Sunday, October 23, 2011

आचार्य श्री सोमदेवजीसँ हुनक दीर्घकालीन सृजन निरन्तरताक मादे विहनि कथाकार मुन्नाजीसँ सोझाँ-सोझी भेल विस्तृत गप्प


हिन्दी-मैथिलीक विज्ञ कवि आचार्य श्री सोमदेवजीसँ हुनक दीर्घकालीन सृजन निरन्तरताक मादे विहनि कथाकार मुन्नाजीसँ सोझाँ-सोझी भेल विस्तृत गप्पक सारांश:

मुन्नाजी: सर्वप्रथम अपनेकेँ प्रबोध सम्मान प्राप्ति हेतु बधाइ। सामान्यतः मैथिली रचनाकार किछु कालावधिमे रचनारत रहि पुरस्कारक व्योंत वा प्राप्तिक प्रतीक्षारत रहि सुस्ताए लगैत छथि। मुदा अपने ऐ सभसँ ऊपर उठि प्रारम्भसँ एखन धरि एक्के सक्रियताक संग जुड़ल छी। ऐ निरन्तरताक पाछाँ की सोच वा कोन रहस्य! वा ई विशेष ऊर्जावान हेबाक परिणाम अछि?
सोमदेव:पुरस्कार आत्मबल दैत छैक। मुदा हमर माथमे सदिखन नव विचार घुरघुराइत रहैए, जकरा हम अपन लेखनीमे उतारलाक पछातिये संतुष्टि पबै छी। सम्प्रति लिख नै पबै छी, शारीरिक अक्षमताक कारणसँ। मुदा लिखबाक उद्देश्य अपन विचारकेँ दोसर धरि पहुँचेबाक रहैए।

मुन्नाजी: अपने अपन प्रारम्भिक रचनाकालक क्रियाकलाप वा मैथिली साहित्य सृजनमे प्रवेशक जनतब दी।
सोमदेव:हम लिखब हिन्दीमे प्रारम्भ केने रही। समयान्तरे हिन्दीमे हेरा जेबाक डर आ माइक भाषाक प्रति प्रेम हमरा मैथिली दिस अनलक आ ऐ भाषामे रचनारत रहि टिकल रहि गेलौं। संगहि अपन स्पष्ट विचारकेँ संप्रेषणीयताक स्तरपर मैथिलीमे बेसी फरीछ कऽ पबैत छी, हिन्दीमे नै।

मुन्नाजी:अहाँ हिन्दी आ मैथिली दुनू भाषामे समान रूपेँ सृजनरत रही, एकर की कारण? उपरोक्त दुनूक अस्तित्वक फराकसँ कोना चिवेचन करब?
सोमदेव:रचनाक आरम्भमे दुनू भाषामे रचना केलौं मुदा बादमे मैथिली मात्रमे लिखलौं। दुनू उपरओँजक भाषामे गिरल जा रहल अछि। मैथिलीकेँ हिन्दीक आच्छादन आ हिन्दी अंग्रेजीक घोघ काढ़ल कनियाँ जकाँ भऽ घोंटल जा रहल अछि। बेगरता छै अपन अस्तित्वक रक्षार्थ अपन भाषा मात्रक रचना होइत रहए। दोसरा भाषाक देखाऊँसे वा वैशाखीक बलेँ ठाढ़ हेबाक चेष्टा नै हुअए।

मुन्नाजी:अहाँ अपन प्रारम्भिक रचना कालसँ आजुक अवधि धरि ऐ भाषाक रचनाकारमे रचनामे वा भाषा मध्य केहेन परिवर्तन वा टकरावक अनुभव केलौं आ से की सभ छल?
सोमदेव:प्रारम्भमे छन्दक प्राथमिकता छलै। बादमे छन्दमुक्त काव्य सभ एलै। हमहूँ एहेन रचना केलौं। मुदा पहिलुका जे स्तर छलै से अर्थपूर्ण छलै, आब अर्थहीन रचना बेसी आबि कऽ भरि गेलैए, जइसँ स्तर नीचाँ जा रहल छै। तकर मूल कारण रचनाकार द्वारा अध्ययन आ अध्यापनक अभाव छैक।

