Tuesday, November 4, 2008

बोनिहारिन मरनी - जगदीश प्रसाद मण्डल



छोट-छीन गाम छतौनी। तीनिये जातिक लोक गाममे। साइये घरक बसतियो। छेहा बोनिहारक गाम। ओना पास-परोसक गामक लोक छतौनीकेँ प्रतिष्ठित गाम नहि बुझैत। किऐक तँ ओहि गाम सबहक लोकक विचारे प्रतिष्ठित गाम ओ होइत जहिमे छत्तीसो जातिक लोक बसैत। जाहिसँ समाजक सभ तरहक जरुरतक पूर्ति गामेमे होइत। मुदा से छतौनीमे नहि। तेँ छतौनी जमाबंदी गाम भऽ सकैत अछि, प्रतिष्ठित नहि। मुदा एहि विचारकेँ छतौनीक लोक मानै लए तैयारे नहि। छतौनीक लोकक कहब जे जहियासँ हमर गाम बनल तहियासँ ने कहियो अपनामे झगड़ा-झंझट भेल आ ने मारि-पीट। जहिसँ ने कहियो कियो कोट-कचहरी देखलक आ ने थाना-बहाना। ततबे नहि, तीनि जातिक लोक रहितहुँ सभ मिलि एकठाम बैसि खेबो-पीबो करै छी आ तीन जातिक तीनू देवस्थानोमे पूजो-पाठ आ परसादियो खाइ छी। सभ जातिक लोक संगे-संग कमेबो करै छी आ एक-दोसराकेँ, मौका-मुसीबत पड़लापर, संगो पूरै छी। आन-आन गामबला हमरा गामकेँ अहि दुआरे गाम नै मानैए जे ओ सभ बहरवैया छी आ हमरा सबहक पूर्वज अदौसँ  रहल अछि।
छतौनीक वासी सभ दिनसँ बोनिहारे नहि रहल अछि। पहिने ओकरो सभकेँ अपन-अपन खेत-पथार छलै। खेत-पथार गेलै कोना? एहि संबंधमे छतौनीक बूढ़-पुरान लोकक कहब छनि जे हमरा सबहक पूर्बज, रौदीक चलैत, खेतक बाकी मालगुजारी राज दरभंगाकेँ समएपर नहि दऽ सकलनि, तेहिसँ ओ सभ जमीन निलाम कऽ अबधिया, छपरिया हाथे बेचि लेलक। हमरा सबहक जमीनक मलिकाना हक खतम भऽ गेल। ओ अबधियो आ छपरियो राजमे नोकरी करैत छल जे एहि इलाकामे आबि जमीनो हथिया लेलक आ मुखियो सरपंच बनि मेनजनी करैत अछि। मुदा एकटा चलाकी ओ सभ जरुर केलक जे जेना अंग्रेज आबि सत्ता हथिऔलक तेना चलि नहि गेल, बल्कि मुगल जेकाँ बसि गेल।
  जहियासँ देश अजाद भेल आ सत्ताले भोट-भाँट शुरु भेल, तहियासँ ने एक्कोटा कोनो पार्टीक नेता भोट मंगैले एहि गाम आएल आ ने एक्को बेरि गौँआ भोट खसोलक। किएक तँ आइ धरि एहि गाममे भोटक बूथ बनबे ने कएल। तेँ नेतो किअए आओत ? गाममे ने चरिपहिया गाड़ी चलैक रास्ता छै आ ने सार्वजनिक जगह स्कूल, अस्पताल। जहिठाम भाषण-भुषण हएत। जहि गाममे छतौनीक बूथ बनैत ओहि गामक लोक सभ छतौनियोक भोट खसा लैत। छतौनीक लोकक जिनगियो छोट। ने पढ़ै-लिखैक झंझट, ने चोर-चहारक झंझट, ने रोग-व्याधिक झंझट। किएक तँ गामक सभ बुझैत जे जेकरा कपारमे विद्या लिखल रहत ओ डूबियो-मरि कऽ पढ़िये लेत। चोर-चहार एबे कथीले करत। रोग-बियाधिक लेल पूजो-पाठ आ झाड़ो-फूक अछिये। तहूसँ पैघ बात जे, जे एहि धरतीपर रहैले आएल अछि ओ जीबे करत। पानि, पाथर, ठनका ओकर की बिगाड़ि लेतै। आ जे नञि रहैबला अछि ओकरा फूलोक गाछपर साँप काटि लेतै आ मरि जाएत। तेँ की, छतौनीबलाकेँ भगवानपर बिसवास नै छै? जरुर छै। जँ से नञि रहितै तँ देवस्थानमे सालमे एक बेर एत्ते धुमधामसँ पूजा किअए करै अए? उपास किअए करैए? दसनमो स्थान -देवस्थान- आ अपनो-अपनो घरमे गोसाउनिक पीड़ी किअए बनौने अछि? साले-साल कामौर लऽ कऽ बैजनाथ किअए जाइए?
