Friday, November 21, 2008

डीहक बटबारा - जगदीश प्रसाद मण्डल



अमानतक दिन। चारि बजे भोरेसँ पूड़ी-जिलेबी, तरकारीक सुगंध गामक हवामे पसरि गेल। सौँसे गामक लोककेँ बुझले, तेँ ककरो सुगंधसँ आश्चर्य नै होए। भोरे श्रीकान्तोक पत्नी आ मुकुन्दोक पत्नी फूल तोड़ि, नहा ब्रह्मस्थान पूजा करए गेलि। हलुआइ दू-चुल्हियापर तरकारियो बनबैत आ जिलेबियो छनैत। कुरसीपर बैसल श्रीकान्त मने-मन ब्रह्मबाबाक कबुला केलक जे जँ हमरा मनोनुकूल नापी भेल तँ तोरा जोड़ा छागर चढ़ेबह। तहिना मुकुन्दो। गामक सुगंधित हवामे सबहक मन उधिआइत। चाह बनबैबला चाह बनबैमे व्यस्त। पान लगबैबला पानमे। दुनू दिशि कट्ठा-कट्ठा भरिक टेंट लागल। दड़ी आ जाजीम बिछाओल। एक भागमे गाँजा पीनिहारक बैसार आ दोसर भागमे दारुक। जहिना बुचाइ कूदि कऽ कखनो हलुआइ लग जा देखैत तँ कखनो दारुबलाक बैसारमे जा दू-गिलास चढ़ा दैत। तहिना सरुपो। सभ कथूक ओरियान काल्हिये दुनू गोटे, दुनू दिशि कऽ नेने, तेँ अनतऽ जेबाक जरुरते नहि ककरो, चाह-पानक इत्ता नै। जेकरा जते मन हुअए से तत्ते खाउ-पीबू। जलखैमे पूड़ी-जिलेबी डलना आ कलौमे खस्सीक माँस आ तुलसीफुलक भात। तेँ भरि दिनक चिन्ता सबहक मनसँ पड़ाएल। जीविलाह सभ दुनू दिशि टहलि-टहलि खाइत-पीबैत।

श्रीकान्तो आ मुकुन्दो इंजीनियर। दुनू एक्के वंशक। दुनूक परदादा सहोदरे भाए। पाँच कट्ठाक घरारी, जहिमे दुनू गोटेक अधा-अधा हिस्सा। जहियेसँ दुनू गोटे नोकरी शुरु केलनि, तहियेसँ गाम छोड़ि देलनि। एक पुरिखियाह वंश, तेँ परिवारमे दोसर नहि। पैंतीस सालक नोकरीक बीच कहियो, दुनूमेसँ कियो, गाम नहि आएल। जहिसँ पहिलुका बापक बनाओल घर दुनूक खसि पड़लनि। गामक स्त्रीगण सभ ठाठ-कोरो, धरनिकेँ उजाड़ि-उजाड़ि जरा लेलक। ढ़िमका-ढ़िमकीकेँ सरिया गामक छौँड़ा सभ फील्ड बना लेलक। गामक जते खेलवाड़ी छौँड़ा सभ  छल ओ सभ अपन-अपन खेलक जगह बाँटि लेलक। एकटा फील्ड कबड्डीक, दोसर गुड़ी-गुड़ीक, तेसर चिक्का-चिक्काक, चारिम गुल्ली-डंटाक आ पाँचम रुमाल चोरक बनि गेल। उकट्ठी छौँड़ा सभ एक दोसराक फील्डमे रातिकेँ, झाड़ा फीरि दै। मुदा खेल शुरु करैसँ पहिने दस-बीसटा गारि पढ़ि सभ अपन-अपन फील्ड चिक्कन बना लिअए। ओना दुनू गोटे -श्रीकान्तो आ मुकुन्दो- बाहरे घर बना नेने छथि, मुदा मरै बेरमे दुनूकेँ गाम मन पड़लनि। साले भरिक नोकरी दुनूक बाँचल तेँ तीन मासक छुट्टी लऽ लऽ गाम ऐलाह। गाम अबैसँ पहिने दुनू गोटे, फोनक माध्यमसँ, अबैक दिन निर्धारित कऽ नेने रहथि। किएक तँ परोछा-परोछी नापी करौलासँ आगू झंझटिक डर दुनूक मनमे रहनि।
घरारी नापी होइसँ दस दिन पहिने श्रीकान्त गाम ऐलाह। अपना तँ घरो नहि, मुदा अबैकाल एकटा रौटी, सुतै-बइसैक समानक संग भानसो करैक सभ कुछ नेने ऐलाह। गाम आबि पितिऔत भाइकेँ कहि सभ बेवस्था केलनि। सभ गर लगला बाद भाएकेँ पुछलखिन- ‘बौआ, गाममे के सभ मुहपुरखी करैए?’
भाए कहलकनि- ‘गाममे तँ कियो राजनीति नहिये करैए मुदा बुचाइ आ सरुप सभ धंधा करैत अछि।’
‘की सभ धंधा?’
‘जना कियो खेत कीनैए वा बेचैए, ओहि बीचमे पड़ि किछु कमा लै अए। तहिना गाइयो-महीसमे करैए। भोट-भाँटसँ लऽ कऽ कथा-कुटुमैती धरिमे किछु नहि किछु हाथ मारिये लैत अछि।’
भाएक बात सुनि इंजीनियर सहाएब कने काल गुम्म भऽ गेलाह। मने-मन सोचि-विचारि कहलखिन- ‘कनी बुचाइकेँ बजौने आबह?’
