Sunday, January 22, 2012

हम पुछैत छी: विहनि कथाकार आ विदेह-ई-पत्रिकाक सहायक सम्पादक श्री मुन्नाजीक श्री रवीन्द्र कुमार दास (युवा चित्रकार आ दिल्लीक मैथिली-भोजपुरी अकादमीमे मैथिली परामर्शदातृ समितिक सदस्य) सँ गपशप


हम पुछैत छी: विहनि कथाकार आ विदेह-ई-पत्रिकाक सहायक सम्पादक श्री मुन्नाजीक श्री रवीन्द्र कुमार दास (युवा चित्रकार आ दिल्लीक मैथिली-भोजपुरी अकादमीमे मैथिली परामर्शदातृ समितिक सदस्य) सँ गपशप
रवीन्द्र कुमार दास
रवीन्द्र कुमार दास अपन पत्नी संजू दासक संग




मुन्नाजी: कलाक दुनियाँमे प्रवेश कोना भेल। एकर आधार की छल प्रवेशक पछाति ई दुनियाँ की अनुभूति देलक।
रवीन्द्र कुमार दास: हम नेनेसँ कलामे रुचि लैत रही, पहिने देबालपर आ तकर बाद कागचपर भगवान आ स्वतंत्रता-सेनानीक चित्र बनबैत रही। हमर बाबा अमीन छलाह आ नक्शा बनबैत छलाह तेँ ड्रॉइंग बोर्ड आ रंगक प्लेट हम नेनेमे देखने रही। पटना आर्ट कॉलेजक पाछाँमे बाबूजी मन्दिरी मोहल्लामे डेरा लेने छलाह। फुटबॉल खेलेबाक लेल आर्ट कॉलेजक सोझाँक मैदानमे जाइत रही तँ कलाकार लोकनिक काज आ प्रदर्शनी देखी। बाबूजीक बड्ड मान मनौअल केलाक बाद आर्ट कॉलेजमे एडमिशन लेबाक अनुमति भेटल। तइ दिनसँ कलाक दुनियाँमे प्रवेश भेल आ आइयो कलाक सेवा कऽ रहल छी। कलाकारकेँ पाइ भेटै वा नै सम्मान जरूर भेटै छै।  

मुन्नाजी: साहित्य आ चित्रकलामे कोनो सम्बन्ध स्थापित होइछ? एकर एकरूपताकेँ अहाँ कोन तरहेँ देखै छी?
रवीन्द्र कुमार दास: साहित्य आ चित्रकला दुनू एक मायक बेटी छथि। साहित्ये टा नै कलाक जतेक विधा छै, सभटा एक दोसरासँ जुड़ल अछि। जेना फिल्ममे संगीत, नृत्य, साहित्य, चित्रकला आ अभिनय सभ जुड़ल अछि। तहिना चित्रकारोकेँ सभ विषयक अध्ययन-मनन करए पड़ैत छन्हि। कवि चित्र आ मूर्ति-शिल्पकेँ देखि कऽ कविता लिखैत छथि। जेना प्रयाग शुक्ल, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, हेमन्त कुकरेती आ ऑक्टोवियो पाज कतेक कविता लिखने छथि।

मुन्नाजी: अहाँक नजरिये साहित्यकार आ चित्रकार, दुनूमे के बेशी सूक्ष्मदर्शी होइछ आ कोना? की एकटा चित्रकार ओइ सभ बिन्दुकेँ छू सकैत अछि जकरा कि साहित्यकार उठबैत रहल अछि।
रवीन्द्र कुमार दास: साहित्यकार आ चित्रकार दुनू सूक्ष्मदर्शी होइत छथि मुदा के कतेक सूक्ष्मदर्शी छथि से से हुनकर ज्ञान, तर्कशक्ति आ काल्पनिकतापर निर्भर करैछ। आम आदमीकेँ आधुनिक कलाक भाषा दुरूह लगैत छै कारण सभ कलाक अपन-अपन व्याकरण होइत छै। ओकर आनन्द लेबाक लेल ओकर व्याकरण बुझनाइ जरूरी छै। साहित्य आम आदमीक भाषामे लिखल जाइत अछि तेँ बेशी असरिकारक होइत अछि। चित्रकार कोनो विषयक चित्रणमे कलाक आर बहुत रास तत्व जकरा शिल्प कहैत छी, सेहो शामिल करैत अछि।

