Monday, January 16, 2012

वि‍देह दिससँ श्री उमेश मण्डल द्वारा श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक संग साक्षात्कार


जगदीश प्रसाद मण्‍डल-१९४७
जन्‍म- ५.७.१९४७- पिताक नाओं- स्व. दल्‍लू मण्‍डल, माताक नाओं- स्व. मकोती देवी, पत्नी- श्रीमती- रामसखी देवी, पुत्र- सुरेश मण्‍डल, उमेश मण्‍डल, मि‍थि‍लेश मण्‍डल। मातृक- मनसारा, घनश्‍यामपुर, जिला- दरभंगा।
मूलगाम- बेरमा, भाया- तमुरिया, जिला-मधुबनी। मो. ०९९३१६५४७४२
शि‍क्षा- एम.ए. (हि‍न्‍दी आ राजनीति शास्‍त्र) मार्क्सवादक गहन अध्ययन। हिनकर कथामे गामक लोकक जिजीविषाक वर्णन आ नव दृष्टिकोण दृष्टिगोचर होइत अछि‍।
रचना संसार-
कथा संग्रह- गामक जिनगी आ अर्द्धांगि‍नी। लघुकथा संग्रह- तरेगन (बाल प्रेरक)। दीर्धकथा संग्रह- शंभूदास, नाटक- मिथिलाक बेटी, कम्‍प्रोमाइज आ झमेलि‍या वि‍याह। एकांकी संग्रह- पंचवटी आ त्रि‍फला। उपन्‍यास- मौलाइल गाछक फूल, जिनगीक जीत, उत्थान-पतन, जीवन-मरण आ जीवन संघर्ष। कवि‍ता संग्रह- इंद्रधनुषी अकास आ राति‍-दि‍न।

वि‍देह दिससँ श्री उमेश मण्डल द्वारा श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक संग साक्षात्कार

वि‍देह-        वि‍देह सम्‍मान लेल अपनेकेँ बहुत-बहुत बधाई...

ज.प्र.मं.-      हेराएल-भोति‍याएल रचनाकारक खोजि-खबरि‍ लेबा लेल वि‍देह परि‍वारकेँ धन्‍यवाद।


वि‍देह-        अपनेक नजरि‍मे साहि‍त्‍यक उद्देश्‍य की अछि‍?

ज.प्र.मं.-      अधि‍कांश वि‍द्वानक वि‍चारे साहि‍त्‍य समाजक दर्पण थि‍क। जइ दर्पणसँ देखैत छी ओ तँ खाली (ि‍सर्फ) कोनो वस्‍तुक उपरी भाग देखबैत अछि‍। मुदा शरीरक भीतर जे मन, बुइध, वि‍वेक, आत्‍मा अछि‍ ओ तँ नै देखबैत अछि‍। मनुष्‍य ि‍नर्मित साहि‍त्‍य होइत अछि‍ तँए दुनूकेँ मि‍ला देखबैत अछि‍। साहि‍त्‍य जीवन दर्शन छी जे अतीत-सँ-भवि‍ष्‍य धरि‍केँ जोड़ैत अछि‍। तँए साहि‍त्‍यक उद्देश्‍य महान अछि‍ जे मनुष्‍य-मनुष्‍यक बीच, व्‍यक्‍ति-समाजक बीच प्रेमसँ जीवैक दि‍शा-ि‍नर्देश करैत अछि‍। वएह दि‍शा-ि‍नर्देश साहि‍त्‍यक उद्देश्‍य छी।

वि‍देह-        अहाँक साहि‍त्‍यमे इति‍हास/संस्‍कृति‍ (खास कऽ मि‍थि‍लाक) कोना वर्णित होइत अछि‍?

