Monday, December 5, 2011

विदेह गोष्ठी:मैथिली गजल, कता, रुबाइ पर परिचर्चा

मैथिली गजलपर परिचर्चा - मुन्नाजी

 विदेह गोष्ठी: (२६ आ २७ नवम्बर २०११ आ ०३ आ ०४ दिसम्बर २०११ केँ गजल
, कता, रुबाइपर अन्तिम परिचर्चा आ आजाद गजल आ बहरयुक्य गजलक सन्दर्भमे गजलगोष्ठी निर्मली, जिला सुपौलमे भेल। ओतए ढेर रास कवि, गजलकार, साहित्यप्रेमी उपस्थित रहथि। तकर बाद किछु आलेख डाक आ ई मेलसँ सेहो आएल। तकर संक्षिप्त विवरण नीचाँ देल जा रहल अछि।)
मैथिली गजल: उत्पत्ति आ विकास (स्वरूप आ सम्भावना)

 
मैथिली गजलकेँ लोकप्रिय होइत देखि बेगरता बुझाएल एकरा पूर्ण रूपेँ फरिछेबाक।तेँ विदेह www.videha.co.in ISSN 2229-547X द्वारा “मैथिली गजल: उत्पत्ति आ विकास (स्वरूप आ सम्भावना)” विषयपर परिचर्चाक आयोजनक भार हमरा देल गेल। ऐ विषयपर लेखक लोकनिक विचार संक्षिप्तमे नीचाँ देल जा रहल अछि।- मुन्नाजी

 
सियाराम झा “सरस”
मुन्नाजी, मैथिली गजलपर परिचर्चाक आयोजन नीक लागल।
बन्धुवर, मैथिली गजल सम्बन्धी हमर मान्यता एना अछि:-
१)उत्पत्ति: पण्डित जीवन झा नाटक “सुन्दर संयोग” (१९०५-०६) मे सर्वप्रथम मैथिली गजलक आगमन पबैत छी।तइसँ पूर्वक कोनो सूचना नै देखा पड़ैछ। तँए उत्पत्ति हम एतैसँ मानैत छी।

 
२) विकास: विगत १०६ बर्खक इतिहासमे गुणात्मक नै जँ संख्यात्मके चर्चा करी तँ अमरजी, माया बाबू (गीतल कहि कऽ), केदार नाथ लाभ, सोमदेव, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, स्व. मार्कण्डेय प्रवासी, स्व. इन्दुजी, राजेन्द्र बिमल, गंगेश गुंजन, बुद्धिनाथ मिश्र, सियाराम सरस, स्व. कलानन्द भट्ट, डॉ. देवशंकर नवीन, डॉ. तारानन्द वियोगी, रमेश, भ्रमर, धीरेन्द्र प्रेमर्षि, जगदीश चन्द्र ठाकुर “अनिल”, अरविन्द ठाकुर, अशोक दत्त, रोशन जनकपुरी, अजित आजाद, कु. मनीष अरविन्द, डॉ. कृष्णमोहन झा “मोहन”(राँची), आशीष अनचिन्हार समेत दर्जनो रचनाकार एकरा पुष्ट-बलिष्ट केलन्हि अछि। कथन आ भंगिमामे सेहो विविधता आएल अछि। दर्जनसँ बेशी संकलन नोटिस लेबा योग्य उपलब्ध अछि। विकास अखनहुँ भऽ रहल अछि।

 
३) स्वरूप आ संरचनामे यथास्थान अछि। बहरक विकास गजलकारक अपन क्षमतापर निर्भर होइछ, किछु अध्ययन-मननपर सेहो। मैथिलीमे शेर तँ कहैत छी, मुदा मिसरा वा मतला-मकता आदिक प्रयोग नै कएल जाइछ। लोक बात-बातमे शेर नै कहैछ।

 
४) सम्भावना- नव-नव लोक सभ जुड़ि रहल छथि, संकलनो आबि रहल अछि, परिचर्चो शुरू भेल अछि, से चलैत रहए। आशीष अनचिन्हार जे योजना आरम्भ केलनि अछि, सेहो महत्वपूर्ण बिन्दु थिक। “खरा-खरी कहबाक नाम छी गजल..गाम-घरमे दिवा रातिमे; हवा जकाँ बहबाक नाम छी गजल।“-सरस।

 

 
गंगेश गुंजन
धन्यवाद जे एहि मैथिली-गजल परिचर्चामे अहा हमरो शामिल कएलौंहे। ओना त अहा लोकनिक मैथिली गजलक परिभाषा-मान्यताक आन्दोलनमे स्वयंके हम मैथिलीक गजल रचनाकारक श्रेणीस बाहर मानि लेने रही। किछु अर्थमे एखनो सह अनुभव होइत अछि। तथापि -
१.मैथिली गजलक प्रारम्भ अपने पं जीवन झास मानी बा विद्यमान रवीन्द्रनाथ ठाकुुुर स (अप्रिय-अनसोहात लगनु भने किनको, तथापि) ओइ खासप्रवर्तन-गजलक मूल पाठ सेहो पाठकक सोझा देब उचित। नव भावबोधकेँ, नवतुरिया कवि-पीढ़ीके से देखलाक बादे तकर मीमांसाक आधार भेटतैक।
    हमर लाचारी अछि जे साहित्येतिहासक ने हम ओतेक आग्रहीए रहलहु , आ ते ने अन्वेषके। मुदा तकर उत्सआभास,निजी हमरा -एही दुनूमे स कतहु बुझाइछ। यद्यपि कोनो प्रयोग, विशेषतः साहित्य बा कला- विधामे, मात्र एतबे बात लेल ओइ रचनाकार बा ओहि विधाक प्रारम्भनहि मानि लेल जएबाक चाही जे पहिल बेर लीखलगेल। से पहिल बेर लीखल गेल विधा-रचना, अपन साहित्यिक प्रवृत्तिक स्वरूपमे निरन्तरतास कहा धरि सृजन- सक्रिय रहल? आगा रहबो कएल कि नहि ? असल मूल्य मानक सह थिक। कोनो साहित्यक आयु ओकर जीवन्त आ प्रवहमान प्रयोगक काल मात्रहिमे देखल-बूझल जाइछहिन्दीमे छायावादी महाप्राण निरालातथा प्रसाद’, संयोगस  एतहमर एहि दुनू सिद्धान्तक युगीन आ मूर्त्त उदाहरण छथि। ई दुनू छायावादक स्तम्भ छथि आ गजलसेहो लिखलनि। मुदा गजलमे त आइ दुनूक आयु इतिहास मात्र अछि। ते मैथिली गजलपर विचारैत काल से महत्वपूर्ण बिन्दु। रचनाकारो क काल लेखनक अपन मौलिक रुचि-प्रवृत्ति तथा अभ्यासस फराक जा, तात्क्षणिक आवेषे अन्यो विधामे टहलि-बूलि अबैए। परन्तु से आवे निरन्तरतामे ओकर सर्जनाक स्वाभाविक प्रवृत्ति नहि बनि पबैत छैक, यावत ओहि नव विधामे सृजन करबामे ओकर मोन रमि नहि जाइक। हिन्दीक दुष्यन्त कुमार कविताक प्रारम्भ ‘गज नहि कएने रहथि जे कि आगां आबि कअपन उत्तर पीढ़ीक प्रेरणा भेलाह। से दुष्यन्ते जी भेलाह, जखन कि शमसेर बहादुर जी सन प्रस्त पैघ कवि गजललीखि रहल छलाह। आनो कए टा नाम अछि, जे हिन्दीमे महत्वपूर्ण। मुदा गजल विधा-लेखनमे एहि सघन निरन्तरताक श्रेय, हम त दुष्यन्ते जीक मानैत छी।    
     अपने विचारियौ जे मधुप जी चाहितथि त गजल सेहो उत्कृष्ट नहि लीखि सकैत छलाह? नै लिखलनि। किएक? बा यात्री जी ? कविक  अनुभव -आनुभूतिक विकलता ओकरास प्राथमिकता तय करबैत छैक-जे ओ की आ कोना कहय-लिखय। सह प्राथमिकता रचना प्रक्रियामे रचनाकारकें अपन स्वभावक फ्रेममे उद्वेलित करैत छैक ंआ कवि से शैलीक बाट धरबा लेल सृजन विवहोइत अछि। सभ कविक ते अपन-अपन रुचिक खास विधा सेहो भजाइत छैक। सह ओकर अभिव्यक्तिक सहज स्वाभाविक तागति बनि जाइत छैक। कालांतरमे समाज मध्य ताही रूपमे ओकर परिचिति बनि जाइत छैक। सह मोटा-मोटी सुमन-मधुप-मणिपद्म-अमर तथा यात्रीक रूपमे चीन्हल जा योग्य होइछ।
    एखन मैथिली-गजलक प्रवाह बाढ़िवला अछि, यद्यपि स्नेह आ स्वागत करबा योग्य। किएक त मुख्यतः प्रवृत्तिक ई सृजन-प्रवाह एकछोहा युवापीढ़ीक थिक आ यदि मैथिली गजलक कोनो भविष्य छैक त एही पीढ़ीक  सृजन-सम्पदामे। एक बए जे ई सघन आ कए तरहें संगठित सेहो, एहि विधाक प्रति उत्कट आग्रह आ ताही कारणें सक्रिय निरन्तरता आएल छैक, से अगिला दक धरि उल्लेख करबा योग्य स्वरूप ललेत, एहि बातमे हमरा कोनो संदेह नहि। अवश्ये एहि परिवेष-निर्माण मे ब्लॅाग/ फेसबुक/ अर्थात इन्टरनेट महाक्तिक अपूर्व योगदान अछिजे हमरा युगक नव रचनाकारके नहि छलैक। अभिव्यक्ति सम्प्रेषण-माध्यम अत्यन्त सीमित छलैक।
     ते मैथिली-गजलक वास्तविक प्रस्थानहम एकदम टटका पीढ़ीमे पबैत छी। नव गछुली अछि एखन। बताह भमजरल अछि। एकर कतेक मज्जर टिकुला भपाओत आ कतेक गोपी धरि परिणत हएत से देखबा योग्य हएत।
आशा-अभिलाषा त नव गछुलीए। निश्छल तथा उदार बुद्धिये एकर अभिसिंचन-संरक्षण होएबाक चाही। से दायित्व पूर्व खाढ़ीक बचलाहा जीवित रचनाकारक। यदि नवतुरियाके से स्वीकार होइक। जे कि अधिकां नव रचना आ रचनाकारक तेवरमे परिलक्षित नहि बुझाइछ। जाहि गजलक ई गहन विमर्श क रहल छी, तकर जन्मभूमिक भाषामे आइयो इस्लाहक परम्परा कायम छैक। मान्य, श्रेय-प्रेय।ओना यथावत ताइ दिन वला गुरु-शिष्य परम्पराके हमहू नै मानैत छी। आजुक युग आ वातावरण मे आब उचितो नहि हएत से। मुदा कोनो विद्याक सरिता धार, जे कि एखनो प्रवाहित भइए रहल छैक, ते किछु दूर धरि, पुरना घटबारोकजरूरति बाचले छैक। तै अर्थमे कहलौं।
 
