Tuesday, October 4, 2011

स्व.रामाश्रय झा “रामरंग” (१९२८- २००९) रामरंगजीसँ गजेन्द्र ठाकुरक गप शप। (६ जुलाई २००८)


रामाश्रय झा “रामंरग” (१९२८- ) विद्वान, वागयकार, शिक्षक आ मंच सम्पादक छथि।
रामरंगजीसँ गप शप। (६ जुलाई २००८)

गजेन्द्र ठाकुर: गोर लगैत छी। स्वास्थ्य केहन अछि।
रामरंग: ८० बरख पार केलहुँ। संगीतमे बहटरल रहैत छी।
गजेन्द्र ठाकुर: संगीतक तँ अपन फराक भाषा होइत छैक। मैथिली संगीत विद्यापति आऽ लोचन सँ शुरू भए अहाँ धरि अबैत अछि। मैथिलीमे अहाँ लिखनहिओ छी।
रामरंग: अपन मिथिलासँ सम्बन्धित हम तीन रागक रचना केलहुँ अछि, जकर नाम ऐ प्रकारसँ अच्हि।
१.राग तीरभुक्ति, राग विद्यापति कल्याण तथा राग वैदेही भैरव। ऐ तीनू रागमेसँ तीरभुक्ति आर विद्यापति कल्याणमे मैथिली भाषामे खयाल बनल अछि। हमर संगीत रामायणक बालकाण्डमे रागभूपाली आर बिलावलमे सेहो मैथिली भाषामे खयाल छैक। आर सन्गीत रामायणक पृष्ठ ३ पर बिलावलमे श्री गणेशजीक वन्दना तथा पृष्ठ २० पर राग भूपालीमे श्री शंकरजीक वन्दना अछि। पृष्ठ ८७ पर राग तीरभुक्तिमे मिथिला प्रदेशक वन्दना अछि आर पृष्ठ १२० पर राग वैदेही भैरवक (हिन्दीमे) रचना अछि। “अभिनव गीताञ्जलीक पंचम भागमे २६५ आर २६६ पृष्ठ पर विद्यापति कल्याण रागमे विलम्बित एवं द्रुत खयाल मैथिली भाषामे अछि। मिथिला आऽ मैथिलीमे हम उपरोक्त सामग्री बनओने छी।

गजेन्द्र ठाकुर: मुदा पूर्ण रागशास्त्र विद्यापति कल्याणक, तीरभुक्तिक वा वैदेही भैरवक नञि अछि। मैथिलीमे आरो रचना अहाँ...
रामरंग: बहुत रचना मोन अछि, मुदा के सीखत आऽ के लीखत। हाथ थरथराइत अछि आब हमर।
गजेन्द्र ठाकुर: कमसँ कम ओहि तीनू रागक रचना शास्त्र लिखि दैतियैक तँ हम पुस्तकाकार छापि सकितहुँ।
रामरंग: जे रचना सभ हम देने छी ओकरा छापि दिऔक। हाथ थरथराइत अछि , तैयो हम तीनूक विस्ट्रुत विवरण पठायब, लिखैत छी।
गजेन्द्र ठाकुर: प्रणाम।
रामरंग: निकेना रहू।
रामाश्रय झा “रामरग” (१९२८- ) विद्वान, वागयकार, शिक्षक आऽ मंच सम्पादक छथि।
राग विद्यापति कल्याण- एकताल (विलम्बित)

मैथिली भाषामे श्री रामाश्रय झा “रामरंग” केर रचना।
स्थाई- कतेक कहब गुण अहांके सुवन गणेश विद्यापति विद्या गुण निधान।
अन्तरा- मिथिला कोकिला किर्ति पताका “रामरंग” अहां शिव भगत सुजान॥

स्थायी
- - रेग॒म॑प ग॒रेसा
ऽऽ क ते ऽऽ क क ऽ

रे सा (सा) नि॒ध निसा – रे नि॒ध प धनि सा सारे ग॒रे रेग॒म॑ओअ - म॑
ह ब ऽ ऽ ऽ गु न ऽ अ हां, ऽऽ के ऽ ऽ सुव नऽ ऽऽऽऽ ऽ ग

प प धनि॒ धप धनिसां - - रें सां नि धप (प)ग॒ रे सा रे ग॒म॑प ग॒ रेसा
ने स विऽ द्याप ति ऽऽ ऽ ऽवि द्या गुन निधा न, क ते ऽऽऽ क, कऽ

