बहुविधाविध रचनाकार युवा पत्रकार श्री गजेन्द्र ठाकुरजी सँ युवा प्रतिनिधि लघुकथाकार एवं समीक्षक मुन्नाजीसँ भेल गप्प सप्प प्रस्तुत अछि:-
मुन्नाजी:गजेन्द्र जी नमस्कार। युवावर्गमे अहाँक कार्य देखि आह्लादित होइत रहलौं अछि, ताहि हेतु अहाँसँ ऐ पर विस्तृत चर्चा करऽ चाहब। गजेन्द्रजी अहाँक बेशी रहनाइ आ शिक्षा मिथिलासँ बाहर भेल। उच्च शिक्षाक माध्यम अंग्रेजी रहल तखन मिथिला/ मैथिलीसँ एतेक लगाव कोना?
गजेन्द्र ठाकुर: बच्चामे १९७९-८०मे चौथा-पँचमा हम अपन गामक प्राइमरी स्कूलसँ केने छी। हमर पिताजी बिहार सरकारमे कार्यपालक अभियन्ता रहथि जखन कार्यकालहिमे हुनकर मृत्यु भऽ गेलन्हि। मुदा ई गप ओहिसँ पुरान अछि, ओहि समयमे हमर पिताजी सहायक अभियन्ता रहथि आ पटना-हाजीपुरक गंगापुल बनि रहल रहए। पिताजी इमानदार रहथि से ठिकेदार सभ आ अभियन्ता सभ रोलरसँ पिचबाक धमकी देने रहन्हि, बच्चा सभकेँ मारबाक धमकी देने रहन्हि। अपने तँ ओ पलायन नहि केने रहथि मुदा हमरा सभकेँ गाम पठा देने रहथि। भऽ सकैए यएह डेढ़ सालक गामक निवास मैथिलीसँ आ मिथिलासँ हमर लगावक कारण रहल हुअए। फेर बादोमे सालमे दू बेर पिताजीक संग गाम जाइते छलहुँ, एक बेर होलीमे आ दोसर बेर दुर्गापूजामे। पिताजीक मुँहे एक बेर सुनने छलहुँ जे एहि जन्ममे तँ नगरमे रहि रहल छी मुदा अगिला सात जनम गाम नै छोड़ब।
मुन्नाजी:पहिल बेर रचनाक प्रेरणा कोना/ कतऽसँ आ कहिया भेल। पहिल रचना (लिखल) कोन छल आ पहिल प्रकाशित अचना कोन (विधा सहित कही) कतऽ कहिया छपल।
गजेन्द्र ठाकुर: वएह १९७९-८०क गप अछि। गामक स्कूलमे एकटा बाल नाटकक भार हमरा कान्हपर वीरभद्रजी नवका मास्टर साहेब आ बड़हराबला मास्टर साहेब देलन्हि। नाटकक पोथी कत्तऽ सँ भेटत? तँ दानवीर दधीची लिखलहुँ। कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनकमे ई ढेर रास सुधारक संग प्रकाशित अछि २००९ ई. मे। २००० ई. मे जे हम मैथिलीक देवनागरीक साइट याहूसिटीजपर बनेलहुँ ओहिसँ हमर पाण्डुलिपि टाइप भऽ अन्तर्जालपर नियमित रूपे आबए लागल, बादमे याहू अपन जियोसिटीज बन्न कऽ देलक मुदा ५ जुलाइ २००४ केँ “भालसरिक गाछ” नामसँ बनाओल हमर मैथिलीक अन्तर्जाल पहिल मैथिली उपस्थितिक रूपमे एखनो विद्यमान अछि। यएह भालसरिक गाछ १ जनवरी २००८ सँ विदेह पाक्षिक ई-पत्रिकाक रूपमे नियमित रूपेँ आबि रहल अछि, आब तँ एकर ७० टा विदेह रूप आ ४ टा सदेह रूप आबि गेल छै। प्रिंट पत्रिका/ दैनिकक जतऽ धरि गप अछि तँ भारती-मंडन, समय साल, घरबाहर, अंतिका, आँकुर, पूर्वोत्तर मैथिल, जखन तखन, मिथिला डट कम (जनकपुर), परमेश्वर कापड़ि जीक पत्रिका (जनकपुर), मिथिला समाद, मिथिला दर्शन आदिमे रचना सभ छपल अछि। भारती-मंडन लेल पूर्णियाँसँ हम रचना पठेने छलियनि २००१-०२ मे केदार कानन/ तारानन्द झा “तरुण”केँ, जे बादमे छपबो कएल, ओहि कालमे हम सासुरमे रही एकटा दुर्घटनाक बाद, बैशाखीपर डेढ़ बरख धरि रही(२००१-०२)। भऽ सकैए ओहो कालावधि हमरा समय देलक आ हमर दिशा निर्धारित कएलक।
मुन्नाजी:एक संग एतेक विधामे रचना करबामे असोकर्ज नै होइछ? एक संग बहुविधाक संगोर प्रकाशित करबाक की उद्देश्य?
