Sunday, October 23, 2011

प्रबोध सम्मान २०१० लेल चयनित जीवकान्तसँ वरिष्ठ पत्रकार आ मैथिलीक उदीयमान कवि विनीत उत्पलक साक्षात्कार


मूर्खता पीबि कऽ विषवमन करैत अछि समीक्षक - जीवकान्त
प्रबोध सम्मान २०१० लेल चयनित जीवकान्तसँ वरिष्ठ पत्रकार आ मैथिलीक उदीयमान कवि विनीत उत्पलक साक्षात्कार

विनीत उत्पल : अहाँक जन्म कतए भेल आ दिन-वर्ष की छल? लालन-पालन कतए भेल?
जीवकांत : २७ जुलाई, १९३६ क मामाक गाम सुपौल जिलाक अभुआढ़ मे हमर जन्म भेल। किछु दिन तक तँ हमर लालन-पालन मामक गाममे भेल। तकर बाद अपन गाम मधुबन क डेओढ़मे भेल। हमर पिता चारि भाइ छलथि। संयुक्त परिवार छल आओर हम सभ १५-१६ बच्चाक लालन-पालन संगे भेल।

विनीत उत्पल : एखन अहाँक परिवारमे के सभ अछि आओर ओ सभ की करैत अछि?
जीवकांत : हम दू भाइ छी। जेठ हम छी आ नवकांत झा छोट अछि। नवकांत सेंट्रल बैंकक नौकरसँ अवकाश ग्रहण कए दरभंगामे रहैत अछि। एक बहिन आब नहि छथि। दोसर बहिन गोदावरी सुपौलमे ब्याहल गेल, जे सहरसामे रहैत अछि। तीन बच्चा अछि। पैघ बेटा अरुण चेन्नइमे बैंकमे कार्यरत अछि। छोट वरुण लखीसरायमे एलआईसीमे काज करैत अछि। बेटी प्रेम नेपालक राज विराजमे ब्याहल अछि।

विनीत उत्पल : घरमे आन लोक मैथिली पढ़ैत आ लिखैत अछि? कनियाक सहयोग लेखनमे कतेक भेटल?
जीवकांत : हमर घरमे भाइ हुअए आकि कोनो बच्चा, मैथिलीमे नहि लिखैत अछि। शुरूमे कनियाँ शुचि किछु नहि बुझैत छलीह। हुनका लगैत छल जे फालतूक काज कऽ रहल छी। हुनका अनिद्राक बीमारी छलन्हि ताहिसँ रातिमे लाइट मिझा दैत छलीह। मुदा, बादमे सहयोग करए लगलीह। धन्य ओ जे हम लिखैत छी। ओना ओ ज्योँ विरोध करतीह तँ हम किछु नहि लिखि सकैत छी। एकरा लेल हम कनियाँक आभारी छी।

