Monday, November 21, 2011

मुन्नाजीसँ रमेश रंजनक अन्तर्वार्ता

रमेश रंजन

१. अहाँक रचनात्मक प्रवृति कोना जागल ? पहिल बेर की लिखल, कि छपल ?
हम लेखकसँ पहिने रंगकर्मी छलहुँ । मिनाप जनकपुरसँ संलग्नता छल । नाटक, ताहूमे
अभिनयमे रमल रहै छलहँु । मिनापक वातावरण साहित्यिक सेहो छलै । डा. धीरेन्द्र, डा.
विमल,महेन्द्र मलंगिया सन गुरुक सानिध्य भेंटल । मिनापक तात्कालीन अध्यक्ष योगेन्द्र साह
नेपालीक अभिभावकत्व । ओहि कालखण्डमे श्यामसुन्दर शशि, धर्मेन्द्र झा, धीरेन्द्र प्रेमर्षि,सुनील
मल्लिक सन समकालीन मीत्र रचना करऽ लागल छलाह । हुनका लोकनिक दवाबसँ हमहूँ
किछु–किछु लीखऽ लगलहुँ । हमर पहिल रचना छल, कविता जकर शिर्षक छलै– कचोट, आ
हमर पहिल कविते प्रकाशितो भेल छल जकर शिर्षक छलै–साकार । अइ कविताक नेपाली
अनुवाद तात्कालीन नेपाल राजकीय प्रज्ञा–प्रतिष्ठानक पत्रिका समकालीन सहित्यमे प्रकाशित
भेल छल ।
२. शुरुआतेसँ कथा लेखन केलहँु ? आओर कि सभ लिखलहँु अछि ?
नइ, कथा तँ हम बहूत बादमे लीखऽ लगलहुँ । सगर राति दीप जरए साहित्कि क्षेत्रमे जागरण
लाबि देने रहै । जर्वदस्त चर्चा भऽ रहल रहै । मुदा मैथिलीक केन्द्र जनकपुरमे आयोजन नइ भऽ
सकल रहै । जनकपुरमे आयोजन लएबाक हेतु हमरा कथा लीखऽ पड़ल रहए । पन्द्रहम् समारोह
पैटघाटमे हम कथा लीख कऽ सहभागी भेंलहुँ आ सोलहम समारोह जनकपुरमे हमरा
संयोजकत्वमे सम्पन्न भेल । आओर विधामे लिखबाक बात छै तँ हम सभ ओहिठामक लोक
छी जाहिठाम संख्यात्मक रुपें लिखनिहारक अभाव रहलै । तें आवश्यकता अनुसार लिखबाक
विवशता सेहो रहल । ओना कविता, कथा, नाटक, उपन्यास, आलोचना, वृतचित्र, फिल्म आ
टेलीसिरियलक लेखन सेहो कऽ रहल छी ।
३. अहाँक कथा कथानक कि रहैछ, आ ओकर मूल ध्येय की रहैछ ?
हमरा कथाक विषयवस्तुक लेल बौआए नइ पड़ैए । अपन परिवेश आ आहि भितरक द्वन्दके
चिन्हित करै छी । ओकर सुख, दुःख, आन्नद, पीड़ा, संधर्षके भोक्ताक रुपमे अनुभूति करै छी ।
एकटा चेतना हमरा निर्देशित करैत अछि – ओ छै माक्र्सवादी सौन्दर्य चेतना । हमरा बुझने
हमर साहित्यक ध्येय के आओर स्पष्टीकरण्क अवश्यकता नइ छै ।
४. अहाँ अपन कथा लेखनक प्रारम्भिक दौरसँ अखन धरिक यात्रामे की परिवर्तन पबैत छी ?
विचारक स्तरपर खास नइ । प्ररम्भमे आवेश छल– अनियन्त्रित आवेश, आब थोड़े नियन्त्रणमे
अछि । कहन शैली पहिनेसँ थोड़े परिपक्व बूझारहल अछि । अर्थात शिल्प आ भाषाक स्तरपर
थोड़े प््रभावशाली लेखन कऽ रहल छी, सन बुझाइए ।
५. नेपाली आ मैथिली कथा साहित्य मध्य मैथिली कथा कतऽ अछि ? दुनूमे समानता आ
भिन्नता की छै ।

