Sunday, October 23, 2011

प्रखर दृष्‍टि‍दर्शी एवं फरि‍छाएल कथाकार श्री दुर्गानन्‍द मंडलजी सँ युवा लघुकथाकार मुन्नाजीक भेँटवर्ता


हम पुछैत छी- मुन्नाजी
शब्‍दक जादूगर मैथि‍ली समीक्षाक प्रखर
दृष्‍टि‍दर्शी एवं फरि‍छाएल कथाकार श्री
 दुर्गानन्‍द मंडलजी सँ युवा लघुकथाकार
 मुन्नाजीसँ भेँटवर्ताक सारांश अहाँ सबहक
 आगाँ राखल जा रहल अछि-


मुन्ना जी-       अहाँ मैथि‍लीक रचना कोना आ कहि‍या प्रारंम्‍भ केलौं, एतेक दि‍न धरि‍ हेराएल वा नुकाएल कि‍ए रहलौं?

दुर्गानन्‍द मंडल-   जी हम मैथि‍लीक रचना श्री जगदीश प्रसाद मंडल जीक स्‍नेहाशील अजस प्रेरणाक बले 2009मे शुरू कएलहुँ। जहाँतक नुकाएल वा हेराएलक भाव अछि तँ हम कहए चाहब जे हम नै तँ नुकाएल रही आ ने हेराएल रही, हँ तखन अल्हुआ जकाँ झपाएल जरूर रही।

मुन्ना जी-       अहाँक कथाक गढ़नि‍ बड्ड ठोस होइछ जेना सोनारक एक-एक गॉथल मोती जकाँ अहाँ एहेन शब्‍द प्रयोग कोना कऽ पबै छी, स्‍वभावि‍क रूपेँ वा शब्‍द संगोर मात्र कऽ रचना करै छी?

दुर्गानन्‍द मंडल-   कथाक गढ़नि‍ प्रयुक्त शब्‍द स्‍वभावि‍क रूपेँ रहैत अछि। संगोरसँ ततबेक दूर जते की गदहाक माथमे सींग।

मुन्ना जी-       अहाँ कथा पाठ करबाकाल सेहो एक-एक शब्‍दकेँ फरि‍छा श्रोताक सेझाँ राखि‍ ओकर अस्‍ति‍त्‍वकेँ फरि‍छा दैत छी एकर की ध्‍येय?

दुर्गानन्‍द मंडल-   कथा पाठ करबाकाल एक-एक शब्‍द श्रोता बन्‍धूक सोंझा राखब ओकरा अस्‍ति‍त्‍केँ फरि‍छा देब, कथाकेँ सोझरा दैत अछि। कथा श्रवणीए भऽ जाइत अछि आ श्रोता बन्‍धू श्रवण करैमे सेहो आनन्‍दक अनूभव नि‍श्‍चि‍त रूपेँ होइत छन्‍हि‍। जे एकटा फरि‍छाएल कथाकारक कथाक सार्थकता थि‍क।

मुन्ना जी-      गैर बाभन वर्गसँ कति‍एल रचनाकारक कति‍येवाक वा नुकएल रहवाक की कारण अपन रचनाक सामर्थ्‍यहीनता वा आर कोनो वि‍शेष कारण?

