Sunday, October 23, 2011

प्रबोध सम्मान 2004 सँ सम्मानित मायानंद मिश्रसँ विनीत उत्पलक साक्षात्कार

सभ दिन रहताह विद्यापति  : मायानंद मिश्र
प्रबोध सम्मान 2004 सँ सम्मानित मायानंद मिश्रसँ विनीत उत्पलक साक्षात्कार
विनीत उत्पल : अहाँक जन्म कोन ईस्वीमे भेल छल आ लालन-पालन कोना भेल?
मायानंद मिश्र : हमर सर्टिफिकेट जन्मतिथि 1934 ईस्वी थिक, मुदा कुंडलीमे अछि 1930 ईस्वी। माइक देहावसान बादे सन 1936-37 ईस्वीमे जखन हम पांचो-छओ वर्षक रही, मातृक सुपौल आनल गेल होएब। मुदा बीच-बीचमे गामो लऽ गेल जाइत रही तकर किछु-किछु खंडित स्मृति अछि। गामक स्मृति ओ ज्ञान क्रमश: सन 1940-41 ईस्वीसँ  होमऽ लागल जे हमरा एकटा छोट बहिनि सेहो अछि आ हमरा चारिटा पित्ती तथा दुइ टा पीसी सेहो छथि। हमर लालन-पालन छठमे-सातमे वर्षसँ  मातृकेमे होमऽ लागल छल आ छोट बहीनक गाममे।
विनीत उत्पल : कोशीक झमारल अहाँक परिवार रहए, तखन साहित्यसँ कोना जुड़ाव भेल?
 मायानंद मिश्र : जखन गाममे कोसी बाढ़िक उत्पातक कारण सन 1940-41 ईस्वीमे गाम छोड़िकेँ प्रतापगंज थानाक गोविंदपुर जा कऽ हमरा सभकेँ रहऽ पड़ल। ओतए ओहि मातृवत बहीनक अपन पतिकुलक किछु जमीन छल, जाहिसँ मात्र पेट टा भरल जा सकैत छल। एहि गोविंदपुरमे सन 1945-46 ईस्वीमे हमर प्राथमिक कवित्व प्रतिभाक अंकुरण भेल छल। जखन ओहि ठामक कालीस्थानक लेल सुपौलक कोने ग्रामोफोनक कोनो गीतक सुरमे भगवतीक अर्चना-गीत लिखने छलहुँ, जकरा हम स्वयं गाबितो छलहुँ कीर्तन मंडलीमे।
विनीत उत्पल : उच्च शिक्षा कतएसँ भेटल? विस्तारसँ बताऊ?
मायानंद मिश्र : सन 1950 ईस्वीमे सुपौलसँ मैट्रिक पास कएलाक बाद आगू पढ़बाक समस्या छल जाहिमे आर्थिक-समस्या मुख्य छल। उत्साह सभक छलनि जे हम आगू पढी विशेषत: ज्येष्ठ माम पंडित रामकृष्ण झा किशुनजी तथा पिताजी पंडित बाबू नन्दन मिश्रजीक। उत्साह एहि लेल सभक छलनि जे हमरा मैट्रिकमे सेकेंड डिवीजन भेल छल जे ताहि दिनमे बहुत कम होइत छलैक। अपन इच्छा छल पटना कालेजक। आवेदन सेहो कएल। नामांकनक स्वीकृति-सूचना सेहो भेटल। किंतु अंतिम कालमे किसुनजीक विचार बदलि गेलनि जे दरभंगे। दरभंगामे पंडित श्री चंद्रनाथ मिश्र अमरजी छथिन, हुनके अभिभावकत्वमे। सन 52 ईस्वीमे विवाह कारणे आई.ए. क परीक्षा नहि देल आ सन 54 ईस्वीमे आगराक मैथिली महासभाक कारणे बी.ए. क परीक्षा नहि दऽ सकलहुँ।