विनीत उत्पल : मैथिली साहित्य दिश कोना आकृष्ट भेलहुँ? विस्तारसँ बताऊ?
जीवकांत : हम जाहि कालमे पैदा भेलहुँ, ताहि कालमे पढ़ैक महत्व नहि छल। हमरो पढ़ाइ देरीसँ शुरू भेल। स्कूलमे नाम लिखेबा लेल कियो नहि गेल छल। हम अपने गेल छलहुँ। ओहि कालमे हम सभ माटिपर लिखैत छलहुँ।
हमर गाममे तुलसीदासक रामायणक पाठ होइत छल। द्वारपर लोक ताश खेलाइत छल आ रामायणक श्लोकक दसटा अर्थ करैत जाइ छलाह। श्लोककेँ लऽ कऽ तर्क-विर्तक सेहो होइत छल। हमरो घरमे बेंकटेश्वर स्टीम प्रेससँ छपल मोटका रामाएण छल, जकरा पढ़ैत आ सुनैत छलहुँ। तखन धरि मैथिलीक कोनो गप नहि छल। नेना रही, सोचैत रही, जखन तुलसीदासक लिखलपर एतेक तर्क-विर्तक होइत अछि, तखन हमहूँ किएक नहि लिखै छी। शुरूमे कविता लिखलहुँ, जे आर्यावर्तमे छपल। आइ.एस.सी. कऽ कए साल भरि बाद १९६४ ई. मे प्राइवेटसँ बी.ए. कएलहुँ। छह मास धरि अहापोहमे रहलहुँ, जे हिंदीमे लिखी आकि मैथिलीमे।
ओहि काल मे मिथिला मिहिर पढ़ैत छलहुँ। ओहिसँ बेसी प्रभावित भेलहुँ। रवींद्रनाथ टैगोरक साहित्यसँ सेहो प्रभाविल भेलहुँ। हिंदीमे लिखी आओर मैथिलीमे सेहो। किछु काल बाद निर्णय लेलहुँ जे हम नित दिन लिखब। गृह जिला मधुबनीमे नौकरीक मादे खजौली, देहोल, पोखराम आदि गाममे रहलहुँ आ जीवनानुभवक व्यापक अनुभव लिखलहुँ।

विनीत उत्पल : अहाँक कालमे संस्कृतक विस्तार बेसी छल। तखन मैथिली दिश कोना प्रवृत भेलहुँ?
जीवकांत : स्वतंत्रता प्राप्तिक कालमे इंगलिश मीडियम स्कूल खुजल रहै। हिंदी स्कूलमे मैथिली पढ़ाओल जाइत छल। इंगलिश स्कूल खुजलासँ लोक संस्कृत बिसरि गेल। मुदा हम गामक लोक गामसँ प्रभावित। २४ जनवरी १९६५ मे मिथिला मिहिरमे पहिल कविता 'इजोरिया आ टिटही’ छपल। एकरासँ हमरा जोश भेटल।

विनीत उत्पल : अहाँ केकर लेखनीसँ प्रभावित छी?
जीवकांत : कविता हमर प्रिय अछि। लिखैमे आनंद अबैत अछि, ओकर गंधसँ प्रभावित होइत छी। मुदा गंधक प्रतीकमे तुलना साफ नहि होइए। कोनो गप कवितामे बेसी नीकसँ कहल जा सकैत अछि। आलोचक कहैत अछि जे अहाँ कथामे सब किछु अलग-अलग नहि करैत छी। पाठककेँ अपन दिशसँ सूत्र जोड़ए पड़ैत अछि। सबहक गंध अपन-अपन तरहक होइत छै। हमर लेखनक मूल कविता अछि, आओर अपन गप कविताक संग प्रेषित करैमे नीक लगैत अछि।

विनीत उत्पल : लेखनमे कोना प्रोत्साहित होइत छलहुँ?
जीवकांत : अहाँ सोमदेवक नाम सुनने होएब। हमर कविता पढि़ कऽ यात्री जी हुनका कहलथिन जे जीवकांतकेँ कहियौ ओ उपन्यास लिखताह। एकरा संगे मिथिला मिहिरसँ लिखबाक आमंत्रण आएल। एकरा एक तरहसँ हम चुनौतीक रूपमे लेलहुँ आ जे ओ लिखबैत रहल, फरमाइश करैत छल, से लिखैत रही। शिक्षक संघसँ सेहो जुड़ल रही ताहिसँ पटना जाइत रही। ओहि काल पटनामे लोकसँ भेट होइत रहए आओर प्रोत्साहन भेटैत रहए। तीनटा उपन्यास फरमाइशपर लिखलहुँ जे धारावाहिक रूपमे छपल।

