बहुआयामी व्यक्तित्वक व्यक्ति एवं सौभाग्य मिथिला चैनलक कार्यक्रम प्रभारी कुमार शैलेन्द्रसँ प्रतिनिधि युवा विहनि कथाकार एवं समालोचक मुन्नाजीसँ भेल गपशपक अंश अहाँक सोझाँ राखल जा रहल अछि।–
मुन्नाजी: पहिल बेर मैथिलीमे कोन विधासँ वा कोना प्रवेश भेल आ ओकर की कारण छल?
कुमार शैलेन्द्र: सन १९६४ ई. मे राजेन्द्र नगर पटनामे हमर जन्म भेल। हमर पिता शिवकान्त झा ओइ समए हिन्दी दैनिक आर्यावर्तमे समाचार सम्पादक रहथि। घरमे कएकटा अखबार, मैथिली पत्रिका शुरूहेसँ पढ़बा लेल भेटल। ओइ समएमे पटनामे ठाम ठीम विद्यापति पर्व समारोह हुअए, मैथिलीक रुचि हमरा ओतएसँ जागल। तकर बाद जखन हम कॉलेजमे पहुँचलहुँ तँ हरिमोहन झाक साहित्य पढ़ि हमरा आभास भेल जे मैथिली साहित्य बड्ड समृद्ध अछि। तकर परिणाम भेल जे हम इण्टरमीडिएटमे अनिवार्य भाषा (१०० अंकक) हिन्दीक बदलबा कऽ मैथिली राखि लेलौं। तकर पछाति हम मैथिलीयेमे ऑनर्स आ एम.ए. केलहुँ। हम कॉलेजमे रही तखने उत्सुकता रंगमंच दिस भेल। हमरा मोन पड़ैछ रवीन्द्रनाथ ठाकुर, जिनका द्वारा पटनामे मैथिलीक पहिल रंगमंचक गठन भेल, “रंगलोक” जे ओहि समएमे एकटा नाटक मंचन केलक जकर समीक्षा लिखि हम आयावर्तमे देलिऐ। ओहि समय गोकुलनाथ झा आ भीमनाथ झा कहलनि, समीक्षा हमर रिपोर्टर लिखत, अहाँक समीक्षा नै हएत। फेर गोकुल बाबू कहलनि, समीक्षा नीक अछि, लिखैत रहू। ओ हमर पहिल समीक्षा छल, नै छपल मुदा तकर बाद समीक्षा लिखैत रहलौं आ छपैत रहलौं।
हमरा पता चलल जे कौशल किशोर दास पटनामे एहेन युवक सभकेँ ताकि रहल छथि जिनका रंगमंचमे रुचि होइन। कौशलजी आइसँ पहिने कलकत्तामे रंगमंचसँ जुड़ि सफल रहल छलाह आ आब पटना आबि गेल रहथि। हम हुनकासँ भेंट केलौं आ तकर पछाति सबहक विचारे १८ फरबरी १९८२ ई. केँ एकटा मीटिंग राखल गेलै जाहिमे हम, कौशल किशोर दास, प्रमोद भाइजी, अरुण कुमार झा आ गोकुलनाथ दास कुल पाँच गोटे, ओइ मीटिंगमे उपस्थित भेल रही। हमरा प्रस्तावे “अरिपन” नामक संस्थापर सहमति बनल २८ फरबरी १९८२ केँ। मैथिलीक प्रतीक “अरिपन” क रूपमे एकर प्रस्ताव रखलौं। कौशलजी एकर समर्थन केलनि। तकर बाद विचार भेलै नाटक मंचनक। बहुत रास मैथिली नाटकक किताब जमा भेल जैपर कौशलदास सहमत नै भेला। हमरा कहलनि- पु.ल. देशपाण्डे लिखित मराठी नाटक- बेचारा भगवान चर्चित आ पुरस्कृत एवं लोकप्रिय अछि। अहाँ मैथिली जनै छी ओकरा हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद करू। ईएह मैथिली अनुवाद ओही नामे “अरिपन”मे पहिल बेर मंचित भेल।
