श्याम सुन्दर शशि, जनकपुरधाम, नेपाल। पेशा-पत्रकारिता। शिक्षा: त्रिभुवन विश्वविद्यालयसँ,एम.ए. मैथिली, प्रथम श्रेणीमे प्रथम स्थान। मैथिलीक प्रायः सभ विधामे रचनारत। बहुत रास रचना विभिन्न पत्र-पत्रिकामे प्रकाशित। हिन्दी, नेपाली आऽ अंग्रेजी भाषामे सेहो रचनारत आऽ बहुतरास रचना प्रकाशित। सम्प्रति- कान्तिपुर प्रवासक अरब ब्यूरोमे कार्यरत।
कतारक मैथिल भेड़ा चरवाह-
कतारक सदरमुकाम दोहासँ लगभग एक सय किलोमीटर दूर जमालिया स्थित मरुभूमिक छातीपर बनाओल गेल भेड़ाक गोहियाक आगू ठाढ़ भऽ एक गोट युवक सिटी बजा रहल छल। महाभारतकालीन कृष्ण जकाँ। जनु अपन गोप आऽ गोपीकेँ लग बजेबाक उपक्रम कऽ रहल हो। मुदा एहि मरुभूमिमे ने गाई अएबाक कोनो सम्भावना छलै आऽ ने गोपी। मुदा बकड़ी आऽ भेड़ा धरि अवश्य आबि गेल ओकर सिसकारी सुनिकए। दिनभरि ५० डिग्रीक ताप छोड़ि स्वयं थकित सुरुज भगवान संध्या रानीसँ रसकेलि करबाक धुनमे पश्चिमाचलगामी वाट पकड़ि लेने छलाह। पश्चिमसँ आवएवला सेनुताएल प्रकाश मरुभूमिक वालुपर पड़ि मलिछाह आकृति बना रहल छल। मरुभूमि पिलिया ग्रस्त रोगी जकाँ बेजान देखना जाऽ रहल छल। पछिया हावा सांय सांय कऽ रहल छल। हावाक गतिसंग वालुक छोट-छोट कण उड़ि-उड़ि राहगीरकेँ घायल बना रहल छल। बूझि पड़ैत छल जे प्रलयके पूर्व संकेत हो। चारुकात वियावान मरुभूमि आऽ एहिमे उगल एक आध बबूरक पौध। हम बेर-बेर सोचैत रहैत छी जे धन्य बबूर, ऊँट आऽ सार्कदेशक दुखिया मजुरसभ जे एहि भूमिकेँ धरती होएबाक ओहदा प्रदान करैत छैक। अन्यथा...??
मुदा ओऽ युवक शान्त छल। एक क्षणक बाद सुरुज अस्त भऽ जएतै, सगर सन्सार अन्हार भऽ जएतै आऽ सयौ विगहामे पसरल मरुभूमिपर कारी रंगक चादर ओछा जाएत। ओऽ अन्हार होएबासँ पहिनहि अपना अधिनक भेड़ा आऽ बकड़ीकेँ गोहियामे घुसियावए चाहैत छल। कर्तव्य परायण मनुपुत्रक रूपमे अपन दायित्व निर्वाह करए चाहैत छल।
एहि तरहेँ अपन ईसारापर कृष्ण जकाँ भेड़ा-बकड़ीकेँ नचावएवला युवक के नाम छल महेन्द्र कापर। नेपालक सिरहा जिल्लाक कमलाकात भेड़िया गामक ई मैथिल युवक, विजुली, पिवाक पानि, सड़क आऽ स्वास्थ्यादि सुविधासँ विहीन एहि मरुभूमिमे गत एक वर्षसँ एहिना भेड़ा वकरी चड़वैत अछि। महेन्द्र कापर मात्र नहि, एहि मरुभूमिक विभिन्न भागमे बनाओल गेल विभिन्न भेड़ा, बकड़ी आऽ ऊट बथान तथा लगाओल गेल वगैचामे हजारौं नेपाली, भारतीय, वंगलादेशी, श्रीलंकन आऽ सुडियन मजुरसभ काज करैत अछि। अपना सभ दिस एक गोट कहबी नहि छैक जे, “जएवह नेपाल, संगहि जएतह कपार”। तहिना ई युवक सभ अपन करम भोगि रहल अछि। ओऽ सभ अबैत काल जे दोहा देखने छल, चकमक विजुलीवत्ती देखने छल आऽ चिक्कन चुनमुन फोरलेन सड़क देखने छल से घुरैत काल फेर देखत। ओकरा सभक वास्ते दोहा सहर दिल्ली दूर छैक।