दुर्गानन्‍द मंडल- गएर बाभन वर्गक कति‍आएल रचनाकारक कति‍येबाक वा नुकाएल रहबाक कोनो एक-आधटा कारण नै अछि‍। जँ वि‍स्‍तृत रूपसँ चर्च कएल जाए तँ मैथि‍ली साहि‍त्‍यक क्षेत्र वा ओकर वि‍स्‍तार मात्र एकटा जाति‍ वा वर्ग वि‍शेषसँ देखल जाइत रहल। जेकरा ओ लोकनि‍ अपन पूर्वजक धरोहरि‍क रूपमे अमानति‍ बुझैत रहलाह। मुदा आइ मैथि‍ली साहि‍त्‍यक वि‍स्‍तार ओ अपन सभ परि‍सि‍मनसँ बहरेबाक लेल औना रहल छलीह। मुदा वर्ग वि‍शेषक खि‍ंचल एकटा सीमा-रेखा जेकरा लांघि‍ कऽ बाहर भऽ जाएब बड्ड कठीन छल। ने ि‍सर्फ छल आइयो अछि‍। जेना जँ कोनो गएर-ब्रह्मण-कर्ण-कायस्‍थ वर्गक लोककेँ साहि‍त्‍यसँ अनुराग होइ तँ सभसँ पहि‍ने अपन मातृभाषाक प्रति‍ हेबाक चाही। मुदा जखन ओ मातृभाषा (मैथि‍ली)मे लि‍खए लेल कलम उठबैत छथि‍ तँ बैरि‍अर जकाँ ओहन-ओहन शब्‍द सभ आबि‍ ठाढ़ भऽ जाइत अछि‍ जे ओ अपना जीवनमे तँ अपने नहि‍ये बाजल छलाह अपि‍तु कि‍नको मुँहेँ कखनो-कहि‍यो सुननहुँ नै छलाह। तँ हमर कहबाक भाव मुन्नाजी अपने करीब-करीब बुझि‍ गेल हएब। एतबे नै समए-कुसमए मैथि‍ली साहि‍त्‍य लेखनमे नीकसँ नीक कथाकारक पदार्पण भेल मुदा ओइ कथाकार लोकनिमे सँ अधि‍कांशकेँ वर्ग-वि‍शेष पर्दाक पाछाँ रखलनि‍। मात्र कि‍छु गि‍नल-चुनल कथाकार लोकनि‍केँ पर्दापर आनल गेल। जे वर्ग-वि‍शेषक कोनो ने कोनो रूपमे पछि‍लग्‍गु वा मुँहलग्‍गु बनि‍ हुनकहि‍ शब्‍द आ बोलीकेँ (जे मात्र लि‍खल जाइत, बाजल नै) प्रश्रय दैत रहला। ओना ई अलग बात जे आजुक परि‍स्‍थि‍ति‍ थोड़ैक बदलल सन बुझाइत अछि‍। तहु लेल हमर कहब हएत जे बदलैत परि‍स्‍थि‍ति‍केँ देख गएर ब्राह्मण वा जि‍नका दऽ अपने कहऽ चाहै छी ओ सभ आगाँ आबि‍ रहला अछि‍। आ आरो एता से वि‍श्‍वास अछि‍।

मुन्ना जी-      अहाँ समीक्षा सेहो लि‍खै छी, समीक्षाक प्रमुख आधार की रखै छी, रचनाकारक व्‍यक्‍ति‍त्‍व वि‍श्‍लेषण वा कृति‍त्‍व वि‍वेचन?

दुर्गानन्‍द मंडल- मुन्नाजी, ओना हम कोनो समीक्ष नै छी। आ ने समीक्षा करबाक हमरा सामर्थ्‍य अछि‍। समीक्षा जगतमे एकसँ एक, पैघ समीक्षक सभसँ अपनेक भेँट-घाँट भेल हएत। जे प्रखर समीक्षकक रूपमे जानल जाइत रहलाहेँ। तखन समए पाबि‍ जे कि‍छु एक-आधटा लि‍खलौं। तैसँ हमरा समीक्षक नै मानल जाए। तखन, अपनेक प्रश्‍न- समीक्षामे व्‍यक्‍ति‍त्‍व वि‍श्‍लेषण वा कृति‍त्‍व वि‍वेचन- तँ वि‍चारनीय अछि‍। समीक्षाक प्रमुख आधार कोनो एकटाकेँ नै मानि दुनूकेँ आधार बनाओल जाए।‍ कि‍एक तँ कथाकारक कोनो कथाक समीक्षाक आधार जतबए हुनकर व्‍यक्‍ति‍त्‍व वि‍श्‍लेशन रहै छन्‍हि‍ ततबाए कृति‍त्‍व वि‍वेचन सेहो। तखन खगता ऐ बातक अछि‍, जे कि‍छु ओ कथाक मादे पाठककेँ देमए चाहै छथि‍न ओकरा ओ अपना जीवनमे कतेक अनुशरण करै छथि‍?       

मुन्ना जी-      अहाँक कथाक मुख्‍य वि‍न्‍दु की होइछ, कोनो कथाक कथानक कतए केन्‍द्रि‍त रहैछ?
 दुर्गानन्‍द मंडल- कथाक मुख्‍य बि‍न्‍दु गाम-घर, सर-समाजसँ जुड़ल समस्‍या आ नि‍दानक संग अपन सभ्‍यता-संस्‍कृति‍केँ यथावत रखनाइ। आ से सभ बि‍न्‍दुपर।     

मुन्ना जी-       गैरबाभन रचनाकारक उपस्‍थि‍ति‍क भवि‍ष्‍य अहाँ केहेन देखै छी, बाभन वा जमल रचनाकारसँ उखरि‍ हेरा जाएब वा अपन फरि‍छएल दृष्‍टि‍ऍ ओइसँ आगु डेग बढ़ा स्‍थापि‍त हएब सन?