‘बड़वढ़िया’ कहि भाए बुचाइकेँ बजबए विदा भेल। मने-मन श्रीकान्त सोचए लगलथि जे गाममे तँ सबहक हालत तेनाहे सन अछि। देखै छिऐ जे जेहने घर-दुआर छै तेहने बगए बानि। दू चारिटा जे ईंटो घर देखै छिऐ सेहो भितघरे जेकाँ। तेँ गाममे ओहन घर बना कऽ देखा देबै जे गामक कोन बात, परोपट्टाक लोक देखए आओत। पुरान लोक सबहक कहब छनि जे जेहेन हवा बहै ओहि अनुकूल चली। युग पाइक अछि। जेकरा पाइ रहतै ओ बुधियार। जेकरा पाइ नै रहतै ओ किछु नहि। असकर बिरहसपतियो फूसि। जेकरा पाइ छै वएह नीक घर बनबैत अछि, नीक गाड़ीमे चढ़ैत अछि। ओकरे धिया-पूता नीक स्कूल-कओलेजमे पढ़ैत अछि। ओकरे परिवारक लोक नीक लत्ता-कपड़ा पहिरैत अछि। बेटा-बेटीक विआह नीक परिवारमे होइ छै। आइक जे सुख-सुविधा विज्ञान करौलकहेँ ओकर सुख भोगैत अछि। यएह ने युगक संग चलब थिक। समाजक बीच प्रतिष्ठा बनाएब तँ वामा हाथक काज छी। अधलासँ अधलाह काज कऽ कऽ पाइ कमा लिअ आ समाजकैँ भोज खुआ दिऔ, बस जसे-जस, प्रतिष्ठे-प्रतिष्ठा। हाथमे पाइ अछि, सभ कुछ कऽ कऽ गौँआकेँ देखा देबै। बेटो-बेटीकेँ पढ़ा-लिखा, बिआह-दुरागमन करा कऽ निचेने छी। तखन तँ एकटा काज मात्र पछुआइल अछि, ओ अछि सामाजिक प्रतिष्ठा। सेहो बनाइये लेब।
मने-मन श्रीकान्त विचारिते रहथि आकि बुचाइक संग भाए पहुँचलनि। लगमे अबिते बुचाइ दुनू हाथ जोड़ि बाजल- ‘गोड़ लगै छी कक्का। अहाँ तँ गामकेँ बिसरि गेलिऐ। सरकारक एयर कंडीशन मकान भेटले अछि, तेँ किए थाल-कादोमे आबि मच्छर कटाएब?’
अपनाकेँ छिपबैत श्रीकान्त बजलाह- ‘नै बौआ, से बात नै अछि। जखने नोकरीक जिनगी शुरु केलहुँ तखने दोसराक गुलाम बनि गेलहुँ। जे-जे हुकूम देत से से करै पड़त। तू सभ कम उमेरक छह तेँ नञि देखलहक, मुदा हम तँ अंग्रेजक शासन देखने छी की ने ! शासन तरे-तर चलैत छै, जे सभ थोड़े बुझैए। अंग्रेजक पीठिपोहु छल अइठामक राजा-रजबाड़ आ ओकरा सबहक फाँड़ी थिक जमीनदार सभ। ओ सभ जे एहिठामक लोकक संग बेबहार करैत छल आ करैत अछि से तँ तोहूँ सभ देखते छहक। मुदा अइ सभ गपकेँ छोड़ह। तोरा जे बजौलिअह से सुनह। साले भरि आब नोकरी अछि। नोकरी समाप्त भेला बाद गामेमे रहब। तेँ तीन मासक छुट्टी लऽ कऽ एलहुँहेँ जे घरारीक अमानत करा घर बनाएब। बिना घरे रहब कतऽ।’
बुचाइ- ‘हँ, ई तँ जरुरिये अछि। मुदा हमरा किअए बजेलहुँ?’
पासा बदलैत श्रीकान्त- ‘मुकुन्द जीकेँ सेहो खबरि दऽ देने छिअनि। ओहो काल्हिसँ परसू धरि एबे करताह। ऐठाम तँ दुइये गोटेक घरारी खाली अछि, तेँ दुनू गोटेक रहब जरुरी अछि। तोरा तँ नञि बुझल हेतह, हमर परबाबा आ मुकुन्दक परबाबा सहोदरे भाए छलाह। अढ़ाइ-अढ़ाइ कट्ठाक हिस्सा जमीन दुनू गोरेकेँ अछि। तेँ कोनो पेंच लगाबह जे हमरा तीन कट्ठा हुअए।’
श्रीकान्तक पेटक मैल बुचाइ देखि गेल। मुस्कुराइत बाजल- ‘ऐँ, अहीले अहाँ एते चिन्तित छी। ई तँ वामा हाथक काज छी। अमीनकेँ मिला लेब, सभ  काज भऽ जाएत। किएक तँ अमीनक गुनिया-परकालमे पाँच-दस धुर जमीन नुकाएल रहै छै। मुदा अइले खरचा करए पड़त। हम तँ जोगारे ने बैसाएब, खर्च तँ अहींकेँ करए पड़त।’ पाइक गरमी श्रीकान्तकेँ रहबे करनि। मनमे इहो बात रहनि जे भलेहीं मुकुन्दो इंजीनियर छथि, दुनू गोटेक दरमहो एक्के रंग अछि मुदा पाइमे बराबरी कऽ लेता, से कोना हेतै। मुस्की दैत कहलखिन- ‘तोहर मेहनत आ हम्मर पाइ। सएह ने। जते खर्च हएत-हएत। मुदा मैदानसँ जीति कऽ अबैक छह।’
श्रीकान्तक बात सुनि बुचाइ मने-मन खुश भेल। मनमे एलै जे नीक मोकीर हाथ लागल। भरिसक राशि घुमलहेँ। ओह, बहुत दिनसँ अखवारो नै पढ़लौं जे कने राशि देखि लैतिऐ। खैर नहियो पढ़लौं तैयो शुभ बुझि पड़ैए। जोशमे बाजल- ‘कक्का, रुपैया पूत पहाड़ तोड़ैए। ई तँ मात्र अमानते छी। जे चाहबै, से हेतै। मुदा अहाँ कंजूसी नै करबै।’
कंजूसीक नाम सुनि श्रीकान्त कहलखिन- ‘मरदक बात छिऐ। जे बाजि देब ओ बिना पुरौने छोड़ब।’  बैगसँ पाँच हजार रुपैया निकालि श्रीकान्त बुचाइकेँ देलखिन। रुपैया जेबीमे राखि बुचाइ प्रणाम कऽ विदा भेल। गामक पेंच-पाँचमे बुचाइ माहिर, मुदा समाजमे अनुचित हुअए, से कखनो नहि सोचए। जहिया कहियो उकड़ू काज अबै तखन गुरुकक्कासँ पूछि लैत। मने-मन रस्तामे सोचए लगल जे अइबेर हिनका तेहेन सिखान सिखेबनि जे मरै काल तक मन रहतनि। जहिना सरकारी खजानासँ लऽ कऽ ठीकेदार धरिसँ समेटलाहा रुपैया केहेन होइ छै, से सिखताह।
आंगन पहुँचि बुचाइ चारि हजार पत्नीक हाथमे आ एक हजार अपना हाथमे रखलक। जहिना अगहनमे धानक ढ़ेरी देखि, दुनू परानी किसानक मन खुशीसँ गद-गद होइत, तहिना दुनू परानी बुचाइकेँ भेल। मुदा दुनूक खुशीमे अन्तर होइत। किसानक खुशी मेहनतक फल देखि होइत जखैनकि बुचाइक खुशी दलालीक। मुस्की दैत बुचाइ घरवालीकेँ कहलक- ‘खिड़कीपर एकटा शीशी अछि, कने नेने आउ?’