विनीत उत्पल : अहाँकेँ ई नहि लगैत अछि जे साहित्य अकादमी देरीसँ अहाँक लेखन~पर विचार केलक?
जीवकांत : साहित्य अकादमीक पुरस्कारकेँ लोक संदेहक दृष्टिसँ देखैत छैक। ओतए जाएज लोककेँ किनारा कऽ दैत छै। हम साहित्य अकादमीक पॉलिटिक्स नहि जनैत छी। गाममे रहैत छी। कोनो दोस्त नहि बनेलहुँ। ओहिनो मिथिला समाज आ लोक अनौपचारिक अछि। भऽ सकैत अछि साहित्य पुरस्कार विलंबसँ भेटल। मुदा एहि सभमे हम नहि पड़ैत छी।

विनीत उत्पल : पैघ-पैघ पत्रिकामे कोना लिखए लगलहुं?
जीवकांत : एखनसँ तीस साल पहिने समकालीन भारतीय साहित्य शुरू भेल, तखन हम किछु अनुवाद कएलहुँ। मैथिलीमे पहिल कहानी हमरे आएल। पहिल बेर मैथिली विशेषांक आएल। एकटा अनुवाद केदार कानन केलथि। मैथिली कविता पठबैत रही। हिंदी संपादक आ हिंदी पत्रिका खूब आदरसँ हमर रचना छपैत रहए। समय अंतरालपर कोलकाता, मुंबइ, दिल्लीसँ प्रकाशित पत्रिका सेहो छपै लागल।

विनीत उत्पल : पहिल कविता संग्रह कोन छल आओर के छपलथि?
जीवकांत : 2003 मे 'तकैत अछि चिड़ै’ कविता संग्रह छपल, जेकरा ऊपर साहित्य अकादमी पुरस्कार देलक। ओकर हिंदी अनुवाद 'निशांतक चिडिय़ा’ छपल। एकरो साहित्य अकादमी छपलक। ढेरे विश्वविद्यालयमे शोध भऽ रहल अछि। प्रखर आलोचक सेहो लेखनक प्रशंसा कए रहल अछि।

विनीत उत्पल : अहांक कविता 'रहस्य’ मे गूथल बुझाइत अछि?
जीवकांत : कविताक आरंभ कतहुसँ जे होइत अछि से तार्किक परिणति तक जरूर पहुँचैत अछि। लोक कहैत अछि जे हमर कविता आखिर मे 'टर्न’ लऽ लैत अछि। लोक काल आ पाठक हमर सामने नहि रहैत अछि, ताहिसँ अलग-अलग पाठक हमर कवितामे अलग-अलग गप देखैत अछि।

विनीत उत्पल : अहाँ तँ खूब समीक्षा केने छी?
जीवकांत : समीक्षक तौर पर हम ओते प्रोफेशनल नहि छी। बैसल रहैत रही तँ पढ़ैत रही। नव पोथी पढ़लाक बाद छोट-छोट टिप्पणी करैत छी। पूरे ४० साल मे ६०-७० टा पोथीपर छोट-छोट टिप्पणी केने छी। एकरा बाद मन बहलबैत छी, हास-परिहास आ चर्चा, बहुत रास गप करैत छी।

विनीत उत्पल : नव लेखक आ हुनकर रचनाकेँ कोना देखैत छी?
जीवकांत : एखन नवलेखक तेजीसँ आबि रहल अछि। देहातसँ सेहो लेखक आबि रहल अछि। बीच वाला पीढ़ी्मे अद्भुत लेखक भेल। महाप्रकाश आ सुभाषचंद्र यादव लोक विवशता, निर्धनताक विलक्षण चित्रण अपन रचनामे करैत छथि।
मैथिली कविता सेहो गंभीर भऽ रहल अछि। ओकर स्तर बढि़ गेल अछि, सोच काफी आगू तक अछि।