सम्प्रति गजल-रूप मे लिखल गेल समस्त मैथिली-गजलके चालल जाय त साबुत गजल दू गाहीस बेसी भरिसक्के निकलत। चनकल, टूटल-भांगल-रचनाक गनती नहि हो। से त कहबे कएलौं बाढ़िआएल अछि। अप्रिय परन्तु हमर जानकारीक यथार्थ यह कहैए जे मैथिलीमे गजलक नामे लिखल जाइत रचनाक अधिकांश ‘खखरीअछि। उत्सुकतामे हम फेसबुकपर विशेष कनव हस्ताक्षर सके पढ़बे करैत छी। मुदा फालतू,..सँ आगाँ बुझाय लगैत अछि। एक-दू टा रचना पढैत काल त जीह ओकियाय लागल। हमर बात उत्कट लगैत हो भने मुदा एकटा पाठकक रूपमे हमरा एहनो अनुभव भेलय।
    दोसर जे, आजुक पीढीक रचनाकार हमरा बेसी काल बहर-मैनिया ग्रस्त बुझाइछ, से माफी देब। दोसर रूपे कही त बहरऑबसेसीमा तक आग्रही बुझाइत छथि। बहर अंततः साँच मात्र थिक। फ्रेम । रूह नहि।
हम जखन रेडियोमे रही त हमरे कोठलीमे नारी जगत आ नाटक विभाग सेहो रहैक। नारी जगतमे एक टा परम सुन्दरि स्त्री आबथिन। नख शिख सुन्दरि। कतहु स कोनो कमी नहि। तथापि कोनो आकर्षण नहि। ई हमर सोचब छल। कए टा हमरा स भेंट कएनहारो देखथिन। ओहि सुन्दरी दचर्चा करथि मुदा यह प्रश्न सेहो जे आखिर की छैक जे ई एहन सुन्दरी होइतहु प्रशंसा योग्य नहि। एकदिन अंततः हमर दू टा महिला संगी जे रेडियोक रहथि, हमरा लोकनि संगे चाह पीबी, अयली संग कर। ओ सुन्दरी कोनो रिकार्डिंमे आयलि रहथि। फेर देखलखिन त ओहि दिन चाह दोकान दिस जाइते काल अचानक पुछलनि-यह इतनी सुन्दर महिला कौन हैं ! जो दिल मे नहीं उतर पाती । विचित्र असंुन्दर सुन्दरता है गंुजन जी।हम किछु जवाब नहि दह सोचैत रहलौं जे ओहि सुन्दरिक विषय मे हमर अपनो यह जिज्ञासा रहय।
अर्थात हमरा सोकनिक बुद्धियें शरीर त सर्वगुण सुन्दर, मुदा सौन्दर्य आत्मा गायब रहनि सुन्दरीक।  
 
यदि अहाक सूचीमे बाचल छी तँ हम एखनो यह मानैत छी आ वह कहब -
’’श्क को दिल में जगह दे नासिक...’’ छुच्छे इल्म कविता जेका किछु लिखि देल गेल, ’गज नहि भ जाइत छैक।
 
लीखू किछु  आसान गजल
सबहक मोनक जान गजल
 
एक एक हृदयक छाँह लगय               
गाबय  सबहक प्राण  गजल
 
सब  कानय   अपने  अपनी
बनय  सभक मुस्कान गजल
 
लोकक  दुःखक बनय पुकार
बौआय  नै  सुनसान गजल
 
झलझल जल मोनक सपना
से  अछि  गंगास्नान गजल
 
जइ  क्षण पीड़ा मे  कानल
धो दय सकल जहान गजल
 
आकांक्षा  हो  जन-जन के
से  गीतक अभिमान  गजल
 
 
 

 
प्रेमचन्द्र पंकज

 
मैथिली गजल : एक नजरिमे
गजल एकटा एहन सशक्त विधाक नाम थिक, जकरा माध्यमसँ अनेक सामाजिक प्रक्रियाक जटिलताकें थोड़ शब्दमे सहजतासँ अभिव्यक्ति प्रदान कएल जाइत अछि। सहजता एवं भाव-चमत्कार एकर मुख्य लक्षण थिक। अपन सहजता एवं भाव-चमत्कारक कारण एकरामे एकटा अद्भुत आकर्षण छैक। एही आकर्षणक कारणें फारसीसँ उर्दू एकरा हपसिक' अपन कोरामे लेलक। हिन्दी सेहो ओकर नजरि अपना दिस घिचबाक प्रयास कएलक। सफलता सेहो भेटलैक। मुदा उर्दूक कोरामे जेहन छलैक, तेहने प्राप्त भेलैक। कहबाक तात्पर्य जे उर्दू मे गजल एक खासे मानसिकताबला लोकक बीच अपन आकर्षणक भाभट पसारने छल आ हिन्दीमे सेहो ओहने स्थिति रहलैक -- बहुत दिन धरि। ओना सम्प्रति ओतहु (हिन्दीमे सेहो) इतिहास-दृष्टि आ सामाजिक द्वन्द्वबोधक ज्ञानसँ परिपूर्ण गजलकारलोकनि सार्वभौमिक अनुभूतिकें अभिव्यक्ति देबाक माध्यम नीक जकाँ बनओने छथि।