तकर पछाति हमर भातिज अरुण कुमार झा कहलनि जे अशोकनाथ “अश्क” मैथिलीमे नाटक लिखने छथि। ओ ओहि समएमे छात्र रहथि आ हुनक लिखल नाटक “विद्रोह” हमरा सभकेँ पसिन्न पड़ल, ई “अरिपन”क दोसर पुष्प छल। हम सभ “अरिपन”क अध्यक्षक लेल बहुत वरिष्ठ गोटे लग गेलौं, कियो अध्यक्षता लेल तैयार तँ नहिये भेला जे कहलनि- अहाँ सभ बेकार फिरिसान होइ छी, मैथिली रंगमंच कहियो अस्तित्वमे नै आबि पाओत। ओही क्रममे हम सभ जटाशंकर दासजी सँ भेंट कएल, ओ एकमात्र व्यक्ति हमरा सभकेँ सभ तरहेँ संग देलनि, अध्यक्षता केला। शेष बुजुर्ग सभ बादमे अरिपनक छोट-छोट पदाधिकारी धरि भेला, हम आब नाम नै लेबऽ चाहब, हुनका सभकेँ अपमान बुझेतनि। दू वर्षक क्रियाकलापकेँ सभ कियो सराहऽ लगलाह आ शेष सभ गोटेकेँ मैथिली रंगमंचक भविष्य देखाए लगलनि। तेसर वर्ष ओही संस्थाक अध्यक्ष भेलाह श्री मंत्रेश्वर झाजी आ क्रमे हमरा सभकेँ विलगा देल गेल।
मुन्नाजी: अहाँ प्रारम्भमे मैथिलीमे नाटकक योगदाने आगाँ एलौं मुदा फेर पत्रकारिता दिस उन्मुख भऽ गेलौं, नाटकसँ कोनो असोकर्ज तँ नै बुझना गेल?
कुमार शैलेन्द्र: पत्रकारितामे- अहाँकेँ कहलौं जे पिताजी पहिनेसँ ऐ काजमे लागल छलाह। तँ हमरो रुचि छले। उदयचन्द्र झा “विनोद” आ विभूति आनन्द दुनू गोटे माटि-पानि नामक पत्रिका बहार करैत छलाह। विनोदजी तँ जॉबमे छलाहे समयाभाव छलनि, विभूतिजीकेँ सेहो मिथिला मिहिरमे नोकरी लागि गेलनि। तखन माटिपानिक ८० प्रतिशत काज -यथा मुरलीधर प्रेसमे जा टाइप सेटिंग कराबी, प्रूफरीडिंग कॉपी एडिट आदि-आदि काज करी- फाइनल टच विभूतिजी आबि कऽ दैथि। हमर नाम नै रहै छल, हँ अन्तिम दू अंकमे सहयोगी शैलेन्द्र कुमार झा जोड़ल गेल। तकर पछाति ओ बन्न भऽ गेलै, जेना आन मैथिली पत्रिकाक दशा होइत छैक। पत्रकारिता तँ हमर पारिवारिक कारोबार वा रोजगार बनि गेल छल। हमर पिताजी सेवानिवृत्त भऽ गेल रहथि। हमरा आर्यावर्तमे प्रशिक्षु संवाददाताक रूपमे नोकरी भेल। हम सभ कोनो डिप्लोमा डिग्री लेनाइ तँ दूर सुननेहो नै रही, विशेष कऽ पटनामे जे पत्रकारितामे कोनो डिप्लोमा डिग्री होइत छैक। हँ, जँ हमरा पहिने बुझल रहैत जे नाटकक लेल एन.