Sunday, October 23, 2011

डॉ. तारानन्द वियोगीसँ मुन्नाजीक भेल गप्प-सप्प


·         मैथिली विहनि कथाक सशक्त हस्ताक्षर डॉ. तारानन्द वियोगीसँ मुन्नाजीक भेल गप्प-सप्प
·          
·         मुन्नाजी:अपनेकेँ सर्वप्रथम बाल साहित्यपर अकादेमी पुरस्कारक लेल बधाइ। अहाँ जहिया लघुकथा लेखन प्रारम्भ केलहुँ मैथिली लघुकथा कतऽ छलै, अहाँक लघुकथा लेखन दिस कोना प्रवृत्ति जागल।
·         तारानन्द वियोगी:हम जहिया लघुकथा लिखब शुरू केने रही, एक विधाक रूपमे मैथिली लघुकथाक कोनो मोजर नै रहैक। ई बात जरूर छल जे छोट-छोट कथा सभकेँ लघुकथा मानि कऽ “मिथिला मिहिर”क विशेषांक सेहो बहार भ गेल छल। अनियतकालीन पत्रिका सभमे छोट-छोट कथा सभ यदा-कदा प्रकाशित होइत रहैत छल। मुदा एकर सभक औकाति “बोझ परहक आँटी” सँ बेसी किछु नै छल। पत्रिका सभ, “मिथिला मिहिर” सेहो, एहि कोटिक रचनाकेँ खाली बचल जगहकेँ भरबाक लेल “फीलर”क रूपमे उपयोग करै छल।
·         कथाकेँ अंग्रेजीमे शॉर्ट-स्टोरी कहल जाइ छै। तकर शब्दानुवाद “लघुकथा” मैथिलीक विद्वान लोकनि, आलोचक लोकनिमे प्रचलित छल। आचार्य रमानाथ झा शॉर्ट-स्टोरीकेँ लघुकथा की कहि देलनि जे मैथिलीमे भेड़ियाधसान परिपाटी चलि पड़ल। ओहुनो भारतीय कथा-साहित्यक तुलनामे मैथिली कथाकेँ जँ देखबै तँ पाएब जे आकारक दृष्टिमे मैथिलीक कथा छोट होइत अछि। आचार्य लोकनिक मतेँ यएह भेल लघुकथा। तखन आइ जाहि साहित्यकेँ अहाँ लघुकथा कहैत छिऐक तकरा लेल मैथिली लगमे कोनो स्पेस नै छलै। ने साहित्यमे, ने विद्वान लोकनिक मगजमे।
·         विभिन्न देशी-विदेशी लघुकथा सभकेँ यत्र-तत्र पढ़ैत-गुनैत हमरा कथा आ लघुकथाक पार्थक्यक अवगति भेल। हम देखलौं जे एहि दुनू रचना विधामे ने मात्र आकारमे, अपितु उत्स, स्वभाव आ प्रभावमे सेहो एक दोसरासँ सर्वथा भिन्न अछि। मैथिलीक भंडार दिस ताकलहुँ तँ देखल जे अनेक वरेण्य साहित्यकार जानैत-अनजानैत एहि क्षेत्रमे किछु सर्जनात्मक काज कऽ गेल छथि। हमरा सभसँ पहिने ई जरूरी लागल जे लघुकथा विधाक संरचना, स्वरूप आ स्वभावपर किछु बात स्पष्ट करी। एहि सन्दर्भमे हम कएकटा लेख लिखलहुँ। स्वयं हम मूलतः एक सृजनात्मक लेखक छी, तेँ अपनहुँ लघुकथा लिखऽ लगलहुँ। ताहि समय (१९८३-८५) मे हम “कोसी-कुसुम” पत्रिकाक संग जुड़ल रही। बातकेँ स्पष्ट आ जगजिआर करबाक लेल हम “कुसुम”क एक विशेषांक लघुकथापर सम्पादित कएल। बादमे “हालचाल”क संग जुड़लहुँ, तँ ई क्रम आर आगू बढ़ल।
·          
·         मुन्नाजी:लघुकथाक स्वभाव की अछि? ओहि सन्दर्भमे मैथिली लघुकथा कतऽ देखाइए? कथाकार-कवि लोकनि लघुकथा रचना आन्दोलनक प्रारम्भमे जुड़लाह मुदा समयान्तरे हुनकर ऐ सँ दूर होइत गेनाइ की प्रदर्शित करैत अछि?
