राग द्वेष, भेदभाव, मैथिलीक उठापटकसँ दूर एकान्त भऽ अपन प्रारम्भिक रचना समएसँ आइ धरि अनवरत विहनि कथा लेखनमे लीन श्री अनमोल झा सँ युवा विहनि कथाकार एवं समालोचक मुनाजीक अन्तरंग गपशप:
मुन्नाजी: भाइ नमस्कार। सामान्यतः रचनाकार सभ कथा-कवितासँ लिखब शुरू करैत छथि मुदा अहाँ विहनि कथासँ रचना लिखब प्रारम्भ कऽ विहनि कथेकेँ प्रमुखतासँ लिखैत रहलौंहेँ। एकरा प्रति रुचि वा आदर कोना जागल?
अनमोल झा: नमस्कार भाइ। बहुत-बहुत नमस्कार। शुरू तँ हम केने रही- “बाबा कहथिन महरानी” कथासँ जे हमर पहिल रचना छल। मुदा तकरा बादेसँ हम विहनि कथा लिखऽ लगलौं। जहाँ धरि रुचि आ आदरक प्रश्न अछि भाइ, से निश्चित रूपसँ हम कहब जे ऐ लेल हम “सगर राति दीप जरय” (कथा गोष्ठी) सँ बहुत उपकृत होइत रहलौंहेँ। हम दोसर कथागोष्ठी जे २९.०४.१९९० ई. मे श्री जीवकान्तअ जीक संयोजनमे भोला उच्च विद्यालय, डेओढ़मे भेल रहए, तहियासँ जुड़ल छी। आ ओइसँ लुरि-भास सभ सिखैत रहलौंहेँ।
ओना कथा गोष्ठीमे कथाक प्रधानता रहैत अछि। एम्हर आबि कऽ थोड़-थोड़ विहनि कथा सभ सेहो पढ़ल जाइत अछि, जकर हमरा आतुरताक संग प्रतीक्षा रहैत अछि।
अन्य भाषामे विहनि कथा चिन्हार भऽ स्थापित भऽ गेल अछि। मैथिलीयोमे कथाक संगे-संग भारतक सभ भाषा लग ई ठाढ़ हो, स्थापित हो, तँए हम विहनि कथेकेँ प्रमुखता दऽ रहलौं अछि।
मुन्नाजी: विहनि कथाक अतिरिक्त कथो लिखलौं आ से छपबो कएल। दुनूक मध्य की समानता आ भिन्नता अछि? दुनूमे सँ जे एकटा पसिन्न करए लेल कहल जाए तँ ककरा पसिन्न करब आ किएक?
अनमोल झा: हमर एखन धरि १६० टा लघुकथा मैथिलीक विभिन्न पत्र-पत्रिका आ संकलनमे प्रकाशित अछि, जकर सभ पत्र-पत्रिका आ संकलन हमरा लग उपलब्ध अछि। एकर अतिरिक्त आरो कतौ छपल अछि आ से हमरा सूचना नै अछि से सभ छोड़ि कऽ। आ तहिना सतरहटा कथा सेहो प्रकाशित अछि।
कथा आ विहनि कथाक मध्य समानता आ भिन्नताक बात पुछैत छी से हमरा जनैत उपन्यास आ कथामे जे समानता वा भिन्नता अछि सएह कथा आ विहनि कथामे अछि।
दुनूमे सँ निश्चित रूपे हम विहनि कथाकेँ पसिन्न करब। कारण ऐमे जे मारक क्षमता होइत अछि से आन कोनोमे नै। आ सफल विहनि कथाक ईएह गुण अछि जे ओ पाठककेँ बिना मर्माहत केने नै छोड़ि सकैत अछि।
मुन्नाजी: विहनि कथाक अतिरिक्त बाल कथा सेहो लिखैत रहलौं अछि, आर की की लिखैत छी? सभ तरहक लेखनक की उद्देश्य?
