Tuesday, November 4, 2008

दूटा पाइ - जगदीश प्रसाद मण्डल



हलहोरिमे फेकुओ दिल्लीक रैलीमे जाइक विचार केलक। परसू सौझुका गाड़ी सभ पकड़त। दिल्लीक लड्डूक बात फेकुआकेँ बुझल। तेँ खाइक मन रहै। अबसर भेटल छलै। किएक तँ ने गाड़ीमे टिकट लागत आ ने संगबेक कमी। मात्र चारि दिनक खेनाइ टा अपन खर्च। गाड़ीमे लोक बेसी खाइतो नहि अछि किएक तँ पेशाब-पैखानाक समस्या रहै छै। फेकुआ माएकेँ कहलक- ‘‘माए, परसू दिल्ली जेबउ। बटखरचाक ओरियान कऽ दिहेँ?’’
  माए बाजलि- ‘‘की सभ लेबही?’’
  फेकुआ कहलक- ‘‘दू सेर चूड़ा लऽ कऽ डाॅक्टर सहाएब नागेंद्र जी चलैले कहलखिनहेँ। हमरो दू सेर चूड़ा कूटि दिहेँ।’’
  फेकुआक बातक विश्वास माएकेँ नहि भेलै। मने-मन सोचलक जे दू सेर चूड़ा तँ एक दिनमे लोक खाइत अछि। चारि दिन कोना पुरतै? फेर मनमे एलै जे दू सेर चूड़ो आ चारि-दुना आठटा रोटियो पका कऽ दऽ देबै। कहुना भेलै तँ रोटी सिद्ध अन्न भेलै।
गाड़ी अबैसँ पहिनहि जुलूसक संग फेकुआ स्टेशन पहुँचल। जिनगीक पहिल दिन फेकुआ गाड़ीमे चढ़त। प्लेटफार्मपर भीड़ देखि फेकुआक मन घबड़ेबो करै आ उत्साहो जगै जे एत्ते लोक चढ़त से हेतै आ हमरा बुत्ते की नहि चढ़ि हएत। निरमली-सकरीक बीच छोटी लाइन। गाड़ियो छोटकिये। मुदा सकरीसँ दिल्लीक लेल गाड़ियो बड़की आ लाइनो बड़की। गाड़ीमे चढ़ि फेकुआ सकरी पहुँचल। दिल्लीक गाड़ी लगले रहै। हाँइ-हाँइ कऽ निरमलीक गाड़ीसँ उतरि दिल्लीवाली गाड़ीमे सभ चढ़ल। गाड़ी खुजल।
ओना सकरीसँ दिल्ली जाइक लेल चौबीस घंटा लगैत। मुदा आइ से नहि भेल। चालीस घंटामे पहुँचल। मुदा चालीस घंटा कोना बीतल से फेकुआ बुझबे ने केलक। हलहोरियेमे पहुँचि गेल। ने एक्को बेर खेलक आ ने पानि पीलक। मुदा तैयो भुख बुझिये ने पड़ए। गाड़ीसँ उतड़ै काल फेकुआ खिड़की देने प्लेटफार्म दिशि तकलक, जेरक-जेर सिपाही घुमैत। मुदा फेकुआक नजरि कतौ नहि अँटकि, मोटका सिपाहीपर अँटकल। ओकर मनही पेटपर नजरि गेलै। तइ परसँ छअ आंगुर चाकर ललका बेल्ट। जे बेर-बेर निच्चाँ ससरैत। चानि‍ परसँ पसीनाक टघार। दस किलोक बन्दुक कान्हमे लटकल। मुदा तखने नागेन्द्र जी सेहो अपन छबो संगीक संग हाथसँ सभकेँ उतड़ैक इशारा दैत। धड़फड़ा कऽ फेकुओ उतड़ल।
प्लेटफार्म टपि जहाँ फेकुआ मुसाफिर खाना प्रवेश करए लगल आकि ममिऔत भायपर नजरि गेलै। ममिऔत भाय रतना चरिपहिया गाड़ीक ड्राइवर। अपना मालिककेँ गाड़ी पकड़बैले आएल। भायपर नजरि पड़ितहि फेकुआ गोर लगलक। गोर लागि लालकिला मैदान दिसक रास्ता धेलक। पाछूसँ झटकि कऽ आगू बढ़ि रतना फेकुआसँ घरक कुशल पूछलक। कुशलक जबाब नहि दऽ फेकुआ कहलक- ‘‘काल्हि साँझ धरि लाल किला मैदानमे रहब तेँ ओतै अबिहह। अखैन नै रुकबह।’’
  ‘‘कनी चाहो पीबि ने ले?’’
