Wednesday, November 30, 2011

मैथिलीक दोसर विकीलीक्स: VINIT UTPAL's RTI application dated 23.09.2011 (file no. RTI-125) and sought information on "Assignment assigned by Maithili Advisory Board, Sahitya Akademi under convenership of Sri Vidyanath Jha 'Vidit'. The information include proposal received, proposal rejected and proposal kept in abeyance."- विनीत उत्पलक रिपोर्ट

मैथिलीक पहिल विकीलीक्स- आशीष अनचिन्हारक साहित्यिक वर्णसंकरता।

आब प्रस्तुत अछि मैथिलीक दोसर विकीलीक्स...



RTI application dated 23.09.2011 (file no. RTI-125) and sought information on"Assignment assigned by Maithili Advisory Board, Sahitya Akademi under convenership of Sri Vidyanath Jha 'Vidit'. The information include proposal received, proposal rejected and proposal kept in abeyance." 

RTI application dated 23.09.2011 (file no. RTI-125) and sought information on"Assignment assigned by Maithili Advisory Board, Sahitya Akademi under convenership of Sri Vidyanath Jha 'Vidit'. The information include proposal received, proposal rejected and proposal kept in abeyance." 

RTI application dated 23.09.2011 (file no. RTI-125) and sought information on"Assignment assigned by Maithili Advisory Board, Sahitya Akademi under convenership of Sri Vidyanath Jha 'Vidit'. The information include proposal received, proposal rejected and proposal kept in abeyance." 

RTI application dated 23.09.2011 (file no. RTI-125) and sought information on"Assignment assigned by Maithili Advisory Board, Sahitya Akademi under convenership of Sri Vidyanath Jha 'Vidit'. The information include proposal received, proposal rejected and proposal kept in abeyance." 

RTI application dated 23.09.2011 (file no. RTI-125) and sought information on"Assignment assigned by Maithili Advisory Board, Sahitya Akademi under convenership of Sri Vidyanath Jha 'Vidit'. The information include proposal received, proposal rejected and proposal kept in abeyance." 

RTI application dated 23.09.2011 (file no. RTI-125) and sought information on"Assignment assigned by Maithili Advisory Board, Sahitya Akademi under convenership of Sri Vidyanath Jha 'Vidit'. The information include proposal received, proposal rejected and proposal kept in abeyance." 

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RTI application dated 23.09.2011 (file no. RTI-125) and sought information on"Assignment assigned by Maithili Advisory Board, Sahitya Akademi under convenership of Sri Vidyanath Jha 'Vidit'. The information include proposal received, proposal rejected and proposal kept in abeyance." 

RTI application dated 23.09.2011 (file no. RTI-125) and sought information on"Assignment assigned by Maithili Advisory Board, Sahitya Akademi under convenership of Sri Vidyanath Jha 'Vidit'. The information include proposal received, proposal rejected and proposal kept in abeyance." 

RTI application dated 23.09.2011 (file no. RTI-125) and sought information on"Assignment assigned by Maithili Advisory Board, Sahitya Akademi under convenership of Sri Vidyanath Jha 'Vidit'. The information include proposal received, proposal rejected and proposal kept in abeyance." 

RTI application dated 23.09.2011 (file no. RTI-125) and sought information on"Assignment assigned by Maithili Advisory Board, Sahitya Akademi under convenership of Sri Vidyanath Jha 'Vidit'. The information include proposal received, proposal rejected and proposal kept in abeyance." 

RTI application dated 23.09.2011 (file no. RTI-125) and sought information on"Assignment assigned by Maithili Advisory Board, Sahitya Akademi under convenership of Sri Vidyanath Jha 'Vidit'. The information include proposal received, proposal rejected and proposal kept in abeyance." 


साहित्य अकादेमीक रिकोमेन्डेशनक आधार (?वंशवाद) आ निरस्तीकरणक चिट्ठी! घरक खेती!!

साहित्य अकादेमीक चाटुकारिता लिंक
http://esamaad.blogspot.in/2012/01/blog-post_14.html



२६ अगस्त २०१२ अपडेट:
रामदेव झाक बेटा विजयदेव झा जइ नम्बरसँ फोनपर उमेश मण्डलकेँ धमकी देलक से लोकेशन ट्रेस कऽ लेल गेल अछि


-रामदेव झाक बेटा विजयदेव झा जइ नम्बरसँ फोनपर धमकी देलक से लोकेशन ट्रेस कऽ लेल गेल अछि

-फोन नम्बर +91-9470369195- location-Bihar- signalling GSM- longitude 26.11346972320883 latitude 85.27224719999998
-BIHAR & JHARKHAND- Operator : BSNL- Signaling :CDMA



पूर्वपीठिका:

-रामदेव झाक बेटा विजयदेव झा द्वारा फोन नम्बर +९१९४७०३६९१९५ सँ उमेश मण्डलकेँ धमकी

-उमेश मण्डलकेँ देख लेबाक आ उठा लेबाक धमकी देलक विजयदेव झा

-हालेमे साहित्य अकादेमी बाल साहित्य पुरस्कारमे प्रौढ़ साहित्यपर पुरस्कार ओकर पितयौत भाइ मुरलीधर झा केँ देल गेल, जकर घोर विरोध भऽ रहल अछि

-विजयदेव झा गाड़ि-गलौज सेहो केलक

-विजयदेव झा सुभाष चन्द्र यादव, प्रियंका झा, प्रीति ठाकुर, उदय नारायण सिंह नचिकेता, उमेश मण्डल, सभकेँ गरियेलक

-ओ ईहो कहलक जे प्रीति ठाकुरकेँ बाल साहित्य पुरस्कार नै देल गेल, तेँ सभ विरोध कऽ रहल अछि

-विजयदेव झा कहलक जे प्रीति ठाकुरकेँ ऐ जन्ममे ओ सभ साहित्य अकादेमी पुरस्कार नै प्राप्त करऽ देतै

रामदेव झाक बेटा आ विद्यानाथ झा विदितक जमाएक भाइ विजयदेव झा


Monday, November 28, 2011

सुनल जाओ मैथिलीमे सामाचार २८ नवंबर २०११ (साभार जानकी एफ.एम., जनकपुर)

मैथिली विकीपीडिया/ गूगल ट्रान्सलेट आ तिरहुता यूनीकोडक अद्यतन जानकारी (साभार विदेह: गजेन्द्र ठाकुर)

