हम पुछैत छी : विदेह ई-पत्रिकाक सहायक सम्पादक श्री मुन्नाजीक संग रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”क बातचीतक अंश:
मुन्नाजी: रामभरोस जी नमस्कार।
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”: नमस्कार।
मुन्नाजी: अपने अपन साहित्यिक यात्राक प्रारम्भिक परिदृश्यक विवेचनमे की कहए चाहब?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”: मुन्नाजी, हम जाहि परिवारसँ आएल छी ओ धन-वीत्तमे समाजमे अग्रणी तँ छल, मुदा भाषा, साहित्यक ओतऽ नामोनिशान नै छलै। बाबूजी गाम विकास समितिक मुखिया, प्रधान पंच होइत रहलाह, क्षेत्रमे नीक प्रतिष्ठा, नाम छलनि। मुदा घरमे पत्र-पत्रिका, पुस्तक पढ़बाक माहौल नहि छलै। ताहुमे मैथिली!
जखन हमरा दुनू भाइकेँ बघचौरासँ जनकपुरक हाई स्कूलमे शिक्षाक हेतु पठाओल गेल, तखन स्थिति बदललैक। हमरा पत्र-पत्रिका पढ़बाक लत लागल, रुचि बढ़ल आ तखन किछु लिखी से मनमे होबऽ लागल। हमर सम्पर्क डॉ. धीरेन्द्रसँ भेल जे रा.रा.कैम्पसमे मैथिली पढ़बैत छलाह। हुनका संगतिसँ लेखन दिश सक्रियता बढ़ल। ओना हम अपन पहिल कथा “इमानदार बालक” हिन्दीमे लिखने रही आ डॉ. धीरेन्द्रकेँ देखौने रहियनि। ओ तत्काल हमरा अपन भाषा मैथिलीक प्रति आकर्षित करौलनि आ तकर अनुवाद कऽ लएबा लेल कहलनि। हम कथाक अनुवाद मैथिलीमे कऽ देलियनि, जकर शुद्धि करैत काल एक्को पंक्ति एहन नहि छल जाहिमे लाले लाल नहि लागल होइ। जखन उतारि कऽ देलियनि तँ हुनक चिट्ठीक संग मिहिरमे पठा देबाक लेल कहलनि जे कथा नेना भुटकाक चौपाड़िमे १९६४ ई. मे छपल। तहिया हमर उमेर १३ वर्षक छल। बस, तकरा बाद हमर साहित्यिक यात्रा जे चलल, आइ धरि निरन्तर जारी अछि। एखन धरि विभिन्न विधाक तीससँ ऊपर पुस्तक प्रकाशित भऽ चुकल अछि।
मुन्नाजी: साहित्यक अतिरिक्त अहाँ आर कोन गतिविधिसँ जुड़ल रलौं अछि?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”: हमर प्राथमिक झुकाउ साहित्ये दिश रहल। खूब लिखलौं- खूब आनन्दित भेलौं। दोसर हम पत्रकारितामे सेहो निरन्तर लागल छी। नेपालक पहिल मैथिली समाचारपत्र “गामघर साप्ताहिक”क विगत तीस वर्षसँ सम्पादन-प्रकाशन कऽ रहल छी। एहि विच “अर्चना”, “आंजुर” मासिक, द्वैमासिक, सेहो निकाललहुँ। एकर अतिरिक्त सामाजिकशोध संस्थामे सेहो सक्रिय रहलहुँ।
