युवा पीढ़ीक दृष्टि फरीछ निश्शन विहनि कथाकार एवं निबन्धकार श्री मिथिलेश कुमार झासँ हुनक साहित्यिक यात्रा मादेँ मुन्नाजीक भेल गप्प सप्पक मुख्य अंशकेँ अहाँ सबहक सोझाँ राखल जा रहल अछि।
मुन्नाजी- अहाँ सक्रियताक संग मैथिली विहनि कथाकेँ अपन रचनाक आदर्श मानि रचनारत छी, कहू जे अपन साहित्यिक रचनाक प्रारम्भ कोना कएल?
मिथिलेश कुमार झा- सतमामे पढ़ैत रही । हिन्दी सहित्यक कोनो कविताक अंतमे प्रश्नमालाक बाद भाषा-विस्तारक गतिविधिमे एकटा शीर्षक देल रहै-‘आँधी आई-आँधी आई ’ आ ताहिपर कविता बनेबाक रहै। ततहिसँ हमर साहित्यिक रचनाक आरम्भ अछि। नवम-दशममे आबि मातृभाषाक रूपमे मैथिली रखलहुँ आ रचनाक भाषा स्वभावत: मैथिली भऽ गेल ।
मुन्नाजी- अहाँ विहनि कथाक अतिरिक्त सुन्दर बाल साहित्य सृजन आ निबन्ध लेखन करैत छी। सभसँ बेशी संतुष्टि कोनो विधाक कोन प्रकारक रचनासँ भेटैछ?
मिथिलेश कुमार झा- कोनहु रचनाकारकेँ संतुष्टि तखन भैटै छै जखन ओ अपन मोनक बात ठीक-ठीक अपन रचनामे कहबामे सफल भऽ जाइत अछि आ ओहि बातकेँ पाठक ठीक ओही रूपमे बुझि जाइत छैक । विधाक बात कही तँ हमरा बुझने भिन्न-भिन्न बातक हेतु भिन्न-भिन्न विधाक खगता होइत छै । सभटा बात एकहि टा विधामे कहब मोसकिल। तैं, कोन विधा हमरा संतुष्टि दैए से कहब कठिन । हँ तखन , कविता हमर प्रिय विधा अवस्स थिक । ओना हम बहुत कम कविता लिखि पबैत छी।
मुन्नाजी- अहाँ वर्तमानमे बांग्ला परिवेशमे गुजर कऽ रहल छी, तँ कहू जे बांग्ला मध्य मैथिलीक की अस्तित्व लगैछ, दुनूमे की घटी बढ़ी देखाइछ?
मिथिलेश कुमार झा- मैथिली आ बांग्ला दुनू बहिनि थिकीह । पहिने बंगलाकेँ मैथिलीसँ प्राण भेटल छलै । एखन मैथिलीकेँ बंगलासँ प्रेरणा भेटै छै । सम्प्रति रचनाक मात्राक स्तर पर , पाठकक संख्याक स्तरपर , पत्र-पत्रिकाक संख्याक स्तरपर , मातृभाषाक हेतु समर्पित व्याक्तिक संख्याक स्तरपर बंगला मैथिलीसँ बड्ड बेसी आगाँ ठाढ़ अछि। बंगभाषी आनहु ठाम बसि गेने अपन भाषा नहि छोड़ैत अछि। मैथिलीभाषी अपनहु घरमे हिन्दी छकरै छथि। भाई , कतेक कहब…. बड़ अन्तर छै ।
मुन्नाजी- अहाँ अपन एकान्त सृजनमे सृजनरत छी, जखन की मैथिली साहित्य मध्य समूहबाजी डेग-डेगपर देखा पड़ैछ। एनामे अहाँक एतेक निश्शन रचना देबाक पछातियो साहित्यपट सँ हेरा जेबाक वा वेरा देबाक सम्भावनाक शंका नै देखाइए?