[सूचना: १. कैथी आ मिथिलाक्षर दुनू लिपिकेँ यूनीवर्सल कैरेक्टर सेट (यूनीकोड) मे एनकोड करबाक अंशुमन पाण्डेय द्वारा देल आवेदन स्वीकृत भಽ गेल अछि। आब ई दुनू लिपिक यूनीकोड फॉन्ट बनेबाक क्रिया क्यूमे लागि गेल अछि आ जखन एकर सभक बेर एतै ऐ दुनू लिपिक आधारभूत फॉन्ट बनेबाक क्रिया शुरू भऽ जाएत। मिथिलाक्षरक आधारभूत फॉन्टक नाम तिरहुता रहत (जेना देवनागरीक आधारभूत फॉन्टक नाम मंगल आ बांग्लाक आधारभूत फॉन्टक नाम वृन्दा अछि)। मिथिलाक्षरक फॉन्ट लेल तेसर बेर संशोधित आवेदन देल गेल रहए, दोसर आ तेसर आवेदनमे विदेहक योगदानक विस्तृत चर्चा भेल अछि, यथा- [Figure 11: Excerpt from a Maithili e-journal published as PDF (from Videha 2011: 22; Videha: A fortnightly Maithili e-journal. Issue 80 (April 15, 2011), Gajendra Thakur [ed]. http://www.videha.co.in/ ."Gajendra Thakur of New Delhi graciously met with me and corresponded at length about Maithili, offered valuable specimens of Maithili manuscripts, printed books, and other records, and provided feedback regarding requirements for the encoding of Maithili in the UCS."-Anshuman Pandey.] ।
सूचना: २. गूगल मैथिली: गूगल लैंगुएज टूल-
http://www.google.com/transconsole/giyl/chooseProject
अपन योगदान गूगल ट्रांसलेट लेल करू, आ कएल सम्पादन बदलबा काल कारण मे (अंग्रेजीमे) "बिहारी" नाम्ना कोनो भाषा नै हेबाक चर्चा करू। ऐ लिंकपर अनुवाद करू; गूगल एकाउंट सँ लॉग इन केलाक बाद । 
http://www.google.com/transconsole/giyl/chooseActivity?project=gws&langcode=bh
ऐ लिंक http://www.google.co.in/language_tools?hl=en केँ मैथिलीक उपलब्धता लेल चेक करैत रहू।

सूचना: ३.विकीपीडिया मैथिली:
मीडियाविकीक २६०० संदेश अंग्रेजीसँ मैथिलीमे विदेहक सदस्यगण द्वारा अनूदित कऽ देल गेल अछि। आब http://translatewiki.net/wiki/Special:Translate?task=untranslated&group=core-mostused&limit=2000&language=mai  ऐ लिंकपर Group मे जा कऽ ड्रॉपडाउन मेनूसँ अ-अनूदित मैसेज अनूदित करू। जँ अहाँ विकीपीडियाक ट्रान्सलेटर नै छी तँ http://translatewiki.net/wiki/Project:Translator ऐ लिंकपर मैथिलीमे ट्रान्सलेट करबाक अनुमतिक लेल अनुरोध दियौ, ऐ सँ पहिने ओतै ऊपरमे दहिना कात लॉग-इन (जँ खाता नै अछि तँ क्रिएट अकाउन्ट) कऽ आ प्रेफरेन्समे भाषा मैथिली लऽ अपन प्रयोक्ता खाताक लिंककेँ क्लिक कऽ अपन प्रयोक्ता खात पन्ना बनाउ। किछु कालमे अहाँकेँ ट्रान्सलेट करबाक अनुमति भेट जाएत। तकरा बाद अनुवाद प्रारम्भ करू।
http://translatewiki.net/wiki/Project:Translator

http://meta.wikimedia.org/wiki/Requests_for_new_languages/Wikipedia_Maithili


http://translatewiki.net/wiki/Special:Translate?task=untranslated&group=core-mostused&limit=2000&language=mai

http://incubator.wikimedia.org/wiki/Wp/mai

http://translatewiki.net/wiki/MediaWiki:Mainpage/mai 
विदेहक तेसर अंक (१ फरबरी २००८)मे हम सूचित केने रही- “विकीपीडियापर मैथिलीपर लेख तँ छल मुदा मैथिलीमे लेख नहि छल,कारण मैथिलीक विकीपीडियाकेँ स्वीकृति नहि भेटल छल। हम बहुत दिनसँ एहिमे लागल रही आ सूचित करैत हर्षित छी जे २७.०१.२००८ केँ (मैथिली) भाषाकेँ विकी शुरू करबाक हेतु स्वीकृति भेटल छैक, मुदा एहि हेतु कमसँ कम पाँच गोटे, विभिन्न जगहसँ एकर एडिटरक रूपमे नियमित रूपेँ कार्य करथि तखने योजनाकेँ पूर्ण स्वीकृति भेटतैक।” आ आब जखन तीन सालसँ बेशी बीति गेल अछि आ मैथिली विकीपीडिया लेल प्रारम्भिक सभटा आवश्यकता पूर्ण कऽ लेल गेल अछि विकीपीडियाक “लैंगुएज कमेटी” आब बुझि गेल अछि जे मैथिली “बिहारी नामसँ बुझल जाएबला” भाषा नै अछि आ ऐ लेल अलग विकीपीडियाक जरूरत अछि। विकीपीडियाक गेरार्ड एम. लिखै छथि  ( http://ultimategerardm.blogspot.com/2011/05/bihari-wikipedia-is-actually-written-in.html  )
-“ई सूचना मैथिली आ मैथिलीक बिहारी भाषासमूहसँ सम्बन्धक विषयमे उमेश मंडल द्वारा देल गेल अछि- उमेश विकीपीडियापर मैथिलीक स्थानीयकरणक परियोजनामे काज कऽ रहल छथि, ...लैंगुएज कमेटी ई बुझबाक प्रयास कऽ रहल अछि जे की मैथिलीक स्थान बिहारी भाषा समूहक अन्तर्गत राखल जा सकैए ?..मुदा आब उमेश जीक उत्तरसँ पूर्ण स्पष्ट भऽ गेल अछि जे “नै”। ”
रामविलास शर्माक लेख (मैथिली और हिन्दी, हिन्दी मासिक पाटल, सम्पादक रामदयाल पांडेय) जइमे मैथिलीकेँ हिन्दीक बोली बनेबाक प्रयास भेल छलै तकर विरोध यात्रीजी अपन हिन्दी लेख द्वारा केने छलाह , जखन हुनकर उमेर ४३ बर्ख छलन्हि (आर्यावर्त १४/ २१ फरबरी १९५४), जकर राजमोहन झा द्वारा कएल मैथिली अनुवाद आरम्भक दोसर अंकमे छपल छल। उमेश मंडलक ई सफल प्रयास ऐ अर्थेँ आर विशिष्टता प्राप्त केने अछि कारण हुनकर उमेर अखन मात्र ३० बर्ख छन्हि। जखन मैथिल सभ हैदराबाद, बंगलोर आ सिएटल धरि कम्प्यूटर साइंसक क्षेत्रमे रहि काज कऽ रहल छथि, ई विरोध वा करेक्शन हुनका लोकनि द्वारा नै वरन मिथिलाक सुदूर क्षेत्रमे रहनिहार ऐ मैथिली प्रेमी युवा द्वारा भेल से की देखबैत अछि?
उमेश मंडल मिथिलाक सभ जाति आ धर्मक लोकक कण्ठक गीतकेँ फील्डवर्क द्वारा ऑडियो आ वीडियोमे डिजिटलाइज सेहो कएने छथि जे विदेह आर्काइवमे उपलब्ध अछि।

