Saturday, November 29, 2008

जितेन्द्र झा- जनकपुर-अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली परिषद

जितेन्द्र झा- जनकपुर
अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली परिषद अपन बिभिन्न माग सहित भारतक राजधानी नयां दिल्लीस्थित जन्तर मन्तरमे धर्ना देलक अछि । सोमदिन देल गेल एहि धर्नामे भारतक विभिन्न स्थानसं आएल मैथिल आ संघ संस्थाक प्रतिनिधि सहभागी रहथि । जन्तर मन्तरमे भेल एहि धर्नामे मिथिला क्षेत्रक विकासक लेल अलग मिथिला राज्य बनाओल जाए से माग कएल गेल । अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली परिषद एहि अवसरपर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिलके ज्ञापन पत्र सेहो बुझौलक । ज्ञापन पत्र बुझेनिहार प्रतिनिधि मण्डलमे डा भुवने•ार प्रसाद गुरमैता, डा रबिन्द्र झा, डा धनाकर ठाकुर,डा कमलाकान्त झा, चुनचुन मिश्र, भवेश नन्दनसहितके सहभागिता छल । परिषदक धर्नामे दिल्लीमे रहल विभिन्न राजनीतिक दलसं सम्बद्ध नेतालोकनि सेहो सहभागी रहथि। परिषदक नेपालक पदाधिकारी आ कार्यकर्ता सेहो धर्नामे सामेल रहथि । धर्नामे भीख़ नंहि अधिकार चाही हमरा मिथिला राज्य चाही से नारा लगाओल गेल रहए । परिषद मैथिली भाषाक आधारपर राज्य बनएबाक माग करैत आएल अछि ।
कोना बचाएब संस्कृतिक विरासत ?

मिथिलाक परम्परा आ धरोहरिके मौलिक विशिष्टता गुमिरहल कहैत विज्ञसभ चिन्ता ब्यक्त कएलनि अछि । संस्कृतिक अपन अलग स्थान बांचल रहए से डा गंगेश गुन्जक कहब छन्हि । मैथिली संस्कृतिक विभिन्न पक्षपर नयां दिल्लीमे २५ दिसम्बरक' सम्पन्न गोष्ठीमे बजैत गुन्जन मैथिली संस्कृतिक संरक्षणपर जोड देने रहथि ।

नाटककार महेन्द्र मलंगिया मिथिलाक लोकसंस्कृतिमे रहल टाना टापर, घरेलु उपचार, शकुन सहितके विषयके फ़रिछियाक' प्रस्तुत कएने रहथि । मैथिली संस्कृतिक संरक्षणलेल एहिमे समाहित गुणके उजागर करब आवश्यक रहल मलंगिया कहलनि । मिथिलामे सातो दिन सात तरहक वस्तु खाक' यात्रा गेलासं शुभ यात्रा हएबाक चलन आ एहने चलनमे रहल वैज्ञानिकता दिश ध्यान जाएब आवश्यक रहल ओ कहलनि ।

साहित्यकार देव शंकर नविन मैथिली भाषा संस्कृतिके मुल भावना विपरित होबए बला काजके अपमानित कएल जाए से कहलनि । मैथिलीक मौलिकताके लतियाक' कएल जाए बला कोनो काजके बहिष्कार कएल जाए नविनक विचार छन्हि । गायक, साहित्यकार सहित सभके मैथिली गीत संगीत, भाषा संस्कृतिके प्रतिकुल असर होब बला काज नई करबालेल ओ आग्रह कएलनि । नक्कल आ स्तरहीन प्रस्तुतिके अपमानित करबालेल नविन आग्रह कएलनि ।

मैथिली भोजपुरी एकेडमीक अध्यक्ष अनिल मिश्र मिथिलाक सांस्कृतिक विरासतके विकासक सम्भावना बढाओल जाए से कहलनि । साहित्य, लोक संस्कृतिके समॄद्ध कएल जाए से कहैत ओ मैथिली भोजपुरी एकेडमी एहिदिशसं एहिलेल काज हएबाक प्रतिबद्धता ब्यक्त कएलनि । मिथिला संस्कृति लेल कएल जाएबला काज आपसमे बांटि लेल जाए से मिश्रक सुझाव छन्हि । संस्कृतिक विरासतके रेखाङकित करैत रोड मैप बनएबापर ओ जोड देलनि । संचारमाध्यममे मैथिलीके स्थान भेटए ताहिलेल प्रयास कएल जएबाक ओ जनतब देलनि । दिल्ली प्रसारित सरकार दुरदर्शनमें मैथिलीक स्थानलेल दिल्लीक मुख्यमन्त्री शीला दीक्षितके ज्ञापन पेश कएल जएबाक आश्र्वासन देलनि ।
सुभाषचन्द्र यादव एकमात्र वक्ता रहथि जे अपन विचार पहिनहिये सँ लिखि क' देने रहथि से एतए प्रस्तुत अछि।-
मैथिली लोक-कथा
सुभष चंद्र यादव
मैथिली मे लोक-कथा पर बड़ कम काज भेल अछि। लोक-कथाक किहुए संकलन उपलब्ध अछि आ से स्मृतिक आधार पर लिपिबद्ध् कयल गेल अछि, फील्ड वर्कक आधार पर नहि । लोक-साहित्यक कोनो इकाइ हो, ओकर एक सँ अधिक रूप विद्यमान रहैत छैक , जे फील्ड वर्क कयले सँ प्राप्त भऽ सकैत अछि । स्मृति मे ओकर मात्र एकटा रूप रहैत छैक, जकरा सर्वोत्तम रूप मानि लेब आनक भऽ सकैत अछि । लोक-कथा क जतेक संकलन अखनधरि भेल अछि, से अपूर्ण अछि ।
मैथिली मे लोक-गीत, लोक – गाथा आ लोक – देवता क लेल तऽ किछु फील्ड वर्क कयलो गेल, लोक – कथाक लेल भरिसक्के कोनो फील्ड वर्क भेल अछि । आब जखन एक युश्त सँ दोसर पुश्त मे लोक – साहित्यक अंतरण दिनोदिन संकटग्रस्त भेल जा रहल अछि, तैं एकर संश्क्षण जरूरी अछि ।
लोक – साहित्यक संश्क्षण मात्र एहि लेल जरूरी नहि अछि जे ओ अतीतक एकटा वस्तु थिक; ओ अपन समयक विमर्श आ आत्मवाचन सेहो होइत अछि आ एकटा प्रतिमान उपस्थित करैत अछि । ओकर रूपक, प्रतीक , भाव आ शिल्पक उपयोग लिखित साहित्य मे हम सभ अपन-अपन ढंग सँ करैत रहैत छी । तहिना लिखित साहित्य सेहो लोक-साहित्य केँ प्रभावित करैत रहैत अछि ।
लोक-साहित्य संबंधी अध्ययन मुख्यत: स्थान आ कालक निर्धारण पर केन्द्रित रहल अछि । ओकर कार्य, अभिप्राय आ अर्थ सँ संबंधित प्रश्न अखनो उपेक्षित अछि । मैथिली मे तऽ लोक-साहित्य संबंधी अध्ययन अखन ठीक सँ शुरुओ नहि भेल अछि । जे पोथी अछि, ताहि मे लोक-साहित्यक परिभाषा आ सूची उअपस्थित कयल गेल अछि ।
लोक-कथाक उपलब्ध संकलन सभ मे ओहन कथाक संख्या बेसी अछि जे देशांतरणक कारणेँ मैथिली मे आयल अछि। मैथिलीक अपन लोक – कथा, जकरा खाँटी मैथिल कहि सकैत छिऐक , से कम आयल अछि ।
रामलोचन ठाकुर द्वारा संकलित मैथिली लोक-कथा, जकरा हम अपन एहि अत्यंत संक्षिप्त अध्ययनक आधार बनौने छी, ताहू मे खाँटी मैथिली लोक-कथा कम्मे अछि । लोक-कथाक अभिप्राय आ अर्थ संबंधी अपन बात कहबाक लेल जाहि दूटा कथाक चयन हम कयने छी, से अछि — ‘एकटा बुढ़िया रहय ‘ आ ‘ एकटा चिनता खेलिऐ रओ भैया ‘।
एहि दुनू कथाक वातावरण विशुद्ध मैथिल अछि । दुनू क विमर्श , आत्मवाचन आ प्रतिमान मैथिल-मानसक अनुरूप अछि । दुनू कथाक विमर्श न्याय पर केंद्रित अछि ।
पहिल कथाक बुढ़िया दालिक एकटा फाँक लेल बरही, राजा , रानी , आगि, पानि आ हाथी केँ न्याय पयबाक खातिर ललकारैत अछि, किएक तऽ खुट्टी ओकर दालि नुका लेने छैक आ दऽ नहि रहल छैक ।
कथाक विमर्श पद्यात्मक रूप मे एना व्यक्त भेल अछि – हाथी – हाथी – हाथी ! समुद्र सोखू समुद्र । समुद्र ने अगिन मिझाबय , अगिन । अगिन ने रानी डेराबय , रानी । रानी ने राजा बुझाबथि , राजा । राजा ने बरही डाँड़थि , बरही । बरही ने खुट्टी चीड़य , खुट्टी। खुट्टी ने दालि डिअय , दालि । की खाउ , की पीबू , की लऽ परदेस जाउ।
जाइत अछि । चुट्टी तैयार भऽ जाइत छैक । फेर तऽ चुट्टीक डरँ हाथी , हाथीक डरँ समुद्र , समुद्रक डरँ आगि , आगिक डरँ रानी , रानीक डरँ राजा , राजाक डरँ बरही न्याय करक लेल तैयार भऽ जाइत छैक आ खुट्टी बुढ़िया केँ दालि दऽ दैत छैक ।
ई कथा रामलोचन अपन माय सँ सुनन छलाह । ओ कहलनि जे माय वला वृत्तांत मे बुढ़िया हाथिए लग सँ घूरि जाइत छैक । लिपिबद्ध करैत काल ओ एकर पुनर्सृजन कयलनि । हुनक लिपिबद्ध कयल वृत्तांत मे बुढ़िया हाथियो सँ आगू चुट्टी धरि जाइत अछि । बुढ़िया केँ चुट्टी धरि लऽ गेनाइ कथाक व्यंजना मे विस्तार अनैत छैक । लेकिन लोक – कथाक एहन प्रलेखन कतेक उचित अछि ?
एहि कथाक आत्म वाचन बुढ़ियाक माध्यमे प्रकट भेल अछि । अपन स्थितिक प्रति बुढ़िया जे प्रतिक्रिया करैत अछि , सएह एहि कथाक आत्म – वाचन थिक । एकटा दालिक बल पर बुढ़िया परदेस जेबाक नेयार करैत अछि । राजा- रानीक सेर भरि दालि देबाक प्रस्ताव केँ तिरस्कृत करैत अछि । समुद्र सँ हीरा – मोतीक दान नहि लैत अछि । दालि पर अपन अधिकार लेल लड़ैत रहैत अछि । तात्पर्य ई जे सपना देखबाक चाही । भीख आ दयाक पात्र नहि हेबाक चाही । दान लेब नीक नहि । स्वाभिमानी हेबाक चाही आ अपन हक लेल लड़बाक चाही ।
कथा ई प्रतिमान उपस्थित करैत अछि जे न्याय संघर्षे कयला सँ भेटैत छैक ।
’एकटा चिनमा खेलिऐ रओ भइया ’ न्यायक विवेकशीलता पर विमर्श करैत अछि । मुनिया (चिड़ै) केँ एकटा चीन खेबाक अपराध मे प्राणदंड भेटै वला छैक । ई विमर्श पद्यात्मक रूपमे चलैत छैक , जाहि मे ओकर दारुण अवस्था सेहो चित्रित भेल छैक ।
बरदवला भाइ !
परबत पहाड़ पर खोता रे खोंता
भुखै मरै छै बच्चा
एकटा चिनमा खेलिऐ रओ भइया
तइलएपकड़ने जाइए ।
फेर घोड़ावला अबै छै , हाथीवला अबै छै , खुद्दी-वला अबै छै । मुनिया सभ सँ मिनती करैत अछि ।ओहो सभ खेतवला केँ पोल्हबैत छैक;=छोड़बाक बदला मे बरद , घोड़ा , हाथी देबऽ लेल तैयार छैक ,लेकिन खेतवला टस सँ मस नहि होइत अछि । जखन भूखे-प्यासे जान जाय लगै छैक , तखन खुद्दीक बदला मे मुनिया केँ छोड़ि दैत अछि ।
मुनिया करुणा आ मानवीयताक आवाहन करैत अछि । मनुस्मृति मे कहल गेल छैक जे चुपचाप ककरो फूल तोड़ि लेब चोरि नहि होइत छैक ; तहिना ककरो एकटा चीन खा लेब कोनो अपराध नहि भेल । इएह कथाक आत्मवाचन थिक ।
कथा ई प्रतिमान उप़स्थित करैत अछि जे सभक जीवक मोल बराबर होइत छैक । असहाय आ निर्धनो केँ जीबाक अधिकार छैक । एहि संसार मे ओकरो लेल एकटा स्पेस (जगह) हेबाक चाही।

श्याम भद्र मैथिली भाषाक अपन संचारमाध्यम हुअए से माग कएलनि । एहिलेल संगठित प्रयास करबालेल ओ कार्यक्रममे आग्रह कएलनि । बिहारमे अतिरिक्त भाषाके श्रेणीमे मैथिलीके राखल गेल कहैत भद्र रोष प्रकट कएलनि । मातृभाषाक श्रेणीमे मैथिली नई भेलासं विद्यार्थी मैथिली नई पढि रहल हुनक दाबी छन्हि ।

रंगकर्मी प्रमिला झा मेमोरियल ट्रष्ट घोंघौरक ट्रष्टी श्रीनारायण झा मैथिलमे प्रतिबद्धताक कमी हएबाक विचार व्यक्त कएलनि । हिन्दीमे लिखनिहार मैथिल स्रष्टा अपन मैथिली भाषामे किया नईं लिखैया नारायणक प्रतिप्रश्न रहनि । मैथिलीके समांग आ समान दुनु रहैत स्थिति सन्तोषजनक नइ रहल ओ कहलनि । अष्ट्‌म अनुसूचिमे मैथिली आबि गेलाक बाद आब सहज रुपे भाषा संस्कृतिक काज आगु बढए नारायण कहलनि ।

गोष्ठीमे मैथिलीलेल काज कएनिहार संस्थाक वर्तमान भूत भविष्यपर सेहो वक्तासभ बाजल रहथि । मैथिलीमे रंगकर्मक विकासके बात होइतो एहिमे काज कएनिहारके प्रोत्साहनलेल कोनो पक्षसं ध्यान नई देल गेल कहल गेल । प्रमिला झा नाटयवृति शुरु भेलाक बादो एक्कोटा नव पुरस्कार/वृत्तिक शुरुवात नई भ' सकल मैलोरंगक प्रकाश झा कहलनि । तहिना झा एकगोट मैथिल दोसर मैथिल पर विश्र्वास करए त सभ तरहक समस्या समाधान हएत कहलनि । मैथिलबीचके आपसी विश्र्वासके ओ विकासक मूलमन्त्रके संज्ञा देलनि ।

अन्तर्राष्ट्रिय मैथिली परिषदक कृपानन्द झा सरकारी स्तरपर मैथिलीके संरक्षण नई भेट रहल कहैत रोष प्रकट कएलनि । मैथिलीक संरक्षण लेल मिथिला राज्य स्थापना हुअए - झा कहलनि । मैथिली भाषा संस्कृतिदिश लागल संस्था आर्थिक संकटसं ग्रस्त रहल कहैत ओ गोष्ठीमे सहभागीके ध्यानाकर्षण करौने रहथि ।

विद्यापति संगीत संरक्षणलेल योजनाबद्ध काज हएब आवश्यक रहल गायिका अंशुमालाक विचार छन्हि । दिल्ली युनिवर्सिटीमे संगीतसं एम फ़िल क' रहल अंशुमाला विद्यापति संगीतले स्थापित करबालेल व्याकरणक आवश्यकता पर जोड देलनि । मैथिलीमे लोकसंगीत आ युवाबीचके दुरी बढब चिन्ताक विषय रहल ओ कहलनि । 'लोकसंगीत नई बुझनिहार लडकीसं वियाह नई करब एहन चलन हएबाक चाही' मैथिली संस्कृति संरक्षणलेल अंशुमाला सुझाव दैत बजलिह ।

गोष्ठीमे सहभागी रंगकर्मी अपन कथा ब्यथा सेहो सुनौने रहथि । दिल्लीमे रहिक' रंगकर्म क' संघर्षरत कलाकार बाध्यताबश गुणस्तरहीन काज क' रहल मैलोरंगक दीपक झा कहलनि । एहिद्वारे कलाकारके अपमानित करबाक काज कियो नई करए दिपकके आग्रह छन्हि ।

संस्कृति बचएबाक अभियान

मिथिलाक सांस्कृतिक विरासतके संरक्षण सम्बर्द्धनक लेल योजनाबद्ध काज करबा पर जोड देल गेल अछि । मिथिलाक सांस्कृतिक विरासत : संरक्षण आ विकासक सम्भावना विषयपर बजैत वक्तासभ एहन विचार रखलनि अछि ।
मैथिली लोक रंग दिल्लीक आयोजनमे २५ दिसम्बरक' सम्पन्न मैथिलोत्सवमे बजैत वक्तासभ मैथिली संस्कृति रक्षाक लेल ठोस कार्ययोजना बनाओल जाए से कहलनि । मैथिलोत्वसमे भेल संगोष्ठीमे लोक नाटय, खानपान, हस्तशिल्प, लोक नॄत्य, लोक विश्र्वास, पुरातात्विक संरक्षण, चित्रकला, पाण्डूलिपि, पावनि तिहार, देवी देवता, रीति रिवाज, मठ-मन्दिर, पहिरन-ओढन, लोकसाहित्य, लोकवाद्य, शिष्टाचार,मेला सहितक विषयपर वक्तासभ बाजल रहथि ।

गोष्ठीमे कथाकार अशोक, कमलमोहन चुन्नु, नाटककार महेन्द्र मलंगिया, मोहन भारद्वाज, सीयाराम झा सरस, सुभाष चन्द्र यादव, गंगेश गुन्जन, मैथिली भोजपुरी एकेडमीक उपाध्यक्ष प्रो अनिल मिश्र, डा अनिल चौधरी, देवशंकर नविन सहित वक्तासभ मिथिलाक सांस्कृतिक विरासतक विभिन्न विषयपर बाजल रहथि ।
भारतीय भाषा संस्थान मैसुरक सहयोगमे मैलोरंग नयां दिल्लीक राष्ट्रिय नाटय विद्यालयमे कार्यक्रम आयोजन कएने छल।

मैथिलोत्वसमे मैलोरंग रंगकर्मी प्रमीला झा नाटयवृत्ति सेहो वितरण कएलक । एहिबेरक नाटयवृत्तिक पओनिहारिमे पहिल मधुबनीक मधुमिता श्रीवास्तव, द्वितीय कोलकाताक वन्दना ठाकुर आ तृतीय दिल्लीक नेहा वर्मा छथि।
रंगकर्मी प्रमीला झा नाटयवृत्तिक स्थापना प्रथम महिला बाल नाटय निर्देशक प्रमीला झाक स्मृतिमे भेल अछि । प्रमीलाक स्मृतिमे स्थापित प्रमीला मेमोरियल ट्रष्ट,घोंघौर एहि नाटयवृतिक स्थापना कएने अछि ।

मैथिलोत्वसमे संगोष्ठी, वृति वितरणक बाद सांगीतिक कार्यक्रम आयोजन कएल गेल छल । सांगीतिक कार्यक्रममे सुन्दरम, घनश्याम, दिवाकर, प्रभाकर, गुन्जन, अंशुमाला, कल्पना मिश्रा, राखी दास,रीतेस सहितक कलाकार दर्शकके मनोरन्जन करौने रहथि । (साभार विदेह www.videha.co.in)