अनमोल झा: बाल रचना लिखैत हमरा नीक लगैत अछि तैं लिखैत छी। जखन हम ई लिखैत छी तँ अपना-आपकेँ बालपनमे अनुभव करैत छी जे नीक लगैत अछि।
एकर अतिरिक्त कथा, कविता, रिपोर्ताज लिखैत रही आ एखनो हल्का-फल्लक लिख लैत छी। एकर सबहक पाछाँ कोनो तेहेन उद्देश्य नै अछि। मुदा विहनि कथा हमर प्राण छी आ तैं एकरे सभटा समर्पित अछि।
मुन्नाजी: मैथिलीमे विहनि कथाक कोनो मोजर वा पुछारि नै छै। विहनि कथाकारक तँ कोनो नामे निशान नै बुझल जाइछ। एहन स्थितिमे जगजियार हेबासँ बेसी हेरा जएबाक सम्भावना अछि। ऐ स्थितिमे अपनाकेँ कोना पबै छी?
अनमोल झा: हम जतऽ छी ठीक छी। मैथिलीमे ओनाहो बड़ पेंच-पाँच छैक। बिना पैरबी, पाइ वा पदक किछु नै होइत छैक आ से हमरा लग नै अछि तैं हेरा जाएब वा जगजियार होएब ई बिना माथामे रखने विहनि कथा लिखैत छी आ लिखैत रहब।
मुन्नाजी आब मैथिलीमे विहनि कथाक मोजर वा पुछारि नै छैक से नै कहियौ। यदि अहाँ सन समर्पित लोक आर थोड़बो भेटि जाइ मैथिलीकेँ तँ अपने ने मोजर भऽ जेतै एकर।
मुन्नाजी: अहाँ एखन धरि ढेर रास विहनि कथा लिखि गेल छी। संख्यात्मक बलेँ बड्ड मजगूत छी। मुदा किछु रचना कमजोर बनि सोझाँ आएल अछि। तँ अहाँकेँ नै लगैछ जे बेसी लिखबासँ बेसी आवश्यक अछि जे कम्मे आबए मुदा ठोस रचना आबए?
अनमोल झा: अहाँक कहब यथार्थ अछि भाइ। ओना धान कुटलापर चाउरमे खुद्दी हएब स्वाभाविक अछि। खुद्दीमे चाउर नहि ने देखाइ अछि अहाँकेँ।
ओना अहाँक सुझावक स्वागत अछि। हम एकर ध्यान राखब।
मुन्नाजी: अहाँकेँ डेढ़ दशकक अपन विहनि कथा यात्रामे की अनुभव रहल। तहियासँ आइक स्थितिमे की अन्तर छै।
अनमोल झा: डेढ़े दशक किएक कहैत छी मुन्नाजी। दू दशक ने कहियै। हमर पहिल प्रकाशित रचना २ टा विहनि कथा घृणा-स्नेह आ विवश चेतना समितिक स्मारिका विद्यापति स्मृति पर्व १९९१ ई. मे छपल अछि। खएर छोड़ू, काजक गप करी।
विहनि कथा यात्राक मादे की कहू भाइ, हमरे सन थेथर लोक अछि जे १९, २० बरख सँ एकरा पकड़ि कऽ लेखन करैत रहल। बड़ दुरूह रस्ता छल तखन (एखन नै) आ तैं बहुत गोटा ऐ विधामे आबि कऽ फेर अपन कथा-कविता दिस चल गेलाह। देखलन्हि जे नाम ने जस तँ की करब एतऽ। ऊपरसँ उपहासे। ओना आब पुछबनि तँ कहता ओ सभ एकर जन्मदाते हम छी तँ हम छी।