मुँह चमकबैत घरवाली बाजलि- ‘खाइ-पीबै रातिमे शीशी की करब?’
बुचाइ- ‘शीशियो नेने आउ आ खेनाइयो नेने आउ। दुनू संगे चलतै। जाबे भरि मन नै पीअब तावे मूड नै बनत। बहुत बात सोचैक अछि। अहाँ नै ने हमर बात बुझबै?’
पत्नी- ‘अहाँक बात बुझैक जरुरत हमरा कोन अछि। हमरा तँ अपने मन कोनादन करैत अछि। देह भसिआइए।’
‘अच्छा ठीक अछि, अहूँ दू घोट पीबि लेब।’
भोरे बुचाइ चौकपर पहुँचल। गामक बीचमे चौबट्टी। जहि चौबट्टीपर चारु भरसँ तीस-पैंतीसटा छोट-छोट दोकान। दस-बारहटा दू-चारी घर, बाँकी कठघरा। ओना एक्कोटा नमहर दोकान नहि, मुदा सभ कथुक दोकान। जाहिसँ गामक लोककेँ हाट-बजार जेबाक जरुरत कम पड़ैत। जहिया कहियो कोनो परिवारमे नमहर काज होइत-जेना बिआह, सराध इत्यादि, तखने बजार जेबाक जरुरत पड़ैत। ओना भरि दिन चौकक दोकान खुजल रहैत, मुदा गहिकीक भीड़ साँझे-भिनसर होइत। भरि दिन लोक अपन-अपन काज-उदम करैत आ साँझू पहरकेँ दोकानक काज कऽ लैत। खाली चाहे-पानक बिकरी भिनसरु पहरकेँ बेसी होइत। चौकपर पहुँचि बुचाइ दुनू चाहबलाकेँ एक-एक सए रुपैया दऽ दोकानपर बैसलि सभकेँ चाह पीअबै लेल कहलक। गाँजा पिआकक सेहो तीन ग्रुप चलैत। चाह पीबि पान खा बुचाइ चिलमक ग्रुपमे पहुँचि, दू दम लगा, तीनू ग्रुपमे पचास-पचास रुपैया गाँजा लेल दऽ देलक। सबहक मन खुशी भऽ गेलै। मुस्कुराइत बुचाइ अमीन ऐठाम बिदा भेल। गाममे तीनटा अमीन। रामचन्द्र, खुशीलाल आ किसुनदेव। कहै लेल तँ तीनू अमीन मुदा पढ़ि कऽ अमीन रामचन्द्रे टा भेल। मिडिल पास केलाक बाद रामचन्द्र हाइ स्कूलमे नाम नहि लिखा सकल। आब तँ लगेमे हाइ स्कूल खुजि गेल मुदा ओहि समएमे एक्कोटा हाइ स्कूल परोपट्टामे नहि छल, जाहिसँ रामचन्द्र आगू नहि पढ़ि सकल। बाहर पठा बेटा पढ़बैक ओकाइत रामचन्द्रक पिताकेँ नहि। सर्वे अबैसँ दस-पनरह बर्ख पहिने मुजफुरपुरक एकटा अमीन गाममे आबि अमानतक स्कूल खोललक। छह मासक कोर्स। चारि विषएक- पैमाइस, क्षेत्रमिति, कानून आ चकबन्दीक-पढ़ाइ। ओना समानो सभ- गुनिया, परकाल, मास्टर, स्केल, लेन्स, राइटऐंगिल, प्लेन, टेबुल, कंघी, टाँक, थ्याजो रैटर, जंजीर, फीता रखने। पाँच रुपैया महीना फीस लैत। मधुकान्तक दरबज्जेपर स्कूल खोललक। मधुकान्ते खाइयो लेल दै। जेकरा बदलामे मधुकान्तकेँ सेहो पढ़ा देलक। ओना गामोक आ गामक चारु भरक गामक विद्यार्थी सेहो पढ़लक। कुल मिला कऽ पनरह गोरे पढ़लक। मुदा जमीनक नापी-जोखी कम होइत, तेँ रामचन्द्र छोड़ि सभ अमीनी छोड़ि देलक।
सर्वे अबैसँ महीना दिन पहिने बेगूसराएक एक गोटे आबि पाँच-पाँच सौमे अमानतक सर्टिफिकेट बेचए लगल। ओकरेसँ खुशीलालो आ किसुनदेवो सर्टिफिकेट कीनि लेलक।
गामे-गाम सर्वेक काज शुरु भेल। अमीन सबहक चलती आएल। नक्शा बनब शुरु होइतहि दलाली शुरु भेल। पाइ दऽ दऽ लोक अपन-अपन खेतक नक्शा बढ़बै लगल। लोकक दलाल अमीन आ सरकारक सर्वेयर। खुशीलालो आ किसुनदेवो उठि बैसल। मुदा रामचन्द्र कात रहल। गाए-महीस, गाछ-बिरीछ बेचि-बेचि लोक रुपैया बुकए लगल। रामचन्द्र दबि गेल मुदा खुशीलाल आ किसुनदेव नाम कमा लेलक। जेम्‍हर निकलैत तेम्‍हर लोक सभ चाहो-पान करबैत आ अमीन सहाएब, अमीन सहाएब कहि परनामो करैत। दुनू गोटे सर्वेक नांगड़ि पकड़ि किस्तवारसँ लऽ कऽ तसदीक खानापुरी, दफा-३, दफा-६,८,९ धरि दौड़ि-बड़हा करैत रहल। जाहिसँ मोटर साइकिल मेन्टेन करए लगल।
खुशीलाल ऐठाम पहुँचि बुचाइ श्रीकान्त दिशिसँ नापीक अमीन मुकर्रर कऽ लेलक। नापीक फीसक अतिरिक्त पक्ष लेबाक फीस सेहो गछि लेलक।
दोसर दिन मुकुन्द जी सेहो गाम पहुँचलाह। रहैक सभ ओरियान केनहि ऐलाह। गाम अबिते दूटा जन रखि परती छिलवा रौटी ठाढ़ करौलनि। जखन जन जाइ लगलनि तखन पुछलखिन- ‘गाममे के सभ नेतागिरी करैए?’
मुकुन्दजीक बात सुनि एक गोटे बुचाइक नाम कहलकनि। बुचाइक नाम सुनि बजा अनैले कहलखिन। दुनू गोटे बिदा भेल। दुनू कोदारि लऽ एक गोटे घरपर गेल आ दोसर गोटे बुचाइ एहिठाम। मुकुन्द जी पत्नीकेँ कहलखिन- ‘कने चाह बनाउ?