भैयारी - जगदीश प्रसाद मण्डल



मैट्रिक परीक्षा दऽ दीनानाथ आगू पढ़ैक आशासँ, संगियो-साथी आ शिक्षको ऐठाम जा-जा विचार-विमर्श करैत। बिनु पढ़ल-लिखल परिवारक रहने, कॅालेजक पढ़ाइक तौर-तरीका नहि बुझैत। ओना ओ हाइ स्कूलमे थर्ड करैत मुदा क्लासमे सभसँ नीक विद्यार्थी। सभ विषए नीक जेकाँ परीक्षामे लिखने, तेँ फेल करैक चिन्ता मनमे एक्को मिसिया रहबे ने करै।
मूर्ख रहितो माए-बाप बेटाकेँ पढ़बैमे जी-जान अरोपने। ओना घरक दशा नीक नहि मुदा पढ़बैक लीलसा दुनूक हृदएमे कूट-कूट कऽ भरल। जखन दीनानाथ मैट्रिक परीक्षाक ि‍दअए दरभंगा सेन्टर जाइक तैयारी करए लगल, तखन माए अपन नाकक छक, जे डेढ़ आना-छअ पाइ भरि रहए, बेचि कऽ देलकै। अगर जँ माए-बापक मन बेटा-बेटीकेँ पढ़बैक रहत आ थोड़बो मेहनतिसँ ओ पढ़त तँ लाख समस्योक बावजूद ओ पढ़बे करत। तेहिमे सँ एक दीनानाथो। काल्हि एगारह बजिया गाड़ीसँ परीक्षा दिअए जाएत तेँ आइये साँझमे पिता रामखेलावन पत्नी सुमित्राकेँ कहलक- ‘काल्हि एगारह बजे बौआ गाड़ी पकड़त तेँ अखने ककरोसँ आध सेर दूध आनि कऽ पौड़ि दिऔ। दहीक जतरा नीक होइ छै।’
माइयोक मनमे जँचलै। आध सेर दूध पौड़ैक विचार माए केलक आ मने-मन ब्रह्म-बाबाकेँ कबुला केलक जे अहाँ हमरा बेटाकेँ पास करा देब तँ कुमारि भोजन कराएब। संगे हाँइ-हाँइ कऽ चिकनी माटि लोढ़ीसँ फोड़ि अछिनजल पानिमे सानि, दिआरी बना, साफ पुरना कपड़ाक टेमी बना, दिआरीमे करु तेल दऽ साँझ दिअए ब्रह्म स्थान बिदा भेलि। रस्तामे मने-मन ब्रह्म-बाबाकेँ कहैत जे हे ब्रह्मबाबा कहुना हमरा बेटाकेँ पास कऽ दिहक। तोरेपर असरा अछि।
स्कूलमे सभसँ नीक विद्यार्थी दीनानाथ, मुदा नीक रहितहुँ क्लासमे थर्ड करैत। एकर कारण रहए जे हाइ स्कूल सेेक्रेट्रीक मातहत चलैत। जाहिसँ स्कूलक सर्वेसर्वा सेक्रेट्रिये। इज्जतोक दुआरे आ फीसोक चलैत स्कूलमे फस्ट सेक्रेट्रिएक लगुआ-भगुआ करैत। जँ कहीं सेक्रेट्रीक समांग नञि रहैत तखन हेडमास्टरक समांग फस्ट करैत। मुदा एहि बैचमे सेक्रेट्रियोक सवांग आ हेडमास्टरोक सवांग। तेँ सेक्रेट्रीक समांग फस्ट करैत आ हेडमास्टरक समांग सेकेण्ड आ दीनानाथ थर्ड। जे फस्ट करैत ओकरा पूरा फीस आ सेकेण्ड-थर्डकेँ आधा फीस माफ होइत। ओना आन शिक्षक सभकेँ एहि बातक क्षोभ होइन मुदा कैयो की सकैत छथि। किएक तँ आन शिक्षक सबहक गति कोठीक नोकरसँ नीक नञि रहनि, सात घंटी पढ़ौनाइ आ डेढ़ सए रुपैया महीना पौनाइ मात्र रहनि। मुदा तैयो ओ सभ इमानदारीसँ काज करैत। असेसमेंटक चलनि सेहो रहए। बीस नम्बरक हिसाबसँ सभ विषएक असेसमेंट होइत। सिर्फ समाजे-अध्ययनक हिसाब अलग रहए। असेसमेंटक नम्बर परीक्षाक नम्बरमे जोड़ि कऽ रिजल्ट होइत। जे असेसमेंटक नम्बर सेक्रेट्री आ हेडमास्टरक हाथक खेल रहए। परीक्षाक तीन मासक उपरान्त रिजल्ट निकलै।
मास दिन परीक्षाक बीति गेल। दू मास रिजल्ट निकलैमे बाकी। माघक अंतिम समए। सरस्वती पूजा पाँच दिन पहिने भऽ गेल। शीतलहरी चलैत। जाहिसँ मिथिलांचल साइबेरिया बनि गेल। दिन-राति एक्के रंग। बरखाक बून्न जेकाँ ओस टप-टप खसैत। सुरुजक दरसन दू माससँ कहियो ने भेल। दिन-राति कखन होए ओ लोक अन्हारेसँ बुझैत। सभ अपन-अपन जान बँचवै पाछू लागल।
  खेती-पथारीक काज सबहक बन्न। रब्बी-राइ ठंढ़सँ कठुआएल। बढ़बे ने करैत। बोराक झोली ओढ़ोलाक बादो माल-जाल थर-थर कपैत। जहिना महीसक बच्चा तहिना गाइयक बच्चा कठुआ-कठुआ मरैत। बकरीक तँ फौतिये आबि गेल। गाछ सभ परहक घोरन सुड्डाह भऽ गेल। चिड़ै-चुनमुनीसँ लऽ कऽ नढ़िया, खिखिर, साँप मरि-मरि जहाँ-तहाँ महकैत।
माघक पूर्णिमासँ दू दिन पहिने रामखेलावनकेँ लकबा लपकि लेलक। सौँसे देहक अधा भाग सुन्न भऽ गेलै। क्रियाहीन। बिठुओ कटलापर किछु नहि बुझैत। चिड़ैक लोल जेकाँ टेढ़ मुँह भऽ गेलै। ओना उमेरो कोनो बेसी नहि, चालीस बर्खसँ भीतरे। रौतुका समए। शीतलहरीक चलैत अन्हारो बेसी। ओना इजोरिया पख रहए। मुदा भादबक अन्हार जेकाँ अन्हार। पिताक दशा देखि दीनानाथक मन घबड़ा गेलै। तहिना माइयोक। मुदा तैयो मनकेँ थीर करैत दीनानाथ डाॅक्टर ऐठाम विदा भेल। किछु दूर गेलापर पएर तेना कठुआ गेलै जे चलिये ने होइ। मनमे भेलै जे बाबूसँ पहिने अपने मरि जाएब। घरोपर घुरि कऽ नञि गेल हएत। बीच पाँतरमे दीनानाथ असकरे। दुनू आँखिसँ दहो-बहो नोर खसए लगलै। मनमे एलै, आब की करब? मुदा फेर मनमे एलै जे हाथसँ ठेहुन रगड़लापर पएर हल्लुक हएत। सएह करए लगल। जाँघ हल्लुक भेलै। हल्लुक होइते डाॅक्टर ऐठाम चलल।
डाॅक्टर ऐठाम पहुँचिते रोगीक भीड़ देखि दीनानाथ फेर घबड़ा गेल। मनमे एलै, जे सौँसे दुनियाँक रोगी एतै जमा भऽ गेल अछि। असकरे डाॅक्टर सहाएब छथि आ दूटा कम्पाउण्डर छनि, कोना सभकेँ देखथिन। मुदा रोगो एकरंगाहे, तेँ बेसी मत्था-पच्ची डाॅक्टरकेँ करै नै पड़नि। धाँइ-धाँइ इलाज करैत जाथि। मुदा मेले जेकाँ रोगी एबो करै। थोडे़ काल ठाढ़ भऽ कऽ देखि दीनानाथ सिरसिराइते डाॅक्टर लगमे जा बाजल- ‘डाॅक्टर सहाएब, कनी हमरा अइठीन चलियौ। हमर बाबू एते बीमार भऽ गेल छथि जे अबै जोकर नञि छथि।’
  दीनानाथक बात सुनि डाॅक्टर कहलखिन- ‘बौआ, ऐठाम तँ देखिते छी, कोना एते रोगी छोड़ि कऽ जाएब? जे ऐठाम पहुँचि गेल अछि ओकरा छोड़िकेँ जाएब उचित हएत।’
  ‘समए रहैत जँ हमरा ऐठाम नै जाएब तँ बाबू मरि जेताह।’
  ‘अहाँ घबड़ाउ नै तत्खनात दूटा गोली दै छी। हुनका खुआ देबनि आ एतै नेने अबिअनु।’
दीनानाथक मनमे पिताक मृत्यु नचए लगल। मन मसोसि दुनू गोलि लऽ बिदा भेल। मुदा घर दिशि बढ़ैक डेगे ने उठए। एक तँ ठंढ़, दोसर मनमे निराशा आ तेसर शीतलहरीसँ रातिओ अन्हार। मुदा तैयो जिबठ बान्हि कऽ बिदा भेल। कच्ची रस्ता रहने जहाँ-तहाँ मेगर आ तइ परसँ कते ठाम टुटलो। जइसँ कए बेर खसबो कएल मुदा तैयो हूबा कऽ उठि-उठि आगू बढ़िते रहल। घरपर अबिते दुनू गोली पिताकेँ खुऔलक। तहि बीच माए गोइठाक घूर कऽ सौँसे देह सेदैत। अपना खाट नहि। एते रातिमे ककरा कहतै। मुदा पितिऔत भाइक खाट मन पड़लै? मन परिते पितिऔत भाय लग जा कहलक- ‘भैया खाटो दिअ आ संगे चलबो करु। एहेन समएमे अनका ककरा कहबै। के जाएत ?’
  दीनानाथक बात सुनिते पितिऔत भाय धड़फड़ा कऽ उठि खाट नेनहि बढ़ल। खाटपर एक पाँज पुआर बिछा सलगी बिछौलक। दुनू पाइसमे बरहा बान्हि खाट तैयार केलक। खाट तैयार होइते दुनू गोरे रामखेलावनकेँ उठा ओहिपर सुतौलक। बरहामे बाँस घोसिया दुनू गोरे कान्हपर उठा बिदा भेल। पाछु-पाछु सुमित्रो बिदा भेलि। थोड़े काल तँ दीनानाथ किछु नहि बुझलक मुदा थोड़े कालक बाद कन्हा भकभकाए लगलै। कान्ह परक छाल ओदरि गेलै। जइसँ बाँस कान्हपर रखले ने होए। लगले-लगले कान्ह बदलै लगल। मुदा जिबट बान्हि डाॅक्टर ऐठाम पहुँचि गेल।
  डाॅक्टर एहिठाम पहुँचते डाॅक्टर सहाएब देखलखिन। बीमारी देखारे रहए। धाँए-धाँए पाँचटा इन्जेक्शन लगा देलखिन। इन्जेक्शन लगा डाॅक्टर दीनानाथकेँ कहलखिन- ‘हिनका खाटेपर रहए दिअनु। बेसी चिन्ता नै करु। तखन तँ नमहर बीमारी पकड़नहि छनि। किछु दिन तँ लगबे करत।’
  रामखेलावनकेँ नीन आबि गेलै। खाटक निच्चाँमे तीनू गोटे -दीनानाथ, पितिऔत भाय आ सुमित्रा- बैसल। सुमित्रा मने-मन सोचैत जे समए-साल तेहने खराब भऽ गेल अछि जे बेटा-पुतोहू ककरा देखै छै। जाबे पति जीबैत रहै छै ताबे स्त्रीगण गिरथाइन बनल रहैत अछि। पुरुखकेँ परोछ होइतहि दुनियाँ अन्हार भऽ जाइ छैक। बिना पुरुखक स्त्रीगण ओहने भऽ जाइत अछि जेहने सुखाएल गाछ। कहलो गेल छै जे साँइक राज अप्पन राज, बेटा-पुतोहूक राज मुँहतक्की। मुदा की करब ? अपन कोन साध। ई तँ भगवानेक डाँग मारल छिअनि। हे माए भगवती, कहुना हिनका नीक बना दिअनु। जँ से नञि करबनि तँ पहिने हमरे लऽ चलू।
  दोसर दिन डाॅक्टर रामखेलावनकेँ देखि कहलखिन- ‘हिनका घरेपर लऽ जइअनु। ऐठामसँ नीक सेवा घरपर हेतनि। बीमारी आब आगू मुँहे नहि बढ़तनि मुदा इलाज बेसी दिन करबै पड़त। हमर कम्पाउण्डर सभ दिन जा-जा सुइयो देतनि आ देखबो करतनि। तै बीच जँ कोनो उपद्रव बुझि पड़त तँ अपनो आबि कऽ कहब।’
  कहि दूटा सुइया फेर डाॅक्टर सहाएब लगा देलखिन। दवाइक पुरजा बना देलखिन। एकटा सूइया आ तीन रंगक गोली सभ दिन दैले कहि देलखिन। गप-सप्‍प सभ कियो करिते छलाह आकि तहि बीच रामखेलावन पत्नीकेँ कहलक- ‘किछु खाइक मन होइए।’
  खाइक नाम सुनिते दीनानाथक मुँहसँ हँसी निकलल। लगले दोकानसँ दूध आ बिस्कुट आनि कऽ देलक। दूध-बिस्कुट खुआ दुनू भाँइ खाट उठा बिदा भेल।
  घरपर अबिते टोल-परोससँ लऽ कऽ गाम भरिक लोक देखए अाबए लगल। शीतलहरी रहबे करै मुदा तैयो लोक अबैक ढ़बाहि लगल। दू घंटा धरि लोक अबैत रहल। दीनानाथ माएकेँ कहलक- ‘माए, बड़ भूख लगल अछि। पहिने भानस कर। भुखे पेटमे बगहा लगैए।’
  दीनानाथक बात सुनि माए भानस करए बिदा भेलि। भूख तँ अपनो लागल मुदा कहती ककरा। बेर-बिपतिमे तँ एहिना होइते छैक। दीनानाथक बात पितिआइन सेहो सुनलक। बेचारी पितिआइन सोचलक जे सभ भुखाइल अछि। बेरो उनहि गेलै। आब जे भानस करए लगत तँ साँझे पड़ि जेतैक। तहूँमे सभ भुखे लहालोट होइए। से नञि तँ घरमे जे चूड़ा अछि ओ दऽ दै छिऐ जइसँ तत्खनात तँ काज चलि जेतै। सएह केलक।
  दीनानाथ आ सुमित्रा चूड़ा भिजा कऽ खाइते छल आकि माम -सुमित्राक भाए- आएल। भाएकेँ देखितहि सुमित्राक आँखिमे नोर आबि गेल। बिना पएर धोनहि भाए मकशूदन बहिनोइ लग पहुँचि देखए लगलथि। बहिनोइक दशा देखि दुनू आँखिसँ दहो-बहो नोर खसए लगलनि। नोर पोछि बेचारे सोचै लगलाह जे हम तँ सियान छी तहूमे पुरुख छी। जँ हमहीं कानबै तँ बहीन आ भागिनक दशा की हेतै। धैर्य बान्हि बहीनकेँ कहलक- ‘दाइ, ई दुनियाँ एहिना चलै छै। रोग-व्याधि सह-सह करैत अछि। जइ ठीन गर लगि जाइ छै पकड़ि लैत अछि। अपना सभ सेबे करबनि की ने मुदा.......। रुपैयाक लेल दवाइ-दारुमे कोताही नञि होनि। आइ भोरे पता लागल। पता लगिते दौगल एलहुँ। अपने गाए बिआएल अछि। काल्हि गाइयो आ जहाँ धरि हएत तहाँ धरि रुपैयो आनि कऽ दऽ देबौ। अखन हम जाइ छी, काल्हि आएब।’
  चारि दिनक बाद रामखेलावनक मुँह सोझ भऽ गेल। उठि कऽ ठाढ़ सेहो हुअए लगल। मुदा एकटा पाएर नीक नहि भेल। कनी-कनी झखाइते डेग उठबैत।
  सभ दिन भोरे आबिकेँ कम्पाउण्डर सूइयो दैत आ चला-चला देखबो करैत।
दू मासक बाद दीनानाथक रिजल्ट निकलल। फस्ट डिबीजन भेलै। नम्बरो नीक। छह सौ तीन नम्बर। हेडमास्टरक समांगकेँ सेहो फस्ट डिबीजन भेलै। मुदा नम्बर कम। पाँच सौ पैंतालिस आएल छलै। सेक्रेट्रीक समांगकेँ सेकेण्ड डिवीजन भेलै। मुदा नम्बर बढ़िया, पाँच सए चौंतीस। आगू पढै़क आशा दीनानाथ तोड़ि लेलक। किएक तँ घरमे कियो दोसर करताइत नहि। एक तँ पिताक बीमारी, दोसर घरक खर्च जुटौनाइ, तै परसँ छोट भाए अठमामे पढै़त। मुदा दीनानाथकेँ अपन पढ़ाइ छोडैैैैै़क ओते दुख नै भेलै जते परिवार चलौनाइसँ लऽ कऽ पिताक सेवा करैक सुख भेलै। जे बेटा बाप-माइक सेवा नै करत ओ बेटे की? अपन पढ़ैक आशा दीनानाथ छोट भाए कुसुमलालपर केन्द्रित कऽ देलक।
  अधिक काल मकशूदन बहीनेक ऐठाम रहए लगलाह। गाइयोक सेवा आ खेतो-पथारक काज सम्हारए लगलथि। अपना ऐठामसँ अन्नो-पानि आनि-आनि दिअ लगलखिन। अपना घर जेकाँ भार उठा लेलक। अपन दशा देखि रामखेलावन मकशूदनकेँ कहलखिन- ‘हम तँ अबाहे भऽ गेलौं। जाबे दाना-पानी लिखल अछि ताबे जीबै छी। मरैक कोनो ठीक नहि अछि तेँ अपना जीबैत कतौ दीनानाथक बिआह करा दियौ। बेटा-बेटीक बिआह-दुरागमन कराएब तँ माए-बापक धरम छिऐ। मुदा हम तँ कोनो काजक नै रहलौं। कमसँ कम देखियो तँ लेबै।’
  बहनोइक बात सुनि मकशूदन गुम्म भऽ गेला। मने-मन सोचए लगला जे समए-साल तेहने खराब भऽ गेल अछि जे नीक मनुख घरमे आनब कठिन भऽ गेल अछि। सभ खेल रुपैआपर चलि रहल अछि। मनुखक कोनो मोले ने रहलै। एहेन स्थितिमे नीक कन्याँ कोना भेटत ? तखन एकटा उपाए जरुर अछि जे रुपैया-पैसाक भाँजमे नहि पड़ि, गुनगर कन्याँक भाँज लगाबी। जइसँ घरक कल्याण हेतै। पाहुन जखन हमरा भार देलनि तँ हम दान-दहेज नहि आनि नीक कन्याँ आनि देबनि। बहिनोइकेँ कहलखिन- ‘पाहुन, रुपैआक पाछू लोक भसिआइत अछि। अगर अहाँ हमरा भार दै छी तँ हम रुपैआक भाँजमे नहि पड़ि नीक मनुक्ख आनि कऽ देब। से की विचार?’
  मकशूदनक बात सुनि बहीन धाँइ दऽ बाजलि- ‘भैया, रुपैया मनुक्खक हाथक मैल छिऐ। मुदा मनुक्ख तपस्यासँ बनैत अछि। तेँ हमरा नीक पुतोहू हुअए। रुपैआक भुख हमरा नै अछि।’
  बहीनक बात सुनि मकशूदनक मनमे सबुर भेलनि। बजलाह- ‘बहीन, जहिना तोरा सबहक पुतोहू तहिना तँ हमरो हएत की ने। के एहेन अभागल हएत जे अपन घर अबाद होइत नै देखत?’
अपन पढ़ाइक आशा तोड़ि दीनानाथ मने-मन अपना पएरपर ठाढ़ होइक बाट ताकए लगल। संकल्प केलक जे जहिना नीक रिजल्ट पबैक लेल विद्यार्थी जी-तोड़ मेहनति करैत अछि तहिना हमहूँ परिवारकेँ उठबैक लेल जमि कऽ मेहनति करब।
बिऔहती लड़कीक भाँज मकशूदन लगबए लगला। मुदा मनमे एलनि जे हम तँ वर पक्ष छी तेँ लड़की ऐठाम पहिने कोना जाएब ? कने काल गुनधुन करैत सोचलनि जे बेटा-बेटीक बिआह परिवारक पैघ काज होइत अछि तेँ एहेन-एहेन छोट-छीन बेवहारपर नजरि नहिये देब उचित हएत। तहूमे तँ हम लड़काक बाप नहि माम छी। पाहुन जखन भार देलनि तँ नहियो करब उचित नै हएत।
अपना गामक बगलेक गाममे लड़कीक भाँज मकशूदनकेँ लगलनि। परिवार तँ साधारणे मुदा लड़की काजुल। काजमे तपल। किएक तँ माए सदिखन ओकरा अपने संग राखि खेत-पथारक, घर-आंगनक काजसँ लऽ कऽ अरिपन लिखब, दुआरिमे पूरनि, फूलक गाछ, कदमक फुलाइल गाछक संग-संग पावनि-तिहारमे गीत गौनाइ सभ सिखबैत। बड़द कीनैक बहानासँ मकशूदन भेजा विदा भेला। पहिने दू-चारि गोटेक ऐठाम पहुँचि बड़दक दाम करैत कन्यागतक दुआरपर पहुँचला। कन्यागत दुआरपर नहि। मुदा लड़की बाल्टीमे पानि‍ भरि अंगना अबैत। लड़कीकेँ देखि मकशूदन पुछल- ‘बुच्ची, घरवारी कतए छथि?’
बाल्टी रखि सुशीला बाजलि- ‘बाड़ीमे मिरचाइ कमाइ छथि। अपने चौकीपर बैसियौ। बजौने अबै छिअनि।’
बाल्टी अंगनामे रखि सुशीला बाड़ीसँ पिताकेँ बजौने आएलि। पड़ोसी होइ दुआरे दुनू गोटे दुनू गोटेकेँ चेहरासँ चिन्हैत मुदा मुँहा-मुँही गप नै भेने अनचिन्हार। कन्यागत पूछल- ‘किनकासँ काज अछि?’
मुस्कुराइत मकशूदन- ‘अखन दुइये गोरे छी, तेँ मनक बात कहै छी। हमरो घर बीरपुरे छी। हमरा भागिन अछि। काल्हि खन पता चलल जे अहाँकेँ बिऔहती बच्चित‍या अछि तेँ ओइठाम कुटमैती कऽ लिअ।’
कुटुमैतीक नाम सुनि कन्यागत गुम्म भऽ गेलाह। कनी-काल गुम्म रहि कहलखिन- ‘हम गिरहस्त छी। सेहो नमहर नै छोट। अइठीनक गिरहतक की हालत अछि से अहाँ जनिते छी। तेँ अइबेर बेटीक बिआह नै सम्हरत।’
कन्यागतक सुखल मुँह देखि मकशूदन बजलाह- ‘मनमे जे दहेजक भूत पकड़ने अछि ओ हटा लिअ। अहाँकेँ जहिना सम्हरत तहिना बिआह निमाहि लेब।’
मकशूदनक विचार सुनि कन्यागतक मुँह हरिआए लगलनि। दरबज्जे परसँ बेटीकेँ सोर पाड़ि कहलक- ‘बुच्ची, सरबत बनौने आबह?’
बड़का लोटामे सरबत आ गिलास नेने सुशीला दरबज्जापर आबि चौकीपर रखए लागलि। तहि बीच पिता बजलाह- ‘बुच्ची, इहो कियो आन नहि छथि। पड़ोसिये छिआह। बीरपुरे रहै छथि। दहुन सरबत।’
दुनू गोटे सरबत पीलनि। सरबत पीबि पिता कहलखिन- ‘बुच्ची, चाहो बनौने आबह।’
सुशीला चाह बनबए गेलि। दरबज्जापर दुनू गोरे गप-सप्‍प करए लगलाह।
मकशूदन- ‘जेहने अहाँक कन्याँ छथि तेहने हमर भागिन। अजीब जोड़ा बिधाता बनाकेँ पठौने छथि। काल्हिये अहूँ लड़काकेँ देखि लियौ। संयोग नीक अछि तेँ शुभ काजमे विलंब नहि करु।’
मकशूदनक विचारसँ जते उत्साहित कन्यागतकेँ हेबाक चाहियनि तते नहि होइत। किएक तँ मनमे घुरिआइत जे कहुना छी तँ बेटीक बिआह छी। फुसलेने काज थोडे़ चलत। मुदा कन्याक माए दलानक भीतक भुरकी देने अढ़ेसँ गप्पो सुनैत आ दुनू गोटेकेँ देखबो करैत। मने-मन उत्साहितो होइत जे फँसल शिकार छोड़ब मुरुखपना छी। माए-बापक सराध आ बेटीक बिआहमे ककरा नै करजा होइ छै। जानिये कऽ तँ हम सभ गरीब छी। गरीबकेँ जनमसँ लऽ कऽ मरै धरि करजा रहिते छै। तैले एते सोचै विचारैक कोन काज। करजो हाथे बेटीक बिआह कइये लेब। फस्ट डिवीजनसँ मैट्रिक पास लड़का अछि। एहेन पढ़ल-लिखल लड़का थोड़े भेटत। कहबियो छै जे पढ़ल-लिखल लोक जँ हरो जोतत तँ मुरुखसँ सोझ सिराओर हेतै। आइक युगमे मूर्खो बड़क बाप पचास हजार रुपैया गनबैत अछि। खुशीसँ मनमे होइ जे छड़पि कऽ दरवज्जापर जा कहिअनि जे अगर अहाँ आइये बिआह करए चाही तँ हम तैयार छी। मुदा स्त्रीगणक मर्यादा रोकि दैत। तेँ बेचारी अढ़ेमे अहुरिया कटैत। मुदा पतिक मन बदलल। ओ मकशूदनकेँ कहलक- ‘देखू, हम भैयारीमे असकरे छी मुदा गृहिणी तँ छथि। हुनकासँ एक बेर पूछि लै छिअनि। किएक तँ हम घरक बाहरक काजक गारजन छी ने, घरक भीतरी काजक गारजन तँ वएह छथि। जँ कहीं बेटी बिआहक दुआरे किछु ओरिया कऽ रखने होथि तँ कइये लेब।’
कन्यागत भोला उठि कऽ आंगन गेला। आंगन पहुँचते पत्नी झपटि कऽ कहए लगलनि- ‘दुआरपर उपकरि कऽ लड़काबला एलाहेँ तेँ अहाँ अगधाइ छी। जखैन लड़काक भाँजमे घुमैत-घुमैत तरबा खियाएत आ बेमाइसँ खूनक टगहार चलत तखन बुझबै। तीन-तीन साल बेटीबला घुमैए तखन जा कऽ कतौ गर लगै छै। जा कऽ कहि दिअनु जे अखैन हमर हालत नीक नञि अछि मुदा जँ अहाँ तैयार छी तँ हमहूँ तैयार छी। वर देखैक दिन कौल्हुके दऽ दिअनु।
पत्नीक बातसँ उत्साहित भऽ भोला आबि कऽ बजलाह- ‘पत्नीक विचार सोलहो आना छनि। मुदा कहबे केलहुँ जे अखैन हमर हालत बढ़ियाँ नै अछि।’
मकशूदन- ‘काल्हि अहाँ लड़का देखि लियौ। जँ पसिन्न हएत तँ जहिना कुटमैती करए चाहब तहिना कऽ लेब। असलमे हमरा लोकक जरुरत अछि, नै की रुपैआ-पैसाक।’
आठे दिनक दिनमे बिआह भऽ गेल। भोलाक बहिनो आ साउसो नीक जेकाँ मदति केलकनि। अपना घरसँ सिर्फ एकटा सोनाक सुक्की -नअटा चौवन्नीक छड़- भोलाकेँ निकलल।’
पनरह दिनक उपरान्त दीनानाथ पुबरिया ओसारपर बैसि, पितासँ छीपि कऽ माएकेँ कहलक- ‘माए, घरक दशा जे अछि से तोहूँ देखते छीही। जेना घर चलैए तेना कते दिन चलत। साले-साल खेत बिकाइत। जइसँ किछुए सालक बाद सभ सठि जाएत। छोड़ैबला काज एक्कोटा नञि अछि। जहिना कुसुमलालक पढै़क खर्च, तहिना बाबूक दवाइ आ पथ्यक। मुदा आमदनी तँ कोनो दोसर अछि नहि। लऽ दऽ कऽ खेती। सेहो डेढ़ बीघा। तहूमे ने पानिक जोगार अपना अछि आ ने खेती करैक लूरि। एते दिन तँ बाबू कहुना-कहुना कऽ करैत छलाह, आब तँ सेहो नै हएत। हमहूँ जँ कतौ नोकरी करए जाएब सेहो नै बनत, किएक तँ बाबूक देखभाल सेहो करैक अछि। तखन तँ एक्केटा उपाए अछि जे घरेपर रहि आमदनीक कोनो काज ठाढ़ करी।’
  बेटाक बात सुनि माए गुम्म भऽ गेलीह। जइ घरमे आमदनी कम रहत आ खरचा बेसी हएत ओ घर कोना चलत। एते बात मनमे अबिते माइक आँखिसँ दहो-बहो नोर खसए लगलनि। आँचरसँ नोर पोछि बाजलि- ‘बौआ, हम तँ स्त्रीगणे छी। घर-अंगनामे रहैवाली। तूँ जँ बच्चो छह तँ पुरुखे छह। जखैन भगवाने बेपाट भेल छथुन तखन तँ किछु करै पड़तह।’
दुनू गोटेक -माइयो आ बेटोक- मुँह निच्चाँ मुँहे खसल। ने बेटाक नजरि माए दिशि उठैत आ ने माइक नजरि बेटा दिशि। जहिना मरुभूमिमे पियासल लोकक दशा होइत, तहिना दुनूक दशा होइत। केबाड़ लग ठाढ़ सुशीला दुनूकेँ देखैत। जोरसँ कियो अहि दुआरे नहि बजैत जे रोगाइल पिता वा पति जँ सुनताह तँ सोगसँ आरेा दुख बढ़ि जेतनि। केबाड़ लगसँ घुसकि ओसारपर आबि सुशीला बाजलि- ‘माए चिन्ता केलासँ दुख थोड़े भगतनि। दुखकेँ भगबैले किछु उपाय करै पड़तनि। छोटका बौआ बच्चे छथि, बाबू रोगाइले छथि मुदा अपना तीनू गोरे तँ खटैबला छी। खटलासँ सभ कुछ होइ छै।’
सुशीलाक बात सुनि सासु बजलीह- ‘कनियाँ, कहलिऐ तँ बड़बढ़िया मुदा ओहिना तँ पानि‍ नै डेंगाएब।’
सासुक बात सुनि पुतोहु बाजलि- ‘हमर एकटा पित्ती धानक कुट्टी करै छथि। जहिना अपन परिवार अछि तहूसँ लचड़ल हुनकर परिवार छलनि। तइ परसँ चारि-चारिटा बेटिओ छलनि। मुदा जइ दिनसँ धानक कुट्टी करए लगलथि तइ दिनसँ दिने-दुनियाँ घुरि गेलनि। चारु बेटिओक बिआह केलनि, बेटेाकेँ पढ़ौलनि। ईंटाक घरो बनौलनि आ पाँच बीघा खेतो कीनि लेलनि। अखन हुनकर हाथ पकडै़बला गाममे कियो नै अछि।’
पत्नीक बात सुनि दीनानाथक भक्क खुजल। भक्क खुजिते दीनानाथ खुशीसँ उछलि अंगनामे कूदल। दरबज्जापर आबि कागज-कलम निकालि हिसाब जौड़ए लगल। डेढ़ सेर धानमे एक सेर चाउर होइत अछि। ओना धानक बोरा अस्सिये किलोक होइत अछि जखैनकि चाउरक सौ किलोक। चारि सए रुपैये बोरा धान बिकैत अछि तँ पान सौ रुपैये क्वीन्टल भेल। एक क्वीन्टल धानक सड़सठि किलो चाउर भेल। दू-चारि किलो खुद्दियो हएत जेकर रोटी पका कऽ खाएब। एक किलो चाउरक दाम साढ़े दस रुपैयासँ एगारह रुपैया होइत। अइ हिसाबसँ एक क्वीन्टल धानक चाउरक लगभग सात सौ रुपैया भेल। पान सएक पूँजीसँ सात सएक आमदनी भेल। तइ परसँ तीस किलो गुड़ो। जेकर दाम साठि रुपैया भेल। खर्चमे खर्च सिर्फ जरना, कुटाइ आ गाड़ीक भाड़ा। बाकी सभ मेहनतिक फल भेल। अगर जँ एक बोराक कुट्टी सभ दिनक हिसाबसँ करब तँ पाँच हजारक महीना आमदनी जरुर हएत।
हिसाब जोड़ैत-जोड़ैत दीनानाथक मनमे शंका उठल जे हिसाबेमे तँ नै गलती भऽ गेल। कागज-कलम छोड़ि उठि कऽ टहलै लगल। मने-मन हिसाबो जोड़ैत। मनमे कखनो हिसाब सही बुझि पड़ैत तँ कखनो शंका होइत। आंगन जा पानि पीलक। दू-चारि बेर माथ हसोथलक। फेर आबि कऽ हिसाब जोड़ए लगल। मुदा हिसाब ओहिना कऽ ओहिना होइ। मनमे बिसवास जगलै। जाहिसँ काजक प्रति आकर्षण सेहो भेलै। फेर आंगन जा माएकेँ पुछलक- ‘एक बोरा धान उसनैमे कते समए लगतौ?’
माए बाजलि- ‘एक बोरा धान तँ दसे टीन भेल। दुचुल्हियापर पाँच खेप भेल आ चरिचुल्हियापर अढ़ाइये खेप भेल। एक्के घंटामे उसनि लेब।’
माइक बात सुनि दीनानाथ तँइ केलक जे हमहूँ यएह रोजगार करब। पूँजीक लेल पत्नीक सोना सुक्कीमे सँ पाँचटा निकालि आ सबा भरि बेचि, धान कीनि कुट्टी शुरु केलक। जाहिसँ परिवारमे खुशहाली आबि गेलै।
कुशुमलाल बी.ए. पास कऽ मधुबनी कोर्टमे किरानीक नोकरी शुरु केलक। कोर्टेक बड़ाबाबूक बेटीसँ बिआह सेहो केलक। मधुबनियेमे डेरा राखि दुनू परानी रहए लगल। तीन-चारि बर्ख तँ संयमित जीवन बितौलक। सिर्फ वेतनेपर गुजर करैत। मुदा तेकर बाद पाइ कमाइक लूरि सीखि लेलक। जाहिसँ खाइ-पीबैक संग-संग आउरो लूरि भऽ गेलै। घरोवाली पढ़ल-लिखल। जहिना कमाइ तहिना खर्च। शहरक हवामे उधियाए लगल। सिनेमा देखैक, शराब पीबैक, नीक-नीक वस्तु कीनैक आदति बढ़ैत गेलै। एक दिन पत्नी कहलकै- ‘गाममे जे खेत अछि ओ अनेरे किअए छोड़ने छी। ओहिसँ की लाभ होइए। ओकरा बेचि कऽ अहीठाम जमीन कीनि अपन घर बना लिअ।’
स्त्रीक बात कुसुमलालकेँ जँचल। रवि दिन छुट्टी रहने गाम आबि भाए दीनानाथकेँ कहलक- ‘भैया, हम अपन हिस्सा खेत बेचि लेब। मधुबनियेमे दू कट्ठा खेत ठीक केलहुँहेँ। ओ कीनि ओतै घर बनाएब। भाड़ाक घरमे तते भाड़ा लगैए जे एक्को पाइ बचबे ने करैए जे अहूँ सभकेँ देब।’
कुसुमलालक बात सुनि दीनानाथ कहलक- ‘बौआ, अखन बाबू-माए जीविते छथुन, तेँ हम की कहबह? हुनके कहुन।’
दीनानाथक जबाब सुनि कुसुमलाल पितासँ कहलक। रोगाइल रामखेलावन खिसिया कऽ कहलक- ‘डेढ़ बीधा खेत छौ। दस कट्ठा हमरा दुनू परानीक भेल, दस कट्ठा दीनानाथक भेलै आ दस कट्ठा तोहर भेलौ। अपन हिस्सा बेचि कऽ लऽ जो।’
खेत कीनै-बेचैक दलाल गामे-गाम रहिते अछि। कुसुमलाल जा कऽ एकटा दलालकेँ कहलक। पाँच हजार रुपैये कट्ठाक हिसाबसँ दलाल दाम लगा देलक। कुसुमलाल राजी भऽ गेल। मुदा बेना नै लेलक। तरे-तर दीनानाथो भाँज लगबैत। साँझू पहर जखन कुसुमलाल मधुबनी बिदा भेल तखन दीनानाथ कहलकै- ‘बौआ, जते दाम तोरा आन कियो देतह तते हमहीं देबह। बाप-दादाक अरजल सम्पति छी, आन कियो जे आबि कऽ घरारीपर भट्टा रोपत ओ केहेन हएत ?
मुदा दीनानाथक बात कुसुमलाल मानि गेल। पचास हजारमे जमीन लिखि देलक। मधुबनियेमे कुसुमलाल घर बना लेलक। अपना गामक लोकसँ ओते संबंध नहि रहलै जते सासुरक लोकसँ। सासुरक दू-चारि गोटे सभ दिन अबिते-जाइत रहैत। आदरो-सत्कार नीक होए।
बीस बर्ख बाद दीनानाथक बेटा मेडिकल कम्पीटीशनमे कम्पीट केलक। बेटी आइ.एस.सी. मे पढ़िते। पढै़मे दुनू भाए-बहीन उपरा-उपरी। तेँ परिवारक सभकेँ आशा रहै जे बेटिओ मेडिकल कम्पीट करबे करत। माए-बापक सेवा आ बेटा-बेटीक पढ़ाइ देखि दुनू परानी दीनानाथक मन खुशीसँ गद-गद। परिवारोक दशा बदलि गेल। मुदा तैयो दीनानाथ धानक कुट्टी बन्न नञि केलक। आरो बढ़ा लेलक। मनमे इहो होइ जे धनकुटिया मिल गरा ली मुदा समांगक दुआरे नहि गड़बैत। टाएरगाड़ी कीनि लेलक। जाहिसँ खेतिओ करै आ भड़ो कमाइ।
कुसुमलालकेँ सेहो दूटा बेटा। दुनू पब्लिक स्कूलमे पढ़ैत। जेठका अठमामे आ छोटका छठामे। मधुबनियेमे डेरा रहितहुँ दुनू होस्टलेमे रहैत। तइ परसँ सभ विषएक ट्यूशन सेहो पढ़ैत। तेँ नीक खर्च होइ।
शराब पीबैत-पीबैत कुसुमलालक लीभर गलि गेलै। किछु दिन मधुबनियेमे इलाज करौलक मुदा ठीक नहि भेने दरभंगाक अस्पतालमे भर्ती भेल। चारि मास दरभंगोमे रहल मुदा ओतहु लीभर ठीक नै भेलै। तखन पटना गेल। पटनोमे ठीक नै भेलै, संगहि शरीर दिनानुदिन खसिते गेलै। अंतमे दिल्लीक एम्समे भर्ती भेल। ओतहु ठीक नञि भेलै। शरीर एते कमजोर भऽ गेलै जे अपनेसँ उठियो-बैसि नञि होइ। हारि-थाकि कऽ मधुबनीक डेरापर आबि गेल। मुदा एते दिनक बीमारीक बीच दीनानाथकेँ जानकारीयो ने देलक। सारे-सरहोजिक संग घुमैत रहल।
ओछाइनपर पड़ल-पड़ल सैाँसे देहमे धाव भऽ गेलै। ढाकीक-ढाकी माछी देहपर सोहरए लगलै। कतबो कपड़ा ओढ़बै तैयो माछी घुसि-घुसि असाइ दऽ दै। दिन-राति दर्दसँ कुहरैत। सदिखन घरवालीक मन तामसे लह-लह करैत। गरिएबो करैत। दुनू बेटामे सँ एक्कोटा लगमे रहैले तैयार नहि। जेठका बेटा कहए- ‘पप्पा जी, महकता है।’
जखन कखनो लगमे अबैत तँ नाक मूनि कऽ अबैत। छोटका बेटा सेहो तहिना। सदिखन बजैत-‘पप्पा जी, अब भूत बनेगा। लगमे रहेंगे तो हमको भी पकड़ लेगा।’
जइ आॅफिसमे कुसुमलाल काज करैत ओहि आॅफिसक एकटा स्टाफ दीनानाथकेँ फोनसँ कहलक- ‘कुसुमलाल अंतिम दिन गनि रहल अछि तेँ आबि कऽ मुँह देखि लियौ।’
फोन सुनि दीनानाथ सन्न भऽ गेल। जेना दुनियाँक सभ कुछ आँखिक सोझासँ निपत्ता भऽ गेलै। सुन-मशान दुनियाँ लगै लगलै। मनमे एलै, कियो ककरो नहि। दुनू आँखिसँ नोर टधरए लगलै। नोर पोछि सोचए लगल जे कियो झुठे ने तँ फोन केलक। फेर मनमे एलै जे एहेन समाचार झूठ किअए हएत? अनेरे कियो पैसा खर्च कऽ फोन किअए करत? एहेन अवस्थामे कुसुमलाल पहुँच गेल मुदा आइ धरि किछु कहबो ने केलक। खैर, जे होए। मुदा हमरो तँ किछु धर्म अछि। अपना कर्तव्यसँ कियो मनुख एहि दुनियाँमे जीबैत अछि। अखन तँ अबेर भऽ गेल। काल्हि भेारुके गाड़ीसँ मधुबनी जाएब। एते विचारि माएकेँ कहलक- ‘माए, एक गोटे मधुबनीसँ फोन केने छेलाह जे कुसुमलाल बहुत दुखित छथि तेँ आबि कऽ देखिअनु।’
दीनानाथक मुँहक बात सुनिते माएक देहमे आगि लगि गेलनि। जरैत मने बाजलि- ‘कुसुमा हमर बेटा थोड़े छी जे मुँह देखबै। उ तँ ओही दिन मरि गेल जइ दिन हमरा दुनू परानी बाप-माएकेँ छोड़ि चलि गेल। जँ अइ धरतीपर धरमक कोनो स्थान हेतै तँ ओइमे हमरो कतौ जगह भेटत। जँ कोनो शास्त्र-पुराणमे पतिब्रता स्त्रीक चरचा हेतै तँ हमरो हएत। आइ बीस बर्खसँ अइ हाथ-पाएरक बले बीमार पतिकेँ जीबित राखि अपन चूड़ी आ सिनुरक मान रखने छी।’
माइक बात सुनि दीनानाथ मने-मन सोचलक जे कुसुमलाल अगर हमरा कमा कऽ नहिये देलक तँ हमर की बिगड़ल। माइयो-पिताक दर्शन भोरे-भोर होइते अछि, बालो-बच्चा आनंदेसँ अछि। तखन तँ एक-वंशक छी जा कऽ देखि लिऐ।
दोसर दिन भोरुके गाड़ीसँ मधुबनी पहुँचि ओ कुसुमलालक डेरापर पहुँचल। बाहरेक कोठरीमे कुसुमलाल। चद्दरिसँ सौँसे देह झाँपल। मुँह उघारितहि कुसुमलाल बाजल- ‘भ-इ-अ-अ।’ कहि सदाक लेल आँखि मूनि लेलक।
दीनानाथ- ‘बौआ कुसुम, वौआ.....बौआ..... बउआ।’