मिथिलेश कुमार झा- हमरा ने तँ गोलैसी करऽ अबैत अछि आ नै ओइमे विश्वास अछि। एकटा सुच्चा रचनाकारकेँ अपन रचनाकर्मसँ सरोकार राखक चाही सन्तकेँ सन्त कहक चाही-बस्स। हेरा जेबाक किंवा वेरा देल जेबाक मादें कोनो शंका हमरा नहि अछि । किएक तँ जे सुच्चा लोक छथि से तँ एना नहिए टा करताह । आ जे गोलैसी केनिहार आ तबेदारी प्रकृतिक स्वार्थी लोक छथि से ककरो नहि, कोन गड़े कखन केम्हर बैसताह से बूझब ब्रह्मो लेल असंभव । तैँ हुनकर चिंता बेकार !
मुन्नाजी- महानगरक व्यस्त जिनगी मध्य अहाँक सोच सामाजिक उकस-पाकसकेँ बड्ड गहींरसँ नापि सृजन करबामे सफल होइत देखार भेल अछि। एकर कोनो विशेष मूल-मंत्र तँ नै अछि।
मिथिलेश कुमार झा- महानगरमे रहितो हमर आत्मा गामेमे बसैए । संगहि जीवन-संघर्ष आ सामाजिक सरोकारक अनेक तीत-मीठक अनुभवकेँ हमर मूल-मंत्र अहाँ कहि सकैत छिऐ।
मुन्नाजी- अहाँ पत्रकारितामे सेहो अपनाकेँ अजमेलौं मुदा आब ओइसँ विमुखता देखाइछ, ओकर की मूल कारण अछि?
मिथिलेश कुमार झा- हम पत्रकारितामे अपनाकेँ एखनहु अजमा रहल छी । के कहलक जे हम ओइसँ विमुख भऽ गेलहुँ ? ‘मिथिला चैम्बरक सनेस’, ‘श्री मिथिला’, ‘मिथिला समाद’, मिथिला दर्शन’, ‘कर्णामृत’ आदि मैथिलीक पत्र-पत्रिकामे हमर आलेख आ रिपोर्ट सभ पत्रकारिता नहि तँ आर की थिक? हँ , तखन वृत्तिक रूपमे सहायक संपादक , रिपोर्टर आदि क्षेत्रमे (हिन्दी पत्रकारितामे) हम फिट नहि भऽ सकलहुँ । श्री संतोष सिंह झा हमरा गौहाटी बजेबो केलाह तँ कतिपय कारणे हम नहि जा सकलहुँ , से बात फराक ।
मुन्नाजी-मैथिली पत्रकारिताक वर्तमान दशा आ भविष्यक दिशा अहाँक नजरिमे केहेन देखाइछ?
मिथिलेश कुमार झा- मैथिलीमे साहित्यिक पत्रिका सभक संगहि ‘समय-साल’ सन समाचार केन्द्रित पत्रिका आ ‘मिथिला दर्शन’ सन पारिवारिक पत्रिका बहार भऽ रहलए । किंतु , बहुत रास रुचि ओ विषय छैक जाहिपर पत्रिका बहार कएल जेबाक चाही –से धरि कोना हो , विचारणीय। सर्वाधिक आवश्यक बाल-पत्रिका अछि जे नहि बहार भऽ रहल अछि । माने, पत्रिकाक स्तरपर पत्रकारिता एक-भगाह अछि । दैनिक पत्रक नाम पर ‘मिथिला समाद’ निकलि तँ रहलए अवस्स उदा मजगूत नहि भऽ सकलए । सभ मिला कऽ मैथिली पत्रकारिताक वर्तमान संतोषजनक नहि कहल जाए । तखन, एकर भविष्यक प्रति आशा राखि सकैत छी ।
मुन्नाजी- मैथिली विहनि कथा (लघुकथा)पर वर्तमान क्रियाकलापेँ एकर वर्तमान आ भविष्य केहेन देखा पड़ैछ। एकरा फरीछ हेबा लेल आओर की सभ कमी देखाइछ?