अन्तरा

पप नि॒ध निसां सांरें
मिथि लाऽ ऽऽ कोकि

सां – निसांरेंगं॒ रें सां रें नि सांरे नि॒ धप प (प) ग॒ रेसा
लाऽ की ऽऽऽ ति प ता ऽ ऽऽ का ऽऽ रा म रं ग अ

रे सासा धनि॒प ध निसा -सा रे ग॒म॑प -ग॒ सारे सा,सा रेग॒म॑प ग॒, रेसा
हां शिव भऽ, ग तऽ ऽसु जाऽऽऽ ऽ ऽ न ऽ, क ते ऽऽऽ क,कऽ

*गंधार कोमल, मध्यम तीव्र, निषाद दुनू आऽ अन्य स्वर शुद्ध।
रामाश्रय झा “रामरग” (१९२८- ) विद्वान, वागयकार, शिक्षक आऽ मंच सम्पादक छथि।
राग विद्यापति कल्याण- एकताल (विलम्बित)

मैथिली भाषामे श्री रामाश्रय झा “रामरंग” केर रचना।
स्थाई- कतेक कहब गुण अहांके सुवन गणेश विद्यापति विद्या गुण निधान।
अन्तरा- मिथिला कोकिला किर्ति पताका “रामरंग” अहां शिव भगत सुजान॥

स्थायी
- - रेग॒म॑प ग॒रेसा
ऽऽ क ते ऽऽ क क ऽ

रे सा (सा) नि॒ध निसा – रे नि॒ध प धनि सा सारे ग॒रे रेग॒म॑ओअ - म॑
ह ब ऽ ऽ ऽ गु न ऽ अ हां, ऽऽ के ऽ ऽ सुव नऽ ऽऽऽऽ ऽ ग

प प धनि॒ धप धनिसां - - रें सां नि धप (प)ग॒ रे सा रे ग॒म॑प ग॒ रेसा
ने स विऽ द्याप ति ऽऽ ऽ ऽवि द्या गुन निधा न, क ते ऽऽऽ क, कऽ

अन्तरा

पप नि॒ध निसां सांरें
मिथि लाऽ ऽऽ कोकि

सां – निसांरेंगं॒ रें सां रें नि सांरे नि॒ धप प (प) ग॒ रेसा
लाऽ की ऽऽऽ ति प ता ऽ ऽऽ का ऽऽ रा म रं ग अ

रे सासा धनि॒प ध निसा -सा रे ग॒म॑प -ग॒ सारे सा,सा रेग॒म॑प ग॒, रेसा
हां शिव भऽ, ग तऽ ऽसु जाऽऽऽ ऽ ऽ न ऽ, क ते ऽऽऽ क,कऽ

रामाश्रय झा “रामरग” (१९२८- ) विद्वान, वागयकार, शिक्षक आऽ मंच सम्पादक छथि।
२.राग विद्यापति कल्याण – त्रिताल (मध्य लय)

स्थाई- भगति वश भेला शिव जिनका घर एला शिव, डमरु त्रिशूल बसहा बिसरि उगना भेष करथि चाकरी।
अन्तरा- जननी जनक धन, “रामरंग” पावल पूत एहन, मिथिलाक केलन्हि ऊँच पागड़ी॥

स्थाई- रे
सा गम॑ प म॑ प - - म॑ग॒ - रे सा सारे नि सा -, नि
ग तिऽऽ व श ऽ ऽ भे ऽ ला ऽ शि ऽ व ऽ ऽ जि

ध़ नि सा रे सा नि॒ – प़ ध़ नि॒ ध़ प़ – नि सा - - सा
न का ऽ घ र ऽ ऽ ए ऽ ला ऽ शि व ऽ ऽ ड

रे ग॒ म॑ प प – प नि॒ ध प म॑ प धनि सां सां गं॒
म रु ऽ त्रि शू ऽ ल ब स हा ऽ बि सऽ ऽऽ रि उ

रें सां नि रें सां नि॒ ध प म॑ प पनि॒ ध प - -ग -- रे
ग ना ऽ ऽ भे ऽ ष क र थि चाऽ ऽ कऽ ऽरी ऽऽ, भ

