Monday, October 31, 2011

गजेन्द्र ठाकुरक मैथिली नाटक "उल्कामुख"क मंचन विदेह नाट्य उत्सवमे हएत

-गजेन्द्र ठाकुरक मैथिली नाटक "उल्कामुख"क मंचन विदेह नाट्य उत्सवमे हएत।
-निर्देशक बेचन ठाकुर।
-समय जनवरी-फरबरी २०१२ सरस्वती पूजा लगाति।

खरौआमे लालदास जयंती २ नवम्बर २०११मे मैथिली पुस्तक प्रदर्शनी

विदेहक सौजन्यसँ खरौआमे लालदास जयंती २ नवम्बर २०११मे मैथिली पुस्तक प्रदर्शनी आयोजित कएल जा रहल अछि। कार्यक्रम दिनमे २ बजेसँ ८ बजे राति धरि आयोजित हएत। मैथिली पुस्तक प्रदर्शनी १२ बजे दिनसँ आयोजित हएत।

-ओतए राधाकृष्ण चौधरीक "मिथिलाक इतिहास" आ "अ सर्वे ऑफ मैथिली लिटेरेचर" क अतिरिक्त राजदेव मण्डलक "अम्बरा", जगदीश प्रसाद मण्डलक "गामक जिनगी",  प्रीति ठाकुरक "मिथिलाक लोकदेवता" , गजेन्द्र ठाकुर/ नागेन्द्र कुमार झा/ पञ्जीकार विद्यानन्द झाक "पञ्जी प्रबन्ध", गजेन्द्र ठाकुरक "कुरुक्षेत्रम् अन्तर्मनक"  सहित सएसँ ऊपर मैथिली पोथी प्रदर्शन आ बिक्री लेल उपलब्ध रहत। 

बेचन ठाकुरक "बेटीक अपमान आ छीनरदेवी", अनमोल झाक "समय साक्षी थिक" आ आशीष अनचिन्हारक "अनचिन्हार आखर"क लोकार्पण ७५म "सगर राति दीप जरए" पटनामे दिसम्बर २०११ मे

-बेचन ठाकुरक "बेटीक अपमान आ छीनरदेवी", अनमोल झाक "समय साक्षी थिक" आ आशीष अनचिन्हारक "अनचिन्हार आखर"क लोकार्पण ७५म "सगर राति दीप जरए" पटनामे दिसम्बर २०११ मे ।

-तिथि १० दिसम्बर २०११ समय साँझ ६ बजे, स्थान, कॉपरेटिव फेडेरेशन हॉल, निकट म्यूजियम, पटना

सुनल जाओ मैथिलीमे समाचार ३० अक्टोबर २०११ (साभार जानकी एफ.एम., जनकपुर)

Friday, October 28, 2011

चेतना समितिक ५८म विद्यापति स्मृति पर्व समारोह ८-१० नवम्बर २०११ केँ

-चेतना समितिक ५८म विद्यापति स्मृति पर्व समारोह ८-१० नवम्बर २०११ केँ

-स्थान बुद्ध मार्ग ,पटना स्थित अभियन्ता सेवा संघ परिसर

-विद्यापतिक ५६२म पुण्य तिथिक अवसरपर ई कार्यक्रम

-चेतना समिति, पटनाक स्थापना १८ जुलाइ १९५४ केँ भेल छल। -पहिल दू दिन पुरस्कार वितरण, कार्यशाला, कवि सम्मेलन आदि हएत। तेसर दिन विभा रानीक नाटक "मददि करू सन्तोषी माइ" मंचित हएत। निर्देशक छथि- कमल मोहन चुन्नू। ऐ हास्य नाटकमे बेरोजगारीक समस्या आ ऐ लेल देवी -देवतापर अनावश्यक निर्भरतापर चर्चा अछि।

मैथिली कवि सम्मेलन २७ अक्टूबर २०११ केँ (समाचार सौजन्य विनीत उत्पल)

आइ अछि कवि सम्मलेन आ रंगा-रंग कार्यक्रम

चित्रांश कर्ण समाज आइ चित्रगुप्त पूजाक अवसरपर रंगारंग कार्यक्रम कऽ रहल अछि। संस्थाक सचिव आनंद वरुण जीक मुताबिक दुपहर २.३० बजे सँ धीया-पुता आ महिला वर्गक कार्यक्रम होएत। तकर बाद साँझुक आरती, ६.३० बजे, आ साँझ ७ बजे सँ कवि सम्मेलन होएत। अहि कवि सम्मलेनमे कवि छथि श्री रविन्द्र कुमार लाल दास आ श्री विनीत उत्पल। एकर बाद केदार झा जी आन कलाकारक संग लोक संगीत प्रस्तुत करताह। ई कार्यक्रम होएत श्री राम मंदिर, (भाटीजीक अखाड़ा), शालीमार गार्डेन मेन, साहिबाबाद (सीमापुरी बस डिपो लग) उत्तर प्रदेशमे।

जौं ओतए जाइमे कोनो दिक्कत हुअए आ ठाम नहि भेटय तँ फोन करू, आनद वरुण (सचिव) ९८१०८०२०४८, कालि कुमार (अध्यक्ष) ९९९९०९६५४२, विमल कुमार दास 9968489813

सुनल जाओ मैथिलीमे समाचार 27 अक्टोबर 2011 (साभार जानकी एफ.एम., जनकपुर)

Tuesday, October 25, 2011

महाकवि‍ लालदास जयंति समारोह- 02 नवम्‍बर

महाकवि‍ लालदास जयंति समारोहमे अपने सभ गोटे सादर आमंत्रि‍त छी-
कार्यक्रम- १. महाकवि‍ परि‍चर्चा, २. काव्यगोष्ठी एवं सांस्कृति‍क कार्यक्रम।
ति‍थि‍- २ नभम्बर २०११केँ २ बजे दि‍न
स्थान- लालदास उच्च वि‍द्यालय परि‍सर- खरौआ, (मधुबनी)।
नि‍वेदक- महाकवि‍ लालदास जयंति‍ आयोजन कमि‍टी खरौआ (मधुबनी) मोवाइल- ०९८०१११९४६६, ०७२०९८४२०८४

Sunday, October 23, 2011

सुनल जाओ मैथिलीमे समाचार २३ अक्टोबर २०११ (साभार जानकी एफ.एम., जनकपुर)

मिथिलासँ दूर आ अंग्रेजी माध्यमे शिक्षित मैथिली अनुरागी आ जगजियार होइत मैथिली कवियित्री श्रीमति ज्योति सुनीत चौधरीसँ मुन्नाजी द्वारा भेल अंतरंग गप्प-सप्पक बानगी


मिथिलासँ दूर आ अंग्रेजी माध्यमे शिक्षित मैथिली अनुरागी आ जगजियार होइत मैथिली कवियित्री श्रीमति ज्योति सुनीत चौधरीसँ मुन्नाजी द्वारा भेल अंतरंग गप्प-सप्पक बानगी अहाँ सभक सोझाँ राखल जा रहल अछि।