TIRHUTA UNICODE
See the final UNICODE Mithilakshara Application (May 5, 2011) by Sh. Anshuman pandey http://std.dkuug.dk/JTC1/SC2/WG2/docs/n4035.pdf at Page 23 the Videha 80th issue (Tirhuta version) is attached"Figure 11: Excerpt from a Maithili e-journal published as PDF (from Videha 2011: 22" and at Page 12 Videha is included in References Videha: A fortnightly Maithili e-journal. Issue 80 (April 15, 2011), Gajendra Thakur [ed]. http://www.videha.co.in/. and role of Videha's editor is acknowledged on Page 12 "Gajendra Thakur of New Delhi graciously met with me and corresponded at length about Maithili, offered
valuable specimens of Maithili manuscripts, printed books, and other records, and provided feedback regarding requirements for the encoding of Maithili in the UCS." ]

विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी सम्मान २०१२-१३: ऐ बेरुका प्रक्रिया प्रारम्भ -(साभार विदेह: गजेन्द्र ठाकुर)

विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी सम्मान २०१२-१३: ऐ बेर ई प्रक्रिया पछिला बेर जकाँ पुनः प्रारम्भ कएल जा रहल अछि। ३१ दिसम्बर २०११ धरि ऐपर विचार आमंत्रित अछि। रचना आ रचनाकारपर अपन प्रतिक्रिया अही थ्रेडक कमेन्ट बॉक्समे दी से आग्रह।
विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी फेलो पुरस्कार २०१२-१३ :ऐ लेल श्री राजनन्दन लाल दास, श्री डॉ. अमरेन्द्र आ श्रे चन्द्रभानु सिंहक नामक प्रस्ताव हम दऽ रहल छी। हिनकर सभक समग्र योगदानपर पाठकसँ टिप्पणीक संग कोनो आन नाम जे ओ देबए चाहथि, आमंत्रित अछि।
विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी मूल पुरस्कार -१२ : ऐ लेल श्री बेचन ठाकुरक “बेटीक अपमान आ छीनरदेवी”(दूटा नाटक), श्री राजदेव मण्डलक “अम्बरा” (कविता-संग्रह), श्रीमती शेफालिका वर्माक “किस्त-किस्त जीवन (आत्मकथा), श्रीमती आशा मिश्रक “उचाट” (उपन्यास), श्री उदय नारायण सिंह “नचिकेता”क “नो एण्ट्री:मा प्रविश (नाटक), श्रीमती विभा रानीक “भाग रौ आ बलचन्दा” (दूटा नाटक), श्री सुभाष चन्द्र यादवक “बनैत बिगड़ैत” (कथा-संग्रह), श्रीमती पन्ना झाक “अनुभूति” (कथा संग्रह) आ श्री महेन्द्र मलंगियाक “छुतहा घैल” (नाटक)क नामक प्रस्ताव हम दऽ रहल छी। हिनकर सभक समग्र योगदानपर पाठकसँ टिप्पणीक संग कोनो आन नाम जे ओ देबए चाहथि, आमंत्रित अछि। ई पोथी सभ २००८, २००९ वा २०१० मे प्रकाशित हेबाक चाही।

विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी बाल साहित्य पुरस्कार -१२ : ऐ लेल हम श्री जगदीश प्रसाद मण्डल जीक “तरेगन”(बाल-प्रेरक कथा संग्रह), आ मुरलीधर झाक “पिलपिलहा गाछ”क नामक प्रस्ताव हम दऽ रहल छी। हिनकर सभक समग्र योगदानपर पाठकसँ टिप्पणीक संग कोनो आन नाम जे ओ देबए चाहथि, आमंत्रित अछि। ई पोथी सभ २००६सँ २०१० धरि प्रकाशित हेबाक चाही।

विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कार -१२ : ऐ लेल हम श्रीमती ज्योति सुनीत चौधरीक “अर्चिस” (कविता संग्रह), श्री विनीत उत्पलक “हम पुछैत छी” (कविता संग्रह), कामिनीक “समयसँ सम्वाद करैत”, (कविता संग्रह), आदि यायावरक “भोथर पेंसिलसँ लिखल” (कथा संग्रह),, श्री उमेश मण्डलक “निश्तुकी” (कविता संग्रह), श्री प्रवीण काश्यपक “विषदन्ती वरमाल कालक रति” (कविता संग्रह), आ श्री अरुणाभ सौरभक “एतबे टा नहि” (कविता संग्रह)क नामक प्रस्ताव हम दऽ रहल छी। हिनकर सभक समग्र योगदानपर पाठकसँ टिप्पणीक संग कोनो आन नाम जे ओ देबए चाहथि, आमंत्रित अछि। ई पोथी सभ २०११ धरि प्रकाशित हेबाक चाही।३१ दिसम्बर २०११ धरि प्रकाशित रचना अहाँ दऽ सकै छी। ई डिसकशन ३१ दिसम्बर २०११ धरि चलत। तकर बाद रचना/ रचनाकार शॉर्टलिस्ट कऽ कऽ वोटिंग १ जनवरी २०१२ सँ शुरू हएत।

विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी अनुवाद पुरस्कार -१३ : ऐ लेल हम श्री नरेश कुमार विकल (ययाति,मराठी उपन्यासक अनुवाद मूल लेखक श्री विष्णु सखाराम खांडेकर), श्री महेन्द्र नारायण राम (कार्मेलीन,कोंकणी उपन्यासक अनुवाद मूल लेखक श्री दामोदर मावजो), श्री देवेन्द्र झा (बांग्ला उपन्यासक अनुवाद मूल लेखक श्री दिव्येन्दु पालित) आ श्रीमती मेनका मल्लिक (देश आ अन्य कविता सभ- रेमिका थापा, नेपाली)क नामक प्रस्ताव हम दऽ रहल छी। हिनकर सभक समग्र योगदानपर पाठकसँ टिप्पणीक संग कोनो आन नाम जे ओ देबए चाहथि, आमंत्रित अछि। ई पोथी सभ २००९, २०१० वा २०११ मे प्रकाशित हेबाक चाही।३१ दिसम्बर २०११ धरि प्रकाशित रचना अहाँ दऽ सकै छी। तकर बाद रचना/ रचनाकार शॉर्टलिस्ट कऽ कऽ वोटिंग १ जनवरी २०१२ सँ शुरू हएत।