  सभ अभाव रहितहुँ छतौनीक लोक हँसी-खुशीसँ जीवन बितबैत अछि। अगर जँ कियो गाममे मरैत वा साँप-ताँप कटैत वा आगि-छाइ लगैत तँ सभ कियो दासो-दास भऽ लगि जाइत। पचास बर्खक मरनी सेहो तहिमे सँ एक। जे अपना आँखिसँ अपन पति, बेटा आ पुतोहूकेँ गाछक तरमे खून बोकरि कऽ मरैत देखने। आइ बेचारी पाँच बर्खक पोता आ आठ बर्खक पोतीक बीच आशाक संग जीबि रहल अछि। कारी झामर एक हड्डा देह, ताड़-खजुरपर बनाओल चिड़ैक खोंता जेकाँ केश, आंगुर भरि-भरिक पीअर दाँत, फुटल घैलीक कनखा जेकाँ नाक, गाइयक आँखि जेकाँ बड़का-बड़का आँखि, साइयो चेफड़ी लागल साड़ी, दुरंगमनिया आंगी फटलाक बाद कहियो देहमे आंगीक नसीब नहि भेल, बिना साया-डेढ़ियाक साड़ी पहिरने। यएह छी मरनी।

चारि साल पहिने सुबध, मनोहर आ तौनकी धान रोपए बाध गेल। जाधरि तौनकीकेँ दोसर सन्तान नहि भेल ताधरि मरनिये पति सुबध आ बेटा मनोहरक संग काज करए जाइत। धनरोपनी, धनकटनी, कमठाउन, रब्बी-राइ उखारै-काटैले संगे जाइत। पुतोहू –तौनकी- अंगनाक काज सम्हारैत। मुदा जखन दूटा पोता-पोती भेलै तहियासँ मरनी अंगनाक काज सम्हारए लागलि। अंगनोमे कम काज नहि। भानस-भात करब, पोता-पोती खेलाएब, खूँटा परक बाछीक सेवा करब। आने परिवार जेकाँ मरनियोक परिवार भरल-पूरल।
  दस आँटीक जोड़ा तीन-तीन जोड़ा बीआ उखाड़ि सुबध आ मनोहर पटैपर टंगलक आ राड़ीक जुन्ना बना तौनकी बीआक बोझ बान्हि माथपर लऽ कदबा खेत पहुँचल। कदबा एक दिन पहिने गिरहत करा देने। तेँ तीनू गोटेक मनमे खुशी होइत जे सबेर-सकाल रोपि कऽ चलि जाएब। आन दिन कदबे दुआरे अबेर भऽ जाइ छलै। मने-मन सुबध सोचैत जे बेरु पहर अपनो जे कट्ठा भरिक खेत अछि ओहो सभ तूर मिलि कऽ हाथे-पाथे रोपि लेब। कदबामे बीआ रखि सुबध आड़िपर बैसि, तमाकुल चुनबए लगल। मनोहर आ तौनकी खेतमे बीआ पसारए लगल। सौँसे खेत बीओ पसरि गेलै आ सुवधो तमाकुल खा लेलक। तीनू गोटे एक-एक आँटी खोलि खुज्जा पसारि एक-एक खुज्जा रोपैले वामा हाथमे रखलक। आड़िक कात पछिमसँ तौनकी बीचमे मनोहर आ पूबसँ सुवध पाहि धेलक। एक पाँती रोपि दोसर धेलक आकि पूब दिशि एक चिड़की मेघ उठैत देखलक। मेघक छोट टुकड़ी देखि ककरो मनमे पानिक शंका नै उठलै। कने-कने सिहकी सेहो चलए लगलै। जहिना-जहिना हवा तेज होइत जाइत, तहिना-तहिना करिया मेघक टुकड़ी सेहो उधिया-उधिया उपर चढ़ए लगलै। उपर चढ़ि-चढ़ि ओ टुकड़ी एक-दोसरमे मिलए लगल। मुदा पछिम दिशि रौद उगलै। कनिये कालक बाद सुरुज झपा गेल। हबो तेज हुअए लगलै। बिजलोका चमकए लगलै। बुन्दा-बुन्दी पानि पड़ए लगलै। जते मेघ सघन होइत जाइत तते पानियोक बुन्न जोर पकड़ैत। संगे बिजलोको बेसिआइल जाइत। घन-घनौआ बरखा हुअए लगल। पानिमे भीजै दुआरे तीनू गोरे दौड़ि कऽ आमक गाछ लग पहुँचल। खेतसँ बीघे भरि हटि कऽ आमक गाछ। खूब