पत्नी चाह बनबैक ओरियान करै लगली। गैस चुल्हिपर ससपेन चढ़ा बजलीह- ‘ककरा लेल तीन महला मकान बनेलहुँ।’
पत्नीक बात सुनि मुकुन्दजीक करेज दहलि गेलनि। करेजकेँ दहलितहि आँखिमे नोर आबि गेलनि। आँखि उठा पत्नी दिशि देखि आँखि निच्चाँ कऽ लेलनि। रुमालसँ नोर पोछि मुकुन्द जी मने-मन सोचए लगलथि जे अपन हारल ककरा कहबै। सपनोमे नञि सपनाइल रही जे पढल़-लिखल मनुक्ख एत्ते नीच होइत अछि। कत्ते मेहनतिसँ बेटाकेँ पढ़ेलहुँ, नोकरी दिएलहुँ। नीक घर नीक पढ़ल-लिखल कन्याक संग विआह करेलहुँ। मुदा फल उल्टा भेटल। पढ़ल-लिखल लोक जे अपन सासु-ससुरक संग एहेन बरताव करै, तँ लोक जीविये कऽ की करत? अइसँ नीक मरनाइ। मुदा मृत्युओ तँ ओते असान नहि होइत। तखन तँ जे भाग्य-तकदीरमे लिखल अछि, से भोगब। अगर जँ बुढा़ढ़ीमे गनजने लिखल रहत तँ कियो बाँटि लेत। ओ तँ विधाताक रेख छी। के बदलि देत? मूड़ी गोतने मुकुन्द घुनघुना कऽ बजैत। पत्नीक आँखि तँ ससपेनपर रहनि मुदा करेज पीपरक पात जेकाँ, जे बिनु हवोक डोलैत रहैत। आँखिसँ समतल भूमिक पानि जेकाँ नोर टघरैत।
चाह बनल। दुनू गोटे आमने-सामने बैसि चाह पीबए लगलथि। एक घोंट कऽ चाह पीबि दुनू गोटे दुनू गोटेक मुँह दिशि देखैत। मुदा कियो किछु बजैत नहि। जेना दुनूक हृदएक भीतर विरड़ो उठैत। दुइये घोंट चाह पीलनि, बाकी सभ सरा कऽ पानि भऽ गेलनि। तही काल बुचाइ पहुँचल। अबिते बुचाइ दुनू हाथ जोड़ि, दुनू गोटेकेँ प्रणाम कऽ बैसल। बुचाइकेँ देखितहि मुकुन्द मनकेँ थीर करैत पत्नीकेँ कहलखिन- ‘भरि दिनक थकान देहकेँ खण्ड-खण्ड तोड़ैत अछि। मन कोनादन करैए। कने एटैचीसँ एकटा बोतल नेने आउ। जावे पीब नहि ताबे कोनो बाते ने कएल हएत।’
पतिक बात सुनि पत्नी एटैचीसँ एकटा किलो भरिक ब्राण्डीक बोतल आ दूटा गिलास निकालि कऽ आनि आगूमे रखि देलकनि। तीनू गोटे- मुकुन्द, पत्नी राधा आ बुचाइ- त्रिकोण जेकाँ तीनू दिशिसँ बैसल। बीचमे मोड़ुआ टेबुल लोहाक। टेबुलपर गिलास बोतल। बोतलक मुन्ना खोलि मुकुन्द दुनू गिलासमे ब्राण्डी देलखिन। एक गिलास अपनो लऽ एक गिलास बुचाइ दिशि बढ़ौलनि। ब्राण्डी देखि बुचाइक मन तँ चटपटाए लगल मुदा अनभुआर लोकक संग पीबैक परहेज करैत बाजल- ‘कक्का जी, ई सभ हम नै पीबै छी। गाममे हमरा कतऽ ई चीज भेटत। गरीब-गुरवा लोक छी, जँ  कहियो मनो होइए तँ एक दम चीलममे लगा लै छी। नै तँ पीसुआ भाँगक एकटा गोली चढ़ा दै छिऐ।’
जिद्द करैत मुकुन्द कहलखिन- ‘ई तँ फलक रस छिऐ। कोनो की मोहुआ दारु आकि पोलीथिन छिऐ जे अपकार करतह।’
मुकुन्दक मनमे रहनि जे शराब पीआ बुचाइसँ सभ बात उगलवा लेब। जाबे गामक तहक बात नै बुझबै ताबे किछु करब कठिन हएत। दुनू गोरे एक-एक गिलास पीलनि। गिलास रखि मुकुन्द सिगरेटक डिब्बा आ सलाइ निकालि, एकटा अपनो हाथमे लेलनि आ एकटा बुचाइयोकेँ देलखिन। दुनू गोटे सिगरेट पीबए लगलाह। सिगरेटक धुँआ मुँहसँ फेकैत मुकुन्द कहलखिन- ‘बुचाइ, हम तँ आब बुरहा गेलहुँ, तू सभ नौजवान छह। तोरे सभपर ने गामसँ लऽ कऽ देश तकक दारोमदार छह। शहरमे रहैत-रहैत मन अकछा गेल। साले भरि नोकरियो अछि। तेँ चाहैै छी जे जल्दी नोकरी समाप्त हुअए जे गाम आबि अपन सर-समाजक बीच रहब। मुदा गाममे तँ अपना किछु अछि नहि। लऽ दऽ कऽ थोड़े घरारी अछि। जेकरा नपा कऽ घर बनबए चाहै छी। तहिमे तूँ कने मदति कऽ दाए।’
बुचाइ- ‘हमरा बुते जे हएत से जरुर कऽ देब। अहाँ तँ अपने तत्ते कमा कऽ टलिया नेने छी जे अनकर कोन जरुरत पड़त?’
मुकुन्द- ‘तूँ तँ जनिते छहक जे सभ दिन नीक एयर कंडीशन घरमे रहै छी, नीक गाड़ीमे चढै़ छी, नीक लोकक बीच आमोद-परमोद करै छी, से कोना हएत?
बुचाइ- ‘अहाँ की कोनो खेती-पथारी करब आकि माल-जाल पोसब, जे तइले खेत-पथार चाही। लऽ दऽ कऽ रहैक घर चाही। से तँ घरारी अछिये।
मुकुन्द- ‘कहलह तँ ठीके, मुदा रहैले तँ घर बनाबै पड़त। बिजली गाममे नञि छै तइले जेनरेटर बैसबै पड़त, पानिक टंकी नै छै तइले कलक संग-संग मोटर सेहो लगबौ पड़त। गाड़ी रखैले घर आ साफ करैले सेहो जगहक जरुरत हएत। पैखाना, नहाइले सेहो घर चाही, घरक आगूमे दसो धुरक फुलवारी, बइसैले चबुतरा सेहो चाही। चारु भर छहरदेवाली बनबए पड़त। सभले तँ जमीने चाही।’
बुचाइ- ‘हँ, से तँ चाहबे करी। मुदा हमरा की कहए चाहै छी?