  ‘‘नै अखैन कुछो नै पीबह।’’
फेकुआ बढ़ि गेल। मुदा रतनाकेँ पाछू घुमैक डेगे ने उठै। फेकुए दिशि तकैत। मने-मन विचारए लगल जे हो न हो काल्हि भेँट नहि हुअए। ओत्ते लोकमे के कत्तऽ रहत तेकर कोन ठीक। तहूमे सौझुका बात कहलक। दिल्ली छिऐ। कोन ठीक जे बिजलीक इजोत रहतै की नहि। एत्ते लोकमे तँ दिनोमे अन्हरायले रहत। एक्को दिन मेजमानियो ने करौलिऐ। गाममे दीदी सुनत तँ की कहत ? ओ की कोनो दिल्लीकेँ दिल्ली बुझैत हएत। ओ तँ गामे जेकाँ बुझैत हएत। जहिना गाममे सभकेँ सभ चिन्है छै तहिना। मुदा ई तँ दिल्ली छी। भाड़ाक एक कोठरीमे सोहर गाओल जाइत छैक आ दोसरमे कन्नारोहट होइ छै। विचित्र स्थितिमे रतना पड़ि‍ गेल। आइ धरि रतनाक बुद्धिपर एहन भार कहियो नहि पड़ल। एकाएक मनमे एलै जे कौल्हुका छुट्टी लऽ कऽ भोरे फेकुआक भेँट करब। भेँट भेलापर लालकिला, जामा मस्जिद देखा देबै।
  दोसर दिन भोरे रतना फेकुआक भेँट करै बिदा भेल। लाल किला मैदान पहुँचते भेँट भऽ गेलै। भेँट होइतहि दुनू भाइ गामेक बसिया रोटी खा पानि पीलक। भरि दिन संगे, रैली समाप्त कऽ दुनू गोटे डेरापर आएल। पैघ सेठक ड्राइवर रतना, तेँ डेरो नीक। सभ सुविधा। मुदा रतनाक डेरासँ फेकुआक मनमे खूब खुशी नहि भेलै। मन पड़ि गेलै माइक ओ बात जे सदिखन बजैत- ‘‘अनकर पहीरि कऽ साज-बाज छीनि लेलक तँ बड़ लाज।’’ अपना जएह रहए ओहिसँ सबुर करी। मुदा माइयक बात फेकुआक मनमे बेसी काल नहि अँटकल। किएक तँ तीन दिनसँ नहाएल नहि छल। जहिसँ देहमे लज्जतिये ने बुझि पड़ै। रतनाकेँ कहलक- ‘‘भैया, पहिने हम नहेबह। बिना नहेने मन खनहन नै हएत। ओना ओंघियो लागल अछि। तेँ नहा कऽ खेबह आ भरि मन सुतबह।’’
फेकुआकेँ रतना बाथ रुम देखा देलक। बिजली जरैत। पानि चलैत बाथ रुम देखा रतना गैस चुल्हि पजारि भानस करए लगल। भरि मन फेकुआ नहाएल। मन शान्त भेलै। मनमे उठलै जखन दिल्ली आबि गेलहुँ तँ किछु लैये कऽ जाएब। रतना लग आबि बैसल। भानसमे देरी देखि रतना कहलकै- ‘‘बौआ देखही, ई दिल्ली छिऐ। ऐठाम लोक सोलह-सोलह घंटा खटैत अछि। दरमाहाक संग ओभरटाइमोक पाइ भेटै छै। मुदा जिनगी जीबैक लुरि नहि रहने सभ चलि जाइ छै। ने गामक कर्जसँ मुक्ति होइ छै आ ने अही ठाम चैनसँ रहैत अछि। भुतलग्गु जेकाँ सदिखन बुझि पडै़त छै। तोरा एहि दुआरे कहि दै छिऔ जे तूँ अपन छोट भाए छियेँ।’’
  रतनाक बात सुनि कने-काल गुम रहि फेकुआ कहलक- ‘‘भैया, तूँ सभ तरहे पैघ छह। जखन तोरा लग छी तँ तोँही ने हमर नीक-बेजाए बुझबहक।’’
  फेकुआक बातसँ रतनाकेँ अपन जिम्माक भार बुझि पड़लै। बाजल- ‘‘देखही बौआ, अखन जे कहलिऔ से स्टील फैक्ट्रीक स्टाफक बात कहलिऔ। मुदा सभ एहने अछि सेहो बात नहि छै। एहनो लोक अछि जे अपन मेहनत आ लुरिसँ गरीब रहितो अमीर बनि गेल। अपने इलाकाक ढ़ोरबा छी। जेकरा हम तँ ढ़ोरबे कहै छिऐ मुदा ओ ढोढ़ाइ बाबू बनि गेल। जखन गामसँ आएल तँ बौआ-ढहना कऽ चारि दिनक बाद ऐठीन आएल। ओकरा शैलूनमे नोकरी लगा देलिऐ। किछु दिन तँ काज करैमे लाज होए। किएक तँ ओ धानुक छी। मुदा किछुए दिनक पछाति तेहेन हाथ बैसि गेलै जे नौओ कऽ उन्नैस करए लगल। अपनो खूब मन लगए लगलै। दरमहो बढ़ि गेलै। तीन