·         तारानन्द वियोगी:लघुकथा आत्यन्तिक रूपमे एक “प्रो-एक्टिव” विधा थिक। ओहुनो अहाँ देखबै जे, जे रचना जतेक सरल आ संप्रेषणीय होइत अछि, ओकरा पाछू लेखककेँ ओतबे बेसी परिश्रम करऽ पड़ैत छैक। लघुकथाक तँ एतेक “सेन्सिटिव” मिजाज होइत छैक जे एक वाक्य जँ अहाँ फालतू लिखि गेलहुँ तँ ओ दूरि भऽ जाइत अछि। एतेक परिश्रम के करत, जँ करत तँ ताहिमे निरन्तरता कोना बनौने राखि सकत? एखनो अहाँ देखिते छिऐक जे एक सुव्यवस्थित विधाक रूपमे लघुकथाकेँ मैथिलीमे प्रतिष्ठा नै भेटि सकलैक अछि। फल अछि जे लोक दोसर-दोसर विधामे, जे प्रतिष्ठित अछि आ जाहिसँ ओकरा सहज रूपेँ स्वीकृति भेटि सकैक, ताहिमे कलम अजमबैत छथि। यएह मुख्य कारण भेल जे लेखक लोकनि लघुकथा-लेखनमे निरन्तरता नै बनौने राखि सकलाह। लघुकथापर केन्द्रित एक पत्रिका जँ मैथिलीमे हो तँ एहि स्थितिकेँ पार कएल जा सकैत अछि।
·         हमर अप्पन स्थिति अछि जे चहुँ दिस हमरा काजे-काज देखा पड़ैत अछि, अपन सक्क भरि तकरा सभकेँ सम्हारबाक, स्थिति स्पष्ट करबाक, जतबा जे प्रतिभा अछि तदनुरूप एक मानदंड गढ़बाक काजमे लागल रहैत छी। अहाँ सभ आगू बढ़ब तँ निश्चिते हमरा संग लागल पाएब। ओहुनो, हमर सोच अछि जे “जो पीछी आ रहे उन्हीं का, मैं आगे का जय-जयकार”।
·          
·         मुन्नाजी:२०म सदीक अन्तमे अहाँ सभ (प्रदीप बिहारी सेहो) मैथिली लघुकथाक संग्रह आनि अपन निश्सन उपस्थिति दर्ज केलहुँ, मुदा कथा आलोचक द्वारा एकर निङ्गेश बुझि टारि देल गेल, एकर की प्रमुख कारण छल?
·         तारानन्द वियोगी:देखू मुन्नाजी, हमरा सभक पीढ़ी बहुत संघर्ष कऽ कऽ आगू बढ़ल अछि। पुरातनपंथी लोकनि सेहो हमरा सभक विरुद्ध आ कम्यूनिस्टकेँ सेहो हमरा सभसँ दुश्मनी। साहित्यमे नवाचार दुनूकेँ समान रूपेँ नापसिन्द। एहना स्थितिमे किनकासँ हम मोजर मांगब आ के हमरा मोजर देताह? मैथिली आलोचना बहुतो तरहेँ अनेक सीमासँ घेराएल रहल अछि। एहि कारणेँ बहुतो लोक एकरा अविकसित धरि कहैत छथि। एहि सीमा सभक अतिक्रमण आब शुरू भेल अछि। हमहूँ ठोड़े काज “कर्मधारय”मे आ आनो ठाम केलहुँ अछि। हमरा पीढ़ीमे प्रदीप बिहारी लघुकथा लिखलनि, देवशंकर नवीन, विभूति आनन्द लिखलनि। शिवशंकर श्रीनिवास, अशोक, रमेश लिखलनि। हिनका सभक रचनाकेँ आइ पढ़ब तँ अहाँकेँ आक्रोश हएत जे ताहि दिनमे किएक ने एकरा बूझल-गुनल गेलै? खएर, जे भेल से भेल। आइ आरो सघनता-गम्भीरताक संग काज करबाक बेगरता छैक। अहाँ सभ आब उल्लेखनीय काज करब तँ अवश्ये मोजर हएत। बदलल परिस्थितिक अहसास अहूँ सभकेँ जरूरे होइत हएत।
·          
·         मुन्नाजी:२१म सदीक प्रारम्भमे मध्यम पीढ़ीक रचनाकार द्वारा ठाढ़ कएल आधारकेँ आगू करैत नव पीढ़ी एकरा जगजियार कऽ रहल छथि। अहाँ एकर वर्तमान दशा आ आगूक दिशा मादे की कहब?
·         तारानन्द वियोगी:लघुकथाक क्षेत्रमे गम्भीरताक संग काज करएबला लोकक एखनहुँ अभाव छैक, से हमरा प्रतीत होइत अछि। किनकहुँ एक रचना जँ सुन्दर देखैत छियनि तँ लगले दोसर रचना औसतसँ नीचाँक देखा पड़ि जाइत अछि। एना किएक होइत छैक? स्पष्ट अछि जे बोध आ श्रमक मानक ओ लोकनि बनौने नै राखि पाबि रहल छथि। दोसर बात जे हमरा जरूरी लगैत अछि- भने बत्तीसे पेजक किएक ने हो- प्रत्येक रचनाकारक एक संग्रह जरूर एबाक चाही। कोनो उत्साही लोक एहि दिस सचेष्ट होथि तँ लघुकथापर एक लेखन-कार्यशालाक आयोजन कएल जाए। तात्पर्य जे सांस्थानिक उत्साहक संग एहि दिशामे काज करबाक बेगरता छैक।
·          