जे भारतीय मैथिलीमे हिन्दीक आगू मैथिलीक अवस्था छै । नेपाली राज्य संरक्षित भाषा छै ।
राज्य अपार संभावना बनौलकै ओहि भाषामे तें संख्यात्मक आ गुणात्मक दुनू रुपें पर्याप्त लेखन
भऽ रहल छै । मैथिलीमे सेहो समकालीन कथा साहित्यिक प्रतिनिधि कथा लेखन होइ छै, मुदा
संख्या अत्यन्त न्यून छै । समानता आ भिन्नताक बात जहाँ तक छै तँ देश भितरक
औपनिवेशिकताके भोगिरहल अछि मिथिलाक लोक । ओ समानता चाहैए, नागरिक अधिकार
चाहैए, मुक्तिक छटपटी छै मैथिली साहित्यमे, नेपाली शासक वर्गक भाषा छै । मुदा नेपाली
कथामे नेपालक प्रतिनिधि कथाक अभाव छै, जातीय कथाक संकीर्ण घेरासँ बाहर नइ निकलि
सकल अछि ।
६. अहाँ रंगकर्मसँ सेहो शुरुएसँ जुड़ल रहलहुँ अछि । कि कोनो नाटको लिखलहँु अछि ? अहाँक
विचारमे लेखन आ रंगकर्ममे शुलभ आ सम्प्रेषनीय ककरा मानैत छी ?

हँ, से तँ हम अपनो स्पष्ट कऽ चूकल छी । नाटक लिखलहुँ अछि । आधा दर्जनसँ बेसी मंचीय
नाटक, ओतबे नुक्कड़ नाटक आ रेडियो नाटक सेहो खूबे लिखलहुँ अछि । हमर विचार कि ?
सर्वमान्य विचार छै जे नाटक शुलभ आ सम्प्रेषानीय होइ छै । श्रव्य आ दृश्य गुणक कारण ।
७.अहाँ अपन रंगकर्म मध्य अपनाके कतऽ मानै छी ? अहिमे मिनापक योगदान कत्ते मानै छी ?
अपना विषयमे मूल्याङकन करब कठीन होइ छै । नाटक अहूना समूह कार्य छै । तें समूहक
सफलता–विफलतामे व्यक्तिक सफलता–विफलता जुड़ल रहैत छैक । जँ मिनाप सफल छै तँ
हमहूँ सफल छी । हमरा रंगकर्मक प्रारम्भमे हमर गाम परवाहा आ हमर रंग–यात्राके एतऽ धरि
पहुँचाबऽमे सम्पूर्ण योगदान मिनापे के छै ।
८. नेपाली रंगकर्मसँ मैथिली रंगकर्म स्तरीयताक मादे कत्तेक लग आ दूर अछि ?
विश्व रंगमंचक प्रयोग आ प्रविधिसँ नेपाल परिचित भऽ रहल अछि । नेपालसँ हमर अर्थ अछि
कोनो खास भाषा नइ सम्पूर्ण नेपाल । जकरामे जहिना व्यावसायिक दृष्टिकोण छै, तकरामे
रंगमंचीय ज्ञानक विस्तार ताही रुपें भऽ रहल छै । समकालीन नेपालक रंगमंच मध्य मैथिली
अत्यन्त सम्मानित अवस्थामे अछि । मुदा नेपालीक तुलनामे मैथिलीक रंग समूह कम छै ।
नेपालीमे सेहो स्थायी स्वरुपक समूह बहूत थोड़ छै । मुदा एम्यचोर थिएटर कएनिहारक संख्या
बहूत छै । तखन मिनाप मात्रक प्रतिनिधित्वसँ गर्व कएल जा सकैए ।
९.मिनापसँ एखन सरिपहुँ अहाँक अटूट जुड़ाब देखल जा रहल अछि, एखन धरि अहाँ मिनापके कि देलियै आ मिनाप अहाँके की देलक ?
जरुर ! मिनाप हमरा सभकिछु देलक । व्यक्तिगत प्रगति आ सार्वजनिक जीवनमे सम्मानक
अन्तर कारण मिनाप अछि । देशक नाट्य सङ्गीत क्षेत्रक सर्वोच्च संस्था नेपल सङ्गीत तथा नाट्य
प्रज्ञा–प्रतिष्ठानक प्राज्ञ परिषद सदस्य आ नाट्य विभाग प्रमुखक नियूक्तीमे मिनापक सेहो मुख्य
भूमिका छै । हम की देलियै तकर मूल्याँकन अन्य मीत्र लोकनि करथि । हँ, एतेक जरुर कहव जे
अपना जीवनक सर्वाधिक उर्जाशील समय मिनापके देलियैक अछि ।
१०. अहाँ अपना अगिला पिढ़ी (बेटी प्रियंका ) के अहिसँ जोड़बाक कि ध्येय अछि ? कि
मिनापक कलाकार मिनापसँ (यथा फिल्म अभिनय ) आगू जा सकल अछि ? ( अपनाके बाड़ि
कऽ कहू )