मुदा हमरा ऐ विधामे मोन लगैत अछि आ ऐ बले लोक चिन्हतो अछि हमरा। एखन पहिलुका सन स्थिति नै रहलै। विहनि कथा मैथिलीमे अपन स्थान बना लेने अछि, जकर प्रमाण पत्र-पत्रिकाक लघुकथा विशेषांक आ सभ पत्र-पत्रिकामे विहनि कथाक रहब अछि। एकर भविष्य नीक अछि। लोककेँ कथा-उपन्यासकेँ पढ़बाक पलखति नै छैक एखन। एहन स्थितिमे ओ सभ बात विहनि कथामे कनिये कालमे भेटि जाइत छै। तैँ एकर पाठको वर्ग तैयार भऽ गेल अछि। दिनानुदिन विहनि कथाकारो सभ उभरि कऽ आबि रहलाहेँ आ से सतति रचनाशील छथि। आजुक परिप्रेक्ष्यमे विहनि कथाक तुलनात्मक स्थिति नीक अछि, बहुत नीक जे रचनाकार सभ थोड़े लिख कऽ पड़ा नै जाइत छथि आन विधा दिस।
मुन्नाजी: अहाँ अपन सर्वस्व ऊर्जा विहनि कथामे लगा रहल छी। ऐ यात्रामे आर के सभ सहभागी छथि आ हुनकर सभक की रुखि छनि।
अनमोल झा: हमर ऐ यात्रामे श्री सत्येन्द्र कुमार झा, श्री गजेन्द्र ठाकुर, श्री मुन्नाजी, श्री अमलेन्दु शेखर पाठक, श्री मिथिलेश कुमार झा, श्री रघुनाथ मुखियाक संग आर कतेको नव लोक हमरा संग आ सहभागी छथि। आ हिनका सभसँ मैथिली विहनि कथा बहुत आशा रखैत अछि।
हिनका सभक रुखि नीक छनि। ऐमे श्री सत्येन्द्र कुमार जीक तँ एकटा विहनि कथाक संग्रह प्रकाशितो छनि आ दोसर प्रकाशनार्थ ओरियाओल छनि।
मुन्नाजी: अन्यान्य कथा साहित्य मध्य मैथिली विहनि कथा कतऽ देखाइछ आ एकर की भविष्य छै?
अनमोल झा: अन्यान्य कथा साहित्य लग मैथिली विहनि कथाक पहुँच प्रायः एखन धरि नै भेल अछि। कारण अछि एकरा घरेमे आ अपने लोक मोजर दैक लेल तैयार नै छथि। जे शुरू-शुरूमे सभ भाषामे लघुकथा अपन जगह पाबै लेल झेलने आ भोगने छल यएह बात एकरो संग भऽ रहल अछि।
मुदा एकर भविष्य उज्जवल अछि। दिनपर दिन नीक-नीक विहनि कथा सभ सामने अबैत अछि जे अपन मजगूतीक बात कहैत अछि।
मुन्नाजी: अहाँक विहनि कथा संख्याक बलेँ मजगूत होइतो एकर कोनो संगोर सोझाँ नै आएल अछि, आगामी योजना की अछि?