मुकुन्द- ‘तोरा यएह कहै छिअह जे अपना अढ़ाइये कट्ठा घरारी अछि, तइमे सभ  कुछ कोना हएत ? कहुनाकेँ दसो धुर बढ़बैक गर लगाबह।’
मुकुन्दक बात सुनि बुचाइक मनमे हँसी उठल। हँसीकेँ दबैत बाजल- ‘देखियौ कक्का, पान-दस धुर जमीन अमीनक हाथमे रहै छै, मुदा ओ तँ तखने हएत जखन पंचो आ अमीनो पक्षमे रहत।’
मुकुन्द- ‘तेहीले ने तोरा बजेलियह। हमरा तँ ककरोसँ जान-पहचान नै अछि। मुदा तोरा तँ सभसँ छह, तेँ, तूँ हमरा अप्पन बुझि मदति करह।’
मने-मन बुचाइ सोचलक जे ई पनहाइल गाए जेकाँ छथि, तेँ सरियाकेँ हिनका सिखबैक अछि, चपाड़ा दैत बाजल- ‘देखियौ कक्का, गामक लोक गरीब अछि, ओ जे पक्ष लेत से ओहिना किअए लेत? गौँआक लिये जेहने अहाँ तेहने श्रीकान्त कक्का। तखन तँ कियो जे नेत घटाओत से बिना मीठ खेने किअए घटौत?’
मुकुन्द- ‘तइले हमहुँ तैयारे छी। जना जे तूँ कहबह से हम देबह।’
बुचाइ- ‘अच्छा हम भाँज-भूज लगबैले जाइ छी। मुदा काल्हि खन श्रीकान्त कक्का सेहो कहने रहथि। ओना हम हुनका कहि देने रहियनि जे अमानतक दिन हमहूँ रहब। तेँ थोड़े दिक्कत हमरा जरूर अछि। मुदा तइयो दिन-देखार तँ हम अहाँक भेँट नहि करब, साँझमे जरूर करब। जना जे हेतै से सभ  बात अहाँकेँ कहैत रहब आ अहूँ ओहि हिसाबसँ अपन गर अँटबैत रहब। ओना गाममे अखन सरूपक संग बेसी लोक छै, तेँ अहाँकेँ ओकरासँ भेँट करा दै छी। ओ जँ तैयार भऽ जाएत तँ कियो ओकरा रोकि नहि सकतै।’
‘बड़बढ़िया’ कहि मुकुन्द बैगसँ दस हजार रूपैया निकालि बुचाइकेँ दऽ देलखिन।
रूपैया गनि बुचाइ बाजल- ‘अइसँ की हएत? हम ने गामक पेंच-पाँच बुझै छिऐ। काजो तँ उकड़ूए अछि।’
‘एते ताबत राखह। जना-जना काज आगू बढै़त जाएत तना-तना कहैत जइहह।’
‘बड़बढ़िया’ कहि बुचाइ प्रणाम कऽ बिदा भेल।
मने-मन मुकुन्द सोचए लगलाह जे भलेहीं श्रीकान्तो इंजीनियरे छथि मुदा जते पाइ हम कमेलहुँ तते हुनकर नन्नो ने देखने हेतनि। भऽ जाए पाइयेक भिड़ंत। मने-मन सोचबो करैत आ खुशियो होइत।
मुुकुन्द ऐठामसँ निकललाक बाद रस्तामे बुचाइ विचारै लगल। आरौ बहिं, आइ धरि एहेन-एहेेन बुढ़बा चोट्टा नञि देखने छलौं। जिनगी भरि पाइये हँसोथति रहल मुदा सबुर नै भेलै। अच्छा, अइ बेर दुनू सिखताह। जइ गामक लोक आइ धरि सहि-मरि अपन बाप-दादाक गाम आ घरारी धेने रहल, समाजक बेर-बिपत्तिमे संगे प्रेमसँ रहल ओहि गाममे जँ एहेन-एहेन चोट्टा आबि कऽ रहत, तँ कए दिन गामकेँ सुख-चैनसँ रहए देत। सभकेँ टीकमे टीक ओझरा नाश करत की नहि?’
दोसर दिन, सबेरे सात बजे बुचाइ सरूप ऐठाम पहुँचल। दुनूकेँ बच्चेसँ दोस्ती, तेँ धियो-पूता भेलोपर दुनूक बीच रउए-रउ चलैत। सरूपकेँ दरबज्जापर नहि देखि बुचाइ सोर पाडैए लगल- ‘दोस छेँ रौ, रौ दोस।’
सरुप अंगनाक दछिनबरिया ओसारपर बैसि दारुक बोतलक मुन्ना खोलैत। बुचाइक अवाज सुनि, कहलक- ‘दोस रौ, आ-आ। अंगने आ।’
घरक कोनचर लग अबितहि बुचाइ सरुपक घरवालीकेँ देखि बाजल- ‘दोस रौ, दोसतिनीक थुथुन बड़ लटकल देखै छियौ। रौतुका झगड़ा अखैन तक फड़िएलौहेँ नञि रौ। हम तँ रौतुका झगड़ा रातियेमे उठा-पटक कऽ फड़िया लै छी आ तू अखैन तक रखनहि छेँ।’
बुचाइक बात सुनि सरुप कहलक- ‘धुर-बूड़ि, सभ दिन एक्के रंग रहि गेलेँ। कहियो तोरा बजैक ठेकान नै हेतौ।’ कहि पत्नीकेँ कहलक- ‘एकटा गिलास नेने आउ? एकटा गिलास आनि पत्नी सरुपक आगूमे रखलक। दुनू गोटे एक-एक गिलास दारु पीलक। बोतलकेँ डोला कऽ देखि सरुप फेर दुनू गिलासमे ढ़ारलक। तहि बीच बुचाइ बाजल- ‘एक गिलास दोसतिनोकेँ दहुन?’
बुचाइक बात सुनि सरुपक पत्नी कला बाजलि- ‘हम नै गाइयक गोत पीबै छी।’
बुचाइ- ‘कनी पी कऽ देखियौ जे केहेन ताव चढै़ए।’
सरुप- ‘भोरे-भोर दोस किमहर एलेँ?’
