Thursday, February 2, 2012

इन्फॉरमेशन सोसाइटी, सार्वभौम मानवाधिकार घोषणा आ भारतीय संविधानमे मैथिली- (गजेन्द्र ठाकुर)-साभार घर-बाहर, त्रैमासिक

 इन्फॉरमेशन सोसाइटी किंवा सूचना-आधारित-समाज एकटा ओहेन समाज अछि जाहिमे सूचनाक निर्माण, वितरण, प्रसार, उपयोग, एकीकरण आ संशोधन, ई सभ एकटा महत्त्वपूर्ण आर्थिक, राजनीतिक आ सांस्कृतिक क्रिया होइत अछि। आ एहि समाजक भाग होएबामे समर्थ लोक अंकीय वा डिजिटल नागरिक कहल जाइत छथि। एहि उत्तर औद्योगिक समाजमे सूचना-प्रौद्योगिकी उत्पादन, अर्थव्यवस्था आ समाजकेँ निर्धारित करैत अछि। उत्तर-आधुनिक समाज, उत्तर औद्योगिक समाज आदि संकल्पना सँ ई निकट अछि। अर्थशास्त्री फ्रिट्ज मैचलप एकर संकल्पना देने छलाह। हुनकर ज्ञान-उद्योगक धारणा शिक्षा, शोध आ विकास, मीडिआ, सूचना प्रौद्योगिकी आ सूचना सेवाक पाँचटा अंगपर आधारित छल।
प्रौद्योगिकी आ सूचनाक समाजपर भेल प्रभाव एतए दर्शित होइत अछि। ई वएह समाज थिक जाहिमे आइ-काल्हि हमरा सभ रही रहल छी। दुनू विश्वयुद्ध आ फासिज्मक चुनौतीक बाद १० दिसम्बर १९४८ केँ संयुक्त राष्ट्रसंघक महासभा द्वारा मानवाधिकारक सार्वभौम घोषणाक उद्घोषणा कएल गेल आ एकरा अंगीकार कएल गेल। ई घोषणा राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आ धार्मिक भेदभावरहित एकटा सामान्य मानदण्ड प्रस्तुत करैत अछि जे सभ जन-समाज आ सभ राष्ट्र लेल अछि।
सूचना समाजपर पहिल संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन दू खेपमे भेल। पहिल १०-१२ दिसम्बर २००३ मे जेनेवा, स्विटजरलैंड मे आ दोसर खेप १६-१८ नवम्बर २००५ मे ट्युनिस, ट्यूनिसियामे। एतए मानवाधिकार आ सूचना प्रौद्योगिकीक बीचमे सम्बन्धकेँ मान्यता देल गेल छल। मानवाधिकारक सार्वभौम घोषणाक निम्न बिन्दु सभ सूचनाक समाजसँ सम्बन्धित अछि। (मानवाधिकारक सार्वभौम घोषणाक मैथिली अनुवाद डॉ. रमानन्द झा ‘रमण’) अनुच्छेद १२ केओ व्यक्ति कोनो आन व्यक्तिक एकान्तता, परिवार, निवास वा संलाप (पत्राचारादि) मे स्वेच्छया हस्तक्षेप नहि करत आने ओकर प्रतिष्ठा आ ख्याति पर प्रहार करत। प्रत्येक व्यक्तिकेँ एहन हस्तक्षेप वा प्रहारसँ कानूनी रक्षा पएबाक अधिकार छैक।
अनुच्छेद १८ प्रत्येक व्यक्तिकेँ विचार, विवेक आ धर्म रखबाक अधिकार छैक। एहि अधिकारमे समाविष्ट अछि धर्म आ विश्वासक परिर्वतनक स्वतन्त्रता, एकसर वा दोसराक संग मिलि प्रकटतः वा एकान्तमे शिक्षण, अभ्यास, प्रार्थना आ अनुष्ठानक स्वतन्त्रता।
