Tuesday, December 13, 2011

विदेह गोष्ठी: मैथिली साहित्यमे हास्य आ व्यंग्यपर परिचर्चा

विदेह गोष्ठी:  (०६ आ  ०७ अगस्त २०११ आ  १३आ  १४   अगस्त  २०११ केँ  मैथिली साहित्यमे हास्य आ व्यंग्यपर अन्तिम परिचर्चा आ तकर सन्दर्भमे  प्रैक्टिकल  लैबोरेटरीक प्रदर्शन निर्मली, जिला सुपौलमे भेल। ओतए ढेर रास  हास्य आ व्यंग्यकार उपस्थित रहथि। तकर बाद किछु आलेख आ रचना डाक आ ई मेलसँ सेहो आएल। तकर संक्षिप्त विवरण नीचाँ देल जा रहल अछि।)

प्रेमशंकर सिंह
व्‍यंग्‍यसम्राट हरिमोहन झा (1908-1984) क प्रसिद्ध प्रहसन बौआक दाम (1946) अछि।


भाषाक धनी मणिपद्य अपन विचार-वल्‍लरीक प्रत्‍याख्‍यानमे शब्‍दक एहन अनुपम विन्यास कयलनि जे हुनक भाषामे छन्द रूप आ सुस्‍वादता अछि जे पाठकक संग हुनक व्‍यवहार, सौजन्‍य, आसक्ति आ हास्‍य-व्‍यंग्‍यक बोध होइछ आ जगक संग ओकर व्‍यवहारमे राग ओ दूरदर्शी काल्‍पनिकताक पुट भेटैछ। ओ तथ्‍यपूर्ण भाषाक प्रयोग कयलनि। उपर्युक्‍त रचनादिमे भाषा-काव्‍यमयी अछि जे स्‍थल-स्‍थलपर ओ अनुप्रास, उपमा, उत्‍प्रेक्षा आ रूपकक झड़‍ी लगा देलनि जे हिनक एहि साहित्‍यक अनुपम उपलब्धि थिक।


बीसम शताब्‍दीक विगत पाँच दशकसँ मैथिली साहित्‍यक गतिविधिपर दृष्टिनिक्षेप कयनिहार सर्वाधिक चर्चित साहित्‍य-मनीषीमे जनिक गणना जाइत छनि ओ छथि अग्रगण्‍य साहित्‍य-चिन्‍तक, सशक्त कवि, उपन्‍यासकार, कथाकार, एकांकीकार, प्रहसनकार, इतिहासकार अनुवादक, सम्‍पादक, ओ आलोचकक रूपमे विशिष्‍ट स्‍थान रखनिहार चन्‍द्रनाथ मिश्र अमर (1925)। हिनक वास्‍तविक प्रतिभाक प्रस्‍फुटन भेल हास्‍य-व्‍यंग्‍यसँ संयुक्‍त काव्‍य-सृजनसँ। एही कारणेँ मैथिली पाठकक सर्वाधिक चर्चित व्‍यक्ति रूपमे ख्‍याति अर्जित कयलनि। तथापि हुनक जतबहि एकांकी ओ प्रहसन अद्यापि उपलब्‍ध भ रहल अछि ओहि आधारपर हुनका श्रेष्‍ट एकंाकीकार ओ प्रहसनकारक रूपमे गणना कयल जाय तँ एहिमे कोनो अत्‍युक्ति नहि। हिनक वैशिष्‍ट्य एहि विषयकेँ ल कए अछि जे ओ एकांकी ओ प्रहसनमे जँ गंगा-यमुनाक धारा प्रवाहित कयलनि अछि तँ ओहिमे हास्‍य-व्‍यंग्‍यक लुप्त सरस्‍वती सेहो दृष्टिगत होइत अछि जे हिनक रचना धार्मियताक वैशिष्टय थिक।

गजेन्द्र ठाकुर 


व्यंग्य हैकू पद्यक विषय नहि अछि, एकर विषय अछि ऋतु। जापानमे व्यंग्य आ मानव दुर्बलताक लेल प्रयुक्त विधाकेँ "सेर्न्यू" कहल जाइत अछि आ एहिमे किरेजी वा किगो केर व्याकरण विराम नहि होइत अछि।