विनीत उत्पल : मैथिली साहित्य दिश कोन मन आएल?
मायानंद मिश्र : सन 50 ईस्वीमे सी.एम. कॉलेजमे नाम लिखाओल। श्री अमरजीक डेरापर अधिक काल साहित्यिक गोष्ठी, दरभंगासँ सुपौल-मुरलीगंज-कटिहार तथा मुजफ्फरपुरसँ जयनगर धरि विभिन्न स्थानपर कवि सम्मेलन, वैदेही-कार्यालय तथा गीत लेखन। भाङक लोटाक प्रकाशन। समए चलैत गेल, परिचय-परिधि बढ़ैत गेल। एहि बीच दरभंगामे राजकमलजीसँ परिचय भेल। फेर ललित-राजकमल-मायानंद क गोष्ठी सभ, साहित्यिक चर्चा सभ जाहिमे रामू अर्थात रमाकांत मिश्र ओ दिवानाथजीक निरंतर सहभागिता। सन 54 ईस्वीमे ललितजी सब-डिप्टी कलक्टर बनि दरभंगा चल गेलाह। राजकमलजी ता पटने छलाह। हमहूँ 56 ईस्वीक अंतमे रेडियो, पटना आबि गेलहुँ।

विनीत उत्पल : ओहिकालमे पटनामे साहित्यिक परिदृश्य केहन रहए ?
मायानंद मिश्र : पटनामे रेडियो स्टेशन, हास्य-व्यंग्य-सम्राट हरिमोहन बाबूक डेरा, पंडित जयनाथ बाबूक डेरा,  गोपेशजीक डेरा, प्रो. आनंद बाबूक डेरा, फणीश्वरनाथ रेणुक डेरा, मुरादपुर खादी भंडार, श्री रूपनारायण ठाकुरजीक कार्यकर्ता-निवासमे माछ-भातक मासिक भोज आ चेतना समिति, पुस्तक भंडारक रामायण-गोष्ठी, अभिव्यंजना-प्रकाशन, विभिन्न समए ओ विभिन्न स्थानपर घनघोर साहित्यिक चर्चा होइत छल। ओहि कालमे दक्षिण बिहारसँ मिथिलांचल धरि सभ जगह कवि सम्मेलनमे शामिल भेलहुँ।

विनीत उत्पल : पटनासँ सहरसा अएलहुँ, एतए केहन बीतल?
मायानंद मिश्र : एम.ए. क पश्चात सन 61 ईस्वीमे आबि गेलहुँ सहरसा कॉलेज, सहरसा। कॉलेज अध्ययन-अध्यापन, सघन-लेखन, बलुआसँ बम्बइ धरि विद्यापति  पर्व-समारोहमे मंच संचालन, भाषणो आ कविता पाठ सेहो, विभिन्न संस्थाक संगठनात्मक प्रक्रियाक अध्ययन, सहरसामे विभिन्न पर्व-समारोहक आयोजन, मैथिली चेतना परिषद, सहरसाक गठन, पटनामे मैथिली महासंघक संगठन, डाकबंगला चौक-जाम क कार्यक्रम, लेखन आ पाठन, प्राचीन इतिहासक सघन अध्ययन, पुन: प्रथम शैलपुत्री च, मंत्रपुत्र, पुरोहित आ स्त्रीधनक लेखन आ तकर हिन्दी आ॓ मैथिलीमे प्रकाशन, दिशांतर, अवांतर, चंद्रबिंदु क प्रकाशन। तकैत-तकैत सहरसा कॉलेज, सहरसा आ स्नातकोत्तर केंद्र, सहरसामे 33 वर्षक सेवा-काल समाप्त भऽ गेल आ 1994 ईस्वीमे अवकाश ग्रहण कऽ लेलहुँ।

विनीत उत्पल : अहाँक दृष्टिक विस्तार कोना भेल?
मायानंद मिश्र : दृष्टिक विस्तार वस्तुत: मामक रूपमे युगांतकारी मैथिली साहित्यकार पंडित रामकृष्ण झा किशुनद्वारा स्थापित मिथिला पुस्तकालयक कारणे भेल। ओहि ठाम 47 सँ 50 ईस्वीक बीचमे पढलहुँ जाहिमे प्रेमचंद, जैनेंद्र, इलाचंद्र जोशी, भगवतीचरण वर्मा, शरतचंद्र, बंकिम बाबू, रवींद्रनाथ ठाकुर तथा ताराशंकर वन्धोपाध्याय आदि प्रमुख छलाह। एहि समएमे किसुनजीक आदेश-निर्देशक विरूद्ध रातिकेँ चोरा कऽ चंद्रकांता ओ चंद्रकांता संतति संगहि शरलक होम्स सिरीज सेहो पढ़ि गेल रही। ओहि समएक मायासमकालीन नई कहानियांछल जे नियमित पढ़ैत रही।