ज.प्र.मं.-      अपन मि‍थि‍लांचल सभ दि‍नसँ कृषि‍ प्रधान रहल अछि‍। ओना इति‍हासक पन्नामे कृषि युगसँ पहि‍नहुँ शि‍कारी युग आ जंगली अवस्‍थाक चर्च अछि‍। से ि‍सर्फ इति‍हासेमे नै सचमुच जि‍नगि‍यो रहल अछि‍।
           राजा रहि‍तो जनक हर जोतलनि‍, जे कृषि‍क महत्‍वकेँ दरसबैत अछि‍। शुरूहेसँ मि‍थि‍लांचलमे बाहरी संस्‍कृति‍क आक्रमण होइत रहल अछि‍। जइसँ अइठामक अपन संस्‍कृति‍ टूटैत-झुकैत रहल अछि‍। रूप-वि‍द्रप होइत रहल छैक। मुदा तैयो रि‍आइतो-खि‍आइतो जीवि‍त रहल अछि‍। हम ओइ कि‍सानी संस्‍कृति‍केँ अपन‍ संस्‍कृति‍ मानि‍ चलैत छी। जे कल्‍याणकारीक संग-संग प्रेम, भाइ-चाराकेँ मजबूत बनबैमे सेहो सहायक अछि‍।

वि‍देह-        दि‍नानुदि‍नक अनुभवक अहाँक साहि‍त्‍यमे कोन तरहेँ वि‍वेचन होइत अछि‍?

ज.प्र.मं.-      दुनि‍याँक प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति‍ अपन बीतैत जि‍नगीक संग-संग परि‍वारो, समाजो आ देशो-दुनि‍याँक अनुभव करैत आबि‍ रहल अछि‍। जहि‍ना दुनि‍याँ गति‍शील अछि‍ तहि‍ना जि‍नगि‍यो अछि‍। मुदा सबहक समान आयु नै रहने कि‍छु देखि‍यो पड़ैत अछि‍ आ कि‍छु नहि‍यो। दुनि‍याँकेँ देखैक आ अनुभव करैक सेहो ि‍भन्न-भि‍न्न नजरि‍ अछि‍। जेहन देखि‍नि‍हार तेहन दृश्‍य देखैत अछि‍।
          समाजक सभ अपन दि‍नानुदि‍नक क्रि‍या-कलापसँ जि‍नगीक सच्‍चाइ धरि‍ पहुँचए चाहैत अछि‍, जइसँ सुख-समृद्धि‍क तृप्‍ति‍ भऽ सकै। आइ सच्‍चाइकेँ जते इमानदारीसँ चि‍त्र उताड़ि‍ सकलाह ओ सृजनकर्ता ओते कालजयी होइत छथि‍। यएह प्रयास सभ करै छथि‍, हमहूँ कऽ रहल छी।

वि‍देह-        साहि‍त्‍यक शक्‍ति‍क वि‍षएमे अपनेक की कहब अछि‍?

ज.प्र.मं.-      कहलो जाइ छै संगठने शक्‍ति‍ छी। जहि‍ना व्‍यक्‍ति‍क संगठन परि‍वार होइत, तहि‍ना परि‍वारक संगठन समाज छी। समाजेक दर्पण साि‍हत्‍य छी। जे जेहन समाज ओकर ओहन शक्‍ति‍शाली साहि‍त्‍य।
वि‍देह-        अहाँक साहि‍त्‍यमे पाप-पुण्‍यक वि‍श्‍लेषन कोना होइत अछि‍?

ज.प्र.मं.-      पाप-पुण्‍य धर्मसँ जुड़ल अछि‍। मुदा आइ धरि‍क जे सामाजि‍क इति‍हास रहल अछि‍ ओ वि‍कृत होइत-होइत एते वि‍कृत भऽ गेल जे एकर स्‍वरूप चौपट्ट भऽ गेल। मूलत: जेना व्‍यासजी कहने छथि‍ जे परोपकार धर्म आ परपीड़ा पाप छी। एकरा ि‍सर्फ वैचारि‍क नै जि‍नगी मानि‍ चलै छी।

वि‍देह-        कल्‍पना आ यथार्थक समन्‍वय अहाँ अपन साहि‍त्‍यमे कोना करैत छी?