महेन्द्र जमालियाक एहि अन्कन्टार मरुभूमिमे गत एक वर्षसँ काज करैत अछि। ओकरा जिम्मामे दू सय भेड़ा आऽ बकड़ी छैक। हमरा सभकेँ देखिते ओकर आँखिमे विशेष प्रकारक चमक व्याप्त भऽ गेलै, मुखमण्डलपर खुशीक रेखा नाचए लगलैक। साँझ पड़ि रहल छैक ओकरा लालटेम नेसवाक छैक, रातुक खाना बनेवाक छैक आऽ खुला आकाशक नीचाँ तरेगन गनैत राति बितेवाक छैक। गत एक वर्षसँ महेन्द्रक ई दैनिकी बनि गेल छैक। ईजोरिया रातिक चानकेँ देखि ओऽ अतिशय प्रसन्न होइत अछि, “ई चान हमरो बाऊ आऽ माय आउर सेहो देखैत होतै नञि”? ओकर निश्चल प्रश्न हमरा भावुक बना देने छल।
ओऽ भेड़ा आऽ बकरीकेँ गोहियामे गोतैत अछि। पठरूसभकेँ दुध पियबैत अछि। चारा रखैत अछि आऽ चैन भऽ हमरा सभसँ गप्प करवा वास्ते बैसि जाइत अछि। ओऽ एक वर्ष पूर्व कतार आएल छल। मानव तस्करसभ ओकरा कहने रहैक जे वगैचाक काज छैक। ओऽ सोचने रहय जे फलफूलमे पानि पटाएव, रोपव उखारव आ रियाल कमाएव मुदा से भेलै नहि। ओऽ भेड़ा चरवाह बनि कऽ रहि गेल। असलमे महेन्द्र अपने निरक्षर अछि। ओकर कतार आगमनके उद्देश्य छलै गाममे घर बनाएव आऽ बेटा-बेटीकेँ बोर्डिंग स्कूलमे पढ़ाएव। मुदा ओकर एक वर्षक श्रमसँ ई संभव नहि भऽ पाओल छैक। एक वर्षमे तँ महाजनकेँ ऋणो नहि फरिछाओल छैक। एहि वास्ते ओकरा आओर दू वर्ष एहि मरुभूमिक वालुकेँ फाकय परतैक। अवैत काल दलाल ओकरासँ ७५ हजार रुपैया लेने रहैक। जे ओऽ महाजनसँ ऋण लऽ कऽ चुकता कएने छल।
जहन महेन्द्रक गप्पक बखारी खुजलै तँ फेर बन्द होएवाक नामे नहि लैक। ओकरा तँ ओहि गोहियामे राति बतैवाक छलै मुदा हमरा सभकेँ सय किलोमीटर दूर दोहा अएवाक छल। हमरा सभक धरफड़ीकेँ ओऽ अकानि गेल छल। कहलक सर, कहियोकाल अवैत जाइत रहब। भेड़ा बकड़ी संगे रहैत-रहैत ओहने भऽ गेल छी, देखियौ चाहो पानिक लेल नहि पुछलहुँ। आऽ कपड़ा लपेटल एकगोट पानिक बोतल आगाँ बढ़ा देलक। “हमरा सभक फ्रिज बुझू कि एयर कन्डीशन ईहे अछि”।
गर्मीसँ सुखाएल कण्डकेँ पानिसँ भिजाओल आऽ अपन गन्तव्य दिस आगाँ बढ़ि चललहुँ। लगभग दश किलोमीटर वाट तय कएलाक बाद हमरा लोकनि जमालिया नगरमे पहुँचलहुँ। मुसलमान धर्मावलम्बी सभक रोजा खोलवाक समय भऽ गेल रहै। सड़क कातमे बनाओल गेल चबुतरापर नाना प्रकारक व्यंजन साँठल जाऽ रहल छल। लोक विस्मील्लाह करवालेल तैयार छलाह। हमरा मोन पड़ल महेन्द्रके गोहियामे राखल खवुज (कतार सरकारक सस्ता दरक रोटी) आऽ प्याउजक धेसर। एसगर महेन्द्र एखन नून, मिरचाई आऽ तेल प्याउजक संग खवुज दकरि रहल हएत। एतए ओकरेद्वारा पोसल गेल खस्सीक विरयानीक स्वाद लऽ रहल अछि मालिक आउर।
दोहा,कतार, जमलिया।(साभार विदेह www.videha.co.in)
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