विनीत उत्पल : मैथिलीक साहित्यमे समीक्षकेँ अहाँ कोन दृष्टिसँ देखैत छी?
जीवकांत : समीक्षा यूरोपसँ आएल अछि। यूरोपमे अन्वेषणक संग समुचित परिप्रेक्ष्यमे समीक्षा होइत अछि। हिन्दुस्तान एहि विधामे पिछड़ल अछि। हिंदी भाषा्मे सेहो नीक समीक्षा नहि भऽ रहल अछि। लोक वेद कहैत अछि जे हिंदीक पैघ समीक्षक नामवर सिंह समीक्षा नहि कऽ भाषण दैत छथि। तटस्थ भऽ कऽ मूल्यांकन नहि भऽ रहल अछि। नीक लेखककेँ पएरसँ दबा देल गेल आओर जेकरा किछु नहि अबैत अछि ओकरा कन्हापर बैसा देल जाइत अछि। विद्यापतिपर आइ धरि कियो मैथलीमे नीक समीक्षा नहि केलक अछि। रामानाथ झाक समीक्षा जयकांत बाबूक समीक्षा नहि भऽ रहल अछि। अंग्रेजीमे नीक बुद्घि होइत अछि। अंग्रेजीसँ एम.ए. केलाक बाद लोकक नीक बुद्घि होइत अछि, मुदा मैथिलीसँ एम.ए. कोर्स करबाक बाद छात्र बरबाद होइत अछि। नाश कऽ दैत अछि ओकर भविष्य। जखन महीसे खराब होएत तखन कोनो नीक चीज आनि कऽ दियौ खेनाइ खरापे बनत। सोनारक काज लोहारक हथौड़ीसँ नहि भऽ सकैत अछि। समीक्षामे कोनो नीक काज नहि भऽ रहल अछि।
'अपन बट्टी भरि पनबट्टी’ सनक लोक अछि। जाइत-पाति बेसी अछि। लोक एक-दोसरकेँ छोट बुझैत अछि। रचना्क मूल भावनमे कमी आएल अछि। अपन रचना आ अपन लगुआ-भगुआमे लोक फंसल जाइत अछि। सब अपनाकेँ पैघ बुझैत अछि। सभटा लोक काजक क्रेडिट अपना लेल लेबाक लेल मारि कए रहल अछि।

विनीत उत्पल : रचना्मे अनुभवक की भूमिका होइत अछि? मैथिलीक प्रचार-प्रसार लेल अहाँक विचार की अछि?
जीवकांत : सभ लोकक अपन अनुभव होइत अछि। ओकरे ठीक-ठाक कए लेखक शास्त्र बना दैत अछि। सभटा लेखक अपन अनुभवकेँ पुनर्जीवित करैत अछि। जहिना-जहिना शिक्षक स्तर बढ़त, तहिना-तहिना मैथिलीक प्रचार-प्रसार बढ़त। मिथिलामे शिक्षकक कमी अछि। स्त्री शिक्षा एखनो बेसी नहि अछि। साक्षरता जेना-जेना बढ़त आर्थिक स्थिति तेना-तेना नीक होएत। मैथिली बढ़त। इंटरनेटेपर मैथिली बढि़ रहल अछि। गौरीनाथ नीक काज कए रहल छथि। कोलकाताक स्वस्ति फाउंडेशन सेहो नीक काज कए रहल अछि।

विनीत उत्पल : अहाँक रचना विद्रोही प्रवृतिक अछि, से किए?
जीवकांत : सरकार बनेने छी। जनताकेँ सुरक्षा चाही, सडक़ चाही। आजादी भेटल, त्रुटि सेहो भेटल। कमजोर लोकक संग दुर्व्यवहार भऽ रहल अछि। अन्यायक खिलाफ आवाज उठबैत हमर मनोदशा अछि। १९७० ई. मे कोलकातामे 'किरणजी’सँ भेट भेल छल। ओ कहलथि जे हमर स्टैंड तँ सत्ता विरोधी अछि। हुनकर गप ठीक छल।