Friday, November 21, 2008

उमेश कुमार- पुत्र श्री केशव महतो, बहादुरगंज बहादुरगंज स’ रिपोर्ट-

उमेश कुमार- पुत्र श्री केशव महतो, बहादुरगंज
बहादुरगंज स’ रिपोर्ट- बाढक स्थिति बडे खतरनाक रहल, आब कोना के ओ बीत गेल। हमर सभक गाममे कोनो राहत कर्मी नै अएला, नेता सभ चुनाव मे अबै छथ, मुदा रौदी दाही मे नै।
गाममे सरकारी स्कूल अछि, सप्ताहमे दू दिन खुजल रहै ये, कशीबारी मे। चारि दिन बन्दे रहै ये, अहा पत्रकार छी हितेन्द्र भैया ई मुद्दा तैं भेजी रहल छी। गामक लोक खेती बारी करै ये , धान,गेहूँ परवल खीरा, करैला, कद्दू ,तारबूज ,गोभी, बैगन आ मछली मारै ये।
विराटनगर नेपाल मे सेहो लोक सभ सम्बन्धी सभ छथि, 20 किमी दूर बहादुरगंजमे हास्पीटल अछि, गाममे झोलाछाप हास्पीटल अछि जे झोलाछाप डाक्टरक झोरामे रहै ये। पिछला साल एक गोटे के बहादुर गँज हास्पीटल् ले गेलौ, डाक्टर सभ पानी चढा देलकै , तीन दिन तक पानी चढैते रहलै, कियो खेनाइ नै देलकै, ओ पेट फूलि क मरि गेल।
घर सभ फूसक आ घासक, धानक पुआरक बनल छै, अगिलग्गेमे से सभ जरैत रहैत छै।
एक-एक्अ आदमी के 5-6 टा बच्चा जिबैत रहैत छै, 9-10 बच्चामे।
विराटनगर लग गाम मे मौसाक घर गेलौ, ओतए सरकार मैथिली या नेपाली बाजय लेल कहने अछि, सभ गोटे ओत मैथिली बाजै छथि, भारतमे स्थिति खराप।
नेपालमे मैथिली के नीक स्थितिक कारन अछि ओतुक्का मैथिली मात्र मैथिल ब्राह्मन आ कर्न कायस्थ मे सीमित नै अछि, ओतय महतो यादव सभ मैथिली के अपन बुझैत छथि. भारतमे कतेको ठाम मात्र दू जातिमे सीमित अछि, तेसर के अशुद्ध कहल जै छै से ओ अपनाके मैथिली से दूर केने छथि,जाति-पाति से अपन उन्नति जे हुए मुदा समाजक उन्नति नै हैत,जाति-पाति से मैथिलीक उन्नति नै हैत,जाति-पाति से मिथिला के उन्नति नै हैत

जाति-पाति से कुंठाग्रस्त लोक नीक रचना नै लिखि सकताह आ घृनामे जरैत रह ताह।

नेपालमे घर फूसोके छै मुदा बेसी लकडी आ टीना के छै। ओत खेती बारी भारते जेका छै। ओतहुओ हास्पीटल दूरे छै।
ओते रिक्शा टेम्पू नै चलै छै, खाली बस चलै छै। ओत गाम्मे सेहो बिज्ली छै, गाममे मुदा रोड नै छै, ऊबर खाबर छै, बरसातमे कीचड्क्ष भे जाइ छै। शहरमे रोड ठीक छै। विराटनगर से 20 किलोमीटर दूर नया बजार हटियामे आधा बजार मे बजार आ आधामे दारू बिकाइत छै, जतए छोट से पैघ बच्चा सभी दारू पीबै छै।
आर समाचार बाद मे। (www.videha.co.in साभार विदेह)

डीहक बटबारा - जगदीश प्रसाद मण्डल



अमानतक दिन। चारि बजे भोरेसँ पूड़ी-जिलेबी, तरकारीक सुगंध गामक हवामे पसरि गेल। सौँसे गामक लोककेँ बुझले, तेँ ककरो सुगंधसँ आश्चर्य नै होए। भोरे श्रीकान्तोक पत्नी आ मुकुन्दोक पत्नी फूल तोड़ि, नहा ब्रह्मस्थान पूजा करए गेलि। हलुआइ दू-चुल्हियापर तरकारियो बनबैत आ जिलेबियो छनैत। कुरसीपर बैसल श्रीकान्त मने-मन ब्रह्मबाबाक कबुला केलक जे जँ हमरा मनोनुकूल नापी भेल तँ तोरा जोड़ा छागर चढ़ेबह। तहिना मुकुन्दो। गामक सुगंधित हवामे सबहक मन उधिआइत। चाह बनबैबला चाह बनबैमे व्यस्त। पान लगबैबला पानमे। दुनू दिशि कट्ठा-कट्ठा भरिक टेंट लागल। दड़ी आ जाजीम बिछाओल। एक भागमे गाँजा पीनिहारक बैसार आ दोसर भागमे दारुक। जहिना बुचाइ कूदि कऽ कखनो हलुआइ लग जा देखैत तँ कखनो दारुबलाक बैसारमे जा दू-गिलास चढ़ा दैत। तहिना सरुपो। सभ कथूक ओरियान काल्हिये दुनू गोटे, दुनू दिशि कऽ नेने, तेँ अनतऽ जेबाक जरुरते नहि ककरो, चाह-पानक इत्ता नै। जेकरा जते मन हुअए से तत्ते खाउ-पीबू। जलखैमे पूड़ी-जिलेबी डलना आ कलौमे खस्सीक माँस आ तुलसीफुलक भात। तेँ भरि दिनक चिन्ता सबहक मनसँ पड़ाएल। जीविलाह सभ दुनू दिशि टहलि-टहलि खाइत-पीबैत।