एस.डी. (राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय) प्रशिक्षण दैत अछि तँ हम जरूर प्रयास करितौं, मुदा पटनामे ऐ तरहक कोनो माहौल नै छलै। हमर पिताजी आर्यावर्त ज्वाइन करबासँ पहिने पुणेमे पेशेवर रंगकर्मीक रूपेँ जुड़ल रहथि। १९५५ मे आकाशवाणी पटनासँ जुड़लाह आ तहियेसँ मैथिली नाटकमे अपन स्वर दैत रहलाह। ई क्रम १९८५ धरि चलल। हमरा जनैत ओ पहिल व्यक्ति छथि जे अनवरत एतेक दिन धरि मैथिली नाटकसँ जुड़ल रहलाह। १९७०-७२ क बाद प्रेमलता मिश्र “प्रेम”, बटुक भाइ सभ जुड़लाह, नीक योगदान देलनि, मुदा हमर पिता शिवकान्त झाजी, आनन्द मिश्र, मायानन्द मिश्रक समकक्ष रहलाह। नाटकमे हमरा रुचि ओतैसँ जागल। ओइ इलाकामे (हनुमाननगर, मधुबनी)मे हुनकर मंचीय काजकेँ एकटा किंवदन्तीक रूपमे जानल जाइए।
मुन्नाजी: अहाँक अन्तिम नाटक उगना हॉल्टक मंचन मिथिलांगन (दिल्ली) द्वारा २००९ मे भेल, जे पूर्णतः आजुक परिप्रेक्ष्यमे प्रासंगिक आ मनोरंजक छल। एहिसँ पूर्व अहाँक कोन-कोन आ कोन तरहक नाटक सोझाँ आबि गेल अछि? लेखन आ मंचन दुनू दृष्टिएँ?
कुमार शैलेन्द्र: पहिल बेर हम मंचपर एलौं मराठीक अनूदित नाटक- बेचारा भगवान लऽ कऽ। तकर बाद बहुत रास नीक नाटकक अनुवाद केलौं। हमर पहिल मैथिली नाटक अछि- मोर मन मोर मन नै पतिआइ-ए। दोसर ३१-१२-१९९६ केँ उत्तरायण हास्य व्यंग्यपरक नाटक अछि, एकर बाद लोरिकायन, अग्निपथक सामा (चेतना समितिसँ प्रकाशित), ई मैथिलीक पहिल नाटक छल जकरा बिहारक सभसँ पैघ श्री कृष्ण मेमोरियल हॉलमे मंचित कएल गेल ०४.०८.२००१ केँ। गीतात्मक देसिल बयना २००७ मे, मिथिलांगन (दिल्ली)क आग्रहपर नैकाबनिजाराक गीतात्मक नाट्यरूपान्तरण केलौं जाहिमे १०टा गीत छै, जकर मंचन २००७ ई. मे व्रजकिशोर वर्मा “मणिपद्म” जयन्तीपर मिथिलांगन द्वारा संजय चौधरीक निर्देशनमे मंचित कएल गेल। २००८ ई. मे मिथिलांगन द्वारा आजुक प्रसंगमे लिखल हास्य व्यंग्य नाटक “उगना हॉल्ट”क मंचन भेल।
मुन्नाजी: अहाँक नाट्य मंचन मूलतः गमैया नाटकसँ प्रारम्भ भेल छल, आजुक परिप्रेक्ष्यमे गमैया नाटक कतऽ अछि। गमैया आ थियेटरमे मंचित नाटकक तुलनात्मक स्थिति की अछि?