ज.प्र.मं.-     ओना साहि‍त्‍यमे अनेको धारा चलि‍ रहल अछि‍ मुदा मूलत: एकरा तीन धारामे राखि‍ आगू बढ़ै छी। पहि‍ल यथार्थ, दोसर कल्‍पना आ तेसर दुनूक बीच समन्‍वयवादी। वैदि‍क युगक वि‍चारधारा सामंती युगमे आबि‍ तहस-नहस भऽ गेल। साहि‍त्‍य समाजसँ कटि‍ राज-दरवारक बीच चकभौर लगबए लगल। जइसँ साहि‍त्‍य जन-गणसँ हटि‍ भोग-वि‍लासक वस्‍तु मात्र रहि‍ गेल।
         पहि‍नहुँ रहल आ अखनो अछि‍ जे साहि‍त्‍य दुनूक (जन-गण आ राज दरवार) बीचक धारा बनि‍ समन्‍वयवादी वि‍चारधारामे बहए। एे धरतीपर सभकेँ जीबाक अधि‍कार छै, तइसँ दूर साहि‍त्‍य हटि‍ गेल अछि‍।
अपन सदति‍ प्रयास रहल अछि‍ जे शोषि‍त-पीड़ि‍त, बंचि‍तकेँ बाँहि‍ पकड़ि‍ ठाढ़ करी।

वि‍देह-        अहाँक साहि‍त्‍यमे पात्र जीवन्‍त भऽ उठैत अछि‍, तेकर की‍ रहस्‍य?

ज.प्र.मं.-    कोनो समस्‍या अाकि‍ घटनाक प्रति‍ ई सदति‍ कोशि‍श रहैत अछि‍ जे ि‍नष्‍पक्ष भऽ देखबो करी आ ि‍नराकरणो करी। भऽ सकैत अछि‍ जे ऐसँ पात्रमे जीवन्‍तता आबि‍ गेल होय।

वि‍देह-      साहि‍त्‍य लेखन, वि‍शेष कऽ मैथि‍ली साहि‍त्य लेखन अहाँ लेल कोन तरहेँ वि‍शि‍ष्‍ट आ एकर प्राथमि‍कताकेँ अहाँ कोन तरहेँ देखै छी?

ज.प्र.मं.-      साहि‍त्‍य समाजक ओहन दर्पण छी जइमे भूत वर्तमान आ भवि‍ष्‍यक दर्शन होइत अछि‍। दुर्भाग्‍य रहल जे मैथि‍ली साहि‍त्‍य समटा कऽ एकभग्‍गू भऽ गेल अछि‍। कि‍छु समाजक चर्च आवश्‍यकतासँ अधि‍क भेल अछि‍। जइसँ साहि‍त्‍य हास-परि‍हासक बीच ओझरा गेल अछि‍। जखन कि‍ समाजक अधि‍कांश हि‍स्‍सा कटि‍ कात भऽ गेल अछि‍।
            अपन रचनामे सदति‍ कोशि‍श रहैत अछि‍ जे ओइ छुटल समाजकेँ पकड़ि‍ सृजन करी।

वि‍देह-        की अहाँ कोनो तथ्‍यक झपेलहा भाग उभाड़ैत अगर हँ तँ कोना आ नै तँ कि‍अए?

ज.प्र.मं.-      जहाँ धरि‍ झपाएल तथ्‍यक प्रश्न अछि‍। झपाएल कते रंगक होइत अछि‍। जना शब्‍द-सँ-वि‍चार झापब कोनो वस्‍त्र वा आनसँ झापब, खाधि‍ खुनि‍ माटि‍सँ झापब इत्‍यादि‍।
           मि‍थि‍लांचलक समाज (तथ्‍य) ओहन झपाएल अछि‍ जेकरा दि‍स कि‍यो देखि‍नि‍हारे नै भेलाह। कोनो चीज देखैसँ पहि‍ने मनमे उठैत अछि‍। मन आँखि‍क माध्‍यमसँ देखैत अछि‍। मुदा ऐठाम तँ मने हरा गेल अछि‍!
ओहन तथ्‍य दि‍स जखन देखैत छी तँ वएह झपेलहा बूझि‍ पड़ैत अछि‍।


वि‍देह-        अहाँ कहि‍यासँ लेखन प्रारम्‍भ केलौं, ककरा लेल लि‍खलौं, आइ-काल्हि‍ केकरा लेल लि‍ख रहल छी?