झमटगर। चारि हाथ उपरेमे दू फेंड़ भऽ गेल। सरही आम। गाछक पँजरेमे पछिमसँ तौनकी बैसलि आ पूबसँ सुवध आ मनोहर। तौनकी साड़ी ओढ़ि दुनू हाथक मुट्ठी बान्हि काँखमे लऽ लेलक। मुदा सुवधो आ मनोहरो छुछे देहे। गमछाक मुरेठा बान्हि लेलक। मुदा तैयो जाड़े दुनू बापूत थर-थर कपैत। नमहर-नमहर बुन्न सेहो देहपर खसै। सौँसे देहक रुइयाँ भुलकि कऽ ठाढ़ भऽ गेलै। मुदा की करत? कोनो उपाए नहि। पछिमो मेघ पकड़ि बरिसए लगल। जाहिसँ  दूर-दूर धरि बरखा हुअए लगलै। रहि-रहि कऽ मेघो गरजै आ बिजलोको चमकै। एक बेर खूब जोरसँ बिजलोका चमकलै। मुदा आन बेरक चमकलहासँ बिजलोकाक रंग बदलल। आन बेर पिरौंछ इजोत होइत जखनि कि एहि बेर लाल टुह-टुह। दुरकाल समए देखि तौनकी मने-मन खौंझा भगवानकेँ कोसैत जे कोनो काजक समए होइ छै। अखैन पानिक कोन काज छै। जहिना तगतगर लोक सदिखन बलउमकी करैत अछि तहिना ई टिकजरौना इन्द्रो भगवान करैए। अनेरे काजकेँ बरदा जाड़े कठुुअबैए। लोक सभ कहै छै जे देवता-पितरकेँ बड़का-बड़का आँखि होइ छै जे एक्के ठीन बैसल-बैसल सगरे दुनियाँ देखैए। से आँखि अखैन कतऽ चलि गेलै। देवियो-देवता गरीबे-गुरबाकेँ जान मारै पाछु लागल रहै अए। जन-बोनिहारक काज करैक दू उखड़ाहा होइए। भिनसुरका आ दुपहरिया। भिनसुरका उखड़ाहामे जँ एगारहो बजे पानि भेल वा कोनो बाधा भेल तँ गिरहत थोड़े बोइन देत। अगर जँ जलखै भऽ गेल रहलै तँ बड़बढ़िया नञि तँ जलखैइयो पार। यएह तँ ऐठामक चलनि छै। ई टिकजरुआ भगवान गिरहतेकेँ मदति करै छै।
  जाड़सँ कपैत सुवध मनोहरकेँ कहलक- ‘बौआ, सोचै छलौं जे आन दिन रोपैन करैमे अबेर भऽ जाइ छलै जइसँ अपन काज नञि सम्हरै छलै मुदा आइ सबेरे-सकाल रोपैन होइत तँ अपनो बाड़ीक खेत रोपि लइतौं। से सभ भंगठि गेल। कखैन पानि छुटत कखैन नै सेहो ठीक नहि। दुनू बापूत गप-सप्‍प करिते छल आकि तड़-तड़ा कऽ ठनका ओहि गाछपर खसल। जइठीनसँ दुनू डारि फुटल छलै तकरा चिड़ैत माटिमे चलि गेल। चिड़ा कऽ गाछ दुनू भाग खसल। एक फँाकक तरमे तौनकी आ दोसर फाँकक तरमे दुनू बापूत पड़ि गेल।
  पानि छुटल। सौँसे गाममे हल्ला हुअए लगलै जे बाधमे जे आमक गाछ छलै से खसि पड़लै। भरिसक ओहीपर ठनका खसलै। एक्के-दुइये लोक देखैले जाइ लगल। कातेमे ठाढ़ भऽ भऽ लोक देखैत। गाछोपर आ गाछक निच्चोमे जमीनोपर तते घोरन पसरि गेलै जे लोक गाछक भीर जाइक हिम्मते ने करैत। मुदा जीवठ बान्हि करिया गाछक जड़ि देखै बढ़ल। घोरन तँ खूब कटै मुदा तइयो हिम्मत कऽ करिया जड़ि लग पहुँचल। ठनकाक आगिक चेन्ह ओहिना दुनू फाँकमे  छल। जड़ि लग ठाढ़ भऽ ओ हिया-हिया देखए लगल। देखैत-देखैत मनोहरक टाँगपर नजरि पड़लै। टाँगपर नजरि पड़िते हल्ला करए लगल जे एक गोरे तरमे पिचाइल अछि। दौड़ि कऽ अबै जाइ जा, एकरा बहार करह? करियाक बात सुनि चारु भरसँ लोक बढ़ल। देखैत-देखैत तीनू गोरेपर नजरि पड़लै। हल्ला करैत करिया कुड़हरि अनए घरपर दौगल। तीनू खून बोकरि-बोकरि मरल। मुदा तैयो सभ बचा-बचा कऽ डारि काटए लगल। डारि काटि सील उनटौलक तँ तीनू थकुचा-थकुचा भेल। पहिने तँ कियो नै चिन्हलक, किऐक तँ तीनू बेदरंग भऽ गेल। मुदा भाँज लगौलापर पता चललै जे दुनू बापूत सुवध कक्का छी आ पुतोहु छिऐ।