गजेन्द्र ठाकुर: एतेक विधा माने कतेक विधा? विधा तँ दुइये टा छैक गद्य आ पद्य। हमर कथा शब्दशास्त्रम् मे ढेर रास गीत छै। तस्कर कथा पंजीमे वर्णित तस्कर केशवक तहमे गेलाक उपरान्त फुराएल। आब पंजीक मिथिलाक्षरसँ देवनागरीमे लिप्यन्तरण नै करितहुँ तँ लैला-मजनू आ हीर राँझाक कोटिक मैथिली प्रेमकथा मैथिलीमे नै अबितए। मैथिली अंग्रेजी डिक्शनरी रहै मुदा इंग्लिश-मैथिली डिक्शनरी नै रहै, से ओ बनएबाक क्रममे हम ब्लॉगकेँ जालवृत्त लिखै छी आ इन्टरनेटकेँ अन्तर्जाल, तँ से कोना होइतए, हमर विज्ञान कथा काल-स्थान विस्थापन, आ अन्तर्जाल आ प्रबन्धनपर आलेख, मैथिलीक लेल SWOT अनेलिसिस मैथिलीमे कोना लिखाइत? तँ सिद्ध भेल जे हमर गद्य-पद्य एक दोसराक लेल ऋणी अछि, हमर पाण्डुलिपिक लिप्यन्तरण/ अंकण आ शब्दकोषक निर्माण सेहो हमर गद्य-पद्यक विशिष्टतामे योगदान देलक। हमर मैथिली-संस्कृत शिक्षाक कार्य मूल संस्कृत कथा-काव्यक अन्वेषणमे हमर सहायता केलक, आ ताहि कारणसँ “दानवीर दधीची”क पौराणिक दन्तकथा जाहिमे दधीची हड्डी दान दै छथि केँ हम नै मानलहुँ आ वैदिक कथा मानलहुँ जाहिमे आश्विनौ हुनका (दधीचीकेँ) घोड़ाक मुँह लगा दै छथि आ ओहि गरदनिकेँ इन्द्र काटै छथि आ फेर आश्विनौ दधीचीक असल मुँह लगा दै छथि, आ ओहि काटल घोड़ाक मुँहक हड्डीसँ इन्द्रक हथियार तैयार होइ छै, दधीचीक हड्डीसँ नै। त्वञ्चाहञ्च (मूल संस्कृत महाभारतपर आधारित)आ असञ्जाति मन (संस्कृतमे अश्वघोषक बुद्धचरितपर आधारित) ई दुनू गीत प्रबन्धमे आएल मूल विशिष्टता सेकेन्डरी सोर्सक अध्ययनसँ सम्भव नै छै, आ नहिये दूर्वाक्षत मंत्रक वा आन वैदिक युगक कथ्यक विश्लेषण (ग्रिफिथक अंग्रेजी अनुवादक सेकेन्डरी सोर्सक विपरीत) बिना मूल अर्थ बुझने सम्भव, से मायानन्द मिश्रक प्रथम शैल पुत्री च, मंत्रपुत्र, पुरोहित आ स्त्रीधनक समीक्षामे सेहो काज आएल। तँ हमर संस्कृत-मैथिली शिक्षा एतए काज आओल। हमर दर्शन शास्त्रक मूल वाचस्पति/ कुमारिल/ मंडनक ओ भामती आ ब्रह्मसिद्धिक दार्शनिक तत्व शब्दशास्त्रम् मे आओल। तँ हमर अंग्रेजी साहित्यक शिक्षा हमर आलेख मैथिली साहित्यपर अंग्रेजी साहित्यक प्रभावक आधार बनल। हमर ऋगवैदिक संस्कृत आ अवेस्ता क मूल अध्ययन मैथिलीक गजलशास्त्रक आलेखमे प्रयुक्त भेल तँ हैकू आ हैबून- मूल जापानी काव्यशास्त्रक अनुवादक आधारसँ विशिष्टता प्राप्त कऽ सकल। सहस्रबाढ़निक ब्रेल वर्सन, कैथी आ मिथिलाक्षर यूनीकोडक निर्माणमे योगदान हमर कम्प्यूटर विशेषज्ञताक बिना सम्भव नै छल तँ हमर लेबर इन डेवेलपमेन्टक कोर्स हमर बाल-श्रमपर आधारित बाल कविता लेल अपरिहार्य छल।
एक संग ई सभटा रचना हार्डबाउन्डमे कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक नामसँ एहि द्वारे प्रथमे-प्रथम छपल कारण हम एकरा परिवारक सभ सदस्य लेल लिखने छी। शिशु/ बाल साहित्य सेहो एहिमे अछि कारण छोट बच्चा स्वयं ओ रचना नै पढ़त वरन् अहाँ ओकरा पढ़ि कऽ सुनेबै, कविता यादि करेबै, अंकिता वर्णमाला शिक्षा देखू, नाटक करबबियौ। मूड अछि तँ कथा पढ़ू, नै तँ कविता-समीक्षा/ नाटक पढ़ू खेलाऊ। महाभारत/ बुद्धचरित पढ़बाक पलखति नै अछि तँ त्वञ्चाहञ्च आ असञ्जाति मन पढ़ू। मोन अछि तँ उपन्यास पढ़ू आ नै तँ दीर्घकथा-लघुकथा पढ़ू। बादमे ई सातो खण्ड पेपरबैकमे सेहो सात खण्डमे आएल। हार्डबौन्डक हजार कॉपी तँ गोट-गोट बिका गेलै।
मुन्नाजी:एक संग बहुविधाक रचना प्रकाशनसँ अहाँक अपन अस्तित्वकेँ खतरा नै बुझाइत अछि? एहेन केलासँ भऽ सकैछ जे समीक्षक अहाँक कोनो मूल्यांकन नै कऽ सकैथ?