“देखियौ तँ। एतेक टाक अपन भारत आ छोट सन देश सभसँ हारि जाइए। कखनो काल ओना जितितो अछि। क्रिकेटे टा नै यौ, ओहो, आनो खेल सभमे देखू ने।”

“औ बाबू। क्रिकेट, फुटबॉलमे देश पैघ रहने थोड़बे होइ छै। पूरा देश मिलि कऽ थोड़बे खेलाइ छै। यौ, एगारहे टा ने खेलाड़ी खेलेतै यौ। आ से पैघ देश रहौ आकि छोट देश।”

“मुदा पैघ देशमे ११ टा खेलाड़ी चुनबा काल नीक आ तेजगरकेँ नै चुनल हएत की? ”
“नीक आ तेजगर चुनबा में सेहो झमेला अछि। आब दक्षिण अफ्रीकाकेँ लिअ। जखन ओतऽ रंगभेद रहै तखन खाली गोरका खेलाड़ी चुनल जाइ छलाह। आब रंभेद खतम भेल तँ बीच में कारी खेलाड़ी सेहो चुनल जाए लगलाह। मुदा जखन टीम हारऽ लागल तँ पता लागल जे उल्लिखित रूपमे ई निर्णय लेल गेल छल जे अदहा कारी आ अदहा गोर खेलाड़ी चुनल जएताह। आब भारतेकेँ लिअ। उत्तर-दक्षिण, पूब-पच्छिम आ मध्य सन कतेक क्षेत्रसँ बराबर मात्रामे खेलाड़ी चुनल जाइत छथि। पहिने जे टीम रणजी ट्राफी जितै छल तकर ढेर रास खेलाड़ी टीम में आबि जाइ छलाह। आ आब साहित्यमे सेहो ई प्रवृत्ति आएल अछि।”
“साहित्यक गप कतऽ घोसिया देलियै मीत भाइ।”
मीत भाइ चुनौटी निकालै छथि, एक कातसँ अहगरसँ तमाकुर झाड़ै छथि आ फेर चुनौटीक दोसर भागसँ आंगुरसँ चून बहार करै छथि आ तरहत्थीपर राखल तमाकुरमे मिज्झर करै छथि। जखन तमाकुर आ चूनक गधमिसान उठै अछि तखन नोसि झाड़ैत तमाकुरकेँ ठोढ़क नीचाँ दाबि दै छथि।