  अखन धरि मरनी, अंगनेमे दुनू बच्चाकेँ खेलबैत। गौरिया आबि कऽ कहलकै- ‘दादी तोरे अंगनाक सभ, गाछक तरमे दबि कऽ मरि गेलौ।’
  गौरियाक बात सुनितहि मरनी अचेेत भऽ खसि पड़ल। दुनू बच्चा सेहो चिचियाए लगलै। मरनीकेँ अचेत देखि अलोधनी मुँहपर पानि छीटि बिअनि हौँकए लागलि। कनिये कालक बाद होश भेलै। होशमे अबितहि मरनी फेर बपहारि कटए लगल।
  बच्चाकेँ कोरामे लऽ मरनीक संग अलोधनी देखैले बिदा भेलि। गाछ लग पहुँचते तीनू गोरेकेँ मुइल देखि मरनी ओंघरनियाँ कटए लागलि। ओंघरनियाँ कटैत देखि करिया पजिया कऽ पकड़ि मरनीकेँ कात लऽ गेल। मरनीक दशा देखि सभ सांत्वना दिअए लगल। मुदा मरनीक करेज थीरे ने रहै। विचित्र स्थितिमे पड़ल। एक दिशि परिवारकेँ नाश होइत देखए तँ दोसर दिशि दुनू बच्चाक मुँह देखि कनी-मनी आशा मनमे जगै।
  चारि साल पहिलुका नहि, आब नव मरनीक जन्म भेल। जहिना आगिमे तपैसँ पहिने सोनाक जे रंग रहैत तपलापर जहिना चमकि उठैत तहिना। ओना समाजोक बेवहार जे पहिलुका छलै अहूमे बदलाव एलै। कियो खाइक बौस दऽ जाइत तँ कियो बच्चो आ मरनि‍यो लए नुआ-बस्तर। जखन ककरो भाँजमे कोनो काज अबै तँ ओ मरनियोकेँ संग कऽ लैत। जहिना परिवारमे बूढ़ आ बच्चाक प्रति जे सिनेह होइत, ओहने सिनेह मरनीक प्रति समाजोक बीच हुअए लगलै। अपनो जीबैक आशा आ बच्चोक, मरनीकेँ नव स्फूर्ति पैदा केलक। एते दिन मरनीक हाथमे पुरने खेतीक औजार टा रहै छलै ओ आब बढ़ि कऽ दोबर भऽ गेल। हँसुआ, खुरपी, टेंगारी, कोदारिक संग-संग हथौरी, गैंचा सेहो आबि गेलै।
  समए आगू बढ़ल। देशक विकासक गति सेहो, बहुत तेज नहि मुदा किछु गति तँ जरुर पकड़लक। गाम-गाममे बान्ह-सड़क, पुल-पुलिया, स्कूल, अस्पताल सेहो बनए लगल। जाहिसँ खेतिहर बोनिहारक सेहो काज बढ़ल। मरनियो छिट्टामे माटि उघब, पजेबा उघब, गिट्टी फोड़ब, सुरखी कुटब सीखि लेलक। जाहिसँ बेकारी मेटाएल। रोज कमेनाइ रोज खेनाइ धरि गरीबो पहुँचि गेल। भलेहीं जिनगीमे बहुत अधिक उन्नति नञि एलै मुदा जीबैक आशा जरुर जगलै। मुदा ई सभ काज छतौनीमे नहि, पास-पड़ोसक आन-आन गाममे हुअए लगलै। जहिमे छतौनियोक बोनिहार सभ काज करए लगल।