सालक बाद जेना ओकरा ऐठीनसँ मन उचटि गेलै। सोचलक जे जखन लुरि भऽ गेल अछि तखन कतौ कमा कऽ खा सकै छी। से नहि तँ गामेक चौकपर दोकान खोलब। अपना जँ दू पाइ कम्मो हएत तइसँ की, समाजक उपकार तँ हेतै। सएह केलक। ले बलैया, गामक लोक कियो ठाकुर तँ कियो नौआ तँ कियो हजमा कहए लगलै। घरक जनिजातिकेँ नौआइन कहए लगलै। सभसँ दुखद घटना तखन भेलै जखन कथा-कुटुमैती आ जातिक काजसँ अलग कएल गेलै। मुदा ओहो कर्म-योगी। गामकेँ प्रणाम कऽ अपन परिवारक संग दिल्ली शहर चलि आएल। वाह रे वनक फूल, ऐठाम आबि कऽ अपन शैलूनक कारोबार ठाढ़ कऽ लेलक। छह टा स्टाफ रखने अछि। बहिनीक बिआह इंजीनियरसँ केलक। हमहूँ बिआहमे रहिऐ।’’
  फेकुआ बाजल - ‘‘हमरो कोनो लाज-सरम नै हएत। जे काजमे लगा देबह, हम पाछु नै हटबह।’’
  रतना- ‘‘परसू रवि छिऐ। हमरो छुट्टी रहत। ताबे दू दिन अरामे कर।’’
  फेकुआ- ‘‘हमरा ओते सुतल नीक नै लगतह। चलि जेबह बुलैले।’’
  रतना- ‘‘रौ बुड़िबक! गाममे लोक खिस्सा कहै छै जे फल्लां तेहेन काबिल छै जे एक्के पाइमे बेचि लेतउ। मुदा अइठीन सभ काबिले छै। तैं देखबिही जे अइठीन सभसँ पैघ कारबार मनुक्खेक खरीद-बिक्रीक छैक। देहाती बुझि कोइ ठकि कऽ बेचि लेतउ। कहतौ जे हवा-जहाजक नोकरी धड़ा देबउ आ चलि जेमए आन देश।’’
  रतनाक बात सुनि फेकुआ क्षुब्ध भऽ गेल। मुदा मनमे एलै जे जेना हम बेदरा रही तहिना भैया कहैए। मुदा किछु बाजल नहि। दम साधि कऽ रहि गेल।
तीन दिनक उपरान्त फेकुआ कपड़ा सिलाइक दोकानमे काज शुरु केलक। दू हजार रुपैया दरमाहा। भिनसर छअ बजेसँ राति नअ बजे धरिक डयूटी। बीचमे एक बेरि अधा घंटा जलखै करैले आ एक घंटा खाइ बेर छुट्टी। फेकुआक मनमे उठल जे ड्यूटी तँ बीसो घंटा कऽ सकै छी मुदा सुतैक जे आठ घंटा छै से कना पुरत। मुदा फेर मनमे एलै जे जखन दू पाइ कमाए चाहै छी तखन तँ सभ सुख-भोग कमबए पड़त। दोकानमे आठटा कारीगर। आठो नोकरे। फेकुआ अनारी, तेँ दोकानक झाड़-बहारसँ काज शुरु केलक। कपड़ा काटब आ सिलाइ मशीन चलौनाइ सेहो कने-कने सीखए लगल।
दुइये माए-बेटा फेकुआ। दस साल पहिनहि बाप मरि गेल। अपने दिल्ली धेलक आ माए गाममे। मुदा माइयो थेहगरि। पुरुखे जेकाँ बोनि-बुत्ता करैत। नोकरी होइतहि फेकुआकेँ माए मन पड़लै। माइये नहि गामो मन पड़ल। मन पड़ल गामक स्मृति। माइक ममता जगि मनकेँ खोरए लगलै। मनमे उठए लगलै- परदेशियाक परिवारमे गेटक-गेट कपड़ा.....राशि-राशिक चीज-बौस.. रेडियो, घड़ी, टी. वी, मोबाइल इत्यादि। ककरा नहि नीक वस्तुक सेहन्ता होइ छै। मुदा ओहन सिहन्ते की जेकरा पुरबैक ओकातिये ने रहै। दू हजार महीना रुपैआक गरमी फेकुआक मनमे तरे-तर चढ़ि गेल। कोना नहि चढ़ैत? मुदा आमदनियेक गरमी चढ़ल, खर्चक पानि परबे ने कएल। सोचलक जे सभसँ पहिने माएकेँ चिट्ठी लिखि जना दिऐ।
आठ दिनक बाद फेकुआ रतनाकेँ कहलक- ‘‘भैया, हमरा तँ लिखल-पढ़ल नै होइए। मुदा जखन नोकरी लागि गेल तँ माएकेँ जनतब देब जरुरी अछि। किएक तँ ओकरा होइत हेतै जे कत्तऽ बौआइ-ढ़हनाइए। रतनोक मनमे जँचल। वी. आइ. पी. बैगसँ पोस्ट-कार्ड निकालि रतना चिट्ठी लिखैले तैयार भेल। पुछलक- ‘‘बाज की सभ दीदीकेँ लिखबीही?’’
