मैट्रिक परीक्षा दऽ दीनानाथ आगू पढ़ैक आशासँ, संगियो-साथी आ शिक्षको ऐठाम जा-जा विचार-विमर्श करैत। बिनु पढ़ल-लिखल परिवारक रहने, कॅालेजक पढ़ाइक तौर-तरीका नहि बुझैत। ओना ओ हाइ स्कूलमे थर्ड करैत मुदा क्लासमे सभसँ नीक विद्यार्थी। सभ विषए नीक जेकाँ परीक्षामे लिखने, तेँ फेल करैक चिन्ता मनमे एक्को मिसिया रहबे ने करै।
मूर्ख रहितो माए-बाप बेटाकेँ पढ़बैमे जी-जान अरोपने। ओना घरक दशा नीक नहि मुदा पढ़बैक लीलसा दुनूक हृदएमे कूट-कूट कऽ भरल। जखन दीनानाथ मैट्रिक परीक्षाक िदअए दरभंगा सेन्टर जाइक तैयारी करए लगल, तखन माए अपन नाकक छक, जे डेढ़ आना-छअ पाइ भरि रहए, बेचि कऽ देलकै। अगर जँ माए-बापक मन बेटा-बेटीकेँ पढ़बैक रहत आ थोड़बो मेहनतिसँ ओ पढ़त तँ लाख समस्योक बावजूद ओ पढ़बे करत। तेहिमे सँ एक दीनानाथो। काल्हि एगारह बजिया गाड़ीसँ परीक्षा दिअए जाएत तेँ आइये साँझमे पिता रामखेलावन पत्नी सुमित्राकेँ कहलक- ‘काल्हि एगारह बजे बौआ गाड़ी पकड़त तेँ अखने ककरोसँ आध सेर दूध आनि कऽ पौड़ि दिऔ। दहीक जतरा नीक होइ छै।’
माइयोक मनमे जँचलै। आध सेर दूध पौड़ैक विचार माए केलक आ मने-मन ब्रह्म-बाबाकेँ कबुला केलक जे अहाँ हमरा बेटाकेँ पास करा देब तँ कुमारि भोजन कराएब। संगे हाँइ-हाँइ कऽ चिकनी माटि लोढ़ीसँ फोड़ि अछिनजल पानिमे सानि, दिआरी बना, साफ पुरना कपड़ाक टेमी बना, दिआरीमे करु तेल दऽ साँझ दिअए ब्रह्म स्थान बिदा भेलि। रस्तामे मने-मन ब्रह्म-बाबाकेँ कहैत जे हे ब्रह्मबाबा कहुना हमरा बेटाकेँ पास कऽ दिहक। तोरेपर असरा अछि।
स्कूलमे सभसँ नीक विद्यार्थी दीनानाथ, मुदा नीक रहितहुँ क्लासमे थर्ड करैत। एकर कारण रहए जे हाइ स्कूल सेेक्रेट्रीक मातहत चलैत। जाहिसँ स्कूलक सर्वेसर्वा सेक्रेट्रिये। इज्जतोक दुआरे आ फीसोक चलैत स्कूलमे फस्ट सेक्रेट्रिएक लगुआ-भगुआ करैत। जँ कहीं सेक्रेट्रीक समांग नञि रहैत तखन हेडमास्टरक समांग फस्ट करैत। मुदा एहि बैचमे सेक्रेट्रियोक सवांग आ हेडमास्टरोक सवांग। तेँ सेक्रेट्रीक समांग फस्ट करैत आ हेडमास्टरक समांग सेकेण्ड आ दीनानाथ थर्ड। जे फस्ट करैत ओकरा पूरा फीस आ सेकेण्ड-थर्डकेँ आधा फीस माफ होइत। ओना आन शिक्षक सभकेँ एहि बातक क्षोभ होइन मुदा कैयो की सकैत छथि। किएक तँ आन शिक्षक सबहक गति कोठीक नोकरसँ नीक नञि रहनि, सात घंटी पढ़ौनाइ आ डेढ़ सए रुपैया महीना पौनाइ मात्र रहनि। मुदा तैयो ओ सभ इमानदारीसँ काज करैत। असेसमेंटक चलनि सेहो रहए। बीस नम्बरक हिसाबसँ सभ विषएक असेसमेंट होइत। सिर्फ समाजे-अध्ययनक हिसाब अलग रहए। असेसमेंटक नम्बर परीक्षाक नम्बरमे जोड़ि कऽ रिजल्ट होइत। जे असेसमेंटक नम्बर सेक्रेट्री आ हेडमास्टरक हाथक खेल रहए। परीक्षाक तीन मासक उपरान्त रिजल्ट निकलै।
मास दिन परीक्षाक बीति गेल। दू मास रिजल्ट निकलैमे बाकी। माघक अंतिम समए। सरस्वती पूजा पाँच दिन पहिने भऽ गेल। शीतलहरी चलैत। जाहिसँ मिथिलांचल साइबेरिया बनि गेल। दिन-राति एक्के रंग। बरखाक बून्न जेकाँ ओस टप-टप खसैत। सुरुजक दरसन दू माससँ कहियो ने भेल। दिन-राति कखन होए ओ लोक अन्हारेसँ बुझैत। सभ अपन-अपन जान बँचवै पाछू लागल।
