Tuesday, December 6, 2011

विदेह गोष्ठी: मैथिली प्रबन्ध/ निबन्ध/ समालोचना/ अनुवाद/ मानक मैथिली आ ओकर शब्दावली पर परिचर्चा

विदेह गोष्ठी:   (०१ आ ०२ अक्टूबर २०११ आ  ०८ आ ०९ अक्टूबर २०११ केँ  मैथिली   प्रबन्ध/ निबन्ध/ समालोचना/ अनुवाद/ मानक मैथिली आ ओकर शब्दावली पर अन्तिम परिचर्चा आ तकर सन्दर्भमे मैथिली समालोचना/ अनुवाद आ  मैथिली शब्दावली पर  प्रैक्टिकल  लैबोरेटरीक प्रदर्शन निर्मली, जिला सुपौलमे भेल। ओतए ढेर रास आधुनिक मैथिली समालोचक,अनुवादक आ भाषा वैज्ञानिक आ साहित्यप्रेमी उपस्थित रहथि। तकर बाद किछु आलेख आ रचना डाक आ ई मेलसँ सेहो आएल। तकर संक्षिप्त विवरण नीचाँ देल जा रहल अछि।)

डॉ0 मेघन प्रसाद

मैथिलीमे अनुवाद-कलाक शास्त्रीयकरणक इतिहास



हम पहिनहि कहि दी जे हम अनुवाद कलाक ने तँ मर्मज्ञ छी आ ने कहियो अनुवादक काज कयलहुँ अछि। तथापि राष्ट्रीय अनुवाद मिशन योजना क तहत केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान क अध्किारी लोकनि पूर्ण विश्वसनीयताक संग अनुवादक शास्त्रीय विषयपर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनारमे मंचसँ हमरा किछु कहबाक दायित्वपूर्णं ई भार देलनि तकरा लेल हम संस्थाक अध्किारी लोकनि खासक ऽ डॉ0 अजित मिश्रजीक प्रति कोटिशः आभार प्रकट करै छी।
अनुवादक काज करबाक उत्कट इच्छा तँ छल मुदा साहित्य अकादेमीक प्रतिनिध् ितथा सदस्य लोकनि तकरा आइ ध्रि पूर्ण नहि होमय देलनि। पता नहि हमरा प्रति कोन प्रकारक दुराग्रह पोसने छथि। एकाध् बेर साहित्य अकादेमीक प्रतिनिध्/िपदाध्किारीसँ पत्राचारो कयलहुँ मुदा सेहो निरर्थके गेल। ई जरुर कहि दी जे मैथिलीसँ जुरल रहबाक कारणेँ मैथिलीमे अनुदित रचना बेस संख्यामे पढ़बाक अवसर प्राप्त भेल अछि तेँ ओहि अनुभवक आधर पर मैथिलीमे अनुवाद-कलाक इतिहासपर किछु कहबाक हिम्मति जुटा सकलहुँ अछि।
अनुवाद-कलाक अर्थ - अनुवाद-कलाक मादेँ मैथिलीक अनुभवी आ सफल अनुवादक पण्डित श्री गोबिन्द झाजीक कहब बेसी उपयुक्त बूझि पडै¬़ अछि - एहेन कोनो रहस्य एहेन कोनो सूत्रा नहि वा एहेन कोनो मन्त्रा नहि छैक जे कानमे ढारि देने केओ सफल अनुवादक भ ऽ जाए। हमरा जनैत अनुवाद थिक कोदरबाहि जाहिमे शिक्षण-प्रशिक्षण नहि केवल अभ्यास अपेक्षित होइत छैक। 1
स्वतन्त्राताक सन्दर्भमे अनुवाद जे थिक से एक प्रकारक व्याख्या थिक। प्रायः 1915 ई0मे भाषा वैज्ञानिक Saussure छलाह जे कॉलेज नोट (College Note) लिखलनि तकरा बादमे अनुवाद कहि क ऽ प्रकाशित कराओल गेल। ओ अपन नोटक व्याख्या क ऽ क ऽ प्रकाशित करौलनि जे हुनक मृन्युपरान्त अनुवाद कहि क ऽ प्रकाशित भेलैक।
अनुदित रचना लोक सभ मनोरंजन लेल कम्मे ज्ञान लेल बेसी पढ़ैए। तेँ ओकर मूल बिन्दु आ तकनीकि अर्थ बला शब्दक उपयोग कर ऽकाल पूर्ण सावधनीक आवश्यकता अछि।
विषयवर्गानुसार अनुवाद तीन प्रकारक मानल गेल अछि - शास्त्रीय व्यावहारिक आ साहित्यिक। अनुवाद शास्त्रीय कम व्यावहारिक बेसी होयबाक चाही। शास्त्रीय आ व्याव- हारिक अनुवादमे मुख्यतः अर्थ अर्थात् Suface Meaning आ भाव अर्थात् Intended Meaning इएह दूनू पकड़बाक प्रयोजन होइत छैक। मुदा साहित्यिक अनुवादमे मूलक
अभिव्यजना सेहो सुरक्षित राखबाक अपरिहार्यता रहैत छैक। अभिव्यजनाकेँ पकड़ि पयबाक हेतु विद्वता नहि भावुकता चाही। एहि अभिव्यजनामूलक विशिष्टताकेँ देखैत विभिन्न विद्वान् साहित्यिक अनुवादकेँ अनुवाद नहि कहि Transereation, Recreation पुनःसर्जन प्रतिरूपण आदि नानाविध् नाम दैत छथि।
परोक्षानुवाद - भारतीय भाषा सभमे खास क ऽ मैथिलीमे अनुवादक एक विकृत अर्थात् अवाछनीय परम्परा चलि पड़ल अछि। ई थिक परोक्षानुवाद। अर्थात् अनुवादसँ अनुवाद। एहि प्रकारक परोक्षानुवादमे बहुत-रास विकृति आबि जाइत छैक। विकृति कोना आ कतेक अबैत छैक एक बेर तकर परीक्षण यूरोपक कोनो संस्था करौने छल। लेखक जेन आस्टिन केर प्रसि( उपन्यास प्राइड एण्ड प्रीजूडिस केर एक अध्यायक अनुवाद चीनक मण्डेरिन भाषामे भेल छलैक ताहिसँ अरबीमे आ ताहिसँ फेर अंग्रेजीमे कयल गेलैक। बादमे ज्ञात भेलैक जे एहि अनुवाद-श्रंृखलामे मूल पाठक अध्कितर भाग आमसँ कटहर भ ऽ गेलैक। एहि प्रकारक अनुवादक Channel Distortion निश्चय परोक्षानुवादक श्रेणीमे अबैत अछि। परोक्षानुवादक मादेँ एक बात आओर कहल जा सकैत अछि- जँ अनुवादक मूल भाषा चीनी वा अरबी सदृश विदेशी हुअए तखन तँ मैथिली अनुवादमे मूल भाषाक कोनो खास कुप्रभाव नहि पड़तैक किएक तँ दूनू मैथिलीसँ बहुत दूरक भाषा छैक। मुदा मूल भाषा हिन्दीसँ मैथिलीमे अनुवाद होयत तँ मूल भाषाक बेसी कुप्रभाव पड़तैक आ ओ मैथिलीक स्वरुपकेँ किछु-ने-किछु अवश्ये बिगाड़ि देतैक। हिन्दीक मूल ग्रन्थ वा अनुदित ग्रन्थसँ जतेक मैथिली अनुवाद हमरालोकनि देखि सकलहुँ अछि सभटा लगैत अछि जे मैथिलीक परिधनमे साक्षात् हिन्दीए ठाढ़ हुअय। संगोष्ठीमे विचारणीय अछि जे एहि प्रवृत्तिक विरोध् कोना आ कतेक दूर ध्रि हुअय।
सफल अनुवादकक प्रवीणता - सफल अनुवादककेँ तीन क्षेत्रामे प्रवीणता रहबाक चाहीऋ मूल भाषामे प्रवीणता लक्ष्य भाषामे प्रवीणता आ अनूद्य सामग्रीक विषयक्षेत्रामे प्रवीणता। जेना मूल सन्दर्भ गणितक हो तँ गणित-शाड्डमे प्रवीणता वा कमसँ कम प्रवेश तँ अवश्ये चाही। मैथिलीमे वास्तविक स्थिति तँ ई अछि जे जेना आजुक मन्त्राी सर्वज्ञ बूझल जाइत छथि तहिना आजुक मैथिली अनुवादक सेहो सौभाग्य वा दुर्भाग्यवश सर्वज्ञ मानि लेल जाइत छथि। आदर्श
अनुवाद तँ ओ होयबाक चाही जे विषय-विज्ञ मूलभाषा-विज्ञ आ लक्ष्यभाषा-विज्ञ लोकनिक सहयोगसँ प्रस्तुत होयत।
उपयुक्त पर्यायक चयन - अनुवादमे भनहि भावक उपदेश देल जाय उपयुक्त पर्यायकचयनकेँ सभसँ पहिने आ सभसँ उच्च स्थान दिअ ऽ पड़त। उपयुक्त पर्यायकेँ चुनबाक हेतु अनुवादकर्त्ता पहिने अपन हृदयकेँ नहि द्विभाषिक शब्द-कोशकेँ ढूँढ़ ऽ लगैत छथि। अनुवादकर्त्ता पहिने अपन हृदयमेसँ उपयुक्त पर्याय ताकथु आ अपन आत्मविश्वास बढ़ाबथु आ तकरा बाद द्विभाषिक वा बहुभाषिक शब्द-कोशमे ढूँढ़थु तँ नीक अनुवाद प्रस्तुत भ ऽ सकैछ।
मैथिलीमे नीक अनुवादक लेल बहुभाषिक व्याकरण रहब आवश्यक अछि जकर अभाव मैथिलीमे सभसँ बेसी अखरैत अछि। एखन एहि दिशामे डॉ0 राम नारायण सिंहजी एकटा नीक काज क ऽ रहल छथि। डॉ0 राम नारायण सिंहजी व्यावसायसँ संस्कृतक शिक्षक छथि मुदा मैथिलीसँ नीक जकाँ जुड़ल छथि। मैथिली-मलयालम-संस्कृत- अंग्रेजी क्रिया-कोश (Multi Langual Verbal Dictionary)क निर्माणमे लागल छथि। प्रायः पूर्ण भ ऽ गेल छनि। आब छपबाक स्थितिमे अछि। ज्ञातव्य जे साहित्य अकादेमीसँ पुरस्कृत मलयालम भाषाक लेखक श्री तकष़ी शिवशंकर पिळैक एकटा उपन्यास चेम्मीन् साहित्य अकादेमीसँ पुरस्कृत आ विश्वक अनेक भाषामे अनूदित उपन्यासक मैथिली अनुवाद मलाहिन साहित्य अकादेमीसँ शीघ्र प्रकाश्य छनि। हिन्दीक लेखिका डॉ0 मिथिलेश कुमारी मिश्रक छटता कोहरा लघुकथा-संग्रहक मलयालममे जाग्रता शीर्षकसँ अनुवाद प्रकाशित भ ऽ चुकल छनि। मलयालम भाषाक प्रसि( लेखक श्री जी0 शंकर पिळैक तीनटा मलयालम नाटक पूजा मुरि करुत्त दैवत्ते तेडि स्नेहदूतन् केर हिन्दी अनुवाद पूजा घर काले देव की खोज स्नेहदूत शीर्षकसँ नेशनल बुक ट्र्रस्ट ऑफ इन्डियासँ शीघ्र प्रकाश्य छनि।