फेकुआ लिखबए लगल-
स्थान- दिल्ली
ता.- ०५.०६.२००७
माए,
गोर लगै छिऔ
भगवानक दया आ तोरा सबहक असीरवादसँ तेहेन नोकरी भेटल जे कहियो मनमे नै आएल छल। दू हजार रुपैआ महीनाक तलब। अपना कते खर्च हएत। जे उगड़त से मासे-मास पठा देबउ। बेङबा कक्काकेँ कहिअनि जे चिमनीपर जा कऽ ईंटाक दाम बुझि अबैले। पहिने घर बना लेब। अपना चापा-कलो नै छौ, सेहो गड़ा लेब। घरक आगू जे मलिकाबाक चौमास छै, ओहो कीनि लेब।
तोहर फेकुआ

सात बजे भिनसर। मेघौन समए। कखनो कऽ सुरुज देखि पड़ैत आ फेर झपा जाइत। झिहिर-झिहिर पुरबा हबा चलैत। पान-छअ गोटेक संग फेकुआक माए रामसुनरि धन-रोपनी करए बिदा भेलि। किछुए आगू बढ़लापर डाक-प्यूनकेँ देखलक। मुदा आन स्त्रीगण जेकाँ रामसुनरि नहि जे दिनमे दू बेर मोबाइलसँ तीन पन्नाक चिट्ठीे आ तइ परसँ जे समदिया भेटल ओकरा दिया समाद पठौत। मनमे कोनो हलचल नहि। रामसुनरिक आगूमे आबि हँसैत डाकप्यून कहलक- ‘‘काकी, फेकुआक चिट्ठी एलौहेँ।’’ कहि झोरासँ निकालि पोस्ट कार्ड देलक। छबो स्त्रीगण डाकप्यूनकेँ चारु भागसँ घेरि कऽ ठाढ़ भेलि। हाथमे पोस्ट-कार्ड अबितहि रामसुनरिक मन बिहाड़िमे उड़ैत ओहि सुखल पात जेकाँ जे सरंगोलिया उठि अकासमे उड़ैत, तहिना उड़ि गेल। जिनगीक पहिल पत्र। मनमे एलै जे पहिने ककरोसँ पत्र पढ़ा ली। ओना डाकप्यून लगमे सँ चलि गेल। मुदा तेकर अफसोस नहि भेलै। किएक तँ जाधरि प्यून लगमे छल ताधरि पत्र पढ़ेबाक विचार मनमे आएलो नहि छलैक। फेर मनमे एलै जे काज कामै नै करब। अखन खूँटमे बान्हि कऽ रखि लै छी आ जखन निचेन हएब तखन पढ़ा लेब। सएह केलक।
गोसाँइ डुबैत रामसुनरि निचेन भेलि। निचेन होइतहि चिट्ठी पढ़बै लऽ श्याम ओहिठाम बिदा भेलि। श्यामोक घर लगे। पोस्ट-कार्ड हाथमे लऽ श्यािम सत्यनारायण कथा जेकाँ पढ़ए लगल। मुदा दोसरे पाँती- दू हजार रुपैआ महिना तलब- मे रामसुनरि ओझरा गेलि। मने-मन सोचए लागलि जे छौँड़ाकेँ घरक सोह एलै। बुद्धियो फुटैक उमेर भेल जाइ छै। आब कहिया चेतन हएत। अगिला साल तक बिआहो कइये देबै। असकरे राकश जेकाँ अंगनामे रहै छी। लगले विचार बदलि गेलै। बुदबुदाए लागलि- कोना लोक कहै छै जे मसोमातक बेटा दुइर भऽ जाइ छै। विचारमे डूबल रामसुनरि। तहि बीच श्याम बाजल- ‘‘सभ बात बुझलिऐ ने काकी?’’