मुन्नाजी: मैथिली साहित्यक परिधि छोट आ सीमित अछि। मुदा ऐ भाषाक रचनाकार सभ अपने कुकुर कटाउझ करैत पाओल जाइत छथि। ई समस्या किएक उत्पन्न होइत अछि आ एकर निदान की?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”: मैथिली भाषा, साहित्यक क्षेत्रमे लाभक अवसर कम छैक। जे छै तकरा अपना दिश कोना हँसोथल जाए, एहि फिराकमे मित्रगण सभ लागल रहैत छथि। एक आर्थिक लाभक लोभ, दोसर अपन वर्चस्व कायम रखबाक लौल- दुनू कुकुर कटाउझक कारण मानल जा सकैछ। निदान कहब कठिन- ई स्वभाव, प्रकृति आ आचरणसँ सम्बद्ध छैक। धैर्य राखब मात्र एकर उपाय थिक।
मुन्नाजी: देखल जाइत अछि जे सामान्यतः मैथिलीमे दू चारिटा रचना वा एक दुइ साल रचनाक पछाति एकटा पत्रिका निकालि ओ रचनाकार स्वयंकेँ सम्पादक घोषित कऽ दैत छथि। वास्तवमे सम्पादनक की मानदण्ड अछि आ ओइपर कतेक सम्पादक अटकल रहि पबैत छथि?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”: ई-प्रश्न मोनकेँ गदगद कऽ देलक। साँच बात इहो छैक- एखन मैथिलीमे ई समस्या बड़ जोड़ पकड़ने अछि। दू चारिटा कथा, कविता लिखने, छपने अपनाकेँ साहित्यक सिरमौर बुझबाक भ्रम सभतार होइछ। दशकूंक लगानीकेँ छाउर बूझि मुँहक फुकसँ उड़िया देबाक भयावह आत्मरति भाव मैथिली लेखनक सहज परम्पराकेँ भ्रमित कऽ रहलैक अछि। सम्पादन स्वयंमे एकटा कला छै, विज्ञान छैक। एक-आध अंक बहार कऽ अपनाकेँ सम्पादक काह मठोमाठ बनने हमरा जनैत ताही प्रतिभाक हेतु नोक्शानीक बात छैक। सुधांशु शेखर चौधरी, डॉ. हंसराज, डॉ. भीमनाथ झा, बाबू साहेब चौधरी, कृष्णकान्त मिश्र, डॉ. सुधाकान्त मिश्र, डॉ. धीरेन्द्र, सम्प्रतिमे रामलोचन ठाकुर आदि किए सम्पादक कहौलनि! अहाँ मानदण्डपर अटकलक बात करै छी, पत्रिकाक कए गोट अंकपर ओ अटकल रहि पबैत छथि?
मुन्नाजी: नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक प्राज्ञ भऽ प्रतिष्ठासँ केहन अनुभव कऽ रहल छी, ऐसँ जीवन आ लेखनमे केहन परिवर्तन आएल अछि, की जीवन आ लेखनमे ई सहायक भेल अछि?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर: निश्चय प्रज्ञा प्रतिष्ठानमे प्राज्ञ भऽ आएब हमर सपना रहए। कोनो साहित्यकारक हेतु ई सभसँ उच्च सम्मान छैक। हम नेपाल सरकारक एकरा लेल आभारी छी। एहिसँ हमर जीवन शैलीमे किछु परिवर्तन तँ भेबे कएल अछि। हम जनकपुरमे रहैत छलहुँ, आब काठमाण्डूमे रहऽ पड़ैत अछि। हम स्वतंत्र, खुशफैल रहऽ बला लोक, आब नियमित ऑफिस जाए पड़ैत अछि। मुदा स्वतंत्र आ आह्लादकारी काज तँ छैहे प्रतिष्ठानमे। लेखनमे कोनो फरक नै, बस बेसी जगजिआर भेल अछि। पत्रकारिता बस लेखनकेँ बाधित करैत छल। हम काठमाण्डू अएलाक तीन वर्षमे छः गोट पुस्तक प्रकाशित कऽ सकलहुँ आ दर्जनों निबन्ध, कथा, कविता, नाटक आदि।