जेबीसँ पाँच हजार रुपैयाक गड्डी निकालि बुचाइ सरुपक आगूमे रखैत बाजल- ‘ले, ई तोहर हिस्सा छियौ। गाममे दूटा मोकीर फँसलौहेँ। तेँ सरिया कऽ दुनूकेँ सिखबैक छौ। एकटाकेँ हम संग देबै आ दोसरकेँ तूँ देही। जहिना धिया-पूता दूटा मुसरीकेँ नंागड़ि पकड़ि लड़बैत अछि तहिना दुनू गोटे दुनूकेँ लड़ा।’
सरुपक आगूमे रुपैया देखि कलाक मुँहसँ हँसी निकलल। हँसी देखि बुचाइ बाजल- ‘एकटा बात बुझै छिऐ दोसतिनी, लछमी दुइये टा होइत अछि। एकटा घरवाली आ दोसर रुपैया। दोस, तोहर भाग बड़ जोरगर छौ। किएक तँ दुनू तोरा लगेमे छौ।’

बुचाइक बात सुनि कला पाछु दिशि मुँह घुमा लेलक। कलाकेँ पाछु मुँहे घुरल देखि बुचाइ कहलक- ‘मुँह घुमौने नै हएत दोसतिनी। अहीमे सँ रुपैया लिअ आ दोकानसँ अंडा नेने आउ। भुजल चूड़ा आ अंडाक कोफ्ता खुआउ।’
एकटा पचसटकही लऽ कला अंडा आनै दोकान बिदा भेलि। खाली अंगना देखि बुचाइ सरुपकेँ फुसफुसा कऽ कहए लगल- ‘दोस, दूटा जुएलहा चोर गाम एलौहेँ। दुनू जेहने ‘चोर’ तेहने ‘लोभी’। दुनू अपन-अपन घरारी नपाओत। दुनूकेँ अढ़ाइ-अढ़ाइ कट्ठा जमीन छै। जे खतिआनी छिऐ। किएक तँ दुनू एक्के वंशक छी। एक पुरखियाह अछि तेँ दोसर-तेसर नै छै। दुनू चाहैए जे हमरा तीन कट्ठा हुअए तँ हमरा तीन कट्ठा हुअए। दुनूकेँ पाइयक गरमी छै, तेँ एक-दोसरकेँ निच्चाँ देखबै चाहैए। गामक लोक तँ दुनूक नजरिमे, बोन झाँखुर छी। से थोड़े हुअए देबै। पाइयो खा जेबै आ सुपत-सुपत बँटबरो करा देबै।’
कने काल गुम्म रहि सरुप बाजल- ‘आँइ रौ दोस, अपने सभ कोन नीक लोक छेँ रौ। भरि दिन झूठ-फूसि बजै छी, ताड़ी-दारु पीबै छी, तखैन नीक कना भेलौ रौ।’
बुचाइ- ‘धुर बूड़ि, तोरा निशाँ चढ़ि गेलउ, तेँ नै बुझै छीही। तोँही कह जे गाममे कोनो जातिक लोक किए ने हुअए, मुदा जखन मरैए तँ कठिआरी जाइ छिऐ की नै ? गरीबसँ गरीब लोक किए ने हुअए, कियो बिना कफने जराओल गेलहेँ ? अपना हाथमे जँ पाइ नहियो रहल तँ दू-चारि गोरेसँ मांगि-चांगि पुरा दै छिऐ। तेसर सालक गप मन छौ की नै। देखने रही की ने जे मखनाक गाए बाढ़िमे भसल जाइत रहै तँ भरि छाती पानिमे सँ पकड़ि अनलौं। मोतिया बेटीक बिआह कोन पेंचपर करा देलिऐ से बिसरि गेलही। डोम खंजनमाक घरमे जे आगि लगल रहै तँ देखने रही की नञि जे अपन घैलची परक घैल लऽ कऽ सभसँ पहिने आगि मिझबैले गेल रहिऐ। हमरा देखलक तखन पाछुसँ सभ गेल। जइकेँ चलैत माए कते दिन तक गरिअबैत रहल जे तोहूँ छुवा गेलेँ आ घइलो छुबा गेल। आँइ रौ, गाइरियो-फज्झति सुनि कऽ जे सेवा करै छी उ धरम नै भेल रौ।’
मूड़ी डोलबैत सरुप- ‘हँ, से तँ ठीके कहै छेँ।’
बुचाइ- ‘हम श्रीकान्त कक्काक पछ लऽ कऽ रहब आ तूँ मुकुन्द कक्काक संग दहुन। जहिना इलेक्शनमे परचार करैक, आॅफिस चलबैक, चाह-पानक खर्च, लाउडस्पीकर आ सवारीक, बूथपर दसटा कार्यकर्ता रखैक, एजेंटक, नेता सबहक सुआगतक लेल मेहराओ बनबैक खर्च नेतासँ लै छिऐ तहिना अखैनसँ जाबे तक नापी हेतै ताबे तकक खरचा दुनू गोटेसँ दुनू गोटे लेब। हेतै तँ उचिते मुदा ठकसँ ठकब कोनो पाप थोड़े छी।’
सरुप- ‘कना-कना पाइ लेबही से तँ प्लानिंग कऽ लेमे की ने?’
बुचाइ- ‘घबड़ाइ छैँ किए, इलेक्शनोसँ बेसी लेबै। अमीनक घूस, पंचक घूस, चौक-चौराहाक चाह-पान, गाँजा-भाँग, ताड़ी-दारुक, लठैतक, कते कहबौ। जना-जना काज अबैत जेतै तना-तना टनैत जेबै। अखैन जे आएलहेँ ओ सगुन छी। साँझमे जखन खूब अन्हार तेसरि साँझ भऽ जेतै तखन चलिहेँ। तोरा-दुनू गोरेकेँ मुँह-मिलानी करा देबउ। चौकपर दूटा चाहक दोकान छेबे करै, एकटा पर साँझ-भिनसर तूँ बैसिहेँ आ एकटा पर हम बैसब। तूँ मुकुन्द जी दिशिसँ बजिहेँ जे हुनका तीन कट्ठा घरारी छनि आ दोसरपर हम बैसि बाजब। मुदा एकटा बात मन  रखिहेँ जे जखैन श्रीकान्त कक्का चौकपर आबथि, तखन अपने दिशिसँ चाह-पान खुआ, हुनके बात बजिहेँ आ जखन मुकुन्द कक्का औताह तँ हमहूँ बाजब। जइसँ हुनका सभकेँ हेतनि जे सौँसे गौँआ हमरे दिशि अछि। अखैन तँ गैाँआ सभकेँ चाहे-पान, गाँजा, ताड़ी पइर लगतै मुदा नापी दिन पूड़ी-जिलेबी जलखै आ माँस-भात भोजन करा देबै।’
सरुप- ‘बड़बढ़ियाँ प्लानिंग छौ।’
बुचाइ- ‘हम श्रीकान्त कक्का दिशिसँ खुशीलाल अमीनकेँ ठीक केलहुँहेँ, तूँ मुकुन्द कक्का दिशिसँ किसुनदेव अमीनकेँ ठीक करिहेँ। दुनू अमीन तँ दुनू पार्टीक हएत की ने मुदा मध्यस्त अमीन तँ सेहो चाही। तइले रामचन्द्र भायकेँ पकड़ि लेब। तहिना गामक लोक तँ दुनू दिशिसँ बँटाएल रहत की ने मुदा एक्कोटा तँ तेहल्ला पंच चाही। तइले गुरुकक्काकेँ पकड़ि लेब। जखने गुरुकक्का पंच आ रामचन्द्र भाय अमीन रहताह तखने एक्को तिल जमीन इमहर-ओमहर थोड़े हएत।’
दोसर दिन दुनू गोटे -बुचाइयो आ सरुपो- गुरु कक्का लग पहुँचल। गुरुकक्का दलानेपर। दुनू गोटे प्रणाम कऽ बैसल। दुनू गोटेकेँ देखि गुरु कक्का पुछलखिन- ‘की बात छिऐ हौ बुचाइ? दुनू भजारकेँ संगे देखै छिअह?’