  श्यामक पुछबसँ रामसुनरिक भक्क खुजल। बाजलि- ‘‘बौआ, चिट्ठी पढ़ल भऽ गेलह। की सभ छौड़ा लिखने अछि?’’
  काकीक मनक बात नहि बुझि श्याम खौंझा गेल। मुदा किछु बाजल नहि। चिट्ठीकेँ निच्चाँमे रखि श्याम ओहिना मुँहजबानिये कहए लगलनि। मुदा पोस्ट-कार्डकेँ निच्चाँमे राखल देखि बेचारी रामसुनरिकेँ भेलै जे अपने दिशिसँ कहैए। जाहिसँ विश्वासे ने भेलै। मुदा झगड़ो करब उचित नहि बुझलक। किएक तँ बेटाक पहिल चिट्ठी छी तेँ अशुभ व्यवहार नीक नहि।
दोसर दिन एकटा पोस्टकार्ड कीनि रामसुनरि चिट्ठी पढ़बैयो आ लिखबैयो लेल सोहन ऐठाम गेलि। दुनू पोस्टकार्ड- लिखलहो आ सौदो- रामसुनरि सोहनकेँ दैत कहलक- ‘‘बौआ, पहिने पढ़ि कऽ सुना दएह। तखन लिखियो दिहह।’’
  पत्र पढ़ि कऽ सोहन सुना देलकनि। समाचार सुनि रामसुनरिक मन खुशीसँ उत्साहित भऽ गेलै। बाजलि- ‘‘बौआ आब चिट्ठी लिखि दियौ। सोहन चिट्ठी लिखए लगल-
परमानपुर
ता. ०३.०७.२००७
फेकू।
असीरवाद।
अखन हम अपने थेहगर छी तेँ हम्मर चिन्ता जुनि कर। रहैले घरो अछिये। एक घैल पानि इसकूल बला कल परसँ लऽ अबै छी वएह भरि दिन चलैत अछि। तेँ पानियोक दिक्कत नहिये अछि। नहाइले धारो आ पोखरियो अछि। कहियो-काल बरखोमे नहा लै छी। तेँ अइ सभले तूँ चिन्ता किए करै छेँ? अखन खाइ-खेलाइक उमेर छौ। तेँ कमा कऽ जे मन फुड़ौ से करिहेँ। अगिला साल धरि अबिहेँ, बिआहो कऽ देबउ। असकरे अंगनामे नीक नै लगैए।
माए, रामसुनरि‍

साल भरि बीति गेल। जहिना गाममे रामसुनरि अपना काजमे हेरा गेलि तहिना दिल्लीमे फेकुओ। साले भरिमे फेकुआ कपड़ा सिलाइक कारीगर बनि गेल। अपना देहक कपड़ा-लत्ता कीनैत-कीनैत फेकुआक सालो भरिक दरमाहा सठि गेल। माइक जिनगी तँ जहिनाक तहिना रहल मुदा फेकुआक जिनगीमे बदलाब आएल। दुब्बर-दानर फेकुआ फुटि कऽ जुआन भऽ गेल। कपड़ा सिआइक लुरि भेने आत्मबलो मजबूत भेलै। मुदा गामक जिनगी आ दिल्लीक जिनगीक बीचक संघर्ष फेकुआक मनमे चलितहि रहल।
रवि दिन। रतनो आ फेकुओक छुट्टी रहै। सुति उठि दुनू ममियौत-पिसियौत विचारलक जे साल भरिसँ बगेरी नहि खेलहुँ। से नहि तँ आइ बगेरिये आनब। तहि बीच रोडपर देखलक जे पुलिसक गाड़ी इम्हरसँ ओम्हर कऽ रहल छै। दुनू भाँइकेँ कोनो भाँजे नहि लगै। कोठरीसँ निकलि रतना चाहबलासँ पुछलक। चाहबलासँ भाँज लगलै जे महल्लासँ एकटा जुआन लड़की आ एकटा सेठक बेटाक अपहरण रातिमे भऽ गेलै। समाचार सुनि दुनू भाँइ डरा गेल। बगेरीक विचार छोड़ि गामक गप-सप्‍प करए लगल।
  रतना बाजल- ‘‘बौआ, तोरा साल लगि गेलह। एक बेर गाम जा सभक भेँट केेने आबह।’’