ओकरो हमरे जकाँ रंगकर्म करबाक इच्छा भेलै, हम रोकलियै नइ बड़ु प्रोत्साहित कएलियै ।
समान्यतः ई कहल जाए जे हम रंगकर्मके नइ तँ अछूत कार्य मानलियै ने निकृष्ट तें नइ
रोकलियै । मिनापक कलाकार मिनापसँ आगू ? ई कोना हतै ? मिनापक कोनो कलाकारक
मिनापसँ आगूक ध्येय नइ छै । कलाक सम्पूर्ण साधना आ क्षमतमके मिनापक हेतु समर्पित करऽ
चाहैए मिनापक कलाकार । मिनापसँ आगू अपने फिल्म दिश संकेत केलहुँ अछि, तँ ई मान्यता
हम स्वयं नइ रखै छी । नाट्य अभिनयसँ पैघ फिल्म अभिनय नइ भऽ सकैए । चर्चा आ
व्यावसायिक सफलता आगू जएबाक मापदण्ड नइ छियै । ओना फिल्मसँ परहेज नइ छै
मिनापक कलाकारके । ओहो अभिनये छै । मिनापक अधिकांश कलाकार फिल्म क्षेत्रमे सेहो
स्थापित अछि । मुदा मिनापक अधिकांश कलाकार फिल्मसँ बेसी नाटकके प्रथमिकता दैए ।
११.मैथिली रंगकर्ममे तकनिकी सुलभताक कारण चूनौती आओर बढ़ि गेलैए ? रंगकर्मक भविष्य
कि छै ?

जतऽ चूनौती छै ओत्तै संभावना छै । तकनिकक सुलभता तँ छै, मुदा मैथिली रंगमञ्च ओहिसँ
परिचित भऽ रहल अछि कि नइ ? समान्यतः मैथिली रंगकर्म मध्कालीन अवस्थामे अछि ।
भौतिक पूर्वधारक अभाव छैके । मिथिलाक मूल भूमिमे रंग गतिविधि शून्य छै । अप्रवासी रंगकर्म
कृतिम स्वाँस आपूर्ति मात्र छै । तें पाठ आ मंच दुनूक तकनिकी वैशिष्ठ्यक निरन्तर अन्तरघुलन
मैथिली रंगमञ्चक भविष्य निर्धारण करतै ।
१२. नेपालमे मैथिली सहित्यक भविष्य केहन देख रहल छियै, कत्ते दिन टिक पाओत ?
भविष्य बेजाए नइ छै । भाषिक चेतनाक स्तर उठलैए । खतरो ओतबे बढ़लैए । मुदा समग्रतामे
बहूत चिन्ताजनक अवस्था नइ छै । कत्ते दिन टिक पाओत ? एखन भविष्यवाण्ी नइ करी । ई
मृत्यूक समय निर्धारण जकाँ भऽ जाइ छै । भाषाके मूर्त बनबै छै साहित्य कला तें ई मरब तँ
स्वयंके मृत्यू छै एकर कल्पना नइ करी ।
१३. मैथिली साहित्यपर शुरुसँ जाति विशेषक बर्चस्व रहलै । आब झूण्डक–झूण्ड सक्रिय
पिछड़ल समूदायक लोकक प्रवेशसँ एकर भविष्य केहन मानिरहल छी ?

ई यर्थाथ छै । मिथिलाक सामाजिक संरचना सामन्ती रहलै । कर्मकाण्डीय लोकक बर्चस्व ।
संस्कृतक विरुद्ध आम लोकक भाषाके सिर्जनात्मक अभिव्यक्ति देबाक लेल मैथिलीक जन्म भेल
छलै । मुदा संस्कृत पूनः अजगर जकाँ गछेर लेलकै । आम लोक अहि भाषासँ दूर होइत गेल ।
खाँटी मैथिली पिछड़ल वर्ग संगे छै । अधिकांश गाममे रहनिहार अहि वर्गक संग अभिव्यक्तिक
हेतु दोसर भाषा नइ छै । संस्कारमे मैथिली छै । पूजा, पाठ, अनुष्ठान, गाथा सभमे मैथिली छै ।
कथित देव भाषाक प्रभावसँ बँचल अछि ओ समूदाय । तें सूच्चा मैथिल जँ मैथिलीके नेतृत्वमे
आँगा अबैत अछि तँ अहिसँ आह्लादकारी आओर की हेतै ।
१४.कि मिनाप जाति–पाँतिक फाँट मध्य टीकल अछि ? कि ओहो कोनो द्वन्दक शिकार अछि ?
नेपालमे अखन ई विषय प्रवेशे कएलकै अछि । समान्यतः ई वहशक विषय छै । वहश करब
समस्याके निरुपण करब छियै । कानो गम्भिर द्वन्द नइ छै मिनापमे ।
१५.अन्तमे अपन पछिला आ नवका रचनाकार , रंगकर्मी कि कहऽ चाहब अहाँ ?
कोनो खास नइ । बहूत किछु कहि चूकल छी, आब कहब आवश्यक नइ छै । अनेरो उपदेश नइ
छाँटल जाए ।
(साभार विदेह  www.videha.co.in )

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