श्रीकान्तो आ मुकुन्दो इंजीनियर। दुनू एक्के वंशक। दुनूक परदादा सहोदरे भाए। पाँच कट्ठाक घरारी, जहिमे दुनू गोटेक अधा-अधा हिस्सा। जहियेसँ दुनू गोटे नोकरी शुरु केलनि, तहियेसँ गाम छोड़ि देलनि। एक पुरिखियाह वंश, तेँ परिवारमे दोसर नहि। पैंतीस सालक नोकरीक बीच कहियो, दुनूमेसँ कियो, गाम नहि आएल। जहिसँ पहिलुका बापक बनाओल घर दुनूक खसि पड़लनि। गामक स्त्रीगण सभ ठाठ-कोरो, धरनिकेँ उजाड़ि-उजाड़ि जरा लेलक। ढ़िमका-ढ़िमकीकेँ सरिया गामक छौँड़ा सभ फील्ड बना लेलक। गामक जते खेलवाड़ी छौँड़ा सभ  छल ओ सभ अपन-अपन खेलक जगह बाँटि लेलक। एकटा फील्ड कबड्डीक, दोसर गुड़ी-गुड़ीक, तेसर चिक्का-चिक्काक, चारिम गुल्ली-डंटाक आ पाँचम रुमाल चोरक बनि गेल। उकट्ठी छौँड़ा सभ एक दोसराक फील्डमे रातिकेँ, झाड़ा फीरि दै। मुदा खेल शुरु करैसँ पहिने दस-बीसटा गारि पढ़ि सभ अपन-अपन फील्ड चिक्कन बना लिअए। ओना दुनू गोटे -श्रीकान्तो आ मुकुन्दो- बाहरे घर बना नेने छथि, मुदा मरै बेरमे दुनूकेँ गाम मन पड़लनि। साले भरिक नोकरी दुनूक बाँचल तेँ तीन मासक छुट्टी लऽ लऽ गाम ऐलाह। गाम अबैसँ पहिने दुनू गोटे, फोनक माध्यमसँ, अबैक दिन निर्धारित कऽ नेने रहथि। किएक तँ परोछा-परोछी नापी करौलासँ आगू झंझटिक डर दुनूक मनमे रहनि।
घरारी नापी होइसँ दस दिन पहिने श्रीकान्त गाम ऐलाह। अपना तँ घरो नहि, मुदा अबैकाल एकटा रौटी, सुतै-बइसैक समानक संग भानसो करैक सभ कुछ नेने ऐलाह। गाम आबि पितिऔत भाइकेँ कहि सभ बेवस्था केलनि। सभ गर लगला बाद भाएकेँ पुछलखिन- ‘बौआ, गाममे के सभ मुहपुरखी करैए?’
भाए कहलकनि- ‘गाममे तँ कियो राजनीति नहिये करैए मुदा बुचाइ आ सरुप सभ धंधा करैत अछि।’
‘की सभ धंधा?’
‘जना कियो खेत कीनैए वा बेचैए, ओहि बीचमे पड़ि किछु कमा लै अए। तहिना गाइयो-महीसमे करैए। भोट-भाँटसँ लऽ कऽ कथा-कुटुमैती धरिमे किछु नहि किछु हाथ मारिये लैत अछि।’
भाएक बात सुनि इंजीनियर सहाएब कने काल गुम्म भऽ गेलाह। मने-मन सोचि-विचारि कहलखिन- ‘कनी बुचाइकेँ बजौने आबह?’
‘बड़वढ़िया’ कहि भाए बुचाइकेँ बजबए विदा भेल। मने-मन श्रीकान्त सोचए लगलथि जे गाममे तँ सबहक हालत तेनाहे सन अछि। देखै छिऐ जे जेहने घर-दुआर छै तेहने बगए बानि। दू चारिटा जे ईंटो घर देखै छिऐ सेहो भितघरे जेकाँ। तेँ गाममे ओहन घर बना कऽ देखा देबै जे गामक कोन बात, परोपट्टाक लोक देखए आओत। पुरान लोक सबहक कहब छनि जे जेहेन हवा बहै ओहि अनुकूल चली। युग पाइक अछि। जेकरा पाइ रहतै ओ बुधियार। जेकरा पाइ नै रहतै ओ किछु नहि। असकर बिरहसपतियो फूसि। जेकरा पाइ छै वएह नीक घर बनबैत अछि, नीक गाड़ीमे चढ़ैत अछि। ओकरे धिया-पूता नीक स्कूल-कओलेजमे पढ़ैत अछि। ओकरे परिवारक लोक नीक लत्ता-कपड़ा पहिरैत अछि। बेटा-बेटीक विआह नीक परिवारमे होइ छै। आइक जे सुख-सुविधा विज्ञान करौलकहेँ ओकर सुख भोगैत अछि। यएह ने युगक संग चलब थिक। समाजक बीच प्रतिष्ठा बनाएब तँ वामा हाथक काज छी। अधलासँ अधलाह काज कऽ कऽ पाइ कमा लिअ आ समाजकैँ भोज खुआ दिऔ, बस जसे-जस, प्रतिष्ठे-प्रतिष्ठा। हाथमे पाइ अछि, सभ कुछ कऽ कऽ गौँआकेँ देखा देबै। बेटो-बेटीकेँ पढ़ा-लिखा, बिआह-दुरागमन करा कऽ निचेने छी। तखन तँ एकटा काज मात्र पछुआइल अछि, ओ अछि सामाजिक प्रतिष्ठा। सेहो बनाइये लेब।
मने-मन श्रीकान्त विचारिते रहथि आकि बुचाइक संग भाए पहुँचलनि। लगमे अबिते बुचाइ दुनू हाथ जोड़ि बाजल- ‘गोड़ लगै छी कक्का। अहाँ तँ गामकेँ बिसरि गेलिऐ। सरकारक एयर कंडीशन मकान भेटले अछि, तेँ किए थाल-कादोमे आबि मच्छर कटाएब?’
अपनाकेँ छिपबैत श्रीकान्त बजलाह- ‘नै बौआ, से बात नै अछि। जखने नोकरीक जिनगी शुरु केलहुँ तखने दोसराक गुलाम बनि गेलहुँ। जे-जे हुकूम देत से से करै पड़त। तू सभ कम उमेरक छह तेँ नञि देखलहक, मुदा हम तँ अंग्रेजक शासन देखने छी की ने ! शासन तरे-तर चलैत छै, जे सभ थोड़े बुझैए। अंग्रेजक पीठिपोहु छल अइठामक राजा-रजबाड़ आ ओकरा सबहक फाँड़ी थिक जमीनदार सभ। ओ सभ जे एहिठामक लोकक संग बेबहार करैत छल आ करैत अछि से तँ तोहूँ सभ देखते छहक। मुदा अइ सभ गपकेँ छोड़ह। तोरा जे बजौलिअह से सुनह। साले भरि आब नोकरी अछि। नोकरी समाप्त भेला बाद गामेमे रहब। तेँ तीन मासक छुट्टी लऽ कऽ एलहुँहेँ जे घरारीक अमानत करा घर बनाएब। बिना घरे रहब कतऽ।’
बुचाइ- ‘हँ, ई तँ जरुरिये अछि। मुदा हमरा किअए बजेलहुँ?’
पासा बदलैत श्रीकान्त- ‘मुकुन्द जीकेँ सेहो खबरि दऽ देने छिअनि। ओहो काल्हिसँ परसू धरि एबे करताह। ऐठाम तँ दुइये गोटेक घरारी खाली अछि, तेँ दुनू गोटेक रहब जरुरी अछि। तोरा तँ नञि बुझल हेतह, हमर परबाबा आ मुकुन्दक परबाबा सहोदरे भाए छलाह। अढ़ाइ-अढ़ाइ कट्ठाक हिस्सा जमीन दुनू गोरेकेँ अछि। तेँ कोनो पेंच लगाबह जे हमरा तीन कट्ठा हुअए।’
श्रीकान्तक पेटक मैल बुचाइ देखि गेल। मुस्कुराइत बाजल- ‘ऐँ, अहीले अहाँ एते चिन्तित छी। ई तँ वामा हाथक काज छी। अमीनकेँ मिला लेब, सभ  काज भऽ जाएत। किएक तँ अमीनक गुनिया-परकालमे पाँच-दस धुर जमीन नुकाएल रहै छै। मुदा अइले खरचा करए पड़त। हम तँ जोगारे ने बैसाएब, खर्च तँ अहींकेँ करए पड़त।’ पाइक गरमी श्रीकान्तकेँ रहबे करनि। मनमे इहो बात रहनि जे भलेहीं मुकुन्दो इंजीनियर छथि, दुनू गोटेक दरमहो एक्के रंग अछि मुदा पाइमे बराबरी कऽ लेता, से कोना हेतै। मुस्की दैत कहलखिन- ‘तोहर मेहनत आ हम्मर पाइ। सएह ने। जते खर्च हएत-हएत। मुदा मैदानसँ जीति कऽ अबैक छह।’
श्रीकान्तक बात सुनि बुचाइ मने-मन खुश भेल। मनमे एलै जे नीक मोकीर हाथ लागल। भरिसक राशि घुमलहेँ। ओह, बहुत दिनसँ अखवारो नै पढ़लौं जे कने राशि देखि लैतिऐ। खैर नहियो पढ़लौं तैयो शुभ बुझि पड़ैए। जोशमे बाजल- ‘कक्का, रुपैया पूत पहाड़ तोड़ैए। ई तँ मात्र अमानते छी। जे चाहबै, से हेतै। मुदा अहाँ कंजूसी नै करबै।’
कंजूसीक नाम सुनि श्रीकान्त कहलखिन- ‘मरदक बात छिऐ। जे बाजि देब ओ बिना पुरौने छोड़ब।’  बैगसँ पाँच हजार रुपैया निकालि श्रीकान्त बुचाइकेँ देलखिन। रुपैया जेबीमे राखि बुचाइ प्रणाम कऽ विदा भेल। गामक पेंच-पाँचमे बुचाइ माहिर, मुदा समाजमे अनुचित हुअए, से कखनो नहि सोचए। जहिया कहियो उकड़ू काज अबै तखन गुरुकक्कासँ पूछि लैत। मने-मन रस्तामे सोचए लगल जे अइबेर हिनका तेहेन सिखान सिखेबनि जे मरै काल तक मन रहतनि। जहिना सरकारी खजानासँ लऽ कऽ ठीकेदार धरिसँ समेटलाहा रुपैया केहेन होइ छै, से सिखताह।
आंगन पहुँचि बुचाइ चारि हजार पत्नीक हाथमे आ एक हजार अपना हाथमे रखलक। जहिना अगहनमे धानक ढ़ेरी देखि, दुनू परानी किसानक मन खुशीसँ गद-गद होइत, तहिना दुनू परानी बुचाइकेँ भेल। मुदा दुनूक खुशीमे अन्तर होइत। किसानक खुशी मेहनतक फल देखि होइत जखैनकि बुचाइक खुशी दलालीक। मुस्की दैत बुचाइ घरवालीकेँ कहलक- ‘खिड़कीपर एकटा शीशी अछि, कने नेने आउ?’
मुँह चमकबैत घरवाली बाजलि- ‘खाइ-पीबै रातिमे शीशी की करब?’
बुचाइ- ‘शीशियो नेने आउ आ खेनाइयो नेने आउ। दुनू संगे चलतै। जाबे भरि मन नै पीअब तावे मूड नै बनत। बहुत बात सोचैक अछि। अहाँ नै ने हमर बात बुझबै?’
पत्नी- ‘अहाँक बात बुझैक जरुरत हमरा कोन अछि। हमरा तँ अपने मन कोनादन करैत अछि। देह भसिआइए।’
‘अच्छा ठीक अछि, अहूँ दू घोट पीबि लेब।’
भोरे बुचाइ चौकपर पहुँचल। गामक बीचमे चौबट्टी। जहि चौबट्टीपर चारु भरसँ तीस-पैंतीसटा छोट-छोट दोकान। दस-बारहटा दू-चारी घर, बाँकी कठघरा। ओना एक्कोटा नमहर दोकान नहि, मुदा सभ कथुक दोकान। जाहिसँ गामक लोककेँ हाट-बजार जेबाक जरुरत कम पड़ैत। जहिया कहियो कोनो परिवारमे नमहर काज होइत-जेना बिआह, सराध इत्यादि, तखने बजार जेबाक जरुरत पड़ैत। ओना भरि दिन चौकक दोकान खुजल रहैत, मुदा गहिकीक भीड़ साँझे-भिनसर होइत। भरि दिन लोक अपन-अपन काज-उदम करैत आ साँझू पहरकेँ दोकानक काज कऽ लैत। खाली चाहे-पानक बिकरी भिनसरु पहरकेँ बेसी होइत। चौकपर पहुँचि बुचाइ दुनू चाहबलाकेँ एक-एक सए रुपैया दऽ दोकानपर बैसलि सभकेँ चाह पीअबै लेल कहलक। गाँजा पिआकक सेहो तीन ग्रुप चलैत। चाह पीबि पान खा बुचाइ चिलमक ग्रुपमे पहुँचि, दू दम लगा, तीनू ग्रुपमे पचास-पचास रुपैया गाँजा लेल दऽ देलक। सबहक मन खुशी भऽ गेलै। मुस्कुराइत बुचाइ अमीन ऐठाम बिदा भेल। गाममे तीनटा अमीन। रामचन्द्र, खुशीलाल आ किसुनदेव। कहै लेल तँ तीनू अमीन मुदा पढ़ि कऽ अमीन रामचन्द्रे टा भेल। मिडिल पास केलाक बाद रामचन्द्र हाइ स्कूलमे नाम नहि लिखा सकल। आब तँ लगेमे हाइ स्कूल खुजि गेल मुदा ओहि समएमे एक्कोटा हाइ स्कूल परोपट्टामे नहि छल, जाहिसँ रामचन्द्र आगू नहि पढ़ि सकल। बाहर पठा बेटा पढ़बैक ओकाइत रामचन्द्रक पिताकेँ नहि। सर्वे अबैसँ दस-पनरह बर्ख पहिने मुजफुरपुरक एकटा अमीन गाममे आबि अमानतक स्कूल खोललक। छह मासक कोर्स। चारि विषएक- पैमाइस, क्षेत्रमिति, कानून आ चकबन्दीक-पढ़ाइ। ओना समानो सभ- गुनिया, परकाल, मास्टर, स्केल, लेन्स, राइटऐंगिल, प्लेन, टेबुल, कंघी, टाँक, थ्याजो रैटर, जंजीर, फीता रखने। पाँच रुपैया महीना फीस लैत। मधुकान्तक दरबज्जेपर स्कूल खोललक। मधुकान्ते खाइयो लेल दै। जेकरा बदलामे मधुकान्तकेँ सेहो पढ़ा देलक। ओना गामोक आ गामक चारु भरक गामक विद्यार्थी सेहो पढ़लक। कुल मिला कऽ पनरह गोरे पढ़लक। मुदा जमीनक नापी-जोखी कम होइत, तेँ रामचन्द्र छोड़ि सभ अमीनी छोड़ि देलक।
सर्वे अबैसँ महीना दिन पहिने बेगूसराएक एक गोटे आबि पाँच-पाँच सौमे अमानतक सर्टिफिकेट बेचए लगल। ओकरेसँ खुशीलालो आ किसुनदेवो सर्टिफिकेट कीनि लेलक।
गामे-गाम सर्वेक काज शुरु भेल। अमीन सबहक चलती आएल। नक्शा बनब शुरु होइतहि दलाली शुरु भेल। पाइ दऽ दऽ लोक अपन-अपन खेतक नक्शा बढ़बै लगल। लोकक दलाल अमीन आ सरकारक सर्वेयर। खुशीलालो आ किसुनदेवो उठि बैसल। मुदा रामचन्द्र कात रहल। गाए-महीस, गाछ-बिरीछ बेचि-बेचि लोक रुपैया बुकए लगल। रामचन्द्र दबि गेल मुदा खुशीलाल आ किसुनदेव नाम कमा लेलक। जेम्‍हर निकलैत तेम्‍हर लोक सभ चाहो-पान करबैत आ अमीन सहाएब, अमीन सहाएब कहि परनामो करैत। दुनू गोटे सर्वेक नांगड़ि पकड़ि किस्तवारसँ लऽ कऽ तसदीक खानापुरी, दफा-३, दफा-६,८,९ धरि दौड़ि-बड़हा करैत रहल। जाहिसँ मोटर साइकिल मेन्टेन करए लगल।
खुशीलाल ऐठाम पहुँचि बुचाइ श्रीकान्त दिशिसँ नापीक अमीन मुकर्रर कऽ लेलक। नापीक फीसक अतिरिक्त पक्ष लेबाक फीस सेहो गछि लेलक।
दोसर दिन मुकुन्द जी सेहो गाम पहुँचलाह। रहैक सभ ओरियान केनहि ऐलाह। गाम अबिते दूटा जन रखि परती छिलवा रौटी ठाढ़ करौलनि। जखन जन जाइ लगलनि तखन पुछलखिन- ‘गाममे के सभ नेतागिरी करैए?’
मुकुन्दजीक बात सुनि एक गोटे बुचाइक नाम कहलकनि। बुचाइक नाम सुनि बजा अनैले कहलखिन। दुनू गोटे बिदा भेल। दुनू कोदारि लऽ एक गोटे घरपर गेल आ दोसर गोटे बुचाइ एहिठाम। मुकुन्द जी पत्नीकेँ कहलखिन- ‘कने चाह बनाउ?
पत्नी चाह बनबैक ओरियान करै लगली। गैस चुल्हिपर ससपेन चढ़ा बजलीह- ‘ककरा लेल तीन महला मकान बनेलहुँ।’
पत्नीक बात सुनि मुकुन्दजीक करेज दहलि गेलनि। करेजकेँ दहलितहि आँखिमे नोर आबि गेलनि। आँखि उठा पत्नी दिशि देखि आँखि निच्चाँ कऽ लेलनि। रुमालसँ नोर पोछि मुकुन्द जी मने-मन सोचए लगलथि जे अपन हारल ककरा कहबै। सपनोमे नञि सपनाइल रही जे पढल़-लिखल मनुक्ख एत्ते नीच होइत अछि। कत्ते मेहनतिसँ बेटाकेँ पढ़ेलहुँ, नोकरी दिएलहुँ। नीक घर नीक पढ़ल-लिखल कन्याक संग विआह करेलहुँ। मुदा फल उल्टा भेटल। पढ़ल-लिखल लोक जे अपन सासु-ससुरक संग एहेन बरताव करै, तँ लोक जीविये कऽ की करत? अइसँ नीक मरनाइ। मुदा मृत्युओ तँ ओते असान नहि होइत। तखन तँ जे भाग्य-तकदीरमे लिखल अछि, से भोगब। अगर जँ बुढा़ढ़ीमे गनजने लिखल रहत तँ कियो बाँटि लेत। ओ तँ विधाताक रेख छी। के बदलि देत? मूड़ी गोतने मुकुन्द घुनघुना कऽ बजैत। पत्नीक आँखि तँ ससपेनपर रहनि मुदा करेज पीपरक पात जेकाँ, जे बिनु हवोक डोलैत रहैत। आँखिसँ समतल भूमिक पानि जेकाँ नोर टघरैत।
चाह बनल। दुनू गोटे आमने-सामने बैसि चाह पीबए लगलथि। एक घोंट कऽ चाह पीबि दुनू गोटे दुनू गोटेक मुँह दिशि देखैत। मुदा कियो किछु बजैत नहि। जेना दुनूक हृदएक भीतर विरड़ो उठैत। दुइये घोंट चाह पीलनि, बाकी सभ सरा कऽ पानि भऽ गेलनि। तही काल बुचाइ पहुँचल। अबिते बुचाइ दुनू हाथ जोड़ि, दुनू गोटेकेँ प्रणाम कऽ बैसल। बुचाइकेँ देखितहि मुकुन्द मनकेँ थीर करैत पत्नीकेँ कहलखिन- ‘भरि दिनक थकान देहकेँ खण्ड-खण्ड तोड़ैत अछि। मन कोनादन करैए। कने एटैचीसँ एकटा बोतल नेने आउ। जावे पीब नहि ताबे कोनो बाते ने कएल हएत।’
पतिक बात सुनि पत्नी एटैचीसँ एकटा किलो भरिक ब्राण्डीक बोतल आ दूटा गिलास निकालि कऽ आनि आगूमे रखि देलकनि। तीनू गोटे- मुकुन्द, पत्नी राधा आ बुचाइ- त्रिकोण जेकाँ तीनू दिशिसँ बैसल। बीचमे मोड़ुआ टेबुल लोहाक। टेबुलपर गिलास बोतल। बोतलक मुन्ना खोलि मुकुन्द दुनू गिलासमे ब्राण्डी देलखिन। एक गिलास अपनो लऽ एक गिलास बुचाइ दिशि बढ़ौलनि। ब्राण्डी देखि बुचाइक मन तँ चटपटाए लगल मुदा अनभुआर लोकक संग पीबैक परहेज करैत बाजल- ‘कक्का जी, ई सभ हम नै पीबै छी। गाममे हमरा कतऽ ई चीज भेटत। गरीब-गुरवा लोक छी, जँ  कहियो मनो होइए तँ एक दम चीलममे लगा लै छी। नै तँ पीसुआ भाँगक एकटा गोली चढ़ा दै छिऐ।’
जिद्द करैत मुकुन्द कहलखिन- ‘ई तँ फलक रस छिऐ। कोनो की मोहुआ दारु आकि पोलीथिन छिऐ जे अपकार करतह।’
मुकुन्दक मनमे रहनि जे शराब पीआ बुचाइसँ सभ बात उगलवा लेब। जाबे गामक तहक बात नै बुझबै ताबे किछु करब कठिन हएत। दुनू गोरे एक-एक गिलास पीलनि। गिलास रखि मुकुन्द सिगरेटक डिब्बा आ सलाइ निकालि, एकटा अपनो हाथमे लेलनि आ एकटा बुचाइयोकेँ देलखिन। दुनू गोटे सिगरेट पीबए लगलाह। सिगरेटक धुँआ मुँहसँ फेकैत मुकुन्द कहलखिन- ‘बुचाइ, हम तँ आब बुरहा गेलहुँ, तू सभ नौजवान छह। तोरे सभपर ने गामसँ लऽ कऽ देश तकक दारोमदार छह। शहरमे रहैत-रहैत मन अकछा गेल। साले भरि नोकरियो अछि। तेँ चाहैै छी जे जल्दी नोकरी समाप्त हुअए जे गाम आबि अपन सर-समाजक बीच रहब। मुदा गाममे तँ अपना किछु अछि नहि। लऽ दऽ कऽ थोड़े घरारी अछि। जेकरा नपा कऽ घर बनबए चाहै छी। तहिमे तूँ कने मदति कऽ दाए।’
बुचाइ- ‘हमरा बुते जे हएत से जरुर कऽ देब। अहाँ तँ अपने तत्ते कमा कऽ टलिया नेने छी जे अनकर कोन जरुरत पड़त?’
मुकुन्द- ‘तूँ तँ जनिते छहक जे सभ दिन नीक एयर कंडीशन घरमे रहै छी, नीक गाड़ीमे चढै़ छी, नीक लोकक बीच आमोद-परमोद करै छी, से कोना हएत?
बुचाइ- ‘अहाँ की कोनो खेती-पथारी करब आकि माल-जाल पोसब, जे तइले खेत-पथार चाही। लऽ दऽ कऽ रहैक घर चाही। से तँ घरारी अछिये।
मुकुन्द- ‘कहलह तँ ठीके, मुदा रहैले तँ घर बनाबै पड़त। बिजली गाममे नञि छै तइले जेनरेटर बैसबै पड़त, पानिक टंकी नै छै तइले कलक संग-संग मोटर सेहो लगबौ पड़त। गाड़ी रखैले घर आ साफ करैले सेहो जगहक जरुरत हएत। पैखाना, नहाइले सेहो घर चाही, घरक आगूमे दसो धुरक फुलवारी, बइसैले चबुतरा सेहो चाही। चारु भर छहरदेवाली बनबए पड़त। सभले तँ जमीने चाही।’
बुचाइ- ‘हँ, से तँ चाहबे करी। मुदा हमरा की कहए चाहै छी?
मुकुन्द- ‘तोरा यएह कहै छिअह जे अपना अढ़ाइये कट्ठा घरारी अछि, तइमे सभ  कुछ कोना हएत ? कहुनाकेँ दसो धुर बढ़बैक गर लगाबह।’
मुकुन्दक बात सुनि बुचाइक मनमे हँसी उठल। हँसीकेँ दबैत बाजल- ‘देखियौ कक्का, पान-दस धुर जमीन अमीनक हाथमे रहै छै, मुदा ओ तँ तखने हएत जखन पंचो आ अमीनो पक्षमे रहत।’
मुकुन्द- ‘तेहीले ने तोरा बजेलियह। हमरा तँ ककरोसँ जान-पहचान नै अछि। मुदा तोरा तँ सभसँ छह, तेँ, तूँ हमरा अप्पन बुझि मदति करह।’
मने-मन बुचाइ सोचलक जे ई पनहाइल गाए जेकाँ छथि, तेँ सरियाकेँ हिनका सिखबैक अछि, चपाड़ा दैत बाजल- ‘देखियौ कक्का, गामक लोक गरीब अछि, ओ जे पक्ष लेत से ओहिना किअए लेत? गौँआक लिये जेहने अहाँ तेहने श्रीकान्त कक्का। तखन तँ कियो जे नेत घटाओत से बिना मीठ खेने किअए घटौत?’
मुकुन्द- ‘तइले हमहुँ तैयारे छी। जना जे तूँ कहबह से हम देबह।’
बुचाइ- ‘अच्छा हम भाँज-भूज लगबैले जाइ छी। मुदा काल्हि खन श्रीकान्त कक्का सेहो कहने रहथि। ओना हम हुनका कहि देने रहियनि जे अमानतक दिन हमहूँ रहब। तेँ थोड़े दिक्कत हमरा जरूर अछि। मुदा तइयो दिन-देखार तँ हम अहाँक भेँट नहि करब, साँझमे जरूर करब। जना जे हेतै से सभ  बात अहाँकेँ कहैत रहब आ अहूँ ओहि हिसाबसँ अपन गर अँटबैत रहब। ओना गाममे अखन सरूपक संग बेसी लोक छै, तेँ अहाँकेँ ओकरासँ भेँट करा दै छी। ओ जँ तैयार भऽ जाएत तँ कियो ओकरा रोकि नहि सकतै।’
‘बड़बढ़िया’ कहि मुकुन्द बैगसँ दस हजार रूपैया निकालि बुचाइकेँ दऽ देलखिन।
रूपैया गनि बुचाइ बाजल- ‘अइसँ की हएत? हम ने गामक पेंच-पाँच बुझै छिऐ। काजो तँ उकड़ूए अछि।’
‘एते ताबत राखह। जना-जना काज आगू बढै़त जाएत तना-तना कहैत जइहह।’
‘बड़बढ़िया’ कहि बुचाइ प्रणाम कऽ बिदा भेल।
मने-मन मुकुन्द सोचए लगलाह जे भलेहीं श्रीकान्तो इंजीनियरे छथि मुदा जते पाइ हम कमेलहुँ तते हुनकर नन्नो ने देखने हेतनि। भऽ जाए पाइयेक भिड़ंत। मने-मन सोचबो करैत आ खुशियो होइत।
मुुकुन्द ऐठामसँ निकललाक बाद रस्तामे बुचाइ विचारै लगल। आरौ बहिं, आइ धरि एहेन-एहेेन बुढ़बा चोट्टा नञि देखने छलौं। जिनगी भरि पाइये हँसोथति रहल मुदा सबुर नै भेलै। अच्छा, अइ बेर दुनू सिखताह। जइ गामक लोक आइ धरि सहि-मरि अपन बाप-दादाक गाम आ घरारी धेने रहल, समाजक बेर-बिपत्तिमे संगे प्रेमसँ रहल ओहि गाममे जँ एहेन-एहेन चोट्टा आबि कऽ रहत, तँ कए दिन गामकेँ सुख-चैनसँ रहए देत। सभकेँ टीकमे टीक ओझरा नाश करत की नहि?’
दोसर दिन, सबेरे सात बजे बुचाइ सरूप ऐठाम पहुँचल। दुनूकेँ बच्चेसँ दोस्ती, तेँ धियो-पूता भेलोपर दुनूक बीच रउए-रउ चलैत। सरूपकेँ दरबज्जापर नहि देखि बुचाइ सोर पाडैए लगल- ‘दोस छेँ रौ, रौ दोस।’
सरुप अंगनाक दछिनबरिया ओसारपर बैसि दारुक बोतलक मुन्ना खोलैत। बुचाइक अवाज सुनि, कहलक- ‘दोस रौ, आ-आ। अंगने आ।’
घरक कोनचर लग अबितहि बुचाइ सरुपक घरवालीकेँ देखि बाजल- ‘दोस रौ, दोसतिनीक थुथुन बड़ लटकल देखै छियौ। रौतुका झगड़ा अखैन तक फड़िएलौहेँ नञि रौ। हम तँ रौतुका झगड़ा रातियेमे उठा-पटक कऽ फड़िया लै छी आ तू अखैन तक रखनहि छेँ।’
बुचाइक बात सुनि सरुप कहलक- ‘धुर-बूड़ि, सभ दिन एक्के रंग रहि गेलेँ। कहियो तोरा बजैक ठेकान नै हेतौ।’ कहि पत्नीकेँ कहलक- ‘एकटा गिलास नेने आउ? एकटा गिलास आनि पत्नी सरुपक आगूमे रखलक। दुनू गोटे एक-एक गिलास दारु पीलक। बोतलकेँ डोला कऽ देखि सरुप फेर दुनू गिलासमे ढ़ारलक। तहि बीच बुचाइ बाजल- ‘एक गिलास दोसतिनोकेँ दहुन?’
बुचाइक बात सुनि सरुपक पत्नी कला बाजलि- ‘हम नै गाइयक गोत पीबै छी।’
बुचाइ- ‘कनी पी कऽ देखियौ जे केहेन ताव चढै़ए।’
सरुप- ‘भोरे-भोर दोस किमहर एलेँ?’
जेबीसँ पाँच हजार रुपैयाक गड्डी निकालि बुचाइ सरुपक आगूमे रखैत बाजल- ‘ले, ई तोहर हिस्सा छियौ। गाममे दूटा मोकीर फँसलौहेँ। तेँ सरिया कऽ दुनूकेँ सिखबैक छौ। एकटाकेँ हम संग देबै आ दोसरकेँ तूँ देही। जहिना धिया-पूता दूटा मुसरीकेँ नंागड़ि पकड़ि लड़बैत अछि तहिना दुनू गोटे दुनूकेँ लड़ा।’
सरुपक आगूमे रुपैया देखि कलाक मुँहसँ हँसी निकलल। हँसी देखि बुचाइ बाजल- ‘एकटा बात बुझै छिऐ दोसतिनी, लछमी दुइये टा होइत अछि। एकटा घरवाली आ दोसर रुपैया। दोस, तोहर भाग बड़ जोरगर छौ। किएक तँ दुनू तोरा लगेमे छौ।’