कुमार शैलेन्द्र: गमैया नाटक जतऽसँ शुरू भेल छल आइयो ओतै अछि आ ऐसँ ऊपर उठबाक आशा सेहो नै देखा पड़ैत अछि। थियेटर नाटक आधुनिक साज-सज्जा ओ प्रकाश व्यवस्थासँ संतुलित रहैत अछि। मुदा गमैया नाटक जेना अछि ओहिसँ सुधरि नै सकैत अछि जकर मूल कमी अछि बिजली वितरणक अभाव। गाममे एखनो नाटक पेट्रोमेक्सक इजोतमे होइत अछि, जतऽ जेनेरेटरक व्यवस्था होइत छै, ओहो समुचित नै कहल जा सकैछ, किएक तँ ओतौ डिमरक प्रयोग नै भऽ सकैत अछि। थियेटरमे आयोजित नाटक प्रारम्भसँ अंत धरि नाटकक क्रमिक दृश्य देखाइछ। मुदा गमैया मंचपर एखनो दृश्य परिवर्तनक बीच कॉमिक वा नाच देख सकैत छी। गाममे ताधरि स्थिति खराब रहत जाधरि दृश्य परिवर्तन उठौआ परदासँ हेतै। गामक मेकपमे एखनो मुर्दा शंखक उपयोग होइत छै। गामक नाटक कहियो ऊपर नै उठि सकैत अछि। कहियो थियेटरक नाटकक बरोबरि नै भऽ सकैए, किन्नो नै भऽ सकैए।
मुन्नाजी: हमरा जनतबे आइयो नाटकक लेल दर्शकक अभाव नै छै, हँ समयाभाव जरूर भऽ गेलैए, ताहि हेतु एकांकी सभकेँ मंचित करब शुरू भेल अछि। अहाँक नजरिये एकांकीक रुखि केहेन अछि, एकर भविष्य केहेन बुझना जाइत अछि।
कुमार शैलेन्द्र: आधुनिक रंगमंचपर भलहिं एकांकीक प्रचलन बढ़लैए मुदा एकांकीक आधार वा सम्भावना नै छैक से मैथिलीये नै अन्यान्य भाषाक एकांकी संग सेहो छैक। अखन जे नाटक लेखन भऽ रहल अछि ओइमे साहित्यिक नाटक कम अछि। नाटक ऐ रूपक प्रारम्भ सुधांशु शेखर चौधरीक नाटक सभसँ भेल। नाटक अपन परम्परामे आबि अलग अलग शिल्पक प्रयोगे लिखल जा रहल अछि। प्राचीन जे प्रदर्शन कला छलै तकरासँ जोड़ि कऽ आधुनिक प्रदर्शन कलाक प्रस्तुति कएल जा रहल अछि। मुन्नाजी, एकांकीक अस्तित्व मैथिली सहित सभ भाषामे खसि गेलैक अछि। भविष्य कोनो नीक नै बुझना जाइछ।
मुन्नाजी: वर्तमानमे किछु बीछल कथाकेँ एकांकी रूपेँ प्रस्तुत कएल जाए लागल अछि, की कथाक मूल एकांकीमे समाहित भऽ पबैए वा नै? आ कथाक एकांकी रूपान्तरण कतेक उचित वा अनुचित अछि?
कुमार शैलेन्द्र: कथाक नाट्य रूपान्तरणक प्रारम्भ केलनि हिन्दीमे देवेन्द्रराज अंकुर। कथा मंचनक सभ भाषामे अयोजन कएल जा रहल अछि। कथाकेँ नाट्य रूप दिऐ तखने ओ सार्थक भऽ सकैछ, मुदा से अछि कठिन। हम धूमकेतुक कथा “अगुरवान”क नाट्यरूपान्तरण कएने रही तँ ओइमे कथाक मूल स्वरूपकेँ यथावत रखने रही। ओना तँ ताहि हेतु कठिन परिश्रम करऽ पड़ल छल। आगू म. मनुज ओइ अगुरवानक रूपान्तरण काफी लिफ्ट लैत केलनि तँ ओकर मूल आत्मे मरि सन गेलै। किएक तँ ओइ नाटकमे बहुत रास दृश्य एहेन जोड़ल गेल छैक जे कथामे छहिये नै। कथा मंचन हेबाक चाही, ओकर प्रतिरूप नै जेना हमर नैका बनिजारा छल। ओतेकटा पोथीकेँ डेढ़ घंटाक कलेवरमे समेटि देनाइ बड कठिन छल। मुदा हम ओइमे सफल भेलौं। कथाक मंचन तँ सही छैक मुदा जखन नव आयाम जोड़ल जाइ छै तखन कथाक आत्मा आहत होइत छैक। देवेन्द्रराज अंकुर जेना कथाक नाट्यरूपान्तरणमे कथाक मूल रूपकेँ प्रस्तुत कऽ पबै छथि तहिना मैथिलीयोमे कएल जाए तँ नीक बात अन्यथा लौल करब व्यर्थ अछि।
मुन्नाजी: अहाँ लेखनक अतिरिक्त अभिनयसँ सेहो जुड़ल रहलौं। हम सभ फिल्म सिन्दुरदानमे अहाँक सुन्दर अभिनय देखने छी। ऐसँ पूर्व अहाँ कोन-कोन फिल्म वा धारावाहिकमे अभिनय केने छी आ एकर केहेन अनुभव केलहुँ?