खेती-पथारीक काज सबहक बन्न। रब्बी-राइ ठंढ़सँ कठुआएल। बढ़बे ने करैत। बोराक झोली ओढ़ोलाक बादो माल-जाल थर-थर कपैत। जहिना महीसक बच्चा तहिना गाइयक बच्चा कठुआ-कठुआ मरैत। बकरीक तँ फौतिये आबि गेल। गाछ सभ परहक घोरन सुड्डाह भऽ गेल। चिड़ै-चुनमुनीसँ लऽ कऽ नढ़िया, खिखिर, साँप मरि-मरि जहाँ-तहाँ महकैत।
माघक पूर्णिमासँ दू दिन पहिने रामखेलावनकेँ लकबा लपकि लेलक। सौँसे देहक अधा भाग सुन्न भऽ गेलै। क्रियाहीन। बिठुओ कटलापर किछु नहि बुझैत। चिड़ैक लोल जेकाँ टेढ़ मुँह भऽ गेलै। ओना उमेरो कोनो बेसी नहि, चालीस बर्खसँ भीतरे। रौतुका समए। शीतलहरीक चलैत अन्हारो बेसी। ओना इजोरिया पख रहए। मुदा भादबक अन्हार जेकाँ अन्हार। पिताक दशा देखि दीनानाथक मन घबड़ा गेलै। तहिना माइयोक। मुदा तैयो मनकेँ थीर करैत दीनानाथ डाॅक्टर ऐठाम विदा भेल। किछु दूर गेलापर पएर तेना कठुआ गेलै जे चलिये ने होइ। मनमे भेलै जे बाबूसँ पहिने अपने मरि जाएब। घरोपर घुरि कऽ नञि गेल हएत। बीच पाँतरमे दीनानाथ असकरे। दुनू आँखिसँ दहो-बहो नोर खसए लगलै। मनमे एलै, आब की करब? मुदा फेर मनमे एलै जे हाथसँ ठेहुन रगड़लापर पएर हल्लुक हएत। सएह करए लगल। जाँघ हल्लुक भेलै। हल्लुक होइते डाॅक्टर ऐठाम चलल।
डाॅक्टर ऐठाम पहुँचिते रोगीक भीड़ देखि दीनानाथ फेर घबड़ा गेल। मनमे एलै, जे सौँसे दुनियाँक रोगी एतै जमा भऽ गेल अछि। असकरे डाॅक्टर सहाएब छथि आ दूटा कम्पाउण्डर छनि, कोना सभकेँ देखथिन। मुदा रोगो एकरंगाहे, तेँ बेसी मत्था-पच्ची डाॅक्टरकेँ करै नै पड़नि। धाँइ-धाँइ इलाज करैत जाथि। मुदा मेले जेकाँ रोगी एबो करै। थोडे़ काल ठाढ़ भऽ कऽ देखि दीनानाथ सिरसिराइते डाॅक्टर लगमे जा बाजल- ‘डाॅक्टर सहाएब, कनी हमरा अइठीन चलियौ। हमर बाबू एते बीमार भऽ गेल छथि जे अबै जोकर नञि छथि।’
दीनानाथक बात सुनि डाॅक्टर कहलखिन- ‘बौआ, ऐठाम तँ देखिते छी, कोना एते रोगी छोड़ि कऽ जाएब? जे ऐठाम पहुँचि गेल अछि ओकरा छोड़िकेँ जाएब उचित हएत।’
‘समए रहैत जँ हमरा ऐठाम नै जाएब तँ बाबू मरि जेताह।’
‘अहाँ घबड़ाउ नै तत्खनात दूटा गोली दै छी। हुनका खुआ देबनि आ एतै नेने अबिअनु।’
दीनानाथक मनमे पिताक मृत्यु नचए लगल। मन मसोसि दुनू गोलि लऽ बिदा भेल। मुदा घर दिशि बढ़ैक डेगे ने उठए। एक तँ ठंढ़, दोसर मनमे निराशा आ तेसर शीतलहरीसँ रातिओ अन्हार। मुदा तैयो जिबठ बान्हि कऽ बिदा भेल। कच्ची रस्ता रहने जहाँ-तहाँ मेगर आ तइ परसँ कते ठाम टुटलो। जइसँ कए बेर खसबो कएल मुदा तैयो हूबा कऽ उठि-उठि आगू बढ़िते रहल। घरपर अबिते दुनू गोली पिताकेँ खुऔलक। तहि बीच माए गोइठाक घूर कऽ सौँसे देह सेदैत। अपना खाट नहि। एते रातिमे ककरा कहतै। मुदा पितिऔत भाइक खाट मन पड़लै? मन परिते पितिऔत भाय लग जा कहलक- ‘भैया खाटो दिअ आ संगे चलबो करु। एहेन समएमे अनका ककरा कहबै। के जाएत ?’