मैथिली भाषामे शब्दकोषक परम्परा:- अनुवादक लेल आवश्यक सामग्री यथा शब्दकोषक परम्परा मैथिलामे आरम्भ भेल बहुत बादमे जा ऽ क ऽ 1951 ई0मे। एहिसँ पहिने बहुतो मैथिली शब्दक प्रयोग/समावेश आन-आन भाषाक कोश तथा शब्दावली सभमे कयल गेल छल। मैथिलीमे एखन ध्रि प्रकाशित 11 गोट कोश उपलब्ध् अछि- 1 मिथिला शब्द प्रकाश 3 2 मिथिलाभाषाकोष 4 3 धतुपाठ 5 4 बृहद् मैथिली शब्दकोश 6 5 पर्यायवाची शब्दकोश 7 6 मैथिली शब्दकोश 8 7 मैथिली शब्दकल्पद्रुम 9 8 अंगिका हिन्दी शब्दकोश 10 9 कल्याणी-कोश: मैथिली अंग्रेजी शब्दकोश 11 10 चातुर्भाषिक शब्दकोश 12 एवं 11 मैथिली अंग्रेजी शब्दकोश 13। मैथिली मे प्रकाशित उपर्युक्त शब्दकोश सभक तुलना जँ आन भारतीय भाषा सभसँ करी तँ निश्चये मन खिन्न भ ऽ जायत। मैथिलीक नवीनतम कोश थिक श्री गजेन्द्र ठाकुरक मैथिली-अंग्रेजी-शब्दकोश जे प्रायः प्रकाशनक क्रममे अछि। एकर अतिरिक्त न्यू हिन्दुस्तानी इंग्लिश डिक्शनरी ऐन इन्ट्रोडक्शन टु द मैथिली लैंगुएज ऑफ बिहार भाग-2 क्रैस्टोमैथी एण्ड भोकेब्युलरी ट्रान्सलेशन ऑफ मनबोध् स हरिवंश एण्ड इन्डेक्स टु मनबोध् स हरिवंश बिहार पीजेन्ट लाइफ ए कम्पैरेटिभ डिक्शनरी ऑफ द बिहारी लैंगुएज भाग-1 बंगीय शब्दकोश ए कम्पैरेटिभ एण्ड ईटीमोलोजिकल डिक्शनरी ऑफ नेपाली लैंगुएज अमरकोशविवशति वर्णरत्नाकर विद्यापतिर पदावली कृषि कोश बेसिक कलोक्विअल मैथिली आदि कृति सभकेँ शब्दसूची शब्दानुक्रमणी वा पारिभाषिक पदावली कहल जा सकैत अछि जकरासँ मैथिलीक कोश सभ बनल आ अनवादक काज लेल गेल अछि।
अनुवाद भाषाक नहि भावक होयबाक चाही। अनुवादककेँ भाषाक फेरमे नहि पड़ि पूर्णतः भावग्राही होयबाक चाही। भाव प्रसंगसँ पकड़ल जाइत अछि। प्रसंग शब्दक अर्थ बड़ व्यापक अछि। एहिमे देश काल पात्रा प्रकरण घटनाक्रम विषय आदि पारिवेशिक तत्त्व समाहित रहैछ। अनुवादमे प्रसंगसँ बेसी महत्त्व अछि संगतिक। अनुवादककेँ संगति पर सतत् ध्यान रखबाक चाही।
अनुवादकक श्रेणीकरण - अनुवादककेँ शब्दग्राही वाक्यग्राही आ भावग्राही आदि तीन श्रेणीमे विभक्त कयल जा सकैत अछि। जेना साइकिल सिखनिहार खसबाक डरेँ साइकिलकेँ कसिक ऽ पकड़ने रहैत अछि। तहिना नवसिखुआ अनुवादक अशु( भ ऽ जयबाक डरेँ मूल भाषाक शब्द आ वाक्य-विन्यासकेँ ध्यने रहैत छथि। हुनका डर होइत छनि जे मूल भाषासँ कनेको विचलित होयब तँ अनुवाद अशु( भ ऽ जायत।परिणाम उनटा भ ऽ जाइत छै। कहबाक तात्पर्य जे मूल भाषाक सतर्क अनुसरणक फेरमे हुनक लक्ष्य भाषाक सहज प्रवाह बिगड़ि जाइत छनि। तेँ अनुवादककेँ भाषाक फेरमे नहि पड़ि पूर्णतः भावग्राही होयबाक चाही। एकटा टंकक उदाहरण द ऽ अनुवादक पण्डित श्री गोबिन्द झा अनुवादकक एहि श्रेणीकरण - शब्दग्राही वाक्यग्राही आ भावग्राही आदिक पुष्टि कयने छथि।2
भाषाक प्रभाव अनेक प्रक्रममे प्रतिफलित होइत अदि। भारतीय शब्दशाड्डमे एकर चारि प्रक्रम वखणत अछि - परा पश्यन्ती मध्यमा आ बैखरी । बैखरी थिक भाषाक ध्वन्यात्मक स्वरुप। इएह एक भाषाकेँ दोसर भाषासँ फराक करैत अछि। प्रक्रमक विभिन्न ध्वन्यात्मक प्रतीकसँ जे प्रतीत होइत अछि से थिक अर्थ। एकरे कहल जाइत छै मध्यमा किएक तँ ई प्रक्रम ध्वनि आ भाव दूनूक मध्यमे पड़ैत अछि। पश्यन्ती केवल ध्यान-चक्षुसँ देखल जाइत अछि। एही ध्यान-चक्षुसँ भाषाक अर्थात्मक स्वरुप देखाइत अछि। प्रक्रममे आगाँ जा ऽक ऽ पश्यन्ती लुप्त भ ऽ जाइत छैक सकल भाव मिलि एक अखण्ड महाभाव भ ऽ जाइत छैक तखन भावना परा पर पहुँचि जाइत छैक। ई परा योगशाड्ड वा दर्शनशाड्डक विषय थिक। परा छोड़ि शेष तीनू प्रक्रमक बोध् नीक अनुवादककेँ होयबाक चाही -1 पहिने मूल भाषाक बैखरीकेँ पकड़ूऋ 2 तकरा द्वारा मूल भाषाक मध्यमाकेँ पकड़ूऋ 3 पुनः तकरा द्वारा मूल भाषाक पश्यन्तीकेँ पकड़ूऋ 4 आब ओहि पश्यन्तीक आधरपर लक्ष्य भाषाक मध्यमाकेँ पकड़ू आ 5 ताहि आधरपर लक्ष्य भाषाक बैखरीकेँ पकड़ू। एकरे नाम थिक अनुवाद। ई प्रक्रिया मूल भाषाक ध्वन्यात्मक प्रतीकक decoding सँ आरम्भ होइत अछि आओर भावक प्रक्रम पर आबि encoded होइत-होइत लक्ष्य भाषाक ध्वन्यात्मक प्रतीकक रुपमे परिणत भ ऽ जाइत छैक।
सरलता - अनुवादक भाषा एहेन हुअय जे जनसामान्य आसानीसँ बूझि सकय। एहिसँ अनुवाद बेसी लोकप्रिय होयत आ अनुवादकक कार्य-प्रगति प्रभावित होयत। एहि सन्दर्भमे अंग्रेज लेखक ग्रियर्सनक अनुसन्धनात्मक पोथीक मैथिली अनुवाद बिहारक ग्राम्य-जीवन निःसंदेह अनुकरणीय एवं सराहनीय अनुवाद-कार्य मानल जा सकैत अछि। बहुभाषिक व्याकरण वा क्रिया-कोश (Multi Langual Verbal Dictionary)क निर्माण-कालमे एहि बिन्दुपर बेसी ध्यान देल जयबाक चाही जाहिसँ कि आगाँक अनुवादककेँ अनुवाद-कार्य करबामे सुविध हुअय।
अनुवादक शास्त्रीयता नीचाँसँ उपर जयबाक चाही - आम लोकक ज्ञान यथा- लोकशब्दाबलीक उपयोग कृषकक ज्ञान यथा- कृषकक जीवन-यापनमे दैनिक व्यवहारमे आबयबला शब्दाबलीक उपयोग जेना उपर उल्लिखित चेम्मीन् क मैथिली अनुवाद मलाहिन उपन्यासमे कयल गेल अछि तेहेन उपयोग आनो अनूदित पोथीमे कयल जयबाक चाही। तकनीकि शब्द यथा- मेडिकल साइन्सक अनुवादमे गामक पशुरोग व्याध्कि नामादिक उपयोग अनुवादमे होयबाक चाही। तहिना मानवजनित रोगहुमे ग्रामीण लोकक देहाती रोगक नामावलीक उपयोग मैथिली अनुवाद लेल कयल जा सकैत अछि।
संक्षिप्तता आ स्पष्टता - अनुवाद सरल संक्षिप्त आ एकदम स्पष्ट हुअय ताहि लेल आवश्यक अछि जे बेसीसँ बेसी तकनीकि (Technical Meaning) शब्दाबलीक उपयोग करैत अर्थगूढार्थकेँ Foot Notes वा Bracket मे ओतहि बुझा दी तँ से नीक रहत।
अनुवादक शास्त्रीय सामग्रीक उपलब्ध्ता (History of knowledge:Text Translation in Maithili)-आब लिखित सामग्री खास क ऽ अंग्रेजी (English)मे कम्प्यूटर (Computer) इन्टरनेट (Internet) ई-मेगजिन (e-magazines) ई-कोश (e-dictionary) ब्लॉग्स (Blogs) आदिपर उपलब्ध् होइ छै। मुदा बिडम्बना अछि जे आजुक मैथिलीक लेखक-अनुवादक अंग्रेजी आ आध्ुनिक तकनीकि ज्ञानसँ अलगे पड़ाइत रहैत छथि। मैथिलीमे अथवा मैथिलीसँ आन भाषामे नीक अनुवाद लेल अंग्रेजी भाषाक संग-संग आन भारतीय भाषाक खास क ऽ दक्षिण भारतीय भाषाक ज्ञान राखब आ तकनीकि उपकरण यथा-कम्प्यूटर (Computer) एल सी डी प्रोजेक्टर (LCD Projector) कैमरा (Camera) सी डी /डी वी डी (Compact Disk/Digital Video Disk) पेन ड्राइव (Pen Drive) आदि संचालित करबाक योग्ता एवं इन्टरनेट (Internet) ई-कोश (e-dictionary) ई-मेगजिनम (e-magazines) ब्लॉग्स (Blogs) आदिक उपयोग करबाक दक्षता रहब अत्याावश्यक भ ऽ गेल अछि।
एकर अतिरिक्त अनुुवादककेँ कतेक स्वतन्त्राता भेंटबाक चाही ? अनुवादक कतेक स्वतन्त्राता चाहैत छथि ? संस्था कतेक स्वतन्त्राता देब ऽ चाहैए ? आदि-आदि नीति आ सि(ान्त आओर व्यावहारिक सम्बन्ध्पर अनुवादक स्तरीयता पठनीयता उपयेगिता उपादेयता तथा अनुवादकक कुशलता आ प्रवीणता एवं अनुवाद-कार्यक सफलता


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निर्भर करैत छैक। अनुवादपर केन्द्रित एहि राष्ट्रीय सेमिनारमे एहू मूल बिन्दू सभपर विमर्श होयब आवश्यक अछि। ध्न्यवाद। जय मिथिला। जय मैथिली।

सन्दर्भ संकेतः-
1 अनुचिन्तन: पण्डित गोबिन्द झा: नवारम्भ प्रकाशन पटना: 2010: पृ0- 113
2 अनुचिन्तन: पण्डित गोबिन्द झा: नवारम्भ प्रकाशन पटना: 2010: पृ0- 115
3 पं0 भवनाथ मिश्र प्रकाशक स्वयं ग्राम-हटाढ-रुपौली पो0- झंझारपुर जि0- मध्ुबनी प्र0 खण्ड 1951
4 पं0 दीनबन्ध्ु झा प्रकाशक स्वयं ग्राम-इसहपुर पो0- मनीगाछी जि0- दरभंगामध्ुबनी 1950
5 पं0 दीनबन्ध्ु झा प्रकाशक- मैथिली साहित्य परिषद् दरभंगा 1950
6 सम्पा0 डॉ0 जयकान्त मिश्र प्रकाशक- इन्डियन काउन्सिल ऑफ एडभान्स्ड स्टडीज शिमला 1973
7 प्रकाशक- प्रज्ञा प्रतिष्ठान काठमाण्डु नेपाल 1974
8 सम्पा0 गोबिन्द झा प्रकाशक- मैथिली अकादमी पटना 1992
9 पं0 मतिनाथ झा प्रकाशक- मिश्र बन्ध्ु प्रकाशन जमुथरि जि0- मध्ुबनी 1997
10 डोमन साहु समीर प्रकाशक- विनोद कुमार चतुर्वेदी सिकन्द्राबाद आन्ध््रप्रदेश 1997
11 सम्पा0 गोबिन्द झा प्रकाशक- महाराजाध्रिाज कामेश्वर सिंह कल्याणी पफाउन्डशन दरभंगा 1999
12 उमेश चन्द्र झा प्रकाशक- सुमित्रा प्रकाशन दरभंगा 2007
13 सम्पा0 गजेन्द्र ठाकुर, नागेन्द्र कुमार झा तथा विद्यानन्द झा प्रकाशक- श्रुति प्रकाशन दिल्ली 2009


गजेन्द्र ठाकुर

मैथिली लेल समीक्षाशास्त्रक सिद्धांत

कला- एहि लेल कोनो सैद्धांतिक प्रयोजन होएबाक चाही ?