छतौनियोक दिन घुरलै। सात किलोमीटर पक्की पीच सड़क जे एन.एच.सँ लऽ कऽ रेलवे स्टेशनकेँ जोड़ैत, छतौनिये होइत बनैक शुरु भेल। जहियेसँ ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनाक’ छतौनी होइत बनैक चरचा भेल तहियेसँ  छतौनीक लोकक मनमे खुशी अबए लगलै। गामक लोकक तँ ओहन दशा नहि जे बस, ट्रक कीनैक विचार करैत। मुदा तैयो एते बात जरुर एलै जे बरसातमे जे घरसँ बहराएब कठिन छलै ओ आब नै रहतै। किछु गोटेक मनमे ई बात जरुर होइत जे एते दिन बिना जूत्तो-चप्पलक काज चलैत छल, से आब नै चलत। आड़ि-धुर माटिपर चललासँ, बेसीसँ बेसी काँट-कुश गरैत छल मुदा पीच भेने शीशाक टुकड़ी, लोहाक टुकड़ी सेहो गरत। जाहिसँ पएरक नोकसान बेसी हएत। मुदा फेर मनमे अबै जे एते दिन कम आमदनी रहने जुत्ता-चप्पल नै कीनि पबै छलौं से आब नै हएत। नञि बेसी तँ एक्को जोड़ा जरुरे कीनि लेब। जैसँ पएरमे बेमाइयो ने फटत।
प्रधानमंत्री योजनाक सड़क बनए लगल। मुदा जते आशा बोनिहार सभकेँ छलै तते नै भेलै। किएक तँ माटिक काज शुरु होइते रंग-बिरंगक गाड़ी सभ पहुँचए लगल। जे माटिक काज बोनिहार करैत ओ ट्रेक्टर करए लगल। ओना काजक गति तेज रहै मुदा बोनिहारक बेकारी बरकरारे रहलै। सड़कपर माटि पड़िते रौलर आबि सरियाबए लगल। खेनाइ-पीनाइ छोड़ि धियो-पूतो आ जनिजातियो भरि-भरि दिन देखते रहैत। ओना बूढ़ो-पुरान देखैत मुदा घरक चिन्ता खीचि कऽ काज दिशि लऽ जाइत। पनरहे दिनमे सातो किलोमीटर सड़कपर माटिक काज सम्पन्न भऽ गेलै। एकदम चिक्कन, उज्जड़ धप-धप। घर एते ऊँच सड़क बनि गेल।
माटिक सड़क बनिते बड़का-बड़का ट्रक चिमनीसँ ईटा खसबए लगल। ऐँह, अजीब-अजीब ट्रको सभ। एते दिन छह-पहिये ट्रक टा गामक लोक देखने मुदा एहि सड़कक बनने दस पहियासँ लऽ कऽ अट्ठारह पहियाबला ट्रक सभकेँ सेहो देखलक। तीनिये दिनमे सातो किलोमीटरक ईंटा खसा देलक। मुदा ईंटा पसारैक काज तँ इंजन नहि करत। ओ तँ लोके करत। मुदा ओहिक लेल तँ अनुभवी माने एक्सपर्ट लोकक जरुरत हएत। जे छतौनीमे नहि। तेँ बाहरेसँ अनुभवी मिसतिरी आओत! मुदा तेहेन बड़का ठीकेदार सड़क बनबैत जे अनेको सड़कक काज एक संग चलबैत। एक्के दिन तते अनुभवी मिसतिरी ईंटा पसारै लऽ आएल जे सभकेँ बुझि पड़लै जे दुइये दिनमे सातो किलोमीटर ईंटा पसारि देत। मुदा ईंटा उघैले तँ मजदूर चाहिऐ। पहिले दिन छतौनीक बोनिहारकेँ काज भेटलै। ईंटा पसरए लगल। धुरझाड़ काज चलए लगल। छतौनीक सभ बोनिहार खुशीसँ काज करए लगल। तहि बीच ईंटापर पसारैले फुटलाहा ईंटा ट्रकसँ अाबए लगल। दोहरी काज देखि छतौनीक बोनिहारक मन खुशीसँ नाचए लगल। किएक तँ गिट्टी फोड़ैले गामेक बोनिहारकेँ काज भेटतै। मुदा ठीकेदारक मुनसी, अपने खाइ-पीबै दुआरे सस्ते दरसँ गिट्टी फोड़ैक रेट लगा देलक। एक ट्रेक्टर पजेबा फोड़ैक दर साठिये रुपैया दैले तैयार भेल। एक-दू दिन तँ बोनिहार लोक गिट्टी फोड़ब बन्न केलक मुदा पेटक आगि मजबुरन सभकेँ लऽ गेलै। मरनी सेहो गिट्टी फोड़ैए लागलि। एक ट्रेक्टर गिट्टी फोड़ैमे बेचारीकेँ चारि दिन लगैत। मुदा की करैत?