दीनानाथक बात सुनिते पितिऔत भाय धड़फड़ा कऽ उठि खाट नेनहि बढ़ल। खाटपर एक पाँज पुआर बिछा सलगी बिछौलक। दुनू पाइसमे बरहा बान्हि खाट तैयार केलक। खाट तैयार होइते दुनू गोरे रामखेलावनकेँ उठा ओहिपर सुतौलक। बरहामे बाँस घोसिया दुनू गोरे कान्हपर उठा बिदा भेल। पाछु-पाछु सुमित्रो बिदा भेलि। थोड़े काल तँ दीनानाथ किछु नहि बुझलक मुदा थोड़े कालक बाद कन्हा भकभकाए लगलै। कान्ह परक छाल ओदरि गेलै। जइसँ बाँस कान्हपर रखले ने होए। लगले-लगले कान्ह बदलै लगल। मुदा जिबट बान्हि डाॅक्टर ऐठाम पहुँचि गेल।
डाॅक्टर एहिठाम पहुँचते डाॅक्टर सहाएब देखलखिन। बीमारी देखारे रहए। धाँए-धाँए पाँचटा इन्जेक्शन लगा देलखिन। इन्जेक्शन लगा डाॅक्टर दीनानाथकेँ कहलखिन- ‘हिनका खाटेपर रहए दिअनु। बेसी चिन्ता नै करु। तखन तँ नमहर बीमारी पकड़नहि छनि। किछु दिन तँ लगबे करत।’
रामखेलावनकेँ नीन आबि गेलै। खाटक निच्चाँमे तीनू गोटे -दीनानाथ, पितिऔत भाय आ सुमित्रा- बैसल। सुमित्रा मने-मन सोचैत जे समए-साल तेहने खराब भऽ गेल अछि जे बेटा-पुतोहू ककरा देखै छै। जाबे पति जीबैत रहै छै ताबे स्त्रीगण गिरथाइन बनल रहैत अछि। पुरुखकेँ परोछ होइतहि दुनियाँ अन्हार भऽ जाइ छैक। बिना पुरुखक स्त्रीगण ओहने भऽ जाइत अछि जेहने सुखाएल गाछ। कहलो गेल छै जे साँइक राज अप्पन राज, बेटा-पुतोहूक राज मुँहतक्की। मुदा की करब ? अपन कोन साध। ई तँ भगवानेक डाँग मारल छिअनि। हे माए भगवती, कहुना हिनका नीक बना दिअनु। जँ से नञि करबनि तँ पहिने हमरे लऽ चलू।
दोसर दिन डाॅक्टर रामखेलावनकेँ देखि कहलखिन- ‘हिनका घरेपर लऽ जइअनु। ऐठामसँ नीक सेवा घरपर हेतनि। बीमारी आब आगू मुँहे नहि बढ़तनि मुदा इलाज बेसी दिन करबै पड़त। हमर कम्पाउण्डर सभ दिन जा-जा सुइयो देतनि आ देखबो करतनि। तै बीच जँ कोनो उपद्रव बुझि पड़त तँ अपनो आबि कऽ कहब।’
कहि दूटा सुइया फेर डाॅक्टर सहाएब लगा देलखिन। दवाइक पुरजा बना देलखिन। एकटा सूइया आ तीन रंगक गोली सभ दिन दैले कहि देलखिन। गप-सप्प सभ कियो करिते छलाह आकि तहि बीच रामखेलावन पत्नीकेँ कहलक- ‘किछु खाइक मन होइए।’
खाइक नाम सुनिते दीनानाथक मुँहसँ हँसी निकलल। लगले दोकानसँ दूध आ बिस्कुट आनि कऽ देलक। दूध-बिस्कुट खुआ दुनू भाँइ खाट उठा बिदा भेल।
घरपर अबिते टोल-परोससँ लऽ कऽ गाम भरिक लोक देखए अाबए लगल। शीतलहरी रहबे करै मुदा तैयो लोक अबैक ढ़बाहि लगल। दू घंटा धरि लोक अबैत रहल। दीनानाथ माएकेँ कहलक- ‘माए, बड़ भूख लगल अछि। पहिने भानस कर। भुखे पेटमे बगहा लगैए।’
दीनानाथक बात सुनि माए भानस करए बिदा भेलि। भूख तँ अपनो लागल मुदा कहती ककरा। बेर-बिपतिमे तँ एहिना होइते छैक। दीनानाथक बात पितिआइन सेहो सुनलक। बेचारी पितिआइन सोचलक जे सभ भुखाइल अछि। बेरो उनहि गेलै। आब जे भानस करए लगत तँ साँझे पड़ि जेतैक। तहूँमे सभ भुखे लहालोट होइए। से नञि तँ घरमे जे चूड़ा अछि ओ दऽ दै छिऐ जइसँ तत्खनात तँ काज चलि जेतै। सएह केलक।
दीनानाथ आ सुमित्रा चूड़ा भिजा कऽ खाइते छल आकि माम -सुमित्राक भाए- आएल। भाएकेँ देखितहि सुमित्राक आँखिमे नोर आबि गेल। बिना पएर धोनहि भाए मकशूदन बहिनोइ लग पहुँचि देखए लगलथि। बहिनोइक दशा देखि दुनू आँखिसँ दहो-बहो नोर खसए लगलनि। नोर पोछि बेचारे सोचै लगलाह जे हम तँ सियान छी तहूमे पुरुख छी। जँ हमहीं कानबै तँ बहीन आ भागिनक दशा की हेतै। धैर्य बान्हि बहीनकेँ कहलक- ‘दाइ, ई दुनियाँ एहिना चलै छै। रोग-व्याधि सह-सह करैत अछि। जइ ठीन गर लगि जाइ छै पकड़ि लैत अछि। अपना सभ सेबे करबनि की ने मुदा.......। रुपैयाक लेल दवाइ-दारुमे कोताही नञि होनि। आइ भोरे पता लागल। पता लगिते दौगल एलहुँ। अपने गाए बिआएल अछि। काल्हि गाइयो आ जहाँ धरि हएत तहाँ धरि रुपैयो आनि कऽ दऽ देबौ। अखन हम जाइ छी, काल्हि आएब।’