पूर्व पीठिका:
विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी सम्मान दिसम्बर मासमे कोलकाता, दरभंगा, झंझारपुर आ पटनामे देल जाएत, ऐमे प्रशस्ति-पत्र आ पदक देल जाएत। विस्तृत विवरण शीघ्र देल जाएत। ऐ बेरुका पुरस्कारक सूची:-
विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी सम्मान
१.विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी फेलो पुरस्कार २०१०-११
२०१० श्री गोविन्द झा (समग्र योगदान लेल)
२०११ श्री रमानन्द रेणु (समग्र योगदान लेल)
२.विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी पुरस्कार २०११-१२
२०११ मूल पुरस्कार- श्री जगदीश प्रसाद मण्डल (गामक जिनगी, कथा संग्रह)
२०११ बाल साहित्य पुरस्कार- ले.क. मायानाथ झा (जकर नारी चतुर होइ, कथा संग्रह)
२०११ युवा पुरस्कार- आनन्द कुमार झा (कलह, नाटक)
२०१२ अनुवाद पुरस्कार- श्री रामलोचन ठाकुर- (पद्मा नदीक माझी, बांग्ला- माणिक वन्दोपाध्याय, उपन्यास बांग्लासँ मैथिली अनुवाद)
ऐमेसँ श्री रमानन्द रेणु जीक मृत्यु सम्मानक घोषणाक बाद भऽ गेलन्हि, तेँ हुनकर उत्तराधिकारीकेँ ई पदक आ प्रशस्ति-पत्र देल जाएत।

मिथिला राज्यक विरोध मे उतरलाह डा॰ मिश्र ( नवेंदु कुमार झा)


    मिथिलांचल के सभ दिन खतरा मिथिला पुत्र सॅ रहल अछि। स्वातंत्राक 64 वर्ष मे आधा समय बिहारक नेतृत्व मिथिला पुत्रक हाथ मे रहल मुदा मिथिलांचलक दुर्गति आ विकास सभक सोझा अछि। मिथिलांचल मे राजनीति रोटी सेकबाला मैथिलांचलक राजनीतिज्ञ मिथिला हितक रक्षाक समय स्वयं मुद्रा मे आबि जाति छथि। उŸार प्रदेशक मुख्यमंत्री मायावतीक छोट प्रदेशक घोषणाक बाद बिहारक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार छोट प्रदेशक समर्थनक बाद ई आशा जागल छल जे मिथिला पुत्र सभ एहि दिशा मे डेंग बढ़ौताह मुदा मिथिला आ मैथिलीक झण्डा उठैबाक ढाबा करएबाला नेता सभ राजनीतिक चुसनीक मजबूरी मे जाहित रहे अलग मिथिल राज्यक विरोध मे ठाढ़ भेला एहि सॅ हुनक राजनीतिक चरित्र सोझा आबि गेल अछि।
    मिथिलाक सभ सॅ पैघ हितैषी कहए बाला बिहारक पूर्व मुख्यमंत्री डा॰ जगन्नाथ मिश्र अपन मुख्य मंत्रित्वकाल मे मैथिलीक उपेक्षाक उर्दू के प्रदेशक द्वितीय भाषाक दर्जा देलनि। विकासक नाम पर मिथिलाक कोना ठगलनि से तऽ हुनक प्रतिनिधित्व बाला झंझारपुर विधानसभा क्षेत्र के देखि कऽ सहजहि पता चलैत अछि। आ आब जिनगीक तेसर चरण मे बादो मिथिलाक विकासक परोक्ष एजेन्डा सॅ पाछा नहि हटि रहल छथि। एक दिस देश भरि मे छोट प्रदेशक लेल संघर्ष चलि रहल अछि आ मिथिला प्रदेशक लेल अनुकूल वातावरण बनैबाक समय आएल अछि तऽ डाक्टर मिश्र अलग मिथिला राज्यक विरोधक झण्डा उठा सŸााक आगा अपन माथ झुका लेलनि अछि। दरअसल हुनक नजरि राज्य सभाक चुनाव पर अछि। अगिला वर्ष्ज्ञ राज्य सभाक कतेको सीट बिहार सॅ खाली भऽ रहल अछि आ डा॰ मिश्र एहि उम्मीद मे नीतीश कुमार के खुश करबाक लेल अलग मिथिला राज्यक विरोध मे उतरि गेलाह अछि। डा॰ मिश्र भने कतबो नाक रगरथि जदयू आ भाजपाक गठबंधन मे हुनका राज्य सभा देखबाक अक्सर भेटत एकर आशा कम अछि। डॉ॰ मिश्र राजनीतिक शक्तिक केन्द्र बनलाक दरमियान तऽ मिथिलाक उद्वारक लेल कोनो प्रयास तऽ नहिए कएलनि आ आब जखन उचित अवसर बुझि पड़ैत अछि तऽ मिथिलाक जन आंकाक्षा के गला दबऽ मे लागि गेलाह अछि।
    दरअसल मिथिलाक ई दुर्भाग्य अछि जे प्रदेशक सŸाा के सब सॅ बैसी दिन नेतृत्व करबा अवसर मिथिला पुत्र सभके भेटल मुदा विकास नहि होएबाक सौभाग्य मिथिलांचल के भेटला मिथिला राज्य आन्दोलन मिथ्लिांचलक नेताक लेल ‘‘राजनीतिक पर्यटन’’ बनि गेल अछि। एहि सॅ पहिने भाजपा सॅ निष्काषित भेलाक बाद पण्डित ताराकांत झा सेहो मिथिला राज्य अभियान चलौने छलाह। एकर राजनीतिक लाभ सेहो हुनका भेटल। पंडित झाक भाजपा मे आपसी बाद हुनका उच्च सदनक सदस्य बनाओल गेल आ संवैधानिक पद सेहो देल गेल अछि। लगैत अछि जे पंडित झा एहि मात्र एहि मादे मिथिला राज्य अभियान चलौने छलाह। पद भेटैत मिथिला राज्य अभ्यिानक हवा निकलि गेल आ एक बेर फेर मिथ्लिावासी आ मिथिलांचल ठगल गेल। केन्द्र मे राजग सरकारक मंत्री पद सॅ हटैलाक बाद भाजपाक प्रदेश अध्यक्ष डॉ॰ सी.पी. ठाकुर सेहो मैथिलीक संविधानक अष्टम् अनुसूची मे देबाक लेल दरभंगा, पटना आ दिल्ली धरि फोटो खिलौलनि। मैथिलीक मांग पूरा भेल। डॉ॰ ठाकुरक चापलूस मंडली एकर खूब प्रचार मिथिलांचल मे कएलक जेना मात्र किछुए मासक हुनक प्रयास सॅ ई सफल भेला एकर लाभ चापलूस मंडली वाम विचारक मिथिला राज्यक मठाधीश के भेल आ ओ वामपंथी सॅ दक्षिणपंथी भऽ गेलाह। भाजपाक वर्तमान कार्यकारिणी मे ओ विराजमान छथि। खैर, एहि बेर सभ सॅ मुखर विरोध डॉ॰ सी.पी. ठाकुर दिस सॅ भेल अछि तऽ पंडित ताराकांत झा मौन छथि। आब सभ राजनीति नेताक मिथिला प्रति हुनक सोच सोझा आबि गेल अछि तऽ जनताक सेहो अपन संकल्प एहि मिथिला विरोधी नेता सभक सोझा आनए पड़त। नहि तऽ जगत जननी मां सीता, लोरिक सलहेस, दीना भद्री, मंडन आ विद्यापतिक धरती एहिन कुहरेत रहत।

सुनल जाओ मैथिलीमे सामाचार २७ नवंबर २०११ (साभार जानकी एफ.एम., जनकपुर)

Sunday, November 27, 2011

हम पुछैत छी: मुन्नाजीसँ राजेन्द्र बिमलक अन्तर्वार्ता

नेपाली साहित्यक विज्ञ व्याख्याता (सेवा निवृत्त आ मैथिलीक प्रबुद्ध रचनाकार श्री राजेन्द्र बिमलसँ हुनक रचना यात्रा मादेँ गप केलनि विहनि कथा रचनाकार श्री मुन्नाजी।
हम पुछैत छी: मुन्नाजीसँ राजेन्द्र बिमलक अन्तर्वार्ता

मुन्नाजी: नमस्कार राजेन्द्र बिमलजी।
राजेन्द्र बिमल: मान्यवर मुन्ना जी, जय मैथिली

मुन्नाजी:बिमलजी, अपनेक मातृभाषा मैथिली रहलाक पछातियो अपने नेपाली भाषा साहित्यमे उच्च अध्ययन आ अध्यापनमे अग्रसर रहलौं, एकर कोनो विशेष कारण?
   