बुचाइ- ‘अहीं लग तँ एलौहेँ कक्का। श्रीकान्तो काका आ मुकुन्दो काका घरारी नपौताह। तेहीमे अपनो रहबै।’
गुरुकाका- ‘की करताह ओ सभ  घरारी नपा कऽ। केहेन बढ़िया तँ धिया-पूता सभ खेलाइए।’
सरुप- ‘रिटायर केला बाद गामेमे रहताह। नोकरियो लगिचाइले छनि। तेँ अखने नपा कऽ घरमे हाथ लगौता।’
गुरुकक्का- ‘सुनै छी जे दुनू गोटे शहरेमे घर बनौने छथि, तखन गाममे बना कऽ की करताह। हुनका सभकेँ गाममे थोड़े वास हेतनि। जिनगी भरि तँ बड़का-बड़का होटल देखलखिन, नीक रोडपर नीक सवारीमे चललथि, दामी-दामी वेश्यालय देखलनि, से सभ गाममे थोड़े भेटतनि। अनेरे गाममे आबिकेँ किए थाल-कादोमे चलता आ मच्छर कटौताह।’
गुरुकाकाक बात सुनि लपकि कऽ बुचाइ बाजए लगल- ‘से नै बुझलिऐ कक्का, दुनू गोटे भारी चोट खा चोटाएल छथि। तेँ गाम दिशि झुकलाह।’
‘से की?’ - ओ अकचकाइत गुरुकक्का पुछलनि‍।
बुचाइ कहए लगल- ‘तेसर सालक घटना छिऐ। श्रीकान्त काकाक पत्नी ड्राइवरकेँ संग केने बजार गेली। बजारसँ समान कीनि जखन घुमली तँ दोसर गाड़ी सेहो पछुअबैत रहनि। जखन फाँक-पाँतरमे गाड़ी पहुँचलनि तँ पछिला गाड़ी आगू आबि रोकि देलकनि। गाड़ीसँ चारि गोटे उतरि हिनका गाड़ीमे बैसि ड्राइवरकेँ दोसर रस्तासँ गाड़ी बढ़बैले कहलक। बेचारा की करैत। बढ़ल। थोड़े दूर गेलापर गाड़ी रोकि, काकीकेँ उतारि ड्राइवरकेँ कहलक- ‘मालिककेँ जा कऽ कहिअनु जे पाँच लाख रुपैया नेने आबथि आ पत्नीकेँ लऽ जाथि। दू घंटाक समए दैत छिअह।’ ड्राइवर बिदा भेल। इमहर काकीकेँ चारि-पाँच ठूसी मुँहमे लगा देलकनि। जहिसँ अगिला चारि टा दाँतो टुटि गेलनि। ठोह फाड़ि कऽ कानए लगली। कनिते काल मोबाइल दऽ कहलकनि जे पतिकेँ कहिअनु जे जल्दी रुपैया लऽ कऽ आउ नञि तँ हम नहि बँचब। तावे ड्राइवरो पहुँचि कऽ कहलकनि। अपना हाथमे दुइये लाख रुपैया, जे हालक आमदनी रहनि, बाकी रुपैया सभ बैंकमे। वएह दुनू लाख रुपैया लऽ कऽ गेला आ पाएर-दाढ़ी पकड़ि कऽ पत्नीकेँ छोड़ा अनलनि।’
बुचाइक बात सुनि ठहाका मारि हँसि गुरुकाका- ‘मुकुन्द किअए औताह?’
मुस्की दैत बुचाइ- ‘हुनकर तँ आरो अजीव बात छनि। एक दिन एकटा ठीकेदारक पार्टी चललै। जते बड़का-बड़का हाकिम आ ठीकेदार सभ  छल, सभ  रहए। मुकुन्द अपन पुरना गाड़ी छोड़ि नवका गाड़ी, जे बेटाकेँ सासुरमे देने रहनि, लऽ कऽ गेला। जखन पार्टीसँ घुमि कऽ ऐला तँ पुतोहू कहलकनि- ‘पुतोहूक गाड़ीपर चढ़ैत केहेन लागल?’ अइ बातक चोट हुनका खुब लगलनि। बेटा-पुतोहूसँ मोह टूटि गेलनि। तेँ गामेमे रहताह।
बुचाइक बात सुनि गुरुकक्का गुम्म भऽ गेलाह। कने काल गुम्म रहि, मने-मन बिचारि कहलखिन- ‘गाम तँ गामे छी। शुद्ध मिथिला। भारत। जे स्वर्गोसँ नीक अछि। मुदा सभ गामक अपन-अपन चरित्र आ प्रतिष्ठा छैक। जे चरित्र आ प्रतिष्ठा गामक कर्मठ, तियागी लोकनि बनौने छथि। अपन कठिन मेहनति आ कर्तव्यसँ सजौने छथि। ओकरा जीवित राखब तँ अखुनके लोकक कान्हपर भार अछि की ने ? नोकरीक जिनगीमे किछु कियो केलनि तइसँ समाजकेँ कोन मतलब। अपनाले केलनि। समाजक एक अंग होइक नाते हुनको सभक कान्हपर किछु भार छलनि जे अखन धरि नहि कऽ सकलाह। मुदा तैयो जँ समाजमे आबि, समाज रुपी फुलवारीमे फूल लगबए चाहताह तँ बढ़िया बात। से तँ लक्षणसँ नहि बुझि पड़ैत अछि। समाजमे रहैक लेल समाजक चरित्रक अनुकूल अपन चरित्र बनौताह, तखने ने समाजमे अँटाबेश हेतनि। ई तँ नहि जे गदहा गेल स्वर्ग तँ छान-पगहा लगले गेलै।’
गुरुकाकाक बात सुनि बुचाइयो आ सरुपो पुछलकनि- ‘कक्का, गामक विषएमे हम सभ किछु ने बुझैत छी, से कने बुझा दिअ?’