कुमार शैलेन्द्र: जँ अहाँ कही छोटकी परदा हम ओकरा कहै छी- नन्हकी परदा आ सिनेमाकेँ कहै छी बड़की परदा। बड़की परदाक बात करी तँ “सिन्दुरदान” हमर दोसर फिल्म अछि। पहिल फिल्म अछि रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा निर्मित आ निर्देशित हिन्दी फिल्म “आयुर्वेद की अमर कहानी”- ऐमे हम अभिनय केने रही, ललितेश ऐमे हीरो रहथि आ संगमे रहथि दिलीप झा। राँटी, मधुबनीमे एकर सूटिंग भेल रहै। हमरे सन चारि-पाँच गोटे आरो प्रतिभावान कलाकार रहथि। सिन्दुरदानमे १६-१७ बर्खक पछाति चरित्र अभिनेताक रूपमे आएल रही, आब तँ हमर चेहरो बदलि गेलहेँ। ऐमे हमर भूमिका नायिकाक पिताक रूपमे छल। एकर बाद सौभाग्य मिथिला मैथिली चैनलक लेल बनाओल मुख्य धारावाहिक “दियर-भाउज”क डेढ़ सए कड़ीसँ बेसीमे षडयंत्री ककाक भूमिकामे काज कएलौं। तकर अतिरिक्त रविन्द्रनाथ ठाकुर नन्हकी परदापर एकटा काउन्टडाउन शो केने रहथि, जैमे कविक भूमिकामे एकटा प्रस्तोताक रूपमे हम अभिनय केने रही। ईएह हमर नन्हकी-बड़की परदाक अभिनय यात्रा अछि जे एकटा प्रसन्न करैबला अनुभव रहल।
मुन्नाजी: अहाँ बहुत दिन धरि मैथिली पत्रकारिता विशेषकऽ आकाशवाणीसँ जुड़ल रहलौं, की भविष्य छै एकर? एकरा छोड़ि अहाँ दूरदर्शनसँ किएक जुड़लहुँ?