 
गजलक एहि सहजता एवं भाव-चमत्कारक आकर्षणक कारणें आइ प्राय: सभ भारतीय भाषामे एकरा दुलरुआ बनाक' राखल गेल छैक। ई दुलरुआ सुकुमार छैक, मुदा कमजोर नहि। कखनो किछु क' सकैए। केहनो विस्फोट।

 
मैथिलीमे सेहो गजल आएल -- ओहिना -- सुकुमार, मुदा कमजोर नहि। कखनो किछु क' सकैबला। कोनो विस्फोट। तें सुरेन्द्र नाथ कहैत छथि -- 'गजल हमर हथियार थिक'। तारानन्द वियोगी एकरा 'अपन युद्धक साक्ष्य' मानैत आगि जनमा रहल छथि ---
दर्द जँ हदसँ टपल जाए तँ आगि जनमै अछि
बर्फ अंगार बनल जाए तँ आगि जनमै अछि
प्रेमचन्द्र पंकज गजलक प्रसंग कहैत छथि ---
ढोढ़िया नञि असली नाग छी गजल
मस्तीमे गरजैत बाघ छी गजल
प्रेमिकाक आँचर नहि, प्रीतमक बोल नहि
चेतनामे बरकल मिजाज छी गजल

 

 
गजलकें पारिभाषिक रूपसँ बुझबाक लेल एकर रुाोत-भाषा अरबी-फारसीक परम्पराक सूत्रकें पकड़ब आवश्यक भ' जाइत अछि। ओतए एकर परिभाषा देल गेल छैक -- 'सुखन अज जनान (अथवा अज माशूक) गुफ्तन' तथा 'बाजनान गुफ्तन करदैन'। एकर अर्थ थिक स्त्रीगणक विषयमे वार्तालाप किंवा प्रेमी-प्रेमिकाक संवाद। आइ ई परिभाषा विस्तार पाबि सभ प्रकारक संवाद-प्रेषण-स्थापन करबामे सक्षम अछि -- जँ एहि परिभाषाकें संकुचित रूपसँ नहि देखल जाए। प्रेम सार्वभौमिक अछि, सार्वस्थानिक अछि, सार्वकालिक अछि। जँ प्रेमक अर्थ विस्तृत अछि, प्रेम स्वयं एतेक विस्तारमे पसरल अछि तँ ने प्रेमी-प्रेमिका संकुचित भए सकैत अछि आ ने प्रेमी-प्रमिकाक वार्तालाप विषय विशेष पर सीमित रहि सकैत अछि। तें आइओ सभ भाषाक गजलमे उक्त परिभाषाकें घटित देखल जा सकैत अछि।

 
गजलक अपन भिन्न व्याकरण छैक आ ई व्याकरण देखबामे जतबा सरल छैक, वस्तुत: ओहिसँ कइएक गुना जटिल छैक। ओना ऊपरसँ लगैत अछि जे ई मतला, शेर आ मक्ताक चौकठिमे ठोकल एकटा काव्य-विधा थिक। मुदा एकर बहरक निर्बाह करबामे मगज दुहा जाइत छैक। ध्यान देबाक बात थिक जे गजल लिखल नहि जाइत छैक, कहल जाइत छैक। स्पष्ट अछि, जे एकर बहर (छन्द)क संरचनामे वज्न (मात्रा)क गणना शब्दक उच्चारणक अनुसार कएल जाइत अछि, जाहिमे अनेक गजलकार (तथाकथित) हरदा बाजि जाइत छथि। गजल किछु शेरक माला थिक। पारम्परिक रूपसँ गजलक प्रत्येक शेरक विषय भिन्न-भिन्न होइत छैक, परन्तु एक गजलक प्रत्येक शेरमे रदीफ आ काफिया एके रहैत छैक। गजलक पहिल शेर मतला कहबैत अछि, जकर दुनू पाँतू (मिसरा) सानुप्रासिक होइत अछि, अर्थात् रदीफ आ काफियासँ सामन रूपें युक्त रहैत अछि। एकर अन्तिम शेर मक्ता कहबैत अछि तखन, जखन ओहिमे रचनाकारक नाम अथवा उपनामक प्रयोग होइत अछि, अन्यथा सामान्य शेर भ' ' रहि जाइत अछि। बीचबला शेरक उपरका पाँती, जकरा मिरुााउला कहल जाइछ, केर रदीफसँ मेल रहब आवश्यक नहि। किन्तु निचला पाँती, जे मिरुाासानी कहबैत अछि, कें रदीफसँ मेल अर्थात् सानुप्रासिक होएब अनिवार्य छैक। शेरक लेल आवश्यक छैक जे ओ कोनो छन्द विशेषमे रहए, जे निश्चित कएल गेल छैक। ई छन्द विशेष बहर कहबैत अछि।

 
अस्तु, मैथिली गजलक इतिहास पर एक नजरि फेकबाक प्रयास कएल जाए तँ मैथिलीक पहिल गजल बीसम शताब्दीक प्रारम्भमे लिखल गेल आ मैथिलीक पहिल गजलकार भेलाह प. जीवन झा। जीवन झाक गजलमे एकर मुख्य गुण -- सहजता एवं भाव-चमत्कार स्पष्ट देखबामे अबैत अछि, जे एहि बातकें द्योतित करैत अछि जे ओ गजलकें कतेक लगीचसँ बुझबाक चेष्टा कएने छलाह, बुझने छलाह। हुनक एक गजलक मतला देखल जाए --
पड़ैए बूझि किछु ने ध्यानमे हम भेल पागल छी
चलै छी ठाढ़ छी बैसल छी सूतल छी कि जागल छी

 
जीवन झा द्वारा रोपल गजलक एहि पिपहीकें समय-समय पर भुवनेश्वर सिंह 'भुवन', यात्री, आरसी प्रसाद सिंह, डॉ. व्रजशोर वर्मा 'मणिपद्म' आदि खाद-पानि दैत रहलाह आ ई वर्तमान रहल। बादमे केदारनाथ लाभ, सुधांशु 'शेखर' चौधरी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, विभूति आनन्द, कलानन्द भट्ट, सियाराम झा 'सरस', मार्कण्डेय प्रवासी, बुद्धिनाथ मिश्र, राजेन्द्र प्रसाद विमल, तारानन्द वियोगी, नरेन्द्र, देवशंकर नवीन आदिक सेवासँ ई एकटा झमटगर गाछक रूप धारण कए लेने अछि। मैथिलीक गजलकारक जँ सूची बनाओल जाए तँ आस्वस्त करत।किन्तु मैथिलीमे गजल-संग्रहक सर्वथा अछि -- जकरा अंगुरी पर गानल जा सकैत अछि। मैथिली गजलक पहिल संग्रह थिक विभूति आनन्दक 'उठा रहल घोघ तिमिर'। एकर प्रकाशन जून, 81 मे भेल। फेर कलानन्द भट्टक 'कान्ह पर लहास हमर' , सियाराम झा 'सरस''शोणिताएल पैरक निशान', तारानन्द वियोगीक 'अपन युद्धक साक्ष्य', रमेशक 'नागफेनी' आएल। सियाराम झा 'सरस' क सम्पादनमे बारह गोटेक कुल चौरासीटा गजलक संकलन 'लोकवेद आ लालकिला' प्रकाशित भेल। 'थोड़े आगि थोड़े पानि' ससरजीक एहन गजल संग्रह थिक जे एहि विधाकें आओर मजगूती प्रदान करैत अछि। सुरेन्द्र नाथक 'गजल हमर हथियार थिक' निश्चित रूपसँ स्वागत योग्य अछि।
गजल-संग्रहक एहन अभाव थोड़ेक निरास अवश्य करैत अछि, मुदा सम्प्रति मैथिलीमे धुड़झाड़ गजलक रचना भए रहल अछि – अनेक बाधाक अछैतो। मैथिली गजल बहुत दिन धरि गजल बनाम गीतलक ओझराहटिमे पड़ल रहल। किन्तु कोनो भ्रममे नहि पड़ल। सब तर्कक जवाब दैत रहल। आगाँ बढ़ैत रहल। आइ मैथिली गजलक स्थिति ई अछि जे अनेक नव-पुरान रचनाकार अपन अभिव्य्तिक माध्यम एकरा बनओने छथि, अपन स्वर गजलकें द' रहल छथि। डॉ. गंगेश गुंजन, डॉ. अरविन्द अक्कू, अरविन्द ठाकुर, डॉ. नरेश कुमार विकल, अजित आजाद, फूलचन्द्र झा 'प्रवीण' आदि अपन अभिव्यक्तिक माध्यम गजलकें बनाए एकरा एकटा सशक्त विधाक सरूपमे प्रतिष्ठित क' रहल छथि। प्रसन्नताक विषय ईहो अछि जे आशीष अनचिन्हार 'अनचिन्हार आखर' नामसँ गजलक लेल एकटा फराकसँ वेवसाइट तैयार कएने छथि जकरा माध्यमसँ अनेक नव-पुरान गजलकारलोकनिक गजल -रचना लगातार सोझाँ आबि रहल अछि।