मुन्नाजी: ज्योतिजी, अहाँक शिक्षा-दीक्षा अंग्रेजी माध्यमे भेल। संस्कारगत सम्भ्रान्त वा आधुनिकतामे पलि-बढ़ि कऽ अहाँकेँ मैथिली भाषाक प्रति एतेक अनुराग कोना जनमल?
ज्योति सुनीत चौधरी: सभसँ पहिने नमस्कार मुन्नाजी। असलमे मैथिलसँ दूर हम कखनो नहि रहलहुँ।जमशेदपुरमे मैथिल सबहक अपन बड़का टोली छनि आ बड्ड शानसँ ओ सभ विद्यापति समारोह मनाबैत छथि। हमर परिवारमे जे कियो बेसी नजदीकी छलथि सभ मैथिल छलथि। फेर सालमे एकबेर गाम अवश्य जाइत छलहुँ। ओतए पितियौत-पिसियौत भाइ-बहिन सबहक पुस्तक पढ़ै छलहुँ। से मैथिली भाषासँ अनुराग बच्चेसँ अछि। भाग्यसँ सासुरो खॉंटी मैथिल भेटल अछि। हँ, मैथिलक विकासक विचार हमरामे हमर स्वर्गीय बाबासँ आएल अछि। हमर पितामह जखन मरणासन्न रहथि तखन करीब एक मास हम हुनका लग अस्पतालमे दिनमे अटेण्डरक रूपमे रहेैत रही। हम अपन कॉस्टिंगक तेसर स्टेज ओहि अस्पतालमे पढ़ि कऽ पास केने छी। ओहि बीच हुनकासँ बहुत बात भेल आ मिथिलाक विकासक बात सभ मस्तिष्कमे आएल।
मुन्नाजी: मैथिलीमे लेखन प्रारम्भक प्रेरणा कतऽसँ वा कोना भेटल। पहिलुक बेर अहाँ की लिखलहुँ आ की/ कतऽ छपल।
ज्योति सुनीत चौधरी:  यद्यपि हम पहिल मैथिली कविता विद्यालयकालमे भारतवर्ष पर लिखने रही जे बड़हाराबला मामाजी (चाचीजीक भाय) केँ देने रहियनि आ किछु कारणवश ओ प्रकाशित नहि भेल। परन्तु मूल रूपसँ मैथिलीमे लेखनक प्रेरणा सम्पादक महोदय गजेन्द्रजी सँ भेटल। बादमे ज्ञात भेलजे गजेन्द्रजी बहुतो लेखकक खोज केलन्हि आ बहुतोसँ मैथिलीमे लिखबा लेलन्हि। हमहुँ ओहिमे सँ एक छी। हमर पहिल कविता हिमपातअछि जे विदेह डॉट कॉम क पॉंचम अंकमे १ मार्च २००८ केँ प्रकाशित भेल।
मुन्नाजी: कविता तँ लोकक स्वाभाविक जीवनधारासँ प्रस्फुटित होइत रहैत छैक आ चिन्तनशील लोक ओकरा लयवद्ध वा अक्षरवद्ध कऽ लैए। अहाँक पद्य-संग्रह अर्चिस् मे कविताक संग अहाँक हाइकू देखि आह्लादित भेलहुँ। हाइकू लिखबाक सोच कोना/ कतऽसँ बहराएल।
ज्योति सुनीत चौधरी:  बहुत-बहुत धन्यवाद जे अहॉंकेँ हमर हाइकु नीक लागल। पहिने पोइट्री डॉट कॉम मे सभ दिन एकटा प्रााकृतिक दृश्यक फोटो देल जाइत छलै आ ओहि फोटोसँ प्रेरित भऽ हाइकू लिखक प्रतियोगिता होइत छल। अहुना हमरा प्राकृतिक सुन्दरतापर लिखनाइ पसिन छल से भोरे अपन घरक काज समाप्त कऽ जखन हम कॉफी लेल बैसै छलहुँ तँ मेल चेक करैकाल हम ओहि साइटपर जाइ छलहुँ आ सभ दिन एकटा हाइकू लिखैत छलहुँ। ओहि क्रममे चारि मासमे सएटा हाइकू जमा भऽ गेल जे विदेहक बारहम अंक (१५ जून २००८), जे हाइकू विशेषांक छल, मे छपल।
मुन्नाजी: मिथिले नै भारतसँ दूर लंदनमे मैथिली पढ़बा-लिखबाक जिज्ञासा कोना बनल रहैए। अहाँ गृहणी रहैत- घर द्वार सम्हारैत कोना रचनाशील रहैत छी?
ज्योति सुनीत चौधरी:  एक गृहिणी लेल स्वतंत्र लेखिकासँ बढ़िया आर कोन काज भऽ सकैत छै आर विदेहमे कखनो हमरापर कोनो विषय विशेषपर लिखए लेल वा समयक बन्धनक दवाब नहि छल। फेर ई तँ सौभाग्य अछि जे अन्तर्जालपर मैथिलीक प्रवेशसँ आब विदेशोमे रहिकऽ अपन भाषा साहित्यसँ नजदीकी बनल रहैत अछि। ईश्वरक आशीर्वादसँ बच्चा आब पैघ भऽ गेल अछि आ विद्यालय जाइत अछि। सासुर दिससँ कोनो जिम्मेदारी नहि अछि। पतिदेव सेहो घरक कार्यमे सहयोग दैत छथि तैं गृहिणी भेनाइ लेखन कार्यमे अवरोधक नहि बनैत अछि।
मुन्नाजी: मैथिल संस्कृतिक तुलनामे अंग्रेजक संस्कृतिक बीच अपनाकेँ कतऽ पबै छी। दुनूक संस्कृतिक की समानता वा विभिन्नता अनुभव करैत छी?
ज्योति सुनीत चौधरी:  दुनूमे किछु नीक आ किछु खराबी अछि। विदेशमे व्यवहारमे बेसी खुलापन छै मुदा हम अकरा विकसित रूप नहि मानैत छी। हम बच्चामे महात्मा गॉंधीजी द्वारा रचित एकटा हिन्दी-कथा पढ़ने रही जब मैं पढ़ता था, गान्धीजी इन लण्डन सँ प्रेरित; बहुत सत्य लागल ओ कथा जखन हम विदेशी सभ्यताकेँ बुझैक प्रयास केलहुँ। अपन संस्कृति बहुत धनी, तर्कसंगत आ मौलिक -original- अछि। बस हम सभ आर्थिक रूपेँ पिछड़ल छी, जकर नैतिक समाधान शिक्षाक विकास अछि। हमर इच्छा अछि जे भने मिथिलाक विकासमे कनी समय लागए मुदा अपन कला, संस्कृति, पाबनि, गीतनाद आदि सभ मलिन नहि होअए। हँ कतहु-कतहु सामाजिक कुरीति जेना दहेज, विधवाक जीवनशैली, स्त्री-शिक्षा आदिमे बदलाव चाही। अहि सभ समस्यामे दहेज समस्या बड्ड बड़का कैंसर अछि जे शिक्षित वर्गकेँ सेहो धेने अछि अन्यथा बॉंकि समस्या शिक्षाक विकासक संगे विलीन भऽ रहल अछि।
मुन्नाजी: मैथिलीसँ इतर अहाँकेँ अंग्रेजीमे पोएट्री डॉट कॉम सँ एडीटर्स चॉएस अवार्ड (अंग्रेजी पद्य लेल) भेटल अछि। की अंग्रेजीमे पोएट्री लेखनक निरन्तरता बनौने छी।
ज्योति सुनीत चौधरी:  नहि। हम जहियासँ विदेहमे लिखए लगलहुँ तहियासँ अंग्रेजीमे लिखबाक समय नहि निकलि रहल अछि। इहो कहल जा सकैत छै जे हमरा मैथिलीमे बेसी रूचि अछि अन्यथा where there is will there is a way” अर्थात् जतए चाह ततए राह।
मुन्नाजी: अहाँक नजरिमे मैथिली पद्य विधा आ अंग्रेजी पद्य विधामे की फराक तत्व अछि। दुनू एक दोसरासँ कोन बिन्दुपर ठाढ़ अछि?
ज्योति सुनीत चौधरी:  अंग्रेजी पद्य विधा बहुत समृद्ध अछि कारण ओ विश्वव्यापी भाषा अछि। मैथिली पद्य विधा विशेषतः गीतक सेहो अपन अद्भुत आ अनेक रूप अछि जेना कि खिलौना, नचारी, सोहर, गोसाउनि, भगवति, ब्राह्मण, समदाओन, होरी, चुमाउन, छठि आदिक लेल विशेष पद्धति छै। मुदा एहि सभकेँ ढ़ंगसँ परिभाषित कऽ व्यवस्थित रूपे संग्रहित राखैक अभाव अछि।
मुन्नाजी: ज्योतिजी, अहाँक माध्यमे मैथिली रचनाकारक किछु रचना सभक अंग्रेजी अनुवाद आ प्रकाशन भेल अछि। किए नै व्यापक स्तरपर मैथिलीकेँ अंग्रेजी पत्र-पत्रिकाक माध्यमसँ वैश्विक पटलपर अनबाक प्रयास करै छी?