अनुच्छेद १९ प्रत्येक व्यक्तिकेँ अभिमत एवं अभिव्यक्तिक स्वतन्त्रताक अधिकार छैक, जाहिमे समाविष्ट अछि बिना हस्तक्षेपक अभिमत धारण करब, जाहि कोनहु क्षेत्रसँ कोनहु माध्यमेँ सूचना आ विचारक याचना, आदान प्रदान करब।
अनुच्छेद २७ १. प्रत्येक व्यक्तिकेँ समाजक सांस्कृतिक जीवनमे अबाध रूपेँ भाग लेबाक, कलाक आनन्द लेबाक तथा वैज्ञानिक विकासमे आ तकर लाभमे अंश पएबाक अधिकार छैक। २. प्रत्येक व्यक्तिकेँ अपन सृजित कोनहु वैज्ञानिक, साहित्यिक अथवा कलात्मक कृतिसँ उत्पन्न, भावनात्मक वा भौतिक हितक रक्षाक अधिकार छैक।
अनुच्छेद२१ १. प्रत्येक व्यक्तिकेँ अपन देशक शासनमे प्रत्यक्षतः भाग लेबाक अथवा स्वतन्त्र रूपेँ निर्वाचित अपन प्रतिनिधि द्वारा भाग लेबाक अधिकार छैक। २. प्रत्येक व्यक्तिकेँ अपना देशक लोक-सेवामे समान अवसर पएबाक अधिकार छैक। ३. जनताक इच्छा शासकीय प्राधिकारक आधार होएत। ई इच्छा आवधिक आ निर्बाध निर्वाचनमे व्यक्त कएल जाएत आओर ई निर्वाचन सार्वभौम एवं समान मताधिकार द्वारा गुप्त मतदानसँ होएत अथवा समतुल्य मुक्त मतदान प्रक्रियासँ। अंकीय वा डिजिटल विभाजन एकटा ज्ञानक विभाजन, सामाजिक विभाजन आ आर्थिक विभाजन देखबैत अछि आ बिना भेदभावक एकटा सूचना समाजक निर्माणक आवश्यकता देखाबैत अछि, जाहिसँ सूचना प्रौद्योगिकीपर विकासशील देशक सार्वभौम अधिकार रहए। मानवाधिकार आ सूचना प्रौद्योगिकीक मध्य व्यक्तिक एकान्तक अधिकार सेहो सम्मिलित अछि। विद्वान, मानवाधिकार कार्यकर्ता आ आन सभ व्यक्ति द्वारा अभिव्यक्तिक स्वतंत्रता, सूचनाक अधिकार, एकान्तता, भेदभाव-रहित, स्त्री-समानता, प्रज्ञात्मक संपत्ति, राजनीतिक भागीदारी आ संगठनक मेलक संदर्भमे आ सूचना आ जनसंचार प्रौद्योगिकीक सन्दर्भमे एहि गपपर चरचा शुरू भेल अछि, जे सूचना-समाजमे मानवाधिकारकेँ बल देत आकि ओकरा हानि पहुँचाओत। ऑनलाइन पत्राचारक गोपनीयताक अधिकार, अन्तर्जालक सामग्रीक सांस्कृतिक आ भाषायी विविधता आ मीडिया शिक्षा। सूचना समाजक तकनीकी अओजार ओकर अधिकार आ स्वतंत्रतासँ लाभान्वित होइत अछि आ समाजक समग्र विकास, अधिकार आ स्वतंत्रताक सार्वभौमता, अधिकारक आपसी मतभिन्नता, स्वतंत्रता आ मूल्य निरूपणमे सहभागी होइत अछि। एहिसँ सूचना, ज्ञान आ संस्कृतिमे सरल पइठक वातावरण बनैत अछि आ ई उपयोगकर्ताकेँ वैश्विक सूचना समाजक अभिनेताक रूपमे परिणत करैत अछि। कारण ई उपयोगकर्ताकेँ पहिनेसँ बेशी अभिव्यक्तिक स्वतंत्रता आ नव सामग्री आ नव सामाजिक