·         मुन्नाजी:मैथिलीये लघुकथाक समकालीन पंजाबीक “मिन्नी कथा”, ओड़ियाक “क्षुद्र कथा”, तमिलक “निमिषा”, मलयालमक “क्विन्तेर” राष्ट्रीय स्तरपर स्थापित होइत देखाइए मुदा मैथिली एहि पगपर अन्हराएल सन? एकर पाछाँ की कारण अछि, वा कमी अछि?  
·         तारानन्द वियोगी:मैथिलीमे मानक काजक अभाव नै छै, आ ने भाषामे वा भाषाकर्मी लोकनिमे क्षमताक अभाव छै। सांस्थानिक रूपसँ थोड़बे दिन काज कऽ कऽ देखियौ ने, भारतीय साहित्यक उपवनमे मैथिली लघुकथाक फूल सेहो तेहने भकरार लागत जेना पंजाबी, उड़िया वा मलयालमक।
·          
·         मुन्नाजी:जहिना अहाँ सभकेँ (अहाँ आ बिहाईजी केँ) उपेक्षित रखबाक प्रयास भेल, तहिना आइयो कथालोचक द्वारा नवका पीढ़ीक ऊर्जावान रचनाकार वा लघुकथाक प्रति समर्पित रचनाकारक कोनो नोटिस नै लेल जा रहल अछि। एहिमे कोनो कुटीचालि अछि वा आर किछु?
·         तारानन्द वियोगी:एहि प्रश्नक उत्तरमे हम दूटा बात कहब। पहिल तँ ई कहब जे के लेत अहाँक नोटिस? ककरा मोजर देने अहाँ मोजरबला लोक हएब? एतेक विवेकी आ क्रान्तिदर्शी लोक अहाँकेँ के देखाइत छथि? हम तँ साँच-साँच कहै छी मुन्नाजी जे हमरा एहन लोक क्यो नै देखाइत छथि। पहिने गुलामीक समय रहै तँ महाराज दरभंगाक मोजर देने राताराती लोक मोजरबला भऽ जाइ छला। आब ई भिन्न बात छै जे एहि भ्रममे महाराजक विवेकसम्पन्नता जिम्मेवार होइ छल आकि कोनो आन स्वार्थ?
·         साहित्य अपन स्वभावेसँ क्रान्तिकारी होइत अछि। जँ ओ वास्तवमे एक सही साहित्य हो। एहेन साहित्य किछु लेबाक लेल नहि अपितु सदैव देबाक लेल लिखल जाइत अछि।
·         दोसर बात हम ई कहब जे अहाँ मोजर वा नोटिसक ख्याल केने बिना काज करू। कोनो सार्थक रचना जँ कलमसँ बहराए तकर संतोषकेँ सेलिब्रेट करू जे “जइ धरतीक अन्न-तीमन खेलिऐ तँ ओकरा लेल काजो केलियै”। ओना ईहो कहि दी जे हमरा सभक लेखनारम्भ कालमे जतेक कुहेस आ जाली पसरल रहै, ताहिमे आब बहुत परिवर्तन भेलैए। आलोचनोक परिदृश्य बदललैए आ पाठकक व्याप्ति सेहो बढ़लैए। इन्टरनेटक तँ एहिमे कमाल केने अछि।
·         मुन्नाजी:वर्तमानमे रचनाकार सबहक मैथिली लघुकथाक प्रति रुझानक बादो मैथिलीक विभिन्न समिति-संस्थाक प्रतिनिधि सबहक एकरा प्रति विरोध की दर्शाबैए? मैथिली लघुकथाकेँ आर समृद्ध करबा लेल आर की सभ काज कएल जाए? मैथिली लघुकथाक भविष्य की देखैत छी? एकरा स्थापित करबा लेल कोनो विशेष रुखि?
·          
·         तारानन्द वियोगी:लघुकथाक भविष्य हम बहुत नीक देखै छी। मैथिली लघुकथाक सेहो। अहाँ पुछब जे तकर कारण? कारण ई नै जे लोक आब बड्ड व्यस्त भऽ गेलैए तेँ छोट रचना बेसी पठनीय साबित भऽ सकत। वास्तविकता तँ ई अछि जे एखनो दुनियाँ भरिमे सभसँ बेसी उपन्यासे विधाक रचना पढ़ल जा रहल अछि।
·         लघुकथाक भविष्य वस्तुतः एकर स्वभावक कारणेँ उज्जवल छैक। एहिमे निहित व्यंग्य आ मार्मिकता आजुक सन्दर्भमे अति प्रासंगिक अछि। आजुक लोकक संवेदना क्षमता जाहि हिसाबे भोथ भेल अछि, एक सही लघुकथाक ओज ओकर ओंघी उतारि सकैत अछि।

(साभार विदेह www.videha.co.in )

No comments:

Post a Comment