ज्योति सुनीत चौधरी:   हमरो ई इच्छा अछि। हम लन्दनक एक अंग्रेजी कवि समुदायसँ जुड़ल छलहुँ जे बाङ्ग्लादेशी आ डच समुदायक छथि मुदा हुनकर सबहक अत्याधुनिक  रहन-सहन (पबमे मीटिंग़-ड्रिंक्स) हमरा ओतेक नीक नहि लागल। तैयो हम एक व्यक्तिसँ मेल आ फेसबुकक माध्यमसँ सम्पर्कमे छी। जौं कुनो सुझाव अछि तँ दिअ हम यथासम्भव अपन योगदान देब। ओना इंगलैण्डमे बहुत मैथिल डाक्टर आ आई.टी. क लोक छथि, ओ सभ जरूर पुस्तक किनता। आ बॉलीवुडमे प्रकाश झा जी तँ छथिये। कहियौन हुनका किछु चलचित्र बनाबए मिथिला संस्कृति पर, मिथिला कलाकृतिपर। गामक हाल चाल तँ बहुत देखाओल गेल अछि। कनी बाहरक मैथिलपर सेहो काज करथि जाहिसँ जे धनी मैथिल सभ बाहर बैसल छथि से अपन संस्कृति दिस आकर्षित हेता। कहियौन जे अपन फिल्ममे मिथिला पेण्टिंग प्रदर्शित करथि।
मुन्नाजी: अहाँ साहित्यक संग मिथिला चित्रकला आ ललितकलामे निष्णात छी। अहाँ साहित्य आ कला दुनूक बीच की फाँट देखैत छी। दुनूमे केहेन ककर अस्तित्व देखा पड़ैछ?
ज्योति सुनीत चौधरी:   धन्यवाद। हम मास्टर तँ नहि छी, हँ हम अभिलाषी छी एकर उन्नतिक। साहित्यकेँ बहुत नीक मंच भेट गेल अछि मुदा कला लेल अखनो संकलित आ विश्व स्तरीय ठोस भूमिक आवश्यकता अछि। हम एक बिजनेस प्लैन बनेने छी मुदा ओहि लेल बढ़िया निवेशक आ विपणन कर्ताक आवश्यकता अछि। हम अहॉंके अटैचमेण्ट पठा रहल छी ओहि बिजनेस प्लैनक। कतहु गुंजाइश होअए तँ कृपा कऽ उपयोग करू।(नीचाँमे देल अछि)
मुन्नाजी: अहाँ आइ.सी.डब्लू.ए.आइ.डिग्रीधारी छी, अहाँक नजरिमे राष्ट्रीय आ अन्तर्राष्ट्रीय फलकपर मिथिलाक वित्तीय स्थिति की अछि? एकर दशा कोना सुधारल जा सकैछ, एहि हेतु कोनो दिशा निर्देश?
ज्योति सुनीत चौधरी:   अकर जवाब हम बहुत विस्तृत रूपमे देब। अहॉंकेँ धैर्यसँ सुनए पड़त। भारतमे  विकासशीलताक दोसर स्थानपर अछि बिहार राज्य। आइसँ १०-१५ साल पहिने बाहर रहैवला बिहारीकेँ लाज होइत छलै। एक अशिक्षित आ बेरोजगारीक बहुलतावला राज्यकेँ विकासक लेल एक शिक्षित आ उन्नत सोचबला मुख्यमंत्री चाही। चलू बिहार तँ रस्ता पकड़लक मुदा मिथिलाञ्चलक विकास ओहि रूपे नहि देखाइत अछि। विश्वबैंकसँ जे कोसी लेल कर्ज भेटल छै तकर जौं सदुपयोग भऽ जाए तँ मिथिलाक पचास प्रतिशत प्रााकृतिक समस्याक समाधान भऽ जेतै। बिहारमे नितिश जी एक निअम बना रहल छथि जाहि अन्तर्गत सरकारी कर्मचारी जौं निश्चित समयमे कार्य नहि करता तँ जनता हुनकर शिकाइत दर्ज कऽ सकैत छथि। अहि तरहक रूपान्तरण किछु आशाक किरण जरूर दऽ रहल अछि।
   मिथिलाक औद्योगिक विकासक लेल सरकारी सहयोगक आवश्यकता अछि। किछु बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चरक विकास जेना सड़क निर्माण, बॉंध निर्माण, पुल निर्माण आदि चाही जे सरकारकेँ करए पड़तनि, तकर बादे बाहरी लाभिच्छुक निवेशक सभ अपन पाइ लगेता। भारी उद्योगक सम्भावना कम अछि। अहिठाम सर्विस सेक्टर, कृषि उद्योग़, वस्त्र उद्योग, फैब्रीक इण्डस्ट्री, खाद्य सामग्री, प्रोसेस्ड फुड आदिक बड्ड सम्भावना अछि। अड़िकोंचक मिठ रूप मराठी स्टायलक़ समोसा, कचोरी, खीर, फिरनी आदि विदेशक बजारमे भड़ल अछि, तखन मिथिलाक व्यञ्जन किऐक नहि। किऐक नहि हम सभ मिथिलाक अड़िकोंचक तरकारी, मखानक खीर, अपन दिसका माछक मसाला सभकेँ विकसित कऽ एक्सपोर्ट करैत छी। गुजरातक मोदक विश्वप्रसिद्ध अछि, अपन सबहक बगिया किऐक नहि। तकर बाद आम, लीची, केरा, तारकून, कुसियार, खजूर आदिक विभिन्न ड्रिंक बना कऽ बेचल जा सकैत अछि।
      मधुबनी पेण्टिंगक व्यवसायिक उपयोग करू। अहि पैटर्नकेँ आधुनिक आ पारम्परिक दुनु तरहक परिधानमे बना कऽ फैशन शो करू। घरक क्रॉकरी, फर्नीचरसँ लऽ कऽ कम्प्यूटरक वालपेपर  आ लैपटॉपक कवरपर मिथिला पेण्टिंग छापू। घरक वाल पेपर, मोजाइक, मार्बल सभपर मिथिला पेण्टिंगक समावेश करू। पेंटिंगक किट बनाऊ जेना सैण्ड पेंटिंग, इम्बॉस पेण्टिङ्ग आदिक किट बजारमे उपलब्ध अछि। अनन्त सम्भावना छै।
      मिथिलांचलक उन्नतिक पथपर एकटा बाधा छै जकरा फानै लेल सरकारी कोष आ सरकारक ईमानदारीक आवश्यकता छै। एकबेर ई बाधा फना जाइ तँ मिथिलांचलकेँ स्वर्णिम रूप पाबैसँ कियो नहि रोकि सकैत अछि।
मुन्नाजी: अहाँ लंदनमे रहि अपन नवका पीढ़ी (विशेष कऽ अपन पुत्रकेँ) मिथिला-मैथिलीसँ जोड़ि कऽ रखनाइ पसिन्न करब आकि एकरा अछूत सन बुझबाक शिक्षा देबै?
ज्योति सुनीत चौधरी:    हम अपन नबका पीढ़ीकेँ अपन संस्कृतिसँ जोड़ि कऽ राखऽ चाहब। लन्दनमे विद्यार्थी ताकि रहल छी, मधुबनी पेटिंग सिखाबै लेल। हम अपन पुत्रकेँ मैथिलक सभ विशेषतासँ ज्ञात राखए चाहैत छी, संगमे ईहो चाहैत छी जे ओ अहि सभ्यताकेँ स्वेच्छासँ स्वीकार करथि। अछूत व्यवहारक तँ प्रश्ने नहि छै। भने ओ अहि संस्कृतिकेँ अंगीकृत करथि वा नहि मुदा सम्मान तँ देबहे पड़तनि।
मुन्नाजी: मिथिला-मैथिलीक प्रति अनुरागकेँ अहाँक पति सुनीत चौधरीजी कोन रूपेँ देखै छथि, अहाँकेँ एहि कार्यकलापक प्रति प्रेरित कऽ वा बाधित कऽ?
ज्योति सुनीत चौधरी:    हमर पति हमर काजमे दखल नहि दैत छथि आ कुनो तरहक दवाब नहि रहैत अछि जे हम की लीखू आ की नहि। घरक काजमे बहुत योगदान दैत छथि आ बाधित कखनो नहि करैत छथि ओना हमहुँ हुनकर इच्छाकेँ प्रााथमिकता दैत छियनि। प्रेरणा हम अपन मॉं, बहिन आ भौजीसँ लैत छी। हम हुनका सभसँ अपन सभ बात करैत छी।
मुन्नाजी: ज्योतिजी अहाँ अपन नजरिये अंग्रेजी साहित्यक मध्य मैथिली साहित्यकेँ कतऽ पबै छी आ किएक?
ज्योति सुनीत चौधरी:    हम अंग्रेजी साहित्यकेँ सागर मानैत छी आ मैथिली साहित्यकेँ मानसरोवर। अंग्रेजी साहित्यकेँ विश्वभरिमे काफी पहिने मान्यता भेटल छै तैं ओ बहुत समृद्ध अछि। सागर रूपी अंग्रेजी साहित्य अपन परिपूर्णतापर अछि मुदा मैथिली साहित्य प्रााचीन रहितो अखन उत्पत्तिक परमशुद्धि बिन्दुपर अछि आ ओकर सिंचन आ संरक्षणक भार सम्प्रति आ भावी लेखकगणपर छनि।
मुन्नाजी: अहाँ अपन समक्ष समकालीन नवतुरिया रचनाकारकेँ कोनो संदेश देनाइ पसिन्न करब?
ज्योति सुनीत चौधरी:  हम हुनका सभसँ कहए चाहबनि जे कृप्या सामने आऊ आ लेखकक रूपमे समाजक प्रति अपन जिम्मेदारीकेँ निमाहैत मैथिली साहित्यकेँ सुकृतिसँ सम्पन्न करू।
मुन्नाजी: बहुत-बहुत धन्यवाद ज्योतिजी।
ज्योति सुनीत चौधरी:  बहुत-बहुत धन्यवाद हमरा अहि योग्य बुझए लेल।