बुचाइक बात सुनि कला पाछु दिशि मुँह घुमा लेलक। कलाकेँ पाछु मुँहे घुरल देखि बुचाइ कहलक- ‘मुँह घुमौने नै हएत दोसतिनी। अहीमे सँ रुपैया लिअ आ दोकानसँ अंडा नेने आउ। भुजल चूड़ा आ अंडाक कोफ्ता खुआउ।’
एकटा पचसटकही लऽ कला अंडा आनै दोकान बिदा भेलि। खाली अंगना देखि बुचाइ सरुपकेँ फुसफुसा कऽ कहए लगल- ‘दोस, दूटा जुएलहा चोर गाम एलौहेँ। दुनू जेहने ‘चोर’ तेहने ‘लोभी’। दुनू अपन-अपन घरारी नपाओत। दुनूकेँ अढ़ाइ-अढ़ाइ कट्ठा जमीन छै। जे खतिआनी छिऐ। किएक तँ दुनू एक्के वंशक छी। एक पुरखियाह अछि तेँ दोसर-तेसर नै छै। दुनू चाहैए जे हमरा तीन कट्ठा हुअए तँ हमरा तीन कट्ठा हुअए। दुनूकेँ पाइयक गरमी छै, तेँ एक-दोसरकेँ निच्चाँ देखबै चाहैए। गामक लोक तँ दुनूक नजरिमे, बोन झाँखुर छी। से थोड़े हुअए देबै। पाइयो खा जेबै आ सुपत-सुपत बँटबरो करा देबै।’
कने काल गुम्म रहि सरुप बाजल- ‘आँइ रौ दोस, अपने सभ कोन नीक लोक छेँ रौ। भरि दिन झूठ-फूसि बजै छी, ताड़ी-दारु पीबै छी, तखैन नीक कना भेलौ रौ।’
बुचाइ- ‘धुर बूड़ि, तोरा निशाँ चढ़ि गेलउ, तेँ नै बुझै छीही। तोँही कह जे गाममे कोनो जातिक लोक किए ने हुअए, मुदा जखन मरैए तँ कठिआरी जाइ छिऐ की नै ? गरीबसँ गरीब लोक किए ने हुअए, कियो बिना कफने जराओल गेलहेँ ? अपना हाथमे जँ पाइ नहियो रहल तँ दू-चारि गोरेसँ मांगि-चांगि पुरा दै छिऐ। तेसर सालक गप मन छौ की नै। देखने रही की ने जे मखनाक गाए बाढ़िमे भसल जाइत रहै तँ भरि छाती पानिमे सँ पकड़ि अनलौं। मोतिया बेटीक बिआह कोन पेंचपर करा देलिऐ से बिसरि गेलही। डोम खंजनमाक घरमे जे आगि लगल रहै तँ देखने रही की नञि जे अपन घैलची परक घैल लऽ कऽ सभसँ पहिने आगि मिझबैले गेल रहिऐ। हमरा देखलक तखन पाछुसँ सभ गेल। जइकेँ चलैत माए कते दिन तक गरिअबैत रहल जे तोहूँ छुवा गेलेँ आ घइलो छुबा गेल। आँइ रौ, गाइरियो-फज्झति सुनि कऽ जे सेवा करै छी उ धरम नै भेल रौ।’
मूड़ी डोलबैत सरुप- ‘हँ, से तँ ठीके कहै छेँ।’
बुचाइ- ‘हम श्रीकान्त कक्काक पछ लऽ कऽ रहब आ तूँ मुकुन्द कक्काक संग दहुन। जहिना इलेक्शनमे परचार करैक, आॅफिस चलबैक, चाह-पानक खर्च, लाउडस्पीकर आ सवारीक, बूथपर दसटा कार्यकर्ता रखैक, एजेंटक, नेता सबहक सुआगतक लेल मेहराओ बनबैक खर्च नेतासँ लै छिऐ तहिना अखैनसँ जाबे तक नापी हेतै ताबे तकक खरचा दुनू गोटेसँ दुनू गोटे लेब। हेतै तँ उचिते मुदा ठकसँ ठकब कोनो पाप थोड़े छी।’
सरुप- ‘कना-कना पाइ लेबही से तँ प्लानिंग कऽ लेमे की ने?’
बुचाइ- ‘घबड़ाइ छैँ किए, इलेक्शनोसँ बेसी लेबै। अमीनक घूस, पंचक घूस, चौक-चौराहाक चाह-पान, गाँजा-भाँग, ताड़ी-दारुक, लठैतक, कते कहबौ। जना-जना काज अबैत जेतै तना-तना टनैत जेबै। अखैन जे आएलहेँ ओ सगुन छी। साँझमे जखन खूब अन्हार तेसरि साँझ भऽ जेतै तखन चलिहेँ। तोरा-दुनू गोरेकेँ मुँह-मिलानी करा देबउ। चौकपर दूटा चाहक दोकान छेबे करै, एकटा पर साँझ-भिनसर तूँ बैसिहेँ आ एकटा पर हम बैसब। तूँ मुकुन्द जी दिशिसँ बजिहेँ जे हुनका तीन कट्ठा घरारी छनि आ दोसरपर हम बैसि बाजब। मुदा एकटा बात मन  रखिहेँ जे जखैन श्रीकान्त कक्का चौकपर आबथि, तखन अपने दिशिसँ चाह-पान खुआ, हुनके बात बजिहेँ आ जखन मुकुन्द कक्का औताह तँ हमहूँ बाजब। जइसँ हुनका सभकेँ हेतनि जे सौँसे गौँआ हमरे दिशि अछि। अखैन तँ गैाँआ सभकेँ चाहे-पान, गाँजा, ताड़ी पइर लगतै मुदा नापी दिन पूड़ी-जिलेबी जलखै आ माँस-भात भोजन करा देबै।’
सरुप- ‘बड़बढ़ियाँ प्लानिंग छौ।’
बुचाइ- ‘हम श्रीकान्त कक्का दिशिसँ खुशीलाल अमीनकेँ ठीक केलहुँहेँ, तूँ मुकुन्द कक्का दिशिसँ किसुनदेव अमीनकेँ ठीक करिहेँ। दुनू अमीन तँ दुनू पार्टीक हएत की ने मुदा मध्यस्त अमीन तँ सेहो चाही। तइले रामचन्द्र भायकेँ पकड़ि लेब। तहिना गामक लोक तँ दुनू दिशिसँ बँटाएल रहत की ने मुदा एक्कोटा तँ तेहल्ला पंच चाही। तइले गुरुकक्काकेँ पकड़ि लेब। जखने गुरुकक्का पंच आ रामचन्द्र भाय अमीन रहताह तखने एक्को तिल जमीन इमहर-ओमहर थोड़े हएत।’
दोसर दिन दुनू गोटे -बुचाइयो आ सरुपो- गुरु कक्का लग पहुँचल। गुरुकक्का दलानेपर। दुनू गोटे प्रणाम कऽ बैसल। दुनू गोटेकेँ देखि गुरु कक्का पुछलखिन- ‘की बात छिऐ हौ बुचाइ? दुनू भजारकेँ संगे देखै छिअह?’
बुचाइ- ‘अहीं लग तँ एलौहेँ कक्का। श्रीकान्तो काका आ मुकुन्दो काका घरारी नपौताह। तेहीमे अपनो रहबै।’
गुरुकाका- ‘की करताह ओ सभ  घरारी नपा कऽ। केहेन बढ़िया तँ धिया-पूता सभ खेलाइए।’
सरुप- ‘रिटायर केला बाद गामेमे रहताह। नोकरियो लगिचाइले छनि। तेँ अखने नपा कऽ घरमे हाथ लगौता।’
गुरुकक्का- ‘सुनै छी जे दुनू गोटे शहरेमे घर बनौने छथि, तखन गाममे बना कऽ की करताह। हुनका सभकेँ गाममे थोड़े वास हेतनि। जिनगी भरि तँ बड़का-बड़का होटल देखलखिन, नीक रोडपर नीक सवारीमे चललथि, दामी-दामी वेश्यालय देखलनि, से सभ गाममे थोड़े भेटतनि। अनेरे गाममे आबिकेँ किए थाल-कादोमे चलता आ मच्छर कटौताह।’
गुरुकाकाक बात सुनि लपकि कऽ बुचाइ बाजए लगल- ‘से नै बुझलिऐ कक्का, दुनू गोटे भारी चोट खा चोटाएल छथि। तेँ गाम दिशि झुकलाह।’
‘से की?’ - ओ अकचकाइत गुरुकक्का पुछलनि‍।
बुचाइ कहए लगल- ‘तेसर सालक घटना छिऐ। श्रीकान्त काकाक पत्नी ड्राइवरकेँ संग केने बजार गेली। बजारसँ समान कीनि जखन घुमली तँ दोसर गाड़ी सेहो पछुअबैत रहनि। जखन फाँक-पाँतरमे गाड़ी पहुँचलनि तँ पछिला गाड़ी आगू आबि रोकि देलकनि। गाड़ीसँ चारि गोटे उतरि हिनका गाड़ीमे बैसि ड्राइवरकेँ दोसर रस्तासँ गाड़ी बढ़बैले कहलक। बेचारा की करैत। बढ़ल। थोड़े दूर गेलापर गाड़ी रोकि, काकीकेँ उतारि ड्राइवरकेँ कहलक- ‘मालिककेँ जा कऽ कहिअनु जे पाँच लाख रुपैया नेने आबथि आ पत्नीकेँ लऽ जाथि। दू घंटाक समए दैत छिअह।’ ड्राइवर बिदा भेल। इमहर काकीकेँ चारि-पाँच ठूसी मुँहमे लगा देलकनि। जहिसँ अगिला चारि टा दाँतो टुटि गेलनि। ठोह फाड़ि कऽ कानए लगली। कनिते काल मोबाइल दऽ कहलकनि जे पतिकेँ कहिअनु जे जल्दी रुपैया लऽ कऽ आउ नञि तँ हम नहि बँचब। तावे ड्राइवरो पहुँचि कऽ कहलकनि। अपना हाथमे दुइये लाख रुपैया, जे हालक आमदनी रहनि, बाकी रुपैया सभ बैंकमे। वएह दुनू लाख रुपैया लऽ कऽ गेला आ पाएर-दाढ़ी पकड़ि कऽ पत्नीकेँ छोड़ा अनलनि।’
बुचाइक बात सुनि ठहाका मारि हँसि गुरुकाका- ‘मुकुन्द किअए औताह?’
मुस्की दैत बुचाइ- ‘हुनकर तँ आरो अजीव बात छनि। एक दिन एकटा ठीकेदारक पार्टी चललै। जते बड़का-बड़का हाकिम आ ठीकेदार सभ  छल, सभ  रहए। मुकुन्द अपन पुरना गाड़ी छोड़ि नवका गाड़ी, जे बेटाकेँ सासुरमे देने रहनि, लऽ कऽ गेला। जखन पार्टीसँ घुमि कऽ ऐला तँ पुतोहू कहलकनि- ‘पुतोहूक गाड़ीपर चढ़ैत केहेन लागल?’ अइ बातक चोट हुनका खुब लगलनि। बेटा-पुतोहूसँ मोह टूटि गेलनि। तेँ गामेमे रहताह।
बुचाइक बात सुनि गुरुकक्का गुम्म भऽ गेलाह। कने काल गुम्म रहि, मने-मन बिचारि कहलखिन- ‘गाम तँ गामे छी। शुद्ध मिथिला। भारत। जे स्वर्गोसँ नीक अछि। मुदा सभ गामक अपन-अपन चरित्र आ प्रतिष्ठा छैक। जे चरित्र आ प्रतिष्ठा गामक कर्मठ, तियागी लोकनि बनौने छथि। अपन कठिन मेहनति आ कर्तव्यसँ सजौने छथि। ओकरा जीवित राखब तँ अखुनके लोकक कान्हपर भार अछि की ने ? नोकरीक जिनगीमे किछु कियो केलनि तइसँ समाजकेँ कोन मतलब। अपनाले केलनि। समाजक एक अंग होइक नाते हुनको सभक कान्हपर किछु भार छलनि जे अखन धरि नहि कऽ सकलाह। मुदा तैयो जँ समाजमे आबि, समाज रुपी फुलवारीमे फूल लगबए चाहताह तँ बढ़िया बात। से तँ लक्षणसँ नहि बुझि पड़ैत अछि। समाजमे रहैक लेल समाजक चरित्रक अनुकूल अपन चरित्र बनौताह, तखने ने समाजमे अँटाबेश हेतनि। ई तँ नहि जे गदहा गेल स्वर्ग तँ छान-पगहा लगले गेलै।’
गुरुकाकाक बात सुनि बुचाइयो आ सरुपो पुछलकनि- ‘कक्का, गामक विषएमे हम सभ किछु ने बुझैत छी, से कने बुझा दिअ?’
गुरुकाका- ‘‘अखन काजक बेर अछि तेँ बहुत बात तँ नहि कहि सकबह, मुदा जखन बुझैक जिज्ञासा छह तँ दूटा जरुर कहबह। देखहक, गामक पढ़ल-लिखल वा बिनु पढ़ल-लिखल लोक, पेट भरैक लेल नोकरी करैक लेल बाहर जाइ छथि, नीक बात। मुदा गामकेँ सोलहन्नी नहि छोड़ि देथि। अखन देखै छी जे अमेरिका, इंग्लैडसँ लोक तीन दिनमे गाम आबि सकै छथि। तेँ सालमे कमसँ कम एक्को बेर, नञि तँ हुनकरो गाम छिअनि, कतेको बेर आबि सकै छथि। जाहिसँ गामक लोक आ खेत-पथारक संग संबंध बनल रहतनि। मुदा से नहि कऽ गामकेँ सोलहन्नी छोड़ि, अनतै घर बना रहए लगै छथि। जे गामक दुर्भाग्य छी। जेकर फल होइत अछि गामक ज्ञान निर्यात भऽ जाइत अछि। जाहिसँ सुतल गाम सुतले रहि जाइत अछि। संगे गामक बेबहार, कला-संस्कृति सभ टुटि जाइत अछि। रिटायर केला बाद वा जिनगीक अंतिम अवस्थामे, जँ कियो गाम आबि रहए चाहता तँ हुनका गाम केहेन लगतनि। डेग-डेगपर टक्कर आ बात-बातमे विवाद हेबे करतनि। दोसर बात सुनह। अपना गाममे वैदिक जी भेल छथि। जिनके पोता शुभकान्त छिअनि। वेदक प्रकाण्ड विद्वान वैदिक जी। नाम तँ छलनि गंगाधर मुदा वैदिक जी नामसँ विख्यात भेलाह। अपनो राजमे आ आनो-आनो राजमे जखन पंडितक बीच शास्त्रार्थ होइ तँ हुनकर जबाव देनिहार कियो ने ठहरैत। अनेको तगमा आ प्रशस्ति पत्र भेटलनि। अखनो परोपट्टाक लोक हुनके नामपर अपना गामक नाम वैदिक जीक गाम बुझैत अछि। हुनके चलाओल अपना गामक पानि छी। पहिने पानिक छुआछुत अपनो गाममे छल, मुदा ओ सभकेँ बैसार कऽ कऽ बुझा देलखिन जे दुनियाँमे जते मनुक्ख अछि, सभ मनुक्ख छी, तेँ मनुक्ख-मनुक्खक बीच छुआछुत नै हेबाक चाही। थोपड़ी बजा सभ हुनकर विचारक समर्थन कऽ देलक। ओहि दिनसँ पानिक छुआछुत गामसँ मेटा गेल तहिना दोसर भेल जोगिनदर। भिखारीदासक पक्का चेला। अजीब कला हुनकोमे छलनि। जहिना नचैमे अगिया-बेताल, तहिना गीत गबैमे। जे पार्ट लऽ कऽ स्टेजपर अबैत, धऽ कऽ झहरा दैत। एहेन बिपटा अखन धरि कोनो नाचमे नञि देखलिऐहेँ। ओकरो परसादे गाममे भिखारीदासक नाच कतेको बेर भेल। जखन भिखारीदासक पार्टी छपरासँ पूब मुँहे असाम, बंगाल, नेपाल बिदा होए तँ अपने गाममे रुकै। खाली खेनाइ आ इजोतक खर्च गौँआक होइ। तहिना जब तीन-चारि मासमे घुमै तँ फेर अँटकै। तहिना भेल महावीर। बेचारा बड़ गरीब छल। नोकरी करैले कलकत्ता गेल। मुदा नोकरी नहि कऽ रिक्शा चलबए लगल। अजीब संस्कार ओकरोमे छलै। रिक्शो चलबै आ गीतो-कविता बनबै। पहिने तँ लिखल-पढ़ल नै होइ। मुदा अ-आसँ सीखब शुरु केलक। किछुए दिनक बाद लिखबो आ पढ़बो सीखि लेलक। रिक्शापर जखन चलै तँ अपन बनाओल गीत गाबए। एक दिन एकटा साहित्य प्रेमी रिक्शापर चढ़ल रहथि आ महावीर रिक्शो चलबै आ गीतो गाबै। उतड़ै काल कवि पूछि देलखिन। सभ बात महावीर कहलकनि। ओ एकटा कवि गोष्ठीमे आमंत्रित कऽ देलखिन। ओहि गोष्ठीमे पहुँचि महावीर तीनटा कविता आ दूटा गीत गौलक। तहि दिनसँ कवि गोष्ठीमे आमंत्रित हुअए लगल। बंगाल सरकार दस हजारक पुरस्कार आ प्रशस्तिपत्रसँ सम्मानित केलकनि। तहिना भेल कारी खलीफा। जेकरा इलाकाक लोक खलीफा मानैत। बड़का-बड़का दंगलमे पहँुचि ओ आन-आन जिलाक कतेको खलीफाकेँ पटकलक। ओकरा चलैत गाममे कियो ककरो बहू-बेटीकेँ खराब नजरिसँ नहि देखैत। एक बेर एकटा घटना जमीनदारक सिपाही संग घटलै। एक सौ लाठी सिपाहीकेँ समाजक बीचमे मारलक। तेही दिनसँ जमीनदार दू बीघा खेत ओहिना दऽ देलकै। एहेन-एहेन पंडित, कलाकारक बनाओल गाम छी, तेकरा हम सभ, अपना जीवैत कोना दुइर कऽ देबै। आइ जँ गाम दुइर हएत तँ अगिला पीढ़ी ककरा गारि पढ़तै। तेँ जँ दुनू गोटे मनुक्ख बनि गाममे रहए चाहताह तँ बड़बढ़ियाँ, नहि तँ गाममे रहने कियो समाज तँ नहि बनि जाइत।’
अमानत भेल। कोनो बेसी झमेल रहबे नै करै। पाँच कट्ठा कऽ दू भाग केनाइ। बँटवारा करैत रामचन्द्र अमीन कहलखिन- ‘जिनका संदेह हुअए ओ चाहे कड़ीसँ, वा फीतासँ, वा लग्गीसँ वा डेगसँ भजारि लिअ।’

नवेन्दु कुमार झा- अस्तित्वक लेल संघर्ष करैत पटनाक विद्यापति स्मृति पर्व

अस्तित्वक लेल संघर्ष करैत पटनाक विद्यापति स्मृति पर्व
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मिथिलांचलक सांस्कृतिक धरोहर महाकवि विद्यापतिक जयन्तीक प्रतीक्षा मिथिलावासी वर्ष भरि करैत छथि। कार्तिक धवल त्रयोदशीकेँ प्रति वर्ष मनाओल जाएवला एहि वार्षिक उत्सवमे पूरा मनोयोगक संग मिथिलावासी शामिल होइत छथि। एहि क्रममे राजधानी पटनामे आयोजित होमएवाला विद्यापति स्मृति पर्वक प्रतीक्षा सेहो राजधानीक मिथिलावासीकेँ रहैत अछि। मुदा एहि वर्ष एहि आयोजनपर जेना ग्रहण लागि गेल अछि। बढ़ैत संसाधनक बावजूद आयोजक एहि सांस्कृतिक उत्सवक स्वरूप वर्ष-दर-वर्ष छोट कएने जा रहल छथि। ई आयोजन आब इतिहास बनबाक द्वारपर ठाढ़ अछि। पछिला चौबन वर्षसँ प्रति वर्ष आयोजित होमएवाला त्रिदिवसीय कार्यक्रम एहि वर्ष एक दिवसीय होएबाक संवाद अछि। पटनाक हार्डिंग पार्कसँ सचिवालय मैदान आ मिलर हाई स्कूल मैदान होइत ई आयोजन जखन भारत स्काउट मैदान धरि आएल ता धरि ई उम्मीद छल जे ई समारोह अपन पुरान गौरवकेँ फेरसँ प्राप्त करत मुदा जखन एहि समारोहक स्थान परिवर्तित कऽ कापरेटिव फेडरेशन परिसर आबि गेल तऽ स्पष्ट भऽ गेल जे आब आयोजक मात्र खानापूर्ति करबाक लेल एकर आयोजन करैत छथि। आ एहि बेरक सूचनापर गौर करी तऽ स्पष्ट होइत अछि जे आब एहि समारोहक आयोजन मात्र औपचारिकता रहि गेल अछि। कोसी क्षेत्रमे आएल बाढ़ि आयोजक सभकेँ एकटा बहाना बनि गेल अछि आ एहि बहाने एहि समारोहक गौरवपूर्ण इतिहासकेँ समाप्त करबापर लागल छथि।
बाढ़ि मिथिलांचलक नियति अछि। शायदे कोनो वर्ष होएत जखन कि एहि प्राकृतिक आपदाक सामना नहि होइत अछि मुदा एहि बेर कोसीमे आएल बाढ़िसँ आयोजक संस्था चेतना समितिक कर्ता धर्ताकेँ अपन गाम-घर दहाएल तँ हुनक दर्द जागि उठल आ कार्यक्रमक समय-सीमा घटा देलनि। दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी आदि मिथिलांचलक कतेको क्षेत्र सभ साल बाढ़िक मारि झेलैत अछि मुदा बिना रुकावट सभ साल तीन दिवसीय विद्यापति स्मृति पर्वक आयोजन होइत रहल अछि। ओहि क्षेत्र सभक चिन्ता समितिकेँ शायद नहि रहैत छल। ज्यो बाढ़िक समस्याक प्रति एतेक गंभीर छलाह तँ पूर्वमे कतेको बेर आएल बाढ़िक बाद एहि आयोजनकेँ छोट कएल जा सकैत छल से आइ धरि नहि भेल। ज्यो अहू बेर आयोजक एहि समस्याक प्रति गंभीर रहितथि तँ एहि समारोहक माध्यमसँ राजधानीक मिथिलावासीक सहयोग बाढ़ि पीड़ितक मदति लेल लऽ सकैत छलाह। एहन रचनात्मक डेग संस्था उठाएत से संस्थाक कर्ता-धर्ताक आदति नहि रहलनि अछि। एहिसँ समितिकेँ सामूहिक श्रेय भेटैत से तऽ संस्थाक महानुभाव लोकनिकेँ कतहु मंजूर नहि छलनि। ओ तँ व्यक्तिगत श्रेय लेबापर विश्वास करैत छथि।
दरअसल चेतना समितिक जुझारू पदाधिकारी सभमे आब काज करबाक चेतना नहि बचल अछि। नहि तँ ओ एहिपर जरूर चिन्तन करितथि जे एहि समारोहमे प्रतिवर्ष दर्शकक संख्या किए कम भऽ रहल अछि। जखन संस्थाक स्तरसँ दर्शककेँ जोड़बाक कोनो प्रयास नहि भऽ रहल अछि तँ एहिमे दर्शक दिससँ प्रयास होएबाक बात सोचब निरर्थक अछि। ओना आयोजक कतेको वर्षसँ एहि समारोहकेँ विराम देबाक प्रयासमे छथि। कखनो चुनावक बहाना बना तँ कखनो कानून व्यवस्थाक बहाने एहि कार्यक्रमक स्वरूपकेँ छोट क देलनि। एहि वर्ष तँ कोसीक विभीषिका तँ मानू हुनक सभक मनोनुकूल वातावरण दऽ देलक। प्रारम्भमे त्रिदिवसीय आयोजनक तैयारीक बाद एकाएक एकरा एक दिवसीय करब मात्र औपचारिकता लागि रहल अछि जाहिसँ कि जे किछु मैथिली प्रेमी छथि अगिला वर्शसँ अपनहि एहि कार्यक्रमसँ कटि जाथि आ दर्शकक अनुपस्थितिक बहाना बना कार्यक्रमकेँ बंद कऽ देल जाए। ई विडम्बना कहल जा सकैत अछि जे पटनामे शुरू भेल विद्यापति स्मृति पर्वक देखा-देखी प्रदेश आ देशक आन क्षेत्रमे वर्ष दर वर्ष पूरा उत्साहक संग आयोजित भऽ रहल अछि आ एहि ठामक आयोजनक अस्तित्वपर संकट आबि गेल अछि। वास्तवमे चेतना समिति आब किछु फोटोजेनिक चेहरा सभक अखाड़ा बनि गेल अछि जे एकर कार्यालय विद्यापति भवनकेँ अपन दलान बुझि अपनहिमे कुश्ती करैत रहैत छथि। कोसीक विभीषिकाक दर्द मठाधीश लोकनिक संग-संग सभ मिथिलावासीकेँ अछि। कोसीक बाढ़ि पीड़ितक दर्द एहि आयोजन माध्यमसँ सभ मिथिलावासीकेँ जोड़ि सामूहिक रूपेँ बाटल जा सकैत छल। ज्यो से नहि तऽ बाढ़ि पीड़ितक मदति लेल प्रदेश आ देशक कतेको क्षेत्रमे सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमक कएल गेल आयोजन व्यर्थ छल।
मिथिलाक कतेको महान विभूति सभक प्रयासँ शुरू भेल राजधानीक ई सांस्कृतिक उत्सव पूरा देशमे एकटा महत्वपूर्ण स्थान रखैत अछि। एहि आयोजनकेँ इतिहास बनेबाक प्रयास करब चिन्ताक विषय अछि। पहिने कार्यक्रमक स्थान छोट करब आ आब एकर समय सीमा घटएलासँ राजधानीक मिथिलावासी मर्माहत छथि। एकरे परिणाम अछि जे छोटे स्तरपर सही राजधानीसँ सटल दानापुर आ राजीवनगरमे किछु वर्षसँ आयोजित भऽ रहल विद्यापति पर्व आब लोकप्रिय भऽ रहल अछि। आब राजधानीक मिथिलावासी चेतना समितिक बदला एहि दुनू स्थानपर होमएवाला आयोजनक प्रतीक्षा करैत छथि। शायद अहूसँ चेतना समिति सचेत होएत आ विद्यापति स्मृति पर्वक अपन पुरान गौरवकेँ पुनर्स्थापित करबाक प्रयास करत।(साभार विदेह www.videha.co.in)

