Wednesday, August 1, 2012

आशीष अनचिन्हार द्वारा श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीसँ लेल साक्षात्कार


१९ जुलाइ २०१२ केँ आशीष अनचिन्हार द्वारा श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीसँ लेल साक्षात्कार
आ. अनचि‍न्‍हार-      काल्हि‍ चेतना सम्मानसँ सम्मानि‍त भेलौं, तइ लेल वि‍देह परि‍वार दि‍ससँ बधाइ।
ज.प्र. मण्‍डल-        आशीषजी, एकरा अहाँ व्‍यक्‍ति‍गत नै वि‍देह परि‍वारक चेतनताक प्रतीक बुझि‍यौ। जे चेतना समि‍ति‍क पत्रि‍का (घर-बाहर) दोसरे पन्नामे जीवि‍त-मृत्‍युक सूची प्रकाशि‍त करैत अछि‍, ओइ सूचीसँ वि‍देह परि‍वार (ई-पत्रि‍का) अखनो धरि‍ काते रहल अछि‍, भलहि‍ं गाम-घरक संस्‍कृति‍मे कि‍अए ने लोहोक इंजन दूबि‍-धान, सि‍नुर-पीठारसँ सुशोभि‍त होइत हुअए। वि‍देह परि‍वार दि‍ससँ आग्रह (चेतना समि‍ति‍केँ) करैत छन्‍हि‍ जे समाजक बदलैत स्‍वरूप (सामाजि‍क, आर्थिक, बौधि‍क, वैचारि‍कपर) नजरि‍ दथि‍ तइ लेल सुझाव अछि‍ जे मैिथली साहि‍त्‍यक जते सम्‍पादक छथि‍, ओ अपना हाथसँ अपन पत्रि‍काक इति‍हास लि‍खि‍ अपन-अपन परि‍चय दथि‍। एक दि‍स मि‍थि‍लाक उद्धारक वि‍चार रखै छि‍ऐ दोसर दि‍स पत्रि‍का सभ पाछू मुँहेँ घुसुकि‍ रहल अछि‍। ऐ लेल के करताह? आइ कोनो समारोहमे धोती-कुर्तासँ लऽ कऽ चुस्‍त पेंट धरि‍क आगमन भऽ रहल अछि‍, धोतीबला तरेतर गुम्हरै छथि‍ जे देखू ने कि‍रदानी। तँ दोसर दि‍स चुस्‍त पैंटबला अँखि‍या-अँखि‍या सुसकारी दइ छथि‍ जे शुभ काजमे पीड़ा धोती पहि‍रि‍ये कऽ नै आएल छथि‍। खैर जे होउ, हमरा सभकेँ वि‍चार कऽ एकटा रास्‍ता बनबए पड़त जे वस्‍त्रक बदलाव समायानुकुल होइत रहल अछि‍। पुरुषोत्तम राम बलकल धारी छलाह। आब ओ युग रहलै।

आ. अनचि‍न्‍हार-      अहाँकेँ चेतना समि‍ति‍ सम्मान सुनि‍ हृदए गद्गद् भऽ गेल। आरो बुझैक जि‍ज्ञासा जगल। सूचना केना भेटल?
