Sunday, October 23, 2011

तारानन्द वियोगीक संग अनिल गौतमक वार्तालाप


तारानन्द वियोगीक संग अनिल गौतमक वार्तालाप


सार्थक बाल साहित्यक प्रसार सं मैथिली कें नवजीवन भेटत 
       तारानन्द वियोगीक संग अनिल गौतमक वार्तालाप
                

अनिल--बाल साहित्यक लेल साहित्य अकादेमी पुरस्कारक लेल अहां कें बधाइ भाइ। हमरा सभक लेल ई बहुत                     खुशीक बात थिक। घोषणा सुनि क' अहां कें केहन लागल?
ता..वि.--धन्यवाद भाइ। हमरो नीक लागल अछि। एहि तरहें चयन भेने ई आस्था बनल अछि जे हमरा भाषाक नेतृत्वकर्ता लोकनि मे, निर्णायक लोकनि मे गुणग्राहकता अवश्य छनि। ओना तं कही जे हमर साहित्य-लेखनक जे लक्ष्य अछि से बहुत दूरगामी अछि आ पुरस्कार भेटने वा नहि भेटने कोनो बात बनैत वा बिगडैत हो, से बात एकदम्मे नहि अछि। तखन होइ की छै जे अहां अटट्ट दुपहरी मे सोर-फोर कतहु जा रहल होइ आ रस्ता मे कोनो ठाम छांहदार गाछक शीतलता भेटि जाय वा एक लोटा ठंढा जल भेटि जाय, तं नीक तं लागबे करत। दोसर बात ई होइ छै जे बाहर अहांक भने बहुत सम्मान हो मुदा एकटा विडम्बना जरूर बाहरक लोक कें सालैत रहैत छै जे हिनका घरक लोक सब कतेक हृदयहीन छथिन। जे किछु। नीक तं हमरो लागल अछि।
अनिल-- अहां कहलियै जे दूरगामी लक्ष्य अछि। की अछि अहांक दूरगामी लक्ष्य?
ता..वि.--देखू भाइ, कोनो लेखकक जीवन के चरम सार्थकता की थिक? यैह जे ओ अपन भाषा, जाहि मे लेखन करैत अछि, के तागत बढाबए। एहि-एहि प्रकारक नवीन अनुभूति आ अभिव्यक्ति अपन भाषा मे लाबए, जाहि लेल कदाचित ओकर भाषा एखन धरि अक्षम छल, बेगरतूत छल। आ से कोनो तात्कालिकताक हिसाबें नहि। भाषा-साहित्यक अविरल इतिहासक हिसाबें। से भेल मूल बात। दोसर दिस पुरस्कारे कें जं लिय' तं अनेक एहन पुरस्कार अछि जाहि मे अहांक लेखन कें सम्पूर्ण भारतीय भाषा वा सम्पूर्ण विश्वक भाषाक प्रतिस्पर्धा मे राखल जाइत अछि। जेना ज्ञानपीठ वा बुकर आदि। काल्हि धरि मैथिली मे लिखि क' अहां एतए धरि सोचियो नहि सकैत रही। आइ सोचि सकै छी। मुदा, एहि लेल तं असाधारण कोटिक साधना आ अभ्यास चाही कि ने।
अनिल--मुदा मैथिली मे की अहां ताहि तरहक माहौल देखै छियै? एतए तं कहांदन डेग-डेग पर गुटबाजी छै।