चारि दिनक बाद रामखेलावनक मुँह सोझ भऽ गेल। उठि कऽ ठाढ़ सेहो हुअए लगल। मुदा एकटा पाएर नीक नहि भेल। कनी-कनी झखाइते डेग उठबैत।
सभ दिन भोरे आबिकेँ कम्पाउण्डर सूइयो दैत आ चला-चला देखबो करैत।
दू मासक बाद दीनानाथक रिजल्ट निकलल। फस्ट डिबीजन भेलै। नम्बरो नीक। छह सौ तीन नम्बर। हेडमास्टरक समांगकेँ सेहो फस्ट डिबीजन भेलै। मुदा नम्बर कम। पाँच सौ पैंतालिस आएल छलै। सेक्रेट्रीक समांगकेँ सेकेण्ड डिवीजन भेलै। मुदा नम्बर बढ़िया, पाँच सए चौंतीस। आगू पढै़क आशा दीनानाथ तोड़ि लेलक। किएक तँ घरमे कियो दोसर करताइत नहि। एक तँ पिताक बीमारी, दोसर घरक खर्च जुटौनाइ, तै परसँ छोट भाए अठमामे पढै़त। मुदा दीनानाथकेँ अपन पढ़ाइ छोडैैैैै़क ओते दुख नै भेलै जते परिवार चलौनाइसँ लऽ कऽ पिताक सेवा करैक सुख भेलै। जे बेटा बाप-माइक सेवा नै करत ओ बेटे की? अपन पढ़ैक आशा दीनानाथ छोट भाए कुसुमलालपर केन्द्रित कऽ देलक।
अधिक काल मकशूदन बहीनेक ऐठाम रहए लगलाह। गाइयोक सेवा आ खेतो-पथारक काज सम्हारए लगलथि। अपना ऐठामसँ अन्नो-पानि आनि-आनि दिअ लगलखिन। अपना घर जेकाँ भार उठा लेलक। अपन दशा देखि रामखेलावन मकशूदनकेँ कहलखिन- ‘हम तँ अबाहे भऽ गेलौं। जाबे दाना-पानी लिखल अछि ताबे जीबै छी। मरैक कोनो ठीक नहि अछि तेँ अपना जीबैत कतौ दीनानाथक बिआह करा दियौ। बेटा-बेटीक बिआह-दुरागमन कराएब तँ माए-बापक धरम छिऐ। मुदा हम तँ कोनो काजक नै रहलौं। कमसँ कम देखियो तँ लेबै।’
बहनोइक बात सुनि मकशूदन गुम्म भऽ गेला। मने-मन सोचए लगला जे समए-साल तेहने खराब भऽ गेल अछि जे नीक मनुख घरमे आनब कठिन भऽ गेल अछि। सभ खेल रुपैआपर चलि रहल अछि। मनुखक कोनो मोले ने रहलै। एहेन स्थितिमे नीक कन्याँ कोना भेटत ? तखन एकटा उपाए जरुर अछि जे रुपैया-पैसाक भाँजमे नहि पड़ि, गुनगर कन्याँक भाँज लगाबी। जइसँ घरक कल्याण हेतै। पाहुन जखन हमरा भार देलनि तँ हम दान-दहेज नहि आनि नीक कन्याँ आनि देबनि। बहिनोइकेँ कहलखिन- ‘पाहुन, रुपैआक पाछू लोक भसिआइत अछि। अगर अहाँ हमरा भार दै छी तँ हम रुपैआक भाँजमे नहि पड़ि नीक मनुक्ख आनि कऽ देब। से की विचार?’
मकशूदनक बात सुनि बहीन धाँइ दऽ बाजलि- ‘भैया, रुपैया मनुक्खक हाथक मैल छिऐ। मुदा मनुक्ख तपस्यासँ बनैत अछि। तेँ हमरा नीक पुतोहू हुअए। रुपैआक भुख हमरा नै अछि।’
बहीनक बात सुनि मकशूदनक मनमे सबुर भेलनि। बजलाह- ‘बहीन, जहिना तोरा सबहक पुतोहू तहिना तँ हमरो हएत की ने। के एहेन अभागल हएत जे अपन घर अबाद होइत नै देखत?’
अपन पढ़ाइक आशा तोड़ि दीनानाथ मने-मन अपना पएरपर ठाढ़ होइक बाट ताकए लगल। संकल्प केलक जे जहिना नीक रिजल्ट पबैक लेल विद्यार्थी जी-तोड़ मेहनति करैत अछि तहिना हमहूँ परिवारकेँ उठबैक लेल जमि कऽ मेहनति करब।
बिऔहती लड़कीक भाँज मकशूदन लगबए लगला। मुदा मनमे एलनि जे हम तँ वर पक्ष छी तेँ लड़की ऐठाम पहिने कोना जाएब ? कने काल गुनधुन करैत सोचलनि जे बेटा-बेटीक बिआह परिवारक पैघ काज होइत अछि तेँ एहेन-एहेन छोट-छीन बेवहारपर नजरि नहिये देब उचित हएत। तहूमे तँ हम लड़काक बाप नहि माम छी। पाहुन जखन भार देलनि तँ नहियो करब उचित नै हएत।
अपना गामक बगलेक गाममे लड़कीक भाँज मकशूदनकेँ लगलनि। परिवार तँ साधारणे मुदा लड़की काजुल। काजमे तपल। किएक तँ माए सदिखन ओकरा अपने संग राखि खेत-पथारक, घर-आंगनक काजसँ लऽ कऽ अरिपन लिखब, दुआरिमे पूरनि, फूलक गाछ, कदमक फुलाइल गाछक संग-संग पावनि-तिहारमे गीत गौनाइ सभ सिखबैत। बड़द कीनैक बहानासँ मकशूदन भेजा विदा भेला। पहिने दू-चारि गोटेक ऐठाम पहुँचि बड़दक दाम करैत कन्यागतक दुआरपर पहुँचला। कन्यागत दुआरपर नहि। मुदा लड़की बाल्टीमे पानि भरि अंगना अबैत। लड़कीकेँ देखि मकशूदन पुछल- ‘बुच्ची, घरवारी कतए छथि?’