चुनवाली - जगदीश प्रसाद मण्डल



नीन्न टुटितहि मखनी मोथीक बिछान समेटि ओसारक उत्तर-पूब कोनमे ठाढ़ कऽ निच्चाँ उतड़ए लागलि आकि सीढ़ीपर पिछड़ि गेलि। पाएर पिछड़ितहि हाथसँ ओसार पकड़ए चाहलक। मुदा जाबे सरिया कऽ ओसार पकड़ै-पकड़ै ताबे ओलतीमे खसि पड़लि। झलफल रहने कियो दोसर उठल नहि। थोड़बे पहिने एकटा छोटकी अछार भेल। घरक चारसँ ठोपे-ठोप पानि चुबतहि। सीढ़ीपरसँ खसितहि मखनीक दहिना ठेहुनक जोड़ छिटकि गेलै। तत्काल छिटकब नहि बुझलक। एतबे बुझलक जे ठेहुन कट दऽ उठलहेँ। मनमे एलै जे कियो देखलक तँ नहि तेँ हाँइ-हाँइ उठए लागलि। जोशमे उठि तँ गेलि मुदा ठेहुनक कचकबसँ फेर ओसार पकड़ि सीढ़ियेपर बैसि गेलि। बैसितहि मनमे बिचार उठए लागलै- कोना मटकुरियाक बेटाक परबरिस चलतै....ढेरबा बेटी छै बिआह कन्ना करत.... अपना कमाइक कोनो लुरि नहि छैक.... बहुओ धमधुसरिये छै.... अपना खेत-पथार नहि छै.... गामक लोको तेहेन अछि जे ककरो कियो नीक नहि करैत.... हे भगवान कोन बिपत्ति दऽ देलह?
कने काल गुम्म रहि बेटाकेँ जोरसँ सोर पाड़ि कहलक- ‘मटकुरिया, रौ मटकुरिया?
दुनू परानियो आ दुनू धियो-पूतो निन्ने भेर। तेँ ने मटकुरिया उठल आ ने कियो दोसर। पुनः दोहरा कऽ मखनी जोरसँ बाजलि- ‘रौ बौआ, बौआ रौ। हम पिछड़ि कऽ खसि पड़लौं से उठिये ने होइए।’
धड़फड़ा कऽ उठैत मटकुरिया बाजल- ‘माए-माए, अबै छी।’
ताधरि फुलियो, कबुतरियो आ बेटोक नीन टुटल। कहि केवाड़ खोलि मटकुरिया दौगल माए लग आबि पुछलक- ‘कोना कऽ खसलैं ?’
पाछुसँ स्त्रियो आ बेटो-बेटी पहुँचल। बेटा तँ पाँचे बर्खक मुदा तैयो माए-बापक देखा-देखी करैत दादीकेँ पकड़लक। चारु गोटे उठा मखनीकेँ ओसारपर लऽ गेल। बिछान बिछा सुता देलक। कनी-कनी ठेहुन फुलए लगल। फुलब देखि फुलिया पतिकेँ कहलक- ‘अहाँ पहिने डाकडर बजा लाउ। हम ताबे कड़ू तेलसँ ससारि दै छिअनि। बुच्ची घरसँ तेलक शीशी नेने आ।’
मटकुरिया डाॅक्टर ऐठाम बिदा भेल। तेलक शीशी अानए कबुतरी घर गेलि। तहि बीच मंगनिया दादीकेँ कहए लगल- ‘आँइ गै बुढ़िया, एतने उपर से....।’
बेटाक मुँहपर फुलिया हाथ दऽ आगू बाजब रोकि देलक। मुदा पोताक बातसँ मखनीकेँ एक्को मिसिया दुख नहि भेलि। मुस्की दैत बाजलि- ‘बिलाइ खसा देलक।’
शीशीक मुन्ना खोलितहि कवुतरी आएल। दुनू माए-धी तरहत्थीपर तेल लऽ लऽ दुनू हाथमे मिला, दहिना पाएर-जाँघ सहित- मे ओंसइ लागलि। मखनीक ठेहुनक दर्द बढ़िते जाइत। जाहिसँ दुनू गोटेकेँ ससारब छोड़ि दै लेल कहलक। ताबत डाॅक्टरक संग मटकुरियो पहुँचल। मखनीक ठेहुन देखितहि डाॅक्टर कहलखिन- ‘हिनका ठेहुनक जोड़ छिटकि गेल छन्हि। पलस्तर करबए पड़त। ताबत दर्द कम होइ ले इन्जेक्शन दऽ दै छिअनि। पलस्तरक समान सभ मंगबए पड़त।’
एक्के-दुइये गामक जनिजाति पहुँचए लागलि। जनिजातिक संग धियो-पूता। लोकसँ मटकुरियाक आंगन भरि गेल। पलस्तरक समान मंगा डाॅक्टर पलस्तर करैत कहलखिन- ‘चिन्ता करैक बात नहि अछि। पनरह दिनमे ठीक भऽ जेतनि।’ कहि अपन फीस लऽ चलि गेलाह। मुदा लोकक आबा-जाही लगले। रंग-विरंगक गपसँ अंगना गनगनाइत।
भरि दिन सभ तुर मटकुरिया भुखले रहि गेल। ने भानसपर ध्यान गेलै आ ने ककरो भूखे बुझि पड़लै। घरमे चूड़ा रहए। जे मंगनिया खेलक। बेर झुकैत-झुकैत अंगना खाली भेलै। खाली अपने पाँचो गोटे अंगनामे रहल। सबहक मनो असथिर भेलै। सभ -मटकुरियो, फुलियो आ कबुतरियो- अपना-अपना ढ़ंगसँ सोचए लगल। ओना कहियो-काल, सासुकेँ मन खराब भेने वा कतौ गाम-गमाइत गेने, फुलिये चून बेचए जाइत। सभ काज बुझले तेँ मनमे बेसी चिन्ता नहि। चिन्ता खाली एतबे जे कहुना सासु माने माएक परान बचि जाइन। मुदा खुशी बेसी। सोलह बर्खसँ सासुर बसै छी मुदा अखन धरि घरक गारजन नहि बनलहुँ। लोककेँ देखै छिऐ जे सासुर अबितहि अपन जुइत लगबए लगैत अछि। भगवान हमरो दहिन भेलाह। आब हमहूँ गार्जन बनब। घरक गारजन तँ वएह ने होइत जे कमाइत अछि। जे उपारजने नै करत ओ घरक जुतिये-भाँति की लगौत। अगर जँ लगेबो करत तँ चलतै कोना? छुछ हाथ थोड़े मुँहमे जाइत छैक। काजक अपन रस्ता होइत अछि। जे केनिहारे बुझैत। बिनु केनिहार जँ जुतिये लगौत तँ ओ या तँ दुरि हेतै वा गरे ने लगतै। ओना अखन फुलियाक घरोबला आ सासुओ जीविते, तेँ गारजनियो हाथमे आएब कठिन। मुदा तैयो आशा। अखन धरि सिन्नुरो-टिकुली लेल खुशामदे करै छलि, से आब नहि करै पड़तै। तेँ खुशी।
कबुतरीक मनमे एहि दुआरे खुशी होइत जे जते लूरि दादीकेँ अछि ओते लूरि गाममे ककरो नहि अछि। मुदा कमाइक तेहेन भुत लगि गेल छै जे जइ दिन मरत तही दिन छोड़तै। सभ लूरि संगे चलि जेतै। तेँ नीक भेलै जे अवाह भऽ गेल, आब तँ अंगनामे रहत। जखने अंगनामे रहए लगत तखने एका-एकी सभ लूरि सीखए लगब। मुदा दादीएकेँ की दोख देबै। भरि दिन दस सेरक छिट्टा माथपर नेने बुलैत अछि तँ देह-हाथ दुखेबे करतै। साँझखिन कऽ थाकल-ठहिआएल अबैए असुआकेँ पड़ि रहैए। से आब नञि हेतै। निचेनसँ पावनियो-तिहारक विधि-विधान आ गीतो-नाद सीखब। एत्तेटा भऽ गेलौंहेँ, ने अखैन तक एक्कोटा गीत अबैए आ ने विआह-दुरागमनक अड़िपन बनौल होइ अए। कइए दिन मनमे अबैए जे मालतिये जेकाँ हमहूँ अपन गोसाँइ घरक ओसारमे पुरैनिक लत्ती, कदमक गाछ लिखी। से लुरियो रहत तब ने। साँझू पहरकेँ जते खान जतै छिऐ तते खान समयो भेटैए ते नहिये होइए। किएक तँ बिछानपर पड़िते ओंघा जाइए। जँ पुछबो करै छिऐ तँ अइ गीतक पाँति ओइ गीतमे आ अोइ गीतक भास अइ गीतमे कहए लगैत अछि। जाहिसँ किछु सीखि नहि पबैत छी।
मटुकलालकेँ एहि दुआरे खुशी होइत जे बेटा-पुतोहूक रहैत बूढ़ि माए एते खटए से उचित नहि। मुदा कहबो ककरा करबै। हमरा कोनो मोजर दइए। दूटा धिया-पूता भेल। बेटिओ विआह करै जोकर भऽ गेलि मुदा हमरा बच्चे बुझैए। हम की करु। तेँ भगवान जे करै छथिन से नीके करै छथिन। भने आब भारी काज करै जोकर नहि रहलि। जे अपनो बुझत आ मनाही करबै तँ मानियो जाएत। मरैक डर ककरा नै होइ छै। तहूमे बूढ़-बुढ़ानुसकेँ। तेँ मने-मन खुश। लोक हमरा तड़िपीबा बुझि बुड़िबक बुझए। तेँ की हम बुड़िबक छी। कियो बुझैए तँ बुझऽ। जहिया बाबू मुइलाह तहिया जते भार कपारपर आएल, से कियो आन सम्हारि दइए। की अपने करै छी। पसिखन्ने जाइ छी तँ की लुच्चा-लम्पटक संग बैसि पीबै छी जे चोरी-छिनरपन्नी सीखब। या तँ असकरे बैसि कऽ पीबै छी या बड़का लोक लग बैसि कऽ पीबै छी। बड़का लोेकक मुँहमे सदिखन अमृत रहैत छैक। रमानन्द बाबूसँ गियनगर लोक अइ इलाकामे दोसर के अछि। तिनकासँ हमरा दोस्ती अछि। हुनकर ओ बात हम गिरह बान्हि नेने छी जे जहिना कियो जनमैए, बढ़िकेँ जुआन होइए। जुआनसँ बूढ़ भऽ मरि जाइत अछि। ई तँ दुनियाँक नियमे छिऐ। सभकेँ होएत। जे नहि बुझत ओ नहि बुझह। मुदा हम तँ ओएह मानै छी। फेर माए दिशि नजरि घुरलै। मने-मन सोचए लगल जे माइयक पाएर टुटब कोनो अनहोनी थोड़े भेलै। ई तँ भगवानक लीले छिअनि। भगवान कखनो अपना सिर अजस लेताह। कोनो ने कोनो कारण भइये जाइत छैक। तइले हमरा दुखे किए हएत। जहिना एते दिन बीतल तहिना आगुओ बीतत। एते दिन जहिना माएकेँ, बेचि कऽ घुमैत काल, आगूसँ पथिया आनि दै छलिऐ तहिना आब घरोवालीकेँ आनि देबै। कियो हमरा देखा दिअ तँ जे एक्को दिन हमरा काजमे नागा भेल। गोसाँइ डूबै बेर, कतौ रही, कतवो पीबि कऽ बुत्त रही मुदा तेँ की अपन काज कहियो छोड़ैत छी।
मटकुरिया परिवारक खानदानी जीविका चूनक। महिला प्रधान रोजगार। किएक तँ चूनक बिक्री अंगने-अंगने होइत। शुद्ध गमैआ व्यवसाय। ने चून बनबैक समान बाहरसँ अनै पड़ैत आ ने बेचैक असुविधा। गामक अधिकांश परिवारमे चूनक खर्च। कियो पान खाइत तँ कियो तमाकुल। दुनूमे चूनक जरुरत। चून बनाएबो कठिन नहि। डोका जरा कऽ बनैत। अन्नेक कोठी जेकाँ डोको जरबैक कोठी होइत। मुदा अन्नक कोठीमे उपर छोट मुँह, अन्न ढ़ारैक लेल बनाओल जाइत, जखैनकि चूनक कोठीक उपरका भाग खुलल रहैत। निच्चाँक मुँह दुनूक एक्के रंग। कच्चो मालक कमी नहिये। किएक तँ गरीब-गुरबा लोक डोकाक मांस खाइत। मांसो पवित्र। किएक तँ डोका माटि खा जीवन-बसर करैत। डोकेक उपरका भागसँ चून बनैत।
चूनक बजारो गामे-घर। बिरले गोटे घरमे चूनक खर्च नहि होइत, नहि तँ सबहक घरमे होइत। पहिने मटकुरियाक दादी-परदादी चून बेचैत छलि, मुइलाक पछाति माए बेचए लागलि। सात दिनक सप्ताहमे पाँच दिन मखनी भौरी गामे-गामे करैत। एक-एक गाममे एक-एक दिनक पार बनौने। आठ दिन खर्चक हिसाबसँ सभ कियो चून कीनैत। सभ काज अन्दाजेसँ। अन्दाजेसँ चूनो दैत आ अन्दाजेसँ -धान-मड़ुआ- बेचो लैत। कोनो हरहर-खटखट नहि। किएक तँ मनक उड़ान छोट। ने कोठा-कोठीक इच्छा, ने सुख-भोगक। बान्हल मन तेँ मात्र मनुक्ख बनि जीबै टाक इच्छा।
बजारोक प्रतियोगिता नहि। कारोबारमे छीना-झपटी नहि। किएक रहतै। जहिना जातिक शासन तहिना समाजक दंडात्मक रुखि। समाजमे निश्चित जाति निश्चित काजसँ बान्हल। एकक काज दोसर नहि करैत, तेँ लक्कड़-झक्कड़ कम। जेना डोम, नौआ, धोबि, बरही कुम्हार इत्यादिक अपन-अपन जीविकाक धंघा। जे कड़ाइसँ पालन होइत। दुनू बिन्दुपर। कराओलो जाइत आ करबो करैत। सीमित क्षेत्रक बीच कारोबार। कियो अतिक्रमण नहि करैत। जँ कहीं-कतौ अतिक्रमण होइत तँ जातिक बीच ओकर फरिछौट होइत। तेँ सभ अपन-अपन सीमाक भीतर रहैत। हँ, ई बात जरुर होइत जे सीमाक भीतर भैयारीक बँटबारासँ विभाजित होइत। मुदा मटकुरियाक परिवार एक पुरिखियाह, तेँ एहेन प्रश्ने नहि। रोजगारोक लेल तहिना। सभक अपन-अपन सीमित क्षेत्र। एक क्षेत्रमे दोसरक प्रवेश बर्जित। मुदा बेर-बेगरतामे एक-दोसराकेँ भार दऽ समाजक काजमे बाधा उपस्थिति नहि हुअए दैत।
चून बेचि मखनी सिर्फ परिवारे नहि चलबैत। महाजनियो करैत। किएक तँ सोलहो आना श्रमे पूँजी। मेहनत कऽ डोका एकत्रित करैत। डोका जरा कऽ चून बनबैत। आ अन्नसँ चून बदलैत। चूनक कीमतो अलग-अलग। जहिठाम गरीब लोक चुनक कम कीमत दैत तहिठाम सुभ्यस्त किछु बेशिये दैत। पाँचे गोटेक परिवार मखनीक। कते खाएत। तेँ फजिलाहा अन्न सवाइपर लगबैत। सेहो बिना लिखा-पढ़ीक। मुँह जवानी। जहिसँ किछु उपरो होइत किछु बुड़ियो जाइत। पाँच गाममे मखनीक कारोबार। अगर जँ एहिसँ आगू कारोबार बढ़बए चाहत तँ सम्हारले ने होइत। किएक तँ डोका जमा करैसँ चून बनबै धरि, दू दिन समए लगि जाइत। आठे दिनपर बिक्रीक बीट घुमैत। तेँ पाँच गामसँ बेशी गाम सम्हारब कठिन।
टाँग अवाह होइतहि मखनी चून बेचब छोड़ि देलक। मुदा परिवारक रोजगार बन्न नहि भेलै। आब फुलिया बेचए लागलि। चिन्हार गाम चिन्हार गहिकी। तेँ कतौ बाधा नहि। मुदा मखनीक महाजनी बुड़ि गेल। किएक तँ पाँचो गाममे पाँच गोटे ऐठाम अपन धान-मड़ुआ रखैत छलि, ओहि ठामसँ ओहि गाममे सवाइ लगबैत छलि। अपन आवाजाही बन्न भेने बिसरि गेलि। लेनिहारो बिसरि गेल। मुदा तइ लेल मखनीक मनमे दुख नहि भेलै। खुशिये भेलै। खुशी एहि दुआरे भेलै जे जावत देहमे ताकत छलै ताबत अपनो, परिवारो आ दोसरोकेँ खुऔलौं। जिनगीक सार्थकता अइसँ बेशी की हएत। यएह ने धर्म छी। धर्ममय जिनगी बना बुढ़ाढ़ी धरि जीवि लेब, अइसँ बेशी की चाही। तेँ मने-मन खुशी।
समए आगू बढ़ल। कारोबारक रुपो बदलल। कोना नहि बदलैत? समयोक तँ कोनो ठेकान नहि। कोनो साल अधिक बरखा होइत तँ कोनो साल रौदी। अधिक वर्षा भेने तँ अधिक डोकाक वृद्धि होइत। मुदा रौदीमे कमि जाइत। बिसबासु कारोबारक लेल वस्तुक उपलब्धि अनिवार्य। जे आब नहि भऽ पबैत। मुदा समयो तँ पाछु मुहे नहि आगू मुँहे ससरत। पत्थर-चून बजारमे आबि गेल। पर्याप्त वस्तुक उपलब्धि भऽ गेल। बाजारो बढ़ल। जहिठाम उमरदार लोक तमाकुल-पान सेवन करैत छलाह तहिठाम आब स्कूल-कओलेजक विद्यार्थी सेहो करै लगल। ततबे नहि बाल-श्रमिक सेहो करए लगल। गामे-गाम चौक-चौराहा बनि गेल। जाहिसँ चाह-पान खेनिहारो बढ़ल। ओना तमाकुल-पानक अतिरिक्त पान-पराग, शिखर, रंग-विरंगक गुटका सेहो बढ़ि गेल। तेकर अतिरिक्त सार्वजनिक उत्सब सेहो बढ़ल। परिवारक मांगलिक काज विआह, मूड़न, सराध, सेहो नमहर भेल। जहिसँ पान-तमाकुलक खर्च बढ़ल। तेँ चुनोक खर्च कते गुणा बढ़ि गेल।
मखनीक जगह फुलिया लेलक। ओना घरक रोजगार तेँ फुलियोकेँ किछु सीखैक जरुरत नहि। सभ बुझले। सासुक रहितहुँ, कहियो-काल फुलियो बेचए जाइत छलि। किएक तँ जहि दिन मखनी नैहर जाइत तहि दिन फुलिये बेचैयो जाइत आ डोका आनि-आनि चूनो बनबैत। मुदा आब चून बनबैक रुपे बदलि गेल। लोको डोकाक चूनक बदला पत्थर-चून खाए लगल। ओना अखनो बुढ़-पुरान सभ पाथरक चूनकेँ घटिया बुझैत। जे तेजी डोकाक चूनमे होइत ओ पाथरक चूनमे नहि। मुदा हारल नटुआ की करत।
चून बेचैक रुपो बदलल। अखन धरि जे अंदाजसँ बिक्री होइत छल ओ आब तौल कऽ हुअए लगल। बेचक जगह पाइ लेलक। ओना अन्नोक चलनि सोलहन्नी समाप्त नहिये भेलहेँ। आब ओतबे अन्न पड़ैत जे आन ठाम रखैक जरुरत फुलियाकेँ नहि होइत। पाइ बौगलीमे रखैत आ अन्न पथियामे। ओना कर्जखौक सेहो कमल। किएक तँ समएक आगू बढ़ने खाइ-पीबैक उपाए सेहो लोककेँ भेल। बोइन सेहो सुधरल। पाइक आमदनी किसानोकेँ हुअए लगल। लोकक पीढ़ियो बदलल। जाहिसँ विचारोमे बदलाव आएल।
समएक आगू बढ़ने कारोबार असान भेल। जाहिसँ मटकुरियाक परिवार सेहो आगू मुँहे ससरल। मुदा मटकुरिया जहिनाक तहिना रहि गेल। पहिने जे मटकुरिया माएक संग डोका अनैत छल ओ आब एक्के ठाम बजारसँ चून कीनि कऽ लऽ अबैत अछि। सुखल चून। सुखल चूनकेँ गील बनबैमे सेहो अधिक फीरिसानी नहिये।
फागुन मास। शिवरातिक तीनि दिन पछाति। धुरझार लगन चलैत। मेला जेकाँ बरिआती चलैत। अंग्रेजीबाजा आ लाउडस्पीकरक अवाजसँ वायुमंडल दलमलित। आइ सबेरे -आन दिन चारि बजे- मटकुरिया पसिखाना विदा भेल। समइयो सोहनगर। झिहिर-झिहिर हवा चलैत। अकासमे जहिना चिड़ै गीत गबैत तहिना हवामे गाछ-बिरीछ नचैत। पसिखाना पहुँचते मटकुरियाकेँ पासी कहलक- ‘भैया, आइ निम्मन बसन्ती माल अछि, खजुरिया नहि ताड़क।’
पासीक बात सुनि मटकुरियाक मनमे खुशी उपकल। मने-मन सोचलक जे दू गिलास आरो बेसी चढ़ा देबै, बाजल- ‘तब तँ आइ जतरा नीक बनल अछि।’
पासी- ‘अहाँ तँ हमर पुरान अपेछित छी भैया, तेँ दू गिलास ओहिना मंगनिये पिआएब।’
दू गिलास मंगनी सुनि मटकुरिया सोचलक जे पहिल दिन छिऐ तेँ आन दिनसँ कम कोना लेब? यात्रा तँ पहिलुके दिन नीक होइ छै। बेचाराकेँ सगुन कोना दुरि करबै। मुस्की दैत कहलक- ‘बड़बढ़ियाँ। अपनो मिला कऽ नेने आबह।’
वसन्ती ताड़ी, पीबिते मटकुरियाकेँ रंग चढ़ए लगल। ताड़ी पीबि मटकुरिया सोझे, पसिखन्नेसँ, पत्नीकेँ माथ परक पथिया अानए दछिनमुँहे बिदा भेल। गामक दछिनवरिया सीमापर ठाढ़ भऽ आगू तकलक। जते दूर नजरि गेलै तहि बीच कतौ पत्नीकेँ अबैत नहि देखलक। कनी-काल पाखरिक गाछ लग ठाढ़ भऽ सोचए लगला जे आगू बढ़ी वा एतै रुकि जाइ। अंग्रेजी बाजा आ लाउडस्पीकरक फिल्मी गीत कानमे पैसि-पैसि मनकेँ डोलबैत। मन पड़लै अपन विआह। बिआह मन पड़िते फुलियाक रुप आगूमे ठाढ़ भऽ गेलै। गुनधुन करैत सोचलक जे ऐठाम ठाढ़ भऽ कऽ समए बिताएब, तहिसँ नीक जे आरो थोड़े बढ़ि जाइ। आगू बढ़ल। किछु दूर आगू बढ़लापर पत्नीकेँ अगिला गाम टपि अबैत देखलक। बाधो कोनो नमहर नहि। फुलियाक नजरि सेहो मटकुरियापर पड़ल। दुनूक डेग तेज भेल। तेज होइक दुनूक दू कारण। मटकुरियाक मनमे जे जते जल्दी लगमे पहुँचब तते जल्दी भार उतड़तै। जखैनकि पसीनासँ नहाएल फुलियाक मनमे शान्ति। शान्ति अबितहि पथिया हल्लुक लगए लगलै। दुनूक मनमे कतेको नव-नव विचार अाबए लगलै।
लग अबितहि मटकुरिया धोतीक ढ़ट्ठा सरिऔलक। किएक तँ माथपर भारी एलासँ डाँड़क धोती डाँड़मे बैसि जाइत। ढ़ट्ठा सरिया गमछाक मुरेठा बान्हि दुनू हाथसँ पकड़ि फुलियाक माथ परक पथिया अपना माथपर लेलक। माथपर लैते किछु कहैक मन मटकुरियाकेँ भेल। मुदा किछु बाजल नहि। किएक तँ फेर मनमे एलै जे बेचारी थाकल अछि, तेँ मन अगिआइल होएत। हो ने हो किछु करुआएल बात बाजि दिअए। जखैनकि एकाएक माथ परक भार उतड़लासँ फुलियाक मन हल्लुक भेल। मुदा ओहो किछु बाजलि‍ नहि, ओहिना देह कठिआएल। आगू-पाछू दुनू बेकती घर दिशि बिदा भेल। जते आगू बढ़ैत तते फुलियाक मन हल्लुक होइत आ मटकुरियाक मन भारी। पत्नीसँ किछु कहैक विचार मटकुरियामे कमए लगल। जना मुँह खोललासँ भारी बढ़त। मुदा जना-जना आगू बढ़ैत तना-तना फुलियाक देहो-हाथ सोझ होइत आ पतिकेँ किछु कहैक मन सेहो होइत। मुदा किछु बजैत नहि। किएक तँ पति-पत्नीक बीच गप्पक आनंद तखन होइत जखन दुनूक मन सम -ने बेसी सुख आ ने बेसी दुख- होइत। से अखन धरि दुनूक –-मटकुरिया आ फुलियाक- बीच नहि भेल। एते काल फुलियाक माथपर पथिया रहने मन पीताएल तँ आब मटकुरियाक हुअए लगल। ने फुलिया पतिकेँ किछु कहैत आ ने मटकुरिया पत्नीकेँ। मुदा बीच रस्ता बाध अबैत-अबैत दुनूक मुँहसँ हँसी निकलल। पथिया नेनहि मटकुरिया पाछु घुमि कऽ तकलक तँ देखलक जे फुलिया मुस्किया रहल अछि। फुलियोक नजरि मटकुरियाकेँ मुस्किआइत देखलक। एक टकसँ एक-दोसरपर आँखि गरौने अपन जिनगी देखए लगल।

मुखीलाल चौधरी

मुखीलाल चौधरी
सुखीपुर – १, सिरहा
हाल ः बुटवल बहुमुखी क्या पस बुटवल
दिनाड्ढ २०६५ जेष्ठ २९ गते बुधदिन ।