गजेन्द्र ठाकुर: मुदा से भेलै नै। कारण लीखपर चलैसँ हमरा परहेज नै अछि जे ओ कत्तौ धरि पहुँचाबए, आ नै तँ नव लीख बनेबामे सेहो कोनो असोकर्ज नै। कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक हमर २००९ धरिक समस्त कृतिक (पंजी आ डिक्शनरीकेँ छोड़ि जे अलगसँ प्रकाशित भेल) संकलन अछि। ई पाठक लेल लिखल गेल अछि, समीक्षकक लेल नै, मैथिलीक ओहेन समीक्षकक लेल नै जिनका मिथिलाक्षर नै अबैत छन्हि आ कम्प्यूटर इलिटेरेट छथि से पंजी आ कम्प्यूर/ प्रबन्धन विषयक आलेखक समीक्षा नै कऽ सकताह से हम बुझै छी, करबाको नै चाहियन्हि; ऋगवैदिक संस्कृतक ज्ञान नै छन्हि तँ हमर ताहि सम्बन्धी समीक्षापर ओ समीक्षा नै कऽ सकताह से हम बुझै छी, आ से करबाको नै चाहियन्हि। मुदा जाहिपर ओ कऽ सकै छथि ताहिपर करथु, कतेक समीक्षक केबो केलन्हि अछि, जेना प्रेमशंकर सिंह, शिव कुमार झा आ राजदेव मंडल। पक्ष-विपक्षमे सएसँ बेशी चिट्ठी सेहो आएल अछि। मुदा जे पाठक छथि हुनकर प्रतिक्रिया आह्लादकारी अछि, प्रिंटक अतिरिक्त हजारसँ बेशी डाउनलोड विश्वभरिमे पसरल मैथिलीभाषी द्वारा हमर सभ पोथीक भेल अछि। बिना कोनो सरकारी साहित्यिक संस्थाक सहयोगसँ हमर उपन्यास सहस्रबाढ़निक अनुवाद अंग्रेजी, संस्कृत, तुलु, कन्नड़, मराठी आ कोंकणीमे कएल गेल। एहि उपन्यासकेँ ब्रेलमे लोक पढ़ि रहल छथि।
खिरदमंदों से क्या पुछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
कि मैं इस फिक्र में रहता हूँ मेरी इन्तिहा क्या है,
कि मैं इस फिक्र में रहता हूँ मेरी इन्तिहा क्या है,
(इकबाल)
(बुधियारसँ हम की पूछू जे हमर आरम्भ की अछि, हम तँ एहि चिन्तामे छी जे हमर ओरछोर की अछि।-इकबाल)
खुदी को कर बुलन्द इतना, के हर तकदीर से पेहले
खुदा बन्दे से खुद पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है ?
(इकबाल)
(अपन निःस्वार्थताकेँ ओहि स्तर धरि लऽ जाऊ जे ककरो भाग्य बनेबाक पहिने भगवानकेँ ओकरासँ ई पूछए पड़न्हि जे बता केहन भाग्य चाही तोरा।- इकबाल)
मुन्नाजी:अहाँ निश्शन रचनाकार आ समीक्षकक अतिरिक्त मैथिली पत्रिकाक एकटा आधार स्तम्भ भऽ देखार भेलौं अछि। “विदेह ई पाक्षिक” प्रारम्भ करबाक विचार कोना भेल? आइ एकरा आ एकरा माध्यमेँ अपनाकेँ कतऽ पबै छी?