मुन्नाजी:मैथिली भाषाक एतेक प्राचीन आ स्वतंत्र अस्तित्व रहितो ओ आइयो अपन अस्तित्ववास्ते घैहैर काटि रहल अछि। एकर की मूल कारण वा अवरोध अछि?
सोमदेव:सत्य अछि जे दक्षिण एशिया, विशेष कऽ भारतमे संस्कृतक समकक्ष जँ कोनो भाषा छै तँ से अछि मैथिली भाषा आ तिरहुता लिपि (बादमे कैथी लिपि सेहो)। मुदा शास्सकक वैविध्यताक संग एकरो भौगोलिक रूपेँ टुकड़ी कऽ देल गेलै। आइ गुजराती, बांग्ला, असमी, ओड़िया,कुमाऊँ-गढ़वाली आदि एकरे टुकड़ी अछि, बेगरता छै एकाकार देबाक से भऽ जाए तँ एकरापन अस्तित्व छै से मरतै नै।

मुन्नाजी: अहाँ सबहक प्रारम्भिक रचनाकालमे गद्य आ पद्य दुनू विधाक जे स्वरूप से आजुक सन्दर्भमे बहुत बदलल अछि। समयान्तरे ऐ दुनू विधाक किछु आओर प्रतिरूप सोझाँ आएल यथा गजल आ विहनि कथा। ऐ सबहक भविष्य केहेन देखाइए?
सोमदेव:देखियौ मुन्नाजी, व्यक्ति, स्थान, भाषा वा रचना सबहक बदलाव समयानुसार स्वाभाविक छै। गजलकेँ कोनो भाषाक मूलमे निहित कएल जा सकैए, बशर्ते कि रचनाकार ओकर जड़िमे डूमल होथि। वर्तमान रचनामे एकर अभावे फूहड़पन वा गीजल चीज बेसी देखा पड़ैए। लघुकथामे अहाँ किछु गोटे नीक काज कऽ रहलौं अछि, से ठाम-ठीम देखै छी। भविष्यमे बदलैत समयानुसार पाठकक श्रेष्ठ खोराक बनत से विश्वास अछि।

मुन्नाजी: छठम-सातम दशकमे मैथिली साहित्यमे साम्यवादी विचारधाराक बिरड़ो उठलरहै। ओकर की प्रभाव भेलै आ आइ ओ कतऽ छै?
सोमदेव:यौ बौआ, कहियो एहेन बिरड़ो नै उठलै। तहिया कांग्रेसक शासन रहै आ ओ सभ मैथिलीकेँ दबौने रहलै। ऐ मे कोनो स्वतंत्र विचार वा वादतँ सपना मात्र रहै। हँ किछु गोटे अपनाकेँ हाइलाइट करबा लेल एहने विचारे उधियेबाक प्रयास केलनि। हमहूँ समाजवादी विचारक समर्थक रही, मुदा की गरीब वा गरीबीपर लिख देने समाजवादी कहाए लागब, किन्नहुँ नै। रूसक मार्क्सवादी विचार मिथिलाक कठकोकांइड़ बाभनवादमे कतौ सन्हिया सकै छै। नै, कहियो नै। मार्क्सवाद वा कोनो वादमे हमर समकक्ष वा श्रेष्ठ रचनाकार सेहो वादसँ जुड़बाक नामपर विचारहीन देखाइत रहलाह।

मुन्नाजी: मैथिली-हिन्दी मध्य साहित्यिक वर्णसंकरता पसरलै। मुदा मैथिलीकेँ पूर्णतःजातिवादिता गरोसने रहलै आ ई जाति विशेषक मुट्ठीक बौस्तु भऽ गेल। की ऐ सँ कहियो अहूँ सभ आच्छादित वा प्रभावित भेलौं? ऐ सँ रचनाकार वा साहित्यकेँ कोनो नोकसान भेल?
सोमदेव:ई किछु (मात्र किछुए) लोकक, जे रचनाकार नहियो छथि, तिनकर कुटिचालि अछि जे अदौसँ आबि रहल अछि। हँ ई सत्य जे कमाइक आस देखेलापर बाभन लोकनि अपन मूल भाषा संस्कृत छोड़ि गएर बाभनक मूलभाषा मैथिलीकेँ गरोसि लेलनि। तइमे गएर बाभन लोकनि ओतबे जिम्मेवार छथि, जे अपनाकेँ पूर्णतः कतियौने रहलाह।