धीरेन्द्र बाबु,
नमस्कादर
बहुत दिनक बाद अपनेक कार्यक्रम “हेलौ मिथिलामें” चिठ्ठी पठारहल छी ।
आशेटा नहि वरण विश्वा स अछि, प्रकाशित होएत ।
दिनाड्ढ २०६५ जेठ १४ गते मंगलदिन जनकपुरधाममें लोकार्पण भेल “समझौता नेपाल”क दोसर प्रस्तुटति गीति एल्व म “भोर” क गीतके संगही समझौता नेपालक निर्देशक नरेन्द्रमकुमार मिश्रजीक साक्षात्का‍र दिनाड्ढ २०६५ जेठ १८ गते शनिदिन कान्तिंपुर एफ़एम़के सर्वाधिक लोकप्रिय कार्यक्रम “हेलौ मिथिलामें” सुनबाक मौका भेटल । संघीय गणतान्त्रि क नेपालक भोरमे समझौता नेपालद्वारा प्रस्तुकत केल गेल गीति एल्बलम भोरके लेल समझौता नेपालक निर्देशन नरेन्द्रदकुमार मिश्रजीके हार्दिक बधाई एवं शुभकामना । आगामी दिनमें समझौता नेपाल मार्फत गीति यात्राके निरन्तनरततासँ गीत या संगीतके माध्यएमसँ मिथिलावासी आ मधेशी संगही सम्पूबर्ण आदिबासी थारु में जागणर लावय में सफल होवय आओर मिथिलावासी, मधेशी, आदिवासी थारु संगही सम्पूहर्ण देशवासीमें सदाशयता, सदभावना, सहिस्णुतता आ स्नेकहमें प्रगाढता बढावमें सफलता प्राप्तू होवय, एकर लेल साधुवाद ।
गीतकार सभहक गीत उत्कृरष्टह अछि, कोनो गीत वीस नहि सभटा एकाईस । एकसँ बढी कय एक । गीतकार सभहक गीतके सम्वयन्धगमें छोटमें अलग अलग किछु कहय चाहैत अछि
रुपा झाजीक गीत शिक्षा प्रति जागरुकता आ चेतानक सन्दे श द�रहल अछि । ज्ञान प्रकाश अछि आओर अज्ञान अन्धगकार । अन्धरकारसँ वचवाक लेल ज्ञान प्राप्त केनाइ आवश्यरक अछि । “केहनो भारी आफत आवौ, ज्ञानेसँ खदेड” पाति कोनो समस्याध किएक नहि विकराल होय ज्ञान आ वुद्धि सँ समाधान करल जा सकैत अछि ।
पुनम ठाकुरजीक गीत सब सन्तातन समान होइछ, बेटा—बेटीमे भेदभाव नहि होयबाक आ करबाह चाहि सन्देठश द�रहल अछि । “मुदा हो केहनो अबण्डर बेटा, कहता कुलक लाल छी ” सिर्फ एक पातिस आजुक समाजमें बेटा—बेटी प्रति केहन अवधारणा अछि, बतारहल छथि ।
मिथिलाके माटि बड पावन छै । संस्काणर आ अचार–विचार महान छै । आओर वएह माटिक सपुत साहिल अनवरजी छथि । जई माटिमें साहिल अनवरजी जकाँ मनुक्‍ख छथि ओही माटिमे सम्प्र दायिकताक काँट उगिए नहि सकैछ । उगत त मात्र सदभावना, सदाशयता, माया—ममता, स्नेकहक गाछ । जेकर गमकसँ सभकेओ आनन्दिहत रहत आ होएत ।
“जतय हिन्नुतओ राखि ताजिया, मान दिअए इसलामके
छठि परमेसरीक कवुलाकय मुल्लो जी मानथि रामके”
सँ इ नहि लागि रहल अछि ? कि मिथिलाके पावन माटिमें सहिश्णु ताक सरिता आ बसन्तेक शीतल बसात बहिरहल अछि । धन्य छी हम जे हमर जनम मिथिलाक माटिमें भेल अछि ।
धीरेन्द्रि प्रेमर्षिजीक गीत सकारात्मथकतासँ भरल अछि । समस्याे किएक नहि बडका होबय आ कोनो तरहके होय निरास नहि होयवाक चाहि आओर सदिखन धैर्य—धारणकय सकारात्मेक सोच राखिकय आगाँ बढवाक चाहि । संगहि जाहि तरहसँ माँ–बाप अपन सन्ताकनक लेल सदिखन सकारात्मकक दृष्टिँकोण राखैत छथि, वएह तरहसँ संतानक कर्तव्यत होइछ जे ओ सभ अपन वुढ माँ–बाप प्रति वहिनाइते दृष्टिककोण अपनावैत । गीतके शुरुके जे चार पाति
“संझुका सुरजक लाल किरिनिया, नहि रातिक इ निशानी छै
छिटने छल जे भोर पिरितिया, तकरे मधुर कहानी छै” ।
सकारात्मेकताक द्योतक अछि । एकर संगहि
“सोना गढीके इएह फल पौलक, अपने बनि गेल तामसन
वाह बुढवा तैओ वाजैए, हमर बेटा रामसन” इ पातिसँ मा–बापके अपन सन्तादनक प्रति प्रगाढ माया ममताक बोध करारहल अछि ।
नरेन्द्र कुमार मिश्राजीक गीत इ बतारहल अछि कि संसारमे प्रेम, स्नेबह, माया–ममता अछि तएँ संसार एतेक सुन्द र अछि । यदि प्रेम, स्नेंह, माया–ममता हटा देल जाय त संसार निरस भ�जाएत आ निरस लाग लागत । तएँ हेतु एक दोसरक प्रति प्रेम, स्नेंहक आदन–प्रादान होनाइ आवश्याक अछि ।
“आखि देखय त सदिखन सुन्द्र सृजन
ठोर अलगय त निकलय मधुरगर बचन”
पाती सँ प्रेम आ स्नेरह वर्षा भ�रहल अछि, लागि रहल अछि ।
वरिष्टँ साहित्यगकार, कवि, गीतकार द्वय डा़ राजेन्द्रो ॅविमल� जी आ चन्द्रिशेखर ॅशेखर� जीके गीत अपने अपनमे उत्कृरष्टर आ विशिष्ट अछि । हिनका सभक गीत सम्बनन्धॅमे विशेष किछु नहि कहिके हिनका सभक गीतक किछु पाति उधृत कयरहल छी, सबटा बखान कैय देत ।
डा़ राजेन्द्री विमल जीक पातिक
“जगमग ई सृष्टिृ करए, तखने दिवाली छि
प्रेम चेतना जागि पडए, तखने दिवाली छि
रामशक्ति आगुमे, रावण ने टीकि सकत
रावण जखने डरए, तखने दिवाली छि”
अपने अपनमे विशिष्टडता समाहित केने अछि ।
ओही तरहे चन्द्रषशेखर ॅशेखर� जीक गीतक निम्न। पाति अपने अपनमे विशिष्ट अछि
“साँस हरेक आश भर, फतहक विश्वा सकर
बिहुँसाले रे अधर, मुक्त हो नैराश्य‍–डर
रोक सब विनाशके, ठोक इतिहासके
दग्धसल निशाँसके, लागल देसाँसके”
हमर यानी मुखीलाल चौधरीक गीतके सम्बिन्धामे चर्चा नहि करब त कृतघ्ननता होएत । हमरद्वारा रचित गीत भोरक संगीतकार धीरेन्द्रक प्रेमर्षिद्वारा परिमार्जित आ सम्पातदित केल गेल अछि । तएँ एतेक निक रुपमे अपने सभहक आगाँ प्रस्तु त भेल अछि । हमर गीतके इएह रुपमे लाबएमे धीरेन्द्रत प्रेमर्षिजीक उदार या गहन भुमिका छैन्हआ । एकर लेल प्रेमर्षिजीके हम मुखीलाल चौधरी हार्दिक धन्यरवाद ज्ञापन करए चाहैत छी ।
सभटा गीतके संगीत कर्णप्रिय लगैत अछि । सुनैत छी त मोन होइत अछि फेर–फेर सुनी । कतबो सुनलाक वादो मोन नहि अगहाइत अछि । एतेक निक संगीतक लेल धीरेन्द्रइ प्रेमर्षिजीके हार्दिक बधाई आओर अगामी दिन सभमे एहोसँ निक संगीत दय सकैत, एकर लेल शुभकामना आ साधुबाद ।
सभ गीतकार, संगीतकार, गायक–गायिका इत्याादिक संयोजन कय बड सुन्दगर आ हृदयस्पछर्शी गीति एल्बीम “भोर ” जाहि तरहसँ हमरा सभहक आगाँ परोसने छथि, एकर लेल भोरक संयोजक रुपा झा जीके हार्दिक बधाई । अन्तनमे सभ गीतकार, संगीतकार, गायक–गायिका, संयोजक आ समझौता नेपालक निर्देशकके हादिक वधाई ।(साभार विदेह www.videha.co.in)