गजेन्द्र ठाकुर: मैथिली पत्रिका सभकेँ रचना पठाएब तँ दू बraखक उपरान्त नम्बर आएत, नहियो आएत। अतिथि सम्पादक रचना मंगबा कऽ गीड़ि गेलाह, सेहो उदाहाण अछि। नव रचनाकार हतोत्साहित रहथि। से विदेह प्रकाशनक नियमितता लऽ कऽ आएल, वितरणक समस्या एकरा नै रहै , कारण ई अन्तर्जालपर छल। भारत आ नेपालक मैथिली भाषीक बीचक जे बोर्डर छलै, देशक बोर्डर, से विदेह लेल नै छलै। भारतक नै वरन विश्वक बीच पसरल मैथिली भाषी मध्य विदेह लोकप्रिय भेल। मैथिलीमे पाठक नै छै, नीक लेखक नै छै, युवा लेखक नै छै, गएर मैथिल ब्राह्मण-कर्ण कायस्थ- गएर सवर्ण लेखक नै छै, ई समस्त धारणा विदेह तोड़ि देलक। आइ धरि विदेह ई पत्रिकाकेँ १०७ देशक १,५७१ ठामसँ ५१,०७७ गोटे द्वारा विभिन्न आइ.एस.पी. सँ २,७२,०८२ बेर देखल गेल अछि (गूगल एनेलेटिक्स डेटा)। विदेह: सदेह:१ मे ११८ टा लेखक (१८ बर्खसँ ८८ बर्ख धरि) छलाह। विदेह मैथिलीक एकमात्र अन्तर्राष्ट्रीय शोध जर्नल अछि जकरा पेरिस स्थित अन्तर्राष्ट्रीय संस्था मान्यता देने छै। विदेह अही सभ उद्देश्यसँ शुरू भेल आ अपन सभटा उद्देश्य प्राप्त कएलक। मुदा एतेक भेलाक पश्चातो हम कहब जे ई तँ एखन मात्र प्रारम्भ अछि।
विदेहक कारणसँ बहुत गोटे नीक-अधलाह लोक भेटलाह, बेशी नीके। विदेहक कारणसँ हमरा पाठक भेटल, स्नेह भेटल। विदेहक कारणसँ एकटा दवाब रहैत अछि, रचना करबाक दवाब आ रचनाकारकेँ जोड़बाक दवाब।
मुन्नाजी: ब्राह्मण वर्ग अपन हितपूर्ति लेल मैथिलीक दुरुपयोग केलनि वा मैथिलीकेँ गरोसि गेला। गएर ब्राह्मण वर्ग निङ्घेस जकाँ टारि पलथी मारने रहला, एकर की कारण, ऐ सँ मैथिलीकेँ कतऽ धरि लाभ वा हानि भेलै?
गजेन्द्र ठाकुर: मैथिलीक दुरुपयोग वा कोनो भाषाक दुरुपयोग कोना सम्भव अछि? ई तखने सम्भव अछि जखन लोकक आर्थिक दशा तेहन होइ जे ओ भोजन लेल झखैत हुअए वा सरकार ओकर शिक्षा-व्यवस्थामे दोसर भाषा घोसिया दै, भारतमे हिन्दी आ नेपालमे नेपाली घोसियाओल गेल। ब्राह्मण वा कायस्थ-वर्ग शिक्षामे आगाँ छलाह (देशक दोसर भागक ब्राह्मण वा कायस्थसँ हम तुलना नै कऽ रहल छी- हुनका सभसँ तँ ई लोकनि बड्ड पछुआएल छथि।), माने मिथिलाक दोसर जातिसँ। से साहित्यमे सेहो यएह सभ अएलाह। ने मिथिलामे राममोहन राय भेलाह जे विधवा लेल लड़ितथि, ने गेब्रियल गार्सिया मार्क्विस भेलथि जे “ए हन्ड्रेड ईयर्स ऑफ सोलिट्यूड” लिखबा लेल कार बेचि देलथि जे ओहि पाइसँ परिवारक साल भरिक खर्चा चलतन्हि आ ओहि अवधिमे ओ ई उपन्यास लिखताह! मुदा ई दुनू गप पूर्णतः सत्य नै अछि, बहुत गोटे अपन सर्वस्व बेचि मैथिली लेल झोकलन्हि, मुदा गुटबन्दीक कारण हुनकर चर्चा नै भेल। कतेक गोटे विवादमे घसीटल गेलाह तँ ओ तथाकथित पतनुकान लऽ लेलन्हि। पंजीमे कमसँ कम तीनटा सर्वस्वदाताक विवरण अछि जाहिमे एक गोटे अपन जीवनमे तीन बेर सर्वस्व दान केलन्हि। पंजीमे सैकड़ामे अन्तर्जातीय विवाहक विवरण अछि आ से ब्राह्मण आ दलितक बीच। तस्कर केशव राजाक निहुछल लड़कीसँ विवाह केलन्हि, लक्ष्मीश्वर सिंह किछु नै कऽ सकलाह। मुदा ई सभ दू साल पहिने धरि अभिलेखित नै भेल। १९४२ ई.