“हौ, सभ गप मिलै छै। मैथिली साहित्यकेँ लैह। साहित्य आगाँ बढ़ि गेल मुदा समीक्षक ओतै ठाढ़ छथि, माने पछुआ गेल छथि। आब साहित्यकारकेँ लैह। लोक आ समाज आगाँ बढ़ि गेल मुदा साहित्यकार ओतै ठाढ़ छथि, माने पछुआ गेल छथि।”
“मुदा अहाँ तँ सभकेँ एक्के संगे डाङि दै छिऐ। अपवाद तँ सेहो होइ छै।”
“हौ, अपवाद तँ बेसी चीजमे होइ छै। आ जतऽ नहियो छै ओतौ सम्भावना रहै छै जे अपवाद भऽ सकै छै भविष्यमे। मुदा अपवादक डरे की निअम बनेनाइ छोड़ि दियौ हौ।”
“हँ, से तँ ठीके।”
“आब मैथिली साहित्यमे आउ। दछिनाहा, पछिमाहा तँ कहल जाइ छै मुदा उतराहा, पुबाहा सुनने छहक?”
“नै, से तँ नै सुनने छिऐ।”
“आब सुनै छिऐ पटनाबला ग्रुप, दिल्लीबल ग्रुप, कलकत्ताबला ग्रुप, जनकपुरबला ग्रुप आ दरभंगाबला ग्रुप सभ सेहो छै।”
“मुदा जनकपुर आ दरभंगाकेँ छोड़ि ई आन नग्र सभ तँ मिथिलासँ बाहर छै मीत भाइ।”
“हौ, सएह ने कहै छिअह। आब पटनाबला ग्रुपमे सभ पटनाक लोक थोड़बे छै। किछु पटनाक लोक दरभंगाबला ग्रुपमे आ किछु कलकत्ताबला ग्रुपमे सेहो छै।”
“माने मात्र नामकरण छै।”
“नै हौ। नामकरण छै आ संख्याक बहुलताक आधारपर ई नामकरण छै।”
“मुदा मीत भाइ। जइ रचनामे जान रहतै तँ बिन ग्रुपोक बात सुनल जेतै ने।”
“हौ, मिथिलाक क्षेत्रफल तँ थोड़ छै। मुदा तैयो ग्रुप छै, किए छै से ने बुजहक।”
“से किए छै मीत भाइ।”
“हौ, गाममे रहै छह तँ एक्के गाममे कएकटा फाँट नै देखै छहक।”
“से तँ ई पंचायती चुनाव देखार कैये देने छै।”
“आब पंचायती चुनावकेँ दोष देबहक। हौ, प्रवृत्ति होइ छै। गाममे जातिक मध्य ग्रुप होइ छै।”
“आ जे एकछाहा होइ, मैथिली साहित्य जकाँ, तखन?”
“तखन तँ आरो ग्रुप होइ छै। माने ब्राह्मणमे देखहक। एकहरे, दलिहरे, सरिसवे खांगुर। चर्चा कऽ कए देखहक तखन पता चलतह। सरिसवे खांगुर कहतह जे एकहरेसँ बेसी धूर्त आर कियो नै आ एकहरे कहतह जे सरिसवे खाङुर बड्ड मारुख। यादवमे कृष्णौठ आ गरेड़ी आ वैश्यमे मारवाड़ी (बाहरी) आ देसवाल (एतुक्का स्थानीय), तहिना धानुकमे मगहिया आ देसिल। हौ, कतेक गनेबह। परुकाँ साल गन्धबरिया आ चौहानी राजपूतक बीच झमेला नै मोन छह। दियाराक बनौत आ गंगा दियाराक गंगौत अलगे संगठन छै।”
“तँ की हम सभ खण्ड-पखण्ड भऽ गेल छी।”
“नै हौ। तोरा कहलियह जे ई प्रवृत्ति होइ छै। आब आगाँ आबह। गाम छोड़ि झंझारपुर आबि जाह तँ सौंसे गौआँ एक। झंझारपुर छोड़ि दरभंगा आबि जाह तँ सौँसे जिला एक। दरभंगासँ पटना आबि जाह तँ सौँसे मिथिला एक। दिल्ली, कोलकाता, काठमाण्डू चलि जाह तँ सौँसे बिहार आ मधेस एक बुझेतह। हिन्दीमे नै देखै छहक, बिहारी लेखकक संगठन, मध्य प्रदेशक लेखकक संगठन; सहित्य क्षेत्रमे हौ।”
“माने एक हेबा लेल दूर गेनाइ जरीरू छै।”
“नै हौ, सेहो नै। बात फेर वएह छै। साहित्य समाजक दर्पण हेबाक चाही, मुदा ओ पछुआ गेल छै हौ। आगाँक बदला पाछाँ जा रहल छै हौ।”

मीत भाइ तमाकुर थुकरै छथि।

“ई बुझू जे लोक तँ जुड़ल अछि मुदा साहित्यकार सभ नै जुड़ल छथि। हुनका सम्मान चाही आ तै लेल ओ राजनीतिज्ञ बनि गेल छथि, मैथिलीकेँ खण्ड-पखण्ड करबामे लागल छथि। आ से होइ छै ऐ छोट होइत जाइत भाषाक भौलिक क्षेत्रमे! सहरसा, सुपौल, जनकपुर, मधुबनी, दरभंगासँ बढ़ि कऽ पटना, दिल्ली, कलकत्ता आ आब प्रिन्ट आ इन्टरनेटक साहित्य मध्य सेहो ई लोकनि अन्तर करऽ चाहै छथि।”
“इन्टरनेट साहित्य मध्य सेहो अन्तर! से किए मीत भाइ।”
“फेर वएह गप। प्रवृत्ति होइ छै हौ। हमरा लोकनिक एकटा सांसद भारतीय संसदमे भाखड़ा नांगल परियोजनामे पनबिजली निकालबाक योजनाक विरोध केने छलाह।”
“से किए मीत भाइ?”
“प्रवृत्ति होइ छै हौ, जखन तोहर साहित्यकार आ राजनेता समाजसँ पछुआ जेतह तखन यएह सभ ने हेतह। आब सुनह ओ विरोध किए केने रहथिन्ह। हुनकर मानब रहन्हि जे पानिसँ जे बिजली निकालि लेल जाएत तँ किसानकेँ साबुत पानि नै भेटतै आ ओइसँ जे पटौनी हेतै तइसँ पुरकस फसिल नै हेतै।”
“आब बुझलहुँ मीत भाइ। अन्तर्जालक साहित्यक विरोध पछुआएल साहित्यकार लोकनिक अज्ञानता देखबैत अछि।”
“देखार तँ लोक भैये जाइ अइ ने हौ।”

