Sunday, November 27, 2011

हम पुछैत छी: मुन्नाजीसँ राजेन्द्र बिमलक अन्तर्वार्ता

नेपाली साहित्यक विज्ञ व्याख्याता (सेवा निवृत्त आ मैथिलीक प्रबुद्ध रचनाकार श्री राजेन्द्र बिमलसँ हुनक रचना यात्रा मादेँ गप केलनि विहनि कथा रचनाकार श्री मुन्नाजी।
हम पुछैत छी: मुन्नाजीसँ राजेन्द्र बिमलक अन्तर्वार्ता

मुन्नाजी: नमस्कार राजेन्द्र बिमलजी।
राजेन्द्र बिमल: मान्यवर मुन्ना जी, जय मैथिली

मुन्नाजी:बिमलजी, अपनेक मातृभाषा मैथिली रहलाक पछातियो अपने नेपाली भाषा साहित्यमे उच्च अध्ययन आ अध्यापनमे अग्रसर रहलौं, एकर कोनो विशेष कारण?
   
राजेन्द्र बिमल:    मैथिली मातृभाषा रहलो संता नेपाली भाषा साहित्यक अध्ययन अध्यापनमे जीवन समर्पित करबाक अन्तःप्रेरणा उद्भूत भेल दू गोट प्रमुख उद्दीपनसँ” – (क) प्राथमिक कक्षासस्नातकोत्तर कक्षाधरि नेपाली (राष्ट्रभाषा) अध्येताक संख्या नेपालमे सर्वाधिक होएबाक कारणे राष्ट्रीय स्तरधरी अपन परिचिति स्थापित करबाक अवसर अपेक्षाकृत सहज अनुभव करब। उल्लेखनीय थिक जे राष्ट्रभाषा नेपालीक अध्ययन नेपालमे प्रवेशिका कक्षाधरि अनिवार्य थिकै । मैथिलीक अध्ययन अध्यापन नेपालक मात्र दू गोट महाविद्यालय धरि सीमित अछि आ ताहूमे विद्यार्थीक संख्या नगण्य भेल करैछ । नेपालमे मैथिली अध्ययन अध्यापनक अवस्था भारतमे उर्दू अध्ययन  अध्यापनक अवस्थाससेहो ऋणात्मक अछि ।
(ख) मैथिली अध्ययन अध्यापनमे अपन आधारभूत आर्थिक भविष्य नितान्त असुरक्षित अनुभव करब ।


मुन्नाजी:मैथिली साहित्य रचनाक शुरुआत कोना केलौं आ पहिल बेर की लिखि कतऽ छपलौं:
राजेन्द्र बिमल:    किछु साहित्यप्रेमी गुरुलोकनिक प्रेरणासदसे वर्षक आयुसँ” किछु ने किछु जोरती जोरैत रहबाक लेल प्रेरित होइत रहलहु। मुदा, हमर यत्किञ्चित प्रतिभावल्लरीक जाहि स्तम्भकेपाबि पल्लवन पुष्पन भेल तिनक नाम थिक डा. धीरेन्द्र । अध्ययनकालस अध्यापनकालधरि प्रायः नित्य हुनकास भेंट होइत छल आ प्रत्येक भेंटमे ओ किछु नव लिखबाक लेल प्रेरित करैत छलाह। हमर पहिल मैथिली कथा मुइल बच्चा१९६२ (१) ई.क मिथिला मिहिरमे प्रकाशित भेल छल ।