ज.प्र. मण्‍डल-        चेतना समि‍ति‍क स्‍थापना दि‍वस १८ जुलाइ छी। १९५४ ई.क १८ जुलाइकेँ कि‍छु संगीक संग यात्रीजी चेतना समि‍ति‍क स्‍थापना केलनि‍। ओना आनो-आन समारोह समि‍ति‍क बीच होइते रहैए मुदा स्‍थायी रूपे १८ जुलाइ स्‍थापना दि‍वसक अवसरपर सभ साल कि‍छु वि‍शेष रूपमे होइते अछि‍। आठ-दस दि‍न पहि‍ने वि‍वेका बाबू (वि‍वेकानन्‍द ठाकुर) जे समि‍ति‍क सचि‍व छथि‍, फोन केलनि‍ जे १८ जुलाइकेँ चेतना समि‍ति‍क स्‍थापना दि‍वस छी जाहि‍ अवसरपर समि‍ति‍ कि‍छु गोटेकेँ सम्मानि‍त करैक ि‍नर्णए केलनि‍ अछि‍। अहाँक आएब अनि‍यार्य अछि‍। ओना डाक द्वारा लि‍खि‍त सूचना सेहो पठा देने छी, मुदा पोस्‍ट–ऑफि‍सक जे क्रि‍या-कलाप छै ताहि‍मे समैपर नहि‍यो पहुँचए। वि‍वेकानन्‍द जीसँ गुआहाटीमे छह मास पूर्व दि‍सम्‍बरमे धर्मशालामे भेँट भेल छल। कि‍छु प्रश्नपर गपो-सप भेल रहए। ममताजी (श्रीमती ममता ठाकुर) दूटा सोहरो गौलनि‍। श्री राम भरोस कापड़ि भ्रमर‍, राजाराम सि‍ंह राठौर एवं नेपालक आरो कतेक लोक सभ रहथि‍ हुनको सभसँ पहि‍ल भेँट भेल छल।
                जखन वि‍वेकानन्‍द जी फोनपर जानकारी देलनि तखन हम गुआहाटीक धर्मशालामे पहुँच गेल रही। जबाव देलि‍यनि‍ जे जरूर आएब। मुदा दू-तीन दि‍नक पछाति‍ संगी सभ फोन केलनि‍ जे बि‍ना लि‍खि‍त सूचनाक जाएब उचि‍न नै। ओ सभ चेतना समि‍ति‍क क्रि‍या-कलापसँ नाखुश छथि‍। प्रश्न उठल जे आब हम कि‍ करब? एके बात कवि‍ता आ कथामे दू-ि‍वधामे बँटि‍ जाइए। एक तँ रौदि‍याह समए भेने कि‍सानक मन ओहि‍ना तबधल अछि‍ तइपर सँ आरो तबधि‍ गेल। जाइ कि‍ नै जाइ, वि‍चि‍त्र ओझरी लागि‍ गेल। मनमे हुअए जे वि‍वेका बाबू कि‍छु करए चाहै छथि‍ तइठाम सहयोग नै करब उचि‍त नै हएत? मुदा जखन संगी सबहक दोहरा-दोहरा फोन आबए लगल तखन ओरो मन दुबि‍धमे पड़ए लगल। १८ जुलाईक ६ बजे सुबह। हम वि‍वेकानन्‍द जीकेँ फोन केलि‍यनि‍ जे अपनेक कार्यक्रममे कोनो व्‍यवधान तँ नै भेल अछि‍? ओ भरि‍सक ओछाइनेपर रहथि‍। आँखि‍ मीड़ि‍ते कहलनि‍ जे नै, ई तँ सभ सालक कार्यक्रम छी हेबे करत। ओना ऐ बीचमे दि‍ल्‍ली चल गेल रही तँए दोहरा कऽ सम्‍पर्क नै भऽ सकल। परसुए एलौं‍ आ काजमे लागल छी।
                पुछलि‍यनि‍- समए केहेन अछि‍? ऐठाम (गाम) पानि‍ भऽ रहल अछि‍।
ओ कहलनि‍- मेघौन तँ एतौ अछि‍ मुदा बून्न नै पड़ैए। हुनकर जबाब सुनि‍ मन मानि‍ गेल एहेन खुशनुमा मौसममे भोज-भात नै हुअए तँ केहेन समैमे हुअए। फोनपर वि‍वेका जी ईहो कहि‍ देलनि‍ जे न्‍यायमूर्ति कि‍शोर कुमार मण्‍डल वि‍शि‍ष्‍ट अति‍थि‍ रहताह। तइ संग न्‍यायमूर्ति राजेन्‍द्र प्रसाद जी, डाॅक्‍टर सहाएब, वि‍जय बाबू, सभ रहबे करताह। हि‍नके सबहक काजो छि‍यनि‍। एक तँ रौदि‍याह समए दोसर भि‍नसुरका झकास रहने सुहावन मौसम रहबे करए, तैयारीक वि‍चार केलौं। झमटगर परि‍वार रहने संगी भेटि‍ये जाइए।
फेर कहि‍ देलि‍यनि‍ जे आठ-नअ बजेक बस पकड़ि‍ लेब।
आ. अनचि‍न्‍हार-      कते समए गामसँ पटना जाइमे लगैए?