मुन्नाजी: जेना साहित्यकारक कोनो विशेष पहिचान नै बनि पबै छै (किछु अपवादकेँ छोड़ि कऽ), ओ साहित्यकेँ अर्थोपार्जनक आधार नै बना पबै अछि, तइ सन्दर्भमे चित्रकारक की अस्तित्व छै?
रवीन्द्र कुमार दास: साहित्यकार पहिचान तँ बनैत छनि मुदा सेलेब्रिटी जेकाँ सम्मान नै भेटैत छनि। चित्रकार आइ-काल्हि पेज-थ्री पर पसरल रहैत छथि। ओना कोनो साहित्यकार आ कलाकार दर्शक, पाठक आ आलोचकक स्वीकृतिक बादे सम्मान पबैत छथि। अर्थोपार्जन सेहो तहीपर आधारित छै। साहित्यकारक आमदनी प्रकाशकक रॉयल्टीपर निर्भर करैत छनि। चित्रकारक चित्रक दाम बढ़ैत रहैत छै। एक शैलीक कोनो चित्रक नीलामीमे गेलाक बाद ओइ शैलीक सभ चित्र बिका जाइत छै। एक चित्र पचास बेर बिका सकैत अछि। कलाकृतिक मूल्य ग्राहकक कलाज्ञान आ कलाकृतिक ऊपर कएल गेल खर्चपर निर्भर करैत छै।

मुन्नाजी: बहुत रास कलाकार हुनर रहितो कला माध्यमे अपन दशा-दिशा नै तय कऽ पौलक, की कहब अहाँ?
रवीन्द्र कुमार दास: जेना दू लाइनक कविताकेँ तुकबन्दी कऽ देलासँ बहुत लोक अपनाकेँ कवि बूझऽ लगैत छथि तहिना चित्र बनेनाइ मात्र सिखलासँ चित्रकार नै भऽ जाइत छथि। अपन रचनाक गुणवत्ताक आ समकालीनताक सदिखन समीक्षा करऽ पड़ैत छै। तेँ जिनकर रचनामे दम होइत छनि तिनका दशा-दिशा भेटि जाइत छनि।

मुन्नाजी: फाइन आर्ट आ मिथिला आर्ट (मधुबनी पेण्टिंग) मध्य कतेक समता आ विषमता अछि? फाइन आर्टक सोझाँ मिथिला आर्ट कतऽ अछि?
रवीन्द्र कुमार दास: फाइन आर्ट आ मिथिला आर्टक स्तर तँ समान छै। फाइन आर्टकेँ आधुनिक कला आ मिथिला आर्टकेँ लोककला कहलासँ ई आसानीसँ बूझल जा सकैत छै। दुनू कलाक अपन-अपन इतिहास आ विकास यात्रा छै। मिथिला आर्ट सिर्फ मिथिलाक कलाकार करैत छथि मुदा आधुनिक कला सम्पूर्ण विश्वक कलाकार रचैत छथि। बिहारक परिप्रेक्ष्यमे जँ देखल जाए तँ मिथिला कलामे बेसी उपलब्धि भेटल छै। अखन धरि १५ टा कलाकारकेँ राष्ट्रीय पुरस्कार आ चारिटा केँ पद्मश्री भेटल छनि मुदा आधुनिक कलामे सात-आठटा कलाकारकेँ तँ राष्ट्रीय पुरस्कार भेटल छनि मुदा पद्मश्री एको गोटेकेँ नै भेटल छन्हि। गंगा देवी, सीता देवी, जगदम्बा देवी आ महासुन्दरी देवीक नाम जेना अन्तर्राष्ट्रीय स्तरपर लेल जाइत छन्हि तहिना सुबोध गुप्ताक अन्तर्राष्ट्रीय स्तरपर पहिचान छन्हि।

मुन्नाजी:अहाँ मैथिली-भोजपुरा अकादमीक सदस्य हेबाक नाते साहित्यक तँ सेवा कऽ रहल छी, की कलाकार लेल सेहो कोनो योजना अछि?
रवीन्द्र कुमार दास: हम कलाकार छी तँए कला आ कलाकारक सेवामे लागल रहैत छी। अकादेमीक माध्यमसँ जँ कलाक विकास होइ तँ खुशीक बात हएत। हिन्दी अकादेमी नृत्य नाटक करबैत छल तहिना इहो अकादेमी चित्र प्रदर्शनी आ कलापर सेमीनार करौलक। बिहार सरकारक कला अकादेमी पहिल बेर राष्ट्रीय कला शिविरक आयोजन कएलक तहूमे हमरा आमंत्रण आएल। हम भाग लेलौं, बड्ड मोन खुश भेल जे आब बिहारमे सरकार कलापर ध्यान देनाइ शुरू केलक। संस्कृति मंत्री सुखदा पाण्डेयकेँ हम सभ कएकटा सुझाव देलियन्हि।