बाल्टी रखि सुशीला बाजलि- ‘बाड़ीमे मिरचाइ कमाइ छथि। अपने चौकीपर बैसियौ। बजौने अबै छिअनि।’
बाल्टी अंगनामे रखि सुशीला बाड़ीसँ पिताकेँ बजौने आएलि। पड़ोसी होइ दुआरे दुनू गोटे दुनू गोटेकेँ चेहरासँ चिन्हैत मुदा मुँहा-मुँही गप नै भेने अनचिन्हार। कन्यागत पूछल- ‘किनकासँ काज अछि?’
मुस्कुराइत मकशूदन- ‘अखन दुइये गोरे छी, तेँ मनक बात कहै छी। हमरो घर बीरपुरे छी। हमरा भागिन अछि। काल्हि खन पता चलल जे अहाँकेँ बिऔहती बच्चितया अछि तेँ ओइठाम कुटमैती कऽ लिअ।’
कुटुमैतीक नाम सुनि कन्यागत गुम्म भऽ गेलाह। कनी-काल गुम्म रहि कहलखिन- ‘हम गिरहस्त छी। सेहो नमहर नै छोट। अइठीनक गिरहतक की हालत अछि से अहाँ जनिते छी। तेँ अइबेर बेटीक बिआह नै सम्हरत।’
कन्यागतक सुखल मुँह देखि मकशूदन बजलाह- ‘मनमे जे दहेजक भूत पकड़ने अछि ओ हटा लिअ। अहाँकेँ जहिना सम्हरत तहिना बिआह निमाहि लेब।’
मकशूदनक विचार सुनि कन्यागतक मुँह हरिआए लगलनि। दरबज्जे परसँ बेटीकेँ सोर पाड़ि कहलक- ‘बुच्ची, सरबत बनौने आबह?’
बड़का लोटामे सरबत आ गिलास नेने सुशीला दरबज्जापर आबि चौकीपर रखए लागलि। तहि बीच पिता बजलाह- ‘बुच्ची, इहो कियो आन नहि छथि। पड़ोसिये छिआह। बीरपुरे रहै छथि। दहुन सरबत।’
दुनू गोटे सरबत पीलनि। सरबत पीबि पिता कहलखिन- ‘बुच्ची, चाहो बनौने आबह।’
सुशीला चाह बनबए गेलि। दरबज्जापर दुनू गोरे गप-सप्प करए लगलाह।
मकशूदन- ‘जेहने अहाँक कन्याँ छथि तेहने हमर भागिन। अजीब जोड़ा बिधाता बनाकेँ पठौने छथि। काल्हिये अहूँ लड़काकेँ देखि लियौ। संयोग नीक अछि तेँ शुभ काजमे विलंब नहि करु।’
मकशूदनक विचारसँ जते उत्साहित कन्यागतकेँ हेबाक चाहियनि तते नहि होइत। किएक तँ मनमे घुरिआइत जे कहुना छी तँ बेटीक बिआह छी। फुसलेने काज थोडे़ चलत। मुदा कन्याक माए दलानक भीतक भुरकी देने अढ़ेसँ गप्पो सुनैत आ दुनू गोटेकेँ देखबो करैत। मने-मन उत्साहितो होइत जे फँसल शिकार छोड़ब मुरुखपना छी। माए-बापक सराध आ बेटीक बिआहमे ककरा नै करजा होइ छै। जानिये कऽ तँ हम सभ गरीब छी। गरीबकेँ जनमसँ लऽ कऽ मरै धरि करजा रहिते छै। तैले एते सोचै विचारैक कोन काज। करजो हाथे बेटीक बिआह कइये लेब। फस्ट डिवीजनसँ मैट्रिक पास लड़का अछि। एहेन पढ़ल-लिखल लड़का थोड़े भेटत। कहबियो छै जे पढ़ल-लिखल लोक जँ हरो जोतत तँ मुरुखसँ सोझ सिराओर हेतै। आइक युगमे मूर्खो बड़क बाप पचास हजार रुपैया गनबैत अछि। खुशीसँ मनमे होइ जे छड़पि कऽ दरवज्जापर जा कहिअनि जे अगर अहाँ आइये बिआह करए चाही तँ हम तैयार छी। मुदा स्त्रीगणक मर्यादा रोकि दैत। तेँ बेचारी अढ़ेमे अहुरिया कटैत। मुदा पतिक मन बदलल। ओ मकशूदनकेँ कहलक- ‘देखू, हम भैयारीमे असकरे छी मुदा गृहिणी तँ छथि। हुनकासँ एक बेर पूछि लै छिअनि। किएक तँ हम घरक बाहरक काजक गारजन छी ने, घरक भीतरी काजक गारजन तँ वएह छथि। जँ कहीं बेटी बिआहक दुआरे किछु ओरिया कऽ रखने होथि तँ कइये लेब।’
कन्यागत भोला उठि कऽ आंगन गेला। आंगन पहुँचते पत्नी झपटि कऽ कहए लगलनि- ‘दुआरपर उपकरि कऽ लड़काबला एलाहेँ तेँ अहाँ अगधाइ छी। जखैन लड़काक भाँजमे घुमैत-घुमैत तरबा खियाएत आ बेमाइसँ खूनक टगहार चलत तखन बुझबै। तीन-तीन साल बेटीबला घुमैए तखन जा कऽ कतौ गर लगै छै। जा कऽ कहि दिअनु जे अखैन हमर हालत नीक नञि अछि मुदा जँ अहाँ तैयार छी तँ हमहूँ तैयार छी। वर देखैक दिन कौल्हुके दऽ दिअनु।
पत्नीक बातसँ उत्साहित भऽ भोला आबि कऽ बजलाह- ‘पत्नीक विचार सोलहो आना छनि। मुदा कहबे केलहुँ जे अखैन हमर हालत बढ़ियाँ नै अछि।’
मकशूदन- ‘काल्हि अहाँ लड़का देखि लियौ। जँ पसिन्न हएत तँ जहिना कुटमैती करए चाहब तहिना कऽ लेब। असलमे हमरा लोकक जरुरत अछि, नै की रुपैआ-पैसाक।’