साहित्यक विभिन्न विधा जेना पद्य, प्रबन्ध, निबन्ध, समालोचना, कथा-गल्प, उपन्यास, पत्रात्मक साहित्य, यात्रा-संस्मरण, रिपोर्ताज, नाटक आ एकांकी मनोरंजनक लेल सुनल-सुनाओल-पढ़ल जाइत अछि वा मंचित कएल जाइत अछि। ई उद्देश्यपूर्ण भऽ सकैत अछि वा एहिमे निरुद्देश्यता-एबसडिटी सेहो रहि सकै छै- कारण जिनगीक उत्थल-धक्कामे निरुद्देश्यपूर्ण साहित्य सेहो मनोरंजन प्रदान करैत अछि।
प्राचीन कालमे कला, साहित्य आ संगीत एक खाढ़ीसँ दोसर खाढ़ी मध्य हस्तांतरित होइत छल। पदपाठ, क्रमपाठ, जटा पाठ, शिखापाठ, घनपाठ आदि स्मृतिक वैज्ञानिक पद्धति छल। घर, वेदी आ आन कलाकृतिक बनेबाक विधिक यजुर्वेदमे वर्णन छल जे भाष्य सभमे आर विस्तृत भेल आ पुरातत्वक प्राचीनतम आधार सिद्ध भेल। संगीतक पद्धति सामवेदकेँ विशिष्ट बनेलक। ऐ तरहेँ साहित्य, कला आ संगीतकेँ बान्हबाक प्रयत्न भेल, जइसँ ई विधा दोसरो गोटे द्वारा ओही तरहेँ अनुकृत भऽ सकए। आ ऐ क्रममे कला, साहित्य आ संगीतक समीक्षा वा ओकर गुणक विश्लेषण प्रारम्भ भेल। कला, साहित्य आ संगीतक समाज लेल कोन प्रयोजन, एकर नैतिक मानदण्ड की हुअए, ऐ दिस सेहो प्राच्य आ पाश्चात्य विचारक अपन विचार राखलन्हि। प्लेटो कहै छथि जे कोनो कला नीक नै भऽ सकैए किएक तँ ई सभटा असत्य आ अवास्तविक अछि।
मुदा कला, संगीत आ साहित्य कखनो काल स्वान्तः सुखाय सेहो होइत अछि, एकरा पढ़ला, सुनला, देखला आ अनुभव केलासँ प्रसन्नता होइत छै, मानसिक शान्ति भेटै छै तँ कखनो काल ई उद्वेलित सेहो करैत छै। एरिस्टोटल मुदा कहै छथि जे कलाकार ज्ञानसँ युक्त होइ छथि आ विश्वकेँ बुझबामे सहयोग करै छथि।

ऋक १,११५,२ मे उषाकालक सूर्योदयक बिम्ब सुन्दरीक पाछाँ जाइत युवकसँ भेल अछि। ऋक १,१२४,११ मे अरुणोदयमे लाल आभा आ बिलाइत अन्हारक संग, चूल्हिमे आगि वर्णन अछि आ बिम्ब अछि- गामक तरुणी रक्त वर्णक गाएकेँ चरबाक लेल छोड़ैत छथि। अथर्ववेद ४,१५,६ मे सामूहिक नाराक वर्णन अछि। यजुर्वेद ४०,१६ मे वर्णन अछि- सूर्यमण्डल सुवर्णपात्र अछि जे सूर्यकेँ आवृत्त कएने अछि। यजुर्वेद १७,३८-४१ मे संग्राम लेल बाजा संग जाइत देवसेना आ यजुर्वेद १७,४९ मे कवचक मर्मर ध्वनि वर्णित अछि। ऋगवेद १,१६४,२ आ यास्क ४,२७ मे संवत्सर, चक्रक वर्णन अछि। वृहदारण्यक उपनिषद २,२,३ मे सोमरसक उत्सक वर्णन अछि। वृहदारण्यक उपनिषद २,२,४ ओकर तटपरसात ऋषि आँखि, कान आदि अछि। अथर्ववेद १०,२,३१ मे शरीरकेँ अयोध्या कहल गेल अछि, गीता ५,१३ मे शरीरकेँ पुर कहल गेल अछि।
शब्दोचारण आ कला निर्माणक बाद बोध्य बौस्तुक उत्पत्ति होइ छै। शब्द आ ध्वनि, रूप, रस, राग, छन्द, आ अलंकारसँ ओकर औचित्य सिद्ध होइत छै।
जगतक सौन्दर्यीकृत प्रस्तुति अछि कला। सौंदर्यक कला उपयोगिताक संग। कलापूर्णताक कलाक जीवन दर्शन- संप्रदाय संग। भावनात्मक वातावरण- सत्यक आ कलाक कार्यक सौंदर्यीकृत अवलोकन, सुन्दर-मूर्त, अमूर्त।
मानसिक क्रिया- मनुष्य़ सोचैबला प्राणी, मानसिक आ भौतिक दुनूक अनुभूति करएबला प्राणी। विरोधाभास वा छद्म आभास- अस्पष्टता। मार्क्सवाद उपन्यासक सामाजिक यथार्थक ओकालति करैत अछि।
फ्रायड सभ मनुक्खकेँ रहस्यमयी मानैत छथि। ओ साहित्यिक कृतिकेँ साहित्यकारक विश्लेषण लेल चुनैत छथि तँ नव फ्रायडवाद जैविकक बदला सांस्कृतिक तत्वक प्रधानतापर जोर दैत देखबामे अबैत छथि।
नव-समीक्षावाद कृतिक विस्तृत विवरणपर आधारित अछि।
उत्तर आधुनिक, अस्तित्ववादी, मानवतावादी, ई सभ विचारधारा दर्शनशास्त्रक विचारधारा थिक। पहिने दर्शनमे विज्ञान, इतिहास, समाज-राजनीति, अर्थशास्त्र, कला-विज्ञान आ भाषा सम्मिलित रहैत छल। मुदा जेना-जेना विज्ञान आ कलाक शाखा सभ विशिष्टता प्राप्त करैत गेल, विशेष कए विज्ञान, तँ दर्शनमे गणित आ विज्ञान मैथेमेटिकल लॉजिक धरि सीमित रहि गेल। दार्शनिक आगमन आ निगमनक अध्ययन प्रणाली, विश्लेषणात्मक प्रणाली दिस बढ़ल।
मार्क्स जे दुनिया भरिक गरीबक लेल एकटा दैवीय हस्तक्षेपक समान छलाह, द्वन्दात्मक प्रणालीकेँ अपन व्याख्याक आधार बनओलन्हि। आइ-काल्हिक “डिसकसन” वा द्वन्द जाहिमे पक्ष-विपक्ष, दुनू सम्मिलित अछि, दर्शनक (विशेष कए षडदर्शनक- माधवाचार्यक सर्वदर्शन संग्रह-द्रष्टव्य) खण्डन-मण्डन प्रणालीमे पहिनहिसँ विद्यमान छल।
से इतिहासक अन्तक घोषणा कएनिहार फ्रांसिस फुकियामा -जे कम्युनिस्ट शासनक समाप्तिपर ई घोषणा कएने छलाह- किछु दिन पहिने एहिसँ पलटि गेलाह। उत्तर-आधुनिकतावाद सेहो अपन प्रारम्भिक उत्साहक बाद ठमकि गेल अछि।
अस्तित्ववाद, मानवतावाद, प्रगतिवाद, रोमेन्टिसिज्म, समाजशास्त्रीय विश्लेषण ई सभ संश्लेषणात्मक समीक्षा प्रणालीमे सम्मिलित भए अपन अस्तित्व बचेने अछि।
साइको-एनेलिसिस वैज्ञानिकतापर आधारित रहबाक कारण द्वन्दात्मक प्रणाली जेकाँ अपन अस्तित्व बचेने रहत।
कोनो कथाक आधार मनोविज्ञान सेहो होइत अछि। कथाक उद्देश्य समाजक आवश्यकताक अनुसार आ कथा यात्रामे परिवर्तन समाजमे भेल आ होइत परिवर्तनक अनुरूपे होएबाक चाही। मुदा संगमे ओहि समाजक संस्कृतिसँ ई कथा स्वयमेव नियन्त्रित होइत अछि। आ एहिमे ओहि समाजक ऐतिहासिक अस्तित्व सोझाँ अबैत अछि। जे हम वैदिक आख्यानक गप करी तँ ओ राष्ट्रक संग प्रेमकेँ सोझाँ अनैत अछि। आ समाजक संग मिलि कए रहनाइ सिखबैत अछि। जातक कथा लोक-भाषाक प्रसारक संग बौद्ध-धर्म प्रसारक इच्छा सेहो रखैत अछि। मुस्लिम जगतक कथा जेना रूमीक “मसनवी” फारसी साहित्यक विशिष्ट ग्रन्थ अछि जे ज्ञानक महत्व आ राज्यक उन्नतिक शिक्षा दैत अछि। आजुक कथा एहि सभ वस्तुकेँ समेटैत अछि आ एकटा प्रबुद्ध आ मानवीय समाजक निर्माणक दिस आगाँ बढ़ैत अछि।
कम्यूनिज्मक समाप्तिक बाद लागल जे इतिहास, जे दूटा विचारधाराक संघर्ष अछि, एकटा विचारधाराक खतम भेलाक बाद समाप्त भ’ गेल। फ्रांसिस फुकियामा घोषित कएलन्हि जे विचारधाराक आपसी झगड़ासँ सृजित इतिहासक ई समाप्ति अछि आ आब मानवक हितक विचारधारा मात्र आगाँ बढ़त। मुदा किछु दिन पहिनहि ओ कहलन्हि जे समाजक भीतर आ राष्ट्रीयताक मध्य एखनो बहुत रास भिन्न विचारधारा बाँचल अछि।
उत्तर आधुनिकतावादी दृष्टिकोण-विज्ञानक ज्ञानक सम्पूर्णतापर टीका , सत्य-असत्य, सभक अपन-अपन दृष्टिकोणसँ तकर वर्णन , आत्म-केन्द्रित हास्यपूर्ण आ नीक-खराबक भावनाक रहि-रहि खतम होएब, सत्य कखन असत्य भए जएत तकर कोनो ठेकान नहि, सतही चिन्तन, आशावादिता तँ नहिए अछि मुदा निराशावादिता सेहो नहि , जे अछि तँ से अछि बतहपनी, कोनो चीज एक तरहेँ नहि कैक तरहेँ सोचल जा सकैत अछि- ई दृष्टिकोण , कारण, नियन्त्रण आ योजनाक उत्तर परिणामपर विश्वास नहि, वरन संयोगक उत्तर परिणामपर बेशी विश्वास, गणतांत्रिक आ नारीवादी दृष्टिकोण आ लाल झंडा आदिक विचारधाराक संगे प्रतीकक रूपमे हास-परिहास, भूमंडलीकरणक कारणसँ मुख्यधारसँ अलग भेल कतेक समुदायक आ नारीक प्रश्नकेँ उत्तर आधुनिकता सोझाँ अनलक। विचारधारा आ सार्वभौमिक लक्ष्यक विरोध कएलक मुदा कोनो उत्तर नै दऽ सकल।
तहिना उत्तर आधुनिकतावादी विचारक जैक्स देरीदा भाषाकेँ विखण्डित कए ई सिद्ध कएलन्हि जे विखण्डित भाग ढेर रास विभिन्न आधारपर आश्रित अछि आ बिना ओकरा बुझने भाषाक अर्थ हम नहि लगा सकैत छी।
आ संवादक पुनर्स्थापना लेल कथाकारमे विश्वास होएबाक चाही- तर्क-परक विश्वास आ अनुभवपरक विश्वास ।
प्रत्यक्षवादक विश्लेषणात्मक दर्शन वस्तुक नहि, भाषिक कथन आ अवधारणाक विश्लेषण करैत अछि ।
विश्लेषणात्मक अथवा तार्किक प्रत्यक्षवाद आ अस्तित्ववादक जन्म विज्ञानक प्रति प्रतिक्रियाक रूपमे भेल। एहिसँ विज्ञानक द्विअर्थी विचारकेँ स्पष्ट कएल गेल।
प्रघटनाशास्त्रमे चेतनाक प्रदत्तक प्रदत्त रूपमे अध्ययन होइत अछि। अनुभूति विशिष्ट मानसिक क्रियाक तथ्यक निरीक्षण अछि। वस्तुकेँ निरपेक्ष आ विशुद्ध रूपमे देखबाक ई माध्यम अछि।
अस्तित्ववादमे मनुष्य-अहि मात्र मनुष्य अछि। ओ जे किछु निर्माण करैत अछि ओहिसँ पृथक ओ किछु नहि अछि, स्वतंत्र होएबा लेल अभिशप्त अछि (सार्त्र)।
हेगेलक डायलेक्टिक्स द्वारा विश्लेषण आ संश्लेषणक अंतहीन अंतस्संबंध द्वारा प्रक्रियाक गुण निर्णय आ अस्तित्व निर्णय करबापर जोर देलन्हि। मूलतत्व जतेक गहींर होएत ओतेक स्वरूपसँ दूर रहत आ वास्तविकतासँ लग।
क्वान्टम सिद्धान्त आ अनसरटेन्टी प्रिन्सिपल सेहो आधुनिक चिन्तनकेँ प्रभावित कएने अछि। देखाइ पड़एबला वास्तविकता सँ दूर भीतरक आ बाहरक प्रक्रिया सभ शक्ति-ऊर्जाक छोट तत्वक आदान-प्रदानसँ सम्भव होइत अछि। अनिश्चितताक सिद्धान्त द्वारा स्थिति आ स्वरूप, अन्दाजसँ निश्चित करए पड़ैत अछि।