विनीत उत्पल : पहिल रचना कोन छल?
मायानंद मिश्र : 49 ईस्वीमे हरिमोहन बाबूक प्रभावक प्रचंड प्रतापे, हम प्रथम-प्रथम मैथिलीमे हम रेल देखबनामक एकटा गद्य रचना कथात्मक शैलीमे लिखलहुँ जे हाइस्कूलक वार्षिक पत्रिकामे छपल। एहि प्रकाशन-प्रोत्साहनक कारणे भांगक लोटाक अधिकांश कथा, अही 49-50 ईस्वीमे लीखि गेलहुँ जकर प्रकाशन 51 ईस्वीमे प्रो. श्री कृष्णकांत मिश्रक वैदेही प्रकाशनक द्वारा भेल।

विनीत उत्पल : भांगक लोटा कतएसँ प्रकाशित भेल छल आ कहिया ?
मायानंद मिश्र : भांगक लोटाक दुइ गोट अंतिम कथा मैट्रिक परीक्षाक बाद लिखने छलहुँ जकर प्रतिलिपि श्री अमरजी कृपापूर्वक देखि देलनि, मुदा ओहूसँ पैघ उपलब्धि हमरा लेल भेल जे आचार्य सुमनजी दुइ बिन्दु नामे आ॓कर भूमिका लीखि देलनि आ प्रो कृष्णकांत मिश्रजी ओकरा सन 51 ई.मे छापि देल वैदेही प्रकाशनक दिससँ, हमरासँ एक्कोटा टाका नहि लेलनि। अपितु एक गोट टाका देलनि, मना कएलाक उपरांतो, पंडित त्रिलोकनाथ मिश्रजी आ॓कर मूल्य, जे ओहिपर छपल छल।

विनीत उत्पल : भांगक लोटामे तँ हास्य छल, मुदा गंभीर लेखन दिश कोना घुरि गेलहुँ ?
 मायानंद मिश्र : भांगक लोटाक पश्चात हम हास्य कथा नहि लिखलहुँ। ई प्रकाशन प्रोत्साहन हमर कथा-लेखनक प्रेरणा अवश्य बनल जाहि कारणे , 51-52 ई सँ हास्य छोड़ि, सामाजिक जीवन-संघर्षपर आधारित मनोविज्ञानक गंभीर भावक कथा सभ लीखऽ लगलहुँ जाहिमे प्रमुख छल रूपिया, सुरबा, आगि मोम आ पाथर तथा सतदेवक कथा जे कालांतरमे, सन 60 ई.मे कलकत्ताक मैथिली प्रकाशनक दिससँ प्रकाशितआगि मोम आ पाथरनामक संग्रहमे संकलित अछि, जकर अधिकांश कथा 59-60 ई.क मिथिला दर्शनमे प्रति मास छपल छल। मुदा मंच-जीवनमे हमर प्रवेश कथा-लेखनसँ नहि अपितु काव्य रचना विशेषत: गीत-रचनासँ भेल छल।

विनीत उत्पल : साहित्यिक यात्रामे केकर लेखनसँ प्रभावित भेलहुँ ?
मायानंद मिश्र : 40-50 ई. धरि अबैत-अबैत नेपाली आ॓ बच्चन क गीत-रचनाक प्रभाव हमरापर बहुत छल। सन 59 ई सँ बहुत पूर्वहि अर्थात दरभंगे कालमे सी.एम. कॉलेजक हिन्दी प्रोफेसर श्री सुरेंद्र मोहनजीसँ अज्ञेय द्वारा संपादित प्रतीक आ॓ तार सप्तक दुइ भाग पढ़ने छलहुँ आ अतिशय प्रभावित भेल छलहुँ। क्लासमे पढ़ल प्रसाद-पंत-निराला-महादेवी वर्मासँ सर्वथा भिन्न छल ई काव्य धारा, जाहि पर टी. एस. इलियट- एजरा पाउंड सँ लऽ कऽ एलेन गिन्सबर्ग आ॓ एंग्रीजेनरेशन तथा ब्रिटेनक कवि लोकनिक प्रभाव छल। शरतचंद चट्टोपाध्याय, रवींद्रनाथ ठाकुर, टालस्टॉयसँ प्रभावित रही।