राजेन्द्र बिमल:    मैथिली मातृभाषा रहलो संता नेपाली भाषा साहित्यक अध्ययन अध्यापनमे जीवन समर्पित करबाक अन्तःप्रेरणा उद्भूत भेल दू गोट प्रमुख उद्दीपनसँ” – (क) प्राथमिक कक्षासस्नातकोत्तर कक्षाधरि नेपाली (राष्ट्रभाषा) अध्येताक संख्या नेपालमे सर्वाधिक होएबाक कारणे राष्ट्रीय स्तरधरी अपन परिचिति स्थापित करबाक अवसर अपेक्षाकृत सहज अनुभव करब। उल्लेखनीय थिक जे राष्ट्रभाषा नेपालीक अध्ययन नेपालमे प्रवेशिका कक्षाधरि अनिवार्य थिकै । मैथिलीक अध्ययन अध्यापन नेपालक मात्र दू गोट महाविद्यालय धरि सीमित अछि आ ताहूमे विद्यार्थीक संख्या नगण्य भेल करैछ । नेपालमे मैथिली अध्ययन अध्यापनक अवस्था भारतमे उर्दू अध्ययन  अध्यापनक अवस्थाससेहो ऋणात्मक अछि ।
(ख) मैथिली अध्ययन अध्यापनमे अपन आधारभूत आर्थिक भविष्य नितान्त असुरक्षित अनुभव करब ।


मुन्नाजी:मैथिली साहित्य रचनाक शुरुआत कोना केलौं आ पहिल बेर की लिखि कतऽ छपलौं:
राजेन्द्र बिमल:    किछु साहित्यप्रेमी गुरुलोकनिक प्रेरणासदसे वर्षक आयुसँ” किछु ने किछु जोरती जोरैत रहबाक लेल प्रेरित होइत रहलहु। मुदा, हमर यत्किञ्चित प्रतिभावल्लरीक जाहि स्तम्भकेपाबि पल्लवन पुष्पन भेल तिनक नाम थिक डा. धीरेन्द्र । अध्ययनकालस अध्यापनकालधरि प्रायः नित्य हुनकास भेंट होइत छल आ प्रत्येक भेंटमे ओ किछु नव लिखबाक लेल प्रेरित करैत छलाह। हमर पहिल मैथिली कथा मुइल बच्चा१९६२ (१) ई.क मिथिला मिहिरमे प्रकाशित भेल छल ।

मुन्नाजी: अहाँ नेपाली साहित्यक व्याख्याता रहलैं अछि। की अहाँ नेपालीमे सेहो रचना केलौं? ओकर नेपाली साहित्यकार वा पाठक मध्य कतेक महत्व भेटल?
राजेन्द्र बिमल:प्रकाशन सुविधाक दृष्टिए मैथिली साहित्य संसार एक गोट विराट मरुस्थल थिक जाहिमे एकाध छोटछोट मरु उद्यान प्रकट होइत अछि, विलुप्त भए जाइत अछि। जएह हरियर गाछ देखैत छी से निसर्गक चमत्कार बूझू । राजकीय संरक्षणस सिंचित नेपाली भाषा साहित्यक संसार हरियर कचोर अछि, उर्वर आ नित्य सम्बर्धनशील । ते नेपालीमे हमर दर्जनधरि पोथी प्रकाशित भए सकल । पाठकके संख्या बेसी थिकै । त छोटो छिन कथा प्रकाशित भेल नहि कि पत्रक पथार लागि जाइत अछि । मैथिलीक पाठक संख्या से हो कम (लगभग जतबे लेखक, ततबे पाठक) आ हुनकामे रिस्पोन्सकरबाक प्रवृत्ति से हो तेहन जीवन्त नहि । नेपाली भाषा साहित्यमे योगदान हेतु देल जाएबला पुरस्कारमे सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार जगदम्बा श्री सम्मानित होएब हमर सौभाग्य थिक । लगभग तीन दर्जन संस्थास सम्मानित/ पुरस्कृत भेल छी ।


मुन्नाजी:नेपाली आ मैथिली साहित्यक स्तरक आधारपर दुनूमे कतेक समता वा विषमता छै:
राजेन्द्र बिमल: संख्यात्मक आ गुणात्मक दुनू दृष्टिए नेपाली साहित्यक अवस्था घनात्मक अछि । प्रभाववादी, प्रतीकवादी, विम्ववादी, घनत्ववादी, आस्तित्ववादी, उत्तरआधुनिकतावादी, विनिर्माणवादी, नारीवादी, उत्तरऔैपनिवेशिकतावादी प्रभृत अत्याधुनिक लेखनशैली आ विषयवस्तुससमृद्ध नेपाली साहित्य सरिपहु विश्व साहित्यस प्रतिस्पर्धा करबाक तैयारीमे अछि । १९६० क दशकस एखनधरि मैथिली साहित्यक विकासमे शिल्प वा कथ्यक दृष्टिए बहुत गतिशील विकासक्रम परिलक्षित नहि होइत अछि । विश्व साहित्यमे ठि रहल अनेक प्रवृत्ति लहरिक आरोह-अवरोह, आलोविलोनस अधिकांश लेखक आ पाठक अपरिचित जेका लगैत छथि । मृत्तिका मोह वा नास्टाल्जियाकने बेसिए गछेरने अछि।

मुन्नाजी:अपनेक मैथिलीमे टटका गजल संग्रह “सूर्यास्तसँ पहिने” प्रकाशित भेल अछि। एकर अतिरिक्त आर की सभ प्रकाशन लेल तैयार अछि।
राजेन्द्र बिमल:    मैथिलीमे लीखल अनेक पाण्डुलिपि प्रकाशनक बाट ताकि रहल अछि
(क)  लगभग पाच गोट कथा संग्रह
(ख)  एक गोट उपन्यास (चान अहा उदास छी १९६३ ई.)
(ग)  एक गोट गीत संग्रह
(घ)  एक गोट कविता संग्रह
(ङ)  एक गोट निबन्ध संग्रह
(च)  दू गोट आलोचना संग्रह
(छ)  एक गोट भाषा विज्ञानक पोथी
(ज)  एक गोट नाटक संग्रह आदि
    (A comparative study of the Morphology of Maithili Nepali and Hindi Language) आदि ।