कुमार शैलेन्द्र: हमर रोजगार यात्रा पत्रकारितेसँ शुरू भेल, विशेष कऽ प्रिन्ट मीडिअमसँ। ओइ संग आकाशवाणीसँ सेहो जुड़ल रहलौं। आकाशवाणी पटनासँ प्रसारित किछु नाटकमे काज केलौं। आ एतऽसँ प्रसारित चौपालमे “बम-बम”भाइक भूमिकाक निबहता करैत रहलौं। तकरा संग-संग नौ साल धरि आकाशवाणी पटनासँ शैलेन्द्र कुमार झाक नामे समाचार वाचन करैत रहलौं। एकर अतिरिक्त नै जानि कतेको रेडियो नाटिकामे अपन स्वर देलौं। एकटा महत्वपूर्ण काज छल ओतऽसँ प्रसारित “सिंहासन बत्तीसी” धारावाहिकक- चौंतीसम कड़ी धरि राजा भोजक भूमिकामे रही जे महत्वपूर्ण काज छल। तकर बाद ई.टी.वी. हैदराबादमे छः घण्टाक लिखित आ दू घंटाक मौखिक परीक्षाक पछाति हमर चयन भेल। हम ओतऽ एक सप्ताह मात्र काज केलौं। ओहीमे हमर वरिष्ठ रहथि गुंजन सिन्हाजी जे एखन मौर्या टी.वी. पटनामे वरिष्ठ पदाधिकारी छथि। हमरा ओतऽ मोन नै लागल वा मोन नै मानलक। हाम आपस चल एलौं। तकर बहुत पछाति “सौभाग्य मिथिला” मैथिली चैनलसँ जुड़लौं, जैमे समस्त कार्यक्रमक निर्माण देखैत रहलौं। छोड़बासँ पहिने समाचार संपादक रूपमे कार्यरत रही। सौभाग्यसँ जहिया जुड़लौं तँ हम पहिल मैथिल व्यक्ति रही ओ सौभाग्य नामक एकटा डिवोशनल चैनल छल आ ओइमे सभ हिन्दीभाषी कार्यरत छलाह।
मुन्नाजी: अहाँक नाटक पत्रकारिताक अतिरिक्त एकटा सकल मंच संचालकक रूप सेहो सोझाँ आएल। अहाँ ओहूमे खूब जमलौं।की मैथिलीमे स्वतंत्र संचालकक अस्तित्व आ भविष्य देखा पड़ि रहल अछि?
कुमार शैलेन्द्र: मंच संचालन हमर महत्वपूर्ण लोकप्रिय विधा रहल अछि। पटनाक चेतना समितिक मंचसँ विद्यापति समारोहमे बहुत दिन धरि मंच संचालन करैत रहलौं। सत्य पूछी तँ ओइमे आनन्द अबैत छल, किएक तँ ओ जे भीड़ होइ छलै एक लाख डेढ़ लाख लोकक आ शालीनतापूर्वक सभ सुनैत रहै छल। तकर पछाति कतेको मंचपर बजाएल जाए लगलौं। मैथिलीमे मंच संचालकक वा उद्घोषकक कोनो पेशेवर रूप टिकाऊ नै भऽ सकैछ। एखन एकर कोनो सम्भावना नै छैक। हँ हमर जे समिति सबहक उद्घोषक भेलाह हुनक रूप बदलि गेल छनि, माने ओ आब एकटा कन्ट्रैक्टर वा एरेन्जरक रूपमे छथि। समस्त कलाकारक व्यवस्था ओ करथि आ ओही व्यवस्थापर कार्यक्रम आयोजित होइत अछि। ओना एहेन जे उद्घोषक सेहो सिजनल भऽ सकैत छथि। हम जखन उद्घोषक रही तँ ई बात पहिने सोझाँ आबए जे जँ विद्यापति पर्व समारोह अछि तँ ओइमे विद्यापति आ मिथिलाक सांस्कृतिक आधारकेँ केन्द्रित कऽ कार्य कएल जाए। आब गीत-संगीतमे फूहड़ता एलैए तँ कैक ठाम संचालकक स्तर खसि रहल छैक।
मुन्नाजी: मैथिलीक पहिल चैनल “सौभाग्य मिथिला”सँ पूर्ण रूपेँ जुड़ि अपन सर्वस्व ऊर्जा ऐमे खर्च कऽ रहल छलौं। मुदा एखनो बहुत रास कमी अछि जेना डी.टी.एच.पर ऐ चैनलक प्रसारण नै हएब? ठोस वा मनोरंजक कार्यक्रमक अभाव किएक?