हम एक बिजनेस प्लैन बनेने छी मुदा ओहिलेल बढ़िया निवेशक आ विपणन कर्ताक आवश्यकता अछि। हम अहॉंके अटैचमेण्ट पठा रहल छी ओहि बिजनेस प्लैनक। कतहु गुंजाइश होअए तँ कृपा कऽ उपयोग करू।- ज्योति सुनीत चौधरी
Mithila Painting
Nature of Business
Selling printout and original MadhubaniPaintings on paper, fabric,
tiles, ceramic and other media.
Purpose:
Expanding scope of MadhubaniPaintings without losing its originality.
Sources (Purchases):
Original artworks on paper and other media and digital copies
Supplier:
Artists and media resources for tiles, wallpapers etc.
Sales:
Online sales.
Customers:
Art lovers, Restaurants, Saloons, Interior desighners, fabric
Designers, book printers for cover page design, card printers,
Stationary printers etc.
Cost required:
Web designing cost
Site subscription cost
Collborationwith banks and other payment modes
Purchasing art works from the artists
Preparing good digital copies
Postage (post sales cost)For web designingMain category MadhubaniPaintings
Mythological
Scenes of Ramayana
Scenes of Mahabharata
Stories of Puran
Gods and Goddesses
Festivals and Sanskara:
Kohbar
Vivah
Chhathihar
Muran
Upanayan
Kojagara
Barsait
Madhushravani
Diwali
Holi
Bhagwaanpuja
AkharhiPuja
Village Life : scencesof day to day works, cattle etc.
Wild Life: Different birds and animals, scenes of forest, desert
Story based: Based on popular stories
Flora and Fauna : Different flowers portrayed in madhubanipainting style
Contemporary : Based on city life, new experiments.
Natural scenes