मुन्नाजी:मैथिली साहित्य मध्य वर्तमान समयमे गजलक की दशा अछि, एकर भविष्यक की दिशा देखाइछ?
राजेन्द्र बिमल:    गजल अत्यन्त लोकप्रिय विधा थिक । मैथिलीमे से हो खूब लीखल जा रहल अछि आ पढलो जा रहल अछि । बहुत गजलकार एकर व्याकरणस कम परिचित छथि । मुदा भविष्य उज्जवल छैक । मैथिली गजलमे अपन निजात्मकताक विकास शुभ संकेत थिक ।

मुन्नाजी:मैथिलीक प्रकाशित गजलक संगोर (कतेको गजल संग्रह) आ मायानन्द मिश्रक गजलकेँ गीतल कहि प्रकाश्यक मादेँ गजेन्द्र ठाकुर एकरा अस्तित्वहीन कहि अपन सम्पादकीय आलेख माध्यमे अवधारणा स्पष्ट केलनि।अहाँक ऐपर अपन स्वतंत्र विचार की अछि?
राजेन्द्र बिमल: संगोर सभ नहि देखल अछि । आदरणीय मायाबाबूक गीतल (गीत-गजल) एक गोट प्रयोग थिक । हम कोनो सृजनकेनिरर्थक नहि बूझैत छी आ लेखन स्वतंत्रतामे विश्वास रखैत छी ।

मुन्नाजी:नेपाल आ भारतक मैथिली रचनाकारक मध्य कखनो कऽ फाँट देखाओल जाइछ। ऐ फाँटकेँ भरबाक लेल अहाँक की विचार?
राजेन्द्र बिमल:    भाषा, साहित्य, संस्कृतिक कोनो राजनैतिक भूगोल नहि होइत छेक जेना  आकाशमे इन्द्रधनुष वा धरतीपर जलप्रवाहक कोनो सीमा स्तम्भसछेकल नहि जा सकैत अछि । हमर आकांक्षा रहल अछि जे सरकारी/ गैरसरकारी स्तरपर एहन साझा मञ्चक निर्माण हो जे मैथिली भाषा, साहित्यक सम्बर्धन हेतु मीलिजूलि कए नीति आ कार्यक्रमक निर्माण करए, तकरा कार्यान्वित करए । मैथिली आन्दोलनक हेतु सेहो एहन मंचक अपरिहार्यताक अनुभव करैत छी । भैयारी विभेद आ बटबारा जातीय अस्मिताके छाउर करबाक लेल शत्रुशक्तिक हेतु लंकादहनक मार्ग प्रशस्त कए दैत छैक । जमीन बटि जाइत छैक, भाय भायक हृदय नहि बटबाक चाही, ई बोध जगाएब इतिहासक वर्तमान कालखण्डक मैथिली सर्जक आ चेतनासम्पन्न मैथिलक हेतु नैतिक दायित्व थिक ।


मुन्नाजी: अपने रचनामे सक्रिय रहलहुँ अछि तखन प्रकाशित पोथी एते विलम्बे किएक आएल? सेवा निवृत्तिक पछाति पहिल संग्रहमे गजले संग्रहकेँ किए प्राथमिकता देलौं, एकर कोनो विशेष कारण?
राजेन्द्र बिमल:    जनकपुरमे रहि स्थानीय स्तरपर पोथी प्रकाशन करब असहज । टङ्कणक असुविधा, प्रेसक असुविधा (कतबो प्रूफ पढब, अशुद्धि जहिनाक तहिना) स्वयं से हो शारीरिक रुपैं एहि दिशामे बहुत सक्रिय रहबाक अवस्थामे नहि छलहु आ एखनहु नहि छी । ते ............... गजलेछपलहु, तकर कारण हमर प्रिय सहयोगी प्रो.परमेश्वर कापडिक जोर ।

मुन्नाजी: मैथिली साहित्यक रचना मादेँ अगिला पीढ़ीकेँ की सनेस देबऽ चाहब?
राजेन्द्र बिमल:    कीर्तिलतामे मैथिल कुलपुरुष, मंत्रदष्टा महाकवि विद्यापतिक एक गोट ऋचा थिकैन्हि, जकर अर्थ थिक जे कालक अखण्ड प्रवाहमे ओही जातिक कीर्तिक लता पसरैत अछि जे अक्षरक खम्भा दए अक्षरेक मचान बन्हैछ । एकर मर्म बूझि मिथिलाक भविष्णु सपूतसुपुत्री लोकनि अथक अक्षरसाधनाद्वारा बारल अपन गौरवदीपक अमर आलोकस विभ्रान्त विश्वक हेतु मंगलपथ सदैव उद्भासित करथि, से शुभ कामना ।




(साभार विदेह  www.videha.co.in )

सुनल जाओ मैथिलीमे सामाचार २६ नवंबर २०११ (साभार जानकी एफ.एम., जनकपुर)

सुनल जाओ मैथिलीमे सामाचार २५ नवंबर २०११ (साभार जानकी एफ.एम., जनकपुर)

Friday, November 25, 2011

हम पुछैत छी: मुन्नाजीसँ श्री राम भरोस कापड़ि "भ्रमर"क साक्षात्कार



हम पुछैत छी : विदेह -पत्रिकाक सहायक सम्पादक श्री मुन्नाजीक संग रामभरोस कापड़िभ्रमर बातचीतक अंश:

मुन्नाजी: रामभरोस जी नमस्कार।
रामभरोस कापड़िभ्रमर”: नमस्कार।
मुन्नाजी: अपने अपन साहित्यिक यात्राक प्रारम्भिक परिदृश्यक विवेचनमे की कहए चाहब?
रामभरोस कापड़िभ्रमर”: मुन्नाजी, हम जाहि परिवारसँ आएल छी धन-वीत्तमे समाजमे अग्रणी तँ छल, मुदा भाषा, साहित्यक ओतऽ नामोनिशान नै छलै। बाबूजी गाम विकास समितिक मुखिया, प्रधान पंच होइत रहलाह, क्षेत्रमे नीक प्रतिष्ठा, नाम छलनि। मुदा घरमे पत्र-पत्रिका, पुस्तक पढ़बाक माहौल नहि छलै। ताहुमे मैथिली!
जखन हमरा दुनू भाइकेँ बघचौरासँ जनकपुरक हाई स्कूलमे शिक्षाक हेतु पठाओल गेल, तखन स्थिति बदललैक। हमरा पत्र-पत्रिका पढ़बाक लत लागल, रुचि बढ़ल तखन किछु लिखी से मनमे होबऽ लागल। हमर सम्पर्क डॉ. धीरेन्द्रसँ भेल जे रा.रा.कैम्पसमे मैथिली पढ़बैत छलाह। हुनका संगतिसँ लेखन दिश सक्रियता बढ़ल। ओना हम अपन पहिल कथाइमानदार बालकहिन्दीमे लिखने रही डॉ. धीरेन्द्रकेँ देखौने रहियनि। तत्काल हमरा अपन भाषा मैथिलीक प्रति आकर्षित करौलनि तकर अनुवाद कऽ लएबा लेल कहलनि। हम कथाक अनुवाद मैथिलीमे कऽ देलियनि, जकर शुद्धि करैत काल एक्को पंक्ति एहन नहि छल जाहिमे लाले लाल नहि लागल होइ। जखन उतारि कऽ देलियनि तँ हुनक चिट्ठीक संग मिहिरमे पठा देबाक लेल कहलनि जे कथा नेना भुटकाक चौपाड़िमे १९६४ . मे छपल। तहिया हमर उमेर १३ वर्षक छल। बस, तकरा बाद हमर साहित्यिक यात्रा जे चलल, आइ धरि निरन्तर जारी अछि। एखन धरि विभिन्न विधाक तीससँ ऊपर पुस्तक प्रकाशित भऽ चुकल अछि।

