Saturday, September 1, 2012

वि‍देह बाल साहि‍त्‍य सम्‍मान २०११ सँ सम्मानित ले.क. मायानाथ झासँ उमेश मण्डलक साक्षात्कार

वि‍देह बाल साहि‍त्‍य सम्‍मान २०११ सँ सम्मानित ले.क. मायानाथ झासँ उमेश मण्डलक साक्षात्कार

उमेश मण्‍डल- सभसँ पहि‍ने वि‍देह बाल साहि‍त्‍य सम्‍मान २०११ लेल अपनेकेँ बहुत-बहुत बधाइ...।
अहाँक नजरि‍मे साहि‍त्‍यक उद्देश्‍य की अछि‍?
मायानाथ झा-    साहि‍त्‍य समाजक दर्पण थीक। सामाजि‍क गति‍वि‍धि‍, एवम् क्रि‍या-कलाप साहि‍त्‍येसँ प्रति‍वि‍म्‍बि‍त होइत अछि‍। मनुष्‍य तँ नश्‍वर होइत अदि‍, कि‍न्‍तु ओकरहि‍ंसँ ि‍नर्मित साहि‍त्‍य अक्षुण्‍ण होइत अछि‍। कोनो देश एवम् कालखण्‍ड साहि‍त्‍यक बलेँ चि‍रकाल धरि‍ जीबैत अछि‍। से ि‍नर्भर करैत अछि‍ जे भावी पीढ़ी कोन रूपेँ ओकरा सहेज-समटि‍ कऽ रखने रहैत अछि‍।

उमेश मण्‍डल-   अहाँक साहि‍त्‍यमे इति‍हास/संस्‍कृति‍ (खास कऽ मि‍थि‍लाक) केना वर्णित होइत अछि‍?
मायानाथ झा-    हमर साहि‍त्‍यक मुख्‍य वि‍धा अछि‍- कथा। कथा एवं कवि‍ताक माध्‍यमसँ हम पुरान एवं प्रचलि‍त बात, वा घटना सबहक वर्णन केलौं अछि‍ जइमे इति‍हास-संस्‍कृति‍क पुट अछि‍। कथोकेँ खि‍स्‍सा-पि‍हानी जकाँ वर्णित केलौं अछि‍। चारि‍त्रि‍क एवं सांस्‍कृति‍क झलक ओइमे मूलत: छैके।

उमेश मण्‍डल-   दि‍नानुदि‍नक अनुभवक अहाँक साहि‍त्‍यमे कोन तरहेँ वि‍वेचन होइत अछि‍?
मायानाथ झा-    आक्रोश एवं आन्‍तरि‍क वेदनाक रूपमे। आधुनि‍क बदलैत परि‍वेशमे जखन अपन उत्तम आचार-वि‍चार, उत्‍कृष्‍ट परम्‍परा एवं समृद्ध संहि‍ताकेँ वि‍लाइत देखैत छी तँ घोर दु:ख होइत अछि‍ आ तखन सहए ने वाणी वा लेखनीसँ नि‍कलतैक, जेना-
“नहि‍ कनिञों संकोच छै, माय बापक बोझ नहि‍ उठेवामे।
लाज तऽ छैक नहि‍, धाखोसँ कटि‍ जयबामे।
उतकि‍रना बुझाइत छैक, प्रदूषण फैलाबएमे।
हेठी बुझाइत छैक, मातृभाषा बजबामे।
की अटपट गप्‍प अछि‍, केहन भारी वि‍डम्‍बना अछि‍!”

उमेश मण्‍डल-   साहि‍त्‍यक शक्‍ति‍क वि‍षएमे अपनेक की कहब अछि‍?
मायानाथ झा-    साहि‍त्‍यक शक्‍ति‍क प्रसंग पुछलौं तँ हमरा मोन पड़ि‍ आएल अछि‍ रामधारी सि‍ंह दि‍नकरक कवि‍ता-
“दो में से क्‍या तुम्‍हें चाहि‍ए कलम या कि‍ तलवार?
तन में अजय शक्‍ति‍, या मन में जागे उच्‍च वि‍चार।”
साहि‍त्‍यक शक्‍ति‍ अजेय, अपरि‍मेय होइत अछि‍। अपन समाज कि देश साहि‍त्‍ये शक्‍ति‍क बदौलति‍ वि‍श्वमे एतेक चर्चित-अर्चित अछि‍। तहूमे हमरा लोकनि‍ वि‍शेष रूपेँ। मि‍थि‍लावासी आन्‍दोलनकारी नहि‍ऍंटा होइत अछि‍। आइ धरि‍ साहि‍त्‍यक शक्‍ति‍क बलेँ अपनाकेँ अधि‍कृत वा प्रति‍ष्‍ठि‍त रखैत एलाह अछि‍।
x`    
उमेश मण्‍डल-   अहाँक साहि‍त्‍यमे पाप-पुण्‍यक विश्लेषण केना होइत अछि‍?
मायानाथ झा-    “परोपकाराय पुण्‍याय, पापाय परपीड़नम्” रूपमे। सत्‍कर्म धर्म थीक आ दुष्‍कर्म पाप। साहि‍त्‍य सेवनसँ जँ चरि‍त्रक ि‍नर्माण भेल तँ पुण्‍य कमेलौं नै तखन पापोन्‍गामी हएब सुनि‍श्चि‍त। दु:खक गप्‍प जे वर्तमान परि‍प्रेक्ष्‍यमे चारि‍त्रि‍क गठनपर कम जोर देल जाइत अछि‍। धनोपार्जन संबंधि‍त शि‍क्षा तइपर बेशी हाबी भेल जा रहल अछि‍।