मुन्नाजी: अहाँ नेपाली साहित्यक व्याख्याता रहलैं अछि। की अहाँ नेपालीमे सेहो रचना केलौं? ओकर नेपाली साहित्यकार वा पाठक मध्य कतेक महत्व भेटल?
राजेन्द्र बिमल:प्रकाशन सुविधाक दृष्टिए मैथिली साहित्य संसार एक गोट विराट मरुस्थल थिक जाहिमे एकाध छोटछोट मरु उद्यान प्रकट होइत अछि, विलुप्त भए जाइत अछि। जएह हरियर गाछ देखैत छी से निसर्गक चमत्कार बूझू । राजकीय संरक्षणस सिंचित नेपाली भाषा साहित्यक संसार हरियर कचोर अछि, उर्वर आ नित्य सम्बर्धनशील । ते नेपालीमे हमर दर्जनधरि पोथी प्रकाशित भए सकल । पाठकके संख्या बेसी थिकै । त छोटो छिन कथा प्रकाशित भेल नहि कि पत्रक पथार लागि जाइत अछि । मैथिलीक पाठक संख्या से हो कम (लगभग जतबे लेखक, ततबे पाठक) आ हुनकामे रिस्पोन्सकरबाक प्रवृत्ति से हो तेहन जीवन्त नहि । नेपाली भाषा साहित्यमे योगदान हेतु देल जाएबला पुरस्कारमे सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार जगदम्बा श्री सम्मानित होएब हमर सौभाग्य थिक । लगभग तीन दर्जन संस्थास सम्मानित/ पुरस्कृत भेल छी ।


मुन्नाजी:नेपाली आ मैथिली साहित्यक स्तरक आधारपर दुनूमे कतेक समता वा विषमता छै:
राजेन्द्र बिमल: संख्यात्मक आ गुणात्मक दुनू दृष्टिए नेपाली साहित्यक अवस्था घनात्मक अछि । प्रभाववादी, प्रतीकवादी, विम्ववादी, घनत्ववादी, आस्तित्ववादी, उत्तरआधुनिकतावादी, विनिर्माणवादी, नारीवादी, उत्तरऔैपनिवेशिकतावादी प्रभृत अत्याधुनिक लेखनशैली आ विषयवस्तुससमृद्ध नेपाली साहित्य सरिपहु विश्व साहित्यस प्रतिस्पर्धा करबाक तैयारीमे अछि । १९६० क दशकस एखनधरि मैथिली साहित्यक विकासमे शिल्प वा कथ्यक दृष्टिए बहुत गतिशील विकासक्रम परिलक्षित नहि होइत अछि । विश्व साहित्यमे ठि रहल अनेक प्रवृत्ति लहरिक आरोह-अवरोह, आलोविलोनस अधिकांश लेखक आ पाठक अपरिचित जेका लगैत छथि । मृत्तिका मोह वा नास्टाल्जियाकने बेसिए गछेरने अछि।

मुन्नाजी:अपनेक मैथिलीमे टटका गजल संग्रह “सूर्यास्तसँ पहिने” प्रकाशित भेल अछि। एकर अतिरिक्त आर की सभ प्रकाशन लेल तैयार अछि।
राजेन्द्र बिमल:    मैथिलीमे लीखल अनेक पाण्डुलिपि प्रकाशनक बाट ताकि रहल अछि
(क)  लगभग पाच गोट कथा संग्रह
(ख)  एक गोट उपन्यास (चान अहा उदास छी १९६३ ई.)
(ग)  एक गोट गीत संग्रह
(घ)  एक गोट कविता संग्रह
(ङ)  एक गोट निबन्ध संग्रह
(च)  दू गोट आलोचना संग्रह
(छ)  एक गोट भाषा विज्ञानक पोथी
(ज)  एक गोट नाटक संग्रह आदि
    (A comparative study of the Morphology of Maithili Nepali and Hindi Language) आदि ।

मुन्नाजी:मैथिली साहित्य मध्य वर्तमान समयमे गजलक की दशा अछि, एकर भविष्यक की दिशा देखाइछ?
राजेन्द्र बिमल:    गजल अत्यन्त लोकप्रिय विधा थिक । मैथिलीमे से हो खूब लीखल जा रहल अछि आ पढलो जा रहल अछि । बहुत गजलकार एकर व्याकरणस कम परिचित छथि । मुदा भविष्य उज्जवल छैक । मैथिली गजलमे अपन निजात्मकताक विकास शुभ संकेत थिक ।