मुन्नाजी: साहित्यक अतिरिक्त अहाँ आर कोन गतिविधिसँ जुड़ल रलौं अछि?
रामभरोस कापड़िभ्रमर”: हमर प्राथमिक झुकाउ साहित्ये दिश रहल। खूब लिखलौं- खूब आनन्दित भेलौं। दोसर हम पत्रकारितामे सेहो निरन्तर लागल छी। नेपालक पहिल मैथिली समाचारपत्रगामघर साप्ताहिक विगत तीस वर्षसँ सम्पादन-प्रकाशन कऽ रहल छी। एहि विचअर्चना”, “आंजुरमासिक, द्वैमासिक, सेहो निकाललहुँ। एकर अतिरिक्त सामाजिकशोध संस्थामे सेहो सक्रिय रहलहुँ।

मुन्नाजी: मैथिली साहित्यक परिधि छोट सीमित अछि। मुदा भाषाक रचनाकार सभ अपने कुकुर कटाउझ करैत पाओल जाइत छथि। समस्या किएक उत्पन्न होइत अछि एकर निदान की?
रामभरोस कापड़िभ्रमर”: मैथिली भाषा, साहित्यक क्षेत्रमे लाभक अवसर कम छैक। जे छै तकरा अपना दिश कोना हँसोथल जाए, एहि फिराकमे मित्रगण सभ लागल रहैत छथि। एक आर्थिक लाभक लोभ, दोसर अपन वर्चस्व कायम रखबाक लौल- दुनू कुकुर कटाउझक कारण मानल जा सकैछ। निदान कहब कठिन- स्वभाव, प्रकृति आचरणसँ सम्बद्ध छैक। धैर्य राखब मात्र एकर उपाय थिक।

मुन्नाजी: देखल जाइत अछि जे सामान्यतः मैथिलीमे दू चारिटा रचना वा एक दुइ साल रचनाक पछाति एकटा पत्रिका निकालि रचनाकार स्वयंकेँ सम्पादक घोषित कऽ दैत छथि। वास्तवमे सम्पादनक की मानदण्ड अछि ओइपर कतेक सम्पादक अटकल रहि पबैत छथि?
रामभरोस कापड़िभ्रमर”: -प्रश्न मोनकेँ गदगद कऽ देलक। साँच बात इहो छैक- एखन मैथिलीमे समस्या बड़ जोड़ पकड़ने अछि। दू चारिटा कथा, कविता लिखने, छपने अपनाकेँ साहित्यक सिरमौर बुझबाक भ्रम सभतार होइछ। दशकूंक लगानीकेँ छाउर बूझि मुँहक फुकसँ उड़िया देबाक भयावह आत्मरति भाव मैथिली लेखनक सहज परम्पराकेँ भ्रमित कऽ रहलैक अछि। सम्पादन स्वयंमे एकटा कला छै, विज्ञान छैक। एक-आध अंक बहार कऽ अपनाकेँ सम्पादक काह मठोमाठ बनने हमरा जनैत ताही प्रतिभाक हेतु नोक्शानीक बात छैक। सुधांशु शेखर चौधरी, डॉ. हंसराज, डॉ. भीमनाथ झा, बाबू साहेब चौधरी, कृष्णकान्त मिश्र, डॉ. सुधाकान्त मिश्र, डॉ. धीरेन्द्र, सम्प्रतिमे रामलोचन ठाकुर आदि किए सम्पादक कहौलनि! अहाँ मानदण्डपर अटकलक बात करै छी, पत्रिकाक कए गोट अंकपर अटकल रहि पबैत छथि?

मुन्नाजी: नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक प्राज्ञ भऽ प्रतिष्ठासँ केहन अनुभव कऽ रहल छी, ऐसँ जीवन लेखनमे केहन परिवर्तन आएल अछि, की जीवन लेखनमे सहायक भेल अछि?
रामभरोस कापड़िभ्रमर: निश्चय प्रज्ञा प्रतिष्ठानमे प्राज्ञ भऽ आएब हमर सपना रहए। कोनो साहित्यकारक हेतु सभसँ उच्च सम्मान छैक। हम नेपाल सरकारक एकरा लेल आभारी छी। एहिसँ हमर जीवन शैलीमे किछु परिवर्तन तँ भेबे कएल अछि। हम जनकपुरमे रहैत छलहुँ, आब काठमाण्डूमे रहऽ पड़ैत अछि। हम स्वतंत्र, खुशफैल रहऽ बला लोक, आब नियमित ऑफिस जाए पड़ैत अछि। मुदा स्वतंत्र आह्लादकारी काज तँ छैहे प्रतिष्ठानमे। लेखनमे कोनो फरक नै, बस बेसी जगजिआर भेल अछि। पत्रकारिता बस लेखनकेँ बाधित करैत छल। हम काठमाण्डू अएलाक तीन वर्षमे छः गोट पुस्तक प्रकाशित कऽ सकलहुँ दर्जनों निबन्ध, कथा, कविता, नाटक आदि।

मुन्नाजी: नेपाली साहित्य मध्य मैथिली साहित्यक केहेन जुड़ाव छैक? दुनू भाषा मध्य कोन साहित्य बेशी समृद्ध अछि किएक?
रामभरोस कापड़िभ्रमर: नेपाली मैथिली अपन-अपन बाटपर चलैत अछि। एक राज्योपोषित रहलै, दोसर साहित्यकार पोषित। प्राचीन साहित्य मैथिलीक, लेखनमे समृद्ध नेपाली।