आठे दिनक दिनमे बिआह भऽ गेल। भोलाक बहिनो आ साउसो नीक जेकाँ मदति केलकनि। अपना घरसँ सिर्फ एकटा सोनाक सुक्की -नअटा चौवन्नीक छड़- भोलाकेँ निकलल।’
पनरह दिनक उपरान्त दीनानाथ पुबरिया ओसारपर बैसि, पितासँ छीपि कऽ माएकेँ कहलक- ‘माए, घरक दशा जे अछि से तोहूँ देखते छीही। जेना घर चलैए तेना कते दिन चलत। साले-साल खेत बिकाइत। जइसँ किछुए सालक बाद सभ सठि जाएत। छोड़ैबला काज एक्कोटा नञि अछि। जहिना कुसुमलालक पढै़क खर्च, तहिना बाबूक दवाइ आ पथ्यक। मुदा आमदनी तँ कोनो दोसर अछि नहि। लऽ दऽ कऽ खेती। सेहो डेढ़ बीघा। तहूमे ने पानिक जोगार अपना अछि आ ने खेती करैक लूरि। एते दिन तँ बाबू कहुना-कहुना कऽ करैत छलाह, आब तँ सेहो नै हएत। हमहूँ जँ कतौ नोकरी करए जाएब सेहो नै बनत, किएक तँ बाबूक देखभाल सेहो करैक अछि। तखन तँ एक्केटा उपाए अछि जे घरेपर रहि आमदनीक कोनो काज ठाढ़ करी।’
बेटाक बात सुनि माए गुम्म भऽ गेलीह। जइ घरमे आमदनी कम रहत आ खरचा बेसी हएत ओ घर कोना चलत। एते बात मनमे अबिते माइक आँखिसँ दहो-बहो नोर खसए लगलनि। आँचरसँ नोर पोछि बाजलि- ‘बौआ, हम तँ स्त्रीगणे छी। घर-अंगनामे रहैवाली। तूँ जँ बच्चो छह तँ पुरुखे छह। जखैन भगवाने बेपाट भेल छथुन तखन तँ किछु करै पड़तह।’
दुनू गोटेक -माइयो आ बेटोक- मुँह निच्चाँ मुँहे खसल। ने बेटाक नजरि माए दिशि उठैत आ ने माइक नजरि बेटा दिशि। जहिना मरुभूमिमे पियासल लोकक दशा होइत, तहिना दुनूक दशा होइत। केबाड़ लग ठाढ़ सुशीला दुनूकेँ देखैत। जोरसँ कियो अहि दुआरे नहि बजैत जे रोगाइल पिता वा पति जँ सुनताह तँ सोगसँ आरेा दुख बढ़ि जेतनि। केबाड़ लगसँ घुसकि ओसारपर आबि सुशीला बाजलि- ‘माए चिन्ता केलासँ दुख थोड़े भगतनि। दुखकेँ भगबैले किछु उपाय करै पड़तनि। छोटका बौआ बच्चे छथि, बाबू रोगाइले छथि मुदा अपना तीनू गोरे तँ खटैबला छी। खटलासँ सभ कुछ होइ छै।’
सुशीलाक बात सुनि सासु बजलीह- ‘कनियाँ, कहलिऐ तँ बड़बढ़िया मुदा ओहिना तँ पानि नै डेंगाएब।’
सासुक बात सुनि पुतोहु बाजलि- ‘हमर एकटा पित्ती धानक कुट्टी करै छथि। जहिना अपन परिवार अछि तहूसँ लचड़ल हुनकर परिवार छलनि। तइ परसँ चारि-चारिटा बेटिओ छलनि। मुदा जइ दिनसँ धानक कुट्टी करए लगलथि तइ दिनसँ दिने-दुनियाँ घुरि गेलनि। चारु बेटिओक बिआह केलनि, बेटेाकेँ पढ़ौलनि। ईंटाक घरो बनौलनि आ पाँच बीघा खेतो कीनि लेलनि। अखन हुनकर हाथ पकडै़बला गाममे कियो नै अछि।’
पत्नीक बात सुनि दीनानाथक भक्क खुजल। भक्क खुजिते दीनानाथ खुशीसँ उछलि अंगनामे कूदल। दरबज्जापर आबि कागज-कलम निकालि हिसाब जौड़ए लगल। डेढ़ सेर धानमे एक सेर चाउर होइत अछि। ओना धानक बोरा अस्सिये किलोक होइत अछि जखैनकि चाउरक सौ किलोक। चारि सए रुपैये बोरा धान बिकैत अछि तँ पान सौ रुपैये क्वीन्टल भेल। एक क्वीन्टल धानक सड़सठि किलो चाउर भेल। दू-चारि किलो खुद्दियो हएत जेकर रोटी पका कऽ खाएब। एक किलो चाउरक दाम साढ़े दस रुपैयासँ एगारह रुपैया होइत। अइ हिसाबसँ एक क्वीन्टल धानक चाउरक लगभग सात सौ रुपैया भेल। पान सएक पूँजीसँ सात सएक आमदनी भेल। तइ परसँ तीस किलो गुड़ो। जेकर दाम साठि रुपैया भेल। खर्चमे खर्च सिर्फ जरना, कुटाइ आ गाड़ीक भाड़ा। बाकी सभ मेहनतिक फल भेल। अगर जँ एक बोराक कुट्टी सभ दिनक हिसाबसँ करब तँ पाँच हजारक महीना आमदनी जरुर हएत।
हिसाब जोड़ैत-जोड़ैत दीनानाथक मनमे शंका उठल जे हिसाबेमे तँ नै गलती भऽ गेल। कागज-कलम छोड़ि उठि कऽ टहलै लगल। मने-मन हिसाबो जोड़ैत। मनमे कखनो हिसाब सही बुझि पड़ैत तँ कखनो शंका होइत। आंगन जा पानि पीलक। दू-चारि बेर माथ हसोथलक। फेर आबि कऽ हिसाब जोड़ए लगल। मुदा हिसाब ओहिना कऽ ओहिना होइ। मनमे बिसवास जगलै। जाहिसँ काजक प्रति आकर्षण सेहो भेलै। फेर आंगन जा माएकेँ पुछलक- ‘एक बोरा धान उसनैमे कते समए लगतौ?’