अन्तर्जाल-तंत्र निर्माण करबाक सामर्थ्य दैत अछि। एहिसँ एकटा नव विधि, आर्थिक आ सामाजिक मॉडेलक आवश्यकता सेहो अनूभूत कएल जा रहल अछि जाहि मे साझी कर्तव्य, ज्ञान आ समझ आधार बनत। बच्चाक हित एकटा आर चिन्ता अछि जे पैघक हितसँ सर्वदा ऊपर रखबाक चाही। आधुनिक समाजक आर्थिक, सामाजिक आ सांस्कृतिक धन एकत्र करबाक प्रवृत्ति सूचना समाजमे बढ़ल अछि आ प्रौद्योगिकी एकटा आधारभूत बेरोजगारी अनलक अछि। गरीबी, मजदूरक अधिकार आ कल्याणकारी राज्यक संकल्पना, लाभ-हानिक आगाँ कतहु पाछाँ छूटल जा रहल अछि। आब मात्र किछुए अभिनेता चाही, प्रकाशक लोकनि सेहो मात्र किछु बेशी बिकएबला पोथीक लेखकक प्रचार करैत छथि। यैह स्थिति रंगमंच, पेंटिंग , सिनेमा आ आन-आन क्षेत्रमे सेहो दृष्टिगोचर भऽ रहल अछि।
सूचना सर्वदा लाभकारी नहि होइत अछि। ई मात्र कला, ग्रंथ धरि सीमित नहि अछि वरन सट्टा बाजार आ प्रायोजित सर्वेक्षण रपट सेहो एहिमे सम्मिलित अछि। समय आ स्थानक बीचक दूरीकेँ ई कम करैत अछि आ दुनूक बीचमे एकटा सन्तुलन बनबैत अछि। मानवक गरिमा मानवक जन्म आधारित सामाजिक स्थानसँ हटि कऽ मानवक गरिमाक अधिकारपर बल दैत अछि। मुक्ति आ स्त्री-मुक्ति आन्दोलन एहि दिशाक प्रयास अछि। सूचनाक स्वतंत्र उपयोग सीमित अछि, लोकक एकान्त खतम भऽ रहल अछि। बिल गेट्ससँ जखन हुनकर भारत यात्राक क्रममे पूछल गेल छलन्हि जे माइक्रोसॉफ्टक एक्स-बॉक्स भारतमे पाइरेसीक डरसँ देरीसँ उतारल गेल तँ ओ कहने रहथि जे माइक्रोसॉफ्ट कहियो कोनो उत्पाद पाइरेसीक डरसँ देरीसँ नहि आनलक। स्पैम आ पाइरेसीक डर खतम होएबाक चाही।
सूचना समाज वैह समाज छी जकर बीचमे हम सभ रहि रहल छी। लोकतंत्र आ मानवाधिकारक सम्मान सूचना-समाज आ उत्तर सूचना-समाजमे होइत रहत। अभिव्यक्तिक स्वतंत्रता, एकान्तक अधिकार, सूचना साझी करबाक अधिकार आ सूचना धरि पहुँचक अधिकार जे सूचनाक संचारसँ सम्बन्धित अछि, ई सभ राज्य द्वारा आ सूचना-समाजक बाजारवादी झुकावक कारण खतराक अनुभूतिसँ त्रस्त अछि। अन्तर्जाल लोकक मीडिआ अछि आ एकटा एहन प्रणाली अछि जे लोकक बीच सम्वाद स्थापित करैत अछि। एहिसँ संचार-माध्यमक मठाधीश लोकनिक गढ़ टुटैत अछि।