गुरुकाका- ‘‘अखन काजक बेर अछि तेँ बहुत बात तँ नहि कहि सकबह, मुदा जखन बुझैक जिज्ञासा छह तँ दूटा जरुर कहबह। देखहक, गामक पढ़ल-लिखल वा बिनु पढ़ल-लिखल लोक, पेट भरैक लेल नोकरी करैक लेल बाहर जाइ छथि, नीक बात। मुदा गामकेँ सोलहन्नी नहि छोड़ि देथि। अखन देखै छी जे अमेरिका, इंग्लैडसँ लोक तीन दिनमे गाम आबि सकै छथि। तेँ सालमे कमसँ कम एक्को बेर, नञि तँ हुनकरो गाम छिअनि, कतेको बेर आबि सकै छथि। जाहिसँ गामक लोक आ खेत-पथारक संग संबंध बनल रहतनि। मुदा से नहि कऽ गामकेँ सोलहन्नी छोड़ि, अनतै घर बना रहए लगै छथि। जे गामक दुर्भाग्य छी। जेकर फल होइत अछि गामक ज्ञान निर्यात भऽ जाइत अछि। जाहिसँ सुतल गाम सुतले रहि जाइत अछि। संगे गामक बेबहार, कला-संस्कृति सभ टुटि जाइत अछि। रिटायर केला बाद वा जिनगीक अंतिम अवस्थामे, जँ कियो गाम आबि रहए चाहता तँ हुनका गाम केहेन लगतनि। डेग-डेगपर टक्कर आ बात-बातमे विवाद हेबे करतनि। दोसर बात सुनह। अपना गाममे वैदिक जी भेल छथि। जिनके पोता शुभकान्त छिअनि। वेदक प्रकाण्ड विद्वान वैदिक जी। नाम तँ छलनि गंगाधर मुदा वैदिक जी नामसँ विख्यात भेलाह। अपनो राजमे आ आनो-आनो राजमे जखन पंडितक बीच शास्त्रार्थ होइ तँ हुनकर जबाव देनिहार कियो ने ठहरैत। अनेको तगमा आ प्रशस्ति पत्र भेटलनि। अखनो परोपट्टाक लोक हुनके नामपर अपना गामक नाम वैदिक जीक गाम बुझैत अछि। हुनके चलाओल अपना गामक पानि छी। पहिने पानिक छुआछुत अपनो गाममे छल, मुदा ओ सभकेँ बैसार कऽ कऽ बुझा देलखिन जे दुनियाँमे जते मनुक्ख अछि, सभ मनुक्ख छी, तेँ मनुक्ख-मनुक्खक बीच छुआछुत नै हेबाक चाही। थोपड़ी बजा सभ हुनकर विचारक समर्थन कऽ देलक। ओहि दिनसँ पानिक छुआछुत गामसँ मेटा गेल तहिना दोसर भेल जोगिनदर। भिखारीदासक पक्का चेला। अजीब कला हुनकोमे छलनि। जहिना नचैमे अगिया-बेताल, तहिना गीत गबैमे। जे पार्ट लऽ कऽ स्टेजपर अबैत, धऽ कऽ झहरा दैत। एहेन बिपटा अखन धरि कोनो नाचमे नञि देखलिऐहेँ। ओकरो परसादे गाममे भिखारीदासक नाच कतेको बेर भेल। जखन भिखारीदासक पार्टी छपरासँ पूब मुँहे असाम, बंगाल, नेपाल बिदा होए तँ अपने गाममे रुकै। खाली खेनाइ आ इजोतक खर्च गौँआक होइ। तहिना जब तीन-चारि मासमे घुमै तँ फेर अँटकै। तहिना भेल महावीर। बेचारा बड़ गरीब छल। नोकरी करैले कलकत्ता गेल। मुदा नोकरी नहि कऽ रिक्शा चलबए लगल। अजीब संस्कार ओकरोमे छलै। रिक्शो चलबै आ गीतो-कविता बनबै। पहिने तँ लिखल-पढ़ल नै होइ। मुदा अ-आसँ सीखब शुरु केलक। किछुए दिनक बाद लिखबो आ पढ़बो सीखि लेलक। रिक्शापर जखन चलै तँ अपन बनाओल गीत गाबए। एक दिन एकटा साहित्य प्रेमी रिक्शापर चढ़ल रहथि आ महावीर रिक्शो चलबै आ गीतो गाबै। उतड़ै काल कवि पूछि देलखिन। सभ बात महावीर कहलकनि। ओ एकटा कवि गोष्ठीमे आमंत्रित कऽ देलखिन। ओहि गोष्ठीमे पहुँचि महावीर तीनटा कविता आ दूटा गीत गौलक। तहि दिनसँ कवि गोष्ठीमे आमंत्रित हुअए लगल। बंगाल सरकार दस हजारक पुरस्कार आ प्रशस्तिपत्रसँ सम्मानित केलकनि। तहिना भेल कारी खलीफा। जेकरा इलाकाक लोक खलीफा मानैत। बड़का-बड़का दंगलमे पहँुचि ओ आन-आन जिलाक कतेको खलीफाकेँ पटकलक। ओकरा चलैत गाममे कियो ककरो बहू-बेटीकेँ खराब नजरिसँ नहि देखैत। एक बेर एकटा घटना जमीनदारक सिपाही संग घटलै। एक सौ लाठी सिपाहीकेँ समाजक बीचमे मारलक। तेही दिनसँ जमीनदार दू बीघा खेत ओहिना दऽ देलकै। एहेन-एहेन पंडित, कलाकारक बनाओल गाम छी, तेकरा हम सभ, अपना जीवैत कोना दुइर कऽ देबै। आइ जँ गाम दुइर हएत तँ अगिला पीढ़ी ककरा गारि पढ़तै। तेँ जँ दुनू गोटे मनुक्ख बनि गाममे रहए चाहताह तँ बड़बढ़ियाँ, नहि तँ गाममे रहने कियो समाज तँ नहि बनि जाइत।’
अमानत भेल। कोनो बेसी झमेल रहबे नै करै। पाँच कट्ठा कऽ दू भाग केनाइ। बँटवारा करैत रामचन्द्र अमीन कहलखिन- ‘जिनका संदेह हुअए ओ चाहे कड़ीसँ, वा फीतासँ, वा लग्गीसँ वा डेगसँ भजारि लिअ।’

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