अन्तरा प

प नि सां सां सां - - ध नि - ध नि नि सां रें सां -, नि
न नी ऽ ज न ऽ ऽ ऽ ऽ क ध न ध न ऽ, रा

नि सां – गं॒ रें सां सां नि – ध नि सां नि॒ ध प ग॒

म॑ प नि सां सां नि॒ ध प म॑ प पनि॒ ध प- -ग – रे
थि ला ऽ क के ल न्हि ऊँ ऽ च पाऽऽ गऽ ऽड़ी ऽऽ,भ
***गंधार कोमल, मध्यम तीव्र, निषाद दोनों व अन्य स्वर शुद्ध।

राग विद्यापति कल्याण- एकताल (विलम्बित)

मैथिली भाषामे श्री रामाश्रय झा “रामरंग” केर रचना।
स्थाई- कतेक कहब गुण अहांके सुवन गणेश विद्यापति विद्या गुण निधान।
अन्तरा- मिथिला कोकिला किर्ति पताका “रामरंग” अहां शिव भगत सुजान॥

स्थायी
- - रेग॒म॑प ग॒रेसा
ऽऽ क ते ऽऽ क क ऽ

रे सा (सा) नि॒ध निसा – रे नि॒ध प धनि सा सारे ग॒रे रेग॒म॑ओअ - म॑
ह ब ऽ ऽ ऽ गु न ऽ अ हां, ऽऽ के ऽ ऽ सुव नऽ ऽऽऽऽ ऽ ग

प प धनि॒ धप धनिसां - - रें सां नि धप (प)ग॒ रे सा रे ग॒म॑प ग॒ रेसा
ने स विऽ द्याप ति ऽऽ ऽ ऽवि द्या गुन निधा न, क ते ऽऽऽ क, कऽ

अन्तरा

पप नि॒ध निसां सांरें
मिथि लाऽ ऽऽ कोकि

सां – निसांरेंगं॒ रें सां रें नि सांरे नि॒ धप प (प) ग॒ रेसा
लाऽ की ऽऽऽ ति प ता ऽ ऽऽ का ऽऽ रा म रं ग अ

रे सासा धनि॒प ध निसा -सा रे ग॒म॑प -ग॒ सारे सा,सा रेग॒म॑प ग॒, रेसा
हां शिव भऽ, ग तऽ ऽसु जाऽऽऽ ऽ ऽ न ऽ, क ते ऽऽऽ क,कऽ

*गंधार कोमल, मध्यम तीव्र, निषाद दुनू आऽ अन्य स्वर शुद्ध।

३.श्री गणेश जीक वन्दना
राग बिलावल त्रिताल (मध्य लय)
स्थाई: विघन हरन गज बदन दया करु, हरु हमर दुःख-ताप-संताप।
अन्तरा: कतेक कहब हम अपन अवगुन, अधम आयल “रामरंग” अहाँ शरण।
आशुतोष सुत गण नायक बरदायक, सब विधि टारु पाप।

स्थाई
नि
ग प ध नि सा नि ध प ध नि॒ ध प म ग म रे
वि ध न ह र न ग ज ब द न द या ऽ क रु

ग ग म नि॒ ध प म ग ग प म ग म रे स सा
ग रु ऽ ह म र दु ख ता ऽ प सं ता ऽ प ऽ

अन्तरा
नि रें
प प ध नि सां सां सां सां सां गं गं मं गं रें सां –
क ते क क ह ब ह म अ प न अ व गु न ऽ
रे
सां सां सां सां ध नि॒ ध प ध ग प म ग ग प प
अ ध म आ य ल रा म रे ऽ ग अ हां श र ण

ध प म ग म रे सा सा सा सा ध - ध नि॒ ध प
आ ऽ शु तो ऽ ष सु त ग ण ना ऽ य क व र
धनि संरें नि सां ध नि॒ ध प पध नि॒ ध प म ग म रे
दाऽ ऽऽ य क स ब बि ध टाऽ ऽ रु ऽ पा ऽ ऽ प

४.मिथिलाक वन्दना
राग तीरभुक्ति झपताल

स्थाई: गंग बागमती कोशी के जहँ धार, एहेन भूमि कय नमन करूँ बार-बार।
अन्तरा: जनक याग्यवल्क जहँ सन्त विद्वान, “रामरंग” जय मिथिला नमन तोहे बार-बार॥