 
कतिपय व्यक्ति एकटा राग अलापि रहल छथि जे मैथिलीमे गजलक सुदीर्घ परम्परा रहितहु एकरा मान्यता नहि भेटि रहल छैक। एहन बात प्राय: एहि कारणे उठैत अछि जे मैथिली गजलकें कोनो मान्य समीक्षक-समालोचक एखन धरि अछूत मानिक' एम्हर ताकब सेहो अपन मर्यादाक प्रतिकूल बुझैत छथि। एहि सम्बन्धमे हमर व्यक्तिगत विचार ई अछि, जे एकरा ओहने समालोचक-समीक्षक अछूत बुझैत छथि जनिकामे गजलक सूक्ष्मताकें बुझबाक अवगतिक सर्वथा अभाव छनि। गजलक संरचना, मिजाज आदिकें बुझबाक लेल हुनकालोकनिकें स्वयं प्रयास कर' पड़तनि, कोनो गजलकार बैसिक' भट्ठा नहि धरओतनि। हँ, एतबा निश्चय, जे गजल धुड़झाड़ लिखल जा रहल अछि आ पसरि रहल अछि आ अपन सामथ्र्यक बल पर समीक्षक-समालोचकलोकनिकें अपना दिस आकर्षित कइए क' छोड़त। हमरासभकें मन पाड़बाक चाही जे एकटा एहनो समय छलैक जहिआ नव-कविताक प्रति समीक्षक-समालोचकलोकनिक रबैया एहने छलनि। मुदा आइ ? आइ की स्थिति छैक ? सएह होएतैक गजलोक संग। निश्चय होएतैक।

 
वस्तुत: मैथिली गजल आइ ओहि ठाम ठाढ़ अछि जतएसँ ओकरा एकसूत्रताधारी विचार, दर्शन, समाज-संहिताक अतिरिक्त राजनैतिक, सास्कृतिक, सामाजिक आ राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्र ीय संवेदनाकें अभिव्यक्त करबाक रुाोत सहजहिं भेटि जाइत छैक। सम्भावनासँ परिपूर्ण एहि विधाक क्रमिक विकासक लेल आवश्यक अछि प्रतिबद्धतापूर्वक गजलक निरन्तर रचना होएब। से भए रहल अछि -- एहि रूपमे भए रहल अछि जे एकर भविष्य लेल आश्वस्त करैत अछि, निश्चित रूपसँ।

 

राजेन्द्र बिमल

 
मुन्नाजी:मैथिली साहित्य मध्य वर्तमान समयमे गजलक की दशा अछि, एकर भविष्यक की दिशा देखाइछ?

राजेन्द्र बिमल:    गजल अत्यन्त लोकप्रिय विधा थिक । मैथिलीमे से हो खूब लीखल जा रहल अछि आ पढलो जा रहल अछि । बहुत गजलकार एकर व्याकरणसकम परिचित छथि । मुदा भविष्य उज्जवल छैक । मैथिली गजलमे अपन निजात्मकताक विकास शुभ संकेत थिक ।


 

मुन्नाजी:मैथिलीक प्रकाशित गजलक संगोर (कतेको गजल संग्रह) आ मायानन्द मिश्रक गजलकेँ गीतल कहि प्रकाश्यक मादेँ गजेन्द्र ठाकुर एकरा अस्तित्वहीन कहि अपन सम्पादकीय आलेख माध्यमे अवधारणा स्पष्ट केलनि।अहाँक ऐपर अपन स्वतंत्र विचार की अछि?

राजेन्द्र बिमल: संगोर सभ नहि देखल अछि । आदरणीय मायाबाबूक गीतल (गीत-गजल) एक गोट प्रयोग थिक । हम कोनो सृजनकेनिरर्थक नहि बूझैत छी आ लेखन स्वतंत्रतामे विश्वास रखैत छी ।
मंजर सुलेमान

जखन एहि मिथिलामे अमीर खुशरो (१२२५-१३२५) सन विद्वान एलाह तऽ ओहो एहि भाषाक मधुरता सँ मुग्ध भऽ फारसी, मैथिली आ उर्दूक समिश्रण सँ कहलनि-

 
हिन्दु बच्चा है कि अजब हुस्न रै छै।
बर बक्ते सुखन गुफ्तम मुख फूल झरै छै॥
गुफ्तम ज लबे लालें तऽ यक बोसा बगीरम।
गुफ्ता के अरे राम तुर्क का ई करै छै।

 
(मंजर सुलेमान - त्याग-बलिदानक पवित्र पर्व मुहर्रम (मिथिला दर्शन नवम्बर-दिसम्बर २०१०)

 
शेफालिका वर्मा
आदरणीय  मुन्नाजी, 

 
अपनेक विषय 'गजल'  पर बड नीक लागल.. मुदा, मैथिलीक प्रोफेसर  हम नै छी, तैं एकर जानकारी देनाय हमरा लेल सुरुज के दीपक देखेनाछि...
हम एतवे जनैत छी  जे पहिने छिटपुट गजल लिखल जात छल , हमहूपढैत रही, कखनो हमरो नीक लागल छल... मुदा आशीष अनचिन्हारक कारण  विदेहक  पन्ना पर गजलक जेना  बाढ़ि आबि गेल अछि...
गजल हमर सब सप्रिये विधा हमरा लेल  अछि , प्यार ,रोमांस सँ भरल  भावातीत  '  हृदयक उन्मेष  मे जिवैत उर्दू गजल , शेरो शायरी सब... 
हम त गजलमाने प्यार मुहब्बते टा बूझैत छलौं जे शुद्ध प्रेम भाव पर आधारित छल...एखनो हमर  पुरना डायरीमे गजल सबक अंश  लिखल अछि, कोमलकान्त पदावलीसँ परिपूर्ण... .., मुदा मैथिलीमे  एकर नाना अर्थे प्रयोग  होइत देखलौं..., कखनो नीक लगैत छल त कखनो कचोटी...मुदा, जमाना कत कतलि गेल.. सब ठाम विकास भ रहल छैक   मैथिली गजल केर सेहो नव परिभाषा उल्लेखनीय  रहत..साँच पुछू त प्राय  सब टा गजल हम अवश्य  पढैत छी, एहि लेल आशीष जी के अशेष बधा....मैथिली साहित्यमे  गजलविधा  नूतन मुस्की लसबहक ह्रदयके अलोक लोक स भरि देत, संगहि विदेह परिवारके जे नाना रुपे माँ मैथिलीक  श्री वृद्धि क रहल छथि....

 
शेफालिका वर्मा...