ज.प्र. मण्‍डल-        आशीषजी, की कहब। ऐबेर हवाई सफरक मौका भेटल। एते-एते दूरीक बीच एको मि‍नटक हेर-फेर नै देखलि‍ऐ। मुदा अपना सबहक तँ भगवाने ने मालि‍क छथि‍। जेना कऽ रखबह भोला तहि‍ना ने हम रहबह। गाड़ीक (ट्रेन) रास्‍ता एहेन बनि‍ गेल अछि‍ जे डेढ़ दू दि‍न तक लागि‍ जाइए। मुदा एन.एच भेलासँ थोड़े सुवि‍धा बढ़ल अछि‍ मुदा तैयो पाँच-छह घंटा तँ लगि‍ये जाइए।
आ. अनचि‍न्‍हार-      जखन पानि‍ होइत रहए तखन बस स्‍टेण्‍ड जाइमे तँ दि‍क्कत भेल हएत?
ज.प्र. मण्‍डल-        दि‍क्कत कि‍ दि‍क्कत भेल। ओना गाड़ीक (दू पहि‍या) सुवि‍धा अछि‍, मुदा पीच्‍छड़मे तँ चारि‍ पएरबला हाथी पि‍छड़ि खसि‍ पड़ैए आ दू पहि‍याक कोन ठेकान। पएरे तीन कि‍लो मीटर जाइक वि‍चार कऽ लेलौं। तखन मन भेल जे छत्ता लऽ लेब। मुदा कते बेर छत्ता बि‍सरि‍ये गेलौं आ कते बेर हराइये गेल। तँए छत्ता नै लऽ जेबाक वि‍चार भेल पानि‍यो कमलै। बूंदा-बुन्‍दीपर आबि‍ गेल रहए।

आ. अनचि‍न्‍हार-      कते बजे पटना पहुँचलि‍ऐ?
ज.प्र. मण्‍डल-        सवा चारि‍ बजे पहुँचलौं। जलखैये कए कऽ चलल रही। भूखो लगि‍ गेल रहए। पुले (गाँधी पुल) लग उतरि‍ पहि‍ने खेलौं। खेलाक पछाति‍ टेम्‍पू पकड़ि‍ एकटा वि‍द्यार्थी डेरापर पहुँचलौं। ओ नि‍रमलि‍येक छथि‍ रवि‍न्‍द्रजी। ओइठाम देह-हाथ पोछि‍ फ्रेश भेलौं। पौने छह बजे राजेन्‍द्र नगर वि‍द्यापति‍ भवन लग पहुँच गेलौं। गेटपर पहुँचलौं आकि‍ आनन्‍दजी (आनन्‍द कुमार झा) सेहो भेट गेलाह। नीक भवन नीक बेवस्‍था। जेना राजधानीक हेबाक चाही तइमे कमी नै। पंखा ताकि‍ बैसलौं। पाँच मि‍नटक पछाति‍ चुन्नूजी (कमल मोहन चुन्नू, घर-बाहर पत्रि‍काक सहयोगी सम्‍पादक) देखलनि‍। देखि‍ते दोसर ठाम बैसा पुछलनि‍ जे कि‍छु खेबो-पीबो करबै। कहलि‍यनि‍ जे रस्‍तेमे खा नेने छी। पानि‍ पीलौं।