विनीत उत्पल : अहाँ तँ हिन्दीमे किछु लिखने रहि?
मायानंद मिश्र : सन 49 ई मे किछु हिन्दी गीत लिखलहुँ, जकर तीन गोट मुखरा, पंक्ति एखनहुं मोन अछि, ‘अरमान मेरे दिल के सभी टूट चुके हैं’, ‘अधजली कामनाएं  लेकर अपलक मैं गगन निहार रहातथा मैं अंतर मे तूफान लिए चलता हूंमुदा, 50 .क मैथिलीमे रचित आ॓हि दिल छलहुँ हम भांग पीनेतथानोचनी तोर गुण कते गैबअत्यंत लोकप्रिय भेल। स्त्रीधननामक उपन्यास नेशनल बुक ट्रस्ट छापने अछि।

विनीत उत्पल : गीतनाद, स्वरसंधानकेँ कोना साधलिऐ?
मायानंद मिश्र : गीत गाबऽ लागल छलहुँ 1942-43 ईस्वीसँ सुपौलमे अपन मातामहक कीर्तन मंडलीमे। हमरा लगैत अछि जे हमरामे कंठ-स्वर, स्वर-संधान-प्रतिभा तथा सुरताल-ज्ञान आदि जकर अनेक प्रशंसा भेल-मातामह पंडित नागेश्वर झासँ आएल अछि। एना गुनगुना कऽ तँ किछु ने किछु गबैत छलाह आ तेँ कालान्तरमे जे हम गीत-रचना कएल से कोनो ने कोनो सुरतालमे रहैत छल। आ॓हि कारणे हम स्वयं सेहो गबैत छलहुँ तथा किछु गीत किछु गायक जाहिमे गायक चूड़ामणि पंडित रघु झाजी सेहो छथि, गबैत छलाह।

विनीत उत्पल : अहाँ गायन ज्ञान कतएसँ पेलिऐ ?
मायानंद मिश्र : सन 50 ई.क अंतिम चरणमे जखननभ आंगनमे पवनक रथ पर कारी-कारी बादरि आयलनामक गीत लिखलहुँ तँ गाबिये कऽ लिखलहुँ। यएह गायन-ज्ञान हमर छन्द-ज्ञान छल। जहाँ धरि आइयो मोन अछि, बिनु छन्द-ज्ञाने प्रारम्भोमे लिखल हमर गीत-रचनामे छन्द दोष, शास्त्रीय संगीत मर्मज्ञ पंडित कवि नै ईशनाथ झा ताकि सकलाह, जे एकर पहिल आधिकारिक श्रोता बनलाह आ ने आचार्य रमानाथ झा जे एहि गीतकेँ आई..क लेल संकलित कविता कुसुममे सर्वप्रथम संकलित कएलनि।

विनीत उत्पल : अहाँ जहि साल आई.. मे रही, ओहि साल पाठ्यक्रममे अहाँक लिखल कविता सेहो छल की?
मायानंद मिश्र : अत्यधिक प्रसन्नता भेल छल आ॓हि दिन, जाहि दिन सन 52 ई.मे आचार्य पंडित रमानाथ झा आई.. क पाठ्यग्रंथक रूपमे कविता कुसुमक संकलन-संपादन कएलनि तथा आ॓हिमे नभ आंगनमे पवनक रथपरनामक गीतकेँ स्थान दैत संकलित कएने छलाह। एना तँ कोनो संकलनमे स्थान भेटलासँ प्रसन्नता होइत किंतु एतए तँ स्वयं रमानाथ बाबू द्वारा संपादित ग्रंथक गप्प छल आ सेहो आई.. क पाठ्यग्रंथमे, जखन की हम ताधरि स्वयं आई.. पास नहि कएने छलहुँ।

विनीत उत्पल : आ॓हिकालमे अहाँ कोन-कोन पत्रिकामे लिखैत छलहुँ ?
मायानंद मिश्र : जहिना आ॓हि समएमे दरभंगासँवैदेहीप्रकाशित होइत छल, तहिना कलकत्तासँ मिथिलादर्शनआ॓ बादमे मैथिली दर्शन।ललित आ॓ राजकमल सामान्यत: वैदेहीमे अधिक लिखैत छलाह तथा हम स्वयं अपेक्षाकृत मिथिला दर्शनमे। नाटको लिखने छी, कथा-कविता सेहो लिखने छी।