विनीत उत्पल : मार्क्सवादकेँ लऽ कऽ की सोचैत छी?
जीवकांत : मार्क्सवादक पहिने सेहो गरीबी छल। विद्यापति अपन कवितामे गरीबीक व्यापक वर्णन कएने छथि। 'कखन हरब दुख मोर’ गीतमे एक तरहेँ गरीबीक वर्णन कएल गेल अछि। 'नहि दरिद्र सब जुग माही’ आ संस्कृत श्लोक 'सर्वे गुणा कांचन भाजयंति’ मे सेहो दरिद्राक गप अछि। गरीबीक खिलाफ गरीबक पक्षमे सभ दिन लिखल जाइत रहल अछि।

विनीत उत्पल : अहाँ आ अहाँक लेखन ककरासँ प्रभावित अछि?
जीवकांत : हम सेहो मार्क्सवादसँ प्रभावित छी। लोहियासँ सेहो प्रभावित छी। बराबरी आ समानताक विचारकेँ प्रमुखता दैत छी। मार्क्सक समर्थक रही। एकरा लेल दीक्षा नहि लेलहुँ, कियो ई गप पैदा नहि केलक, अपने पैदा भेल।

विनीत उत्पल : तखन अहाँ मार्क्सवादक विरोध किए कए रहल छी?
जीवकांत : मार्क्सवाद उत्तम विचार छी, मुदा हिंसाक पक्षमे बेसी अछि। भारतीय राजनीति आ संस्कृतिमे मार्क्सवादक संभावना कम अछि, ताहिसँ एतए समाजवाद प्रबल भेल। भारतीय संस्कृति 'सर्वे भवन्तु सुखिनः’ पर आधारित अछि। एतए गांधी प्रासंगिक छथि। मार्क्सवाद बारंबार अपन रास्तासँ भटकैत अछि। मार्क्सवादक नीतिकेँ जमीनपर उतारब कठिन अछि। रूसक जमीनपर उतरल मार्क्सवाद राष्ट्रवादक प्रबल समर्थक बनि गेल। तिब्बत, भूटान, नेपाल आ पाकिस्ताक बलधकेल जमीनमे चीनी झंडा फहराइत अछि।

विनीत उत्पल : 'सुमन’ जीक अहाँ हमेशा विरोध कएलहुँ, तखन अभिनंदन ग्रंथमे बड़ाइ करबाक की मतलब अछि?
जीवकांत : 'सुमन’ जीक बड़ाइ लिखलहुँ तँ हम अछूत(......)भऽ गेलहुँ। हुनकर अध्यात्मपर लिखल अद्भुत अछि। संस्कृतमे लिखलन्हि। ओ आगि लगबैक क्षमता रखैत छथि। ओ संस्कृति आ मूल्यक विषयक ध्वजवाहक छलाह। ओ मैथिली कविताकेँ उत्कृष्टता तक लऽ गेलथि। हम मार्क्सवादी भऽ जाइ तकर माने ई तँ नहि होएत जे हम वेद-पुराणकेँ बिसरि जाइ। अभिनंदन ग्रंथ लेल फरमाइशी लेख लिखाओल गेल छल। हम हुनकर काव्य आ आध्यात्मपर लिखलहुँ। सही काल छल, एकरा लेल हम खुश छी।

विनीत उत्पल : कवितामे विशेष परिवर्तन कतए तक जाएज अछि?
जीवकांत : हमरा संग ढेर लोक एलाह। सभ पछुआ गेल। पाँच साल बाद हम अपन विषय परिवर्तन केलहुं। हर क्षेत्र~मे अपनेकेँ परिवर्तन करबाक चाही। जे परिवर्तनक समर्थक होएत ओ कालजयी होएत। हमहुँ विषय बदलैत गेलहुँ ताहिसँ जीवित छी। असहमतिक कविता पंजाब आ बंगालसँ आएल। बंगालमे सुभाष मुखोपाध्याय भेलाह जे कहलथिन 'हे कृष्ण, कुरुक्षेत्र मे घोड़ाक रास छोडि़ कए फेरसँ वंशी बजाउ।’ कविताक विषय सभ दिन बदलैत रहैत अछि। विद्यापति शृंगार आ भक्तिकेँ लऽ कए लिखलथि। एखन शृंगारसँ लोककेँ वैर भऽ गेल अछि। देश प्रेमक कविता लिखल गेल। मुदा दोसर विश्वयुद्घमे देशप्रेमक गपमे देखल गेल जे ई मनुष्यकेँ बर्बाद कऽ रहल अछि। राजनीतिपर कविता लिखब बेवकूफी अछि। आदमी, मित्रता, सुख-दुख कविताक विषय रहैत अछि। जेना-जेना समय बदलत, तेना-तेना विषय सेहो बदलत। जहिना कविता बदलत तहिना एकर रूपो बदलत। एकरा एना देखी, बच्चाक छठियार करैत छी, ओकरा बाद बच्चा्मे कतेक परिवर्तन होइत अछि।