(साभार विदेह www.videha.co.in )

त्रिकोणक एक कोणसँ अशोकसँ मुन्नाजीक साक्षात्कार


त्रिकोणक एक कोणसँ अशोकसँ मुन्नाजीक साक्षात्कार
मुन्नाजी: अपने मैथिली रचना प्रारम्भक प्रेरणा कतऽ सँ पौलहुँ। एकर प्रारम्भ कहिया आ कोना भेल?
अशोक: हम मैथिलीमे रचनाक प्रेरणा काशीमे ग्रहण केलहुँ। साते वर्षक अवस्था सँ पिता संग काशीमे रहऽ लगलहुँ, पढ़बाक लेल। मायाअ भाइ-भाउज लोकनि गाममे रहैत रहथि। काशीमे राम मन्दिरपर रही। ओतऽ हमर पिता स्व. उमापति झा मन्दिरक व्यवस्थापक रहथि। राममन्दिरपर मैथिल छात्र संघ द्वारा अनेक साहित्यिक ओ सांस्कृतिक कार्यक्रम होइ। नेनेसँ सभ देखऽ सुनऽ लगलहुँ। कानमे मिथिला, मैथिल ओ मैथिली शब्द सभ जाय लागल। एही क्रममे हमहूँ कविता सभ लिखऽ लगलहुँ। वर्ष १९६८ मे “वटुक” पत्रिका मे डॉ. सुधाकान्त मिश्र (जे “वटुक” पत्रिकाक सम्पादक रहथि) हमर पहिल कविता “शशि चन्दाके समान” छपने रहथि। ई कविता हम चन्दा झा जयन्तीक अवसरपर लिखने ओ पढ़ने रही। ओहि जयन्तीक अध्यक्षता मैथिलीक प्रसिद्ध कवि चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” केने रहथि। तकर बाद कविता सभ लिखऽ लगलहुँ। जखन दर्जन भरि कविता लिखल भऽ गेल तँ अपन जेठ भाइ स्व. सुशील झा (प्रधानाचार्य, एल.एन. जनता कॉलेज, झंझारपुर) केँ देखौलियनि। ओ हमरा ओहि कविता सभकेँ डॉ. धीरेन्द्र (हमरे गामक प्रसिद्ध साहित्यकार) केँ देखेबाक लेल निर्देश देलनि। डॉ. धीरेन्द्र कविता सभ देखलनि आ ओहिमे सँ किछुकेँ मिथिला मिहिरमे पठेबाक लेल कहलनि। ओहि कवितामे सँ दूटा कविता मिहिर मे छपल। जाहिमे पहिल “ई न्यू लाइटक फैसन थिक” वर्ष १९६९ मे मिहिरमे छपल रहय।

मुन्नाजी: त्रिकोणक शेष दू कोण माने शिवशंकरजी/ शैलेन्द्रजी संग कोना जुड़लौं? पहिल संग्रह त्रिकोणक प्रकाशनक नियार कोना भेल?
अशोक:काशीसँ गरमीक छुट्टीमे गाम आबी। अही क्रममे वर्ष १९६७-७० मे गाममे दुनू गोटेसँ भेँट भेल। दुनू गाममे रहैत छला आ दुनूमे नेनेसँ मित्रता रहनि। तीनूकेँ जखन भेँट भेल तँ बुझलहुँ जे तीनू एक्के रस्ताक पथिक छी। तीनू कविता आ गीत लिखैत छी। कविता लिखब हमरा तीनूकेँ एक-दोसरासँ जोड़ि देलक। तकर बादसँ तँ तेहेन मिलान भेल जे लगबे नहि करय जे कहियो अपरिचित छलहुँ।
कविताक संग तीनू गोटे हम, शिवशंकर आ शैल (शैलेन्द्र आनन्द) कथा सेहो लिखऽ लगलहुँ। कथा सभ पत्रिका सभमे छपऽ लागल। शैल गामेसँ “आहुति” पत्रिका सेहो निकालऽ लगलाह। तखन नियार भेल जे तीनूक एक कथा-संग्रह निकलय। हम तावत् नोकरीमे पटना आबि गेल रही। पटनेसँ तीनू कथाकारक पाँच-पांच टा कथाक संग्रह निकलल “त्रिकोण” नामसँ।

मुन्नाजी: त्रिकोणसँ कतेक पूर्व अहाँ सभ लेखन प्रारम्भ केलहुँ। फेर एक पटलपर कोना एलौं आ तकर की फाएदा आ नोकसान भेल?
अशोक: मोटामोटी कही तँ हमरा तीनू गोटे एक्के संग लेखन प्रारम्भ केलहुँ। हम काशीमे रही। ओतहि कविता लिखऽ लगलहुँ १९६७-६८ ई. सँ। शिवशंकर श्रीनिवास आ शैलेन्द्र आनन्द गाम लोहनामे रहथि। ओही ठाम रहि ओही समयसँ लिखऽ लगला। लिखब शुरू करबाक बाद करीब दू-तीन बरखक भीतरे तीनूकेँ गाममे भेँट भऽ गेल। तकर बाद तँ संग-संग तँ संग-संग साहित्यमे जीबऽ लगलहुँ। हम १९७१ ई. मे गाम चल अयलहुँ। सरिसब कॉलेजमे आइ.एस.सी. करबाक लेल। १९७२ ई. मे आइ.एस.सी. केलहुँ। ओहो दुनू सरिसबे कॉलेजमे पढ़थि। तीनू लगभग संगहि कॉलेज जाइ आ आबी। मित्रता प्रगाढ़ होइत गेल। बी.एस.सी. करबाक लेल हम सीतामढ़ी गेलहुँ १९७२ ई. मे। मुदा फेर १९७५ मे गाम चल अयलहुँ। दू वर्ष गामे रहलहुँ। बी.पी.एस.सी. क प्रतियोगिता परीक्षाक तैयारीक क्रममे। फेर एक संग तीनूक जुटान भऽ गेल। कोनो नव रचना करी तँ तीनू एक दोसराकेँ सुनाबी। तकर बाद हमरा नोकरी लागि गेल। पटना आ अररिया, बक्सरमे रहलहुँ। वर्ष १९८३ मे पटना आबि गेलहुँ। त्रिकोण १९८७ मे छपल। ई सहयोगी प्रकाशन तीनूकेँ कथाकार रूपमे परिचय स्थापित करबामे सहायक भेल। कथाकारक रूपमे लोक चीन्हय लागल। एहिसँ नोकसान नहि फाएदे भेल।