तीनसँ बेशी डाइमेन्सनक विश्वक परिकल्पना आ स्टीफन हॉकिन्सक “अ ब्रिफ हिस्ट्री ऑफ टाइम” सोझे-सोझी भगवानक अस्तित्वकेँ खतम कए रहल अछि कारण एहिसँ भगवानक मृत्युक अवधारणा सेहो सोझाँ आएल अछि, जे शुरू भेल अछि से खतम होएत भलहि ओकर आयु बेशी हो।
जेना वर्चुअल रिअलिटी वास्तविकता केँ कृत्रिम रूपेँ सोझाँ आनि चेतनाकेँ ओकरा संग एकाकार करैत अछि तहिना बिना तीनसँ बेशी बीमक परिकल्पनाक हम प्रकाशक गतिसँ जे सिन्धुघाटी सभ्यतासँ चली तँ तइयो ब्रह्माण्डक पार आइ धरि नहि पहुँचि सकब।
साहित्यक समक्ष ई सभ वैज्ञानिक आ दार्शनिक तथ्य चुनौतीक रूपमे आएल अछि। होलिस्टिक आकि सम्पूर्णताक समन्वय करए पड़त ! ई दर्शन दार्शनिक सँ वास्तविक तखने बनत।
पोस्टस्ट्रक्चरल मेथोडोलोजी भाषाक अर्थ, शब्द, तकर अर्थ, व्याकरणक निअम सँ नहि वरन् अर्थ निर्माण प्रक्रियासँ लगबैत अछि। सभ तरहक व्यक्ति, समूह लेल ई विभिन्न अर्थ धारण करैत अछि। भाषा आ विश्वमे कोनो अन्तिम सम्बन्ध नहि होइत अछि। शब्द आ ओकर पाठ केर अन्तिम अर्थ वा अपन विशिष्ट अर्थ नहि होइत अछि। आधुनिक आ उत्तर आधुनिक तर्क, वास्तविकता, सम्वाद आ विचारक आदान-प्रदानसँ आधुनिकताक जन्म भेल ।
मुदा फेर नव-वामपंथी आन्दोलन फ्रांसमे आएल आ सर्वनाशवाद आ अराजकतावाद आन्दोलन सन विचारधारा सेहो आएल। ई सभ आधुनिक विचार-प्रक्रिया प्रणाली ओकर आस्था-अवधारणासँ बहार भेल अविश्वासपर आधारित छल। पाठमे नुकाएल अर्थक स्थान-काल संदर्भक परिप्रेक्ष्यमे व्याख्या शुरू भेल आ भाषाकेँ खेलक माध्यम बनाओल गेल- लंगुएज गेम। आ एहि सभ सत्ताक आ वैधता आ ओकर स्तरीकरणक आलोचनाक रूपमे आएल पोस्टमॉडर्निज्म।
कंप्युटर आ सूचना क्रान्ति जाहिमे कोनो तंत्रांशक निर्माता ओकर निर्माण कए ओकरा विश्वव्यापी अन्तर्जालपर राखि दैत छथि आ ओ तंत्रांश अपन निर्मातासँ स्वतंत्र अपन काज करैत रहैत अछि, किछु ओहनो कार्य जे एकर निर्माता ओकरा लेल निर्मित नहि कएने छथि। आ किछु हस्तक्षेप-तंत्रांश जेना वायरस, एकरा मार्गसँ हटाबैत अछि, विध्वंसक बनबैत अछि तँ एहि वायरसक एंटी वायरस सेहो एकटा तंत्रांश अछि, जे ओकरा ठीक करैत अछि आ जे ओकरो सँ ठीक नहि होइत अछि तखन कम्प्युटरक बैकप लए ओकरा फॉर्मेट कए देल जाइत अछि- क्लीन स्लेट !