 

मिहिर झा
गजल मूलतः अरबी भाषा केर काव्य विधा छैक | गजलशब्दक अरबी मे माने छैक स्त्रीसँ वा स्त्रीक बारेमे बात केनाइ | गजलजेखन अरबी सँ फारसी मे आयल त एकर शिल्प विधा के त पालन भेल लेकिन एकर विषय वस्तु भौतिक वा देहिक रखैत एकर मर्म मे अध्यात्मिक प्रेम के अनुभूति आनी देलक एहि मर्म के रखैत फारसी सूफी कवि सब गजलके प्रसार मे महत्वपूर्ण योगदान केलन्हि| सूफी साधना मे विरह के बेशी महत्व छैक, ताहि कारणे, फारसी गजलमे विरह प्रेम केर बेशी उल्लेख अछि |
गजलजखन फारसी सँ उर्दू मे प्रवेश केलक त एकर शिल्प विधा त ओहिना रहलैक लेकिन कथ्य एकदम भारतीय भ गेलक | मध्य काल मे उर्दू फारसी से बहुत प्रभावित छलैक और एकर व्याकरण ओ शब्द जटिल फारसी होएत छलैक | भारत के स्वतंत्र भेला के बाद उर्दू धीरे धीरे फारसी के प्रभाव से निकलल आ गजलमे बोल चाल के शब्द प्रयोग मे आबय लागल |
संगही एकर मर्म अपन परंपरागत मर्म "स्त्री से वा स्त्री संबंधित" के कात छोडैत नव नव आयाम अपना मे सम्मिलित केलक | ध्यान देबाक गॅप ई अछि जे गजलकेर शिल्प विधा मे कोनो बदलाओ नहि आयल , केवल एकर मर्म मे परिवर्तन आयल | जे गजलअरबी मे मात्र प्रेम तक सीमित छल से आब अपना मे सब टा विषय वास्तु समेट लेलक |

 
हिन्दी के बाद गजलमराठी, अँग्रेज़ी होएत आब मैथिली मे प्रवेश केलक आ धीरे धीरे मैथिली साहित्य मे  अपन स्थान बना लेलक | मैथिली मे सेहो गजलके शिल्प विधा मे परिवर्तन नहि भेलैक, हां एकर मर्म और शब्दकोष पूर्ण मैथिल भ गेल | भाव भक्ति, प्रेम, वीर, विरह के होएक वा सामाजिक, राजनीतिक वा व्यक्तिक कटाक्ष पर, सब विधा मे मैथिली मे गजलदेखबा मे आबि रहल अछि | सन्गहि मिथिला के संस्कार ओ परिवेश के छाप लैत मैथिली गजलआब पूर्णतः मैथिल भ चुकल अछि | गजलके मैथिली शिल्प विधा के लेखन विस्तार मे "अन्चिन्हार आखर" मे आलेखित अछि | बहुत रास मैथिली ग़जलकारा के मैथिली ग़जलकारी मे प्रवेश एहि बातक द्योतक अछि जे ई मैथिली के पोर पोर मे समा चुकल अछि और कोनो एक विशेष स्तर के लोक के बदला मे ई जन काव्य बैन चुकल अछि |

 
"मैथिली गजलके उत्पत्ति आ विकास (स्वरूप एवं संभावना सहित)" विषय पर अपन भावना हम गजलके रूप मे देबाक प्रयास कय रहल छी ----------------

बैसलहु आई करै ले मैथिली ग़ज़लक बखान हम
     
डूबि गेलहु उदगार मे केलहु नहि किछु ध्यान हम
     

गजलहोएत छैक प्रेम महिमा एकर महान छैक      
दू पाँति मे समेटा देलहु ई प्रेम गाथा क बखान हम
   

बहर रफीद और काफिया शेरक होई छैक प्राण यौ
     
मतला मक़ता जोड़ि एहि मे
 बढेलौ शेरक शान हम      

फारसी उर्दू अंग्रेज़ी सो होइत ई आयल मिथिला धाम      
तघज्जुल अपन बनाबी,
 ल माछ, मखान ओ पान हम    


शास्त्रीय कहु वा आधुनिक वा पकडु अ-ग़जलक कान
       
समय संग बदलबै आब एहि
गजलके प्राण हम          

प्रेम विरह
सूफी आ भक्ति मे क चुकल ई नाम अमिट      
जन जीवन से जोडबै, लय आधुनिकता के नाम हम
     

मुरद्दफ होएक वा गैर मुरद्दफ पबै छे एके शान
             
"शौकीन" के ई कथा अमोल राखब सदिखन ध्यान हम
     

ओमप्रकाश झा

मैथिली गजल पर परिचर्चा
मैथिली गजलक उद्भव आ विकास विषय पर कोनो विचार प्रकट करबा केँ बहुत योग्य त' हम नै छी, मुदा इ विषय देखि किछ कहै सँ अपना केँ रोकि नै पाबि रहल छी। मैथिली गजलक इतिहास ओना त' बड्ड पुरान नै अछि। मुदा गीत आ कविता लेखनक कार्य बहुत दिन सँ मैथिली मे चलि रहल अछि। गीत आ कविता मे मैथिलीक बड्ड धनिक इतिहास छै। भारतवर्षक आर्य भाषा सब मे यदि देखल जाय, ' इ अपने बुझा जाइत छै जे उत्पत्तिक बादे सँ मैथिली मे नीक गीत आ कविता लिखेनाई शुरू भ' गेल छल। गजल लिखबाक कोनो परम्परा मैथिली मे नै छल। २०म शताब्दी मे गजल लिखबाक शुरूआत भेल आ २०म शताब्दीक उतरार्द्ध मे एहि मे तेजी आयल। हम अपने किछ दिन पूर्व धरि गजल सँ अनजान छलौं। आशीष अन्चिन्हार जी आ गजेन्द्र जीक सम्पर्क मे आबि मैथिली गजलक विषय मे किछ ज्ञान प्राप्त भेल। अन्चिन्हार आखर ब्लाग पूर्ण रूप सँ गजलक लेल समर्पित अछि आ गजलक शास्त्रीयताक नीक जकाँ एहि ब्लाग पर बुझाऔल गेल अछि। यैह ब्लाग पढि केँ हम थोर बहुत सरल वार्णिक बहरक गजल लिखबाक प्रयास करैत रहै छी। एखन मैथिली मे गजल बहुत त' नै लिखल गेल अछि, मुदा गजलक अकालो नै बुझाइत अछि। एकटा नीक गप जे हमरा नोटिस मे आयल जे आब मैथिली पत्र पत्रिका मे सेहो मैथिली गजल नियमित रूपे छपि रहल अछि। उत्कृष्टता पर हम किछ बाजबा योग्य नै छी। मुदा एतबा कहब जे जेना जेना नब नब गजलकार सभ एता आ गजल पढबाक रूचि बढल जेतै, तेना तेना नब प्रयोगक संग नीक नीक रचना केर बाढि आबि जेतै। हमरा बूझने मैथिली गजल एखन जवान भ' रहल अछि आ समयक संग एकर जवानी मैथिली गजल केँ बहुत ऊँच स्थान पर ल' जैत।


धीरेन्द्र प्रेमर्षि
मैथिलीमे गजल आ एकर संरचना (पूर्वमे विदेहक अंक २१ मे प्रकाशित)