मुन्नाजी: अहाँ जहिया लेखन प्रारम्भ केलहुँ तहिया आ आजुक परिस्थिति (साहित्यिक) मे की समानता वा भिन्नता देखाइछ?
अशोक:हमरा लोकनि जहिया १९६७-६८ मे लेखन प्रारम्भ केलहुँ तकरा आइ चालीस वर्षसँ बेसी भऽ गेल अछि। एहि चालीस वर्षमे बहुत परिवर्तन भेल अछि। से परिवर्तन व्यक्तिगत आ साहित्यिक दुनू रूपमे भेल अछि। तीनू आब एक संग नहि रहैत छी। भेंटो-घाँट कमेकाल भऽ पबैत अछि। मुदा साहित्य लेखन चलि रहल अछि। तीनूक पोथी सभ प्रकाशित भेल अछि। तखन जे जोश-खरोश ओहि समय रहय से आब नहि रहि गेल अछि। से दुनू स्तरपर। व्यक्तिगत रूपमे पारिवारिक कारण सभसँ आ साहित्यिक परिदृश्यमे सामाजिक कारण सभसँ। जँ जँ मैथिलीकेँ सुविधा प्राप्त भऽ रहलैक अछि तँ तँ साहित्यकारमे लगनशीलता घटि रहलैक अछि। मैथिली लेल ओ जोश खरोस नहि देखाइत अछि जे तीस-चालीस वर्ष पहिने छल। आइ मैथिलीक लेल सभसँ पैघ समस्या नव-नव प्रतिभाशाली लोकक साहित्य क्षेत्रमे नहि जायब थिक। एहन बात नहि छैक जे नव लोक आबि नहि रहल छथि, आबि तँ रहल छथि मुदा जे लगाओ, जे निष्ठा चाही से नहि देखाइत अछि। एहि बातक अनुभव ओहि सभ व्यक्तिकेँ भऽ रहलनि अछि जे कोनो पत्रिका निकालि रहल छथि वा साहित्यक विकास लेल प्रयत्नशील छथि।

मुन्नाजी:अहाँक लेखनक मध्य साम्यवादी विचारधाराकहवा मैथिलीयो साहित्यमे बहलै। की मैथिली साहित्यमे कोनो एहन स्वतंत्र विचारधारा बनि पौलै। अहाँ ओइसँ कतेक लग वा दूर रहलौं!
अशोक:साम्यवादी विचारधाराक प्रभाव तँ मैथिली साहित्यमे एकदम देखार अछि। से यदि नहि देखार भेल रहैत तँ ओहिपर एतेक आक्रमण जे बढ़लैक अछि से नहि बढ़ितैक। साम्यवादी विचारक प्रभाव तँ मैथिलीमे कंचीनाथ झा “किरण” आ यात्रीक साहित्येसँ दृष्टिगोचर हुअ लगैत अछि। १९६०क बाद ओहिमे तेजी अयलैक। १९७१ ई.सँ १९८० क दशकमे वातावरणमे पसरल नक्सलवाड़ी आन्दोलनक प्रभाव मैथिली साहित्यमे पुरजोर रूपेँ पड़लैक। अनेकानेक कविता, कथामे एकरा देखल आ चिन्हल जा सकैत अछि। बादमे ई विचारधारा क्रमशः महीन होइत गेल छलैक। तैं आब, जेना अहाँ कहलौं, हवा जकाँ नहि लगैत अछि। आब ई विचारधारा कोनो फैसन जकाँ नहि अछि, जीवनक अंग भऽ कऽ आबि रहल अछि साहित्यमे।

मुन्नाजी:अहाँ गद्यक लेखनमे लघुकथा सेहो लिखलहुँ। लघुकथा लिखब केहेन लागल, एकर सोच कतऽ सँ आयल?
अशोक: लघुकथा हम मित्र विभूति आनन्दक कहलापर लिखलहुँ। ओ माटि-पानि पत्रिकाक सम्पादक रहथि। वएह पत्रिका लेल लघुकथा लीखि कऽ देबाक लेल कहलनि। किछु लघुकथा माटि-पानि आ आन पत्रिकामे छपबो कयल। सगर रातिमे सेहो किछु लघुकथा पढ़लहुँ। एम्हर बहुत दिनसँ कोनो लघुकथा नहि लिखलहुँ अछि। जहिया लिखलहुँ तहिया लिखबामे खूब आनन्द आयल।

मुन्नाजी: अहाँक नजरिमे आजुक परिप्रेक्ष्यमे मैथिली लघुकथाक की स्थिति छै? की मैथिलीमे ओ स्वतंत्र स्थान पाबि सकत?
अशोक:मैथिलीमे आइयो लघुकथा खूबे लिखा रहल अछि। लघुकथाक पोथी सेहो प्रकाशित भेल अछि। तारानन्द वियोगी, प्रदीप बिहारी, मधुकर भारद्वाज, अनमोल आ अहाँक लघुकथा सभ हम पढ़ने सुनने छी। मोन पड़ैत अछि जे श्रीधरम सगर रातिमे पहिले पहिल अपन लघुकथासँ हमरा सभकेँ आकर्षित केने रहथि। लघुकथाक एक संग्रह स्व. ए.सी.दीपकजी बहार केने रहथि। मैथिलीमे लघुकथाक तँ स्वतंत्र स्थान छैके। तखन एक संग्रहक प्रयोजन तत्काल हमरा अवश्य बुझा रहल अछि।

मुन्नाजी:वर्तमानमे अन्यान्य भाषा-साहित्य मध्य मैथिली साहित्यक की स्थिति देखा पड़ैछ।
अशोक:मैथिलीमे कविता आ कथा आन भाषा साहित्यसँ पाछू नहि अछि। उपन्यास अवश्य पछुआएल अछि। उपन्यासक खगता अवश्य मैथिलीकेँ छैक। एहन उपन्यासक जे आन भाषाक उपन्याससँ टक्कर लऽ सकय। आन अनेक विधामे सेहो स्तरीय पोथी नहि आबि रहल अछि। आन भाषा साहित्य सन वैचारिक लेखन सेहो नहि भऽ रहल अछि। हँ, तारानन्द वियोगीक “तुमि चिर सारथि” हिन्दीमे अनुवाद भऽ खूब धूम मचौलक अछि। चर्चित प्रशंसित भेल अछि। मैथिलीकेँ एहिसँ गौरव भेटलैक अछि।

मुन्नाजी:एखन धरि अहाँ द्वारा जतेक काज भेल ताहि हेतु कोनो ठोस मूल्यांकन वा पुरस्कारसँ वंचित रहि केहेन अनुभूति होइए?
अशोक: वस्तुतः पूछी तँ हम जतेक काज केलहुँ अछि तकर खूबे मूल्यांकन भेल अछि। हमरा मूल्यांकनक कोनो अभाव नहि बुझाइत अछि। काजे नहि कऽ पाबि रहल छी जते करबाक चाही। आन अनेक प्रकारक व्यस्तता लेखन नहि करऽ दैत अछि। तकर अनुभूति बरोबरि होइत रहैत अछि। जहाँ धरि पुरस्कारक गप अछि तँ तेहेन कोनो काजे हम आइ धरि नहि केलहुँ अछि। एखन तँ बहुत काज करबाक अछि। बहुत लिखबाक अछि।