ज.प्र.मं.-      मोटा-मोटी दू हजार ईंसवी चढ़लाक बादे लि‍खब शुरू केलौं। ओना हि‍न्‍दी साहि‍त्‍यक वि‍द्यार्थी छी तँ हमरा लेल हि‍न्‍दीमे लि‍खब नीक होइत। मुदा मैथि‍लीक संबंध परि‍वार-सँ-समाज धरि तहि‍यो छल अखनो अछि‍। संगहि‍ एकटा बात आरो अछि‍ जे जे वि‍चार मैथि‍लीमे गहराइसँ वयक्‍त कऽ सकै छी ओ हि‍न्‍दीमे नै भऽ पबैत अछि‍।
           जहाँ धरि‍ ककराक प्रश्न अछि‍? ओ स्‍पष्‍ट रूपे कहि‍ रहल छी जे समाजक ओ दबल-कुचलल वंचि‍त हमर मुख्‍य आधार अछि‍, जेकरा लेल लि‍खबो केलौं आ आगूओ जे कि‍छु लि‍खब ओकरे लेल लि‍खब।

वि‍देह-       की अहाँकेँ ई लगैत रहल अछि‍ जे मुख्‍य धारासँ अहाँ कति‍याएल गेल छी? अहाँक रचनामे समाजकेँ बाहरसँ देखबाक प्रवृति‍क की कारण?

ज.प्र.मं.-      मुख्‍य धारासँ कति‍आएलक प्रश्न उठौने छी, तँ स्‍पष्‍ट रूपे कहि‍ दि‍अए चाहैत छी जे जहि‍ना कोनो धारमे बरखाक पानि‍ आबि‍-आबि‍ धारामे मि‍लैत जाइत अछि‍, जइसँ धारोमे उफान अबैत अछि‍ आ धरो तेज होइत अछि‍। मुदा हम अपनाकेँ ओहि‍सँ अलग बुझैत छी। कम शक्‍ति‍ रहने धारा भलहि‍ं कमजोर हुअए मुदा दृढ़ वि‍श्वास अछि‍ जे दू-तीन-चारि‍ बढ़ैत-बढ़ैत मुख्‍य धारा बनि‍ जाएत। तँए अपनाकेँ कति‍आएल नै नव धाराक गति‍ देनि‍हार बुझैत छी। ई वि‍चारधाराक प्रश्न अछि‍ कति‍ऐबाक नै।

वि‍देह-        अपन साहि‍त्‍य आ रचनामे की स्‍वयंकेँ पूर्णरूपसँ इमानदार राखब आवश्‍यक छै?

ज.प्र.मं.-      जहाँ धरि‍ रचनामे इमानदारीक प्रश्न अछि‍। ओ ि‍सर्फ रचने नै जि‍नगीक सभ क्षेत्रमे एकर महत्‍व छैक आ रहतैक। न्‍यायमूर्ति सदृश्‍य रचनाकारकेँ हेबाक चाहि‍यनि‍।
           ओना प्रश्न भयंकर अछि‍। मुँहसँ सभ अपनाकेँ इमानदारे कहैत छथि‍ मुदा कर्मक्षेत्र आ वौद्धि‍क क्षेत्रमे कते इमानदार छथि‍, से बेबहारेमे स्‍पष्‍ट झलकैत छन्‍हि‍। तँए बेसी कहब उचि‍त नै।


वि‍देह-        मैथि‍ली साहि‍त्‍य आइक दि‍नमे की ई सभ (साहि‍त्‍यकार)क सामुहि‍क दोष स्‍वीकृति‍क रूप नै बुझना जाइत अछि‍?

