डाॅक्टर राममनोहर लोहिया जेहने विद्वान तेहने देशभक्त रहथि। देश-प्रेमक विचार पितासँ विरासतमे भेटल रहनि। ततबे नै ओहने मस्त-मौला सेहो रहथि। सदिखन चिन्तन आ आनन्दमे जिनगी बितबैत रहथि। विदेशसँ अबैकाल मद्रास बन्दरगाहपर जहाजसँ उतरलथि। कलकत्ता जेबाक छलनि। मुदा संगमे टिकटोक पाइ नै रहनि। बिना भाड़ा देने केना जइतथि। बंदरगाहसँ उतरि सोझे हिन्दू अखबारक कार्यालयमे जा सम्पादककेँ कहलखिन- “अहाँ पत्रिका लेल हम दूटा लेख देब।”
सम्पादक कहलकनि- “लाउ कहाँ अछि।”
लेख तँ लिखल छलनि नै, कहलखिन- “कागज-कलम दिअ अखने लिख कऽ दइ छी।”
लोहिया जीक जबाब सुनि सम्पादक टकर-टकर मुँह देखए लगलनि। तखन डाॅक्टर लोहिया अपन वास्तविक कारण बता देलखिन। कारण बुझलाक बाद सम्पादकजी बैसबोक आ लिखबोक ओरियान कऽ देलकनि। किछु घंटाक उपरान्त दुनू लेख तैयार कऽ लोहियाजी दऽ देलखिन।
दुनू लेख पढ़ि सम्पादक गुम्म भऽ मने-मन हुनक प्रतिभाक प्रशंसा करए लगलखिन।
ज्ञानक महत्ता सर्वोपरि अछि। ई बूझि एक्को क्षण व्यर्थ गमेबाक चेष्टा नै करक चाही। सदिखन अपनाकेँ नीक काजमे लगौने रहक चाही।
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