मुन्नाजी:अपन तीनू कोणक मध्य अहाँ अपनाकेँ कतऽ पबै छी?
अशोक:तीनू कोणक अपन फूट-फूट महत्व आ विशिष्टता होइत छैक। मुदा तीनू मिलिए कऽ त्रिकोण बनैत अछि। तखन आइ एकटा कोण लोहनामे, एकटा कोण दरभंगामे आ एकटा कोण पटनामे अछि, एहि स्थानक भिन्नताक प्रभाव तँ पड़िए रहल छैक। तीनू कोण जखन फेरसँ एक संग लोहनामे जुटब तँ सोचब जे के, कोना आ कतऽ छी। त्रिकोणक यात्रा तँ एखन चलिये रहल अछि।

मुन्नाजी:नव पीढ़ीक रचनाकार वास्ते अपन विचार की देब?
अशोक: औ मुन्नाजी, हम तँ एखनहुँ अपनाकेँ नबे मानैत छी। किछु लिखैत छी तँ होइत रहैत अछि जे बनलैक की नहि। कोंढ़ कपैत रहैत अछि। हमरा तँ अपने बेर-बेर विचारक आवश्यकता होइत रहैत अछि। एहनामे हम विचार की देब?
(साभार विदेह www.videha.co.in )

आचार्य श्री सोमदेवजीसँ हुनक दीर्घकालीन सृजन निरन्तरताक मादे विहनि कथाकार मुन्नाजीसँ सोझाँ-सोझी भेल विस्तृत गप्प


हिन्दी-मैथिलीक विज्ञ कवि आचार्य श्री सोमदेवजीसँ हुनक दीर्घकालीन सृजन निरन्तरताक मादे विहनि कथाकार मुन्नाजीसँ सोझाँ-सोझी भेल विस्तृत गप्पक सारांश:

मुन्नाजी: सर्वप्रथम अपनेकेँ प्रबोध सम्मान प्राप्ति हेतु बधाइ। सामान्यतः मैथिली रचनाकार किछु कालावधिमे रचनारत रहि पुरस्कारक व्योंत वा प्राप्तिक प्रतीक्षारत रहि सुस्ताए लगैत छथि। मुदा अपने ऐ सभसँ ऊपर उठि प्रारम्भसँ एखन धरि एक्के सक्रियताक संग जुड़ल छी। ऐ निरन्तरताक पाछाँ की सोच वा कोन रहस्य! वा ई विशेष ऊर्जावान हेबाक परिणाम अछि?
सोमदेव:पुरस्कार आत्मबल दैत छैक। मुदा हमर माथमे सदिखन नव विचार घुरघुराइत रहैए, जकरा हम अपन लेखनीमे उतारलाक पछातिये संतुष्टि पबै छी। सम्प्रति लिख नै पबै छी, शारीरिक अक्षमताक कारणसँ। मुदा लिखबाक उद्देश्य अपन विचारकेँ दोसर धरि पहुँचेबाक रहैए।

मुन्नाजी: अपने अपन प्रारम्भिक रचनाकालक क्रियाकलाप वा मैथिली साहित्य सृजनमे प्रवेशक जनतब दी।
सोमदेव:हम लिखब हिन्दीमे प्रारम्भ केने रही। समयान्तरे हिन्दीमे हेरा जेबाक डर आ माइक भाषाक प्रति प्रेम हमरा मैथिली दिस अनलक आ ऐ भाषामे रचनारत रहि टिकल रहि गेलौं। संगहि अपन स्पष्ट विचारकेँ संप्रेषणीयताक स्तरपर मैथिलीमे बेसी फरीछ कऽ पबैत छी, हिन्दीमे नै।

मुन्नाजी:अहाँ हिन्दी आ मैथिली दुनू भाषामे समान रूपेँ सृजनरत रही, एकर की कारण? उपरोक्त दुनूक अस्तित्वक फराकसँ कोना चिवेचन करब?
सोमदेव:रचनाक आरम्भमे दुनू भाषामे रचना केलौं मुदा बादमे मैथिली मात्रमे लिखलौं। दुनू उपरओँजक भाषामे गिरल जा रहल अछि। मैथिलीकेँ हिन्दीक आच्छादन आ हिन्दी अंग्रेजीक घोघ काढ़ल कनियाँ जकाँ भऽ घोंटल जा रहल अछि। बेगरता छै अपन अस्तित्वक रक्षार्थ अपन भाषा मात्रक रचना होइत रहए। दोसरा भाषाक देखाऊँसे वा वैशाखीक बलेँ ठाढ़ हेबाक चेष्टा नै हुअए।

मुन्नाजी:अहाँ अपन प्रारम्भिक रचना कालसँ आजुक अवधि धरि ऐ भाषाक रचनाकारमे रचनामे वा भाषा मध्य केहेन परिवर्तन वा टकरावक अनुभव केलौं आ से की सभ छल?
सोमदेव:प्रारम्भमे छन्दक प्राथमिकता छलै। बादमे छन्दमुक्त काव्य सभ एलै। हमहूँ एहेन रचना केलौं। मुदा पहिलुका जे स्तर छलै से अर्थपूर्ण छलै, आब अर्थहीन रचना बेसी आबि कऽ भरि गेलैए, जइसँ स्तर नीचाँ जा रहल छै। तकर मूल कारण रचनाकार द्वारा अध्ययन आ अध्यापनक अभाव छैक।

मुन्नाजी:मैथिली भाषाक एतेक प्राचीन आ स्वतंत्र अस्तित्व रहितो ओ आइयो अपन अस्तित्ववास्ते घैहैर काटि रहल अछि। एकर की मूल कारण वा अवरोध अछि?
सोमदेव:सत्य अछि जे दक्षिण एशिया, विशेष कऽ भारतमे संस्कृतक समकक्ष जँ कोनो भाषा छै तँ से अछि मैथिली भाषा आ तिरहुता लिपि (बादमे कैथी लिपि सेहो)। मुदा शास्सकक वैविध्यताक संग एकरो भौगोलिक रूपेँ टुकड़ी कऽ देल गेलै। आइ गुजराती, बांग्ला, असमी, ओड़िया,कुमाऊँ-गढ़वाली आदि एकरे टुकड़ी अछि, बेगरता छै एकाकार देबाक से भऽ जाए तँ एकरापन अस्तित्व छै से मरतै नै।

मुन्नाजी: अहाँ सबहक प्रारम्भिक रचनाकालमे गद्य आ पद्य दुनू विधाक जे स्वरूप से आजुक सन्दर्भमे बहुत बदलल अछि। समयान्तरे ऐ दुनू विधाक किछु आओर प्रतिरूप सोझाँ आएल यथा गजल आ विहनि कथा। ऐ सबहक भविष्य केहेन देखाइए?
सोमदेव:देखियौ मुन्नाजी, व्यक्ति, स्थान, भाषा वा रचना सबहक बदलाव समयानुसार स्वाभाविक छै। गजलकेँ कोनो भाषाक मूलमे निहित कएल जा सकैए, बशर्ते कि रचनाकार ओकर जड़िमे डूमल होथि। वर्तमान रचनामे एकर अभावे फूहड़पन वा गीजल चीज बेसी देखा पड़ैए। लघुकथामे अहाँ किछु गोटे नीक काज कऽ रहलौं अछि, से ठाम-ठीम देखै छी। भविष्यमे बदलैत समयानुसार पाठकक श्रेष्ठ खोराक बनत से विश्वास अछि।