अन्तर्जालमे सामान्य रूपसँ सम्पादक नहि होइत छथि। एतए लोक विषयक आ सामग्रीक निर्माण कए स्वयं ओकर संचार करैत छथि। एहिसँ कतेक रास सामाजिक सम्वादक प्रारम्भ होइत अछि। मुदा कतेक रास समाज-विरोधी सामग्री सेहो अबैत अछि। तँ की ओहिपर प्रतिबन्ध होएबाक चाही। मुदा जे सॉफ्टवेयरक माध्यमसँ मशीनकेँ सामग्रीपर प्रतिबन्ध लगेबाक अधिकार देब, तखन ई अभिव्यक्तिक स्वतंत्रतापर पैघ आघात होएत। बौद्धिक सम्पदाक अधिकार लेखककेँ मृत्युक ६० बरख बादो प्रकाशन आ वितरणक अधिकार दैत अछि। अन्तर्जालमे सेहो पाइरेसीकेँ प्रतिबन्धित करए पड़त आ कमसँ कम लेखकक मृत्युक २० बरख बाद धरि लेखकक अधिकार ओकर सामग्रीपर रहए, से व्यवस्था करए पड़त। मुदा पेटेन्टक बेशी प्रयोग विकाशसील देशक सूचना अभिगमनमे बाधक होएत आ प्रौद्योगिकीक विकासमे सेहो बाधा पहुँचाओत। कॉपीराइटसँ सांस्कृतिक विकास मुदा होएत, जेना संगीत, फिल्म, आ चित्र-शृंखला(कॉमिक्स)क विकास। डिजिटल वातावरणमे प्रतिकृतिक बिना अहाँ अन्तर्जालपर सेहो सामग्री नहि देखि सकब, से ऑफ-लाइन कॉपीराइट आ ऑनलाइन कॉपीराइट दुनू मे थोड़बेक अन्तर अछि। ऑनलाइन कॉपीराइट प्रतिकृतिकेँ सेहो प्रतिबन्धित करैत अछि। आ प्रतिकृति कएल सामग्रीकेँ दोसर वस्तुमे जोड़ब वा संशोधित करब सेहो बड्ड सरल अछि। से नाम आ चित्र बिना ओकर निर्माताक अनुमतिक नहि प्रयोग होअए, दोसराक व्यक्तिगत वार्तालाप-चैटिंग-मे हस्तक्षेप नहि होअए आ दोसराक विरुद्ध कोनो एहन बयानबाजी नहि होअए जाहिसँ कोनो व्यक्तिक विरुद्ध गलत धारणा बनए। तहिना नौकरी-प्रदाता कोनो प्रकारक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अपन कर्मचारीक नियन्त्रण लेल लगबैत अछि तँ से अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघक दिशा-निर्देशक अनुरूप होएबाक चाही। ई-पत्रमे अनपेक्षित सन्देश आ चिकित्सकीय रिपोर्टक अनपेक्षित संग्रह आ उपयोग सेहो मानवाधिकारक हनन अछि। अन्तर्जालक उपयोग मुदा सीमित अछि, कारण बहुत रास सामग्री आ तंत्रांश मंगनीमे उपलब्ध नहि अछि आ महग अछि, डिजिटल विभाजन शिक्षाक स्तरकेँ आर बेशी देखार करैत अछि। शारीरिक श्रमक बदलामे मानसिक श्रमक एतए बेशी उपयोग होइत अछि, से ई आशा रहए जे स्त्री-असमानता सूचना-समाजमे घटत। मुदा सर्वेक्षण देखबैत अछि जे महिलाक पइठ सूचना प्रौद्योगिकीमे कम छन्हि। इलेक्ट्रॉनिक लाइब्रेरी आ ब्रेल-इनेबल कएल/ ध्वनि-इनेबल कएल कम्प्यूटर स्क्रीन/ इलेक्ट्रॉनिक लाइब्रेरी विकलांग आ अन्ध विकलांग लेल घर पर रहि ई-वाणिज्य करबामे सहायता दैत, मुदा एहि क्षेत्रमे कएल शोध आ ओकर परिणाम महग रहबाक कारणसँ ओतेक लाभ नहि दऽ सकल अछि। बाल, वृद्ध, विकलांग, स्त्री, कामगार, प्रवासी-कामगार आ दोसर सामाजिक रूपसँ अब्बल वर्ग सूचना समाजमे सेहो अपनाकेँ अब्बल अनुभव करैत छथि।