कुमार शैलेन्द्र: निश्चित रूपे मुन्नाजी अहाँक जे सवाल अछि तैसँ हम सहमत छी। हम जहिया जुड़लौं ऐसँ तँ असगर मैथिल छलौं। एकर सभ कार्यक्रम चैनल आइ.डी.सँ लऽ समस्त कार्यक्रमक आधारभूत संरचना तैयार केलौं। हमर बाद जे किछु लोक जुड़ल से सभ चैनल माध्यमे चिन्हल गेल मुदा हम पहिनेसँ मिथिलाक सभ क्रियाकलाप कला संस्कुति आदि सँ सर्वथा जुड़ल रहलौं। हमरा प्रारम्भमे कहल गेल जे ऐमे दू घंटाक मैथिली कार्यक्रम हएत मुदा कालक्रमे २४*७ क प्रसारण -यानी चौबीसो घंटा आ सातो दिन- होमऽ लागल। हम एकरा कहल बुद्धिवाद, जे ई जोगाड़ डॉट कॉम पर टिकल रहल, किएक तँ एकरा फाइनेन्सरक पूर्णतः अभाव रहलै।
मुन्नाजी: ऐ चैनलक बहुत रास कमी एहेन अन्यान्य भाषाक चैनलक समक्ष एकरा ठाढ़ नै होमऽ दऽ रहल छै। एनामे एकर अस्तित्व समाप्त तँ नै भऽ जाएत।
कुमार शैलेन्द्र: एकरा लग प्रतिभा, लोक, अभिनेता, गीत-संगीत गौनिहारक कमी नै छै। साहित्य-संस्कृतिक कमी नै छै। योग्यताक अभाव नै छै। कमी छै तँ धनक, चैनलक मार्केटिंग केनिहार लोकक। अभाव छै तँ जे सभ मालिक वा पार्टनर छथि हुनकामे, जे कोना बजारसँ धन उगाहिकेँ आनल जाए। से सभ जहिया भऽ जाएत तहिया ऐ चैनलसँ स्तरीय कार्यक्रम सभ प्रस्तुत होमऽ लागत आ ई सभ तरहेँ आन भाषाक चैनलक समक्ष ठाढ़ भऽ जाएत। चैनलसँ आब जे जुड़ल छथि, जहिया हमहूँ सभ जुड़ल रही प्रोग्रामसँ, जे जुड़ल लोक अछि तकरा प्रोग्रामक भार रहै आ मालिक लोकनि एकर व्यापार प्रभागक संचालन करथि। ई भेद कऽ के काज हेतै तखन ई जरूर सफल हएत। नै मालिके सभटा काज करता तखन स्थिति दुःस्थितिये बनल अहत।
मुन्नाजी: ऐ सभक अतिरिक्त मैथिली गजलक उपयोग अहाँ सेहो करैत रहलौं अछि। मैथिलीमे गजलक की स्थिति छैक आ एकर केहेन सम्भावना देखा पड़ैत छैक?
कुमार शैलेन्द्र: मैथिली गजल अपन लोकप्रियता बहुत पहिने हासिल कऽ लेने अछि, कलानन्द भट्ट, बुद्धिनाथ मिश्र, रविन्द्रनाथ ठाकुर आदि श्रेष्ठ गजलकार छथि। मायानन्द मिश्र सेहो अही श्रेणीमे गानल जाइत छथि। हुनकर “रूप एक रंग अनेक” नामक संग्रह चर्चित रहल छनि। ओ ऐ सभ गजलकेँ गीतल कहै छथि। एम्हर आबि कऽ पत्रिका सभमे गजलक अभाव पाओल जाइत अछि। देखियौ मुन्नाजी, एकटा खास बात छै जे गजल एहेन विधा छै जे कोनो भाषामे लिखल जाए अपन जमीन तैयार कऽ लैत अछि। मैथिलीयोमे राम चैतन्य धीरज, तारानन्द वियोगी, रमेश आदि आ सरसजी गीत आ गजलमे नव-प्रयोग केलनि। कविताक जे प्रकार छै तैमे मैथिली गजलक सेहो अस्तित्व छैक आ भविष्य सेहो। गजल जतऽ जै भाषामे जाइ छै ओहीमे समाहित भऽ जाइ छै। गजलमे गेय तत्व छै जे ओकरा लोकप्रिय बना देने छै।
मुन्नाजी: शैलेन्द्रजी, एकटा सवाल व्यक्तिगत जिनगीसँ जुड़ल। अहाँ अपन एकल जिनगी जीबाक प्रयास कऽ रहलौं अछि- माने अविवाहित रहि- एकर कारण रोजगारपरक व्यावसायिक अवरुद्धता अछि वा कोनो व्यक्तिगत विशेष कारण। अहाँकेँ नै लगैछ जे एहन जीवन अधूरा वा व्यर्थ भऽ जाइत अछि?