 
रूप-रङ्ग एवं चालि-प्रकृति देखलापर गीत आ गजल दुनू सहोदरे बुझाइत छैक। मुदा मैथिलीमे गीत अति प्राचीन काव्यशैलीक रूपमे चलैत आएल अछि, जखन कि गजल अपेक्षाकृत अत्यन्त नवीन रूपमे। एखन दुनूकेँ एकठाम देखलापर एना लगैत छैक जेना गीत-गजल कोनो कुम्भक मेलामे एक-दोसरासँ बिछुड़ि गेल छल। मेलामे भोतिआइत-भासैत गजल अरबदिस पहुँचि गेल। गजल ओम्हरे पलल-बढ़ल आ जखन बेस जुआन भऽ गेल तँ अपन बिछुड़ल सहोदरकेँ तकैत गीतक गाम मिथिलाधरि सेहो पहुँचि गेल। जखन दुनूक भेट भेलैक तँ किछु समय दुनूमे अपरिचयक अवस्था बनल रहलैक। मिथिलाक माटिमे पोसाएल गीत एकरा अपन जगह कब्जा करऽ आएल प्रतिद्वन्दीक रूपमे सेहो देखलक। मुदा जखन दुनू एक-दोसराकेँ लगसँ हियाकऽ देखलक तखन बुझबामे अएलैक-आहि रे बा, हमरासभमे एना बैर किएक, हम दुनू तँ सहोदरे छी! तकरा बाद मिथिलाक धरतीपर डेगसँ डेग मिला दुनू पूर्ण भ्रातृत्व भावेँ निरन्तर आगाँ बढ़ैत रहल अछि।
गीत आ गजलक स्वरूप देखलापर दुनूक स्वभावमे अपन पोसुआ जगहक स्थानीयताक असरि पूरापूर देखबामे अबैत अछि। गीत एना लगैत छैक जेना रङ्गबिरङ्गी फूलकेँ सैँतिकऽ सजाओल सेजौट हो। मिथिलाक गीतमे काँटोसन बात जँ कहल जाइछ तँ फूलेसन मोलायम भावमे। एकरा हम एहू तरहेँ कहि सकैत छी जे गीत फूलक लतमारापर चलबैत लोककेँ भावक ऊँचाइधरि पहुँचबैत अछि। एहिमे मिथिलाक लोकव्यवहार एवं मानवीय भाव प्रमुख भूमिका निर्वाह करैत आएल अछि। जाहि भाषाक गारियोमे रिदम आ मधुरता होइत छैक, ओहि भूमिपर पोसाएल गीतक स्वरूप कटाह-धराह भइए नहि सकैत अछि। कही जे गीतमे तँ लालीगुराँसक फूलजकाँ ओ ताकत विद्यमान छैक जे माछ खाइत काल जँ गऽरमे काँट अटकि गेल तँ तकरो गलाकऽ समाप्त कऽ दैत छैक।
गजलक बगय-बानि देखबामे भलहि गीतेजकाँ सुरेबगर लगैक, एहिमे गीतसन नरमाहटि नहि होइत छैक। उसराह मरुभूमिमे पोसाएल भेलाक कारणे गजलक स्वभाव किछु उस्सठ होइत छैक। ई कट्टर इस्लामीसभक सङ्गतिमे बेसी रहल अछि, तेँ एकर स्वभावमे “जब कुछ न चलेगी तो ये तलवार चलेगा” सन तेज तेवरबेसी देखबामे अबैत छैक। यद्यपि गजलकेँ प्रेमक अभिव्यक्तिक सशक्त माध्यम मानल जाइत छैक। गजल कहितहिँदेरी लोकक मन-मस्तिष्कमे प्रेममय माहौल नाचि उठैत छैक, एहि बातसँ हम कतहु असहमत नहि छी। मुदा गजलमे प्रेमक बात सेहो बेस धरगर अन्दाजमे कहल जाइत छैक। कहबाक तात्पर्य जे गजल तरुआरिजकाँ सीधे बेध दैत छैक लक्ष्यकेँ। लाइलपटमे बेसी नहि रहैत छैक गजल। मिथिलाक सन्दर्भमे गीत आ गजलक एक्कहि तरहेँ जँ अन्तर देखबऽ चाही तँ ई कहल जा सकैत अछि जे गजल फूलक प्रक्षेपणपर्यन्त तरुआरिजकाँ करैत अछि, जखन कि गीत तरुआरि सेहो फूलजकाँ भँजैत अछि।
मैथिलीमे संख्यात्मक रूपेँ गजल आनहि विधाजकाँ भलहि कम लिखल जाइत रहल हो, मुदा गुणवत्ताक दृष्टिएँ ई हिन्दी वा नेपाली गजलसँ कतहु कनेको झूस नहि देखबामे अबैत अछि। एकर कारण इहो भऽ सकैत छैक जे हिन्दी, नेपाली आ मैथिली तीनू भाषामे गजलक प्रवेश एक्कहि मुहूर्त्तमे भेल छैक। गजलक श्रीगणेश करौनिहार हिन्दीक भारतेन्दु, नेपालीक मोतीराम भट्ट आ मैथिलीक पं. जीवन झा एक्कहि कालखण्डक स्रष्टासभ छथि।
मैथिलीयोमे गजल आब एतबा लिखल जा चुकल अछि जे एकर संरचनाक मादे किछु कहनाइ दिनहिमे डिबिया बारबजकाँ लगैत अछि। एहनोमे यदाकदा गजलक नामपर किछु एहनो पाँतिसभ पत्रपत्रिकामे अभरि जाइत अछि, जकरा देखलापर मोन किछु झुझुआन भइए जाइत छैक। कतेकोगोटेक रचना देखलापर एहनो बुझाइत अछि, जेना ओलोकनि दू-दू पाँतिवला तुकबन्दीक एकटा समूहकेँ गजल बूझैत छथि। हमरा जनैत ओलोकनि गजलकेँ दूरेसँ देखिकऽ ओहिमे अपन पाण्डित्य छाँटब शुरू कऽ दैत छथि। जँ मैथिली साहित्यक गुणधर्मकेँ आत्मसात कऽ चलैत कोनो व्यक्ति एकबेर दू-चारिटा गजल ढङ्गसँ देखि लिअए, तँ हमरा जनैत ओकरामे गजलक संरचनाप्रति कोनो तरहक द्विविधा नहि रहि जएतैक।
तेँ सामान्यतः गजलक सम्बन्धमे नव जिज्ञासुक लेल जँ किछु कहल जाए तँ विना कोनो पारिभाषिक शब्दक प्रयोग कएने हम एहि तरहेँ अपन विचार राखऽ चाहैत छी- गजलक पहिल दू पाँतिक अन्त्यानुप्रास मिलल रहैत छैक। अन्तिम एक, दू वा अधिक शब्द सभ पाँतिमे सझिया रहलहुपर साझी शब्दसँ पहिनुक शब्दमेअनुप्रास वा कही तुकबन्दी मिलल रहबाक चाही। अन्य दू-दू पाँतिमे पहिल पाँति अनुप्रासक दृष्टिएँ स्वच्छन्द रहैत अछि। मुदा दोसर पाँति वा कही जे पछिला पाँति स्थायीवला अनुप्रासकेँ पछुअबैत चलैत छैक।
ई तँ भेल गजलक मुह-कानक संरचनासम्बन्धी बात। मुदा खालि मुहे-कानपर ध्यान देल जाए आ ओकर कथ्य जँ गोङिआइत वा बौआइत रहि जाए तँ देखबामे गजल लगितो यथार्थमे ओ गीजल भऽ जाइत अछि। तेँ प्रस्तुतिकरणमे किछु रहस्य, किछु रोमाञ्चक सङ्ग समधानल चोटजकाँ गजलक शब्दसभ ताल-मात्राक प्रवाहमय साँचमे खचाखच बैसैत चलि जएबाक चाही। गजलक पाँतिकेँ अर्थवत्ताक हिसाबेँ जँ देखल जाए तँ कहि सकैत छी जे हऽरक सिराउरजकाँ ई चलैत चलि जाइत छैक। हऽरक पहिल सिराउर जाहि तरहेँ धरतीक छाती चीरिकऽ ओहिमे कोनो चीज जनमाओल जा सकबाक आधार प्रदान करैत छैक, तहिना गजलक पहिल पाँति कल्पना वा विषयवस्तुक उठान करैत अछि, दोसर पाँति हऽरक दोसर सिराउरक कार्यशैलीक अनुकरण करैत पहिलमे खसाओल बीजकेँ आवश्यक मात्रमे तोपन दऽकऽ पुनः आगू बढ़बाक मार्ग प्रशस्त्र करैत अछि। गजलक प्रत्येक दू-पाँति अपनहुमे स्वतन्त्र रहैत अछि आ एक-दोसराक सङ्ग तादात्म्य स्थापित करैत समग्रमे सेहो एकटा विशिष्ट अर्थ दैत अछि। एकरा दोसर तरहेँ एहुना कहल जा सकैत अछि जे गजलक पहिल पाँति कनसारसँ निकालल लालोलाल लोह रहैत अछि, दोसर पाँति ओकरा निर्दिष्ट आकारदिस बढ़एबाक लेल पड़ऽ वला घनक समधानल चोट भेल करैत अछि।
गीतक सृजनमे सिद्धहस्त मैथिलसभ थोड़े बगय-बानि बुझितहिँ आसानीसँ गजलक सृजन करऽ लगैत छथि। सम्भवतः तेँ आरसीप्रसाद सिंह, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, डॉ महेन्द्र, मार्कण्डेय प्रवासी, डॉ. गङ्गेश गुञ्जन, डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र आदि मूलतः गीत क्षेत्रक व्यक्तित्व रहितहु गजलमे सेहो कलम चलौलनि। ओहन सिद्धहस्त व्यक्तिसभक लेल हमर ई गजल लिखबाक तौर-तरिकाक मादे किछु कहब हास्यास्पद भऽ सकैत अछि, मुदा नवसिखुआसभकेँ भरिसक ई किछु सहज बुझाइक।
मैथिलीमेकलम चलौनिहारसभमध्य प्रायः सभ एक-आध हाथ गजलोमे अजमबैत पाओल गेलाह अछि। जनकवि वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” सेहो “भगवान हमर ई मिथिला” शीर्षक कविता पूर्णतः गजलक संरचनामे लिखने छथि। मुदा सियाराम झा “सरस”, स्व. कलानन्द भट्ट, डॉ.राजेन्द्र विमल सन किछु साहित्यकार खाँटी गजलकारक रूपमे चिन्हल जाइत छथि। ओना सोमदेव, डॉ.केदारनाथ लाभ, डॉ.तारानन्द वियोगी, डॉ.रामचैतन्य धीरज, बाबा वैद्यनाथ, डॉ. विभूति आनन्द, डा.धीरेन्द्र धीर, फजलुर्रहमान हाशमी, रमेश, बैकुण्ठ विदेह, डा.रामदेव झा, रोशन जनकपुरी, पं. नित्यानन्द मिश्र, देवशङ्कर नवीन, श्यामसुन्दर शशि, जनार्दन ललन, जियाउर्ररहमान जाफरी, अजितकुमार आजाद, अशोक दत्त आदिसमेत कतेको स्रष्टाक गजल मैथिली गजल-संसारकेँ विस्तृति दैत आएल अछि।
गजलमे महिला हस्ताक्षर बहुत कम देखल जाइत अछि। मैथिली विकास मञ्चद्वारा बहराइत पल्लवक पूर्णाङ्क १५, २०५१ चैतक अङ्क गजल अङ्कक रूपमे बहराएल अछि। सम्भवतः ३४ गोट अलग-अलग गजलकारक एकठाम भेल समायोजनक ई पहिल वानगी हएत। एहि अङ्कमे डा. शेफालिका वर्मा एक मात्र महिला हस्ताक्षरक रूपमे गजलक सङ्ग प्रस्तुत भेलीह अछि। एही अङ्कक आधारपर नेपालीमे मैथिली गजल सम्बन्धी दूगोट समालोचनात्मक आलेख सेहो लिखाएल अछि। पहिल मनु ब्राजाकीद्वारा कान्तिपुर २०५२ जेठ २७ गतेक अङ्कमे आ दोसर डा. रामदयाल राकेशद्वारा गोरखापत्र २०५२ फागुन २६ गतेक अङ्कमे। छिटफुट आनहु गजल सङ्कलन बहराएल होएत, मुदा तकर जानकारी एहि लेखककेँ नहि छैक। हँ, सियाराम झा “सरस”क सम्पादनमे बहराएल “लोकवेद आ लालकिला” मैथिली गजलक गन्तव्य आ स्वरूप दऽ बहुत किछु फरिछाकऽ कहैत पाओल गेल अछि। एहिमे सरससहित तारानन्द वियोगी आ देवशङ्कर नवीनद्वारा प्रस्तुत गजलसम्बन्धी आलेख सेहो मैथिली गजलक तत्कालीन अवस्थाधरिक साङ्गोपाङ्ग चित्र प्रस्तुत करबामे सफल भेल अछि।