पूँजीवादक जनम भेल औद्योगिक क्रान्तिसँ आ आब पोस्ट इन्डस्ट्रियल समाजमे उत्पादनक बदला सूचना आ संचारक महत्व बढ़ि गेल अछि, संगणकक भूमिका समाजमे बढ़ि गेल अछि। मोबाइल, क्रेडिट-कार्ड आ सभ एहन वस्तु चिप्स आधारित अछि। डी कन्सट्रक्शन आ री कन्सट्रक्शन विचार रचना प्रक्रियाक पुनर्गठन केँ देखबैत अछि जे उत्तर औद्योगिक कालमे चेतनाक निर्माण नव रूपमे भऽ रहल अछि। इतिहास तँ नहि मुदा परम्परागत इतिहासक अन्त भऽ गेल अछि। राज्य, वर्ग, राष्ट्र, दल, समाज, परिवार, नैतिकता, विवाह सभ फेरसँ परिभाषित कएल जा रहल अछि। मारते रास परिवर्तनक परिणामसँ, विखंडित भए सन्दर्भहीन भऽ गेल अछि कतेक संस्था।
इन्फॉरमेशन सोसाइटी किंवा सूचना-आधारित-समाज एकटा ओहेन समाज अछि जाहिमे सूचनाक निर्माण, वितरण, प्रसार, उपयोग, एकीकरण आ संशोधन, एकटा महत्त्वपूर्ण आर्थिक, राजनीतिक आ सांस्कृतिक क्रिया होइत अछि। आ एहि समाजक भाग होएबामे समर्थ लोक अंकीय वा डिजिटल नागरिक कहल जाइत छथि। एहि उत्तर औद्योगिक समाजमे सूचना-प्रौद्योगिकी उत्पादन, अर्थव्यवस्था आ समाजकेँ निर्धारित करैत अछि। उत्तर-आधुनिक समाज, उत्तर औद्योगिक समाज आदि संकल्पना सँ ई निकट अछि। अर्थशास्त्री फ्रिट्ज मैचलप एकर संकल्पना देने छलाह। हुनकर ज्ञान-उद्योगक धारणा शिक्षा, शोध आ विकास, मीडिआ, सूचना प्रौद्योगिकी आ सूचना सेवाक पाँचटा अंगपर आधारित छल। प्रौद्योगिकी आ सूचनाक समाजपर भेल प्रभाव एतए दर्शित होइत अछि। अंकीय वा डिजिटल विभाजन एकटा ज्ञानक विभाजन, सामाजिक विभाजन आ आर्थिक विभाजन देखबैत अछि आ बिना भेदभावक एकटा सूचना समाजक निर्माण आवश्यकता देखाबैत अछि जाहिसँ सूचना प्रौद्योगिकीपर विकासशील देशमे सार्वभौम अधिकार रहए। मानवाधिकार आ सूचना प्रौद्योगिकीक मध्य व्यक्तिक एकान्तक अधिकार सेहो साम्मिलित अछि। विद्वान, मानवाधिकार कार्यकर्ता आ आन सभ व्यक्तिक अभिव्यक्तिक स्वतंत्रता, सूचनाक अधिकार, एकान्त, भेदभाव, स्त्री-समानता, प्रज्ञात्मक संपत्ति, राजनीतिक भागीदारी आ संगठनक मेलक संदर्भमे सूचना आ जनसंचार प्रौद्योगिकीक सन्दर्भमे एहि गपपर चरचा शुरू भेल अछि जे सूचना समाज मानवाधिकारकेँ बल देत आकि ओकरा हानि पहुँचाओत। ऑनलाइन पत्राचारक गोपनीयताक अधिकार, अन्तर्जालक सामग्रीक सांस्कृतिक आ भाषायी विविधता आ मीडिया शिक्षा। सूचना समाजक तकनीकी अओजार ओकर अधिकार आ स्वतंत्रतासँ लाभान्वित होइत अछि आ समाजक समग्र विकास, अधिकार आ स्वतंत्रताक सार्वभौमता, अधिकारक आपसी मतभिन्नता, स्वतंत्रता आ मूल्य निरूपणमे सहभागी होइत अछि। एहिसँ सूचना, ज्ञान आ संस्कृतिमे सरल पइठक वातावरण बनैत अछि आ ई उपयोगकर्ताकेँ वैश्विक सूचना समाजक अभिनेताक रूपमे परिणत करैत अछि। कारण ई उपयोगकर्ताकेँ पहिनेसँ बेशी अभिव्यक्तिक स्वतंत्रता आ नव सामग्री आ नव सामाजिक न्तर्जाल-तंत्र निर्माण करबाक सामर्थ्य दैत अछि। एहिसँ एकटा नव विधि, आर्थिक आ सामाजिक मॉडेलक आवश्यकता सेहो अनूभूत कएल जा रहल अछि जाहि मे साझी कर्तव्य, ज्ञान आ समझ आधार बनत। बच्चाक हित एकटा आर चिन्ता अछि जे पैघक हितसँ सर्वदा ऊपर रखबाक चाही। आधुनिक समाजक आर्थिक, सामाजिक आ सांस्कृतिक धनक एकत्र करबाक प्रवृत्ति सूचना समाजमे बढ़ल अछि आ प्रौद्योगिकी एकटा आधारभूत बेरोजगारी अनलक अछि। गरीबी, मजदूरक अधिकार आ कल्याणकारी राज्यक संकल्पना लाभ-हानिक आगाँ कतहु पाछाँ छूटल जा रहल अछि। आब मात्र किछुए अभिनेता चाही, प्रकाशक लोकनि सेहो मात्र किछु बेशी बिकएबला पोथीक लेखकक प्रचार करैत छथि। यैह स्थिति रंगमंच, पेंटिंग , सिनेमा आ आन-आन क्षेत्रमे सेहो दृष्टिगोचर भऽ रहल अछि। मुदा सूचना सर्वदा लाभकारी नहि होइत अछि। ई मात्र कला, ग्रंथ धरि सीमित नहि अछि वरन सट्टा बाजार आ प्रायोजित सर्वेक्षण रपट सेहो एहिमे सम्मिलित अछि। समय आ स्थानक बीचक दूरीकेँ ई कम करैत अछि आ दुनूक बीचमे एकटा सन्तुलन बनबैत अछि। मानवक गरिमा मानवक जन्म आधारित सामाजिक स्थानसँ हटि कऽ मानवक गरिमाक अधिकारपर बल दैत अछि। मुक्ति आ स्त्री-मुक्ति आन्दोलन एहि दिशाक प्रयास अछि। दुनू विश्वयुद्ध आ फासिज्मक चुनौतीक बाद १० दिसम्बर १९४८ केँ संयुक्त राष्ट्रसंघक महासभा द्वारा मानवाधिकारक सार्वभौम घोषणाक उद्घोषणा कएल गेल आ एकरा अंगीकार कएल गेल। ई घोषणा राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आ धार्मिक भेदभावरहित एकटा सामान्य मानदण्ड प्रस्तुत करैत अछि जे सभ जन-समाज आ सभ राष्ट्र लेल अछि। सूचनाक स्वतंत्र उपयोग सीमित अछि, लोकक एकान्त खतम भऽ रहल अछि। बिल गेट्ससँ जखन हुनकर भारत यात्राक क्रममे पूछल गेल छलन्हि जे माइक्रोसॉफ्टक एक्स-बॉक्स भारतमे पाइरेसीक डरसँ देरीसँ उतारल गेल तँ ओ कहने रहथि जे माइक्रोसॉफ्ट कहियो कोनो उत्पाद पाइरेसीक डरसँ देरीसँ नहि आनलक। स्पैम आ पाइरेसीक डर खतम होएबाक चाही। सूचना समाज वैह समाज छी जकर बीचमे हम सभ रहि रहल छी। लोकतंत्र आ मानवाधिकारक सम्मान सूचना-समाज आ उत्तर सूचना-समाजमे होइत रहत। अभिव्यक्तिक स्वतंत्रता, एकान्तक अधिकार, सूचना साझी करबाक अधिकार आ सूचना धरि पहुँचक अधिकार जे सूचनाक संचारसँ सम्बन्धित अछि, ई सभ राज्य द्वारा आ सूचना-समाजक बाजारवादी झुकावक कारण खतराक अनुभूतिसँ त्रस्त अछि।
अन्तर्जाल लोकक मीडिआ अछि आ एकटा एहन प्रणाली अछि जे लोकक बीच सम्वाद स्थापित करैत अछि। एहिसँ संचार-माध्यमक मठाधीश लोकनिक गढ़ टुटैत अछि। अन्तर्जालमे कोनो सम्पादक सामान्य रूपसँ नहि होइत छथि। एतए लोक विषयक आ सामग्रीक निर्माण कए स्वयं ओकर संचार करैत छथि। एहिसँ कतेक रास सामाजिक सम्वादक प्रारम्भ होइत अछि। मुदा कतेक रास समाज-विरोधी सामग्री सेहो अबैत अछि। तँ की ओहिपर प्रतिबन्ध होएबाक चाही। मुदा जे सॉफ्टवेयरक माध्यमसँ मशीनकेँ सामग्रीपर प्रतिबन्ध लगेबाक अधिकार देब तखन ई अभिव्यक्तिक स्वतंत्रतापर पैघ आघात होएत। बौद्धिक सम्पदाक अधिकार लेखककेँ मृत्युक ६० बरख बादो प्रकाशन आ वितरणक अधिकार दैत अछि। अन्तर्जालमे सेहो पाइरेसीकेँ प्रतिबन्धित करए पड़त आ कमसँ कम लेखकक मृत्युक २० बरख बाद धरि लेखकक अधिकार ओकर सामग्रीपर रहए, से व्यवस्था करए पड़त। मुदा पेटेन्टक बेशी प्रयोग विकाशसील देशक सूचना अभिगमनमे बाधक होएत आ प्रौद्योगिकीक विकासमे सेहो बाधा पहुँचाओत। कॉपीराइटसँ सांस्कृतिक विकास मुदा होएत, जेना संगीत, फिल्म, आ चित्र-शृंखला(कॉमिक्स)क विकास। डिजिटल वातावरणमे प्रतिकृतिक बिना अहाँ अन्तर्जालपर सेहो सामग्री नहि देखि सकब, से ऑफ-लाइन कॉपीराइट आ ऑनलाइन कॉपीराइट दुनू मे थोड़बेक अन्तर अछि। ऑनलाइन कॉपीराइट प्रतिकृतिकेँ सेहो प्रतिबन्धित करैत अछि। आ प्रतिकृति कएल सामग्रीकेँ दोसर वस्तुमे जोड़ब वा संशोधित करब सेहो बड्ड सरल अछि। से नाम आ चित्र बिना ओकर निर्माताक अनुमतिक नहि प्रयोग होअए, दोसराक व्यक्तिगत वार्तालाप-चैटिंग-मे हस्तक्षेप नहि होअए आ दोसराक विरुद्ध कोनो एहन बयानबाजी नहि होअए जाहिसँ कोनो व्यक्तिक विरुद्ध गलत धारणा बनए।तहिना नौकरी-प्रदाता द्वारा कोनो प्रकारक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अपन कर्मचारीक नियन्त्रण लेल लगबैत अछि तँ से अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संघक दिशा-निर्देशक अनुरूप होएबाक चाही। ई-पत्रमे अनपेक्षित सन्देश आ चिकित्सकीय रिपोर्टक अनपेक्षित संग्रह आ उपयोग सेहो मानवाधिकारक हनन अछि। अन्तर्जालक उपयोग मुदा सीमित अछि कारण बहुत रास सामग्री आ तंत्रांश मंगनीमे उपलब्ध नहि अछि आ महग अछि, डिजिटल विभाजन शिक्षाक स्तरकेँ आर बेशी देखार करैत अछि। शारीरिक श्रमक बदलामे मानसिक श्रमक एतए बेशी उपयोग होइत अछि, से ई आशा रहए जे स्त्री-असमानता सूचना-समाजमे घटत मुदा सर्वेक्षण देखबैत अछि जे महिलाक पइठ सूचना प्रौद्योगिकीमे कम छन्हि। इलेक्ट्रॉनिक लाइब्रेरी आ ब्रेल-इनेबल कएल/ ध्वनि-इनेबल कएल कम्प्यूटर स्क्रीन/ इलेक्ट्रॉनिक लाइब्रेरी विकलांग आ अन्ध विकलांग लेल घर पर रहि ई-वाणिज्य करबामे सहायता दैत। मुदा एहि क्षेत्रमे कएल शोध आ ओकर परिणाम महग रहबाक कारणसँ ओतेक लाभ नहि दऽ सकल अछि। बाल, वृद्ध, विकलांग, स्त्री, कामगार, प्रवासी-कामगार आ दोसर सामाजिक रूपसँ अब्बल वर्ग सूचना समाजमे सेहो अपनाकेँ अब्बल अनुभव करैत छथि।

नीक साहित्य/कला त्वरित उपस्थापनक आधारपर नै वरन ओहिमे तीक्ष्णतासँ उपस्थापित मानव-मूल्य, सामाजिक समरसताक तत्व आ समानता-न्याय आधारित सामाजिक मान्यताक सिद्धान्त आधार बनत। समाज ओहि आधारपर कोना आगू बढ़ए से संदेश तीक्ष्णतासँ आबैए वा नै से देखए पड़त। पाठकक मनसि बन्धनसँ मुक्त होइत अछि वा नै, ओहिमे दोसराक नेतृत्व करबाक क्षमता आ आत्मबल अबै छै वा नै, ओकर चारित्रिक निर्माणक आ श्रमक प्रति सम्मानक प्रति सन्देह दूर होइ छै वा नै- ई सभटा तथ्य लघुकथाक मानदंड बनत। कात-करोटमे रहनिहार तेहन काज कऽ जाथि जे सुविधासम्पन्न बुते नै सम्भव अछि, आ से कात-करोटमे रहनिहारक आत्मबल बढ़लेसँ होएत।
हीन भावनासँ ग्रस्त साहित्य कल्याणकारी कोना भऽ सकत? बदलैत सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक-धार्मिक समीकरणक परिप्रेक्ष्यमे एकभग्गू प्रस्तुतिक रेखांकन, कथाकार-कविक व्यक्तिगत जिनगीक अदृढ़ता, चाहे ओ वादक प्रति होअए वा जाति-धर्मक प्रति, साहित्यमे देखार भइए जाइत छैक, शोषक द्वारा शोषितपर कएल उपकार वा अपराधबोधक अन्तर्गत लिखल जाएबला कथामे जे पैघत्वक (जे हीन भावनाक एकटा रूप अछि) भावना होइ छै, तकरा चिन्हित कएल जाए।
मेडियोक्रिटी चिन्हित करू- तकिया कलाम आ चालू ब्रेकिंग न्यूज- आधुनिकताक नामपर। युगक प्रमेयकेँ माटि देबाक विचार एहिमे नहि भेटत, आधुनिकीकरण, लोकतंत्रीकरण, राष्ट्र-राज्य संकल्पक कार्यान्वयन, प्रशासनिक-वैधानिक विकास, जन सहभागितामे वृद्धि, स्थायित्व आ क्रमबद्ध परिवर्तनक क्षमता, सत्ताक गतिशीलता, उद्योगीकरण, स्वतंत्रता प्राप्तिक बाद नवीन राज्य राजनैतिक-सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक समस्या-परिवर्तन आ एकीकरणक प्रक्रिया, कखनो काल परस्पर विरोधी। सामुदायिकताक विकास, मनोवैज्ञानिक आ शैक्षिक प्रक्रिया।

आदिवासी- सतार, गिदरमारा आदि विविधता आ विकासक स्तरकेँ प्रतिबिम्बित करैत अछि। प्रकृतिसँ लग, प्रकृति-पूजा, सरलता, निश्छलता, कृतज्ञता। व्यक्तिक प्रतिष्ठा स्थान-जाति आधारित। किछु प्रतिष्ठा आ विशेषाधिकार प्राप्त जाति। किछुकेँ तिरस्कार आ हुनकर जीवन कठिन।