माए बाजलि- ‘एक बोरा धान तँ दसे टीन भेल। दुचुल्हियापर पाँच खेप भेल आ चरिचुल्हियापर अढ़ाइये खेप भेल। एक्के घंटामे उसनि लेब।’
माइक बात सुनि दीनानाथ तँइ केलक जे हमहूँ यएह रोजगार करब। पूँजीक लेल पत्नीक सोना सुक्कीमे सँ पाँचटा निकालि आ सबा भरि बेचि, धान कीनि कुट्टी शुरु केलक। जाहिसँ परिवारमे खुशहाली आबि गेलै।
कुशुमलाल बी.ए. पास कऽ मधुबनी कोर्टमे किरानीक नोकरी शुरु केलक। कोर्टेक बड़ाबाबूक बेटीसँ बिआह सेहो केलक। मधुबनियेमे डेरा राखि दुनू परानी रहए लगल। तीन-चारि बर्ख तँ संयमित जीवन बितौलक। सिर्फ वेतनेपर गुजर करैत। मुदा तेकर बाद पाइ कमाइक लूरि सीखि लेलक। जाहिसँ खाइ-पीबैक संग-संग आउरो लूरि भऽ गेलै। घरोवाली पढ़ल-लिखल। जहिना कमाइ तहिना खर्च। शहरक हवामे उधियाए लगल। सिनेमा देखैक, शराब पीबैक, नीक-नीक वस्तु कीनैक आदति बढ़ैत गेलै। एक दिन पत्नी कहलकै- ‘गाममे जे खेत अछि ओ अनेरे किअए छोड़ने छी। ओहिसँ की लाभ होइए। ओकरा बेचि कऽ अहीठाम जमीन कीनि अपन घर बना लिअ।’
स्त्रीक बात कुसुमलालकेँ जँचल। रवि दिन छुट्टी रहने गाम आबि भाए दीनानाथकेँ कहलक- ‘भैया, हम अपन हिस्सा खेत बेचि लेब। मधुबनियेमे दू कट्ठा खेत ठीक केलहुँहेँ। ओ कीनि ओतै घर बनाएब। भाड़ाक घरमे तते भाड़ा लगैए जे एक्को पाइ बचबे ने करैए जे अहूँ सभकेँ देब।’
कुसुमलालक बात सुनि दीनानाथ कहलक- ‘बौआ, अखन बाबू-माए जीविते छथुन, तेँ हम की कहबह? हुनके कहुन।’
दीनानाथक जबाब सुनि कुसुमलाल पितासँ कहलक। रोगाइल रामखेलावन खिसिया कऽ कहलक- ‘डेढ़ बीधा खेत छौ। दस कट्ठा हमरा दुनू परानीक भेल, दस कट्ठा दीनानाथक भेलै आ दस कट्ठा तोहर भेलौ। अपन हिस्सा बेचि कऽ लऽ जो।’
खेत कीनै-बेचैक दलाल गामे-गाम रहिते अछि। कुसुमलाल जा कऽ एकटा दलालकेँ कहलक। पाँच हजार रुपैये कट्ठाक हिसाबसँ दलाल दाम लगा देलक। कुसुमलाल राजी भऽ गेल। मुदा बेना नै लेलक। तरे-तर दीनानाथो भाँज लगबैत। साँझू पहर जखन कुसुमलाल मधुबनी बिदा भेल तखन दीनानाथ कहलकै- ‘बौआ, जते दाम तोरा आन कियो देतह तते हमहीं देबह। बाप-दादाक अरजल सम्पति छी, आन कियो जे आबि कऽ घरारीपर भट्टा रोपत ओ केहेन हएत ?