एहि सड़कसँ पहिने जे सड़क बनै ओ रिआइत-खिआइत रहि जाइ। माटिक काज भेलापर साल-दू साल ईंटा बैसैमे लगै। जाहिसँ माटि ढ़हि-ढ़ूहि कऽ उबड़-खाबड़ बनि जाए। बड़का-बड़का खाधि सड़कपर बनि जाइ। तहूमे तीन नंबर पजेबा फुटि-भाँगि कऽ गरदा बनि जाइत। गामक धियो-पूतो उठा-उठा खेत-पथारमे फेकि दैत। कोठीक गोरा बनबैले स्त्रीगण सभ निकहा ईंटा उठा-उठा लऽ जाइत। मुदा अइ बेर से नै हएत। दुइये मासमे सड़क बनबैक शर्त ठीकेदारकेँ अछि। जाबे बरखा खसत-खसत ताबे सड़क बनि जएबाक छैक। पचास बर्खक मरनी जे देखैमे झुनकुट बूढ़ि बूझि पड़ैत। सौँसे देहक हड्डी झक-झक करैत। खपटा जेकाँ मुँह। खैनी खाइत-खाइत अगिला चारु दाँत टूटल। गांगी-जमुनी केश हवामे फहराइत। तहूमे सड़कक गरदासँ सभ दिन नहाइत। मुदा तइओ मरनी अपन आँखि बचैने रहैत। जखन पुरबा हवा बहै तँ पछिम मुँहे घुरि कऽ गिट्टी फोड़ैए लगैत आ जखन पछवा बहए लगैत तँ पूब मुँहे घुरि जाइत। बीच-बीचमे सुसताइयो लैत आ खैनियो खा लैत। मुदा तैयो ओकर मुँह कखनो मलिन नै होए। किएक तँ हृदएमे अदम्य साहस आ मनमे असीम बिसवास सदिखन बनल रहैत। तेँ सदिखन हँसिते रहए।
भिनसुरके उखड़ाहा। करीब नअ बजैत। पूब मुँहे घुरि मरनी गिट्टी फोडै़त। तहि बीच पच्चीस-तीस बर्खक सुगिया माथ उघारने, छपुआ बनारसी साड़ी आ ओही रंगक आंगी पहिरने, घुमौआ केश सीटि जुट्टी लटकौने, ऐँड़ीदार चमड़ौ-चप्पल आ मोजा लगौने, मुँहमे सौ नम्बर पत्ती देल पान खेने, डोलचीमे नूनक पौकेट, कड़ू तेलक शीशी, मसल्लाक पुड़िया आ साबुन रखि हाथमे लटकौने आबि कऽ मरनीक लग ठाढ़ भऽ गेल। मरनीक मेहनत आ बगए देखि दिल खोलि मने-मन हँसए लागल। मरनी गिट्टी फोड़ैमे मस्त। किएक किम्हरो ताकत! सुगियाक हृदएक खुशी मुँहसँ हँसी होइत निकलए चाहैत। मुदा मुँहक पानक पीत ठोरक फाटककेँ बन्न केने। तेँ पानक पीत फेकब सुगियाकेँ जरुरी भेलै। जइ पजेबाक ढ़ेरीपर बैसि मरनी गिट्टी बनबैत ओहि ढ़ेरीपर सुगिया भरि मुँहक पीत फेकि देलक। पीतक दू-चारि बुन्न मरनीक देहोपर पड़लै। देहपर पड़िते ओ उनटि कऽ तकलक। टटका पीत चक-चक करैत। कनडेरिये आँखिये मरनी सुगियाक मुँह दिशि तकलक। सुगियाकेँ पान चिबबैत देखि मरनीक मनमे आगि पजड़ि गेलै। पजेबाक ढ़ेरी देखलक। सौँसे थूक पड़ल। मने-मन सोचलक जे आब केना गिट्टी फोरब। ढ़ेरियो आ देहो अँइठ कऽ देलक।
  आँखि गुड़ारि कऽ मरनी सुगियाकेँ कहलक- ‘गै रनडिया, तोरा सुझलौ नै जे ढेरीपर थूक फेकलेँ?’
  गरीब मरनीक कटाह बात सुनि सुगिया तमकि कऽ उत्तर देलक- ‘तोरे बान्ह छिऔ जे हम थूक नै फेकब।’
  सुगियाक बोलकेँ दबैत मरनी बाजलि- ‘एतेटा बान्ह छै, तइमे तोरा कतौ थूक फेकैक जगह नै भेटिलौ जे ऐठाम फेकलेँ।’
  सुगिया- ‘जदी एतै फेकलिऐ तँ तू हमर की करमे?’
  मरनी- ‘की करबौ। आँइ गै निरलज्जी, तोरा लाज होइ छौ जे सात पुरखाकेँ नाक-कान कटौलही। जेहने कुल-खनदान रहतौ तेहने ने चाइल चलमे।’
  सुगिया- ‘अपन देह-दशा नै देखै छीही?’