ज.प्र.मं.-      अपना ऐठाम (मि‍थि‍लांचलमे) नैति‍कता ि‍सर्फ भाषण रहि‍ गेल अछि‍। बेबहारि‍क रूपमे कतौ कि‍छु ने छैक। तेकर कारण अछि‍ जे नैति‍कताक मन गढ़न्‍त व्‍याख्‍या, आइये नै बहुत पहि‍नेसँ होइत आबि‍ रहल अछि‍। तँए सामुहि‍क दोष की कहल जाए। जाधरि‍ मनुष्‍य अपन ि‍नर्माण अपने नै करताह ताधरि‍ सुगा रटन्‍तसँ की‍ हएत। ओना दोषोमे एकरूपता नै अछि‍। रंग-वि‍रंगक दोष पसरल अछि‍। एके गोटे एकठाम इमानदार छथि‍ दोसरठाम बइमान।
एे प्रश्नक समाधान साधारण नै अछि‍। ओना जँ खुल्लम-खुल्‍ला वाद-वि‍वाद हुअए तँ कि‍छु हद तक कमि‍ सकैत अछि‍।

वि‍देह-        की अहाँकेँ लगैत अछि‍ जे अहाँक पोथीकेँ हि‍न्‍दी, बंग्‍ला, नेपाली, अंग्रजी आदि‍ भाषामे अनुवाद कएल जाएत? तइ स्‍थि‍ति‍मे ओतए एकर कोन रूपेँ स्‍वागत हेतैक? की अहाँक साहि‍त्‍य ओइ भाषा आ संस्‍कृति‍ सभ लेल ओतबे महत्‍वपूर्ण रहतै जते ओ मैथि‍ली भाषा आ संस्‍कृति‍ लेल छै? अहाँक लेखन भाषा-संस्‍कृति‍ नि‍र्पेक्ष कि‍अए नै भऽ सकल? 

ज.प्र.मं.-      आन भाषाक अनुवादक प्रश्न अछि‍। कोनो भाषाक साहि‍त्‍य सीमि‍त जगहक लेल नै वि‍श्वक लेल होइत अछि‍। जहाँ धरि‍ भाषाक प्रश्न अछि‍ ओ क्षेत्रीय होइत अछि‍। दुनि‍याँमे सत्ताइस सएसँ बेसी बोली भाषा मि‍ला कऽ अछि‍। कोनो क्षेत्र वा कोनो भाषाक साहि‍त्‍यकार खास क्षेत्रमे जन्‍म लैत छथि‍। ओइठामक माटि‍-पानि‍क सुगंध जइ रूपे ओ अनुभव करैत छथि‍ तइ रूपे दूर दराजक नै बूझि‍ पाबि‍ सकैत छथि‍। तँए एक भाषा-सँ-दोसर भाषामे अनुवाद होइत अछि‍।
कोनो साहि‍त्‍य तखने समृद्ध होइत अछि जखन अपन क्षेत्रसँ आगू बढ़ि‍ दुनि‍याँक साहि‍त्‍यकेँ अपनामे समाहि‍त करैत अछि‍। एक भाषाक साहि‍त्‍यक अनुवाद दोसरमे मात्र अनुवादे नै ओइठामक सामाजि‍क, आर्थिक, वौद्धि‍क वि‍श्लेषण सेहो प्रदान करैत अछि‍। तँए कोनो भाषाक साहि‍त्‍य ि‍सर्फ ओइ क्षेत्रक नै दुनि‍याँक सम्‍पत्ति‍ बनैत अछि‍।‍

वि‍देह-        अहाँक भाषा तँ मैथि‍ली अछि‍ मुदा अहाँक लेखनपर बाहरी भाषा, संस्‍कृति‍, वि‍चारधाराक प्रभाव पड़ल अछि‍ कतौ-कतौ ई स्‍पष्‍ट अछि‍ मुदा बेसी ठाम नै, एकर की कारण?