समए छहसँ आगू बढ़ि‍ गेल। छह बजे शुरू होइक समए रहैक, गप-सप करैले आनन्‍दजी लगेमे रहथि‍, मुदा बूझि‍ पड़ल जेना चुन्नूजी आ वि‍वेका बाबू काजमे जमि‍ कऽ जुटल छथि‍। पुछलि‍यनि‍- चुन्नूजी, रमणजी (डाॅ. रमानन्‍द झा रमण) केँ नै देखै छि‍यनि‍? कहलनि‍ ओ कथा गोष्‍ठीमे गेल छथि‍। कहि‍ अपन हेमलेट, बैगक जि‍म्‍मा सुमझा कहलनि‍ जे कने एकटा काज केने अबै छी। चुन्नू जीक काज बाधि‍त करैक अर्थ होएत जे काजमे (समारोह) बाधा उपस्‍थि‍त करब। कहलि‍यनि‍, हम कतौ पड़ाएल जाइ छी, अखन जे काज लाधल अछि‍ पहि‍ने ओकरा सम्‍हाररू। चुन्नूजी तँ उठि‍ कऽ चलि‍ गेलाह, मुदा मनमे एकटा नव प्रश्न आबि‍ गेल। ओ ई जे ‘घर-बाहर’ पत्रि‍काक सम्पादक रमणजी छथि‍, तखन अपन जबाबदेहीक काज छोड़ि‍ मद्रास चलि‍ गेलाह;, आ गोष्ठी तँ १४-१५ जुलाइक रातिमे रहै, १५ तारीखकेँ बिदा भेने १७ धरि तँ आबिये गेल हेता। खएर ! । एना कि‍अए भेल? जखन कि‍ चेतना समि‍ति‍क स्‍थापना दि‍वस १८ जुलाई छी, भरि‍सक यात्रीयो जी (ठीकसँ मोन नै अछि मुदा अनुमान करै छी‍) जखन माँ मि‍थि‍लाकेँ प्रणाम कए पड़ा कऽ अकासमे उड़ैत ओइ चि‍ड़ै जकाँ जे उड़ि‍ते-उड़ि‍ते अंडो दैत अछि‍ तहि‍ना केलनि‍। प्रश्न घुरि‍आए लगल जे अपनो बेटाक मूड़न वा बि‍आह रहए आ साढ़ूओ बेटाक एक्के दि‍न होइ तखन कि‍ कएल जाएत? कि‍यो अपन घर सम्‍हारत आकि‍ भोज खाइले जाएत। मुदा ऐठाम तँ अँटावेसक संभावना छल। चेतना समि‍ति‍क ति‍थि‍ अट्ठावन वर्षसँ मनकेँ पकड़ने अछि‍, कथा गोष्‍ठीक ति‍थि‍ ि‍नर्धारि‍त कएल जाइत अछि‍, तइठाम समए आ दूरीक वि‍चार केने बि‍ना, जँ ति‍थि‍ ि‍नर्धारि‍त कएल जाए तँ कि‍ कहबै? एक तँ ओहि‍ना हम सभ मि‍थि‍लांचलक काजक दौड़मे पछुआएल छी तइपर जँ काजे काजक बाधा बनत तँ कते दूर जा सकब, से तँ सभ बुझि‍ते छी।  तइ बीच वि‍वेकाजी तीन-चारि‍ गोटेक संग आबि‍ कि‍छु-कि‍छु काजक बात पुछलनि‍। कहलि‍यनि‍। तइ बीच अध्‍यक्षा प्रमीला झा सेहो एलीह।
चुन्नूजी धड़फड़ाएल आबि‍ हेलमेट हाथमे लैत चि‍न्‍हा देलनि‍। ओना चेतना समि‍ति‍क सदस्‍य सबहक जानकारी अछि‍, मुदा चेहरासँ चि‍न्‍हारए नै छल‍। तँए अनभुआर जकाँ रही। मुदा कार्यकर्ताक अभाव जरूर बूझि‍ पड़ल वि‍लंबोसँ शुरू भेने बहुत बढ़ि‍या कार्यक्रम भेल।
आ. अनचि‍न्‍हार-      वि‍धि‍वत् कते बजे कार्यक्रम शुरू भेल?
