Friday, December 23, 2011

गुवाहाटीमे "विद्यापति स्मृति पर्व समारोह" आइ २३ दिसम्बर २०११ केँ ५ बजे अपराह्णसँ शुरू/ जगदीश प्रसाद मण्डलजी क उद्बोधन भाषण भेल



मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समिति द्वारा गुवाहाटीमे आयोजित "विद्यापति स्मृति पर्व समारोह" स्थान: प्राग्ज्योतिष आइ.टी.ए. सेन्टर, माछखोवा, गुवाहाटी  आइ २३ दिसम्बर २०११ केँ ५ बजे अपराह्णसँ शुरू भेल/
ऐ अवसरपर विशेष अतिथि छथि डॉ. श्रीमती प्रेमलता मिश्र "प्रेम" आ सम्माननीय अतिथि छथि श्री जगदीश प्रसाद मण्डल।
जगदीश प्रसाद मण्डलजी क उद्बोधन भाषण भेल जे नीचाँ देल जा रहल अछि।

जगदीश प्रसाद मण्डल
जगदीश प्रसाद मण्डलजी क उद्बोधन भाषण:-
सभसँ पहि‍ने ऐ पर्व समारोहक सहयोगी आ मि‍थि‍ला सांस्‍कृति‍क समन्‍वय समि‍ति‍केँ धन्‍यवाद दैत छि‍यनि‍ जे मि‍थि‍ला आ कामरूपक बीच युग-युगसँ प्रवाहि‍त होइत जीवन धाराकेँ जीवि‍त रखने छथि‍। संगहि‍ आगूओ एहि‍ना लहड़ाइत धाराकेँ जीवि‍त रखताह, से आशा करैत छी।
कामरूप आ मि‍थि‍लाक बीच संबंध कहि‍यासँ शुरू भेल, एकर नि‍श्चि‍त ति‍थि‍ तँ नै बुझल अछि‍, मुदा सहस्रो सालसँ जीवन धारा बनि‍ प्रवाहि‍त होइत आबि‍ रहल अछि‍, ई कहैमे कनि‍योँ मनमे संकोच नै अछि‍। जे कामरूप कहि‍यो प्राग्‍ज्‍योति‍ष कहल जाइत छल भरि‍सक तहि‍येसँ। ओना इति‍हासक वि‍द्यार्थी नै रहने इति‍हास पढ़लो नै अछि‍। भऽ सकैत अछि‍ जे जहि‍ना मि‍थि‍लाक संपूर्ण इति‍हास लि‍खि‍नि‍हारक अभाव रहल अछि‍ तहि‍ना भाषोक हुअए। मुदा दुनूक बीच प्रगाढ़ संबंध बनल चलि‍ आबि‍ रहल अछि‍, ऐमे कतौ दू-राइ नै अछि‍। जखन बच्‍चे रही तहि‍यो बूढ़-बूढ़ानुसक मुँहे सुनैत रही जे फल्‍लां कामरूपक सि‍ख छथि‍। ततबे नै मि‍थि‍लावासीक लेल कामरूप कामाख्‍या, अदौसँ तीर्थ-स्‍थल बनल चलि‍ आबि‍ रहल अछि‍, आगूओ चलैत रहत। जहि‍ना बंगालक गंगासागर, दक्षि‍णेश्वर, उड़ीसाक कोणार्क आ जगरनाथ मद्रासक श्वेतबान रामेश्वर, कन्‍याकुमारी, गुजरातक द्वारि‍का, राजस्‍थानक पुष्‍कर पंजावक स्‍वर्ण मंदि‍र, कश्मीरक वैश्‍णोदेवी-अमरनाथ, उत्तरांचलक बद्रीनाथ, हरि‍द्वार उत्तर प्रदेशक काशी, वि‍न्‍घ्‍यांचल मथुरा-वृन्‍दावन इत्‍यादि‍ रहल अछि‍, तहि‍ना। जइ समए गाड़ी-सवारीक अभाव छल तहू समए छल।
शंकरदेवक पारिजातहरण  रामविजय , दैत्यारि ठाकुरक श्यामन्तहरण यात्रा आ  लक्ष्मीदेवक कुमारहरण नाट (शतस्कन्ध रावण वध), ई सभ अंकियानाट मैथिलीक आरम्भिक नाटक अछि आ असमक ऐ ऋणसँ हम सभ कहियो उऋण नै भऽ सकै छी।

गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदानक बीच बसल मि‍थि‍लो आ कामरूपोक रहने उपजा-बाड़ीसँ लऽ कऽ जि‍नगीक आनो-आनो संबंध सहज अछि‍। जहि‍ना कामरूप तलहटी मैदानसँ लऽ कऽ पहाड़-पठार, वनक संग प्रवाहि‍त होइत जलधारासँ सम्‍पन्न अछि‍ तहि‍ना बि‍‍हारो अछि‍। बंगालक खाड़ीसँ उठैत माैनसुनसँ जहि‍ना कामरूपक भूमि‍ सि‍ंचि‍त होइत तहि‍ना मि‍थि‍लांचलोक। ओना मुँहपर पड़ने कामरूपमे अधि‍क आ जेना-जेना पछि‍म मुँहेँ ससरैत तेना-तेना कम होइत जाइत, मुदा दुनूक बीच नजदीकी रहने बहुत बेसी अंतर नै पड़ैत। गंगा-ब्रह्मपुत्रक एक तलहटी रहने माटि‍यो आ माइटि‍क सुगंधोकेँ एकरंगाह बनौने अछि‍। उत्तरी पहाड़सँ नि‍कलैत (नदी धारा) जल धारो एक-रंगाहे रहल अछि‍। जइठाम जेहन माटि‍-पानि‍ तइठाम तेहन उपजा-बाड़ी। जइठाम जेहन उपजा-बाड़ी तइठाम तेहने खानो-पान आ आचारो-वि‍चार। जइठाम जेहन खान-पान, आचार-वि‍चार तइठाम तहि‍ना कला-सांस्‍कृति‍क संबंध। जे दुनूक बीच अदौसँ रहल अछि‍। ओना, खेती-बाड़ीमे एक-रूपतो अछि‍ आ भि‍न्नतो। अधि‍क मध्‍यम बर्षा भेने, पनि‍सहू फसि‍लो आ फलो-फलहरीमे अन्‍तर होइत, से अछि‍यो। जइ कामरूपमे नारि‍यल, सुपारी, चाहक बहुतायत अछि‍ ओ मि‍थि‍लांचलमे कम अछि‍। ओना मि‍थि‍लांचलमे ि‍सर्फ आम हजारो कि‍स्‍मक अछि‍। मुदा पटुआ आ धान जहि‍ना कामरूपक मुख्‍य फसि‍ल अछि‍ तहि‍ना मि‍थि‍लोक। मुदा जहि‍ना नीलक नव अवि‍ष्‍कार भेने नीलक खेती मारल गेल तहि‍ना पोलीथि‍नक आगमनसँ पटुआक खेती प्रभावि‍त भेल अछि‍।
मि‍थि‍लाक उर्वर भूमि। जहि‍ना माटि‍-पानि‍ तहि‍ना स्‍वच्‍छ हवो। जइसँ सभ कथूक वृद्धि‍। चाहे ओ खेती हुअए आकि‍ जीवन पद्धति‍ हुअए आकि‍ कला-संस्‍कृति‍। मि‍थि‍लांचलक चि‍न्‍तन धारामे ि‍सर्फ उच्‍चकोटि‍क मनुष्‍ये नै उच्‍च कोटि‍क समाज आ सामाजि‍क-पद्धति‍क सेहो दि‍शा-दर्शन रहल अछि‍। जन-गणक नगर जनकपुर। आ जनकपुरक राजा जनक। जनि‍क कन्‍या जगत जननी जानकी। एक-सँ-एक चि‍न्‍तक, तत्ववेत्ता, दार्शनि‍क मि‍थि‍ला भूमि‍ पैदा केने अछि‍‍। जेकर वानगी इति‍हास-पुराण जीवि‍त अछि‍।

जहि‍ना सौंसे देश गुलामीक शि‍कंजामे हजारो बर्खसँ रहल तहि‍ना देशक उत्तर-मध्‍य बसल मि‍थि‍लो अछि‍। ओना मि‍थि‍ला दू देशमे बटल अछि‍। साठि‍-पेइसठि‍ बर्ख पहि‍ने भारत स्‍वतंत्रताक साँस लेलक जहन कि‍ नेपालक मि‍थि‍ला हालमे साँस लेलक। जहि‍ना अभावी परि‍वारमे अभावक चलैत जीवनक सभ कि‍छु प्रभावि‍त होइत, तहि‍ना भेल। जीवन-पद्धति‍मे खोंट अबैत-अबैत खोंटाह होइत गेल अछि‍। जेकर असरि‍ अधलाह पड़ैत गेल। मुदा तैयो मि‍थि‍लाक वएह भूमि‍ छी जे अदौसँ रहल।
मि‍थि‍लांचलक उर्वर भूमि‍ रहने मनुष्‍योक बाढ़ि‍ सभ दि‍नसँ रहल, अखनो अछि‍ आगूओ रहत। कतबो मि‍थि‍लावासी पड़ाइन (पलायन) केलनि‍, दुनि‍याँक कोन-कोनमे बसलाह अछि‍, तैयो मि‍थि‍लाक जनसंख्‍या पर्याप्‍त अछि‍ये। जइसँ गरीबी रहल अछि‍। एक दृष्‍टि‍ये देखलासँ जहि‍ना पर्याप्‍त जनसंख्‍या अछि‍ तहि‍ना प्रचुर सम्‍पत्ति‍यो अछि‍। मुदा दुनूक संयोगमे भि‍न्नता अछि‍। जइसँ दुनूक बीच भारी खाधि‍ बनि‍ गेल अछि‍। जि‍नकर गाम ति‍नकर सम्‍पत्ति‍ नै आ जि‍नकर सम्‍पत्ति‍ ति‍नकर गाम नै। जइसँ मुट्ठी भरि‍ पूर्ण सम्‍पत्ति‍ हथि‍यौने छथि‍। जेकर ज्‍वलंत उदाहरण पड़ाइन (पलायन) अछि‍।