अनमोल झा: हमर धरि कोनो संग्रह नै निकलल अछि तकर प्रमुख कारण अछि अर्थ। हम एकटा प्राइभेट कम्पनीमे काज करैत छी। ततएसँ नून-तेलसँ बेसी नै किछु होइछ जे ई सभ किछु करब।
कोनो संस्था, प्रकाशक वा व्यक्ति ओकरे पोथी प्रकाशित करैत छथिन जे अपने सम्पन्न हो वा जकर पहिलेसँ पोथी प्रकाशित होनि। हम तहूमे छटा जाइत छी।
ओना हमर तीनटा विहनि कथाक पाण्डुलिपि तैयार अछि, तीनटा फाइल कऽके। पहिल विहनि कथाक संग्रहक पाण्डुलिपि जे तीन साल पहिने डॉ. विद्यानाथ झा “विदित” जीकेँ देने रहियनि। ओ कहलनि जे चालीस बर्खसँ कम उमेरक साहित्यकारकेँ साहित्य अकादेमीमे पोथी छापैक प्रावधान छैक, तइमे छपि जाएत।
दू सालक बाद कहलनि प्रेसमे अछि। तकरो आब एक सालक करीब भऽ गेलै। कत्तौ पता नै, कोनो सूचना नै।
दोसर संग्रहक प्रकाशन लेल श्री गजेन्द्र ठाकुर जीकेँ निवेदन कएल जे श्रुति प्रकाशन बहुत मैथिली पोथी छपैत अछि। एकटा हमरो विहनि कथाक संग्रह छपवा दिअ। ओहो स्पष्ट रूपे नै तँ नै कहलनि, हँ भऽ जेतै आश्वासन देने रहथि। ओकरो कतेक दिन भऽ गेलै। कोनो बात फेर आगाँ नै बढ़ल।
तेसर विहनि कथा संग्रहक प्रकाशन लेल कोलकाताक “मिथिला सांस्कृतिक परिषद” लग पाण्डुलिपि जमा कएल अछि। देखियौ की होइत अछि। जखने कतौसँ छपत तखने बुझवै जे छ्पल।
आगामी योजनाक मादे पुछैत छी से योजना की रहत भाइ। हमरा सन साधारण लोक लेल कोन योजना आ कथीक योजना? हँ एकटा योजना धरि अवश्य अछि जे विहनि कथा लिखैत रहब, से सदति लिखैत रहब। छपय तँ सेहो नीक, नै छपय तँ सेहो नीक। संग्रह आबए तँ सेहो नीक, नै आबए तँ सेहो नीक। धरि लिखैत रहब विहनि कथा अवश्ये हम।
मुन्नाजी: दू दशकक विहनि कथा यात्रामे अपनासँ वरिष्ठ (पुरान वा मध्यम पीढ़ी)क केहेन सहयोग/ विरोधक आभास भेल, हुनकर सभक योगदानक विषयमे की कहबै?
अनमोल झा: हमरासँ वरिष्ठ (पुरान वा मध्यम) पीढ़ीक साहित्यकार सभक सहयोग सदति भेटैत रहल अछि। बीच-बीचमे उठा-पटक सेहो ओ सभ खूब करथि। हमर विहनि कथा लऽ कऽ मुँहो-कान खूब घोकचाबथि। हमरा मोन अछि जे विराटनगर कथा-गोष्ठी (१४.०४.१९९२ ई.) मे हमर विहनि कथाकेँ सभ लोकि कऽ हवामे उड़ा देलनि। तकरा बाद सभकेँ खारिज करैत गुरुवर पं. श्री गोविन्द झा हमर ओइ विहनि कथाक प्रशंसा केलनि। हमरा बल भेटल आ हम विहनि कथा लिखिते रहलौं।
ओना निश्चय रूपेँ कहए पड़त जे ऐ ठोक-ठाक उठा-पटकमे हमरा हतोत्साह नै, एक प्रकारक बले भेटैत रहल, जे एना नै एना लिखलासँ नीक विहनि कथा बनत।
आर एखन वएह लोक सभ पटना कथा-गोष्ठी (२१.०२.२००९) मे हमर विहनि कथा टेक्नोलोजी आ युद्ध क प्रशंसे नै केलनि, भरि रातिमे कएक बेर ओकर बड़ नीक हेबाक चर्चा करैत रहलाह।
हमरा ऐ विधामे श्री प्रदीप बिहारी, श्री तारानन्द वियोगीक सहयोग आ योगदान निश्चय रूपसँ भेटल। आ हम हुनका सभसँ आ हुनक विहनि कथा संग्रह सभसँ बहुत किछु सिखलौंहेँ।
अस्तु, धन्यवाद भाइ।
साभार विदेह (www.videha.co.in)
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