  गामक नाम सुनितहि फेकुआक मन उड़ि कऽ दोसर दुनियाँ पहुँचि गेलै। मन पड़लै- चिमनीक ईंटा....चापाकल....घरक आगूक चौमास। मन गामक सीमापर अटकि गेलै। सीमा परसँ अंगना पहुँचैक साहसे ने होए। किएक तँ बाटेपर माएकेँ ठाढ़ भेल देखए। की कहैत हएत माए ? साल भरि भऽ गेलै, ने एक्कोटा पाइ पठौलक आ ने एक्को खण्ड साड़ी। कहियो काल जे अस्सक पड़ैत हएत तँ के दवाइयो आनि कऽ दैत हेतै। पौरुकाँ जे चिट्ठी आएल, तइ दिनसँ दोसर चिट्ठियो ने आएलहेँ। हमहूँ तँ नहिये पठौलिऐ। छुच्छे चिट्ठिये लिखने की हेतै। मने-मन बुढ़िया सरापैत हएत। कहैत हएत जे छौंड़ा ढ़हलेलक ढ़हलेल रहिये गेल। मुदा हमहीं की करब ? छुच्छे हाथे गामे जा कऽ की करब ? टिकटो जोकर पाइ नञि अए। चिन्ता आ सोगसँ फेकुआक मन दबा गेल। कोनो बाटे ने सुझैत। मनक भीतर बिरड़ो उठि गेलै। बिरड़ोक हवामे फेकुआक मन सोंगक तरसँ निकलि गेल। मनमे एलै जे गाम तँ गाम छी। जहिठाम लोक माघक शीतलहरी आगि तापि कऽ काटि लैत अछि। बिना कम्मल-सीरकक जाड़ बिता लैत अछि, गाछ तर जेठक रौद काटि लैत अछि। मुदा  दिल्लीमे से हएत ? साल भरिक कमाइ साल भरिक मौसमक अनुकूल कपड़ेमे चलि गेल। नहि लैतहुँ तँ सेहो नहि बनैत। लेलहुँ तँ गाम छुटि गेल। जहिना घनघोर बादलक फाँटसँ सूर्यक रोशनी छिटकैत, तहिना फेकुओक मनमे भेल। रतनाकेँ कहलक- ‘‘भैया, एकटा चिट्ठी लिखि दएह।’’
  लगेमे रतनाकेँ सभ कुछ छलै। पोस्ट-कार्ड निकालि लिखैले तैयार भेल। फेकुआ लिखबए लगल-
दिल्ली
ता. ११.०८.२००८
माए,
गोड़ लगै छिऔ।
मनमे बहुत छल हेतौ जे तोरो बेटा दिल्लीमे नोकरी करैत छौ। मुदा सभ हरा गेल। सिर्फ एक्केटा चीज बँचल जे ऐठाम–-दिल्लीसँ, ओइठाम-गाम धरि जीबैक रस्ता धरा देत। तेँ खुशी अछि। हाथ खाली अछि। गाम कोना आएब?
फेकुआ

  चारिये दिनमे चिट्ठी माएक हाथ पहुँचल। चिट्ठी हाथमे अबितहि रामसुनरि निङहारि-निङहारि देखए लगलीह। छौँड़ा कतौ अछि जीबैत तँ अछि। बेटा धन छी। कतौ रहह। आब तँ फुटि कऽ जुआन भऽ गेल हएत। जहिना चाह-पान खा-पी बड़का लोकक धोधि फुटि जाइ छै, तहिना तँ फेकुओकेँ भेल हएत। किएक तँ ओहो ने चाह-पान खाइत-पीबैत हएत। गोराइयो गेल हएत। मोछो-दाढ़ी भऽ गेल हेतै। जहिना भगवान घरसँ पुरुख उठा लेलनि, तहिना तँ फेरि दैयो देलनि। जुआन बेटापर नजरि पहुँचतहि रामसुनरिक मन खुशीसँ नाचि उठलै। मने-मन बुदबुदाए लगलीह- दस बर्खसँ घरमे पुरुख नञि छल तेँ की कोनो पुरुखक घरसँ हमर घर अधला चलल। संतोषे गाछमे मेबा फड़ैत छै। परसुका बात मन पड़लै। चाहक दोकानपर परसू पंडी जी कहैत रहथिन जे अइ बेर शुरुहे अगहनसँ घन-घनौआ लगन अछि। हमहूँ फेकुआक बिआह कइये लेब। बिआह मनमे अबिते सोचलक जे बहुत दिनसँ पाँच गोटेक अंगनामे हाथो नै धुऐलौं। सेहो कइये लेब। समाजक भोजमे तँ नै सकब मुदा जहाँ धरि सकड़ता हएत, तइमे पाछुओ नै हटब। लोक ई नै बुझै जे मसोमातक बेटाक बिआह होइ छै। डफरा-बौसली हवागाड़ी सेहो लइये जाएब। अनका जेकाँ एक ढ़कियाक