सार्वभौम मानवाधिकार घोषणाक अनुच्छेद १२ एकान्तता [भारती संविधानक अन्तर्गता पास कएल कोनो विधि जे संसद द्वारा पारित होइत अछि, द्वारा सभ रक्षित अछि], अनुच्छेद १८ एकान्तमे शिक्षण आ विचारक स्वतंत्रता [भारती संविधानक धारा २५(१)], अनुच्छेद १९ कोनहु क्षेत्रसँ कोनहु माध्यमेँ सूचना आ विचारक याचना, आदान प्रदान करबाक अधिकार [भारती संविधानक धारा १९ (a)], आ अनुच्छेद २१ (१) [भारती संविधानक धारा ३२५], अनुच्छेद २१ (२) [भारती संविधानक धारा ३२६] आ अनुच्छेद २१(३) [भारती संविधानक धारा १६(१) आ १६(२)], अनुच्छेद २७ [भारती संविधानक धारा ५१(a)], वैज्ञानिक विकासमे आ तकर लाभमे अंश पएबाक अधिकार दैत अछि, संगे प्रत्येक व्यक्तिकेँ अपन सृजित कोनहु वैज्ञानिक, साहित्यिक अथवा कलात्मक कृतिसँ उत्पन्न, भावनात्मक वा भौतिक हितक रक्षाक अधिकार सेहो दैत अछि। एहि आधारपर सूचना-समाजमे मानवाधिकार केँ देखैत सूचना आ प्रसारण प्रौद्योगिकी द्वारा सामग्री निर्माण तेना होएबाक चाही आ कॉपीराइट आ बौद्धिक सम्पदा अधिकार सेहो ताहि तरहेँ होअए जे ओहिसँ सार्वभौम मानवाधिकार घोषणाक बिन्दु सभक अवहेलना नहि होअए वरन ओकर आदर होअए। सार्वभौम मानवाधिकार घोषणाक अनुच्छेद १२ एकान्तता [भारतीय संविधानक अन्तर्गता पास कएल कोनो विधि जे संसद द्वारा पारित होइत अछि, द्वारा सभ रक्षित अछि], अनुच्छेद १८ एकान्तमे शिक्षण आ विचारक स्वतंत्रता [भारती संविधानक धारा २५(१)], अनुच्छेद १९ कोनहु क्षेत्रसँ कोनहु माध्यमेँ सूचना आ विचारक याचना, आदान प्रदान करबाक अधिकार [भारती संविधानक धारा १९ (a)], आ अनुच्छेद २१ (१) [भारती संविधानक धारा ३२५], अनुच्छेद २१ (२) [भारती संविधानक धारा ३२६] आ अनुच्छेद २१(३) [भारती संविधानक धारा १६(१) आ १६(२)] :- अनुच्छेद २७ [भारती संविधानक धारा ५१(a)]