मुन्नाजी: नेपाली साहित्य मध्य मैथिली साहित्यक केहेन जुड़ाव छैक? आ दुनू भाषा मध्य कोन साहित्य बेशी समृद्ध अछि आ किएक?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर: नेपाली आ मैथिली अपन-अपन बाटपर चलैत अछि। एक राज्योपोषित रहलै, दोसर साहित्यकार पोषित। प्राचीन साहित्य मैथिलीक, लेखनमे समृद्ध नेपाली।
मुन्नाजी: मैथिलीक सीमामे फाँट कएल (नेपाल आ भारत) साहित्यिक गतिविधिक तुलनात्मक परिदृश्ये कतुक्का साहित्यक केहेन दशा-दिशा देखा पड़ैए?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर: भारतीय साहित्यकार, ओतुक्का साहित्यिक प्रतिष्ठान, सरकारी वा गएर सरकारी एहि तरहक फाँट-बखरा कऽ कऽ रखने अछि। एम्हरका लोक साहित्य अकादमीक पत्रिका, पुरस्कार, लेखन, गोष्ठीमे सामेल नहि कएल जाइत छथिनेपालमे तेहन कोनो बन्देज नै छैक। प्रज्ञा प्रतिष्ठानक कार्यक्रममे हमहीं निरन्तर बजबैत छिऐन्हि, डॉ. प्रफुल्ल कुमार सिंहक “नेपालक मैथिली साहित्यक इतिहास” नेपालक अर्ध सरकारी प्रकाशन संस्था साझा प्रकाशन छपलक अछि। हँ, ओम्हरका साहित्यक लेखन परम्परा निरन्तर चलैत रहल- समृद्ध अछि। प्राचीनताक दृष्टिएँ, ऐतिहासिक उपलब्धिक दृष्टिएँ नेपाल ओम्हरसँ समृद्ध अछि। “वर्णरत्नाकर”, सिद्ध साहित्य, मल्ल काल, सभ मैथिली साहित्यक आधार थिकै- ज्कर स्रोत नेपाले अछि।
मुन्नाजी: वर्तमानमे अपन गतिविधि कोन दिशामे जारी अछि? साहित्यिक-सांस्कृतिक कोनो अग्रिम योजना अछि?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर: एखन प्रज्ञामे लागल छी। देखू, साझा प्रकाशनमे अध्यक्ष भऽ कऽ तँ ओ मात्र नेपालीक पुस्तक छपैत छल, हम मैथिलीक शुरुवात कएलहुँ। एक बालपोथी “बगियाक गाछ”, दोसर “मैथिली साहित्यक इतिहास”। प्रज्ञामे पहिल बेर साधारण सदस्य भऽ आएल रही तँ पहिल बेर मैथिलीक पत्रिका बहार कएलहुँ “आंगन”। जे एहि बेर अएलाक बाद हमरे सम्पादनमे निरन्तर प्रकाशित अछि। एखनो बेसीसँ बेसी मैथिली दिश ध्यान दितो हमर विभाग “संस्कृति विभाग” सम्पूर्ण देशक हेतु देखैत अछि। तथापि जट जटिन, सलहेस, दीनाभद्रीक लोकगाथा, नृत्य संयोजन, संकलन, ऑडियो विडियोग्राफीक सुरक्षित कऽ देने छिऐक। हम ग्रन्थक रूपमे बहार करबाक नियारमे छी। मैथिलीमे एम्हर नाट्य क्षेत्रमे किछु नव संस्था, कलाकार सभ अपन प्रतिभा देखौलनि अछि, हम हुनका सभकेँ उचित मंच भेटौक ताहि दिश प्रयत्नरत छी।
मुन्नाजी: साहित्य लेखक एवं सम्पादकक नव तूरकेँ की सनेस देबऽ चाहब?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर: जे लिखथि मोनसँ लिखथि। अपनेसँ अपन मूल्यांकन नहि करथि। अपन अग्रज साहित्यकारक सम्मान करथि। सम्पादक महज लौलसँ अथवा अपनाकेँ स्थापित देखएबा लेल नहि करथि। एहिसँ अपन पूर्वूक छविकेँ धुमिल भऽ जएबाक डर होइछ।