महिला आ बाल-विकास- महिलाकेँ अधिकार, शिक्षा-प्रणालीकेँ सक्रिय करब, पाठ्यक्रममे महिला अध्ययन, महिलाक व्यावसायिक आ तकनीकी शिक्षामे प्रतिशत बढ़ाओल जाए।स्त्री-स्वातंत्र्यवाद, महिला आन्दोलन।धर्मनिरपेक्ष- राजनैतिक संस्था संपूर्ण समुदायक आर्थिक आ सामाजिक हितपर आधारित- धर्म-नस्ल-पंथ भेद रहित। विकास आर्थिकसँ पहिने जे शैक्षिक हुअए तँ जनसामान्य ओहि विकासमे साझी भऽ सकैए। एहिसँ सर्जन क्षमता बढ़ैत अछि आ लोकमे उत्तरदायित्वक बोध होइत अछि।
विज्ञान आ प्रौद्योगिकी विकसित आ अविकसित राष्ट्रक बीचक अंतरक कारण मानवीय समस्या, बीमारी, अज्ञानता, असुरक्षाक समाधान- आकांक्षा, आशा सुविधाक असीमित विस्तार आ आधार। विधि-व्यवस्थाक निर्धन आ पिछड़ल वर्गकेँ न्याय दिअएबामे प्रयोग होएबाक चाही। नागरिक स्वतंत्रता- मानवक लोकतांत्रिक अधिकार, मानवक स्वतंत्र चिन्तन क्षमतापूर्ण समाजक सृष्टि, प्रतिबन्ध आ दबाबसँ मुक्ति। प्रेस- शासक आ शासितक ई कड़ी- सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक जीवनमे भूमिका, मुदा आब प्रभावशाली विज्ञापन एजेंसी जनमतकेँ प्रभावित कएनिहार। नव संस्थाक निर्माण वा वर्तमानमे सुधार, सामन्तवादी, जनजातीय, जातीय आ पंथगत निष्ठाक विरुद्ध, लोकतंत्र, उदारवाद, गणतंत्रवाद, संविधानवाद, समाजवाद, समतावाद, सांवैधानिक अधिकारक अस्तित्व, समएबद्ध जनप्रिय चुनाव, जन-संप्रभुता, संघीय शक्ति विभाजन, जनमतक महत्व, लोक-प्रशासनिक प्रक्रिया-अभिक्रम, दलीय हित-समूहीकरण, सर्वोच्च व्यवस्थापिका, उत्तरदायी कार्यपालिका आ स्वतंत्र न्यायपालिका। जल थल वायु आ आकाश- भौतिक रासायनिक जैविक गुणमे हानिकारक परिवर्तन कए प्रदूषण, प्रकृति असंतुलन। कला- एहि लेल कोनो सैद्धांतिक प्रयोजन होएबाक चाही ?


मिकेल फोकौल्ट- ज्ञान आ सत्य बनाओल जाइत अछि।
डेलीयूज आ गुटारी कहै छथि जे हम सभ इच्छा ऐ द्वारे करै छी कारण हम सभ इच्छा मशीन छी।
मिकाहिल बखतिन भाषाकेँ सामाजिक क्रियाक रूपमे लै छथि आ हुनकर कार्य उपन्यासपर अछि।
रूसक रूपवादी साहित्यकेँ मात्र भाषाक विशिष्ट प्रयोग मानै छथि।
जीन फ्रान्कोइस लियोटार्ड-सत्यक आ इतिहासक सत्यता मात्र आभासी अछि। बौड्रीलार्ड- विज्ञापन आ दूरदर्शन सत्य आ आभासीक बीच भेद मेटा देने अछि। दुनू उत्तर आधुनिकताक मुख्य विचारक छथि।
लाकानक विशेषता छन्हि जे ओ फ्रायडक पद्धतिक भाषिकी अनुप्रयोग केलन्हि अछि। ओ कहै छथि जे अचेतनताक संरचना भाषा सन छै। जखन बच्चा भाषा सीखैए तखन ओकरा एकटा चेन्ह लेल एकटा शब्द सिखाओल जाइत छै। इच्छा, त्रुटि आ आन ई तीनटा तथ्य लाकान नीक जकाँ राखै छथि। इच्छा आवश्यकता आ माँगनाइ दुनू अछि मुदा एकरा ऐ दू रूपमे विखंडित नै कएल जा सकैत अछि। आनक वर्णनमे त्रुटि आ रिक्तता अबैत अछि। विषय अर्थक क्षणिक प्रभाव अछि आ ई आन सन होएत जखन ई आभासी होएत आ त्रुटिक कारण बनत, जइसँ इच्छाक उदय होएत।
उत्तर उपनिवेशवादक तीन विचारक छथि- होमी भाभा(फोकौल्ट आ लाकानसँ लग), गायत्री स्पीवाक (फोकौल्ट आ डेरीडासँ लग) आ एडवर्ड सईद(फोकौल्टसँ लग) जे उपनिवेशवादीक पूर्वक धूर्तताक, शिथिलता आदिक धारणाक लेल कएल गेल कार्य आ सिद्धांतीकरणक व्याख्या करै छथि।
रेमण्ड विलियम्सक संस्कृतिक अध्ययन साहित्यक आर्थिक स्थितिसँ सम्बन्ध देखबैत अछि। नव इतिहासवाद इतिहासक शब्दशास्त्र आ शब्दशास्त्रक ऐतिहासिकताक तुलना करैत अछि।
इलाइन शोआल्टर महिला लेखनक मानसिक, जैविक आ भाषायी विशेषताकेँ चिन्हित करै छथि। सिमोन डी. बेवोइर नारीक नारीक प्रति प्रतिबद्धतामे वर्ग आ जातिकेँ (जकर बादक नारीवादी सिद्धांत विरोध केलक) बाधक मानै छथि। वर्जीनिया वुल्फ नारी लेखक लेल आर्थिक स्वतंत्रता आ निजताकेँ आवश्यक मानै छथि। हिनकर विचारकेँ क्रान्तिकारी नै मानल गेल। मेरी वोल्स्टोनक्राफ्ट नारी शिक्षामे क्रान्ति आ औचित्यक शिक्षाकेँ सम्मिलित करबापर जोर देलनि।
नव समीक्षा- इलिएट कवितामे भावनाक प्रधानताक विरोध कएल आ एकरा गएर वैयक्तिक बनेबाक आग्रह केलनि। समीक्षकक काज लोकक रुचिमे सुधार करब सेहो अछि। विमसैट आ वर्डस्ले कहलनि जे कविक उद्देश्य वा ऐतिहासिक अध्ययनपर समीक्षा आधारित नै रहत। ई पाठकपर पड़ल भावनात्मक प्रभावपर सेहो आधारित नै रहत कारण से सापेक्ष अछि। ओ आधारित रहत वास्तविक शब्दशास्त्रपर।

फिलिप सिडनीसँ अंग्रेजी समीक्षाक प्रारम्भ देखि सकै छी- ओ कविताकेँ सौन्दर्य, अर्थ आ मानवीय हितमे देखलन्हि।
जॉन ड्राइडन- प्राचीन साहित्यमे नैतिक प्रवचनपर आ एकर लाभहानिपर विचार केलनि।
सैमुअल जॉनसन सेक्सपिअरक नाटकमे हास्य आ दुखद तत्वपर लिखलन्हि।
रूसोक रोमांशवाद मनुक्खक नीक होएबापर शंका नै करैए (क्लासिकल समीक्षक शंका करै छथि मुदा नव-क्लैसिकल कहै छथि जे मानव स्वभावसँ दूषित अछि मुदा संस्था ओकरा नीक बना सकैए) मुदा संगे ई कहैए जे संस्था सभ दूषित अछि आ मात्र दूषित लोकक मदति करैए। रोमांशवाद कविताक व्यक्तिगत अनुभव होएबाक कहैए।
आधुनिक स्थितिवाद (साहित्यक अवस्थितिपर कोनो प्रश्न चिन्ह नै) पर संरचनावाद प्रहार केलक आ तकराबाद लेखक स्वयं लिखल टेकस्टक विश्लेषण करबाक अधिकार गमेलक।
उत्तर संरचनावाद कहलक जे साहित्य ओइसँ आगाँक वस्तु अछि जे संरचनावाद बुझै अछि। उत्तर-संरचनावादक एकटा प्रकार अछि उत्तर आधुनिकता। उत्तर संरचनावाद कहलक जे साहित्यमे संरचना संस्कृति आ सिद्धान्त मध्य कार्य करैत अछि जत्तऽ किछु भाव आ सोच वंचित अछि जे निरन्तरताक विरोध करैए। विखण्डनवाद आ उत्तर आधुनिकता उत्तर संरचनावादक बाद आएल। उत्तर उपनिवेशवाद उपनिवेशक नव रूपकेँ नै मानैए आ अव्यवस्थाक सिद्धांत जेना असफल उद्देश्यकेँ उचित परिणाम नै भेटबाक कारण मानैए।
संरचनावाद दमित करैबला पाश्चात्य व्यवस्था आ समाजपर चोट करैए आ ऐ सँ मार्क्सवादकेँ बल भेटलै (अलथूजर)।
आधुनिकतावादी-स्थिवादी, नव समीक्षा, संरचनावाद आ उत्तर संरचनावादक बाद विखण्डनवाद आ उत्तर आधुनिकतावाद आएल जकरा विलम्बित पूँजीवाद कहल गेल (फ्रेडरिक जेनसन)।
अठारहम शताब्दीमे आधुनिक माने छल जड़विहीन मुदा बीसम शताब्दीक प्रारम्भमे एकर अर्थ प्रगतिवादी भऽ गेल। १९७० ई.क बाद आधुनिक शब्द एकटा सिद्धांतक रूप लऽ लेलक से उत्तर-आधुनिक शब्द पारिभाषिक भेल जकर नजरिमे लौकिक महत्वपूर्ण नै रहल। आधुनिक काल धरिक सभ जीवन आ इतिहास अमहत्वपूर्ण भेल आ खतम भेल। ई सिद्धांत भेल इतिहासोत्तर, विकासोत्तर आ कारणोत्तर। सत्य आ आपसी जुड़ावक महत्व खतम भऽ गेल।
जादुइ वास्तविकतावाद जइमे वास्तविक स्थितिमे जादुइ वस्तुजात घोसिआओल जाइत अछि। स्पेनिश उपन्यासकार गैब्रिअल गार्सिया मार्क्विसक “वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ सोलीट्यूड” आ सलमान रुस्डीक “मिडनाइट्स चिल्ड्रेन” ऐ तरहक उपन्यास अछि। रचनाकार ऐ तरहक प्रयोग क’ वास्तविकताकेँ नीक जकाँ बुझबाक प्रयास करै छथि।
जोसेफ कोनरेड उपन्यासकेँ इतिहास कहै छथि। जोसेफ कोनरेड पोलिश भाषी रहथि मुदा अंग्रेजीक प्रसिद्ध उपन्यासकार छथि जे धाराप्रवाह अंग्रेजी नै बजैत रहथि। रोलेंड बार्थेज कहै छथि जे उपन्यास इतिहास सेहो छी आ उपन्यास इतिहासक विरोध सेहो करैए। रोलेंड बार्थेज फ्रांसक साहित्यिक सिद्धांकार रहथि आ हिनकर लेखनीक प्रभाव संरचनावाद, मार्क्सवादी आ उत्तर संरचनावादी साहित्यिक सिद्धांतपर पड़ल।
उत्तर आधुनिक पाश्चात्य बुर्जुआ दृश्य-श्रव्य मीडियाक प्रयोक कऽ असमता, अन्याय आ वंचितक अवधारणाकेँ मात्र शब्द कहै छथि जे समता, प्राप्ति आ न्यायक लगक शब्द अछि। गरीबी जे पाश्चात्यमे समस्या नै अछि से आइ भारतमे पैघ समस्या अछि। उत्तर आधुनिकता नारीवादक आ मार्क्सवादक विरोधमे अछि आ एकर नारीवाद आ मार्क्सवाद विरोध केलक अछि। जेना ऐतिहासिक विश्लेषणक पक्षमे मार्क्सवाद अछि आ ओइसँ ओ अपन सिद्धांत फेरसँ सशक्त केलक अछि, संरचनावाद-उत्तर-संरचनावा आ उत्तर आधुनिकतावादक परिप्रेक्ष्यमे। मार्क्सवाद लौकिक पक्षपर जोर दैत अछि मुदा तेँ ई उपयोगितावाद आ चार्वक दर्शनक लग नै अछि, कारण उपयोगितावाद आ चार्वकवाद मात्र शारीरिक आवश्यकताकेँ ध्यानमे रखैत अछि। नारीवादी दृष्टिकोण सेहो उत्तर आधुनिकतावादक यथास्थिवादक विरोध केलक अछि कारण यावत से खतम नै होएत ताधरि नारीक स्थितिमे सुधार नै आओत।