विनीत उत्पल : अभिव्यंजनावादी काव्य की छल?
मायानंद मिश्र : 59 ई मे मैथिलीमे अनेक नवीन काव्यक लेखन प्रथम-प्रथम कएल, जकरा हम अभिव्यंजनावादी काव्य कहने छी तथा जकर प्रथम प्रकाशन सन 60 . क आरंभमे अभिव्यंजनानामक पत्रमे भेल अछि। संगहि अही 59 . मे हम एक वर्ष पूर्वक मैथिली पांडुलिपि माटिक लोकक आधारपर प्रथम-प्रथम माटी के लोक: सोने की नैयाक नामसँ हिन्दीमे लेखनारंभ कएने छलहुँ। आ जहिना सन 50 ई. मे एकटा मैथिली कृति प्रकाशित भेल छल, तहिना सन 60 ई मे दुइ गोट मैथिली कृतिबिहाड़ि पात आ पाथरतथा आगि मोम आ पाथरप्रकाशित भेल।

विनीत उत्पल : आ॓हि काल की सपना छल?
मायानंद मिश्र : हिंदीक आ॓हि अज्ञेयी नई कविता जकाँ मैथिलीमे नवीन काव्यान्दोलन ठाढ़ करबाक उद्देश्यसँ अभिव्यंजनाक प्रकाशन-योजना मोनमे आएल छल, जाहिमे मात्र नवीन काव्यटा रहत। आ ताहि लेल पहिने स्वयं किछु नवीन काव्य लिखल। आ ओ दू-चारि दिनपर हरिमोहन बाबूकेँ सुनाबी जे अभिव्यंजनामे हमरा एहने कविता चाही। आ  देबो केलनि जे अभिव्यंजनामे छपल छल। आधा 59 . क घोर व्यस्तताक फलस्वरूप सन 60 .क आरंभमे अभिव्यंजनाक प्रकाशन संभव भेल। प्रकाशनक खर्च ओ लोकार्पण समारोहक सभटा खर्च स्वयं पंडित जयनाथ मिश्र, एकटा अर्द्ध परिचित किशोर युवा संपादकक उत्कट उत्कंठा ओ महत्वपूर्ण महत्वाकांक्षापर द्रवित होइत, कयने छलाह। सन 60 ई हमर लेखकीय जीवनक लेल अति व्यस्ततापूर्ण रहल। एहि समएमे जँ एक दिस अनेक कथा लिखल तँ दोसर दिस अनेक नवीन काव्यक सेहो रचना कएल जे कालांतरदिशांतरमे संकलित अछि। तेसर दिस जँ अभिव्यंजनाक संपादन कएल तँ किछु समीक्षा सेहो एहि कालखंडमे लिखल, जाहिमे सँ किछु मिथिला दर्शन, वैदेही आ॓ कृष्णकांत बाबूक मैथिली सम्मेलनक रचना संग्रहमे अछि। ओहि काल एकटा काल्पनिक रेडियो नाटक सेहो लिखने छी- इतिहासक बिसरल।

विनीत उत्पल : कोन-कोन पैघ साहित्यकारसँ भेट भेल छल?
मायानंद मिश्र : दिनकरजी सँ हमर परिचय पंडित जयनाथे बाबू करौने छलाह मैथिली कवि ओ चौपाल स्वरक रूपमे। पहिल बेर दिनकरजी चौंकल छलाह आ चौपालक हमर स्वर आ॓ अभिव्यक्तिक अतिशय प्रशंसा कएने छलाह। रेणुजी सँ परिचय अति त्वरित गतिसँ अंतरंग आत्मीयतामे बदलि गेल छल। प्राय: नित्य रेडियो स्टेशनमे अथवा बुध दिनकेँ अधिक खन हुनका डेरापर सायंकालकेँ सांध्य गोष्ठीमे भेंट होइत रहल।

विनीत उत्पल : अहाँ जवाहरलाल नेहरू आ इंदिरा गांधीसँ सेहो भेंट कएने छलहुँ ?
मायानंद मिश्र : भारतक प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरूक चिर ऋणी रहब, जनिक विशेष आग्रहक कारणे, एतेक शीघ्र सन 65 ई मे मैथिलीकें देशक एकटा स्वतंत्र साहित्यिक भाषाक रूपमे साहित्य अकादमी मान्यता देलक। 73 ई मे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधीसँ सेहो भेंट भेल छल।