मिथिलेश कुमार झा- मैथिली विहनिकथाक मोजर आरंभ भऽ गेल अछि । वर्तमानमे ई विधा जड़ि जमा लेलक अछि । एकर भविष्य खूब नीक छै आ ई सर्वाधिक पढ़ल जाएबला साहित्यिक विधि बनि जाएत से हमरा पूर्ण विश्वास अछि । एहि विधाकेँ आओर लोकप्रिय बनेबाक लेल आ निस्सन करबाक लेल रचनाकार लोकनिकेँ सचेत भऽ कऽ मेहनति करक चाहियनि। एकर एक-एकटा शब्दक अपन ओजन होइत छैक, तैं धरफरा कऽ विहनि कथा नहि लिखल जेबाक चाही । धरफरी मे रचना कएने ई चुटुक्का बनि जा सकैछ आकि निंगहेस भऽ फेका जा सकैछ।
मुन्नाजी- विहनि कथापर पूर्वक पीढ़ी (पुरान आ मध्य) द्वारा कएल गेल काजकेँ अहाँ कोन रूपेँ मूल्यांकन करब। ओकर निरन्तरतामे नवका पीढ़ीक योगदानकेँ कोना सोझाँ आनऽ चाहब?
मिथिलेश कुमार झा- विहनि कथापर पुरनका पीढ़ी जे काज कएलनि से आरंभिक काज छलै। ओ लोकनि न्यो तैयार कएलनि, दाबा जतलनि आ ताहिपर नवका पीढ़ी देबाल ठाढ़ कऽ रहल छथि। आबऽ बला खाढ़ी ओइपर महल बनाओत । पुरनका पीढ़ीक समय आ परिवेशसँ एखनुका पीढ़ीक समय आ परिवेशमे बेस अन्तर एलैए। आ तै’, ई अन्तर विहनिकथाक कथ्यक विविधताक रूपमे सोझाँ देखार भऽ रहलए । एना कही जे एखन एकर कथ्य ओ शैलीमे स्वाभाविक रूपें नवीनता ओ विविधता एलैए । जीवन ओ अनुभवक प्रत्येक क्षेत्रमे हुलकी दैत सन लगैए वर्तमानक विहानिकथा।
मुन्नाजी- मैथिली बाल साहित्यक स्थिति केहेन देखाइछ। अकादेमी द्वारा बाल साहित्यक घोषणासँ एकर भविष्य कतेक प्रभावित हएत (घटी-बढ़ी दुनू दृष्टिएँ)?
मिथिलेश कुमार झा- मैथिली बाल साहित्यक स्थिति दयनीय ओ चिंतनीय अछि। तथापि एहि क्षेत्रमे ऋषि वशिष्ठ, महाकान्त ठाकुर, जीवकान्त, अनमोल जी, वियोगी जी आदि नीक काज कऽ रहलाहेँ। बाल-साहित्यक क्षेत्रमे हम अपनहुँ सचेष्ट रहैत छी। आर अधिक प्रयासक बेगरता अछि। साहित्य अकादेमी द्वारा बाल साहित्य पुरस्कारक घोषणासँ बाल साहित्यकार प्रोत्साहित होएताह। पोथी सभ प्रकाशित होएत। बाल साहित्यक मोजर बढ़त । बाल साहित्यक रचनाकार अपनाकेँ अबडेरल नहि बुझताह । किंतु ,पुरस्कारक लोभमे बाल साहित्यक नामपर अँकटा-मिसिया ने छपय लागय से चिंता स्वाभाविक रूपें उभरि आयल अछि । एहि हेतु सभ गोटे सतर्क रही ।
मिथिलेश कुमार झा 1970-
पिता- श्री विश्वनाथ झा, जन्म-12-01-1970 केँ मनपौर(मातृक) मे पैतृक-ग्राम-जगति, पो*-बेनीपट्टी,जिला-मधुबनी, मिथिला, पिन*- 847223 शिक्षा :प्राथमिक धरि- गामहिक विद्यालय मे। मध्य विद्यालय धरि- मध्य विद्यालय, बेनीपट्टी सँ। माध्यमिक धरि- श्री लीलाधर उच्च विद्यालय,बेनीपट्टीसँ इतिहास-प्रतिष्ठाक संग स्नातक-कालिदास विद्यापति साइंस काँलेज उच्चैठ सँ, पत्रकारिता मे डिप्लोमा-पत्रकारिता महाविद्यालय(पत्राचार माध्यम) दिल्ली सँ, कम्प्युटर मे डी.टी.पी ओ बेसिक ज्ञान। रचना: कविता, गजल, बाल कविता, बाल कथा,साहित्यिक ओ गैर-साहित्यिक निबंध, ललित निबंध, साक्षात्कार, रिपोर्ताज, फीचर आदि।
(साभार विदेह www.videha.co.in )
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