क आन्दोलनमे पंचानन झा आ पुरन मंडल झंझारपुरमे संगहि अपन बलिदान देलन्हि मुदा से अभिलेखित नै भेल, आब २००९ ई. मे जगदीश प्रसाद मण्डल ओहि घटनाकेँ अपन पछताबा कथाक आधार बनेलन्हि। गएर ब्राह्मण वर्गक जगदीश प्रसाद मण्डल/ राजदेव मण्डल/ बेचन ठाकुर/ महेन्द्र नारायण राम/ मेघन प्रसाद/ बिलट पासवान “विहंगम”, हिनका सभक अतिरिक्त जे साहित्यकार छथि ओहिमेसँ बेसी वएह आगाँ बढ़ि सकलाह जे टोना-टापर जानै छथि आ ब्राह्मण- कायस्थ मध्य सेहो बेशीकाल टोना-टापर जानैबला आगाँ बढ़लाह, से ककरा दोष देबै। ने पाठक रहै, जे जेबीसँ खर्चा केलन्हि से विवादित कएल गेलाह, जे प्रतिभावान रहथि से हतोत्साहित कएल गेलाह आ जे टोना-टापर जानैबला रहथि से आगाँ बढ़लाह। कारण सेहो स्पष्ट अछि जे मैथिलीमे पाठक नै छल तेँ ई भेल आ ईहो सत्य जे एहि सभ कारणसँ पाठक नै बढ़ल, चिकन एन्ड एग प्रोब्लम। गएर ब्राह्मण वर्गक राजनीतिज्ञ बेसी दोषी छथि, ओ वोट माँगैले आबै छथि मुदा जितलाक बाद मैथिली नै बजताह जे हम अहाँक भाषा नै बाजै छी, से हमरासँ दूर रहू। विदेहक आगमन एहि सभ पक्षकेँ सोझाँमे राखि कऽ भेल, मैथिलीकेँ देल स्लो-प्वाइजनिंगक प्रभाव दूर भेल अछि।
मुन्नाजी:मैथिली विशेष कऽ गएर ब्राह्मणेक मूल भाषा छल। ब्राह्मणक मूल भाषा तँ संस्कृत रहल, बोली चालीमे सभक भाषा मैथिलीये रहल। मुदा ब्राह्मण लोकनि हुनका सभकेँ पूर्णतः दूर रखलनि। अहाँ हुनका सभकेँ जोड़ि लेलौं? कोना?
गजेन्द्र ठाकुर: मानुषीमिह संस्कृताम् – ई उक्ति हनुमान जीक छन्हि जे सीतामैयाक नैहरक भाषा मानुषीमे हुनकासँ अशोक वाटिकामे गप केलन्हि (वाल्मीकि रामायण- सुन्दरकाण्ड)। मैथिलीमे बहुत रास शब्द अछि जे वैदिक संस्कृतमे अछि मुदा लौकिक संस्कृतमे नै, से मैथिल खास कऽ गएर ब्राह्मण वर्ग वैदिक संस्कृतक बेशी लग छथि तँ पढ़ल लिखल मैथिल (ब्राह्मण आ कायस्थ) लौकिक संस्कृतक। मुदा लोक कंठमे बसल साहित्य गएर ब्राह्मण वर्गमे अछि, उमेश मंडल १२-१४ जातिक एहेन साहित्यक संकलन केने छथि तँ महेन्द्र नारायण राम/ विश्वेश्वर मिश्र/ मणिपद्मक पोथी सेहो छपल छन्हि। ई अवश्य जे विदेहक अएबासँ पूर्व एकभगाह स्थिति छल नब्बै प्रतिशत ब्राह्मण आ १० प्रतिशत कायस्थ साहित्यकार छलाह। अन्य नगण्ये छलाह, विदेह सभक मध्य भरोस उत्पन्न कऽ सकल ताहिमे ओ सभ गोटे शामिल छथि जे विभिन्न कालावधिमे विदेहसँ जुड़ैत गेलाह आ एकरा शक्ति प्रदान कएलन्हि। पहिने ज्योतिजी, फेर विद्यानन्द झा, नागेन्द्र कुमार झा, रश्मि रेखा सिन्हा, उमेश मंडल, शिव कुमार झा आ मनोज कुमार कर्ण, जया वर्मा आ राजीव कुमार वर्मा विदेहसँ जुड़लाह। हमरा आ सम्पादक मंडलक सदस्यकेँ मानसिक रूपेँ प्रतारित करबाक घृणित प्रयास सेहो किछु टोना-टापर जानैबला साहित्यकारक इशारापर कएल गेल, मुदा एहिसँ हमरा सभकेँ झमेलासँ बाहर अएबाक कला सिखबाक अवसर भेटल। मुदा उत्साहवर्धन करएबलाक तुलनामे ई सभ बड्ड कम मात्रामे रहथि, राखू पाँच प्रतिशत। हम सभ लोककेँ जोड़लहुँ आ ओ सभ जुड़लाह, दुनू सत्य अछि। हमर ई प्रयास एहि अभाव-भाषणकेँ खतम कऽ देलक- यौ बड्ड प्रयास केने छिऐ, नै सम्भव छै यौ..आदि...आदि; आ एहि अभाव भाषणमे ब्राह्मण-कायस्थ तँ शामिले रहथि, गएर ब्राह्मण-कायस्थ साहित्यकार आ राजनीतिज्ञ सेहो शामिल रहथि, आ ओ सभ बेशी दोषी छथि। दोसर आबि जएताह तँ हमर चलती कम भऽ जाएत, माने प्रतियोगितासँ दूर भागब, ई जेना ब्राह्मण-कायस्थ आ गएर ब्राह्मण-कायस्थ साहित्यकार- दुनुक मनोभावना बनि गेल छल; ओना एहिमे अपवादो सभ छथि।
मुन्नाजी:अहाँ स्वयं ब्राह्मण वर्गसँ रहि पुरना बभनौटी (ब्राह्मणवाद) सँ अलग बाभनवादसँ दुखी वा कतिआएल रचनाकार, सभ जाति-धर्मक नव-पुरान रचनाकारकेँ एक मंचपर एक संग जगजियार कऽ रहलौंहेँ, एकरा पाछाँ की मानसिकता वा रहस्य अछि?