कुमार शैलेन्द्र: देखियौ, ई अहाँक हमरासँ जुड़ल वैयक्तिक, पूर्ण व्यक्तिगत प्रश्न अछि। मुदा हम एकर उतारा देबासँ परहेज नै करब। वरन एगदम सहज आ स्वाभाविक उतारा देब। हम जखन यंग रही तखन पिताजी चाहैत रहथि जे हम बियाह कऽ ली, मुदा हम आर्थिक रूपेँ सक्षम नै बुझी अपनाकेँ। किएक तँ आर्यावर्तमे काज करैत रही, ओ ओही समएमे बन्न भऽ गेलै। हम बेरोजगार भऽ गेलौं आ बियाह नै करबाक मूल कारण छल हमर अर्थ विपन्नता। हम परिवार चलेबा लेल जतेक अर्थक प्रयोजन बुझलौं ततेक हम कहियो नै कऽ सकलौं। लोकक अपन-अपन रहबीपर निर्भर छै। ककरो लगै छै जे हम पाँच हजारमे गुजारा कऽ ली। हमरा लगैछ जे बीस हजार खर्च भऽ सकैछ। हम आइयो ओहिना छी जे अपना अर्थे विपन्न बुझै छी। हमरा मैक्सिम गोर्कीसँ जीवन्त प्रेरणा भेटैत रहल अछि। ओना हम मानै छी जे गोर्कीकेँ जीवनमे जतेक कष्ट सहऽ पड़लनि ऐसँ बहुत कम कष्ट हम उठेलहुँ अछि। हम जखन संकटमे अबै छी तँ हमरा गोर्की मोन पड़ै छथि आ हुनके प्रेरणासँ हम अपनाकेँ सम्हारि लैत छी। हँ, हम ईमानदारीपूर्वक कहब जे एतेक साहस कहियो नै आएल वा हमरा कियो भेटबो नै कएल। जे अपना ओइठाम जे पारम्परिक विवाह छै तैमे हमरा विश्वास नै रहल अछि। जँ हम ओना बियाह कऽ ली आ तेहेन कोनो जोड़ीदार आबि जाए जे अहाँक जीवनकेँ नर्क बना दिअए तँ हमरा कोनो शिकाइत नै अछि जे हम एकसर छी। हम विवाह नै केलौं तैं हेतु कतौ कोनो लोक, एम्प्लॉयरसँ कहियो कोनो कम्प्रोमाइज नै करऽ पड़ल। हमरा जतऽ जहिया जेना मोन भेल काज करैत रहलौं। हमर जे संगी नोकरिहारा, तकरा लेल लड़ैत रहलौं। आ तैँ हमर एम्प्लायर डरैत रहल अछि। ओ मानैए जे हम यूनियनबाजी करै छी, जखनकि सत्य अछि आइ धरि कोनो यूनियनसँ कोनो सम्बद्धता नै रहल अछि। असगरूआ रहब हमर सम्बल रहल अछि। काल्हि की हेतै एकरो गारंटी हम नै दऽ रहलौंहेँ। कतेको गोटे कहैए, आब अहाँ बूढ़ भऽ गेलौं, आब बियाह कऽ की हएत? मुदा हमरा अखनो वा आगूओ जँ अपन सोचक कियो भेटि जेती तँ हम बियाह कऽ सकैत छी।
मुन्नाजी: भाइ, एतबा बहुमूल्य समए दऽ अपन विचार देबा लेल धन्यवाद।(साभार विदेह www.videha.co.in )
No comments:
Post a Comment