स्थाई

रे – ग म प म ग रे – सा
गं ऽ ग ऽ बा ऽ ग म ऽ ती

सा नि ध़ – प़ नि नि सा रे सा
को ऽ शी ऽ के ज हं धा ऽ र

सा
म ग रेग रे प ध म पनि सां सां
ए हे नऽ ऽ भू ऽ मि कऽ ऽ य

सां नि प ध (ध) म ग रे सा सा
न म न क रुँ बा ऽ र बा र

अन्तरा
प पध म – प नि नि सां – सां
ज नऽ क ऽ ऽ या ग्य व ऽ ल्क

रें रें गं – मं मं गं रें – सां
ज हं सं ऽ त वि ऽ द्वा ऽ न
ध प
सां नि प ध म प नि सां सां सां
रा म रं ऽ ग ज य मि थि ला
सां नि प ध (ध) म ग रे सा सा
न म न तो हे बा ऽ र बा र
५.श्री शंकर जीक वन्दना
राग भूपाली त्रिताल (मध्य लय)

स्थाई: कतेक कहब दुःख अहाँ कय अपन शिव अहूँ रहब चुप साधि।
अन्तरा: चिंता विथा तरह तरह क अछि, तन लागल अछि व्याधि,
“रामरंग” कोन कोन गनब सब एक सय एक असाध्य॥

स्थाई
प ग ध प ग रे स रे स ध सा रे ग रे ग ग
क ते क क ह ब दुः ख अ हाँ कय अ प न शि व

ग ग – रे ग प ध सां पध सां ध प ग रे सा –
अ हूँ ऽ र ह ब चु प साऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ धि ऽ

अन्तरा

प ग प ध सां सां – सां सां ध सां सां सां रें सां सां
चिं ऽ ता ऽ वि था ऽ त र ह त र ह क अ छि

सां सां ध - सां सां रें रें सं रे गं रें सां – ध प
त न ला ऽ ग ल अ छि व्या ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ धि ऽ

सां – ध प ग रे स रे सा ध स रे ग रे ग ग
रा ऽ म रं ऽ ग को न को ऽ न ग न ब स ब

ग ग ग रे ग प ध सां पध सां ध प ग रे सा –
ए क स य ए ऽ क अ साऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ध्य ऽ

श्री रामाश्रय झा ’रामरंग’