ता..वि.--माहौल कें देखबाक हमरा फुरसति हो, तखन ने? हमरा तं अपन काजे सं फुरसति नहि भेटैत अछि। अहां कें प्रायः बूझल हो जे हम नियमित रूप सं तीन-चारि घंटा रोज लेखन करै छी। दोसर दिस, नोकरी एहन अछि, जाहि मे ने तं अल्ली-टल्ली मारि सकै छी, ने एहन हमर प्रवृत्तिये अछि। एखनहु, एहू जुग मे किताब आ पत्रिके पढब हमर मनोरंजनक साधन अछि। साहित्ये सं जीवन भेटैए, साहित्ये सं मनोरंजन। कहि लिय' जे 'उसी से ठंढा, उसी से गरम'। एहना हालति मे, की हम गुट बनाएब आ की हम गुट सभक गतिविधि बूझब। एकटा समय छल, जखन मैथिली मे जखन किछु गलत होइ तं बड जोर सं रिएक्ट करी। ओहुनो हाइपर सेन्सेटिव टाइप के हम आदमी छी। आब मुदा, हम सोचै छी जे गलत के प्रति रिएक्ट केने अहां बहुत किछु नहि क' सकै छी। सही बात ई भेलै जे अहां सही लाइन परअपन काज केने चलू। ओहुना, जं अहां वास्तविक अर्थ मे एक लेखक छी तं अहांक काज सही लाइन पर लेखने करब हेबाक चाही, गलत लेखनक प्रति रिएक्ट करब मात्र नहि। यौ भाइ, अपन लिखलके अन्ततः काज अबै छै। हम तं अपना गाम-घरक परिसर मे सामाजिक-सांस्कृतिक एक्टिविटी मे सेहो लागल रहलहुं अछि। लेकिन, मानै छी जे लेखनक कोनो विकल्प नहि होइ छै।
        गुटबाजी के जहां धरि बात अछि, तं एहि सम्बन्ध मे हमर विचार सर्वथा भिन्न अछि। गुटबाजी कें हम किन्नहु अधलाह नहि मानै छी। गुट माने की? दू-चारि गोटे एकठाम जुटलहुं-जुडलहुं, सैह ने? एहि लेल तं लाइक माइंड हएब सर्वथा जरूरी छै। एम्हर, अपना ओतक परंपरित संस्कृति की थिक?  हम सब, प्रत्येक व्यक्ति अपने कें सब सं महान, सब सं काबिल मानै छी। एकोऽहम् द्वितीयो नास्ति। एहना स्थिति मे जं दू-चारि गोटे एकठाम बैसथि, विचार-विमर्श करथि आ समाज कें तकर किछुओ आउटपुट भेटैत देखार पडैत हो तं ई तं बहुत नीक बात भेलै। हमरा जं परिभाषा करए कहब तं हम तं गुटबाजीक यैह परिभाषा करब। मुदा, एहि तरहक गुटबाजी कतहु होइत हो मैथिली-परिसर मे, से तं हमरा देखार नहि पडैत अछि। तखन बचल बात-- खिधांस आ कुटिचालि के,तं तकर तं कोनो व्याकरण नहि हो। की एसगर आ की झुंड बना क"। तकर उद्देश्य की तं सृजनात्मक काजक विरोध करब। हम हिनका सभक परबाहि नहि करैत छी। जं परबाहि करितहुं तं आइ महिषी गाम मे हरबाही करैत रहितहुं। अहूं सब कें कहै छी जे हिनका सभक परबाहि नहि करी।
                     अपन भाषा मे किछु वरेण्य साहित्यकार सब भेलाह अछि, जनिकर सान्ध्य-गोष्ठी बहुत नामी अछि आ बहुत फलप्रद भेल अछि। जेना सुमन जीक सान्ध्य-गोष्ठी। एखनहु जं कतहु एहन होइत हो, एहि सं रचनात्मक, सार्थक आउटपुट बहराइत हो,एहि सं समाज मे मिलि-बैसि क' किछु सोचबाक-करबाक (सह वीर्यं करवावहै) उत्साह भेटैत हो, तं हम तकर स्वागत करै छी।
अनिल-- अहां कें बाल साहित्यकारक रूप मे पुरस्कृत कएल गेल, जखन कि अहां मूलतः बाल साहित्यकार नहि, एक गंभीर सृजनात्मक लेखक छी। अहां कें तं साहित्य अकादेमी पुरस्कार भेटबाक चाहैत छल। ई बात अहां कें नहि अखडल?
