ‘‘तन तँ नहि खराब अछि मुदा तनेक दुख देखि मन सोगाएल अछि। जइ आशापर अखन धरि खेपलहुँ ओ तँ चलिये गेल। जे अगिलोक कोनो आशा नहि देखै छी। की करब आब?’’
  सुगिया- ‘‘अपना केने किछु ने होइ छै। जे भगवान जनम देलनि, मुँह चीड़ने छथि अहारो तँ वएह ने देताह। तइ लेल एत्ते चिन्ता किअए करै छी?’’
  डोमन- ‘‘गामक सभ कुछ बिलटि गेल। एहेन सुन्दर गाम छल, सेहो उपटि रहल अछि। सिर्फ माटि टा बँचल अछि। की माटि खुनि-खुनि खाएब? बिना अन्न-पानिक काए दिन ठाढ़ रहब?’’
  ‘‘चिन्ता छोड़ू। जहिया जे हेबाक हेतै से हेतै। अखन तँ पानियो अछिये आ अन्नो अछिये। जाधरि एहि धरतीपर दाना-पानी लिखल हएत ताधरि भेटबे करत। जहिया उठि जाएत तहिया ककरो रोकने रोकेबै। तइ लेल एत्ते चिन्ता किअए करै छी।’’
  कहि सुगिया भानसक ओरियान करए लागलि। पत्नीक बात सुनि डोमन मने-मन सोचए लगल जे हमरा तँ मरैयोक डर होइए मुदा ओकरा कहाँ होइ छै। ओ तँ मरइयो लेल तैयारे अछि। फेर मनमे उठलै जे जीवन-मृत्युक बीच सदासँ संघर्ष होइत आएल अछि आ होइत रहत। तहिसँ पाछू हटब कायरता छी। जे मनुष्य कायर अछि ओ कोन जिनगीक आशामे अनेरे दुनियाँकेँ अजबारने अछि। पुनः अपना दिश तकलक। अपना दिश तकितहि मनमे एलै जे जीबैक बाट हरा गेल अछि। तेँ एते चिन्ता दबने अछि। तमाकुल चुना कऽ मुँहमे लेलक। तमाकुल मुँहमे लइते अपन माए-बापसँ लऽ कऽ पछिला पुरखा दिशि घोड़ा जेकाँ नजरि दौड़लै। मुदा कतौ रुकलै नहि। जाइत-जाइत मनुष्यक जड़ि धरि पहुँचि गेल। पुनः घुमि कऽ आबि नजरि माए लग अटकि गेलै। मन पड़लै माएक संग बितौलहा जिनगी। मन पड़लै माइयक ओ बात जे दस बर्खक अवस्थामे रौदी बितौने छल। रौदी मन पड़ितहि बड़की पोखरिक बिसाँढ़ आ अन्है माँछ आँखिक सोझमे आबि गेलै। कने काल गुम्म भऽ मन पाड़ए लगल।
  मन पड़लै, अही पुरैनिक जड़िमे तँ बिसाँढ़ो फड़ैत अछि। अल्हुए जेकाँ। जहिना माटिक तरमे अल्हुआक सिरो आ अल्हुओ रहै छै तहिना पुरैनिक जड़िमे सिरो आ बिसाँढ़ो रहैत अछि। अनायास मुँहसँ निकललै- “बाप रे, बाबन बीघाक पोखरिमे तँ कते ने कते बिसाँढ़ हेतै। ओकरे खुनैमे माछो भेटत। खाधि बना-बना सिंही-मांगुर रहैए। एक पंथ दू काज। मनमे खुशी अबिते पत्नीकेँ सोर पाड़ि कहलक- ‘‘भगवान बड़ी टा छथिन। जहिना अरबो-खरबो जीव-जंतुकेँ जन्म देने छथिन तहिना ओकर अहारोक जोगार केने छथिन।’’
पतिक बात सुनि सुगिया अकबका गेल। बुझबे ने केलक। मुँह बाबि पति दिशि देखैत रहलीह। पुनः डोमन कहलक- ‘‘चुल्हि मिझा दिऔ। घुरि कऽ आएब तखन भानस करब।’’
  पतिक उत्साह देखि सुगिया मने-मन सोचए लगली जे मन ने तँ सनकि गेलनिहेँ। अखने मुरदा जेकाँ पनिमरु छलाह। आ लगले की भऽ गेलनि। दोसर बात परखैक खियालसँ चुप-चाप ठाढ़ रहली।
  डोमन फेर बाजल- ‘‘की कहलौं ? पहिने आँच मिझा दिऔ। फटक लगा छिट्टा लऽ कऽ संगे चलू।’’
  सुगिया पुछलक- ‘कत्तऽ।’
  ‘‘बड़की पोखरि।’’
  ‘किअए?’