मुन्नाजी: किछु बर्खसँ देखा रहल अछि जे मैथिली-भोजपुरी अकादमीमे भोजपुरिया सदस्यक वर्चस्वे स्थापित भाषा मैथिलीकेँ आजुक चर्चित भेल भोजपुरी भाषा गरोसने जा रहल अछि?
रवीन्द्र कुमार दास: अकादेमीक उपाध्यक्ष आ सचिव जइ भाषाक प्रयोग करता सएह भाषाक वर्चस्व भऽ गेल से कहनाइ उचित नै। साल भरिक कार्यक्रमकेँ देखलाक बाद ई स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे दुनू भाषाकेँ बराबर स्थान भेटि रहल छै।

मुन्नाजी: अहाँ सबहक प्रयासे किएक ने मैथिलीक स्वतंत्र मैथिली अकादमी हेबा लेल कदम उठाएल जाए, जइसँ मैथिली लेल स्वतंत्र भऽ कऽ काज कएल जा सकत?
रवीन्द्र कुमार दास: हम काजमे विश्वास करैत छी, छुच्छे आन्दोलनमे नै। हमरा लोकनि लड़बे बड्ड करैत छी, कतौ जाति-पाइतक नामपर तँ कतौ क्षेत्रकेँ लऽ कऽ। कतेक लोक छथि जे गामसँ निकललाक बाद अपन बाल-बच्चाकेँ मैथिली सिखबैत छथि। क्तेक कार्यक्रम, सम्मेलन आ सेमीनार मैथिलीमे होइत अछि राष्ट्रीय आ अन्तर्राष्ट्रीय स्तरपर, अखन धरि मिथिला कलाक एक्कोटा संग्रहालय भारतमे नै बनि सकल अछि।

मुन्नाजी: अकादमी द्वारा गद्य-पद्य दुनू विधामे मूलतः कथा आ कवितापर काज होइछ। किएक ने दुनू विधाक आनो प्रतिरूप जेना गजल आ विहनि कथा, जे अविकसित अछि, अग्रिम योजनामे शामिल कएल जाए, जइसँ ऐ सबहक विकास भऽ सकए?
रवीन्द्र कुमार दास: अहाँक विचारसँ हम सहमत छी, कविताक अलाबे साहित्यक अन्य विधामे कार्यक्रम हेबाक चाही। कथाक पाठ तँ कएल गेल अछि मुदा आर कार्यक्रम हेबाक चाही।

मुन्नाजी: किछु कथित व्यक्ति द्वारा ठाम-ठीम ई आरोप लगाएल जा रहल अछि जे ई मैथिली-भोजपुरी अकादमी एकटा जाति विशेषक मुट्ठीक संस्था बनि काज कऽ रहल अछि। की स्वतंत्र विचार देब अहाँ?
रवीन्द्र कुमार दास: साहित्य आ कलामे कोनो जाइत नै होइत छै। ई महज एकटा घटिया राजनैतिक सोच अछि। जँ अपने अकादेमीकेँ एकटा राजनैतिक मंच बुझैत होइ तँ ई पूछब उचित अछि अन्यथा महज एकटा बहन्ना। ऐमे मैथिली भाषी सदस्य कम नै छथि, हमरा उम्मीद अछि जे दिनोदिन विकास हएत।

मुन्नाजी: अहाँ सशक्त युवा सदस्य रूपेँ जुड़ल छी, तँ युवा रचनाकारक लेल कोनो अग्रिम योजना अछि?
रवीन्द्र कुमार दास: हमरा लोकनि एकटा चित्र प्रदर्शनी आयोजित करौने रही “रंगपूर्वी”, ओइमे बेसी युवा कलाकारकेँ चुनल गेल रहनि। तहिना कवि सम्मेलनमे सेहो लगातार देखि रहल छी जे बेसी युवा लोकनि आमंत्रित रहैत छथि।
(साभार विदेह www.videha.co.in )

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