रिक्साबला - जगदीश प्रसाद मण्डल



‘ओ रिक्शा, ओ रिक्शा।’ - कने फड़िक्केसँ जीबछ जोरसँ बाजल। हाथमे बम्बैया बैग, जिन्स पेन्ट आ शर्ट पहीरिने, दहिना हाथमे चौड़गर घड़ी। फुल जुत्ता, मौजा सेहो लगौने। बम्बैये हिप्पी कट केश, बुच्चा मोछ आ आँखिपर चश्मा। बचनू रिक्शाबला अपन ताशक संगीक संग ताश खेलाइत। ताशो ओहिना नहि खेलैत, एक सेटपर चारु गोटेक चाह-पान खर्च, हरलाहा पार्टीकेँ देमए पड़ैत। पाँचटा लाल बचनूक जोड़ाकेँ। तेँ एक्केटा सेठ होइमे बाकी। एकटा लाल हएत, चाह-पानक जोगार लगत। तेँ एकाग्र भऽ बचनू लालक पाछु दिमाग लगौने। ताशक चौखड़ी लग आबि जीवछ दुइभेपर बैग रखि रुमालसँ मुँह लग हौंकए लगल। कने काल हौंकि रिक्शाबलाकेँ चड़िअबैत कहलक- ‘हौ भाय, हमरा बहुत दूर जाइक अछि, झब दे चलह?’
ताश परसँ नजरि उठा, जीबछ दिशि देखि बचनू बाजल- ‘भाय, केहेन सुन्दर ठंढ़ा छै, कनी सुसता लाए। तोरो देखै छिअह जे पसीनासँ तड़-बत्तर भेल छह। हमरो एक्केटा लाल बाकी अछि, दू-तीन खेपमे भइये जाएत। अगर जँ अपन लाल नहियो हएत आ विरोधियेकेँ दूटा कारी भऽ जेतै, तैयो जीत हेबे करत।
बचनूक बात सुनि जीबछ शर्टो आ गंजिओ निकालि कऽ रौदमे पसारि देलक। आसीन मास। तीख रौद। तइ परसँ गुमकी सेहो। रेलबे स्टेशनसँ जीबछ पएरे आएल। किएक तँ स्टेशनक बगलेमे तेहेन खच्चा बाढ़िमे बनि गेल जे रिक्शो आ टमटमोक रास्ता बन्न भऽ गेलै। पएरे लोक कहुना कऽ थाल-पानिमे टपैत। बाढ़ि तँ तेहेन आएल छल जे जँ स्टेशन ऊँचगर जमीनपर नहि रहैत तँ ओहो भसि कऽ कतए-कहाँ चलि जाइत। मुदा तैयो स्टेशनक पूबरिया गुमती, पुल आ आध किलोमीटर रेलबे लाइन दहाइये गेल। रेलवेक दछिन तेहेन मोइन फोड़ि देलक जे गाड़िओ बन्न भऽ गेल। डेढ़ मासमे पुलो बनल आ गाड़ियो चलब शुरु भेल।
गाममे रिक्शा बचनुएटा केँ। जाहिसँ कोनो तरहक प्रतियोगिता नहि। प्रतियोगिता तँ शहर-बजारमे होइत, जहिठाम सैकड़ो-हजारो रिक्शा रहैत। अनेरो रिक्शाबला सभ रिक्शापर बैसि, इमहरसँ उमहर घुमबैत आ बजैत- ‘कोट-कचहरी......बैंक.......पोस्ट आॅफिस....... कओलेज.... स्कूल..... स्टेशन..... बस स्टेण्ड...... अस्पताल.... बड़ा बजार..... सिनेमा चौक...... डाकबंगला..... भगतसिंह चौक..... आजाद चौक।
मुदा से तँ गाममे नहि। मुदा तेँ कि गामक रिक्शाबलाकेँ कमाइ नहि होइत। खूब होइत। एक तँ गामक कच्ची रस्ता, तइ परसँ जहाँ-तहाँ टूटलो आ गहूम पटौनिहार सभ कटनौ। एहेन सड़कमे दोसर कोन इंजनबला सवारी सकत। तेँ गामक सवारी रिक्शा। जाहिसँ गामक बेटी-पुतोहूक विदागरी निमहैत। धन्यवाद तँ रिक्शेबलाकेँ दी जे बेचारा छातीपर भार उठा, कखनो चढ़ि कऽ तँ कखनो उतरि कऽ पार लगबैत। कठिन मेहनतक पाइ कमाइत।
अखन धरि ताशक खेल नहि फड़िआइल। किएक तँ कखनो लाल कमि जाए तँ कखनो कारी। अगुताइत जीबछ बाजल- ‘भाय, ताश नै फड़िऐतह। बहुत दुरस्त जाइक अछि। झब दे चलह। नञि तँ अन्हार भेने तोरो दिक्कत हेतह आ हमरो अबेर भऽ जाएत। कहुना-कहुना तँ ऐठामसँ सुग्गापट्टी पाँच कोस हएत।’
बचनू- ‘हँ, से तँ पाँच कोससँ कम नहिये हएत। मुदा तइसँ की? ई की कोनो शहर-बजार छिऐ जे रातिक कोन बात जे दिने देखार पौकेटमारी, डकैती, अपहरण होइ छै। ने रस्तामे भीड़-भड़क्का आ ने कोनो चीजक डर। निचेनसँ जाएब।’
गामक बीचमे चौबट्टी। जहिठाम पान-सातटा छोट-छोट दोकान। जहिसँ गामोक आ आनो गामक लोक चौक कहए लगल। चौकक पछबरिया कोनपर एकटा खूब झमटगर पाखरिक गाछ। जहिपर हजारो चिड़ैक खोँता। दिन भरि चिड़ै सभ चराउर करए बाहर जाइत आ गोसाँइ निच्चा होइतहि पतिआनी लगा-लगा गाछपर अबए लगैत। कतेको रंगक चिड़ै तेँ सभ जातिक चिड़ै अपन-अपन संगोर बना-बना अबैत। ततबे नहि, गाछक डारियो बाँटि नेने अछि। एक जातिक चिड़ै एक डारिपर खोँता बनौने अछि। तेँ एक जातिक चिड़ैसँ दोसर जातिक चिड़ैक बीच ने कहा-कही होइत आ ने झगड़ा-झंझट। मुदा अपनामे एक जातिक बीच नीक-अधलाक गप-सप्‍प जरुर होइत। कथा-कुटुमैतीसँ लऽ कऽ रामायण-महाभारतक किस्सा-पिहानी जरुर होइत। पान-पुनक चरचा सेहो करैत। अधला काज केनिहारकेँ डाँटो-फटकार दैत आ जुरमिनो करैत। ओहि गाछक निच्चाँमे बाटो-बटोही रौदमे ठंढ़ाइत आ पाि‍न-बुनीमे सेहो जान बँचबैत। ताशक चौखड़ी सेहो जमैत।
बचनुक बात सुनि जीबछ पेन्टक पैछला पौकेटसँ सिगरेटक डिब्बा आ सलाइ निकाललक। एकटा सिगरेट अपनो लेलक आ एकटा बचनुओकेँ देलक। दुनू गोटे सिगरेट लगा, रिक्शापर चढ़ि बिदा भेल। कनिये आगू बढ़ल आकि बचनू जीबछकेँ पूछलक- ‘भाय तूँ बम्बैमे रहै छह?’
  ‘हँ’
  ‘मन तँ हमरो बहु दिनसँ होइए मुदा पलखतिये ने होइए जे जाएब।’
  ‘ओइ ठीन मन तँ खूब लगैत हेतह?’
  ‘एँेह भाय मन। की कहबह? जखैनिये डेरासँ निकलबह आकि रंग-बिरंगक छौँड़ी सभकेँ देखबहक। उमेरगरो सभ जे कपड़ा लगौने रहतह से देखबहक तँ बुझि पड़तह जे कुमारिये अछि। मुदा छउरो सभ की ओइसँ कम अछि। एक तँ ओहिना जे छउरी सभ दामी-दामी कपड़ा पहीनने अछि आ सौँसे देह झक-झक करै छै। तइपरसँ छउरो सभ करिक्का चश्मा पहीन लेतह आ निङहारि-निङहारि देखैत रहतह। चश्मो की कोनो एक्की-दुक्की रहै छै। जखैनिये आँखिमे लगेबह आकि देहपर कपड़ा बुझिये ने पड़तह।’
  ‘ओहन चश्मा हमरा सभ दिशि कहाँ छै, हौ।’
  ‘ऐँह, ओइ ठीन विदेशी चश्मा सभ बिकाइ छै की ने। देहातमे ओहन चश्मा के कीनत।’
चौकसँ कनिये उत्तर एकटा ताड़ीक दोकान। चारि-पाँच कट्ठाक खजुरबोनी। बीच-बीचमे ताड़क गाछ सेहो। उत्तर-दछिने रास्ता। पछबारि भाग ताड़ीक दोकान। ताड़ीक दोकान देखि जीबछ बचनुक पीठमे आगुरसँ इशारा करैत रोकैले कहलक। बचनुक मनमे भेलै जे भरिसक पेशाब करत। रिक्शा रोकि उतरि गेल। जीबछ बाजल- ‘भाय, ताड़ी दोकान देखै छिऐ। चलह दू घोंट पीबि लेब, तखन चलब। हमहीं पाइयो देबै।’
ताड़ीक नाम सुनि बचनू कहलक- ‘ओना ताड़ी हमहूँ पीबै छी मुदा ताड़ी पीबि कऽ ने रिक्शा चलबै छी आ ने ताड़ी पीनिहारकेँ रिक्शापर चढ़बै छी। तेँ अखैन ताड़ी-दारु बन्न करह। जखैन घरपर पहुँचबह तखैन जे मन हुअह से करिहह।’
  ‘भाय, ओतऽ भेटत की नै भेटत, अखैन तँ आगूमे अछि।’
  ‘तब अखैन नै जाह। ताड़ी कीनि कऽ नेने चलह। गामेपर दुनू गोटे पीबि लेब आ रातिमे रहि जइहह।’
  ‘अइठीन कतऽ रहब?’
  ‘से की हमरा घर-दुआर नै अछि। ओतै रहि कऽ राति बीता लिहह। भोरे पहुँचा देबह।’
  ‘अच्छा, ठीक छै, चलह।’
  दुनू गोटे ताड़ी दोकान दिशि बढ़ल। दोकान लग पहुँचते जीबछ घैलक-घैल ताड़ी फेनाइत देखलक। घैलक पतिआनी देखि मने-मन सोचए लगल जे हमरा होइ छलए जे शहरे-बजारक लोक ताड़ी पीबैए। मुदा से नहि गामो-घरक लोक खूब पीबैए। पच्चीस-तीस गोटे दोकानक भीतरो आ बाहरो ताड़क पातक चटाइपर बैसि ताड़िओ पीबैत आ चखनो खाइत। कियो-कियो असकरे पीबैत तँ कियो-कियो दू-दू, तीन-तीन, चारि-चारि गोटेक संगोरमे। कियो खिस्सा कहैत तँ कियो गीत गबैत। कियो अन्हागाहिस गारियो पढ़ैत। सभ उमंगमे। जहिना ताड़ीक फेन उधिआइत तहिना सबहक मन। ताड़ीक खटाइन गंध लगिते जीबछकेँ होए जे कखैन दू गिलास चढ़ा दिऐ।
ताड़ी दोकानसँ कने हटि दूटा बुढ़िया चखनाक दोकान पसारने। एकटा दोकानमे मुरही, घुघनी बदामक कचड़ी आ दोसरमे चारि पाँच रंगक माछक तरुआ। ओंगरिक  इशारासँ मझोलका डाबा देखबैत जीबछ बचनूकेँ कहलक- ‘भाय, दुइये गोरे पीनिहार छी, तेँ वएह डाबा लऽ लाए।’
बचनू- ‘पहिने दाम पूछि लहक?’
डाबाक कान पकड़ि जीबछ पासीकेँ दाम पुछलक। तोड़-जोड़ करैत पैंतीस रुपैयामे पटि गेलै। पेन्टक जेबीसँ नमरी निकालि ओ जीबछकेँ देलक। नमरी पकड़ैत दोकानदार कहलकै- ‘तारिये टाक दाम कटै छिअह। डाबा घुरा दिहह।’
‘बड़बढ़ियाँ’ कहि बचनू डाबा उठा लेलक। डाबाकेँ चखना दोकानक आगूमे रखि बचनू मने-मन सोचए लगल जे औझुका तँ कमाइयो ने भेल। धिया-पूता की खाएत? से नञि तँ तेना कऽ मुरही-कचड़ी कीनि ली जे सभ तुर खाएब। जेहने झुर कऽ कऽ कचड़ी बनौने तेहने माछक कुटिया। एकदम लाल-बुन्द। माछक कुटिया देखि जीबछक मुँहमे पानि अबए लगल। मन चटपटाए लगल। बचनूकेँ कहलक- ‘भाय, कते चखना लेबह?’
मने-मन बचनू हिसाब जोड़ए लगल। दू-दूटा कचड़ी आ दू-दूटा माछ दुनू बच्चाले आ अपना सभले चारि-चारिटा। किएक तँ गरम चीज होइ छै, तेँ बेसी खराब करतै। बाजल- ‘भाय, एक किलो मुरही, एक किलो घुघनी, सोलहटा कचड़ी आ सोलहटा माछक कुटिया लऽ लाए।’
सएह केलक। ताड़ीक डाबा उठा जीबछ विदा भेल। रिक्शा लग आबि बचनू चखनाक मोटरी सेहो जीबछेकेँ दऽ देलक।
चौकक रस्ता छोड़ि बचनू घर परक रस्ता धेलक। लगेमे घर। दुइयेटा घर बचनूकेँ। रिक्शा रखैले एकचारी भनसे घरक पँजरामे देने। एकटा घरमे भानसो करै आ जरनो-काठी रखै। दोसरमे सभतुर सुतबो करै आ चीजो-बौस रखै। अपना दरबज्जा नहि। मुदा घरक आगूमे धुर दसेक परती, जइपर सरकारी चबूतरा बनल। घर लग अबिते बचनू रिक्शा ठाढ़ कऽ आंगन बाढ़नि अनए गेल। बचनूकेँ देखि घरवाली कहलकै- ‘आइ जे भाड़ा नै कमेलौं, तँ राति खएब की? अपने दुनू गोरे तँ ओहुना सुति रहब मुदा बच्चा सभ कना रहत?’
बिना किछु उत्तर देनहि बचनू बारहनि लऽ अंगनासँ निकलि गेल। चबुतराकेँ देहरा कऽ बहारलक। चबुतराक बनाबट सुन्दर, तेँ बहारितहि चमकए लगल। चबुतराक चमकी देखि जीबछ बाजल- ‘भाय, जेहने मजगूत चबुतरा छह तेहने सुन्दर। संगमरमर जेकाँ चमकै छह।’
जीबछक बात सुनि बचनुकेँ ओ दिन मन पड़लै जइ दिन ओ ठीकेदारकेँ गरिऔने रहए। मुस्कुराइत कहलकै- ‘भाय, ओहिना एहेन सुन्दर बनल अछि। जे ठीकेदार बनबाबैक ठीकेदारी नेने रहए ओ नमरी चोर। तीन नम्बर ईंटा आ कोसीकातक बाउलसँ बनबए चाहैत रहए। हम गामपर नै रही। जखैन एलौं तँ देखलिऐ। देखिते सौँसे देह आगि लगि गेल। मुदा ऐठाम रहए क्यो ने। दोसर दिन नाओ कोड़ए ठीकेदारो आ जनो एलै। हमरा तँ गरमी चढ़ले रहए। जखने कोदारि लगौलक आकि जऽनक हाथसँ कोदारि छीनि ठीकेदारकेँ गरिअबै लगलौं। जहाँ गारि पढ़लिऐ आकि ठीकेदारो गहुमन साँप जेकाँ हुहुआ कऽ उठल। जहाँ ओ जोरसँ बाजल आकि हमहूँ गरिअबिते दुनू हाथे कोदारिक बेंट पकड़ि कहलिऐ, सार नाओ लइसँ पहिने तोरे काटि देबह। मुदा सभ पकड़ि लेलक। डरे ठीकेदारो थर-थर कँपए लगल। तखन जा कऽ एक नम्मर सभ किछु -ईंटा, सिमटी, बालु आनि बनौलक।’
‘जीबछ बाजल- ‘बाह।’
बचनू- ‘कनी उपर आबि कऽ देखहक जे की सभ बनबौने छी। देखहक ई खेलाइ लऽ पच्चीसी घर छी, कौड़ीसँ खेलाएल जाइए। मुदा ई खेल समैया छी। एकर चलती सिर्फ आसिने टामे रहैए। कोजगरा दिन तँ लोक भरि राति खेलते रहैए।’
दोसरकेँ देखबैत- ‘ई मुगल पैठानक घर छी। हमरा गाममे लोक एकरा मुगल-पैठान कहै छै मुदा आन-आन गाममे एकरा कौआ-ठुट्ठी कहै छै। गोटीसँ खेलाइल जाइ अए।’
तेसर घर देखबैत- ‘ई बच्चा सभक छिऐ। एकरा चैरखी-चैरखी घर कहै अए। झुटकासँ खेलल जाइए।’
जीबछ- हौ भाय, तू तँ बड़ खेलौड़िया बुझि पड़ै छह।’
बचनू- ‘हौ, जिनगीमे आउर छै की? खाइत-पीबैत, हँसी-चौल करैत बिता ली। सभ दिन कमेनाइ, सभ दिन खेनाइ। कोनो हर-हर, खट-खट नै। धिया-पूताले तँ हम अपने इस्कूल खोलि देने छिऐ। खेती-पथारीक काजसँ लऽ कऽ रिक्शा चलौनाइ, ईंटा बनौनाइ सभ लूरि हमरा अछि। धिया-पूता तँ देखिये कऽ सीखि लेत।’
ओना जीबछ बचनुक गप सुनैत मुदा मन ताड़ीक खटाइन गंधपर अँटकल। होइ जे कखन दू गिलास चढ़ाएब। नै तँ कमसँ कम आंगुरमे भिड़ा नाकोक दुनू पूरामे लगा ली। जीबछकेँ बचनू कहलक- ‘भाय, ताबे तूँ सभ कुछ सरिआबह, हम घरमे रिक्शा रखि दइ छिऐ। काजसँ निचेन भऽ जाएब।’
जीबछ सभ समान सरिअबए लगल। रिक्शाकेँ गुरकौने बचनु एकचारीमे रखि आंगन जा दुनू बच्चो आ पत्नियोकेँ कहलक- ‘दुनू बाटिओ आ दुनू छिपलियो नेने चलू।’
कहि बचनू आगू बढ़ि गेल। पत्निक मन खुशीसँ झुमि उठल। दुनू बच्चा दुनू बाटी नेने आगू बढ़ल। दुनू छिपली नेने पत्नी डेढ़िया लग ठाढ़ भऽ मुँहपर नुआ नेने कनडेरिये आँखिये दुनूकेँ देखैत। अपना दुनू गोटेले बचनू चारि-चारि पीस माछ, चारि-चारि कचड़ी आ अधा किलो करीब मुरही-घुघनी मिला कऽ रखि, दुनू बच्चाकेँ एक-एक कचड़ी, एक-एक माछक कुटिया आ दू-दू मुट्ठी मुरही-घुघनी मिला कऽ देलक। दुनू बच्चा देखि कऽ चपचपा गेल। अपन-अपन बाटी वामा हाथे उठा दहिना हाथे खाइत बिदा भेल। माए लग पहुँच दुनू बच्चा अपन-अपन बाटी देखए देलक। बाटीमे घुघनीक मिरचाइक टुकड़ी आ कचड़ीमे सटल मिरचाइकेँ देखि माए कहलक- ‘बौआ, मिरचाइ बीछि कऽ रखि दिहए। तोरा सभकेँ करु लगतौ।’
तहि बीच बचनू गमछाक एक भागमे मुरही-घुघनीकेँ मिला, चारि-चारिटा कचड़ी आ चारि-चारिटा माछक कुटिया फुटा, दुनू गोटेले रखलक। चबुतरे परसँ बचनू घरवालीकेँ सोर पाड़ि कहलक- ‘ई सभ लऽ जाउ।’
अदहा मुँह झपने बचनुक पत्नी सरधा चबुतरापर पहुँच दुनू छिपली बचनुक आगूमे रखि देलक। एकटा छिपलीमे मुरही कचड़ी आ दोसरमे घुघनी-माछ बचनू दऽ देलक। झुर माछक तरुआ देखि सरधाक मन हँसए लगल। मनमे एलै जे कल्हुका जलखै तकक ओरियान भऽ गेल। दुनू छिपली तरा-उपरी रखि दुनू हाथसँ पकड़ि आंगन बिदा भेलि।
दुनू गोटे –जीबछ आ बचनू- दुनू भाग बैसि बीचमे ताड़ीक डाबा, गिलास आ चखना रखलक। दुनू गिलासमे जीबछ ताड़ी ढ़ारि, आगूमे रखि आँखि मुनि, ठोर पटपटबैत मंत्र पढ़ए लगल। कनी काल मंत्र पढ़ि, आँखि खोलि तीन बेर ताड़ीमे आंगुर डुबा निच्चाँमे झाड़ि बाजल- ‘हुअह भाय, आब पीबह।’
छगाएल दुनू, तेँ एक लगाइते तीन-तीन गिलास पीबि लेलक। मन शान्त भेलै। मन शान्त होइतहि जीबछ सिगरेट निकालि एकटा अपनो लेलक आ एकटा बचनुओक हाथमे देलक। दुनू गोटे सिगरेट धरा पीबए लगल। सिगरेट पीबैत-पीबैत दुनूकेँ निशाँ चढ़ए लगल। निशाँ चढ़िते गप-सप्‍प करैक मन दुनू गोटेकेँ हुअए लगलै। एक मुट्ठी मुरही आ एक टुकड़ी माछ तोड़ि जीबछ मुँहमे लेलक। बचनुओ लेलक। मुँह महक घांेटि जीबछ बाजल- ‘भाय, तोरा रिक्शा चला कऽ परिवार चलि जाइ छह?’
कचड़ी तोड़ि मुँहमे लैत बचनू उत्तर देलक- ‘किअए ने चलत। हमरा की कोनो कोठा बनबैक अछि जे गुजर नै चलत। तहूमे की हम रिक्शा बारहो मास थोड़बे चलबै छी। भरि बरसात चलबै छी। जहाँ बरखा बन्न भेलै आकि महाकान्त भाइयक चिमनीमे काज करै छी।’
‘नोकरियो करै छह?’
‘एहेन नोकरी तँ भगवान सभकेँ देथुन।’
अलबेला लोक छथि महाकान्त भाय। हुनकर खाली पूँजी टा छिअनि। असली कारबारी हम दू गोटे छी। सरुप मुनसी आ हम। पजेबाक खरीद-बिकरीसँ लऽ कऽ कोइला मंगौनाइ, ओकर हिसाब बारी केनाइ हुनकर काज छिअनि। आ हमर काज पथेरीक देखभाल केनाइ, समएपर ओकरा दमकल चला, खाधिमे पानि देनाइसँ लऽ कऽ बजारसँ समान कीनि कऽ अननाइ आ चिमनी परसँ घर-परक दौड़-बरहा केनाइ रहैए।’
‘तब तँ खूब कमाइ होइत हेतह?’
‘कमाइ जँ करए चाही तँ ठीके खूब हएत। मुदा से नै करै छी। एक सए रुपैया रोज होइए। ओ घरवालीक हाथमे दऽ दै छिऐ। बाकी खेलौं-पीलांै। किएक तँ नजाइज पाइ जँ घरमे देबै तँ ओइसँ भाभन्स नै हएत।’
दुनू गोटे डबो भरि ताड़िओ आ चखनो खा-पीबि गेल। एक दिशि निशाँसँ दुनूक देह भसिआइत, दोसर दिस जोरसँ पेशाब लगि गेलै। उठैक मने ने होइ। मुदा पेशाबो जोेरे होइत जाइत। दुनू गोटे उठि कऽ पेशाब करै गेल। जाबे पेशाब करै लऽ बैसै ताबे बुझि पडै़ जे कपड़ेमे भऽ जाएत। मुदा कहुना-कहुना कऽ सम्हारि पेशाब करए बैसल। पेशाब बन्ने ने होइ। बड़ी कालक बाद पेशाबो बन्न भेलै आ भक्को खुजलै।
चबुतरापर दुनू गोटे आबि कऽ बैसल। जीबछ कहलकै- ‘भाय, हमरा डान्स करैक मन होइए।’
जीबछक बात सुनि बचनू पल्था मारि बैसि, ठेहुनपर दुनू हाथसँ बजबए लगल। मुदा ओहिसँ अबाज नै निकलै। अबाज निकलै मुँहसँ। जहिना-जहिना मुँहसँ बोल निकलइ तहिना-तहिना दुनू ठेहुनपर हाथ चलबै। तहि बीच दुनू बच्चो चबुतरापर आबि थोपड़ी बजबए लगल। अंगनाक मुहथरिपर सरधा बैसि देखए लगली। जीबछ डान्स करए लगल। थोड़े कालक बाद बचनुक मुँह दुखा गेलै। मुदा जीबछ डान्स करिते। दुनू बच्चो थोपड़ी बजबिते। जहिना बाढ़िक रेतपर हेलनिहार चीत गरे सुति कतौसँ कतौ भसिया कऽ चलि जाइत तहिना बैसल बैसल सरधाक मन भसिआइत। तहि बीच बचनु उठि कऽ आंगन गेल। घैलची परक घैलसँ पानि फेकि नेने आएल। उल्टा कऽ घैल रखि, हाथमे औँठी रहबे करै, दुनू हाथे घैलक पेनपर बजबए लगल। लाजबाब बाजा। नचैत-बजबैत दुनू गोटे थाकि गेल। सुति रहल।
भोर होइते दुनू गोटे उठि, मुँह-हाथ धोए चलि देलक।
अइ बेर आसिन अपन चालि बदलि लेलक। किएक तँ आन साल अधहा आसिनक उपरान्त हथिया नक्षत्र अबैत छल। से अइ बेर नञि भेलै। पहिने हथिये चढ़ल। दू दिन हथिया बितलाक बाद आसिन चढ़ल। ओना बूढ़-बुढ़ानुसक कहब छनि जे दुर्गापूजामे हथिया पड़िते अछि, मुदा से नञि भेलै। आसिनक इजोरिया पखक परीबकेँ दुर्गा पूजा शुरु होइत। अइ बेर अमबसिये दिन हथिया चलि गेल। तहिना बरखोक भेल। जइ दिन आसिन चढ़ल ओहि दिन घनघनौआ बरखा भेल आ तेकर बाद फुहियो ने पड़ल। झाँटक कोन गप। हथियाक लेल ओरिआओल जरनो-काठी आ अन्नो-पानि सबहक घरमे रहिये गेल। मुदा तैयो किसान सबहक मनमे खुशी नै कमल। किएक तँ जँ हथियामे धानक खेतमे ठेंगाक हूर गरत तँ धान हेबे करत। मुदा किछु गोटेक मनमे शंका जरुर होइ जे निचला खेतमे ने पानि लगल अछि मुदा उपरका खेतक धान कोना फुटत? किएक तँ उपरका खेतक पानि टघरि कऽ निचला खेतमे चलि गेल। किछु खेतक पानि काँकोड़क बोहरि देने तँ किछु खेतक पानि मूसक बिल देने बहि गेल। जहिसँ बरखाक तेसरे दिन उपरका खेत सभ सुखि गेल। ओना दसमीक मेलो देखिनिहारक आ मेलामे दोकानो-केनिहारक मनमे खुशी। किएक तँ रुख-सुखमे नाचो-तमाशा जमत आ देखिनिहारोक भीड़ जुटत। ओना पैछला सालक सभ छगाएल। किएक तँ जइ दिन सतमी मेला शुरु भेल ओहि दिन तेहेन झाँट आ पानि भेल जे मेलाक चुहचुहिये चलि गेलै।
सुखाड़ समए रहने महाकान्त ओछाइनेपर पड़ल-पड़ल सोचए लगल। जहियासँ चिमनी शुरु केलहुँ तहियासँ एहेन समए नहि पकड़ाएल छल। आन साल दिआरीक पछाति चिमनीक काजमे हाथ लगबै छलहुँ, से अइ बेर भगवान तकलनि। कहुना-कहुना तँ दिआरी अबैत-अबैत दू खेप भट्ठा जरुर लगि जाएत। सरकारोक योजना नीक पकड़ाएल। एक दिशि खरन्जाक स्कीम तँ दोसर दिशि इन्दिरा आबासक घर। ततबे नहि स्कूल आ अस्पताल सेहो बनत। ई सभ तँ अपने गामटा मे बनत से नहि, आनो-आन गाममे बनत। सालो भरि ईंटाक महगीये रहत। ओते पुराइये ने पाएब। एते बात मनमे अबिते मुँहसँ हँसी निकलल। तहि काल पत्नी रागिनी बेड टी नेने आबि चुप-चाप सिरमा दिशि ठाढ़ भऽ पतिकेँ मुस्कुराइत देखलनि। पतिक मुस्की देखि रागिनी मने-मन सोचए लागलि जे की बात छिऐ जे ओछाइनेपर पड़ल-पड़ल मुस्करा रहल छथि। मुदा बिना किछु बजनहि टेबुलपर चाह रखि, ओरिया कऽ नाक पकड़ि डोला देलक। नाक डोलबितहि महाकान्त उठि कऽ बैसि रहल। आगूमे रागिनीकेँ ठाढ़ देखि चौबन्निया मुस्की दैत आँखिक इशारासँ पलंगपर बइसैले रागिनीकेँ कहलक। पतिक मूड देखि रागिनी ससरिये जाएब नीक बुझलक।
महाकान्त आ रागिनी, संगे-संग कओलेजमे पढ़ने। जहिये दुनू गोटे बी.ए.मे पढ़ैत छल तहिये दुनूक बीच प्रेम भऽ गेल। दुनू सम्पन्न परिवारक। ओना पढ़ैमे दुनू ओते नीक नहि जते दुनूक रिजल्ट नीक होए। दुनूकेँ मैट्रिको आ इन्टरोमे फस्ट डिविजन भेल रहै। तेकर कारण मेहनत नहि पैरबी रहए। नीक रिजल्टक दुआरे संगियो-साथीक बीच आ शिक्षकोक बीच दुनूक आदर होइ। दुनूक बीच संबंध बी.ए. आनर्सक क्लासमे भेलै। किएक तँ आनर्समे कम विद्यार्थी रहने गप-सप्‍प करैक अधिक समए भेटै। दुनूक बीच संबंध गप-सपसँ शुरु भेल। तेकर बाद किताबक लाथे डेरोमे एनाइ-गेनाइ शुरु भेल। संबंध बढ़िते गेलै। संगे बजार बुलनाइ, किताब-कापी खरीदनाइसँ लऽ कऽ कपड़ा, जुत्ता-चप्पल खरीदनाइ धरि संगे हुअए लगलै। सिनेमा तँ मेटनियो शोमे देखए लगल। जाहिसँ आंगिक संबंध सेहो शुरुह भऽ गेलै। एकटा डबल रुम लऽ दुनू गोटे डेरो एकठाम कऽ लेलक। दुनूक बीचक संबंधक चरचा सिर्फ विद्यार्थिये आ शिक्षके धरि नहि रहि दुनूक पिता धरि पहुँचि गेलै। मुदा दुनूक पिताक दू विचार। तेँ बुझियो कऽ दुनू अनठा देलक। महाकान्तक पिता सुधीर जुआन-जहानक खेल बुझैत तँ रागिनीक पिता रमानन्द सम्पन्न परिवार आ पढ़ल-लिखल लड़का बुझि बेटीक भार उतड़ब बुझैत।
एम.ए. पास केलापर दुनूक विआह भऽ गेलै। सुधीरक परिवार एक पुरखियाह। अपनो भैयारीमे असकरे आ बेटो तहिना। ओना बेटी चारिटा, जे सासुर बसैत। परिवारक काजसँ महाकान्तकेँ कम्मे सरोकार। तेँ भरि-भरि दिन चौखड़ी लगा जुओ खेलैत आ शराबो पीबैत। जे पितो बुझैत। महाजनीक कारोबार, तेँ भरि दिन सुधीर रुपैयेक हिसाब-बारी आ धानेक लेन-देनमे व्यस्त रहैत। महाकान्तक क्रियाकलाप देखि एक दिन खिसिया कऽ सुधीर कहलखिन- ‘बौआ, बड़ कठिनसँ धन होइ छै। एना जे भरि-भरि दिन बौआइल घुमै छह, तइसँ कैक दिन लछमी रहतुहुन। तेँ किछु उद्यम करह।’
पिताक बात महाकान्त चुपचाप सुनि लेलक। किछु बाजल नहि। बेटाकेँ चुप देखि फेर कहलखिन- ‘पाँच लाख रुपैया दै छिअह, चिमनी चलाबह। उत्तरबरिया बाधमे अपने बीस बीघा ऊँच जमीन छह, ओहिमे चिमनी बना लाए।’
‘बड़बढ़ियाँ’ कहि महाकान्तो चुप भऽ गेल। पिताक मनमे जे जखने काजमे लगि जाएत तखने चालि-ढ़ालि बदलि जेतै। किएक तँ काज ओहन कारखाना होइत, जहिमे मनुष्य पैदा लैत।
आने साल जेकाँ अपन काज बचनू करए लगल। पथेरीक देखभालसँ लऽ कऽ हाट-बजार आ महाकान्तक घरपर जा रागिनीकेँ ब्राण्डीक बोतल पहुँचबै धरि। महाकान्तो अपन आने साल जेकाँ नियमित काज करए लगल। सबेरे आठ बजेमे जलखै खा मोटर साइकिलसँ चिमनीपर चलि अबैत। चिमनीपर आबि तीनू गोटे -महाकान्त, सरुप, बचनू- भरि मन गाँजा पीबि महाकान्तक चिमनीक कार्यालयमे सुति रहैत। बारह बजेमे बचनू उठा दैत। उठितहि महाकान्त मुनसीसँ रुपैया मांगि बचनुएकेँ ब्राण्डी कीनैक लेल बजार पठा दैत आ अपने मुँह-हाथ धोए खाइले घरपर बिदा होइत। घरपर पहुँचि धड़-फड़ कऽ खाइत आ चोट्टे घुरि कऽ चिमनीपर आबि सुति रहैत, जे चारि बजे उठैत। बचनुओ बजारसँ शराब खरीद महाकान्तक घरपर जा रागिनीकेँ दऽ दैत। कओलेजे जिनगीसँ दुनू गोटे -महाकान्तो आ रागिनियो- शराब पीबैत। ओना रागिनी ब्राण्डीये टा पीबैत मुदा महाकान्त सभ कुछ खाइत-पीबैत। गाँजा, भाँग, इंग्लीस, पोलीथिन, अफीम, ताड़ी सभ कुछ। जखन जे भेटल तखन सएह।
आइ जखन बचनू ब्राण्डीक बोतल लऽ रागिनी लग पहुँचल तँ रागिनीक नजरिमे नव विचार उपकलै। आन दिन रागिनी बचनूसँ बोतल लऽ रखि लैत। मुदा आइ आदरसँ बचनूकेँ हाथक इशारासँ पलंगपर बइसैक इशारा केलनि। दुनू गोटे, पलंगपर आमने-सामने बैसि गेल।
रागिनी बाजलि- ‘बहुत दिनसँ मनमे छल जे अहाँसँ भरि मन गप करितहुँ। मुदा अहाँ तते धड़फड़ाएल अबै छी जे किछु कहैक मौके ने भेटैए।’
बचनू- ‘गिरहतनी, हम तँ मूर्ख छी। अहाँ पढ़ल-लिखल छी। अहाँक गप्पक जबाव हमरा बुते थोड़े देल हएत।
रागिनी- ‘कोनो की हम अहाँसँ शास्त्रार्थ करब जे जबाव देल नञि होएत। अपन मनक व्यथा कहब। जे सभकेँ होइ छै।’
मनक व्यथा सुनि बचनू मने-मन सोचए लगल जे हम सभ गरीब छी, हरदम एकटा ने एकटा भूर फूटले रहैए। मुदा रागिनी तँ सभ तरहे सम्पन्न छथि। नीक भोजन, दुनू परानी पढल-लिखल। तखन की मनमे बेथा छनि जे हमरा कहती। मुदा तैयो मनकेँ असथिर कऽ रागिनी दिशि देखए लगल। मनमे उत्सुकता बढै़। मुदा रागिनीक चेहरामे, डूबैत सूर्य जेकाँ, मलिनता बढ़ैत।
रागिनी- ‘हमरासँ अहाँ बहुत नीक जिनगी जीबै छी।’
अपन प्रशंसा सुनि बचनू गद-गद भऽ गेल। आँखि चौकन्ना हुअए लगलै। मनमे ओहन-ओहन विचार सेहो उपकए लगलै जेहेन आइ धरि मनमे नहि आएल छलै। मुदा किछु बाजै नहि।
बचनूकेँ चौकन्ना होइत देखि रागिनी कहए लागलि- ‘जहिना अकासमे चिड़ैकेँ उड़ैत देखै छिऐ, तहिना अहूँ छी। मुदा हम पिजरामे बन्न चिड़ै जेकाँ छी। जखन पढ़ै छलहुँ तखन यएह सोचै छलहुँ जे कोनो कओलेजमे प्रोफेसर बनि जिनगी बिताएब। से सभ मनेमे रहि गेल। भरि दिन अंगनामे घेराएल रहै छी। ने ककरोसँ कोनो गप-सप्‍प होइए आ ने अंगनासँ निकलि कतौ जा सकै छी। तहूमे असकरुआ परिवार अछि। लऽ दऽ कऽ एकटा सासु छथि। ने दोसर दियादनी आ ने कियो दोसर। भरि दिन पलंगपर पड़ल-पड़ल देह-हाथ दुखा जाइए। जाधरि पढ़ै छलहुँ ताधरि दुनियाँ किछु आरो बुझाइत छल। मुदा आब किछु आर बुझाइत अछि। कखनो मन होइए तँ किछु पढ़ै छी नै तँ टी.बी. देखै छी। पढ़िये कऽ की हएत। ने दोसरकेँ बुझा सकै छी आ ने अपना कोनो काज अछि, जहि लेल सीखब। जानवरोसँ बत्तर जिनगी बनि गेल अछि। जहिना गाए-महीस भरि पेट खेलक आ खूँटापर बान्हल रहल तहिना भऽ गेल छी। मुदा मनुक्ख तँ मनुख छी। जाधरि अपना मनक बात दोसरकेँ नहि कहबै आ दोसरक पेटक बात नहि सुनबै, ताधरि नीक लगत। अनेरे लोक किअए पढ़ैए। जँ लकीरक फकीरे बनि जीबैक छैक।
सुखल मुस्की दैत बचनू बाजल- ‘गिरहतनी, अहाँकेँ कोन चीजक कमी अछि जे कोनो तरहक दुख हएत?’
रागिनी- ‘अहाँ जे कहलहुँ ओ ठीके कहलौं। किएक तँ एहनो बुझिनिहारक कमी नञि अछि। एहनो बहुत लोक अछि जे धनेकेँ सभ कुछ बुझैत अछि। मुदा धन तँ खाली शरीरक भरण-पोषण कऽ सकैत अछि, मनक तँ नहि। तीन सालसँ बेसी ऐठाम ऐला भऽ गेल मुदा ने एक्कोटा सिनेमा देखलहुँ आ ने एक्को दिन कतौ घुमै-फिरैले गेलहुँ। जाधरि बेटी माए-बाप लग रहैए ताधरि सभ कुछ -धन-सम्पत्ति कुटुम्ब-परिवार- अपन बुझि पड़ै छै, मुदा सासुर पाएर दैतहि सभ बीरान भऽ जाइ छै। तहिना माए-बापक बीच जे आजादी बेटीक रहै छै ओ सासुर ऐलापर एकाएक बन्न भऽ जाइ छै।
बचनू- ‘जँ कतौ जाइक मन होइए वा देखैक मन होइए तँ नैहर किअए ने चलि जाइ छी?’
रागिनी- ‘जहिना सासुर तहिना नैहरो भऽ गेल। जहिना सासुरमे पुतोहू बनि जीबैत छी तहिना नैहरोमे पाहुन बनि जाइ छी। जना हम्मर किछु एहि घरमे अछिये नहि। जे घर अप्पन नञि रहत ओहि घरमे ककरा कहबै जे हम फल्लाँ ठीन जाएब। जन्म देनिहारि माइयो आने बुझैए। तइ परसँ भाए-भौजाइक जुइत। ई तँ नञिहरक गप कहलौं आ अहिठामक जे होइए से हमहीं बुझै छी। बुरहा ससुर जखन आंगन औताह तँ बुझि पड़त जे जना अस्सी मन पानि पड़ल छनि। बूि‍ढ़ सासुसँ तँ कने हँसियो कऽ गप्प करताह मुदा हमरा देखिये कऽ झड़कबाहि उठि जाइत छनि। जँ कहियो माथपर नुआ नहि देखलनि तँ बुढ़ीकेँ अगुआ कऽ की कहताह की नहि, तेकर कोनो ठेकान नहि। भरि-भरि दिन, पहाड़ी झरना जेकाँ, आँखिसँ नोर झहरैत रहैए। कियो पोछनिहार नहि।’
बचनू- ‘गिरहतनी, हमरा बड़ देरी भऽ गेल। महाकान्त भाय बिगड़ताह।’
रागिनी- ‘अच्छा, चलि जाएब। कहै छलौं जे सदिखन तरे-तर मन औंढ़ मारैत रहै अए जे लछमी बाइ जेकाँ तलवार उठा परदा-पौसकेँ तोड़ि दी, मुदा साहस नै होइए। केरा भालरि जेकाँ करेज डोलए लगैए। आइ जखन अपन मनक बात अहाँकेँ कहलौं तँ मन कने हल्लुक बुझि पडै़ए।’
बचनू- ‘तखन तँ गिरहतनी हमहीं नीक छी।’
रागिनी- ‘बहुत नीक। बहुत नीक। एते काल जे अहाँसँ गप केलहुँ से जना बुझि पड़ैए जे जना पाकल घाबक पीज निकललापर जे सुआस पड़ै छै तहिना भऽ रहल अछि। आब सभ दिन एक घंटा गप्प कएल करब। अहाँ कियो आन छी। घरेक लोक छी की ने।’
एक टकसँ बचनू रागिनीक आँखिपर आँखि दऽ हृदए देखए लगल। तहिना रागिनियो बचनुक हृदए पढ़ैए लागलि।