मोहनजोदड़ो सभ्यतासँ प्राप्त कांस्य प्रतिमा नृत्यक मुद्राक संकेत दैत अछि, वर्तमान कथक नृत्यक ठाठ मुद्रा सदृश। दहिन हाथ ४५ डिग्रीक कोण बनेने आ वाम हाथ वाम छाबापर। संगहि वाम पएर किछु मोरने। ऋगवेदक शांखायन ब्राह्मणक अनुसार गीत, वाद्य आ नृत्य तीनूक संगे-संग प्रयोगक वर्णन अछि, ऐतरेय ब्राह्मणमे ऐ तीनूक गणना दैवी शिल्पमे अछि। ऋगवेद १०.७६.६ मे उषाक स्वर्णिम आभा कविकेँ सुसज्जित ऋषिक स्मरण करबैत छन्हि। ऋगवेदमे लोक नृत्यक (प्रान्चो अगाम नृतये) सेहो उल्लेख अछि। महाव्रत नाम्ना सोमयागमे दासी सभक (३-६ दासीक) सामूहिक नृत्यक वर्णन अछि। शांखायन १.११.५ मे वर्णन अछि जे विवाहमे ४-८ सुहागिनकेँ सुरा पियाओल जाइत छ्ल आ चतुर्वार नृत्य लेल प्रेरित कएल जाइत छल। वैदिक साहित्यमे विवाह विधिमे पत्नीक गायनक उल्लेख अछि। सीमन्तोन्नयन विधिमे पति वीणावादकसँ सोमदेवक वादयुक्त गान करबाक अनुरोध करैत छथि। अथर्ववेदमे वसा नाम्ना देवताक नृत्य ऋक्, साम आ गाथासँ सम्बन्धित होएबाक गप आएल अछि, सोमपानयुक्त ऐ नृत्यमे गन्धर्व सेहो होइत छलाह, से वर्णित अछि। अथर्ववेद १२.१.४१ मे गीत, वादन आ नृत्यक सामूहिक ध्वनिक वर्णन अछि। वैदिक कालमे साम संगीतक अलाबे गाथा आ नाराशंसी नाम्ना लौकिक संगीतक सेहो प्रचलन छल।
महिला- ऋगवेदमे अपाला,घोषा, श्रद्धा, शची, सार्पराज्ञी, यमी, वैवस्वती, देव जामय, इन्द्राणी, शश्वती, रोमशा, गोधा, उर्वशी, सूर्या, अदिति, नदी, लोपामुद्रा, विश्ववारा, वाक् जुहू, सरमा आ यमी ऐ २१ टा ऋषिकाक वर्णन अछि। देवता माने प्रतिपाद्य विषय नै कि गॉड (जेना ग्रिफिथ केने छथि।) मन्त्रार्थमे महर्षि पतञ्जलिक वैज्ञानिक मन्तव्य “यच्छब्द आह तदस्माकं प्रमाणम्” माने जे शब्द आकि मंत्रक पद कहैत अछि सएह हमरा लेल प्रमाण अछि- एकर अर्थ बादमे वेदे प्रमाण अछि- गलत रूपेँ भेल।

प्लेटो- प्लेटो कहै छथि जे कोनो कला नीक नै भऽ सकैए किएक तँ ई सभटा असत्य आ अवास्तविक अछि। प्लेटोक ई विचार स्पार्टासँ एथेंसक सैन्य संगठनक न्यूनताकेँ देखैत देल विचारक रूपमे सेहो देखल जएबाक चाही। काव्य/ नाटकक ऐ रूपेँ विरोध केलन्हि जे सम्वादकेँ रटि कऽ बाजैसँ लोक एकटा कृत्रिम जीवन दिस आकर्षित होएत।
अरिस्टोटल कविताकेँ मात्र अनुकृति नै मानै छथि, ओ ऐ मे दर्शन आ सार्वभौम सत्य सेहो देखै छथि। ओ नाटकक दुखान्तकेँ आ अनुकृतिकेँ निसास छोड़ैबला कहै छथि जे आनन्द, दया आ भयक बाद अबैत अछि।
सम्वाद दू तरेहेँ भऽ सकैए- अभिभाषण वा गप द्वारा। गपमे दार्शनिक तत्व कम रहत। प्राचीन गीसमे कविता भगवानक सनेस बूझल जाइत छल। एरिस्टोफिनीस नीक आ अधला ऐ दू तरहक कविता देखै छथि तँ थियोफ्रेस्टस कठोर, उत्कृष्ट आ भव्य ऐ तीन तरहेँ कविताकेँ देखै छथि। कविता आ संगीत अभिन्न अछि। मुदा यूरोपक सिम्फोनी जइमे ढेर रास वादन एके संगे विभिन्न लयमे होइत अछि, सिद्धांतमे अन्तर अनलक। यएह सभ किछु नाटकक स्टेज लेल सेहो लागू भेल।
डेरीडाक विखण्डन पद्धति ऊँच स्थान प्राप्त रचना/ लेखक केँ नीचाँ लऽ अनैत अछि आ निचुलकाकेँ ऊपर। रोलेण्ड बार्थेस लिखै छथि जे जखन कृति रचनाकारसँ पृथक भऽ जाइए आ ओकर विश्लेषण स्वतंत्र रूपेँ होमए लगै छै तखन कृति महत्वपूर्ण भऽ जाइए जकरा ओ रचनाकारक मृत होएब कहै छथि।
उत्तर-संरचनावाद संरचनावादक सम्पूर्ण आ सुगठित हेबाक अवधारणाकेँ माटि देलक। सौसरक भाषा सिद्धान्त- बाजब/ लिखब, वास्तविक समएक साहित्य वा ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्यक शब्दशास्त्र, महत्वपूर्ण कोनो कृति वा मनुक्ख अछि/ महत्ता एकटा भाव अछि, वास्तविक समएमे भाषा वा एकर ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य; मुदा एकरा सेहो डेरीडाक विखण्डन सिद्धान्त उल्टा-पल्टा करए लागल।

लिंग एकटा जैव वैज्ञानिक तथ्य अछि मुदा महिला/ पुरुषक सिद्धान्त सामाजिकताक प्रतिफल अछि। महिला सापेक्ष साहित्य कला पुरुष द्वारा निर्मित अछि आ पुरुखक नजरिसँ महिलाकेँ देखैत अछि। साहित्यक नारीवादी सिद्धान्त ऐ समस्याक तहमे जाइए। मिथिलाक सन्दर्भमे महिलाक स्थिति ओतेक खराप नै छै मुदा मैथिली साहित्यक एकभगाह प्रवृत्तिक कारण उच्च वर्गक नारीक खराप स्थिति साहित्यमे आएल। आधुनिकीकरण तथाकथित सामाजिक रूपसँ निचुलका जाति सभमे सेहो नारीक स्थितिमे अवनति अनलक अछि। दोसर एकटा आर गप अछि जे जाति आ धर्म नारीक अधिकारकेँ कैक हीसमे बाँटि देने अछि।

नारीवादी दृष्टिकोण सेहो कहैए जे सभटा सिद्धांत पुरुष द्वारा बनाओल गेल से ओ पूर्ण व्याख्या नै कऽ सकैए। सरल मानवतावाद सिद्धांतक विरुद्ध आएल मुदा ई सेहो एकटा सिद्धांत बनि गेल। सार्थक साहित्यक निर्माण एकर अन्तर्गत भेल।

पोथी समीक्षामे अत्यधिक आलोचनासँ बचबाक चाही। समीक्षककेँ अपन विद्वत्ता प्रदर्शनसँ बचबाक चाही। अत्यधिक आलोचनाक क्रममे लोक अपन विद्वता देखबऽ लगै छथि। आलोचनाक क्रममे संयम रखबाक चाही, खराप शब्दावलीक प्रयोग समीक्षकक खराप लालन-पालन देखबैत अछि। पोथीक बिना पढ़ने समीक्षा अनैतिक अछि। उदाहरणस्वरूप कर्मधारयमे धूमकेतुक विषयमे तारानन्द वियोगी लिखै छथि- मिथिलाक संस्कृतिमे युग-युगसँ प्रतिष्ठापित साम्प्रदायिक सौहार्दकेँ रेखांकित करैत हिनक कथा “नमाजे शुकराना” बहुत महत्वपूर्ण थिक। (कर्मधारय, पृ. १२७) (!) कथाक शीर्ष देखि कऽ ऐ तरहक समीक्षा भेल अछि कारण ऐ कथामे हाजी सैहेबक नमाजक समएमे पिंजराक सुग्गा “सीता...राम...।” बजैए आ सुग्गाक पिंजराकेँ हाजी सैहेब ताधरि महजिदक देबालपर पटकै छथि जाधरि सूगा मरि नै जाइए। सईदा कानऽ लगैए आ कथा खतम भऽ जाइए। आ ई कथा समीक्षकक मतमे साम्प्रदायिक सौहार्दकेँ रेखांकित करैए!
समीक्षककेँ अति प्रशंसासँ सेहो बचबाक चाही। पोथीक समीक्षामे ई देखाओल जएबाक चाही जे ऐ विषयपर लिखल आन पोथीसँ ई पोथी कोन रूपेँ भिन्न अछि, कोना ई पोथी रिक्त स्थलक पूर्ति करैए, पोथीमे की-की छै आ ओइ विषयपर लिखल आन पोथीसँ एकर तुलना हेबाक चाही। पोथीक विस्तारकेँ ध्यानमे राखि समीक्षा हजारसँ दू हजार शब्दमे हेबाक चाही। समीक्षा सम्बन्धित पोथीक हेबाक चाही लेखकक नै। लेखकक दोसर रचनाक विश्लेषणसँ समीक्षाकेँ भरब नीक समीक्षा नै, जे ऐ सभ पोथीसँ समीक्षित पोथीक कोनो सोझ सम्बन्ध हो तखने ओकर प्रयोग करू। मिथिलाक विविध संस्कृति आ इतिहासकेँ देखैत –मैथिली साहित्यक एकभगाह स्थिति विशेष रूपमे- व्यक्तिगत आक्षेपक आ जिला-जबारकेँ ध्यानमे रखबाक सेहो परम्परा रहल अछि। जाति-धर्म आ क्षेत्रीय मैथिली भाषा समीक्षामे कम्मे अबैए मुदा जिला-जवारक/ दोस-महीमक-पड़ोसक आधारपर नीक वा अधलाह समीक्षाक प्रवृत्ति वा आग्रहक भयंकर प्रभाव समीक्षकक मध्य छन्हि।
कोनो खास समीक्षासँ ओइ पोथीपर प्रकाश पड़ैए वा नै से देखू। ई तँ नै अछि जे ओ समीक्षा लेखकपर टिप्पणी कऽ रहल अछि वा लेखकक आन रचनापर- गहींरमे जाएब तँ बूझि जाएब जे समीक्षा पोथी पढ़ि लिखल गेल छै आकि नै। आलंकारिक भाषाक दिल गेल, शब्दक सटीक प्रयोग करू, अनावश्यक शब्द आ पाँतीकेँ निकालू। आत्मकथात्मक पोथीक समीक्षा लेल लेखकक जिनगीपर प्रकाश दऽ सकै छी। पोथीक रूप, रंग आ आवरणक फोटोक समीक्षासँ आगाँ बढ़ू आ पोथीक समीक्षा करू। पोथीमे महिला विरोधी वा जाति-क्षेत्रक बन्हनसँ बान्हल मानसिकताकेँ दूर राखू। पोथी लेखकक नामक वा आवरणक चित्रक अनावश्यक न्यून विश्लेषणसँ अपनाकेँ दूर राखू।

