जितेन्द्र झा
मैथिली लोकरंग(मैलोरंग)ल डमरु बाजे नाटक मन्चन कएलक । कोशी नदीक बाढ़िक विभीषिका आ मिथिलाक सामाजिक कुरीतिके एक्कहिटा मालामे गांथके काज भेल अछि - जलडमरु बाजेमे ।
कोशीक बाढ़िमे सभ किछु दहा गेलाक बादो विचारक कुसंस्कार नई धोआइ छै कोशीक पानिसँ । जातीय कुसंस्कृति, कुसंस्कार र वर्गीय भेदभाव केनाक' लोकके जकडनहि रहैत छै से ई नाटकमे निक जकाँ देखाओल गेल अछि । पैघ जाति- छोट जाति, बडका छोटकासं उपर उठबालेल ई नाटक प्रेरित करैत अछि । कोशीमें पानि अबैत छैक आ चलि जाइत छैक मुदा नर्इं जाईत छैक परम्परागत रुढिवादी विचार, सामन्ती सोच आ बाह्र आडम्बर ।
नाटकमे कोशी बाढ़िसं पीडित अपन बासलेल भटकैत भुखला-भुखली, रामभरोसे, मुंहचीरा, सुप्पी, रामकली, गहना, डोमा, प्यारे सहितके पात्र मिथिलाक जमीनी यथार्थके चित्रण करैत अछि ।
रामे·ार प्रेम लिखित एहि नाटकके निर्देशक छथि प्रकाश झा । हिन्दीमे लिखल एहि नाटकके मैथिलीमे प्रकाश झा आ पवन अनुवाद कएने छथि । नया दिल्लीक मण्डी हाउसक श्री राम सेन्टरमे मे मन्चित नाटक देखबालेल मैथिली अनुरागीक बेस जमघट छल ।
दशमीमे अपन गामसं दुर रहल मैथिलके मैलोरंगक नाटक मात्र मनोरंजन नहि अपन गामघर याद आ कोशीक कोप सेहो याद दिया देने रहैक । मैथिली रंगकर्ममे निरन्तर सकृय मैलोरंग ई नाटक मन्चनसं प्रशंसाक पात्र बनल अछि । (साभार विदेह www.videha.co.in )
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