गरीबीक चलैत मि‍थि‍लावासी आइये नै पूर्वहि‍सँ नेपाल, बंगाल, अासाम धरि‍ रोजी-रोटीक लेल जाइत रहल छथि‍। पटुआ काटब, धान रोपब, धान काटब हुनका सबहक मुख्‍य कार्य छलनि‍। सालक छह मास ओ सभ कमाइ छलाह। मुदा ओइसँ पैघ-पैघ उपलब्‍धि‍ सेहो भेटल। अपना संग अपन भाषो, कलो-संस्‍कृत लेनौं अबैत छलाह आ लैयो जाइत छलाह जइसँ दुनूक बीचक संबंधमे प्रगाढ़ता अबैत रहल। एकठाम रहने दुनूक बीच सभ तरहक संबंध बनैत रहल आ अखनो प्रवाहमान धारा सदृश्‍य बहि‍ रहल अछि‍। तँए ऐ पावन अवसरपर समन्‍वय समि‍ति‍ संग वि‍द्योपति‍केँ कोटि‍श: नमस्‍कार!

पूर्वाचल आ मि‍थि‍ला, दुनूक बीच व्‍यापारि‍क संबंध सेहो अदौसँ रहल अछि‍। गाए-महि‍ंसिक व्‍यापार चलैत रहल अछि‍। संग-संग कलाकारक संग कलाक आदान-प्रदान सेहो चलैत रहल अछि‍। अखनो मि‍थि‍लाक श्रमि‍कक बीच जते पूर्वाचलक भाषा पसरल अछि‍ ओते मध्‍य आ उच्‍च परि‍वारक बीच नै अछि‍।
वि‍द्यापति‍ पर्व समारोहक ऐ पावन असवरपर वि‍द्यापति‍केँ ि‍सर्फ मि‍थि‍ले-मैथि‍ल कहब हुनका संग अन्‍याय करब हएत। हुनका आत्‍माकेँ ठेस पहुँचतनि‍। ओ युग-पुरूष छलाह। भाषा-साहि‍त्‍यक अपन धारा अछि‍। जइ धाराक मध्‍य ओ अखनो ठाढ़ छथि‍। वैदि‍क भाषा जखन जन-गणक बीच अपन साहि‍त्‍यि‍क धारा पकड़लक, तहि‍येसँ समाजमे एक नव समाज उठि‍ कऽ ठाढ़ भेल। ओ बढ़ैत-बढ़ैत कालि‍दास धरि‍ अबैत-अबैत सोझा-सोझी ठाढ़ भऽ गेल। मुदा जि‍नगीक लेल भाषा-अनि‍वार्य, तँए जन-गणक बीच पालि‍ भाषा उगल। तहि‍ना आगू बढ़ैत- प्राकृत, अपभ्रंश होइत अवहट्ठमे पहुँच गेल।
अवहट्ठक सीमानपर वि‍द्यापति‍ अपन कीर्तिलता लऽ कऽ ठाढ़ छथि‍। जइमे जन-गणक आत्‍मा झलकि‍ रहल छन्‍हि‍। ओना ओ संस्‍कृतक प्रगाढ़ पंडि‍त छलाह, जे हुनक रचनामे झलकि‍ रहल अछि‍, ओ उगना सन संगीक संग रहैत छलाह। जे उगना गंगाजल पहुँचबैत छलनि‍। एक भांग पीसैमे मस्‍त तँ दोसर पीब-पीब मस्‍त! एहनठाम हटलासँ, वि‍द्यापति‍ पत्नि‍योसँ झगड़ा कऽ उगना लेल नि‍ष्‍काम प्रेम धारा नै बहाबथि‍, से केहन होएत।
अंतमे, जहि‍ना अदौसँ एक-दोसर सटल रहलौं तहि‍ना आगूओ सटि‍ चलैत रही, यएह शुभ-कामना। एहेन-एहेन पर्व आरो नम्‍हर भऽ भऽ मनाओल जाइत रहए, यएह शुभेच्‍छा!

जय-मैथि‍ली! जय मि‍थि‍ला!!, जय कामरूप! जय भारत!! जय मानव!!!

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जगदीश प्रसाद मण्‍डल

    

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