गजेन्द्र ठाकुर: मैट्रिकक सिलेबसमे पढ़ै छलहुँ जे सभ जातिक मैथिलीभाषी मैथिल छथि, मुदा वास्तविक धरातलपर, विद्यापति पर्व आदिमे ई मैथिल विशेषण मुख्यतया दू जातिक भऽ जाइत छल। माने कथनी आ करणीक अन्तर। हमर पालन-पोषण आ शिक्षा-दीक्षामे कथनी आ करणीक अन्तर नै रहल, प्रायः सएह कारण होएत। दोसर प्रतियोगिता बढ़त तँ अहींक साहित्य ने मजगूत होएत, बेशी लोक आएत तखन ने नीक लोक बेशी आएत। जातिक नामपर वा सर-सम्बन्धीक नामपर हमर सहयोग क्यो मँगबाक हिम्मत नै केने छथि, कमसँ कम ओ लोकनि जे हमर पिता आ हमरा चिन्हैत छथि। ने कोनो रचनाक चोरकेँ हम जातिक नामपर बकसैबला छियन्हि। आ जे ओहि प्रवृत्तिक छथि से सभ जाति-धर्मक लोक एकट्ठा भऽ जाथु जाहिसँ पीठमे छूरा भोंकेबासँ तँ हमरा सभ बचि जाएब। आ हमर मानसिकताक लोक जे एक मंचपर एक संग जगजियार भऽ रहल छथि तँ हम सएह कहब जे हमर काज हुनका सभमे हमरा सभक प्रति विश्वास देने छन्हि- से हुनका सभकेँ धन्यवाद।
मुन्नाजी:कोनो एहेन विशेष क्रियाकलाप वा घटना जे अहाँकेँ बाभनक वा बभनौटीक प्रति आक्रोश आ गएर बाभनक प्रति लगाव बढ़ेलक।
गजेन्द्र ठाकुर:कोनो एक घटनाक आवश्यकता कत्तऽ छै। दरभंगाक दोकानमे मैट्रिकक सिलेबसक गाइडक अतिरिक्त कोनो मैथिली पोथी नै भेटै छलै, कोनो एक साहित्यकारक मुँहसँ दोसराक प्रति आदर वचन नै निकलै छलै, कियो अतिथि सम्पादक बनि अहाँक रचनाक चोरि केलक तँ ओकरा अहाँ पकड़ी तँ ताहिपर एकमत नै होइ जाइ छलाह उन्टे दोषीकेँ पीठ ठोकै जाइ छलाह, शब्दशः चोरि आ आक्रान्त वा प्रभावित भेल रचनाक अन्तर ककरा नै बुझल छैक आ ओहि आरिमे शब्दशः चोरि केनिहारक पीठ ठोकब! विदेहक आगमनक बाद एहि सभमे परिवर्तन आएल, एकरा के नकारि सकत।
सत्यक प्रति लागव रहत आ अन्यायक प्रति विरोध तँ सभ किछु अनायासे आबि जाएत, कोनो विशेष क्रियाकलाप वा घटनाक आवश्यकता नै पड़त, कोनो घटनासँ फाएदा उठेबाक आवश्यकता नै पड़त।
मुन्नाजी:अहाँक मैथिली पत्रकारिताकेँ दूरि हेबासँ बचेबाक वा सत्यक खोजक कारणेँ गारि-गंजनक पछातियो एक स्टंपपर अड़ल रहबाक दृढ़ संकल्प कतेक दिन धरि निमहता हएत?
गजेन्द्र ठाकुर: कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक समर्पणमे हम लिखने रही-
पिताक सत्यकेँ लिबैत देखने रही स्थितप्रज्ञतामे
तहिये बुझने रही जे
त्याग नहि कएल होएत
रस्ता ई अछि जे जिदियाहवला।
आ ई पढ़ि गामक बहुत गोटे कानए लागल छलाह। हुनका सभकेँ बुझल छन्हि, मुदा अहाँकेँ हम यएह कहि सकै छी जे एकर निर्धारण भविष्य़ करत, अपन विषयमे बढ़ा-चढ़ा कऽ की कहू।
मुन्नाजी:किछु सम्पादक- “अहाँ हमर छापू वा हमरापर लिखू आ हम अहाँक छापब”बला नियतिपर छथि। ओ किछु चुनल-बीछल लोककेँ छपै छथि वा परिवारवादमे लेपटाएल रहै छथि। मुदा अहाँ ऐ सँ इतर सभकेँ स्थान दै छियैक- ई की सोच जाहिर करैए?