दुर्गानन्‍द मंडल-  हि‍नकर सबहक भवि‍ष्‍य एकदम सवर्णि‍म अछि‍। कारण अहाँ नीकसँ जनै छी जे अपन समाजमे अखनो वैदि‍क व्‍यवहार-चालि‍-चलन ि‍वद्यमान अछि‍ आ से हुनके सबहक बीच अहाँ देखब। नि‍श्‍चि‍त रूपेँ अपने ऐपर वि‍श्‍वास करी जे जँ ओ इमानदारी पूर्वक रचना करता तँ सत्‍यक समीप रहैक कारणे ओ कि‍नकोसँ फरि‍छाएल दूष्‍टि‍ऍं सोझा औताह। तखन खगता ऐ बातक अछि‍ जे ऐ कर्मकेँ अो अपन तपस्‍या बुझथि‍। पूर्ण नि‍ष्‍ठा आ लगनसँ लेखनीकेँ अनवरत रूपेँ साधथि‍।    

मुन्ना जी-       अहाँक कथेपर केन्‍द्रि‍त रचनाक मूल उद्देश्‍य की अछि, एकर अति‍रि‍क्‍त आर की सभ रचना करैत छी?

दुर्गानन्‍द मंडल-   कथापर केन्‍द्रि‍त रचनाक मूल उद्देश्‍य पाठक बन्‍धुकेँ पूर्ण मनोरंजनक संग समाज बीच व्‍याप्‍त आराजक्‍ता, अंधवि‍श्‍वास, जाति‍-पाति‍ आदि‍केँ दूर करैत एकटा मानवीय मूल्‍यकेँ स्‍थापि‍त करब। जहाँधरि‍ आर-आर रचनाक प्रश्‍न अछि‍। मुन्ना बाबू तै सम्‍बन्‍धमे हम ई कहब जे शुरूहेँसँ अर्थात् जहि‍यासँ पाटीपर लि‍खब छोड़लहुँ पोथीक अध्‍ययन करब शुरू केलहुॅँ तहि‍येसँ साहि‍त्‍यक वि‍धा- कथा, उपन्‍यास, कवि‍ता आदि‍सँ बड्ड सि‍नेह रहल। कहि‍यो काल लघुकथा, कवि‍ता सेहो लि‍खैत रहलौं। वि‍श्‍वास अछि‍ जे आगाँ और लि‍खब। वि‍देह पत्रि‍काक सम्‍पादक श्री गजेन्‍द्र ठाकुर जीक सि‍नेहसँ हमरा अपनामे सृजनात्‍मक शक्‍ति‍क संचार भेल। बहुत रास एहेन शब्‍द सभ जे मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे अप्रयुक्‍त छल। जेकरा ठेंठ कहल जाइ छलै ओ जखन ठाकुर जीक लि‍खल पोथी कुरूक्षेत्रम अन्‍तर्मनक पढ़ि‍ देलखहुँ आ जनलहुँ तँ आरो वि‍श्‍वास भऽ गेल।     

मुन्ना जी-       भवि‍ष्‍यमे अपन जाति‍-बि‍रादरी (पि‍छड़ल कोनो जाति‍क) लोकक उपस्‍थि‍ति‍क नि‍रन्‍तरता बनेने रहबाले अहाँ कोनो डेग उठाएब वा एकरा अनठि‍या देब उचि‍त बुझब?
दुर्गानन्‍द मंडल-  भवि‍ष्‍यमे अपन जाति‍-बि‍रादरी (पि‍छड़ल जाति‍क) उपस्‍थि‍ति‍क नि‍रन्‍तरता बनौने रहबा लेल एकरा अनठि‍या देब उचि‍न नै अपि‍तु समए-समएपर नवसँ लऽ कऽ पुरान कथाकार लोकनि‍क बीच ठाम-ठाम चर्चा, परि‍चर्चा, पाँच-दस कथाकार मि‍ल कथा गोष्‍ठि‍क आयोजन, कथा-पाठ आदि‍पर उचि‍त समीक्षादि‍ करब। जइठाम मैथि‍ली पत्र-पत्रि‍काक अनुपलब्‍धता अछि‍ ओइठाम दस-बीस पाठक बना पत्र-पत्रि‍का वा पोथी आदि‍ मंगाएब। ओकरा अपनहुँ पढ़ि‍ दोसरोकेँ पढ़़बाक आग्रह करब। कि‍छु लि‍खबा-पढ़बाक प्रेरणा देब हम उचि‍त बूझब।
             
              मुन्नाजी अपने हमरा...... बुझलहुँ। ऐ लेल धन्‍यवाद।
(साभार विदेह www.videha.co.in )

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