राजमोहन झासँ गजेन्द्र ठाकुरक साक्षात्कार
गजेन्द्र ठाकुर:मैथिलीक जन सामान्यसँ दूर भऽ मैथिली साहित्यकार सभ मैथिलीकेँ प्रदर्शनक वस्तु बना देलखिन्ह, साहित्यसँ लोक किएक दूर होइत गेल?
राजमोहन झा:एहि लेल अहाँ साहित्यकारकेँ कोना दोषी कहैत छियन्हि?
गजेन्द्र ठाकुर:ओ साहित्य धरि सीमित रहलाह? समाजसँ कोनो मतलब नहि रहलन्हि? अपन लिखलथि आ गोष्ठी आ कवि सम्मेलन धरि सीमित रहलाह? गाम-घर छोड़ि देलन्हि। मैथिली साहित्यकार समाज आ राजनीतिसँ दूर रहलाह। फैशन जेकाँ साहित्य लिखल गेलै, पढ़ल गेलै आ सुनल गेलै?
राजमोहन झा:से तँ आब भऽ रहल छै। पहिनुका साहित्यकार तँ एना नञि करथि।
गजेन्द्र ठाकुर: एकटा हरिमोहन झाकेँ छोड़ि कऽ गाममे लोक कोनो दोसरक रचनाकेँ नहि पढ़ने-सुनने छथि। मिथिला मिहिर गाम-गाम जाइत छलै , बन्द भऽ गेलै, । हरिमोहन झाकेँ छोड़ि कऽ गामक लोक कोनो दोसर साहित्यकारक नामो नहि सुनने छथि। दोसर साहित्यकार हरिमोहन झा जेकाँ काज किएक नहि कऽ सकलाह?
राजमोहन झा:ई तँ एकटा मिस्ट्री जेकाँ छैक। हरिमोहन झाक साहित्य एतेक पोपुलर कोन कारणसँ भेलन्हि आ दोसर साहित्यकारक किएक नहि भेलन्हि। ओ गुण दोसर साहित्यकार सभमे किएक नहि अओलन्हि। एकर ओनो रेडीमेड सोल्युशन नहि भेटल अछि। जखन कि हरिमोहन झाक साहित्यक सेहो आलोचना होइत छैक जे साहित्यमे जै समाजकेँ ओ पेन्ट केलन्हि से सम्पूर्ण समाज नहि छै।एकटा विशेष वर्गकेँ लऽ कए ओ साहित्य रचलन्हि। दलित समाज हुनकर साहित्यसँ वंचिते जेकाँ छन्हि। तकर बावजूद एतेक पोपुलर कोना रहथि आ छथि से एखनो धरि नीक जेकाँ एक्सप्लेन नहि भेल छैक। कहल जाइत छैक जे हुनके साहित्यसँ पाठक वर्ग तैयार भेलैक पाठक रूप मे जे वर्ग एग्जिसटेन्समे आएल से हुनके साहित्यसँ।
गजेन्द्र ठाकुर:साहित्य उद्देश्यपूर्ण होएबाक चाही वा एकर उद्देश्य मात्र मनोरंजन होएबाक चाही।
राजमोहन झा:सैह सेल्फ एनेलाइज करबाक छै। मनोरंजन तँ रहबाके चाही नहि तँ क्यो पढ़बे नहि करत मुदा अन्तिम उद्देश्य मनोरंजन नहि होएबाक चाही। विभिन्न स्तरक लोकक लेल विभिन्न स्तरक साहित्य, जकर जे आवश्यकता छै तकर पूर्ति होएबाक चाही।
गजेन्द्र ठाकुर:बेर-बेर सुनबामे आबए छै जे मैथिली भाषा मरि रहल अछि। माइग्रेशन नीक चीज छियैक मुदा एक जेनेरेशनमे जाहि समाजक नब्बे प्रतिशत जनसंख्या माइग्रेट कए गेल ओहिमे तँ एहि प्रकारक वस्तु तँ अवश्य आएत। भारतसँ बाहर जे जाइत छथि हुनकर भाषा अंग्रेजी आ जे भारतमे दोसर ठाम जाइत छथि अदहा गोटे हिन्दी बाजए लगैत छथि।
राजमोहन झा:लोक मे भाषा प्रेम घटल अछि। पहिने ई नहि रहैक।लोक मैथिली छोड़ि रहल अछि।
गजेन्द्र ठाकुर: ई भारतक मैथिली भाषी प्रदेशक विषयमे तँ सत्य अछि मुदा नेपालमे हिन्दी विरोधक कारण अप्रत्यक्ष रूपसँ मैथिलीकेँ लाभ भेल छै।
राजमोहन झा:भारतमे स्थिति खराप छै।पहिलुका लोक जेना समर्पण आब लोकमे नहि छै।
गजेन्द्र ठाकुर:बबुआ जी झा “अज्ञात”केँ साहित्य अकादमी पुरस्कार देबाक अहाँ विरोध कएने रहियन्हि...
