मिथिलासँ पलायन- गजेन्द्र ठाकुर (साभार पूर्वोत्तर मैथिल, जुलाइ-सितम्बर २०१०)
मिथिलामे बाहरी लोकक आगमन आ मिथिलासँ दूर देशमे पलायन, ई दुनू घटना निरंतर होइत रहल अछि। मुदा आइ कालिक पलायन एहि अर्थें विकट रूप लऽ लेने अछि कारण विगत तीस सालक अवधिमे भेल पलायन मिथिला गामकेँ खाली कऽ देलक।
1981 ई. मे पटनापर बनल महात्मा गाँधी सेतु आ पटना दरभंगा डीलक्स कोच सभक पाँती मिथिलावासीक हेँजक–हेँज बाहर बहरएवामे योगदान केलक। तत्कालीन सरकार सभक राजनैतिक आर्थिक शैक्षिक सामाजिक आ सांस्कृतिक एहि सभ क्षेत्रमे विफलता एकटा आधार तँ बनबे कएल, स्वतंत्रताक बादक तीस साल बिहार स्थित मिथिला आ नेपाल स्थित मैथिली भाषी क्षेत्रक बीचमे एकटा विभाजक रेखा सेहो खींचि देलका। 1960 ई. मे बनल कमला बान्ह आ एखन धरि अपूर्ण कोसी परोयोजना मिथिलाक ग्रामीण आर्थिक आधारकेँ तोड़ि कऽ राखि देलक। प्राचीन कालक पलायन आ आइ काल्हिक पलायन मध्य एकटा मूल अंतर सेहो अछि। मिथिलाक मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण काएस्थ अपन विद्वत्ताक प्रदर्शन, पठन पाठन आ दोसर राजाक दरबारमे जीविकोपार्जन निमित्त प्राचीन कालहि सँ जाइत छलाह, तँ गएर मैथिल ब्राह्मण–कर्ण कायस्थ जाति वाणिज्य, अंगरक्षक आदिक कार्य लेल दूर देशक यात्रा करैत छ्लाह। प्राचीन कालमे मोरंग आ पछाति भदोही मिथिलाक बोनिहारक श्रम किनबाक केन्द्र बनल, मुदा एहिमे मोरंग नेपालक मिथिलाञ्चलमे पड़ैत अछि मुदा एकरा प्रवास एहि लेल कहल जाए लागल कारण ओतुक्का शासक गएर मैथिल गोरखा भऽ गेल छलाह।
पलायनक विभिन्न स्वरूपः- पलायन एकटा ऐतिहासिक प्रक्रियाक अंग अछि। अहाँक क्षेत्रक भौगोलिक स्थिति कोन देशमे अहाँकेँ पटकि देने अछि ताहिपर सेहो। से मोरंग लग रहलोसँ भारतक मिथिलाञ्चलक वासीक लेल पछाति कम लोकप्रिय भेल कारण ओ दोसर देशमे अवस्थित भेलाक कारण विभिन्न कारणसँ पलायनक लेल अनुपयुक्त भऽ गेल। कोलकाता स्वतंत्रताक बाद निकटवर्त्ती मेट्रो नगर रहए से लोक ओहि नगरमे खूब पलायन केलन्हि मुदा जखन विभिन्न राजनैतिक–आर्थिक नीतिक संकीर्णताक कारणसँ बंगालक उद्योग–धंधा चौपट भऽ गेल, शैक्षिक केन्द्रक रूपमे ओकर महत्व कम भेल तखन पलायनक केन्द्र मुम्बइ आ दिल्ली भऽ गेल। बोनिहार आब भदोही आ मोरंग नञि वरन पंजाब–हरियाणा आ पश्चिमी उत्तरप्रदेश जाइत छथि आ बनिजार बाहरसँ मिथिलामे भरि गेल छथि। दरभंगा राजक गलत आर्थिक नीतिक कारण आरा छपराक लोक सभ भूमि आ कामतक अधिपति कोना भऽ गेलाह से जगदीश प्रसाद मण्डल जीक साहित्यमे पूर्ण रूपसँ देखार भेल अछि। 