16. (1) There shall be equality of opportunity for all citizens in matters relating to employment or appointment to any office under the State. (2) No citizen shall, on grounds only of religion, race, caste, sex, descent, place of birth, residence or any of them, be ineligible for, or discriminated against in respect of, any employment or office under the State.

19. (1) All citizens shall have the right— (a) to freedom of speech and expression;

25. (1) Subject to public order, morality and health and to the other provisions of this Part, all persons are equally entitled to freedom of conscience and the right freely to profess, practise and propagate religion.

51. The State shall endeavour to— (a) promote international peace and security;
 
325. There shall be one general electoral roll for every territorial constituency for election to either House of Parliament or to the House or either House of the Legislature of a State and no person shall be ineligible for inclusion in any such roll or claim to be included in any special electoral roll for any such constituency on grounds only of religion, race, caste, sex or any of them.

326. The elections to the House of the People and to the Legislative Assembly of every State shall be on the basis of adult suffrage; that is to say, every person who is a citizen of India and who is not less than 2[eighteen years] of age on such date as may be fixed in that behalf by or under any law made by the appropriate Legislature and is not otherwise disqualified under this Constitution or any law made by the appropriate Legislature on the ground of non-residence, unsoundness of mind, crime or corrupt or illegal practice, shall be entitled to be registered as a voter at any such election.


In the Constitution of India, adopted in 1950, elementary education received explicit attention. The Directive Principle contained in Article 45 of the Constitution directed the State to "endeavour to provide, within a period of ten years from the commencement of this Constitution, for free and compulsory education for all children until they complete the age of fourteen years." Alongside, equality of opportunity was also given primacy through various other articles (e.g. Article 29(2) dealt with the right to admission into any educational institution maintained by the state, Article 350-A laid down the right to receive instruction in the mother tongue, Article 46 referred to taking care of the economic and educational interests of the under-privileged sections of the population, etc.) Subsequently, fourteen states and four UTs (Union Territories) enacted the legislation for compulsory primary education. But since education was a state subject, the centre could not prevail upon the states to enforce compulsion. The states also found that in practice this legislation was difficult to implement due to various constraints. Directive Principles, set out in Part IV of the Constitution, also have a bearing on national educational policy. For instance, article 45 enjoins that the 'State' shall endeavour to provide for free and compulsory education for all children until they complete the age of fourteen years. Article 46 requires the 'State' to promote with special care the educational interests of the weaker sections of the people, which include, in particular, the Scheduled Castes and Scheduled Tribes. Article 350A places a special responsibility on the Government to safeguard the interests of the children belonging to linguistic minority groups and to see that they have adequate facilities to receive at least primary education through their own mother tongue.  

Part XVII: Official language This whole Part deals with language, an inherent part of Literacy with a specific mention in Art. 350A for facilities for instruction in mother-tongue at primary stage. 

In August, 1949, Provincial Education Ministers Conference passed a Resolution regarding Education through mother tongue. The Resolution states: "The medium of instruction and examinations at the Junior Basic stage must be the mother tongue of the child." The Government of India, soon after independence, adopted a definite policy favouring the use of mother tongue at the primary level of education. 

Our Constitution has given special importance to primary education through the mother tongue. Article 350(A) of the Constitution spells out:
"It shall be the endeavour of every State and of every local authority within the state to provide adequate facilities for instruction in the mother tongue at the primary stage of education to, children belonging to linguistic minority groups; and the President may issue such directions to any State as he considers necessary or proper for securing the provision of such facilities."
In 1956, a Memorandum of safeguards for linguistic minorities was issued by the Ministry of Home Affairs. The Memorandum, making special mention of primary education says: 122
"The directions which may be issued by the President under Article 350(A) of the Constitution as it is proposed to be enacted into law are likely to be based on the resolution accepted by the Provincial Education Ministers' Conference in August, 1949. The intention is that the arrangements which were generally accepted at this conference should be brought into force in States and Areas where they have not been adopted so far." 
Provincial Education Ministers' Conference evolved a 10:40 formula in 1949. The formula provides for the appointment of at least one language teacher if the total number of pupils belonging to a linguistic minority is 40 in a school or 10 in a class. 