ता..वि.-- यौ भाइ, हम बाल साहित्यकार छी, एहि बात सं सदैव अपना कें गौरवान्वित अनुभव करैत छी। सार्थक बाल साहित्यक सृजन एक असाधारण बात थिक, से कृपया मोन राखू। (हंसैत) ओना तं हम बहुत किछु छी। एकटा खिस्सा कहै छी। एक कार्यक्रम मे रांची गेल रही। ओतए डा० धनाकर ठाकुर सं परिचय भेल। पहिले भेंट छल। ठाकुर जी हमर नाम पुछलनि। हम कहलियनि--तारानन्द वियोगी। ओ कहए लगलाह--'यौ, मैथिली मे तं कहांदन कैक टा तारानन्द वियोगी छथि। एकटा छथि जे मिथिलाक धरोहर सब पर काज करै छथि। एकटा आर छथि जे सदरि काल 'दलित-दलित' करैत रहै छथि।    एकटा छथि जे बड सुन्दर कविता-कथा-आलोचना सब लिखै छथि। एहि मे सं अहां कोन तारनन्द वियोगी छी?' तं, से सैह बात।
                बात पुछलहुं अखडै के। किए अखडत? हम साफ करै छी जे अखडैत नहि अछि। तकर कारण अछि। अहां भने कतबो नीक लेखन करैत होइ, ओकर परखबाक जखन बात अबै छै तं ओहि मे रुचि-भिन्नता एक महत्वपूर्ण कारक बनैत अछि। अहां कें जं हमर लेखन पसिन्न नहि पडल, तं एकर मतलब छै जे ओ अहांक लेल नहि लिखल गेल अछि। रुचि-भिन्नताक कारण ओ अहां कें नहि पसिन्न पडल। मुदा, तै दुआरे हम दुखी होइ वा हमरा अखडए, तकर हम कोनो कारण नहि देखै छी।
                   हमर तं सोच अछि जे लेखक कें एतबा इमान्दार हेबाक चाही जे जं ओकरा बेइंसाफीक संग वा साहित्येतर कारण सं पुरस्कृत कएल जा रहल हो, तं ओकरा पुरस्कार कें ठुकरा देबाक चाही। अहां कें प्रायः बूझल हो जे चेतना समिति, पटना जखन हमरा 'महेश पुरस्कार' देने छल, तं समुचित रूप सं तकर कारण बतबैत हम ओहि पुरस्कार कें स्वीकार करबा सं इनकार क' देने छलियनि।
अनिल- मुदा भाइ, सुनबा मे आएल अछि जे फाइनल राउन्ड मे प्रसिद्ध लेखक लोकनिक मोट-मोट किताब सब प्रतिस्पर्धा मे छलै। तकरा सभक बदला अहांक एक पातर-सन पोथी कें पुरस्कारक लेल चुनि लेल गेल। ई बात जरूर जे निर्णय सर्वसम्मति सं भेलै। मुदा की एकरा अहां बेइंसाफी नहि मानै छियै?
ता..वि.- क्षमा करब भाइ। जं अहां मोट-मोट पोथी आ छोट-छीन-पातर पोथीक आधार पर बाल साहित्य कें बुझबाक दाबी करै छियै तं हम साफ कहब जे बाल साहित्य कें अहां साफे नहि बुझै छियै। ओ बच्चाक लेल लिखल गेलैए ने यौ। सेहो कोन बच्चाक लेल? मिडिल स्कूल मे पढनिहार छठा-सतमाक बच्चाक लेल। सुनियोजित ओकर फारमेट छै। ओकर अपन टारगेट ग्रुप छै। एक दिस अहां कहै छियै जे बच्चाक स्कूल बैग कें हल्लुक करब अपना सभक राष्ट्रीय आवश्यकता छै, आ दोसर दिस, ओकर मनोरंजन आ प्रेरण लेल मोट-मोट पोथीक जरूरति देखैत छिऐक, तं ई तं उचित बात नहि भेलै। मुदा तैयो, अहांक जानकारी लेल कहि दी जे बाल साहित्य-कृतिक लेल जे अन्तर्राष्ट्रीय मानदंड छै, ताहि पर ई पोथी दुरुस्त उतरल अछि। मैथिली मे आई.एस.बी.एन. नंबरक संग कम पोथी छपल अछि। सेहो नंबर एकरा भेटल छै।
                   असल मे, मोट-पातरक आधार पर बाल साहित्यक मूल्यांकने नहि कएल जा सकैए। मूल बात छै जे ओकर विषय-वस्तु, आजुक बच्चा लेल, आजुक जुगक चैलेंज के सन्दर्भ मे, कतेक उपयोगी छै। कतेक प्रासंगिक छै। दोसर जे ओकर भाषा आ शिल्प टारगेट ग्रुपक बच्चाक लेल कतेक सम्प्रेषणीय छै। ई नहि ने हेतै जे अहां लिखबै बच्चाक लेल, आ बिम्ब आ प्रतीक आ कथन-भंगिमा राखबै निज अप्पन। परकाया-प्रवेश तं अहां कें करैए पडत।
 अनिल- मुदा अहां उपनिषद-कथा पर लिखलियै-ए। की एकरा प्रासंगिक कहल जेतै? की ई मौलिक कृति भेलै?