1936-37मे बर्मासँ सेहो भोजपुर बक्सरक लोक पूर्णियाँ, अररियामे भागि कऽ एलाह, डुमराँवक हरि बाबू हिनका सभकेँ बर्मामे बसेने छलाह आ बर्माक भारतसँ अलग भेलाक बाद ई लोकनि शरणार्थी बनि एहि क्षेत्रमे आबि गेलाह। कतेको बर्मा टोल एहि क्षेत्र सभमे अहाँकेँ भेटि जाएत। एहि क्षेत्रमे कृषि–वाणिज्यपर हिनको सभक दखल भेलन्हि। मिथिलामे भेल पलायनमे 1971 ई. मे बांग्लादेशक निर्माणक लगाति ओतुक्का हिन्दूक किशनगंजमे आ बादमे ओतुक्का मुस्लिमक पूर्णियाँ किशनगंजमे आगमन भेल। बाहर भेल पलायनक विरूद्ध भीतर आएल ई पलायन मिथिलाक बोली–वाणी सभ वस्तुकेँ प्रभावित कएलक। जाति–धर्म आधारित विवाह मुस्लिम, राजपूत आ भूमिहार मध्य मिथिलाक भौगोलिक परिधिसँ बाहर हुअए लागल ताहिसँ सेहो बोली–वाणीक अंतर दृष्टिगोचर भेल।
पलायन नीक आकि अधलाहः- पलायन जे बाहर जाइ वला आ भीतर आबै वला दुनू तरहक अछि केँ अहाँ कोनो तरहेँ नहि रोकि सकै छी। मुदा एक खादी मध्य भेल ई विकट पलायन मूल मैथिल बोली–वाणीक पलायन विकट समस्याकेँ जन्म देलक। भुखमरी जे वादि-अकाल आनलक, तकरासँ तँ मुक्ति भेटल मुदा सांस्कृतिक अकाल सेहो ई आनलक। गामपर बोझ घटल, लोककेँ बटाइ लेल जमीन नै भेटै छलै, आब से बै छै, मुदा तकर विपरीत मिथिलाक भीतर शैक्षिक केन्द्रक पूर्ण समापन भऽ गेल, बाहरी बनिजार एतुक्का आर्थिक बाजारपर कब्जा कऽ लेलन्हि। विशालकाय सड़क परियोजना, आ सूचना प्रौद्योगिकी, टेलीविजन, अखबार, पत्रिका आदि ततेक पूँजी केन्द्रित भऽ गेल जे ई स्थानीय वणिकक औकातिक बाहरक वस्तु भऽ गेल। क्षेत्रक राज्य–सभा आ विधान परिषदमे जखन बाहरी पूँजीपति प्रवेश कऽ गेल छथि तखन आर कथूक चर्च की करी?
पलायनक निदानः- हा पलायन केने काज नै चलत। जेना इस्रायलक प्रवासी ओकर शक्ति–सिद्ध भेल छथि तहिना मैथिल प्रवासी सेहो मिथिलाक लेल ओतुक्का भाषा–संस्कृति–साहित्य आ अर्थनीतिक लेल सहायक सिद्ध हेताह मिथिला राज्यक मांगमे बीचक स्थिति जेना बिहारक अंतर्गत मैथिली भाषी क्षेत्रमे प्राथमिक शिक्षाक माध्यम मैथिली हो, मैथिलीक रेडियो स्टेशन, टी.वी, चैनल लेल कम लाइसेंस फीस राखल जाए, इ मैथिली पत्र–पत्रिकाकेँ सरकारी विज्ञापन भेटए आदि मांग–आदि सेहो धोंसियेबाक चाही। राज्य जहिया भेटत तहिया भेटत उपरका 2-3 बिन्दु जे भेटि जाएत तँ एकटा उपलब्धि होएत आ लोकमे तखने जागृति आएत तखने ओ मिथिला राज्य एकर आर्थिक–शैक्षिक राजनैतिक स्थितिपर ओ विचार कऽ सकताह आ आंदोलनक भाग बनि सकताह।
मिथिलासँ पलायन- गजेन्द्र ठाकुर (साभार पूर्वोत्तर मैथिल, जुलाइ-सितम्बर २०१०)http://www.purvottarmaithil.org
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