मुन्नाजी:मैथिलीक प्रकाशित गजलक संगोर (कतेको गजल संग्रह) आ मायानन्द मिश्रक गजलकेँ गीतल कहि प्रकाश्यक मादेँ गजेन्द्र ठाकुर एकरा अस्तित्वहीन कहि अपन सम्पादकीय आलेख माध्यमे अवधारणा स्पष्ट केलनि।अहाँक ऐपर अपन स्वतंत्र विचार की अछि?
राजेन्द्र बिमल: संगोर सभ नहि देखल अछि । आदरणीय मायाबाबूक गीतल (गीत-गजल) एक गोट प्रयोग थिक । हम कोनो सृजनकेनिरर्थक नहि बूझैत छी आ लेखन स्वतंत्रतामे विश्वास रखैत छी ।

मुन्नाजी:नेपाल आ भारतक मैथिली रचनाकारक मध्य कखनो कऽ फाँट देखाओल जाइछ। ऐ फाँटकेँ भरबाक लेल अहाँक की विचार?
राजेन्द्र बिमल:    भाषा, साहित्य, संस्कृतिक कोनो राजनैतिक भूगोल नहि होइत छेक जेना  आकाशमे इन्द्रधनुष वा धरतीपर जलप्रवाहक कोनो सीमा स्तम्भसछेकल नहि जा सकैत अछि । हमर आकांक्षा रहल अछि जे सरकारी/ गैरसरकारी स्तरपर एहन साझा मञ्चक निर्माण हो जे मैथिली भाषा, साहित्यक सम्बर्धन हेतु मीलिजूलि कए नीति आ कार्यक्रमक निर्माण करए, तकरा कार्यान्वित करए । मैथिली आन्दोलनक हेतु सेहो एहन मंचक अपरिहार्यताक अनुभव करैत छी । भैयारी विभेद आ बटबारा जातीय अस्मिताके छाउर करबाक लेल शत्रुशक्तिक हेतु लंकादहनक मार्ग प्रशस्त कए दैत छैक । जमीन बटि जाइत छैक, भाय भायक हृदय नहि बटबाक चाही, ई बोध जगाएब इतिहासक वर्तमान कालखण्डक मैथिली सर्जक आ चेतनासम्पन्न मैथिलक हेतु नैतिक दायित्व थिक ।


मुन्नाजी: अपने रचनामे सक्रिय रहलहुँ अछि तखन प्रकाशित पोथी एते विलम्बे किएक आएल? सेवा निवृत्तिक पछाति पहिल संग्रहमे गजले संग्रहकेँ किए प्राथमिकता देलौं, एकर कोनो विशेष कारण?
राजेन्द्र बिमल:    जनकपुरमे रहि स्थानीय स्तरपर पोथी प्रकाशन करब असहज । टङ्कणक असुविधा, प्रेसक असुविधा (कतबो प्रूफ पढब, अशुद्धि जहिनाक तहिना) स्वयं से हो शारीरिक रुपैं एहि दिशामे बहुत सक्रिय रहबाक अवस्थामे नहि छलहु आ एखनहु नहि छी । ते ............... गजलेछपलहु, तकर कारण हमर प्रिय सहयोगी प्रो.परमेश्वर कापडिक जोर ।

मुन्नाजी: मैथिली साहित्यक रचना मादेँ अगिला पीढ़ीकेँ की सनेस देबऽ चाहब?
राजेन्द्र बिमल:    कीर्तिलतामे मैथिल कुलपुरुष, मंत्रदष्टा महाकवि विद्यापतिक एक गोट ऋचा थिकैन्हि, जकर अर्थ थिक जे कालक अखण्ड प्रवाहमे ओही जातिक कीर्तिक लता पसरैत अछि जे अक्षरक खम्भा दए अक्षरेक मचान बन्हैछ । एकर मर्म बूझि मिथिलाक भविष्णु सपूतसुपुत्री लोकनि अथक अक्षरसाधनाद्वारा बारल अपन गौरवदीपक अमर आलोकस विभ्रान्त विश्वक हेतु मंगलपथ सदैव उद्भासित करथि, से शुभ कामना ।




(साभार विदेह  www.videha.co.in )

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