तावत मीत भाइ लेल अंगनासँ भांगक गोला अबै छन्हि आ हम बिदा होइ छी। ठामे गोनर भाइ भेटै छथि।
“ई मितबा की सभ भाषण-भाख दै छल। बड्ड चिक्कन गप-सप होइ छै ओकर। मुदा लोक दू नमरी अछि। भरि टोलसँ केस-फौदारी लड़ि रहल अछि, पोखरिक केस तँ बान्हक केस। आ अपन माए-बापकेँ तँ बड्ड मारै छलै। मएकेँ तँ एक बेर टेटर उठि गेल छलै।”
“मुदा गप्प-सप्प तँ ठीके कहै छलाह।”
“तँ कोन नव गप कहै छलाह। हमहूँ कने काल बान्हपर लगही करबाक बहन्ने बिलमि गेल छलहुँ। ओ जे गप करै छल से ककरा नै बुझल छै यौ।”
“हँ, से तँ सत्ते।”
हम पुछै छियन्हि- “मुदा मीत भाइ जे अहूँक विषयमे सएह कहथि तखन?”
“हौ, हमरा कोन बौस्तुक कमी अछि। मास्टरी करै छी। छह हजार नौ सए निनानबे टका दरमाहा अछि। ओइमे एक टका जोड़ि कऽ सात हजार टका सभ मास बैंकमे जमा कऽ दै छिऐ। आ से बीस बर्खसँ कऽ रहल छी, खेती-बाड़ीसँ गुजर करै छी। अपन बापक बेटा नै होइ जे ओइ जमा पाइसँ एकटा नवका पाइ निकालने होइ। लड़काबला लग जाइ छी, कन्यादान जे कपारपर अछि, तँ बैसैये नै दैए। की, तँ मास्टर छिऐ, कतऽसँ पाइ एतै। रौ, बाजै जो ने जे कत्ते पाइ चाही। ऐ कल्लर मीत भाइ जकाँ ठोड़बे हौ, जे भरि दिन भांग पीबि गप्प छँटैत रहैए।”

बुझा पड़ल जे मीत भाइ गप्प सुनि लेने छलखिन्ह, से हमरा दुनू गोटेकेँ सोर केलन्हि। मुदा गोनर भाइ बहन्ना बना आगाँ ससरि गेलाह।

मीत भाइ बजलाह- “हे ई की कहैए जे लड़काबला बैसैए नै दैए। से कोना बैसऽ दै जेतै। तेसुरकाँ हम एकटा कुटमैती कऽ देलिऐ। सभ चीज गछि लेलकै आ जखन बियाह भऽ गेलै तँ देबा काल की कहै छै बुजलहक। ... ’हमरा की मोन अछि जे ओइ धुनिमे की गछलियन्हि आ की नै, लड़काबला जे सभ कहैत गेलाह हम हँ, हँ करैत गेलियन्हि।’... आ जखन गछलाहा मोने नै छै तँ देतन्हि की कपार। आ से दोसर लड़काबलाकेँ बुझल छै, आ तखन के ओकरा बैसऽ देतै। आ हमर खिधांश करैए, धन हम जे एकटा कुटमैती भेलै।”

मीत भाइ तामसे पएर झटकारैत आंगन दिस बिदा होइ छथि आ हम गुम्म भेल ठाढ़ रहि जाइ छी।

1 comment:

  1. हरिमोहन झा के हास्य व्यंग कथा के शामिल करू

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