विनीत उत्पल : मैथिली समाजक स्थिति लेल की कहबाक अछि?
जीवकांत : पैरवी-पैगाम आ गुटबाजी होइत अछि। अपन गाम आ समाज सिद्घांतवादी नहि अछि। जवाहरवादी अछि ताहिसँ तुरंत झुकि जाइत अछि। क्वालिटीसँ समझौता भऽ जाइत अछि। नीक लोकक नाम लेबासँ लोक अपवित्र भऽ जाइत अछि।

विनीत उत्पल : अहाँपर लोक आरोप लगबैत अछि जे 'चेला’ बनाबैत छी जेना महाप्रकाशपर रेखाचित्रमे रमेशकेँ उद्घृत करैत सुषाष चन्द्र यादव लिखै छथि। ई गप कतेक सच अछि?
जीवकांत : हम गुरुजी रही। साइंस टीचर रही तँ शिष्य तँ बनबे करत। सभ आदमी अपन प्रभाव छोड़ैत अछि। कुणाल, प्रदीप बिहारी आदि ई नाम अछि। हालमे शिवशंकर कहलथिन जे अहाँक रचना हम पढ़ैत रही। तारानंद वियोगी कहलथिन अहाँक कविता मासमे दूटा पढ़ैत रही, मिथिला मिहिरमे, ताहिसँ प्रेरित भेलहुँ आ लेखनक मुख्य धारासँ जुड़लहुँ। हमहुँ कहैत छी, यात्रीजीक लेखनसँ प्रभावित भेलहुँ। हमहुँ कहैत छी जे हम यात्रीजी आ विद्यापतिक चेला छी। हम कमांडो नहि बनेने छी। हम कोनो पुरस्कार लेल पैरवीकार नहि बनेने छी। हम दलाल नहि बनेने छी। हमर रचनासँ प्रभावित भऽ कऽ कियो रचना कर्ममे आएल, एहिमे हमर की गलती? हम अपन समर्थनमे भीड़ नहि जुटेलहुँ, वोट नहि मांगलहुँ, समीक्षाक लेल पैरवी नहि कएलहुँ। तखन जे कियो कहैत अछि जे हम हुनकर 'चेला’ छी तँ एहि~मे गलत की अछि ?

विनीत उत्पल : विवेकानंद ठाकुरक कविता संग्रहकेँ लऽ कऽ मोहन भारद्वाज जी समीक्षाक पर खूब विवाद भेल छल? ताहि लेल अहाँ की कहैत छी?
जीवकांत : मोहन भारद्वाज विवेकानंद ठाकुरक कविता संग्रह 'गामक कविता, कविताक गाम’ पर एकटा समीक्षा केने रहथिन। ओहिमे मोहन भारद्वाजजी लिखलथिन्ह जे हिनकर कविता सभटा समकालीन संभावनाकेँ खारिज करैत अछि। एहि संदर्भमे हम गौरीनाथकेँ एकटा पत्र पठेने छलहुँ। एतेक घटिया समीक्षा आ तुलनात्मक अध्ययन नहि भऽ सकैत अछि। संगे-संग पत्रक फोटोस्टेट कॉपी आओर लोककेँ पठेने छलहुँ। एकहि रचनासँ सभटा कविता खारिज भऽ जाए, एहन संभव नहि अछि। हमर विरोधक पत्र कोनो पत्रिकामे नहि आएल। मुदा गौरीनाथ एकरा मुद्दा बना देलक।
विनीत उत्पल: मोहन भारद्वाजक समीक्षाकेँ किछु गोटे गदगदी समीक्षा कहलन्हि मुदा ओ सभ बादमे अपने सेहो गदगदी समीक्षा कएलन्हि, मात्र किताब आ लेखक बदलि गेल!
जीवकांत: ई सभटा समीक्षक दारू पी कऽ, पैसा पी कऽ, मूर्खता पी कऽ विषवमन करैत अछि।