मुदा दीनानाथक बात कुसुमलाल मानि गेल। पचास हजारमे जमीन लिखि देलक। मधुबनियेमे कुसुमलाल घर बना लेलक। अपना गामक लोकसँ ओते संबंध नहि रहलै जते सासुरक लोकसँ। सासुरक दू-चारि गोटे सभ दिन अबिते-जाइत रहैत। आदरो-सत्कार नीक होए।
बीस बर्ख बाद दीनानाथक बेटा मेडिकल कम्पीटीशनमे कम्पीट केलक। बेटी आइ.एस.सी. मे पढ़िते। पढै़मे दुनू भाए-बहीन उपरा-उपरी। तेँ परिवारक सभकेँ आशा रहै जे बेटिओ मेडिकल कम्पीट करबे करत। माए-बापक सेवा आ बेटा-बेटीक पढ़ाइ देखि दुनू परानी दीनानाथक मन खुशीसँ गद-गद। परिवारोक दशा बदलि गेल। मुदा तैयो दीनानाथ धानक कुट्टी बन्न नञि केलक। आरो बढ़ा लेलक। मनमे इहो होइ जे धनकुटिया मिल गरा ली मुदा समांगक दुआरे नहि गड़बैत। टाएरगाड़ी कीनि लेलक। जाहिसँ खेतिओ करै आ भड़ो कमाइ।
कुसुमलालकेँ सेहो दूटा बेटा। दुनू पब्लिक स्कूलमे पढ़ैत। जेठका अठमामे आ छोटका छठामे। मधुबनियेमे डेरा रहितहुँ दुनू होस्टलेमे रहैत। तइ परसँ सभ विषएक ट्यूशन सेहो पढ़ैत। तेँ नीक खर्च होइ।
शराब पीबैत-पीबैत कुसुमलालक लीभर गलि गेलै। किछु दिन मधुबनियेमे इलाज करौलक मुदा ठीक नहि भेने दरभंगाक अस्पतालमे भर्ती भेल। चारि मास दरभंगोमे रहल मुदा ओतहु लीभर ठीक नै भेलै। तखन पटना गेल। पटनोमे ठीक नै भेलै, संगहि शरीर दिनानुदिन खसिते गेलै। अंतमे दिल्लीक एम्समे भर्ती भेल। ओतहु ठीक नञि भेलै। शरीर एते कमजोर भऽ गेलै जे अपनेसँ उठियो-बैसि नञि होइ। हारि-थाकि कऽ मधुबनीक डेरापर आबि गेल। मुदा एते दिनक बीमारीक बीच दीनानाथकेँ जानकारीयो ने देलक। सारे-सरहोजिक संग घुमैत रहल।
ओछाइनपर पड़ल-पड़ल सैाँसे देहमे धाव भऽ गेलै। ढाकीक-ढाकी माछी देहपर सोहरए लगलै। कतबो कपड़ा ओढ़बै तैयो माछी घुसि-घुसि असाइ दऽ दै। दिन-राति दर्दसँ कुहरैत। सदिखन घरवालीक मन तामसे लह-लह करैत। गरिएबो करैत। दुनू बेटामे सँ एक्कोटा लगमे रहैले तैयार नहि। जेठका बेटा कहए- ‘पप्पा जी, महकता है।’
जखन कखनो लगमे अबैत तँ नाक मूनि कऽ अबैत। छोटका बेटा सेहो तहिना। सदिखन बजैत-‘पप्पा जी, अब भूत बनेगा। लगमे रहेंगे तो हमको भी पकड़ लेगा।’
जइ आॅफिसमे कुसुमलाल काज करैत ओहि आॅफिसक एकटा स्टाफ दीनानाथकेँ फोनसँ कहलक- ‘कुसुमलाल अंतिम दिन गनि रहल अछि तेँ आबि कऽ मुँह देखि लियौ।’
फोन सुनि दीनानाथ सन्न भऽ गेल। जेना दुनियाँक सभ कुछ आँखिक सोझासँ निपत्ता भऽ गेलै। सुन-मशान दुनियाँ लगै लगलै। मनमे एलै, कियो ककरो नहि। दुनू आँखिसँ नोर टधरए लगलै। नोर पोछि सोचए लगल जे कियो झुठे ने तँ फोन केलक। फेर मनमे एलै जे एहेन समाचार झूठ किअए हएत? अनेरे कियो पैसा खर्च कऽ फोन किअए करत? एहेन अवस्थामे कुसुमलाल पहुँच गेल मुदा आइ धरि किछु कहबो ने केलक। खैर, जे होए। मुदा हमरो तँ किछु धर्म अछि। अपना कर्तव्यसँ कियो मनुख एहि दुनियाँमे जीबैत अछि। अखन तँ अबेर भऽ गेल। काल्हि भेारुके गाड़ीसँ मधुबनी जाएब। एते विचारि माएकेँ कहलक- ‘माए, एक गोटे मधुबनीसँ फोन केने छेलाह जे कुसुमलाल बहुत दुखित छथि तेँ आबि कऽ देखिअनु।’
दीनानाथक मुँहक बात सुनिते माएक देहमे आगि लगि गेलनि। जरैत मने बाजलि- ‘कुसुमा हमर बेटा थोड़े छी जे मुँह देखबै। उ तँ ओही दिन मरि गेल जइ दिन हमरा दुनू परानी बाप-माएकेँ छोड़ि चलि गेल। जँ अइ धरतीपर धरमक कोनो स्थान हेतै तँ ओइमे हमरो कतौ जगह भेटत। जँ कोनो शास्त्र-पुराणमे पतिब्रता स्त्रीक चरचा हेतै तँ हमरो हएत। आइ बीस बर्खसँ अइ हाथ-पाएरक बले बीमार पतिकेँ जीबित राखि अपन चूड़ी आ सिनुरक मान रखने छी।’
माइक बात सुनि दीनानाथ मने-मन सोचलक जे कुसुमलाल अगर हमरा कमा कऽ नहिये देलक तँ हमर की बिगड़ल। माइयो-पिताक दर्शन भोरे-भोर होइते अछि, बालो-बच्चा आनंदेसँ अछि। तखन तँ एक-वंशक छी जा कऽ देखि लिऐ।
दोसर दिन भोरुके गाड़ीसँ मधुबनी पहुँचि ओ कुसुमलालक डेरापर पहुँचल। बाहरेक कोठरीमे कुसुमलाल। चद्दरिसँ सौँसे देह झाँपल। मुँह उघारितहि कुसुमलाल बाजल- ‘भ-इ-अ-अ।’ कहि सदाक लेल आँखि मूनि लेलक।
दीनानाथ- ‘बौआ कुसुम, वौआ.....बौआ..... बउआ।’
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