मुन्नाजी: अहाँ निस्वार्थ सृजना वा साधनारत रहलौं। आ समय-समयपर ऐ सेवाक हेतु पुरस्कृत होइत रहलौं, एकर केहेन अनुभूति भेल?
सोमदेव:यौ , पहिनहियेँ कहलौंहेँ जे ऐ सँ आत्मबल भेटैछ। हमर अपन विचार लेब तँ जहिया जे पुरस्कार भेटल ओ राशि धीया-पुताकेँ दैत रहलौं। अकादेमी पुरस्कारक राशि बेटाकेँ पढ़बामे आ प्रबोध सम्मानक पाइ नातिनकेँ दऽ अपनाकेँ कृतार्थ बुझै छी। हँ एकटा बात जे सभ संतान, बेटा-जमाए, पोता-पोती, नाति-नातिन नीक पदपर छथि। हमर जीवनक सर्वश्रेष्ठ पुरस्कारक सर्वस्व अनुभूतिक रूपमे ईएह अछि।

मुन्नाजी: नवका दशकमे गएर बाभनक झुण्डक सक्रिय साहित्यिक प्रवेशकेँ मैथिली साहित्यक नजरिये कोना देखै छी। एकर भविष्यक संकेत की अछि?
सोमदेव: आब किछु लोक जे सक्रिय छथि से संघर्षमे पाछाँ नै होथि तँ सफल अपनो हेता आ भाषाक भविष्य सेहो उज्जवल हएत, जै हेतु धैर्य आ सक्रियता चाही (दू-तीन दशकधरि), नै तँ ई भाषा पूर्णतः मरि जाएत।

मुन्नाजी: मैथिली आब कागज मोइससँ बहरा अन्तर्जालपर आबि वैश्विक स्तरपर पसरि गेल अछि, एकरा मैथिलीक वर्तमान वा भविष्यसँ कोन रूपे जोड़ि कऽ देखऽ चाहब?
सोमदेव:ई प्रसन्नताक बात अछि जे आब ककरो कोनो विचार (प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष) सेकेण्डेमे सभक सोझाँ अबैए आ अहाँ पाछाँ अपन वक्तव्यसँ मुँह नै मोड़ि सकै छी। दोसर जे अहाँक विचारकेँ वैश्विक मंच भेटल अछि, अगिला समएमे ओ जगजियार हएत। मुदा कागज मोइसक जमाना लदल नै अछि, ऐ मे सक्रिय रहबे करू।

मुन्नाजी: मैथिली साहित्यमे ललनाक प्रवेश निषिद्धता वा महिला रचनाकारक अभावक की मूल कारण अछि? एकर निदानार्थ की कहब? भविष्यमे एकर की प्रभाव भऽ सकैए?
सोमदेव:अहाँक ई सुन्दर सोचक प्रश्न अछि, तै लेल धन्यवाद। पहिने नारी घोघ तरक बहुरिया आ चहरदिवारीमे नुकाएल बान्हल मुट्ठीक चीज मात्र छल, तेँ ओकर विचार दबल रहि जाइत छल। आइ मैथिल ललना सभ मानसिक, शारीरिक आ तकनीकी सभ स्तरपर उच्च भऽ रहल अछि। विचार सेहो सद्भावपूर्ण,ठोस, राग-द्वेष रहित छै। ई पीढ़ी जुड़ि गेल तँ ई आर फरिछाएत, जे स्वच्छ चिन्तन आ चित्रण सोझाँ आओत।

मुन्नाजी: अन्तमे अपने नवका धीया-पुता (रचनाकार) केँ उज्जवल साहित्यिक भविष्यक वास्ते की सनेस देबऽ चाहब?
सोमदेव: नवका धीया-पुताक मगज थोरेक आर आगू छै। एकर रचनात्मक विचार ठोस आ दिशा सूचक अछि। ई सभ जुड़थि तँ मैथिलीक कल्याण हएत। हँ, अपन संस्कार नै बिसरथि बस ! एतबे।
अहाँ आ गजेन्द्रजी दुनू गोटेकेँ अन्तर्जालक जालमे हमरो लपेट अपन विचार रखबाक अवसर देबालेल हृदैसँ धन्यवाद।
मुन्नाजी: हार्दिक आभार! बहुमूल्य समय आ विचार देबाक वास्ते।
(साभार विदेह www.videha.co.in )

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