  मरनी- ‘की देखबै। ई देह बोनिहारनिक छिऐ। तोरा जेकाँ की हम कहियो बमैबला छौँड़ा सेने तँ कहियो डिल्लीबला छौँड़ा सेने बौआइ छी। एक चुरुक पानिमे डूमि कऽ मरि जो। तीमन चिक्खी नहितन। जहिना सात घरक तीमन चिक्खै छैँ तहिना सातटा मुनसा देखै छैँ। हमर पड़तर सातो जिनगीमे हेतौ। जेकरा संगे बाप हाथ पकड़ा देलक, सहि-मरि कऽ तै घरमे छी। छुछुनरि कहीं कऽ। आगि लगा ले अइ फुललाहा देहमे।’
  मरनीक बातसँ सुगिया सहमि गेलि। मनमे डर पैसि गेलै जे हो न हो कहीं मारबो ने कराए। मुँह सकुचबैत, मूड़ी गोति बिदा भेलि। सुगियाकेँ जाइत देखि मरनी साड़ीक खूँटसँ तमाकुल-चून निकालि चुनबए लागलि। मुदा तैयो मन असथिर नञि भेलै। मूड़ी उठा-उठा सुगियो दिशि देखै आ मने-मन बजबो करए ‘देह केहेन सीटने अछि, उढ़ढ़ी। जेना रजा-महराजाक बोहू हुअए। हाथ-पएरमे लुलही पकड़ने छनि जे कमा कऽ खेतीह। जेहने छुछुनरि छौरा सभ तेहने छौरी सभ।’
तमाकू खा मरनी ईंटा फोडै़ले घुमल आकि दादी-दादी करैत पोता दौगल आबि दुनू हाथे दुनू जाँघ पकड़ि ठाढ़ भऽ गेल। पाछूसँ पोतियो एलै। पोताकेँ कोरामे उठा मुँहमे चुम्मा लऽ पोतीकेँ कहलक- ‘दाइ, बौआकेँ रोटी नै देलही। दुनू गोरे चलि जाउ, मोरामे रोटी रखने छी, लऽ कऽ दुनू गोरे खाए लेब। हम अखैन काज करै छी। कनीकालमे आबि कऽ भानस करब।’
पोता-पोती, आंगन दिशि बिदा भेल। पूब मुँहे घुरि कऽ मरनी गिट्टी फोड़ए लगल। चारिटा बन्दूकधारी बड्डी-गार्डक संग सड़कक ठीकेदार उत्तरसँ दछिन मुँहे सड़क देखैत जाइत। आगू-आगू ठीकेदार पाछु-पाछु बन्दूकधारी। ठिकेदारक नजरि मरनीपर पड़ल। मरनीपर नजरि पड़िते ठिकेदारक डेग छोट-छोट हुअए लगल। ठिकेदारक आँखि मरनीपर अटकि गेल। डेग तँ आगू मुँहे बढ़बैत मुदा आँखिक ज्योति हृदएमे ढुि‍क कऽ हृदएकेँ हड़बड़बै लगलै। मनमे अन्हर-तूफान उठए लगलै। जाहिसँ मने-मन विचारए लगल जे जेकरा कमाइपर हमरा चारिटा बड्डी गार्ड अछि, करोड़ो-अरबोक आमदनी अछि, तेकर ई दशा छैक। ओ तँ हमर ओहन समांग अछि जे कमासुत अछि, ओहन तँ नहि जे ऐश-मौजक जिनगी बना कमेलहे सम्पत्तिकेँ भोगैत अछि। मुदा अँटकल नहि। आगू मुँहे बढ़िते रहल। किछु दूर आगू बढ़लापर जेना मरनीक आत्मा आगूसँ रोकि देलकै। बिचहि सड़कपर ओ ठीकेदार ठाढ़ भऽ गेल। ठाढ़ भऽ एकटा सिपाहीकेँ कहलक- ‘ओइ गिट्टी फोड़िनिहारिकेँ कने बजौने आउ?’
  ठीकेदारक बात सुनि एकटा सिपाही मरनी दिशि बढ़ल। मरनी लग जा ओहि सिपाहीकेँ कहलक- ‘मालिक बजबै छथुन। से कने चल?’
  गिट्टी फोड़ब छोड़ि मरनी उनटि कऽ सिपाही दिशि तकलक। सिपाहीकेँ देखि मने-मन सोचै लगल जे ने हम कोनो मेमलामे फँसल छी आ ने कोनो बैंकक करजा नेने छिऐ, तखैन किअए हमरा सिपाही बजबए आएल। मन सक्कत कऽ कऽ कहलक- ‘तूँ नै देखै छहक जे अखैन हम काज करै छी। जेकर बोइन लेबै ओकर काज नै करबै। अखैन जा। काजक बेरि उनहि जेतै तब ऐबह।’
  मरनीक बात ठीकेदारो आ सिपाहियो सुनैत। एक-दोसरकेँ देखि आँखि निच्चाँ कऽ लिअए। मुदा ठीकेदारक मन पीपरक पात जेकाँ डोलैत। कखनो मरनीक इमानदारीपर मन नचैत तँ कखनो ओकर अवस्थापर। जहि देशक श्रमिक एते श्रममे बिसवास करैत अछि ओहि देशक विकास जँ बाधित अछि तँ जरुर कतौ नै कतौ संचालनकर्ताक बेइमानी छैक। ई बात मनमे अबिते ठीकेदार अपना दिशि घुरि कऽ तकलक, तँ अपन दोख सामने आबि ठाढ़ भऽ गेलै।
  सिपाही कड़कि कऽ मरनीकेँ  कहलक- ‘नञि जेबही तँ पकड़ि कऽ लऽ जेबौ ?’