मुन्नाजी: साहित्य मध्य साहित्यकारक राजनीतिक उठापटककेँ अहाँ कोन परिप्रेक्ष्यमे देखै छी? की साहित्यकारक लेल ऐ प्रकारक क्रियाकलाप उचित अछि?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर: हमरा लगैत अछि शुरुएक प्रश्नमे किछु बात आबि गेल अछि। साहित्यकारकेँ राजनीतिसँ दूरे रहने नीक। मुदा कतेको अवस्थामे ई सम्भव नहि बुझाइत छै। पटना आ दरभंगाक साहित्यिक मंचपर राजनीतिकर्मीक वर्चस्व एकर प्रमाण अछि।
मुन्नाजी: शुरूहेसँ मैथिली भाषा पिछड़ल जातिक धरोहरि जकाँ रहल अछि। मुदा साहित्य मध्य (रचनाकारक रूपेँ) ओइ वर्गकेँ अवडेरि कऽ (कतिया कऽ) राखल गेल। की ऐसँ भाषाक हीनता आएल अछि? वा ई भाषा मृत्यु शय्या धरि पहुँचि गेल अछि। अहाँक नजरिये की कहब ऐपर?
रामभरोस कापड़ि “भ्रमर: ई प्रश्न हमरा जनैत मैथिली भाषा, साहित्यक क्षेत्रमे सभसँ अहम अछि।
मैथिली भाषाकेँ संस्कृत जकाँ “हम्मर भाषा” कहि विगत डेढ़-दू सय वर्षसँ अपन पोथी-पतरामे जाँति कऽ रखनिहार मुट्ठी भरि वर्ग नब्बे प्रतिशत बजनिहारकेँ एकरासँ दुरे रखबाक काज कएलनि। आब जखन ई जपाल भऽ गेल छन्हि तँ भाषाक विस्तारीकरणमे लागल छथि। एखनो मैथिलीक मंचपर नमूनाक हेतु किछु गोटे अभरताह, मुदा तकर पुछ कोन रूपेँ? साहित्यमे कतेक चर्च? गोलैसी कऽ कात करबाक, नीचाँ देखएबाक कोन प्रयत्न छुटल अछि? एहिमे कोन सन्देह जे जे वर्ग मात्र मैथिलीएटा बजैत अछि, तकर भाषा छीनि कऽ अहाँ महन्थ बनल छिऐ, आ अपने अंग्रेजी, हिन्दी, नेपाली बजैत समाजमे रोब दैत छिऐ। परिणाम तँ साफ छै,- एहि बेरका जनगणनामे नेपालमे मैथिलीक ठामपर मगही, बज्जिका लिखाओल गेलैए। किछु लाख तँ अबस्से बजनिहारक संख्या कम भेल हएतै। लिखौनिहारक साफ तर्क छलै, ई भाषा हमर अछिए नहि, ई तँ…।
हमरा सन लोक एहिमे लागल छी, स्वयं हम एकर प्रतिपादमे किछु जिल्ला घुमलहुँ। मुदा हमरा सभकेँ अपवाद बुझैत अछि। आ जे नाटक एखनो धरि कएल जा रहल छैक, ताहिसँ मोन हमरो सभक दग्ध अछि औ मुन्नाजी! किएने मैथिलीक पुस्तक बिकाइए, पत्रिका बिकाइए? जे लेखक सएह पाठक! हमरा लगैत अछि- आब सम्हरबोक समय नहि अछि! ई भाषा मृत्यु धरि पहुँचि गेल अछि से हम नहि कहब, मुदा कए खाढ़ीमे विभक्त आ छिन्न-भिन्न धरि अवश्य भऽ गेल अछि। जकरा जोड़बाक ककरो ने रुचि छैक आने पलखति! तखन?!
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रामभरोस कापड़ि "भ्रमर" पहिल रचना प्रकाशित हेबा कालक फोटो |
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साभार विदेह www.videha.co.in )