ज.प्र. मण्‍डल-        ऐ प्रश्नक उत्तर ठीक-ठीक नै दऽ सकब। कि‍एक तँ ने अपने घड़ी रखै छी आ ने मोबाइल। मुदा बैसकसँ बूझि‍ पड़ल जे एक-डेढ़ घंटा बि‍लंबसँ कार्यक्रम शुरू भेल। हँ तइ बीच दूटा बात आरो भेल। इन्‍द्रकान्‍त बाबू (डॉ. इन्‍द्रकान्‍त झा) दोसर कतारक कुर्सीपर आगूमे बैसल रहथि‍, ओ अपन चि‍न्‍हारए देलनि‍। मनमे रहबे करए मुदा ओहन बीच रहने गुम रही। हुनकासँ पहि‍ल परि‍चय ओइ दि‍न भेल छल जइ दि‍न मि‍थि‍ला दर्शनमे छपल कथा चुनवाली पढ़ि‍ पहि‍ल बधाइ देलनि‍। गपे-सपक बीच अखि‍लेश बाजल जे लालकक्का (उमेश मण्‍डल) फोन केलनि‍ जे साढ़े दस बजेक बसक टि‍कट कटा लेलौं। तेरह-चौदह नम्‍बर सीट अछि‍।

आ. अनचि‍न्‍हार-      कार्यक्रम केहेन भेल?
ज.प्र. मण्‍डल-        पहि‍ल सम्मान कार्यक्रम भेल। यात्री जीक स्‍थापि‍त चेतना समि‍ति‍क सम्‍मान पाबि‍ बहुत खुशी भेल। उच्‍च न्‍यायालयक न्‍यायमूर्ति कि‍शोर कुमार मण्‍डलक हाथसँ सैकड़ो गण्‍यमान्‍य लोकनि‍क बीच, जइमे बि‍हार सरकारक पूर्व मुख्‍यमंत्री वि‍धान परि‍षदक पूर्व अध्‍यक्ष, उच्‍च न्‍यायालयक पूर्व मुख्‍य न्‍यायमूर्तिक संग माननीय पूर्व सांसद, माननीय वि‍धान पार्षद, अधि‍वक्‍ता, अध्‍यापक, डॉक्‍टर इत्‍यादि‍ चेतना समि‍ति‍क सभ छलाह।
आ. अनचि‍न्‍हार-      साहि‍त्‍यि‍क माहौलमे कार्यक्रम भेल हएत?
ज.प्र. मण्‍डल-        आशीषजी, ई बहुत गंभीर प्रश्न अछि‍। ओना साहि‍त्‍यि‍क माहौल अवश्‍य छल मुदा राजनीति‍क बेसी बूझि‍ पड़ल। अध्‍यक्ष जीक (चेतना समि‍ति‍क अध्‍यक्ष) वक्‍तव्‍य वि‍धि‍वत् छलनि‍, नीक छलनि‍। मुदा मंचक वक्‍ता लोकनि‍ साहि‍त्‍यकेँ मोड़ि‍ राजनीति‍ दि‍स घुसका देलखि‍न। जे गोष्‍ठीक अनुकूल नै रहल। मुख्‍य वक्‍ता छलाह पंडि‍त ताराकान्‍त झाजी (वि‍धान परि‍षदक पर्व अध्‍यक्ष) जे तेना कऽ वि‍चार मोड़ि‍ देलखि‍न जे बादक वक्ताकेँ बेकावू भऽ गेलनि‍। ओना पूर्व मुख्‍यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मि‍श्र, वि‍धान पार्षद आ चेतना समि‍ति‍क संरक्षक वि‍जय बाबू (श्री वि‍जय कुमार मि‍श्र) वि‍धि‍वत अपन वि‍चार रखलनि‍। यात्री जीक स्‍थापि‍त चेतना समि‍ति‍क वि‍चार वि‍न्‍दु गौण पड़ि‍ गेल। तहूमे मैथि‍ली साहि‍त्‍यक बीच, टैगोर साहित्य सम्मान पहि‍ल-पहि‍ल भेटल, जेकर चरचो नै भेल। माननीय न्‍यायमूर्ति राजेन्‍द्र प्रसादजी, अपन वक्‍तव्‍यकेँ कि‍छु हद-तक मोड़लनि‍। ओ यात्री जीक वि‍चारकेँ पकड़ि‍ चेतनाक वि‍षद व्‍याख्‍या केलनि‍। भाषो मनोरंजक छलनि‍। मनोरंजक ऐ लेल जे मैथि‍ली-मगहीक सीमापर रहने कखनो मैथि‍ली कखनो मगही आ कखनो मैथि‍ली-मगही मि‍ला कऽ बजलाह। मुदा अंग्रेजी माहौलमे रहनि‍हार एको शब्‍द अंग्रेजीक प्रयोग नै केलनि‍, ई सभसँ आश्चर्य लागल। समए सेहो बेशी भऽ गेल छलैक। तहूमे बसक टि‍कटक नाओं सुनि‍ आरो मन दोसर दि‍स जाए लगल। हुअए जे बस ने छूटि‍ जाए।
आ. अनचि‍न्‍हार-      अहाँ कि‍ सभ बजलि‍ऐ?