भारतीय शास्त्रीय संगीतक समर्पित आऽ विलक्षण ओऽ विख्यात संगीतज्ञ पं रामाश्रय झा ’रामरंग’ केर जन्म ११ अगस्त १९२८ ई. तदनुसारभाद्र कृष्णपक्ष एकादशी तिथिकेँ मधुबनी जिलान्तर्गत खजुरा नामक गाममे भेलन्हि। हिनकर पिताक नाम पं सुखदेव झा आऽ काकाक नाम पं मधुसदन झा छन्हि। रामाश्रयजीक संगीत शिक्षा हिनका दुनू गोटेसँ हारमोनियम आऽ गायनक रूपमे मात्र ५ वर्षक आयुमे शुरू भए गेलन्हि। तकरा बाद श्री अवध पाठकजीसँ गायनक शिक्षा भेटलन्हि।
१५ वर्ष धरि बनारसक एकटा प्रसिद्ध नाटक कम्पनीमे रामाश्रय झा जी कम्पोजरक रूपमे कार्य कएलन्हि। पं भोलानाथ भट्ट जी सँ २५ वर्ष धरि ध्रुवपद, धमार, खयाल, ठुमरी, दादरा, टप्पा शैली सभक विधिवत शिक्षा लेलन्हि।
पं भट्ट जीक अतिरिक्त्त रामाश्रय झा जी पं बी.एन. ठकार (प्रयाग), उस्ताद हबीब खाँ (किराना), पं बी.एस. पाठक (प्रयाग) सँ सेहो संगीतक शिक्षा प्राप्त कएलन्हि।
पं झा १९५४ सँ प्रयागमे स्थाई रूपसँ रहि रहल छथि। १९५५ ई.मे हिनकर नियुक्त्ति लूकरगंज संगीत विद्यालयमे संगीत अध्यापक रूपमे भेलन्हि। १९६० ई.मे हिनकर नियुक्त्ति प्रयाग संगीत समितिमे भेलन्हि, जतए १९७० धरि प्रभाकर आऽ संगीत प्रवीण कक्षाक शिक्षक रहलाह। १९७०मे इलाहाबाद विश्वविद्यालयक संगीत विभागाध्यक्ष श्री प्रो. उदयशंकर कोचकजी पं झाक संगीत क्षेत्रक सेवासँ प्रभावित भए विश्वविद्यालयमे हिनकर नियुक्त्ति कएलन्हि। पं झा उत्कृष्ट शिक्षक, गायक आऽ आकाशवाणीक प्रथम श्रेणीक कलाकार छथि। हिनकर अनेक शिष्य-शिष्या आकाशवाणीक प्रथम श्रेणीक कलाकार आऽ उत्तम शिक्षक छथि, जेना-
डॉ. गीता बनर्जी, श्रीमति कमला बोस, श्रीमति शुभा मुद्गल, श्रीकान्त वैश्य,श्री शान्ता राम कशालकर, श्री शान्ता राम कशालकर, श्री कामता खन्ना, श्रीमति सत्या दास, डॉ. रूपाली रानी झा, डॉ इला मालवीय, श्री अनिल कुमार शर्मा, श्री रामशंकर सिंह, श्रीमति संगीता सक्सेना, श्री राजन पर्रिकर, श्रीमति रचना उपाध्याय, श्री नरसिंह भट्त, श्री भूपेन्द्र शुक्ला, श्री जगबन्धु इत्यादि।
पं झा संगीत शास्त्र केर श्रेष्ठ लेखक छथि आऽ हिनकर लिखल अभिनव गीतांजलि केर पांचू भाग प्रकाशित भए चुकल अछि, जाहिमे २००सँ ऊपर रागक व्याख्या अछि आऽ दू हजारक आसपास बंदिश अछि।
मिथिलावासी श्री रामरंग राग तीरभुक्त्ति, राग वैदेही भैरव, आऽ राग विद्यापति कल्याण केर रचना सेहो कएने छथि आऽ मैथिली भाषामे हिनकर खयाल ’रंजयति इति रागः’ केर अनुरूप अछि।
१९८२ मे उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कारक संगे ’रत्न सदस्यता’ सेहो देल गेलन्हि। संगीत लेखनक हेतु काका हाथरसी पुरस्कार, आऽ भारतक सर्वोच्च संगीत संस्था आइ.टी.सी. केर सम्मान सेहो हिनक भेटि चुकल छन्हि। २०० ई. मे स्वर साधना रत्न अवार्ड, २००५ मे संगीत नाटक अकादेमीक राष्ट्रीय पुरस्कार, भारत संगीत रत्न, राग ऋषि, संत तुलसीदास सम्मान, प्रायाग गौरव एवं सोपरी अकादेमीक ’सा म प वितस्ता’ इत्यादि सम्मान श्री झाकेँ प्राप्त छन्हि। श्री रामरंग जी प्रयागमे ’वारिन दास संगीत परिषद’ केर स्थापना कए अनेकानेक संगीत समारोहक आयोजन सेहो कएने छथि। ’इलाहाबाद विश्वविद्यालय संगीत सम्मेलन’ ३० वर्षसँ बन्द पड़ल छल जकरा वार्षिक रूपसँ १९८० मे पुनः श्री झा आरम्भ करबओलन्हि। किएक तँ श्री झा लग कोनो औपचारिक डिग्री नहि छलन्हि, इलाहाबाद विश्वविद्यालय अपन नियममे परिवर्त्तन कएलक आऽ हिनका ओतए संगीत विभागाध्यक्ष बनाओल गेलन्हि, जतएसँ ओऽ १९८९ ई. मे सेवानिवृत्त भेलाह। तुलसीक मानसक आधार पर श्री झा सात काण्डक संगीत रामायणक सेहो रचना कएलन्हि। पं झा मुख्य रूपसँ खयाल, ठुमरी, दादरा, टप्पा आऽ संगहि ध्रुवपद, धमार, तराना, तिरवट, चतुरंग, रागमाला, रागसागर, रागताल सागर, भजन आऽ लोकगीत गायनमे सिद्ध छथि।
अखन ८० वर्षक आयुमे प्रयागमे श्री झा संगीत साधनामे रत छलाह १ जनवरी २००९ केँ हुनकर मृत्यु कोलकातामे भऽ गेलन्हि।

(साभार विदेह http://www.videha.co.in/ )

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