ता..वि.--मौलिक कृति तं  ई १००  प्रतिशत भेल। कारण, उपनिषदक कोनो कथाक ई अनुवाद नहि थिक। अहां एक सय आठ उपनिषद उनटा लिय'। कत्तहु एक ठाम ई कथा अहां कें अविकल नहि भेटत।  असल मे ई शब्द द्वारा ओहि युगक पुनर्सृजन थिक। उद्देश्य अछि- सकारात्मक जीवन-प्रणाली कें बच्चाक सामने उद्घाटित करब। ओहि युगक लोक कोन तरहें सोचै-बिचारै छला, केहन हुनकर जीवन-प्रणाली छलनि, आपसी सम्बन्ध आ पर्यावरणक प्रति हुनकर कतेक सकारात्मक नजरिया छलनि, जीवन मे प्राथमिकताक निर्धारण कोन तरहें करी एहि सम्बन्ध हुनका लोकनिक तरीका छलनि, आदि-आदि अनेको विन्दु सभक पुनर्सृजन ई कथा-पुस्तक थिक। मजेदार बात ई छै जे एहि पोथीक जे प्रेरण-तत्त्व छै से एकर बाल-पाठक कें अलग सं कतहु देखारे नहि पडत। दोसर बात छे जे एहि समस्त कथा-वस्तु कें अत्यन्त मनलग्गू ढंग सं गूथल गेलै-ए। एहि किताबक योजना हम एना कए बनौने रही जे हमर अधिकांश बाल पाठक एकरा दू-तीन सिटिंग मे पढि जाथि। मुदा, बाद मे पता लागल जे बेसी पाठक तं एक्के सिटिंग मे पढि गेलाह अछि।   
              प्रासंगिकताक जहां धरि सवाल अछि, हम तं देखै छी जे आजुक एहि उपभोक्तावादी व्यक्तिवादी कठमुल्लावादी समय मे एहि तरहक सोच राख' बला कृतिक बहुते महत्व छै। ततबे बेसी प्रासंगिकता छै। असल मे, अपना ओतए, मिथिला मे, शुरुहे सं ई चलन रहलै-ए जे उपजीव्य ग्रन्थ तकबाक हो तं रामायण मे ढुकू अथवा महाभारत मे। बड बेसी भेल तं भागवत मे। हम बेबाक भ' ' कह' चाहै छी जे आजुक युगक चुनौती सभक सन्दर्भ मे उपनिषद, जातक-कथा, त्रिपिटक साहित्य आदि बेसी उपयोगी आ प्रासंगिक  अछि। महाभारत  मे वन कें जराओल जाइ छै जखन कि उपनिषद मे वनक संग मैत्री कएल जाइ छै। अहां कें की चाही? अहांक युगक बच्चा वनक प्रति की रुख अपनाबय? की ओकरा संस्कार मे अहां देब' चाहै छियै? सोचियौ।
अनिल-- बहुत अनमोल बात कहलियै भाइ। एही तरहें सोचबाक चाही। बाल साहित्य कें ल' ' आगुओ अहांक कोनो योजना अछि?