  सिपाहीक गर्म बोली सुनि मरनी कहलक- ‘तोहर हम कोनो करजा खेने छिअह जे पकड़िकेँ लऽ जेबह। अपन सुखलो हड्डीकेँ धुनै छी, खाइ छी।’
  मरनीक बात सुनि सिपाहियोक मन उनटए-पुनटए लगलै। एक दिशि मालिकक आदेश दोसर दिशि मरनीक विचार। आखिर, एहेन लोकक बीच एहेन सक्कत विचार अबैक कारण की छै? अनका देखै छिऐ जे सिर्फ सिपाहीक बरदी देखि डरा जाइत अछि, भलेहीं ओ सरकारक सिपाही नहियो रहए। मुदा हमरा तँ सभ कुछ अछि तैयो अइ बुढ़ियाकेँ डर नै होइ छै। फेर मनमे एलै जे हम किछु छी तँ नोकर छी मुदा ई किछु अछि तँ स्वतंत्र बोनिहारिन। स्वतंत्र देशक स्वतंत्र श्रमिक। जे देशक आधार छी। आखिर देश तँ एकरो सबहक छिऐ।
  सिपाहीकेँ ठाढ़ देखि ठीकेदारे पाछू ससरि कऽ मरनी लग आएल। मरनियो सभकेँ  देखैत आ मरनियोकेँ सभ। ठीकेदार मरनीक आँखि देखैत। आँखिमे सुरुजक रोशनी जेकाँ प्रखर ज्योति। ललाटसँ आत्म-विश्वास छिटकैत। मधुर स्वरमे ठीकेदार पुछलक- ‘चाची, अहाँक परिवारमे के सभ छथि?’
  ठिकेदारक प्रश्न सुनि मरनीक आँखिमे नोर अबए लगलै। मन पड़ि गेलै अपन पति, बेटा आ पुतोहुक मृत्यु। टघरैत नोरकेँ आँचरसँ पोछि बाजलि- ‘बौआ, हमर घरबला, बेटा आ पुतोहु ठनकामे मरि गेल। अपने छी आ पिलुआ जेकाँ दूटा पोता-पोती अछि।’
  ठिकेदार- ‘बच्चा सभ स्कूलो जाइए?’
  ‘नै। एक तँ गाममे इस्कूल नै छै। तहूमे पहिने गरीब लोकक धिया-पूताकेँ पेट भरतै तब ने जाएत। ने भरि पेट अन्न होइ छै आ ने भरि देह वस्त्र, ने रहैक घर छै, तखन इस्कूल कना जाएत।’
  मरनीक बात सुनि ठीकेदार सहमि गेल। मने-मन सोचए लगल जे आँखिक सोझमे देखै छिऐ ओ झूठ कोना भऽ सकैत अछि। एत्ते भारी काज केनिहारक देहपर कारी खट-खट कपड़ा छै, तोहूमे सइयो चेफड़ी लागल छै, काज करै जोकर उमेर नै छै, तैपर एते भारी हथौरी पजेबापर पटकैत अछि। ठिकेदारक मन दहलि गेलै। जहिना अकास आ पृथ्वीक बीच क्षितिज अछि, जाहि ठाम जा चिड़ै-चुनमुनी लसकि जाइत अछि, तहिना ठीकेदारक मन सुख-दुखक बीच लसकि गेल। जेना सभ कुछ मनक हरा गेलै। शून्न भऽ गेलै। ने आगूक बाट सूझै आ ने पाछुक। मरनीसँ  आगू की पूछब से मनमे रहबे ने केलै। साहस बटोरि पुछलक- ‘भरि दिनमे कते रुपैया कमाइ छी?’ ठिकेदारक प्रश्न सुनि मरनीक मनमे झड़क उठलै। बाजलि- ‘कते कमाएब ! जेहने बैमान सरकार अछि तेहने ओकर मनसी छै। चारि दिनमे एकटा पजेबाक ढ़ेरी फोड़ै छी तँ तीन-बीस रुपैया दैए। अइसँ तीन तूरक पेट भरत? भरि दिन ईंटा फोड़ैत-फोडै़त देह-हाथ दुखाइत रहैए मुदा एकटा गोटियो कीनब से पाइ नै बँचैए।
ठिकेदारक आँखिमे नोर आबि गेलै। मनुष्यता जागि गेलै। मुदा ई मनुष्यता कते काल जिनगीमे अँटकतै? जिनगी तँ उनटल छै। जाहिमे मनुष्यता नामक कोनो दरस नहि छैक।

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