समग्रमे मैथिली गजलक विषयमे ई कहि सकैत छी जे मैथिली गीतक खेतसँ प्राप्त हलगर माटिमे गुणवत्ताक दृष्टिएँ मैथिली गजल निरन्तर बढ़ि रहल अछि, बढ़िए रहल अछि।
१०
आशीष अनचिन्हार
मैथिली गजलक वर्तनमान
अनचिन्हार आखरक जन्मसँ पहिने (इंटरनेट पर) किछु गजलकार समालोचक सभ पर आरोप लगबेत छथि की ओ गजल केँ बुझि नै सकलाह। मुदा  हमरा बुझने आलोचक सही छथि आ गजलकार गलत। कारण मैथिलीक किछु तथाकथित गजलकार सभ अपने गजलकेँ नै बूझि सकलाह। जकर परिणति अबूझ शेर सभहँक रूपमे भेल। आ स्वाभाविक छै जे एहन-एहन गजलकेँ आलोचक नकारबे करतथि।
वर्तमान गजल----- अ.(अनचिन्हार आखर) क बाद गजल अबूझ नै रहल। से हम किछु शेरक उदाहरणसँ देब।
 1)
चाहे अन्ना हो की राजनीतिक पार्टी दूनूक स्थितिकेँ परखैत मिहिर झा कहैत छथि---
 छोड़ि दिऔ हाथ देखिऔ केम्हर जाइ छै
जेतै त ओ उम्हरे सब जेम्हर खाइ छै
 2)
 तँ जगदानंद झा "मनु" विस्थापित लोकक वेदना देखार करैत कहैत छथि---
 सोन सनक घर-आँगन,स्वर्ग सन हमर परिवार
छोड़ि एलहुँ देस अपन दू-चारि टकाक बेपार पर
 3)  गप्प जँ आधुनिक शिक्षा पर होइ आ ताहू मे कपिल सिब्बलके धेआन रखैत तँ ताहूमे गजल पाँछा नै रहल। अभय दीपराज जी कहैत छथि---
परीक्षा के जखन हम नाम सुनैत छी त कँपैत छी,
लगैत अछि- सबटा बिसरल रहैत छी,
जे की पढल अछि
 4)  संसार बदलि गेल मुदा नै बदलल तँ मिथिला एकरे लक्ष्य करैत दीप नारायण "विद्यार्थी" कहैत छथि---
जाती-पांतिक भेद नहि बदलल समाजक आधार नहि बदलल
कोषिक धार बदलिगेल मित! जिवन धार नहि बदलल
 5)  एही मिथिलाक सभसँ लज्जाजनक पहलू दहेज पर सुनील कुमार झा एना टिप्पणी करैत छथि-----
बेटीक बियाह में बिकल अंगा-नुआ
लड़का के सूट ते कहलेs नै जाय ये
 6) एही समाजक एकटा आर पहलू पर उमेश मंडल कहैत छथि---
 कि‍यो ककरो नहि‍ देखैए ऐ समाजमे
मोने मन झगड़ाइए चलू घुरि‍ चली
 7) आधुनिक मीडिआ पर क्रूरतम प्रहार करैत मैथिलीक दोसर मुदा सक्षम महिला गजलकार श्रीमती शांतिलक्ष्मी चौधरी कहैत छथि---
 पापक पराकाष्ठामे जन्मै श्रीकृष्ण
मीडिआ छथि जागल कंसक भेषमे
आ एतबहि पर नै रुकैत छथि। आ फेरो कहैत छथि---
 सोसल साइट पर करैत छै सेंसर के दाबी रे भाय
अभिव्यक्तिक स्वच्छंद साँढ़ मुँह बन्हबै की जाबी रे भाय
 8) मुदा एहन परिस्थिति बेसी दिन बरदास्त नै कएल जा सकैए आ तँए ओम प्रकाश जि कहैत छथि---
 मान-अपमान दुनू भेंटै छै, इ मायाक थीक लीला,
अन्याय केँ सदिखन दी मोचाडि, यैह थीक जिनगी।
 9) प्रेम आ प्रेम जनित वेदना गजलक प्रमुख अंग थिक। बिना एकरा गजल झुझुआन लागत। वर्तमान गजलमे इहो भेटत। रवि मिश्रा "भारद्वाज" कहेत छथि----
 मोन हमर बहुत चंचल ताहि पर ई यौवन
एना जे नैना चलेवै त हमर ईमान झुकि जेतै
 आ इएह प्रेम जँ परिपक्व भए जाए थखन त्रिपुरारी कुमार शर्मा जीक शेर जन्मैए---
 आँखि मिला के हमरा सँ राह पकड़ लेलि अहाँ
कोना कटै अछि दिन आब रचना गवाह अछि
 हमर मिहिर झा जीकेँ बूझल छन्हि जे इ वेदना किएक छै तँए ओ कहेत छथि---
 हमरा अहां तोड़लहुं सपना बुझि के
हमरा अहां छोडलहु अपना बुझि के
मुदा एतबो भेलाक बादो मैथिली ओ भाषा थिक जाहिमे विद्यापति सन कवि भेलाह। विद्यापति आशाबादक सभसँ बड़का कवि छथि। आ हमर ओम प्रकाश जी एही आशाकेँ पकड़ि कहेत छथि---
 झाँपै लेल भसियैल जिनगीक टूटल धरातल,
सपनाक नबका टाट भरि दिन बुनैत रहै छी।
 कुल मिला मैथिली गजल एखन विकासक दोसर चरण मे चलि रहल अछि जकर बानगी उपरक उदाहरण सभमे देखल जा सकैए।
 मैथिली गजलक भविष्य पर हमर कोनो टिप्पणी नै रहत कारण हम कोनो ज्योतषी ने छी।
आ अतीतो पर नै कहब कारण इ सभकेँ बूझल छैक। ओना मंजर सुलेमान के आलेखके बाद मैथिलि गजल निश्चित रूपे पाँछा गेल जे स्वागत योग्य अछि।
११
गजेन्द्र ठाकुर
गजल, रुबाइ, कता, हाइकू, शेनर्यू, टनका, हैबून, कुण्डलिया, दोहा, रोला ई सभ एकटा स्थापित विधा अछि। स्थापित विधा माने जकर लिखबाक विधि जइ भाषा सभक ई मूल खोज अछि, ओइ भाषामे स्थापित भऽ गेल अछि। जँ हाइकू लिखबा काल कोनो निअम पालन नै करी तँ ओकर नाम क्षणिका पड़ि गेलासँ ओ हाइकू दोषविहीन नै भऽ जाएत। जँ कोनो भाषासँ हम गजल/ रुबाइ/ कता मैथिलीमे प्रयोग लेल सोचै छी तँ ऐ कारणसँ जे ओ ओइ भाषाक चमत्कारिक चीज अछि, मैथिलीक छौंक लगलासँ कोनो आर चमत्कारक हम आशा राखै छी। सएह हाइकू, शेनर्यू, टनका आ हैबून लेल सेहो लागू अछि। आब एतऽ ई देखबाक अछि जे कोनो विधाक आयात सतर्कतासँ हुअए, ओइ विधाक सैद्धान्तिक पक्ष सुदृढ़ छै। से जेना तेना आयात कऽ हाथपर हाथ धरि सए बर्ख आर इन्तजार करी ई सोचि जे तकर बाद एकर मैथिली छौंकबला अलग सिद्धान्त बनत, तँ तइ लेल स्थापित विधाक आयातक कोन बेगरता? एतेक समएमे तँ एकटा आर नव विधा बनि जाएत!
हँ, मात्र लिप्यांतरण कऽ देलासँ उर्दूक सभ गजल निअम हिन्दीक भऽ जाइत अछि, मुदा ओतहु वर्तनीक भिन्नता मारते रास काफियाक उपनिअमक निर्माणक बाध्यता उत्पन्न करैत अछि। मैथिली तँ साफे अलग भाषा अछि तेँ एकर काफियाक निअम सोझे आयातित नै भऽ सकैए। बहरमे वर्ण/ मात्राक गणना पद्धति सेहो हिन्दी-उर्दूमे मात्र कोनो खास शब्दक वर्तनीक भिन्नताक कारण कखनो काल उपनिअम बनेबाक खगता अनुभूत करबैए, मुदा से मैथिलीमे सोझे आयातित नै भऽ सकैए कारण ई साफे अलग भाषा थिक। तँ की काफिया आ बहरक वर्ण/ मात्रा गणना पद्धति मैथिलीमे साफे छोड़ि देल जाए? आकि ओइ मे ततेक ढील दऽ देल जाए जे ओकर कोनो मतलबे नै रहए? आ तखन जे बहरमे लिखथि वा काफियाक शुद्ध प्रयोग करथि से भेलथि कट्टर आकि जे एकर विरोध करथि से भेला कट्टर? आ जँ बिन काफिया आ बहरक गजलकेँ गजल नै कहल जाए तँ ओ रचना महत्वहीन भऽ गेल? ओ गजल नै भेल, वा जीवन युगक मैथिली गजल भेल, मुदा गीत/ कविता तँ भेबे कएल। कोनो गजल मात्र काफिया आ बहरक शुद्धता मात्र रहने उत्कृष्ट तँ नहिए हएत, मुदा उत्कृष्ट हेबाक सम्भावनाक प्रतिशतता कएक गुणा बढ़त। तहिना कोनो गजल सन रचना जँ अशुद्ध काफियामे आ बे-बहर अछि तँ सएह मात्र ओकर उत्कृष्टताक प्रमाण भऽ जाएत? एकर विपरीत हम ई कहए चाहब जे ओहनो रचना उत्कृष्ट भऽ सकैए, मुदा तकर सम्भावनाक प्रतिशतता भयंकर रूपेँ घटि जाएत।
गजल, रुबाइ, कता, हाइकू, शेनर्यू, टनका, हैबून, कुण्डलिया, दोहा आ रोला निअमबद्ध रचना अछि। एकरा अकविता, गद्य-कविता आ गीतक स्वरूप देलासँ अहाँ भाषाक कोन उपकार कऽ सकब, कारण अकविता, गद्य-कविता आ गीत तँ स्वयं स्थापित विधाक स्वरूप लऽ लेने अछि। छोट कविता क्षणिका भऽ सकत, हाइकू नै। कुण्डलिया, दोहा आ रोलाक निअम मैथिलीमे बनेबामे कोनो असोकर्ज नै भेल कारण ई सोझे आयातित भऽ गेल मुदा गजल, रुबाइ, कता, हाइकू, शेनर्यू, टनका, हैबूनमे वर्ण/ मात्रा गणना पद्धति जापानी आ उर्दू-फारसीसँ अहाँ लइए नै सकै छी। जापानक लेखन पद्धति अल्फाबेट (वर्ण) आधारित अछिये नै, तखन अहाँ ओकर गणना पद्धति कोना आयात कऽ सकब। ओकर तरीका छै, पाश्चात्य तरीका आ सिलेबल आधारित लेखन पद्धति सेहो जापानी भाषामे होइ छै, से तकर प्रयोग कऽ ओइ चित्रात्मक लेखनक सिलेबल आधारित शैलीक मिलान संस्कृतक वार्णिक छन्द गणना पद्धतिसँ कएल गेल आ ओकरा हाइकू, शेनर्यू आ टनका लेल प्रयोग कएल गेल। तहिना गजल, कता आ रुबाइमे वैज्ञानिक आधारपर मैथिली भाषाक सापेक्ष निअम बनाओल गेल जइसँ गजल, कता आ रुबाइ मैथिलीमे दोसर भाषासँ एलाक उपरान्तो अपन मूल विशेषता बना कऽ राखि सकल। आ तकर बाद जे मैथिली गजल आ गजलकारक संख्यामे परिणामात्क आ गुणात्मक वृद्धि भेल अछि, से दुनियाँक सोझाँ अछि।