राजमोहन झा:हम विरोध नहि कएने रहियन्हि। दिल्लीमे आन-आन सभ कएने रहथि।
गजेन्द्र ठाकुर:आरम्भक तीसम अंकमे अहाँक सामूहिक वक्तव्य आएल छल। ओहिमे २००१क साहित्य अकादमी पुरस्कार बबुआजी झा “अज्ञात”क “प्रतिज्ञा पाण्डव” आ अनुवाद पुरस्कार सुरेश्वर झाकेँ देल जएबाक विरोध भेल छल। आरम्भ तँ आब लगैए बन्द भऽ गेल अछि।
राजमोहन झा:हँ।.....आरम्भ बन्द नहि भेल अछि स्थगित अछि।
गजेन्द्र ठाकुर:भालचन्द्र झाक “बीछल बेराएल मराठी”एकांकी जे मूलभाषासँ सोझे अनूदित छल, सुभाष चन्द्र यादव जीक बिहाड़ि आउ (बंगला सँ मैथिली अनुवाद) सेहो एहि तरहक सोझे अनूदित कृति छल तकरा पुरस्कार नहि भेटल। ओहि समय मे कोनो विरोध नहि भेल। मुदा अनचोक्के सभ क्यो बबुआजी झा “अज्ञात”क पाछाँ पड़ि जाइ गेलाह, हुनका बिनु पढ़ने ककरो इशारापर आ क्षुद्र उद्देश्य पूर्तिक लेल तँ ई नहि कएल गेल? जखन कि मूल समस्या मैथिलीक अछिये, पाठक शून्यता आ साहित्यक जनसँ दूर होएब आ भाषाक मृत होएबाक खतरा, तकर विरोध किएक नहि कहियो भेल?
राजमोहन झा:शैलेन्द्र कुमार झाक अनूदित संस्कार सेहो सोझे अनुवाद छल तकरो पुरस्कार नहि भेटलैक। विरोध तँ होइत अछि, मुदा लोक परवाह नहि करैत छथि।
गजेन्द्र ठाकुर:तकर कारण पाठकक कमी तँ नहि अछि? जूरी आ साहित्यकारो जखन दोसराक अनूदित आ लिखित रचनाकेँ नहि पढ़ैत छथि? सिद्धार्थ राईक नेपाली कविता संग्रहक मैथिली अनुवाद “ओ लोकनि जे नहि घुरलाह” मेनका मल्लिक द्वारा कएल गेल, २००६ ई. मे प्रकाशित भेल, मनप्रसाद सुब्बाक नेपाली कविता संग्रहक अनुवाद“अक्षर आर्केष्ट्रा” नामसँ प्रदीप बिहारी कएलन्हि, ई २००७ ई.मे प्रकाशित भेल। मुदा जे जूरी एहि पोथी सभकेँ देखबे नहि करताह तँ फेर अपन लगुआ-भिरुआकेँ अनुवाद पुरस्कार दिअओताह, भने सोझे कएल अनुवाद रहए वा नहि। ओना अकादमी द्वारा२००७ मे अनन्त बिहारी लाल दास “इन्दु” (युद्ध आ योद्धा-अगम सिंह गिरि, नेपाली) केँ अनुवाद पुरस्कार देबाक प्रशंसा होएबाक चाही। मुदा चयन प्रक्रियामे नीक चीजक निरन्तरता किएक नहि रहैत अछि?
राजमोहन झा:नञि विरोध तँ होइत रहैत छैक, होएबाक चाही। सोझे अनुवाद कएल पोथी पुरस्कारक पात्र अछि।
गजेन्द्र ठाकुर:मुदा जूरीमे तँ सभटा पुरने लोक सभ छथि । पुरना लोकमे पहिल कथा, पहिल कविता, पहिल नाटक, पहिल पत्र-पत्रिका आदिक उपधि लेल घमासान होइत रहैत अछि। कोनो पत्र-पत्रिका जे छपलक सएह पढ़लक ताहिसँ कोनो मतलब नहि। पुरना लोकमे अहाँक हिसाबे भाषा प्रेम बेशी रहए।
राजमोहन झा:नञि एहि तरहक जूरीक विरोध होइत रहल छैक। आइ काल्हिक साहित्यकारमे गुटबन्दी बेशी भेल अछि। पहिने नहि रहए।
गजेन्द्र ठाकुर:एहि बेर फ्रेंच भाषाक जीन मेरी गुस्ताव ली क्लाजियोकेँ नोबल पुरस्कार भेटलन्हि। मेरिकाक न्यू जर्सीक फिलिप रॉथ पिछड़ि गेलाह। कहल गेल जे अमेरिकामे जे आत्ममुग्धताक स्थिति अछि ताहि कारणसँ ओतए अनुवादपर ध्यान नहि देल जाइत अछि आ ताहि कारणसँ ओकर साहित्य पाछाँ भए गेल अछि। ई आत्ममुग्धता मैथिलीक सम्दर्भमे कतेक अछि।
राजमोहन झा:टांशलेशन तँ बहुत जरूरी छैक। तखने तँ कम्पेरीजन कए सकब।जीवनानुभवसँ लोक लिखैत अछि, जरूरी छै, तकरा अनुवाद आर विस्तार प्रदान करत।
(साभार विदेह www.videha.co.in )
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