मुन्नाजी: छठम-सातम दशकमे मैथिली साहित्यमे साम्यवादी विचारधाराक बिरड़ो उठलरहै। ओकर की प्रभाव भेलै आ आइ ओ कतऽ छै?
सोमदेव:यौ बौआ, कहियो एहेन बिरड़ो नै उठलै। तहिया कांग्रेसक शासन रहै आ ओ सभ मैथिलीकेँ दबौने रहलै। ऐ मे कोनो स्वतंत्र विचार वा वादतँ सपना मात्र रहै। हँ किछु गोटे अपनाकेँ हाइलाइट करबा लेल एहने विचारे उधियेबाक प्रयास केलनि। हमहूँ समाजवादी विचारक समर्थक रही, मुदा की गरीब वा गरीबीपर लिख देने समाजवादी कहाए लागब, किन्नहुँ नै। रूसक मार्क्सवादी विचार मिथिलाक कठकोकांइड़ बाभनवादमे कतौ सन्हिया सकै छै। नै, कहियो नै। मार्क्सवाद वा कोनो वादमे हमर समकक्ष वा श्रेष्ठ रचनाकार सेहो वादसँ जुड़बाक नामपर विचारहीन देखाइत रहलाह।

मुन्नाजी: मैथिली-हिन्दी मध्य साहित्यिक वर्णसंकरता पसरलै। मुदा मैथिलीकेँ पूर्णतःजातिवादिता गरोसने रहलै आ ई जाति विशेषक मुट्ठीक बौस्तु भऽ गेल। की ऐ सँ कहियो अहूँ सभ आच्छादित वा प्रभावित भेलौं? ऐ सँ रचनाकार वा साहित्यकेँ कोनो नोकसान भेल?
सोमदेव:ई किछु (मात्र किछुए) लोकक, जे रचनाकार नहियो छथि, तिनकर कुटिचालि अछि जे अदौसँ आबि रहल अछि। हँ ई सत्य जे कमाइक आस देखेलापर बाभन लोकनि अपन मूल भाषा संस्कृत छोड़ि गएर बाभनक मूलभाषा मैथिलीकेँ गरोसि लेलनि। तइमे गएर बाभन लोकनि ओतबे जिम्मेवार छथि, जे अपनाकेँ पूर्णतः कतियौने रहलाह।

मुन्नाजी: अहाँ निस्वार्थ सृजना वा साधनारत रहलौं। आ समय-समयपर ऐ सेवाक हेतु पुरस्कृत होइत रहलौं, एकर केहेन अनुभूति भेल?
सोमदेव:यौ , पहिनहियेँ कहलौंहेँ जे ऐ सँ आत्मबल भेटैछ। हमर अपन विचार लेब तँ जहिया जे पुरस्कार भेटल ओ राशि धीया-पुताकेँ दैत रहलौं। अकादेमी पुरस्कारक राशि बेटाकेँ पढ़बामे आ प्रबोध सम्मानक पाइ नातिनकेँ दऽ अपनाकेँ कृतार्थ बुझै छी। हँ एकटा बात जे सभ संतान, बेटा-जमाए, पोता-पोती, नाति-नातिन नीक पदपर छथि। हमर जीवनक सर्वश्रेष्ठ पुरस्कारक सर्वस्व अनुभूतिक रूपमे ईएह अछि।

मुन्नाजी: नवका दशकमे गएर बाभनक झुण्डक सक्रिय साहित्यिक प्रवेशकेँ मैथिली साहित्यक नजरिये कोना देखै छी। एकर भविष्यक संकेत की अछि?
सोमदेव: आब किछु लोक जे सक्रिय छथि से संघर्षमे पाछाँ नै होथि तँ सफल अपनो हेता आ भाषाक भविष्य सेहो उज्जवल हएत, जै हेतु धैर्य आ सक्रियता चाही (दू-तीन दशकधरि), नै तँ ई भाषा पूर्णतः मरि जाएत।

मुन्नाजी: मैथिली आब कागज मोइससँ बहरा अन्तर्जालपर आबि वैश्विक स्तरपर पसरि गेल अछि, एकरा मैथिलीक वर्तमान वा भविष्यसँ कोन रूपे जोड़ि कऽ देखऽ चाहब?
सोमदेव:ई प्रसन्नताक बात अछि जे आब ककरो कोनो विचार (प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष) सेकेण्डेमे सभक सोझाँ अबैए आ अहाँ पाछाँ अपन वक्तव्यसँ मुँह नै मोड़ि सकै छी। दोसर जे अहाँक विचारकेँ वैश्विक मंच भेटल अछि, अगिला समएमे ओ जगजियार हएत। मुदा कागज मोइसक जमाना लदल नै अछि, ऐ मे सक्रिय रहबे करू।

मुन्नाजी: मैथिली साहित्यमे ललनाक प्रवेश निषिद्धता वा महिला रचनाकारक अभावक की मूल कारण अछि? एकर निदानार्थ की कहब? भविष्यमे एकर की प्रभाव भऽ सकैए?
सोमदेव:अहाँक ई सुन्दर सोचक प्रश्न अछि, तै लेल धन्यवाद। पहिने नारी घोघ तरक बहुरिया आ चहरदिवारीमे नुकाएल बान्हल मुट्ठीक चीज मात्र छल, तेँ ओकर विचार दबल रहि जाइत छल। आइ मैथिल ललना सभ मानसिक, शारीरिक आ तकनीकी सभ स्तरपर उच्च भऽ रहल अछि। विचार सेहो सद्भावपूर्ण,ठोस, राग-द्वेष रहित छै। ई पीढ़ी जुड़ि गेल तँ ई आर फरिछाएत, जे स्वच्छ चिन्तन आ चित्रण सोझाँ आओत।

मुन्नाजी: अन्तमे अपने नवका धीया-पुता (रचनाकार) केँ उज्जवल साहित्यिक भविष्यक वास्ते की सनेस देबऽ चाहब?
सोमदेव: नवका धीया-पुताक मगज थोरेक आर आगू छै। एकर रचनात्मक विचार ठोस आ दिशा सूचक अछि। ई सभ जुड़थि तँ मैथिलीक कल्याण हएत। हँ, अपन संस्कार नै बिसरथि बस ! एतबे।
अहाँ आ गजेन्द्रजी दुनू गोटेकेँ अन्तर्जालक जालमे हमरो लपेट अपन विचार रखबाक अवसर देबालेल हृदैसँ धन्यवाद।
मुन्नाजी: हार्दिक आभार! बहुमूल्य समय आ विचार देबाक वास्ते।
(साभार विदेह www.videha.co.in )