विनीत उत्पल : मैथिली चेतना परिषद संस्थानक निर्माण कोना कएलहुँ आ कोना कएलहुँ ?
मायानंद मिश्र : 62 ई. मे हम सहरसा मैथिली चेतना परिषद नामक संस्थाक निर्माण कएलहुँ पंडित श्री अमरेंद्र मिश्रजीक डेरापर। एहि संस्थाक तत्वावधानमे अभिव्यंजनाक प्रकशनक संगहि सन 62-63 ई मे प्रथम-प्रथम कविश्वर चंद्र प्रसिद्ध चंदा झाक जयंती समारोहक आयोजन कएने छलहुँ सहरसा परिसरमे। सहरसाक ई समारोह पूर्वांचल  मिथिलांचलक पहिल ओ आदिम समारोह तँ छलहे (प्राय:) संभव पिंडारूछ गामक पचासक दशक अनेक आयोजनक पश्चात ई दोसर स्थान छल, जाहि ठाम एहि प्रकारे हुनकर स्मरण कएल गेल। एहि स्मरण समारोहक एकटा कारणो हमरा मोनमे छल। हुनक मातृक बड़गाम छलनि, जतऽ हुनक प्रारंभिक शिक्षा भेल छलनि आ जे आधुनिक मैथिलीक सूत्रधार छलाह।
 
विनीत उत्पल : जीवनक एहि मोड़पर अहाँक जीवनदर्शन की अछि ?
मायानंद मिश्र : हम दर्शनक गप्प नहि करैत छी। किछु-किछु निष्काम कर्मक मर्म पढल अछि, किछु-किछु बुझलो अछि। की सभक जीवन-दर्शनक अनुकूल चलि पबैत अछि। माया चलऽ दैत अछि ? अनेक-अनेक प्रश्न अछि जे अनुत्तरिते रहि जाइत अछि तथापि जीवन-प्रवाह अछि जे प्रवाहित होइत चल जाइत अछि, चल जाइत रहत, अविरल, अविराम।

विनीत उत्पल : कालगतिकेँ की मानैत छी ?
मायानंद मिश्र : सर्वोपरि काल-गति। मुदा, मनुष्य गति तँ एकमात्र संघर्षक गाथा थिक। जखन-जखन समाजक ई गति ओ दुर्गति होइत अछि, तखन-तखन समाजमे पुनर्जागरण होइत अछि। युगक धाराकेँ मोड़ि समाजमे रचनात्मक परिवर्तन अबैत अछि, निश्चित अबैत अछि। अबैत रहल अछि, जकर साक्षी थिक इतिहास, मानव इतिहास। आब ओही इतिहासक प्रतीक्षा अछि। प्रतीक्षाक एकटा भिन्ने सुख होइत छैक।

विनीत उत्पल : एखुनका कालमे केकर रचना नीक लगैत अछि?
मायानंद मिश्र : मैथिलीमे नचिकेता, सुभाषचंद्र यादव, जयधारी सिंह आ डॉ महेंद्र झाक लिखल नीक लागैत अछि।

विनीत उत्पल : मैथिलीक भूत, वर्तमान आ भविष्यकेँ लऽ कऽ की सोचैत छी ?
मायानंद मिश्र : सभ दिन रहताह विघापति। मैथिलीक सौभाग्य अछि जे अंग्रेज एहि भाषाकेँ लोकक आगू आनलक। मैथिलीमे लोक पढ़ैत अछि, मुदा कीनए लागत तखन लेखक आओर प्रकाशक आगू आएत।

विनीत उत्पल : अहाँक परिवारमे के सभ अछि, ओ सभ की करैत छथि ?
मायानंद मिश्र : तीन लड़का, एक लड़की अछि। पैघ बेटा प्रो. विघानंद मिश्र जे पीजी सेंटर, सहरसामे इतिहासक प्रोफेसर अछि। दोसर डॉ. भवानंद मिश्र, राजेंद्र मिश्र कॉलेज मे इतिहासक प्रोफेसर अछि। छोट कामनानंद मिश्र दिल्लीमे हिन्दुस्तान अखबारक वेबसाइट संस्करणक इंचार्ज अछि। बेटी वंदना मिश्र जमशेदपुरमे रहैत अछि। दामाद स्टेट बैंक मे अफसर छथि।

(साभार विदेह www.videha.co.in )

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