ता..वि.--बहुतो योजना अछि। असल मे, बाल साहित्य पर हम सांस्थानिक ढंग सं काज करए चाहै छी। हमरा स्पष्ट लगैत अछि जे आगू जे मैथिली जीयत आ बढत तं ताहि मे बाल साहित्यक बहुत पैघ भूमिका हेतै।एकर प्रसार मैथिली मे नवजीवन भरि देत।
            मधुबनी मे जखन हमर पोस्टिंग छल तं अनेक तेजस्वी युवा लोकनिक संग हमर मित्रता भेल। एहि मे वशिष्ठ  (ऋषि वशिष्ठ) छला महाकान्त ठाकुर आ प्रकाश झा छला। किशोरनाथ, सुधीर कुमार मिश्र,  राकेश कुमार मिश्र, रघुनाथ मुखिया--ई सब गोटे हमरा टीम मे रहथि। हम सब एक सुचिन्तित योजनाक तहत बाल साहित्यक लेखन, प्रकाशन आ वितरणक काज एकदम संस्थागत तरीका सं करब शुरू केलहुं। एक हजार प्रति किताबक संस्करण छपए। टीमक सदस्य लोकनि एकरा स्कूले स्कूल जा क' बेचि आबथि। सही हाथ धरि पोथी पहुंचि जाए। एक बच्चा जं पोथी कीनए तं ओकर परिवारक सदस्य आ अडोसिया-पडोसिया मिला क' पन्द्रह-बीस पाठक हमरा लोकनि कें भेटि जाथि। हम युवक मित्र लोकनि कें लेखन मे आगां केने छलियनि। हम तं बुझू पाछू लागल लिख' लगलहुं। एखनहु वशिष्ठ महाकान्त आ हुनक टीमक सदस्य लोकनि एहि काज कें आगू बढा रहल छथि। हम अपनहु एहि योजना कें जारी रखबाक लेल प्रतिश्रुत छी। लेखन अपन ठाम पर अछि,तकर महत्व सर्वोपरि छै,मुदा एक्टीविज्म के सेहो बहुत बेगरता छै। हम जकरा लेल लिखी तकरा धरि जं पहुंचय, तं एहि सं बढि क' आनन्द नहि हो।
अनिल-- हम प्रश्न करए चाहैत रही जे लेखन कें ल' ' की सब योजना अछि?
ता..वि.-- एकटा तं हमर योजना अछि जे 'मिथिला' सं बच्चाक आत्मीय परिचयक लेल एक पुस्तक-माला तैयार करी। उद्देश्य जे भावी पीढीक भीतर अपन देस-कोसक प्रति अनुराग जाग्रत करए। मिथिलाक गौरवशाली इतिहास, एकर नायक, एकर सांस्कृतिक सौरभ, एकर जीवन-पद्धति---एहि समस्त चीज पर। खास बात ई जे सब टा प्रकरण कथात्मक हेतै आ से तते मनलग्गू जे हमर बालपाठक ओकरा दू-तीन सिटिंग मे पूरा पढि जाथि। उद्देश्य एकैसम शताब्दीक सुपुरुष मैथिल तैयार करब। मात्र अतीत-गान नहि, ओहि मे सकारात्मक तत्वक खोज, आडेन्टिटीक खोज---जे आब' बला युग मे हुनका जीवनक काज आबि सकए।
             एकटा पोथी हम, एम्हर तैयार केलहुं-ए गोनू झा पर। छुच्छ हंसी-ठट्ठाक लेल गोनू झाक खिस्सा के अनेक पोथी पहिनहि सं प्रकाशित छै। मुदा, ओहि सब मे गोनू झाक कोनो व्यक्तित्व ठाढ करबाक कोशिश नहि भेल अछि, मिथिलाक एहि नायकक चरित्र नहि गढल जा सकल अछि। असल बात छै जे हमरा समक्ष कोनो चीज स्पष्ट रहत तखने ने हम अपन साहित्य द्वारा ओकरा पुनर्सृजित करबाक चेष्टा करब। एहि तरहक एक पोथी हम गोनू झा पर लिखनहु छी, जे नेशनल बुक ट्रस्ट सं प्रकाशित छै। मुदा, ओहि सं हम सन्तुष्ट नहि छी। उदात्त मैथिल मानुसक रूप गोनू झाक व्यक्तित्व ठाढ करबाक लेल जे औपन्यासिक कलेवर चाही, से अहां कें हमर अगिला किताब मे भेटत।
        तहिना, लोक साहित्य, संस्कृत वाङ्मय,त्रिपिटक साहित्य--एहि सब मे अनेक मजेदार आ अति प्रासंगिक वाकया सब आएल अछि। इच्छा अछि जे तकरा सब कें बच्चाक लेल प्रस्तुत करी। एहि समस्त योजना सभक मूल्यगत उद्देश्य यैह जे अपन बाल पाठक मे हम विज्ञान-बुद्धि, लोकतांत्रिक संस्कृति,  पर्यावरणक प्रति संवेदनशीलता, आ अपन आइडेन्टिटीक प्रति आत्मतोष देखए चाहै छी।
अनिल-- एहन बहुमूल्य वार्तालापक लेल भाइ, अहां कें धन्यवाद।
ता..वि.-- अहूं कें धन्यवाद।

(साभार विदेह www.videha.co.in )

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