ज.प्र. मण्‍डल-        आभारो व्‍यक्‍त करैक अवसर नै भेटल।
आ. अनचि‍न्‍हार-      भोजन भात केहेन रहलै?
ज.प्र. मण्‍डल-        नीक रहलै। स्‍पष्‍ट शब्‍दमे वि‍वेकाजी कहि‍ देलखि‍न जे अल्‍पाहारक बेवस्‍था अछि‍। मुदा खीर-पूड़ी खुआएब।
आ. अनचि‍न्‍हार-      कते बजे सभा भवनसँ नि‍कललौं?
ज.प्र. मण्‍डल-        दससँ ऊपर बजि‍ गेल। मन छटपटाए लगल जे एक तँ गली-कुच्‍ची रस्‍ता, दोसर थाल-कीच सेहो, रि‍क्‍शा-टेम्‍पू भेटत नै। हारि‍-थाकि‍ बस स्‍टेण्‍ड वि‍दा भेलौं। सरकारी बसक टि‍कट, तँए हुअए जे बस नहि‍ये पकड़ाएत। मुदा कि‍छु दूर गेलापर रि‍क्‍शा भेट गेल। ओ कहलक जे हमरा बूझल अछि‍, बस नि‍श्चि‍त पकड़ाएत। संगमे आनन्‍द कुमार झाजी सेहो रहथि‍, हुनका टि‍कट नै भेलनि‍। भोर होइत घरपर पहुँच गेलौं।
आ. अनचि‍न्‍हार-      छुटल-बढ़ल जे भेल होइ, तइ संबंधमे कि‍छु कहि‍यौ?
ज.प्र. मण्‍डल-        ओना चेतना समि‍ति‍क ि‍नर्णयानुसार चारि‍ गोटेकेँ सम्मानि‍त करैक वि‍चार छलनि‍। पहि‍ल, टैगोर साहि‍त्‍य सम्मानसँ सम्मानि‍त हम (जगदीश प्रसाद मण्‍डल), दोसर, साहि‍त्‍य अकादेमीसँ सम्मानि‍त कवि‍ वि‍नोद जीक (श्री उदय चन्‍द्र झा वि‍नोद), तेसर, युवा साहि‍त्‍यकार आनन्‍द जीक आ चारि‍म, अनुवादक खुशीलाल बाबूकेँ (श्री खुशी लाल झा)। मुदा ओ दुनू गोटे (वि‍नोदजी आ खुशीलाल बाबू) नै पहुँच सकल छलाह।
चेतना समि‍ति‍क सभ नै, मुदा कि‍छु गोटे एहेन सक्रि‍य छलाह जि‍नका वि‍षयमे कि‍छु कहने बि‍ना नै रहि‍ सकै छी। ओ छलाह वि‍जय बाबू (श्री वि‍जय कुमार मि‍श्र), जे खेबा काल घूमि‍-घूमि‍ देखैत रहलाह। दोसर छलीह श्रीमती प्रमीला झा। जे एते उमेर भेलोपर, तहूमे जेहेन परि‍वारक छथि‍, क्रि‍याशील जि‍नगी बना जीवि‍ रहली अछि‍। जे धन्‍यवादक पात्र छथि‍। वि‍वेका बाबू आ चुन्नूजी हृदैसँ चाहि‍तौ, नीक जकाँ नै कऽ पाबि‍ रहल छलाह, तेकर कारण छल दुनू गोटे नव छथि‍ (कार्यक्रमक भारक खि‍यालसँ) मुदा जे जि‍ज्ञासा करैक ललक आ उत्‍साह छन्‍हि‍, जँ सही दि‍शामे बढ़ाबथि‍ तँ जरूर कि‍छु कऽ देखौता। तइ लेल दुनू गोटेकेँ धन्‍यवाद दैत छि‍यनि‍। वि‍वेका