ज.प्र.मं.-      आेहुना देखै छि‍ऐ जे बच्‍चेसँ मि‍थि‍लांचलोमे स्‍कूल-कओलेजमे जे पढ़ाइ होइत छैक ओइमे हि‍न्‍दी-अंग्रेजी भाषा सेहो छैक। हि‍न्‍दी तँ अपन राष्‍ट्रे-भाषा छी, तँए स्‍वाभावि‍क अछि‍। मुदा अंग्रेजी की छी। जखन अंग्रेजी साहि‍त्‍य पढ़ै दी तखन अंग्रेजि‍ये साहि‍त्‍यकारक ने कथा, उपन्‍यास कवि‍ता नाटक सेहो पढ़ै छी। जइसँ बच्‍चेसँ मन-मस्‍ति‍ष्‍कमे अंग्रेजी भाषा, संस्‍कृति‍ घर बनबए लगैत अछि‍। आगू चलि‍ जखन कि‍छु लि‍खए चाहैत छी तँ सि‍नेमाक रील जकाँ ओ मस्‍ति‍ष्‍कमे नाचए लगैत अछि‍। साहि‍त्‍य सृजनक अवस्‍था कि‍छु भि‍न्न अछि‍। जइ समए सृजनकर्ताक मस्‍ति‍ष्‍क ओइ भावभूमि‍मे वि‍चरण करए लगैत अछि‍ तइठाम भाषा गौण पड़ि‍ जाइत अछि‍। लाखो परहेज केलोपरान्‍त उमड़ि‍-घुमड़ि‍ कोनो ने कोनो दोग-सान्‍हि‍ होइत सन्‍हि‍आइये जाइत अछि‍।
           जहाँ धरि‍ वि‍चारधाराक प्रश्न अछि‍। उन्नैसमी शताब्‍दीमे मार्क्‍सवादी वि‍चारधारा दुनि‍याँक कोन-कोनमे पसरि‍ गेल। कतौ-कतौ शासनो-सत्ता बदलल। मुदा अपन जे भारतीय चि‍न्‍तनधारा रहल अछि‍ ओहो मानव चि‍न्‍तनधारा छी। मार्क्‍सवादी चि‍न्‍तनधारा आ भारतीय चि‍न्‍तनधाराक पद्धति‍मे कि‍छु-कि‍छु भि‍न्नता रहि‍तो लक्ष्‍यमे नजदीकी संबंध अछि‍। दुनू मानव-कल्‍याणक दि‍शा-ि‍नर्देश करैत अछि‍। जइसँ एक-दोसरमे ताल-मेल स्‍वाभावि‍क अछि‍।

वि‍देह-        अहाँक रचनाक प्रचार ऐ पुरस्‍कारक बाद भयंकर रूपसँ भेल अछि‍, अहाँकेँ ऐसँ केहेन अनुभव भऽ रहल अछि‍?

ज.प्र.मं.-      प्रचार कम हुअए आकि‍ बेसी, मूल प्रश्न अछि‍ जे हमर रचनासँ कते गोटेकेँ जीवन-दि‍शा भेटलनि‍। जे कि‍यो अपना जि‍नगीमे उताड़ि‍ लाभ उठबै छथि‍ वएह उपलब्‍धि‍ भेल।
            जते अधि‍कमे हेतनि‍ तते अपना सृजनकेँ सार्थक बूझि‍ संतुष्‍ट जरूर हएब।

वि‍देह-        अहाँक कोन रचना (कोनो खास कथा) हम पहि‍ने पढ़ी माने अहाँक अपन कोन रचना सभसँ बेसी प्रि‍य अछि‍?

ज.प्र.मं.-      ऐ प्रश्नक जबाब दू ढंगसँ दऽ रहल छी- पहि‍ल जेना-जेना रचना कएल अछि‍ ओ अहाँक सोझा अछि‍। हम कहब जे ओहीक्रमे ओकरा देखि‍यौ। दोसर- ओहन गार्जियन जकाँ रचनाकार छी जेकर एकटा बेटा आइ.ए.एस. होय आ दोसर नाङ‍र-लुल्ह, ओ जहि‍ना दुनूकेँ समान नजरि‍सँ देखैत छथि‍ तहि‍ना हमहूँ अपना रचनाकेँ देखैत छी तँए कोन नीक आ कोन अधला से कहब कठीन अछि‍।

अहाँक
जगदीश प्रसाद मण्‍डल
14/01/2012

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