गजेन्द्र ठाकुर:मैथिलीमे समस्या रहै जे पाठक नै रहै, तेँ ओना होइ छलै। हम सभ सभकेँ स्थान दैत छिऐ तँ एहिसँ पाठक बढ़ल, मैथिली मृत होएबासँ बचि गेल। आ आब दोसरो पत्रिका सभ सभकेँ स्थान देनाइ शुरू कऽ देने छथि- कारण अभाव-भाषण जेना लेखके नै छै, दोसर जाति लिखिते नै छै, नव लोक मैथिलीमे आबिये नै रहल छै, ई सभ मिथ विदेह द्वारा ध्वस्त कऽ देल गेल छै।
मुन्नाजी:मैथिलक मानसिक अतिक्रमणसँ अहूँ अपन विचार बदलि ओहिना रहरहाम तँ नै भऽ जाएब, जेना मैथिली पत्रकारितामे आइ धरि चलि आबि रहलैए?
गजेन्द्र ठाकुर:मैथिलक मानसिक अतिक्रमण हमरापर होएत कोना? प्रतियोगितासँ, मेहनतिसँ हम दूर नै भागै छी। मैथिली पत्रकारितामे प्रतिभावान लोकक संख्या कम छलै से ओहन अतिक्रमण होएब स्वाभाविक रहै। मैथिली किएक, सभ भाषाक पत्रकारितामे/ विश्वविद्यालय शिक्षणमे भाषा विषयमे कम मार्क्समे नामांकन होइ छै, तेँ एहन अतिक्रमण बेशी होइ छै। मुदा विदेहक आगमनक बाद दोसर विषयक जेना इतिहास, भूगोल, कम्प्यूटर साइन्स, चाटर्ड एकाउन्टेन्सी, डॉक्टर आदिक संख्या मैथिली साहित्यमे बढ़ल अछि; साहित्य विषयमे सेहो प्रतिभावान लोक सभ छथि, सेहो सोझाँ आएल छथि। हमर मृत्युक बादो ई रक्तबीज सभ हमर उद्देश्यकेँ आगाँ बढ़बैत रहताह।
मुन्नाजी:ठाम-ठीम ई चर्च उठैत अछि जे अहाँ आ श्रुति प्रकाशन, व्यक्ति विशेषकेँ छपबामे अपन आर्थिक-मानसिक ऊर्जाक बेशी अंश लगा रहल छी, ताहि हेतु अहाँ की कहब?
गजेन्द्र ठाकुर:विदेहमे आइ धरि ई नै भेल अछि। हमर “प्रोविडेन्ट फन्ड आ एरियरक पाइ” आ माँक पेंशनक सीमित संसाधनक बावजूद जे मानसिक संसाधन अछि, जेना बुक डिजाइन, साइट-डिजाइन, टाइपिंग ई सभ विदेहक सम्पादक मंडल द्वारा मुफ्त उपलब्ध कराओल जाइत अछि। कोनो मैथिलीक पत्रिका वा संस्था वेबसाइट निर्मांण, पत्रिकाक रजिस्ट्रेशन आदि लेल विदेहसँ सम्पर्क केने होथि आ से हुनका नै भेटल होइन्ह, से नै भेल अछि। श्रुति प्रकाशनक मैथिली पोथीक लेल सेहो हम कैमरा-रेडी-कॉपी धरि तकनीकी सहायता दैत छियन्हि। हमर देल सलाहपर श्री जगदीश प्रसाद मण्डल जीक आठ टा किताब आ स्व. राधाकृष्ण चौधरी जीक मिथिलाक इतिहास छापल जा रहल अछि/ छापल गेल अछि, ई सभटा पोथी विदेह आर्काइवपर https://sites.google.com/a/videha.com/videha-pothi/ मुफ्त डाउनलोड लेल उपलब्ध छै, एकरा सभकेँ अहाँ पढ़ू आ स्वयं निर्णय करू जे गुणवत्ताक आधारपर ई सभ छपबा योग्य अछि वा एकर छपबाक निर्णय व्यक्ति विशेषक आधारपर कएल गेल छै। बहुत रास हमर सलाह प्रकाशक द्वारा नहियो मानल गेल, सभ संस्थाक आर्थिक संसाधनक सीमा छै। श्री जगदीश प्रसाद मण्डल आ स्व. राधाकृष्ण चौधरी जीक पाण्डुलिपि कतेको सरकारी मैथिली संस्थासँ जुड़ल पुरोधा लग गेलन्हि मुदा ओ लोकनि अपन पोथी छपेबाक जोगारमे छलथि, छपबेबो केलन्हि, भने ओकर कोनो ग्राहक/ पाठक नै होइ।
मुदा एते धरि होएबाक चाही जे गुणवत्ता आधारित पोथी सभक हजारक हजार डाउनलोडक संग प्रिंट वर्सनक पाइ दऽ कऽ किननिहार संख्या देखि ई मैथिली सरकारी-गएर सरकारी संस्था सभ आब अपन विचार बदलथि। कारण आब हम मात्र विदेहपर केन्द्रित भऽ काज कऽ रहल छी आ प्रकाशक सेहो सीमित मात्रामे पोथी प्रकाशित करबामे समर्थ छथि तेँ जे ई लोकनि आगाँ आबथि तँ विदेह आर्काइवमे अमूल्य आ ढेर रास अद्भुत रचना/ रचनाकार उपलब्ध अछि/ छथि। कैमरा रेडी कॉपी धरि बनेबाक काज हम मुफ्तमे कऽ देबन्हि।
मुन्नाजी:अहाँसँ एकटा व्यक्तिगत जीवनक पहलूसँ जुड़ल प्रश्न पूछब जे अहाँ नोकरीक संग सभसँ नियमित सम्पर्क, नियमित रचनारत रहि नियमित पत्रिकाक संचालनक अतिरिक्त पारिवारिक समन्वयन कोना कऽ पबैत छी?