(साभार विदेह www.videha.co.in ISSN 2229-547X)

4 comments:

  1. गजल केर सौभाग्य आब चमकि रहल अछि

    ReplyDelete
  2. आयोजनकर्ता समेत सभ गोटेँ के धन्यवाद

    ReplyDelete
  3. dfg;kS fdNq vklku xty
    lcgd eksud tku xty

    ,d ,d g`n;d fcEc yx;
    xkc; lcgd izk.k xty

    lc dku; vius viuh
    eqnk lHkd eqLdku xty

    yksdd nq%[kd cu; iqdkj
    ckSvk; uS lqulku xty

    >y>y ty eksud liuk
    ls vfN xaxkLuku xty

    tb {k.k ihM+k es dkuy
    /kks n; ldy tgku xty

    vkdka{kk gks tu&tu ds
    ls xhrd vfHkeku xty

    &xaxs’k xaqtu-

    ReplyDelete
  4. (गंगेश गुंजन जीक संदश यूनीकोडमे)
    कहियौ किछु आसान गजल
    सबहक मोनक जान गजल

    एक एक हृदयक बिम्ब लगय
    गाबय सबहक प्राण गजल

    सब कानय अपने अपनी
    मुदा सभक मुस्कान गजल

    लोकक दुःखक बनय पुकार
    बौआय नै सुनसान गजल

    झलझल जल मोनक सपना
    से अछि गंगास्नान गजल

    जइ क्षण पीड़ा मे कानल
    धो दय सकल जहान गजल

    आकांक्षा हो जन-जन के
    से गीतक अभिमान गजल

    -गंगेष गंुजन.

    ReplyDelete