मुन्नाजी: मैथिलीक सीमामे फाँट कएल (नेपाल भारत) साहित्यिक गतिविधिक तुलनात्मक परिदृश्ये कतुक्का साहित्यक केहेन दशा-दिशा देखा पड़ैए?
रामभरोस कापड़िभ्रमर: भारतीय साहित्यकार, ओतुक्का साहित्यिक प्रतिष्ठान, सरकारी वा गएर सरकारी एहि तरहक फाँट-बखरा कऽ कऽ रखने अछि। एम्हरका लोक साहित्य अकादमीक पत्रिका, पुरस्कार, लेखन, गोष्ठीमे सामेल नहि कएल जाइत छथिनेपालमे तेहन कोनो बन्देज नै छैक। प्रज्ञा प्रतिष्ठानक कार्यक्रममे हमहीं निरन्तर बजबैत छिऐन्हि, डॉ. प्रफुल्ल कुमार सिंहक “नेपालक मैथिली साहित्यक इतिहास” नेपालक अर्ध सरकारी प्रकाशन संस्था साझा प्रकाशन छपलक अछि। हँ, ओम्हरका साहित्यक लेखन परम्परा निरन्तर चलैत रहल- समृद्ध अछि। प्राचीनताक दृष्टिएँ, ऐतिहासिक उपलब्धिक दृष्टिएँ नेपाल ओम्हरसँ समृद्ध अछि। “वर्णरत्नाकर”, सिद्ध साहित्य, मल्ल काल, सभ मैथिली साहित्यक आधार थिकै- ज्कर स्रोत नेपाले अछि।

मुन्नाजी: वर्तमानमे अपन गतिविधि कोन दिशामे जारी अछि? साहित्यिक-सांस्कृतिक कोनो अग्रिम योजना अछि?
रामभरोस कापड़िभ्रमर: एखन प्रज्ञामे लागल छी। देखू, साझा प्रकाशनमे अध्यक्ष भऽ कऽ तँ ओ मात्र नेपालीक पुस्तक छपैत छल, हम मैथिलीक शुरुवात कएलहुँ। एक बालपोथी “बगियाक गाछ”, दोसर “मैथिली साहित्यक इतिहास”। प्रज्ञामे पहिल बेर साधारण सदस्य भऽ आएल रही तँ पहिल बेर मैथिलीक पत्रिका बहार कएलहुँ “आंगन”। जे एहि बेर अएलाक बाद हमरे सम्पादनमे निरन्तर प्रकाशित अछि। एखनो बेसीसँ बेसी मैथिली दिश ध्यान दितो हमर विभाग “संस्कृति विभाग” सम्पूर्ण देशक हेतु देखैत अछि। तथापि जट जटिन, सलहेस, दीनाभद्रीक लोकगाथा, नृत्य संयोजन, संकलन, ऑडियो विडियोग्राफीक सुरक्षित कऽ देने छिऐक। हम ग्रन्थक रूपमे बहार करबाक नियारमे छी। मैथिलीमे एम्हर नाट्य क्षेत्रमे किछु नव संस्था, कलाकार सभ अपन प्रतिभा देखौलनि अछि, हम हुनका सभकेँ उचित मंच भेटौक ताहि दिश प्रयत्नरत छी।

मुन्नाजी: साहित्य लेखक एवं सम्पादकक नव तूरकेँ की सनेस देबऽ चाहब?
रामभरोस कापड़िभ्रमर: जे लिखथि मोनसँ लिखथि। अपनेसँ अपन मूल्यांकन नहि करथि। अपन अग्रज साहित्यकारक सम्मान करथि। सम्पादक महज लौलसँ अथवा अपनाकेँ स्थापित देखएबा लेल नहि करथि। एहिसँ अपन पूर्वूक छविकेँ धुमिल भऽ जएबाक डर होइछ।

मुन्नाजी: साहित्य मध्य साहित्यकारक राजनीतिक उठापटककेँ अहाँ कोन परिप्रेक्ष्यमे देखै छी? की साहित्यकारक लेल प्रकारक क्रियाकलाप उचित अछि?
रामभरोस कापड़िभ्रमर: हमरा लगैत अछि शुरुएक प्रश्नमे किछु बात आबि गेल अछि। साहित्यकारकेँ राजनीतिसँ दूरे रहने नीक। मुदा कतेको अवस्थामे ई सम्भव नहि बुझाइत छै। पटना आ दरभंगाक साहित्यिक मंचपर राजनीतिकर्मीक वर्चस्व एकर प्रमाण अछि।

मुन्नाजी: शुरूहेसँ मैथिली भाषा पिछड़ल जातिक धरोहरि जकाँ रहल अछि। मुदा साहित्य मध्य (रचनाकारक रूपेँ) ओइ वर्गकेँ अवडेरि कऽ (कतिया कऽ) राखल गेल। की ऐसँ भाषाक हीनता आएल अछि? वा भाषा मृत्यु शय्या धरि पहुँचि गेल अछि। अहाँक नजरिये की कहब ऐपर?
रामभरोस कापड़िभ्रमर: ई प्रश्न हमरा जनैत मैथिली भाषा, साहित्यक क्षेत्रमे सभसँ अहम अछि।
      मैथिली भाषाकेँ संस्कृत जकाँहम्मर भाषाकहि विगत डेढ़-दू सय वर्षसँ अपन पोथी-पतरामे जाँति कऽ रखनिहार मुट्ठी भरि वर्ग नब्बे प्रतिशत बजनिहारकेँ एकरासँ दुरे रखबाक काज कएलनि। आब जखन जपाल भऽ गेल छन्हि तँ भाषाक विस्तारीकरणमे लागल छथि। एखनो मैथिलीक मंचपर नमूनाक हेतु किछु गोटे अभरताह, मुदा तकर पुछ कोन रूपेँ? साहित्यमे कतेक चर्च? गोलैसी कऽ कात करबाक, नीचाँ देखएबाक कोन प्रयत्न छुटल अछि? एहिमे कोन सन्देह जे जे वर्ग मात्र मैथिलीएटा बजैत अछि, तकर भाषा छीनि कऽ अहाँ महन्थ बनल छिऐ, अपने अंग्रेजी, हिन्दी, नेपाली बजैत समाजमे रोब दैत छिऐ। परिणाम तँ साफ छै,- एहि बेरका जनगणनामे नेपालमे मैथिलीक ठामपर मगही, बज्जिका लिखाओल गेलैए। किछु लाख तँ अबस्से बजनिहारक संख्या कम भेल हएतै। लिखौनिहारक साफ तर्क छलै, भाषा हमर अछिए नहि, तँ
      हमरा सन लोक एहिमे लागल छी, स्वयं हम एकर प्रतिपादमे किछु जिल्ला घुमलहुँ। मुदा हमरा सभकेँ अपवाद बुझैत अछि। जे नाटक एखनो धरि कएल जा रहल छैक, ताहिसँ मोन हमरो सभक दग्ध अछि मुन्नाजी! किएने मैथिलीक पुस्तक बिकाइए, पत्रिका बिकाइए? जे लेखक सएह पाठक! हमरा लगैत अछि- आब सम्हरबोक समय नहि अछि! भाषा मृत्यु धरि पहुँचि गेल अछि से हम नहि कहब, मुदा कए खाढ़ीमे विभक्त छिन्न-भिन्न धरि अवश्य भऽ गेल अछि। जकरा जोड़बाक ककरो ने रुचि छैक आने पलखति! तखन?!






रामभरोस कापड़ि "भ्रमर" पहिल रचना प्रकाशित हेबा कालक फोटो










(साभार विदेह  www.videha.co.in )