Saturday, December 24, 2011

हम पुछैत छी: शिखर पुरुष श्री गोविन्द झा जीसँ मुन्नाजीक भेल मुखोतरिक अंश

११ दिसम्बर २०११ केँ विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी सम्मान पं. गोविन्द झा जीकेँ पटनामे श्री मुन्नाजी देलन्हि। बहुआयामी व्यक्तित्वक शिखर पुरुष श्री गोविन्द झा जीसँ मुन्नाजीक भेल मुखोतरिक अंशसँ अहाँ सभक जनतब कराएल जा रहल अछि।

मुन्नाजी: विदेह सम्मान [विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी फेलो पुरस्कार २०१० श्री गोविन्द झा (समग्र योगदान लेल)] लेल बधाइ। मैथिली भाषा साहित्यक वर्तमान परिदृश्य की अछि। एकरा मरबासँ बचेबामे अखनुक विदेह साहित्य आन्दोलन कतेक कारगर सिद्ध भऽ रहल अछि।
पं. गोविन्द झा: स्थिति पहिने एकभगाह सन छल। आब सभ तुरक आ सभ जातिक रचनात्मक प्रवेशे ई भाषा चिरायु वा ई कही जे अमरत्वकेँ प्राप्त करबाक सामर्थ्यवान भेल देखाइए।

मुन्नाजी:मैथिली कथा साहित्य भारतीय अन्यान्य कथा साहित्य मध्य कतऽ टिकल अछि। एकर सम्भावना केहेन देखाइए?
पं. गोविन्द झा: ई संतुष्टि दैबला बात अछि जे मैथिलीमे अखन सभ प्रकारक कथा आबि रहल छै। ओना मैथिलीमे हमरा जनतबे नारा साहित्यक प्रचलन रहल। मोन कहियो साम्यवादी तँ कहियो नारी केन्द्रित कथा एवं आलेख बेशी देखना जाइए। मुदा एकोटा नारी कल्याणक लेल सशक्त नै अछि। अही सभ कारणे मैथिली कथा भारतीय स्तरकेँ नै प्राप्त कऽ सकल। आगू ऐमे विकेन्द्रीकरणक सम्भावना देखा पड़ैए।

मुन्नाजी: वर्तमान मैथिली नाटकक की स्तर अछि। कोन नाटककार ऐ स्तरकेँ प्राप्त केने बुझाइत छथि?
पं. गोविन्द झा:मैथिलीकेँ आम जनतासँ जोड़बाक साधन अछि प्रदर्शन। आ जकर मुख्य माध्यम अछि नाटक। वर्तमानमे नाटकक स्तर कमतर अछि। आब लोक पैघ नाटक देखबासँ अगुताइ-ए।ऑडियेन्स सटिस्फाइड नै भऽ पबैए किएक तँ नाटकमे कोनो मोड़ नै अबै अछि। रचना सभ नारी सशक्तिकरणक उल्लेख करैए मुदा नारीक सही चित्रण नै दैए। बसात नारी केन्द्रित पहिल मैथिली नाटक छल। जकरा देखियौ आइयो प्रासंगिक अछि। थियेटरक नाटक तकनीकी दृष्टिए ऊपर गेल अछि। मुदा गाममे नाटक देखबा लेल आइयो लोकक संख्या हजारक करीब भऽ जाइए। “अन्तिम प्रणाम” नाटकक प्रदर्शनमे गाममे ५००० लोक जुटल छल।
आब आवश्यकता छै उच्च कोटिक कथा सभक नाट्यरूपान्तरणक, जइमे मैथिली बहुत पछुआएल अछि। जखन की आन सभ भाषामे ई काज खूब भऽ रहल अछि। वर्तमानमे जे नाटककार अपन भाषाक श्रेष्ठता साबित कऽ रहल छथि ओ छथि, महेन्द्र मलंगिया आ अरविन्द अक्कू।
मुन्नाजी: भाषिक रूपमे मैथिलीक वर्तमान स्थिति की अछि? की ऐमे ह्रास वा क्षीणता एलैए?
पं. गोविन्द झा: भाषाक स्तरपर बहुत फर्क एलैए, आबक लोक पढ़ैए कम, लिखऽ चाहैए बेशी। रचनाकारक शब्द सामर्थ्य घटि रहल छै। नवका धियापुता अंगरेजिया भऽ रहल छै। तखन तँ मैथिलीक दुर्दशा स्वाभाविके छै।

मुन्नाजी: मैथिलीमे आब विहनि कथा धुरझार लिखा रहल अछि। एकर वर्तमान अस्तित्व आ सम्भावना की देखाइछ?
पं. गोविन्द झा: विहनि कथा पूर्ण रूपेँ कविताक समकक्ष अछि। आ वर्तमानमे ठोस कविता आंगुरपर गनबा जोकरक अछि। तखन लघुकथो बुझनिहार कमे छथि। हँ नव लिखनिहार बढ़ल-ए। तेँ एकर भविष्य नीक भऽ सकैए।
मुन्नाजी: नवतुरिया रचनाकारक लेल कोनो सनेस?
पं. गोविन्द झा:नव लेखक सभ पहिने अध्ययन तखन अभ्यास, तखन लेखनी करताह तँ अवश्य सफल हेताह।
(साभार विदेह www.videha.co.in )

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