THE CONSTITUTION (NINETY-SECOND AMENDMENT) ACT, 2003 [7th January, 2004.] An Act further to amend the Constitution of India. BE it enacted by Parliament in the Fifty-fourth Year of the Republic of India as follows:- 1.Short title and commencement. - (1) This Act may be called the Constitution (Ninety-second Amendment) Act, 2003. (2) Amendment of Eighth Schedule : In the Eighth Schedule to the Constitution, - (a) existing entry 3 shall be re-numbered as entry 5, and before entry 5 as so re-numbered, the following entries shall be inserted, namely:- “ 3.Bodo. 4.Dogri. “; (b) existing entries 4 to 7 shall respectively be re-numbered as entries 6 to 9; (c) existing entry 8 shall be re-numbered as entry 11 and before entry 11 as so renumbered, the following entry shall be inserted, namely :- “ 10.Maithili. “; (d) existing entries 9 to 14 shall respectively be re-numbered as entries 12 to 17; (e) existing entry 15 shall be re-numbered as entry 19 and before entry 19 as so re-numbered, the following entry shall be inserted, namely :- “ 18.Santhali. “; (f) existing entries 16 to 18 shall respectively be re-numbered as entries 20 to 22. T.K.VISWANATHAN Secy. To the Govt. of India. EIGHTH SCHEDULE [Articles 344 (1) and 351] Languages 1. Assamese. 2. Bengali. 1[3. Bodo. 4. Dogri.] 2[5.] Gujarati. 3[6.] Hindi. 3[7.] Kannada. 3[8.] Kashmiri. 4[3[9.] Konkani.] 1[10. Maithili.] 5[11.] Malayalam. 4[6[12.] Manipuri.] 6[13.] Marathi. 4[6[14.] Nepali.] 6[15.] Oriya. 6[16.] Punjabi. 6[17.] Sanskrit. 1[18. Santhali.] 7[8[19.] Sindhi.] 9[20.] Tamil. 9[21.] Telugu. 9[22.] Urdu. 1Ins. by the Constitution (Ninety-second Amendment) Act, 2003, s. 2. 2Entry 3 renumbered as entry 5 by s. 2, ibid. 3Entries 4 to 7 renumbered as entries 6 to 9 by s. 2, ibid. 4Ins. by the Constitution (Seventy-first Amendment) Act, 1992, s. 2. 5Entry 8 renumbered as entry 11 by the Constitution (Ninety-second Amendment) Act, 2003, s. 2. 6Entries 9 to 14 renumbered as entries 12 to 17 by s. 2, ibid. 7Added by the Constitution (Twenty-first Amendment) Act, 1967, s. 2. 8Entry 15 renumbered as entry 19 by the Constitution (Ninety-second Amendment) Act, 2003, s. 2. 9Entries 16 to 18 renumbered as entries 20 to 22 by s. 2, ibid. 344. (1) The President shall, at the expiration of five years from the commencement of this Constitution and thereafter at the expiration of ten years from such commencement, by order constitute a Commission which shall consist of a Chairman and such other members representing the different languages specified in the Eighth Schedule as the President may appoint, and the order 212 1See C.O. 41. Official language of the Union. Commission and Committee of Parliament on official language. shall define the procedure to be followed by the Commission. 351. It shall be the duty of the Union to promote the spread of the Hindi language, to develop it so that it may Special procedure for enactment of certain laws relating to language. Language to be used in representations for redress of grievances. Facilities for instruction in mother-tongue at primary stage. Special Officer for linguistic minorities. Directive for development of the Hindi language. 1Ins. by the Constitution (Seventh Amendment) Act, 1956, s. 21. THE CONSTITUTION OF INDIA (Part XVII.—Official Language.—Arts. 349—351.) 216 serve as a medium of expression for all the elements of the composite culture of India and to secure its enrichment by assimilating without interfering with its genius, the forms, style and expressions used in Hindustani and in the other languages of India specified in the Eighth Schedule, and by drawing, wherever necessary or desirable, for its vocabulary, primarily on Sanskrit and secondarily on other languages.

(साभार घर-बाहर, त्रैमासिक)

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