गजेन्द्र ठाकुर:पत्नी प्रीति ठाकुरक सहयोग छन्हि, ओहो मैथिली चित्रकथाक चित्रकारीमे लागल रहै छथि, बच्चो सभ, ओम आ आस्था, शान्त प्रकृतिक छथि, से अतिरिक्त सुविधा प्राप्त अछि। विदेहक दूर-दूर प्रान्त देशमे बसल सम्पादक मंडलक सहयोग छन्हि, जे कतेक मेहनति करै छथि आ हुनका सभसँ कम मेहनति जे हम करी तँ हम कथीक सम्पादक। कोनो बौस्तु लेल हृदयमे अग्नि रहत तँ सभटा समन्वयन भऽ जाएत।
मुन्नाजी:एतेक काज केलाक पछातियो एखन धरि अहाँक कोनो मूल्यांकन (व्यक्तित्व आ कृतित्व दुनूक) नै भऽ सकल। अइ सँ अपनाकेँ प्रभावित तँ नै पबै छी?
गजेन्द्र ठाकुर: नै, एहिसँ हम सहमत नै छी। हमरा प्राप्त ई-पत्र आ चिट्ठी सभ, पाठकक प्रशंसापत्र, पाण्डुलिपि सभक परिरक्षणक हमर योजनाक सफलता आ भाषा-विज्ञानक हमर शोध ई सभ हमरा संतुष्टि देने अछि। खराब लोक सेहो अहाँकेँ नीक कहत से कोना सम्भव? से हमरा चाहबो नै करी। व्यक्तित्व आ कृतित्व दुनूक मूल्यांकन मैथिली की आनो भाषामे मृत्युक बादे होइ छै।
मन ऐसो निर्मल भयो जैसे गंगा नीर।
पीछे पीछे हरि फिरें कहत कबीर कबीर।।
पीछे पीछे हरि फिरें कहत कबीर कबीर।।
(कबीर)
(मोन एहन निर्मल भऽ गेल जेना ई गंगाक जल अछि। पाछाँ-पाछाँ भगवान कबीर-कबीर कहैत पछोर धेने छथि।-कबीर)
मुन्नाजी:मैथिलीमे समीक्षाक स्तर की अछि, समीक्षाक वास्तविक प्रतिरूप की अछि, आ ओ मैथिलीमे कत्तऽ अछि?
गजेन्द्र ठाकुर:मैथिली समीक्षाक समक्ष वास्तविक समस्या रहै। पहिल रहै पाठकक संख्या शून्य रहब आ दोसर रहै लेखक आ समीक्षकक एक दोसराक सर-सम्बन्धी/ दोस- महीम होएब। से एहि स्थितिमे गपाष्टक आधारित समीक्षाक चलती भेलै। मुदा आब से नै अछि। जे पुरनका समीक्षक लोकनिकेँ अपन अस्तित्व बचेबाक छन्हि आ दुर्गानन्द मंडल, शिव कुमार झा, राजदेव मंडल, धीरेन्द्र कुमार आ मारते रास राक्षसी प्रतिभा सम्पन्न समीक्षकसँ टक्कर लेबाक छन्हि तँ बिना पढ़ने समीक्षा लिखबाक आह-बाह आकि छी-छी बला विपरीत ध्रुवक समीक्षा छोड़ए पड़तन्हि।
मुन्नाजी:अन्तमे अहाँ अपन समकक्ष रचनाकर्मीकेँ कतऽ ठाढ़ देखै छी, हुनक दशा-दिशाक मादेँ की कहब?
गजेन्द्र ठाकुर:आश्चर्य लगैत अछि जे कत्तऽ ई लोकनि नुकाएल छलाह, सभ अपन सामाजिक-पारिवारिक जिम्मेदारी निमाहैत मैथिलीक लेल जतेक कऽ रहल छथि से आन भाषामे सम्भव नै छै, किछु अपवादो छथि आ से तँ रहबे करताह।
मुन्नाजी:अपनेक स्वतंत्र विचार आ एतेक समय देबा लेल बहुत-बहुत धन्यवाद।
(साभार पूर्वोत्तर मैथिल www.purvottarmaithil.org )
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