बाबूक ई गुण स्‍पष्‍ट देखाएल जे स्‍पष्‍टवादी छथि‍। इमानदारीक अनेको कारणमे स्‍पष्‍ट बाजब सेहो एकटा कारण होइत छैक। सभसँ अंति‍म दृश्य आरो रोचक अछि‍। दस बजैत रहए। कतारबंदी भोजन शुरू भेल। धड़फड़ाएल रहबे करी, जा कऽ पाँति‍मे लगि‍ गेलौं। पाँति‍ नमहर, तैयो पान-सात मि‍नट घुसुकि‍ कऽ कि‍छु आगू बढ़लौं। तीनू गोटे ( हम, आनन्‍दजी आ अखि‍लेस) एके ठाम रही। तही बीच धड़फराएल घुमैत चुन्नूजी पहुँचलाह। देखि‍ते पाँति‍सँ नि‍कालि‍ कुर्सीपर बैसा देलनि‍ आ कहलनि‍ जे नेने अबै छी। गेला तँ धड़फड़ाएले मुदा गरे ने अँटनि‍। दोसर ठाम गरे ने भेटनि‍। हमर मन छनगल जाए जे बस छूटि‍ जाएत। नहि‍ये खाएब तँ कि‍ हेतै, गाड़ी-बसमे अधपेट्टे चलब नीक होइ छै। हुअए जे चुपे-चाप उठि‍ कऽ वि‍दा भऽ जाइ। फेर हुअए जे नाँहक हंगामा ठाढ़ भऽ जेतैक जे दुनू गोटे बीचेमे सँ हेरा गेला। वि‍चार ठमकि‍ गेल। मन पड़ि‍ गेल, बरि‍आती। अपेछि‍त बेटाक बि‍आहमे बरि‍आती गेल रही। ओहन बरि‍आती जि‍नगीक पहि‍ल छल। खाइले बैसलौं, नीक-नीक वि‍न्‍यास बनल रहै। शुरूहेमे भरि‍ पेट चढ़ा देलि‍ऐ। चढ़ौलाक बाद चारू कात चकोना हुअए लगलौं जे कि‍यो एको गोटे उठताह तखन ने उठब। से कि‍म्‍हरो देखबे ने करि‍ऐ। गर-फेरि‍-फेरि‍ बैसए लगलौं। आसन नमहर तँए गर लगा सुति‍यो सकै छी। मुदा जखने सूतब कि‍ अनेरे हल्‍ला हेतै जे एक गोटे खाइते-खाइते ओंघरा गेलाह। अपनेपर खौंझ उठए जे अनेरे एते कि‍अए खेलौं। मुदा करि‍तौं की। चारि‍ घंटा खाइमे बरि‍आती लगौलनि‍। अधमौगति‍ भऽ गेल। हुअए जे ऐसँ नीक जहले जे भुखलो तँ लोक आेंघरा-ओंघरा सुतैए। एतबे नै ऐसँ आगू भेल जे खाइकाल तेहेन गप-सपक ठाहाका चलै जे हुअए कहीं पेटक गुदगुदीक संग खेलहो ने नि‍कलए लगए। कहुना-कहुना कऽ अपनाकेँ दाबि‍-दुबि‍ पार लगेलौं। हाथे धोइकाल ओही भि‍जलाहा हाथे कान पकड़ि‍ सप्पत खेलौं जे एहेन बरि‍आती नै जाएब।
कुल मि‍ला कऽ समारोह प्रशंसनीय रहल। अगि‍ला साल आरो बेसी नीक होइ, ई शुभकामना। देखैक हकार भेटए, तेकर प्रतीक्षा रहत।     
     
               
   

No comments:

Post a Comment