  ‘‘एहन-एहन सइओ रौदी कटैक खेनाइ पोखरिमे दाबल अछि। आनैले चलू।’’
  सवाल-जबाव नहि कऽ सुगिया आगि पझा, फटक लगा छिट्टा लऽ तैयार भेलि। घरसँ कोदारि निकालि डोमन बिदा भेल। आगू-आगू डोमन आ पाछु-पाछु सुगिया। बड़की पोखरिक महारपर पहुँचि डोमन हाथक इशारासँ पत्नीकेँ देखबैत बाजल- ‘‘जते पोखरिक पेट सुखल अछि ओहिमे तते खाइक वस्तु गड़ाएल अछि जे ने खाइक कमी रहत आ ने पीबैक पानिक। जेना-जेना पानि सुखैत जेतै तेना-तेना कुपकेँ गहींर करैत जाएब। जते पुरैनिक गाछ सुखाएल अछि ओहिमे घुरछा जेकाँ बिसाँढ़ फड़ल हएत।’’
  पोखरि धँसि डोमन तीन डेग उत्तरे-दछिने आ तीन डेग पूबे पछिमे नापि कोदारिसँ चेन्ह देलक। एक धुर। उत्तरबरिया पूबरिया कोनपर कोदारि मारलक। माटि तते सक्कत जे कोदारि धँसबे ने कएल। दोहरा कऽ फेर जोरसँ कोदारि मारलक। कोदारि फेर नै धँसल। आगू दिशि देखि हियाबए लगल जे किछु दूर आगूक माटि नरम हएत। खुनैमे असान हएत। मनक खुशी उफनि कऽ आगू खसल- ‘‘अए ढ़ोरबा माए, हम पुरुख नञि छी। देखियौ हमरा माटि गुदानबे ने करैए। अहाँ हमरासँ पनिगर छी, दू छअ मारि कऽ देखियौ।’’
  सुगिया- ‘‘हमर चूड़ी-साड़ी पहीर लिअ आ हमरा धोती दिअ। तखन कोदारि पाड़िकेँ देखा दै छी।’’
  मुस्की दैत दुनू आगू मुँहे ससरल। एक लग्गा आगू बढ़लापर माटि नरम बुझि पड़लै। कोदारि मारि कऽ देखलक तँ माटि सहगर लगलै। एक धुर नापि डोमन खुनए लगल। पहिले छअमे एकटा बिसाँढ़क लोली जगलै। लोल देखितहि उछलि कऽ बाजल- ‘‘हे देखियौ। यएह छी बिसाँढ़।’’
  सुगिया- ‘‘लोल देखने नञि बुझब। सौँसे खुनि कऽ देखा दिअ।’’
  पत्नीक बात सुनि डोमनकेँ हुअए लगल जे हो न हो कहीं अधेपर सँ ने कटि जाए। से नहि तँ लोल पकड़ि डोला कऽ उखाड़ि लै छी। मुदा नै उखड़ल। कने हटि दमसा कऽ दोसर छअ मारलक। छअ मारितहि एक बीतक देखलाहा आ चारि-चारि ओंगरीक दूटा आरो देखलक। तीनूकेँ खुनि दुनू परानी निङहारि-निङहारि देखए लगल।
  उज्जर-उज्जर। नाम-नाम। लठिआहा बाँस जेकाँ गोल-गोल, मोट। हाथी दाँत जेकाँ चिक्कन, बीत भरिसँ हाथ भरिक। पाव भरिसँ आध सेर धरिक।
  सुगिया दिशि नजरि उठा कऽ डोमन देखलक तँ पचास वर्षक आगूक जिनगी बुझि पड़लै। पति दिशि नजरि उठा कऽ सुगिया देखलक तँ चूड़ीक मधुर स्वर आ चमकैत मांगक सिनदुर देखलक।’’
  छिट्टा भरि विसाँढ़ आ सेर चारिएक सिंही माछ नेने दुनू परानी विदा भेल।

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