मुँह नै पसारब। अपना बेटी-जमाएकेँ जे देत से देत। हम किए मंगिऔ। जे आदमी पोसि-पालि कऽ एकटा मनुक्ख देबे करत तेकरासँ फेर की मंगिऔ? किछु नञि मंगबै। लुरि रहत तँ कामधेनु बना कऽ राखब नहि तँ माटिक मुरुत रहत। एकाएक रामसुनरिक नजरि चिट्ठीपर पहुँचल। पोस्ट-कार्ड निकालि हियासि-हियासि देखए लगलीह। फुटा-फुटा करिया अक्षर तँ नहि बुझैत मुदा कृष्ण जेकाँ कारी मुरुत जरुर बुझि पड़ैत। चिट्ठी पढ़ाबै लऽ रामसुनरि बिदा भेलि। अंगनासँ निकलितहि मनमे उठलनि आब की कोनो पहिलुका जेकाँ लोककेँ बारह बर्ख कटिया सोन्हबए पड़ै छै। आब तँ साले भरिमे लोककेँ धिया-पूता भऽ जाइत छैक। कहुना भेल तँ हमरो फेकुआ शहरे-बजारक भेल की ने। एते बात मनमे अबितहि मुँहसँ हँसी निकलल। असकरे। तेँ कानकेँ सुनै दुआरे तेना रामसुनरि जोरसँ बजैत जेना दोसरकेँ कहैत होइ। फुसिओहोक बेटी युग जितलक। भाग तँ मुँह-कान नीक नञि छै। नञि तँ युगमे भूर करैत। बिआहक आठमे मासमे बेटी भऽ गेलै। ई तँ धन्यवाद एहि समाजकेँ दी जे एक सूरे सभ बाजल जे सतमसुआ बच्चा छिऐ। जँ एना बिआहक विदागरीमे हएत तँ केहेन होएत? मुदा ओ बच्चा सतमसुआ नहि। समाज झूठो बाजि ओकरा सतमसुआ बच्चाक पालन-पोसनसँ बचेलक।
  रविक दरबज्जा लग अबितहि रामसुनरिक नजरि चिट्ठीपर पहुँचल। रवि दरबज्जेपर बैसि किछु लिखैत छल। रामसुनरिकेँ लग अबितहि रबि उठि कऽ चौकीपर बैसबैत पुछलक- ‘‘काकी फेकू भाइक बिआह कहिया करबीही ? हमहूँ बरिआती जेबउ ?’’
  रविक बात सुनितहि रामसुनरिक मन बृन्दाबनक रास लीलापर पहुँचि गेलनि। कनिये काल कृष्णक रास-लीला देखि घुरि कऽ आबि चिट्ठी पढ़बो आ लिखबो लेल रबिकेँ कहलक। चिट्ठी पढ़ि कऽ रबि सुना देलकनि। पत्र लिखैले तैयार होइत बाजल- ‘‘की सभ लिखब?’’
रामसुनरि लिखबए लागलि-
परमानपुर
ता. १५.०८.२००८
बौआ फेकू।
हम तोरा कमाइक कोनो आशा केने छी, जे पाइ नै छौ तँ गाम कोना ऐमे ? ककरोसँ पैंच-खोंइच लऽ कऽ चलि आ। तीन भुरकुरी धान-गहूम रखने छी, वएह  बेचि कऽ दऽ देबै। आब तोहूँ चेतन भेलेँ। लोक कलंक जोड़त। हमरो आब अइ दुनियामे नीक नै लगैए। तेँ सोचए छी जे अपन काज जल्दी पुरा ली। अगते अगहनमे चलि अबिहेँ। ताबे कनियाँ ठेमा कऽ रखबौ। अखैन हमहूँ थेहगर छी मुदा अइ जिनगीक कोन ठेकान छै। आब ई परिवारो आ दुनियो तोरे सबहक ने हेतौ। समएपर चलि अबिहेँ, जइसँ काज बिथुत ने होउ।’’
माए ।

माएक पत्र सुनि फेकुआ मने-मन खूब खुशी भेल। मनमे भेलै जे हमरो काज एहि दुनियाँ, एहि समाजमे छैक। मुदा मनमे खुशी बेसी काल टिकल नहि। लगले माघक कुहेस जेकाँ बुद्धि अन्हरा गेलै। कोन मुँह लऽ कऽ गाम जाएब। साल भरिक कमाइ माइयक हाथमे की देबै। ई बात सत्य जे हमरा भरोसे माए नहि जीबैत अछि। मुदा हमरा ओकर कोनो दायित्व नहि अछि, सेहो तँ नहि। हे भगवान कोनो गर सुझाबह।