विनीत उत्पल : अपनेसँ अनुदित पुस्तक पर मूल पोथीक लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार लेखक सभ लेमए शुरू कए देलन्हि अछि। जेना अहाँ हालेमे अपन निबन्धमे मायानंद मिश्र द्वारा अपन लिखल हिन्दीक पोथीक स्वयं मैथिलीमे अनुदित पुस्तक 'मंत्रपुत्र’पर पुरस्कार लेबाक विषयमे लिखलहुँ?
जीवकांत : एहि मुद्दापर हमरा किछु नहि कहबाक अछि। मुदा मायानंद मित्र पुरस्कार लेलन्हि तँ किछु जरूर सोचने हेताह, सोचिए कऽ लेने हेताह। वैहि कहि सकैत छथि जे किए लेलन्हि।

विनीत उत्पल : साहित्य आ साहित्य लेखनमे इमानदारी आ नैतिकता कतेक आवश्यक अछि?
जीवकांत : लोककेँ सभ ठाम ईमानदार हेबाक चाही। 'पंजरि प्रेम प्रकासिया’मे हम खूब ईमानदारीसँ लिखने छी। मुदा, लोक गंगाजल लऽ कऽ अपन जीवनी लिखैत अछि। कविता, कहानी, नाटक तकमे लोक गंगाजल छींट कऽ लिखैत अछि। लेखनमे प्रेम, खून, हत्या, लार नहि अबैक चाही। हम सभ पाखंड करैत छी। मुदा जे लेखक जीवनक सत्य आ समाजक स्थिति लिखलक ओ अपन धरतीपर बदनाम भऽ गेल। राजकमल चौधरी साहित्यमे समाजक सत्य लिखलक, बदनाम भऽ गेल। ओ सत्य लिखलन्हि तँ हुनका 'अय्यास प्रेतक विद्रोह’ कहल गेल।

विनीत उत्पल : मिथिलाक केंद्र मानल जाएबला शहर 'मधुबनी’मे मैथिलीक पोथी नहि भेटैत अछि, एना किए?
जीवकांत : हम तँ देहातमे रहैबला लोक छी। बासन तँ दिल्ली, मुंबई, कोलकातामे बिकाइत अछि। मधुबनी, दरभंगा, घोघरडीहामे तँ घास छिलैबला लोक रहैत अछि। पढ़ै वाला लोक तँ बाहरे चलि जाइत अछि। मधुबनीमे पोथी नहि बिकाइत अछि, ओहिमे लेखकक कोन दोष? पब्लिशर्स आ सर्कुलेशनक मामला्मे समर्पित लोकक जरूरत अछि। गीता प्रेसक पोथी सभ ठाम बिकाइत अछि। हिंद पॉकेट बुक्सक पोथी ठामे-ठाम भेटैत अछि। हिंदीमे धर्मयुग, सारिका बंद भऽ गेल अछि। हमर सबहक पोथी दोकानमे नहि भेटि रहल अछि। लोक-वेद खैरातमे पोथी लएले चाहैत अछि।

विनीत उत्पल : प्रबोध सम्मान 2010 प्राप्त करबाक लेल बधाई।

(साभार विदेह www.videha.co.in )

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