उपन्यासक अंग अछि वातावरणक निर्माण जइमे लेखक कथा कहैत अछि, ओकर पात्र सभक विवरण, कथाक प्रारूप आ तकरा लेल लोकक आ परिस्थितिक वर्णन। ऐ मेसँ कोनो एक टा पक्ष लऽ कऽ अहाँ कथा लिख सकै छी। नाटकमे भावनापूर्ण सम्वाद आ क्रियाकलापक योग रहत। पद्यमे शब्दक प्रयोगसँ चित्रक निर्माण करए पड़त आ लोकक भावनाकेँ उद्वेलित करबा योग्य बनबए पड़त, ऐ लेल कविक वातावरणमे हस्तक्षेपयुक्त सलाहक औचित्य आ ध्वनि-विज्ञानक योग सेहो चाही।

कोनो कृति कोना उत्कृष्ट अछि आ ओइमे की छुटि गेल अछि से समीक्षककेँ देखबाक चाही। ओकर मूल्यांकन एकभगाह नै हेबाक चाही, ओइ रचनामे की संदेश नुकाएल छै, लेखक कोन दिस निर्देशित कऽ रहल अछि से समीक्षककेँ बुझबाक आ लिखबाक चाही। आब प्रश्न उठैए जे समीक्षाक पोथीक समीक्षा कोन हुअए। ऐ मे समीक्षककेँ ओइ पोथीक मुख्य धाराकेँ चिन्हित करबाक चाही।
जे समीक्षा/ निबन्धक पोथीमे कएक तरहक निबन्ध/ समीक्षा अछि आ मारते रास लेखकक रचना संकलित अछि तँ से सोद्देश्य अछि वा निरुद्देश्य से समीक्षककेँ देखबाक चाही।
समीक्षित पोथीक अतिरिक्त ओइ विषयपर आन पोथीक सेहो जत्तऽ धरि सम्भव हो चर्चा होएबाक चाही। अपन विचारधाराकेँ समीक्षित पोथीपर आरोपण नै होएबाक चाही। ओइ पोथीक आजुक समयक सन्दर्भमे की आवश्यकता अछि से देखाऊ। ओइ पोथीक महत्ता कोन रोपमे अछि से देखाऊ, ओकर मुख्य तत्व चिन्हित करू। लेखकक जीवन दर्शन, वास्तविक, काल्पनिक आ आदर्शक सम्बन्धमे ओकर दृष्टि, संदेहकेँ चिन्हित करू। लेखकक लेखनशैलीक कलात्मक पक्ष, ओकर गप कहबाक क्षमता, रचनाक ढाँचा आ ओकर विभिन्न भागकेँ जोड़बाक कलाक चर्चा करू, जेना नीक कमार ठोस आ कलात्मक पलंग बनबैत अछि, तँ दोसर कमारक जोर मात्र ठोस हेबापर होइ छै आ तेसरक कलात्मकतापर, तहिना।
सिद्धान्तक आवश्यकता की छै? सरल मानवतावाद कहैए जे साहित्यक सिद्धान्तक बदलामे रचनाक की मानवीय दृष्टिकोण छै, ओइमे सार्थकता छै आकि नै से सामान्य बुद्धिसँ कएल जा सकैए। अपन बुद्धिक प्रयोग कऽ रचनाक गुणवत्ता अहाँ देखि सकै छी, कोनो साहित्यिक सिद्धान्तक आवश्यकता समीक्षा लेल नै छै। मुदा सरल मानवतावाद स्वयं एकटा सिद्धांत बनि गेल।

काव्यक भारतीय विचार: मोक्षक लेल कलाक अवधारणा, जेना नटराजक मुद्रा देखू। सृजन आ नाश दुनूक लय देखा पड़त। स्थायी भावक गाढ़ भऽ सीझि कऽ रस बनब- आ ऐ सन कतेक रसक सीता आ राम अनुभव केलन्हि (देखू वाल्मीकि रामायण)। कृष्ण भारतीय कर्मवादक शिक्षक छथि तँ संगमे रसिक सेहो।
कलाक स्वाद लेल रस सिद्धांतक आवश्यकता भेल आ भरत नाट्यशास्त्र लिखलन्हि। अभिनवगुप्त आनन्दवर्धनक ध्यन्यालोकपर भाष्य लिखलन्हि। भामह ६अम शताब्दी, दण्डी सातम शताब्दी आ रुद्रट ९अम शताब्दी एकरा आगाँ बढ़ेलन्हि।
रस सिद्धान्त:
भरत:- नाटकक प्रभावसँ रस उत्पत्ति होइत अछि। नाटक कथी लेल? नाटक रसक अभिनय लेल आ संगे रसक उत्पत्ति लेल सेहो। रस कोना बहराइए? रस बहराइए कारण (विभाव), परिणाम (अनुभाव) आ संग लागल आन वस्तु (व्यभिचारी)सँ। स्थायीभाव गाढ़ भऽ सीझि कऽ रस बनैए, जकर स्वाद हम लऽ सकै छी।
भट्ट लोलट:- स्थायीभाव कारण-परिणाम द्वारा गाढ़ भऽ रस बनैत अछि। अभिनेता-अभिनेत्री अनुसन्धान द्वारा आ कल्पना द्वारा रसक अनुभव करैत छथि। लोलट कविकेँ आ संगमे श्रोता-दर्शककेँ महत्व नै दै छथि।
शौनक:- शौनक रसानुभूति लेल दर्शकक प्रदर्शनमे पैसि कऽ रस लेब आवश्यक बुझै छथि, घोड़ाक चित्रकेँ घोड़ा सन बूझि रस लेबा सन।
भट्टनायक कहै छथि जे रसक प्रभाव दर्शकपर होइत अछि। कविक भाषाकेँ ओ भिन्न मानैत छथि। रससँ श्रोता-दर्शकक आत्मा परमात्मासँ मेल करैए। रसक आनन्द अछि स्वरूपानन्द। आ ऐसँ होइत अछि आत्म-साक्षात्कार।
रस सिद्धान्त श्रोता-दर्शक-पाठक पर आधारित अछि। ई श्रोता-दर्शक-पाठकपर जोर दैत अछि।
बार्थेजक संरचनावाद-उत्तर-संरचनावादक सन्दर्भमे लेखकक उद्देश्यसँ पाठकक मुक्तिक लेल लेखकक मृत्युकेँ आवश्यक मानै छथि- लेखकक मृत्यु माने लेखक रचनासँ अलग अछि आ पाठक अपना लेल अर्थ तकैत अछि।
ध्वनि सिद्धान्त:
आनन्दवर्धन ध्वन्यालोक साहित्यक उद्देश्य अर्थकेँ परोक्ष रूपेँ बुझाएब वा अर्थ उत्पन्न करब कहैत छथि। ई सिद्धान्त दैत अछि परोक्ष अर्थक संरचना आ कार्य, रस माने सौन्दर्यक अनुभव आ अलंकारक सिद्धान्त।आनन्दवर्धन काव्यक आत्मा ध्वनिकेँ मानैत छथि। ध्वनि द्वारा अर्थ तँ परोक्ष रूपेँ अबैत अछि मुदा ओ अबैत अछि सुसंगठित रूपमे। आ ऐसँ अर्थ आ प्रतीक दूटा सिद्धान्त बहार होइत अछि। ऐसँ रसक प्रभाव उत्पन्न होइत अछि। ऐसँ रस उत्पन्न होइत अछि। न्याय आ मीमांसा ऐ सिद्धान्तक विरोध केलक, ई दुनू दर्शन कहैत अछि जे ध्वनिक अस्तित्व कतौ नै अछि, ई परिणाम अछि अनुमानक आ से पहिनहियेसँ लक्षणक अन्तर्गत अछि। आ से सभ शब्द द्वारा वर्णित होएब सम्भव नै अछि।

स्फोट सिद्धांत:
भर्तृहरीक वाक्यपदीय कहैत अछि जे शब्द आकि वाक्यक अर्थ स्फोट द्वारा संवाहित अछि। वर्ण स्फोटसँ वर्ण, पद स्फोटसँ शब्द आ वाक्य स्फोटसँ वाक्यक निर्माण होइत अछि। कोनो ज्ञान बिनु शब्दक सम्बन्धक सम्भव नै अछि। ई भारतीय दर्शनक ज्ञान सिद्धान्तक एकटा भाग बनि गेल। अर्थक संप्रेषण अक्षर, शब्द आ वाक्यक उत्पत्ति बिन सम्भव अछि। स्फोट अछि शब्दब्रह्म आ से अछि सृजनक मूल कारण। अक्षर, शब्द आ वाक्य संग-संग नै रहैए। बाजल शब्दक फराक अक्षर अपनामे शब्दक अर्थ नै अछि, शब्द पूर्ण होएबा धरि एकर उत्पत्ति आ विनाश होइत रहै छै। स्फोटमे अर्थक संप्रेषण होइत अछि मुदा तखनो स्फोटमे प्राप्ति समए वा संचारक कालमे अक्षर, शब्द वा वाक्यक अस्तित्व नै भेल रहै छै। शब्दक पूर्णता धरि एक अक्षर आर नीक जकाँ क्रमसँ अर्थपूर्ण होइए आ वाक्य पूर्ण हेबा धरि शब्द क्रमसँ अर्थपूर्ण होइए।सांख्य, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा आ वेदान्त ई सभ दर्शन स्फोटकेँ नै मानैत अछि। ऐ सभ दर्शनक मानब अछि जे अक्षर आ ओकर ध्वनि अर्थकेँ नीक जेकाँ पूर्ण करैत अछि। फ्रांसक जैक्स डेरीडाक विखण्डन आ पसरबाक सिद्धान्त स्फोट सिद्धान्तक लग अछि।
अलंकार सिद्धान्त:
भामह अलंकारकेँ समासोक्ति कहै छथि जे आनन्दक कारण बनैए। दण्डी आ उद्भट सेहो अलंकारक सिद्धान्तकेँ आगाँ बढ़बै छथि। अलंकारक मूल रूपसँ दू प्रकार अछि, शब्द आ अर्थ आधारित आ आगाँ सादृश्य-विरोध, तर्कन्याय, लोकन्याय, काव्यन्याय आ गूढ़ार्थ प्रतीति आधारपर। मम्मट ६१ प्रकारक अलंकारकेँ ७ भागमे बाँटै छथि, उपमा माने उदाहरण, रूपक माने कहबी, अप्रस्तुत माने अप्रत्यक्ष प्रशंसा, दीपक माने विभाजित अलंकरण, व्यतिरेक माने असमानता प्रदर्शन, विरोध आ समुच्चय माने संगबे।
औचित्य सिद्धान्त:
क्षेमेन्द्र औचित्यविचारचर्चामे औचित्यकेँ साहित्यक मुख्य तत्व मानलन्हि। आ औचित्य कतऽ हेबाक चाही? ई हेबाक चाही पद, वाक्य, प्रबन्धक अर्थ, गुण, अलंकार, रस, कारक, क्रिया, लिंग, वचन, विशेषण, उपसर्ग, निपात माने फाजिल, काल, देश कुल, व्रत, तत्व, सत्व माने आन्तरिक गुण, अभिप्राय, स्वभाव, सार-संग्रह, प्रतिभा, अवस्था, विचार, नाम आ आशीर्वादमे।
कंपायमान अछि ई ब्रह्माण्ड आ ई अछि कंपन मात्र। कविता वाचनक बाद पसरैत अछि शान्ति, शान्ति सर्वत्र आ शान्ति पसरैत अछि मगजमे।
(साभार विदेह www.videha.co.in )

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