  पनरहे दिनक पछाति एकटा घटना घटल। फेकुआक नोकरी छुटि गेल। ओना नओ गोटेक संग फेकुआ काज करैत। मुदा आठो गोटे पुरना कारीगर समयानुसर अपनाकेँ बदलैत जाइत, नव-नव डिजानिक कपड़ा सिबैक लूरि सिखैत जाइत। फेकुआ अनाड़ी, तेँ शुरुहसँ सिलाइक काज सिखए पड़लै। साल भरिमे कहुना कऽ पुरना दिल्लीक कारीगर बनल। मुदा फैशनमे बिहाड़ि एने फेकुआ उड़ि कऽ कातमे खसल। ओना मालिकोक मनमे बेइमानी घोसिआएल रहै। बेइमानीक कारण छल पाइबलाक चसकल मन। एकटा अट्ठारह बर्खक लड़की कारीगर दू हजार दरमाहामे भेँट गेलै।
सवा बर्खसँ शहरमे रहैत-रहैत फेकुओक सुतल बुद्धि जगि कऽ करोट लिअए लगलैक। जहिसँ आत्मबलोक जन्म भऽ चुकल छलैक। मुदा खिच्चा। सक्कत बनिये रहल छलैक। जहिना मालिक नोकरीसँ हटैक बात कहलकै तहिना फेकुआ हिसाब मंगलक। हिसाब लऽ फेकुआ डेरा बिदा भेल। पाइ रहबे करै। रस्तेमे काॅफी पीबि डेरा आएल। डेरा आबि पंखा खोलि पलंगपर ओंघरा गेल। ओंघराइते मनमे अबै लगलै- ई शहर छी, गाम नहि। शहरमे जाहि तेजीसँ मशीन, फैशन आ जीवन-शैली बदलि रहल अछि, ओहिमे हमरा सन-सन मुरुखक कोन बात जे पढ़लो-लिखल लोक ओंघरनियाँ देत। नवका मशीन पुरना इंजीनियरकेँ धक्का देत। पुरना बुद्धिकेँ नवका बुद्धि धक्का देत। मुदा नीक-अधलाह के बुझत ? सभ भोग-विलासक जिनगीक पाछु आन्हर बनि गेल अछि। बाप रे, ई तँ भुमकमक लक्षण छी। फेर मनमे एलै, भरिसक हमर माथ, नोकरी छुटने तँ ने चढ़ि गेलहेँ। ओह, अनका विषएमे अनेरे ओझराइ छी। जेकरा भोगए पड़तै ओकरा सुआस बुझि पड़ै छै, तँ हमरे की। ठनका ठनकै छै तँ कियो अपना माथपर हाथ लऽ साहोर-साहोर करैत अछि। फेर मनमे एलै जे हमहूँ तँ जूड़िशीतलक नढ़िये जेकाँ भेल छी। एक दिशि चारु भागसँ कुकूर दाँतसँ पकड़ि-पकड़ि तीड़ैत अछि तँ दोसर दिशि शिकारी सभ लाठी बरिसबैत अछि। गामक लूरि सीखलहुँ नहि, सीखि लेलहुँ शहरक लूरि। तँ आब लिअ। क्वीन्टलिया बोरामे भरि-भरि रखने जाउ। फेकुआक मन औनाए गेल। दुबट्टियेमे हरा गेल। तिनबटिया-चारिबट्टिया तँ बाँकिये अछि। माएपर तामस उठलै। बुदबुदाए लगल- ‘‘ई बुढ़िया गछा लेलक जे शुरुहे अगहनमे चलि अबिहेँ। कनियाँ ठेमा कऽ रखबौ। बिआह कइये देबउ।’’
  एक दिशि केँचुआइल कनियाँक बदलैत रुप तँ दोसर दिशि माइयक सिनेह। समुद्रक पानि जेकाँ फेकुआक मनकेँ अस्थिर कऽ देलक। सोचए लगल जे माए नीक छोड़ि कहियो अधलाह नहि केलक आ ने कहियो सोचलक, ओकरापर आँखि उठाएब अनुचित छी। काल्हिये गाम चलि जाएब। बिआहो कइये लेब। दू गोटे पति-पत्नी ओहन लोक एकठाम होएब जे किछु कऽ सकैत अछि। ‘दू पाइ’ क आशा हृदएमे समेटि सौझुका गाड़ी पकड़ि, तेसर दिन गाम पहुँचि गेल।

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