उमेश मण्‍डल-   कल्‍पना आ यथार्थक समन्‍वय अहाँ अपन साहि‍त्‍यमे केना करैत छी?
मायानाथ झा-    कल्‍पनाक हवा-महलपर हमरा उड़ए नै अबैत अछि‍। तँए हमर रचनामे कल्‍पनाक आधार भीत्ति‍-प्रायेः कतौ दृष्‍टगोचर होएत। परम्‍परागत वि‍म्‍बकेँ अभि‍नव वि‍म्‍बक संग हम समन्‍वय करैत छी जे हमर भोगल एवम् अनुभवक आधारशि‍लापर ठाढ़ रहैत अछि‍। वि‍वि‍ध भावक संग जुड़ल वि‍वि‍ध वि‍षय आत्‍मीयताक डोरी पकड़ि‍ नि‍स्‍सरि‍त होइत अछि‍।

उमेश मण्‍डल-   अहाँक साहि‍त्‍यमे पात्र जीवन्‍त भऽ उठैत अछि‍, तेकर की‍ रहस्य?
मायानाथ झा-    पात्र यथार्थताक संग जुड़ल रहैत छथि‍, लाग-लपेट वा आडम्‍बरक तामझामक बीच ओझराएल नै रहैत छथि‍ आ तँए बुझाइत अछि‍ जे शब्‍द वि‍न्‍यास, वाक्-पटुताक आलम्‍बन नहि‍यो रहैत ओ मुखर भऽ उठैत होथि‍‍। पाठकक दृष्‍टकोण एवम् अभि‍रूचि‍ सेहो ऐ प्रसंग अपन महत रखैत अछि‍।

उमेश मण्‍डल-   साहि‍त्‍य लेखन, वि‍शेष कऽ मैथि‍ली साहि‍त्य लेखन अहाँ लेल कोन तरहेँ वि‍शि‍ष्‍ट अछि आ एकर प्राथमि‍कताकेँ अहाँ कोन तरहेँ देखै छी?
मायानाथ झा-    हि‍न्‍दी कवि‍ताक दू पाँति‍ मोन पड़ैत अछि‍-
“जि‍नको न नि‍ज देश का, नि‍ज भाषा का अभि‍मान है।
वह नर नहीं वह पशु ि‍नरा और मृतक समान है।”
अपन भाषाक प्रति‍ हमरा अगाध सि‍नेह अछि‍। सेनामे प्रवासक संग ई प्रेम आओर प्रगाढ़ भऽ गेल बंगला एवं दक्षि‍णक नि‍वासीकेँ देखि‍ कऽ‍। भाषाक प्रति‍ ओ लोकनि‍ खूब कट्टरवादी होइत छथि‍। दोसर, कि‍छु अपवाद छोड़ि‍ हम इएह देखैत अएलौं अछि‍ जे लोक जतेक अपन भाषामे मुखरि‍त होइत अछि‍ ततेक आन भाषामे नै। हमर शि‍क्षा गामहि‍-घरमे भेल अछि‍ तँं हि‍न्‍दी-अंग्रेजी नीक जकाँ लि‍खबाक-पढ़बाक लूरि‍ रहि‍तो हम अपन भाषामे बेशी सहज रहैत छी। अवकाश प्राप्‍ति‍क बाद हम अपन डोरि‍ सेहो आबि‍ गेलौं, तँ हम मैथि‍ली साहि‍त्‍यकेँ प्राथमि‍कतासँ लेल अछि‍। अपन तँ अपनहि‍ ने होइत छैक, जँ अनकर वस्‍तु बड्ड प्रि‍य आ अपन बड्ड अधलाहक मनोवृत्ति‍क संक्रमणसँ ग्रसि‍त नै होइ।
 
उमेश मण्‍डल-   की अहाँ कोनो तथ्‍यक झँपलाहा भाग उघारैत छि‍ऐक? अगर हँ तँ केना आ नै तँ किएक?
मायानाथ झा-    तथ्‍यक झँपलाहा भाग की भेल? कोनो पात्रक वा कोनो रीति‍क अशोभनीय अंश ओकर विद्रुपता, कुरूपता, अश्‍लीलता। जखन अहाँ वि‍वेचना करबैक तँ नींक-अधलाह दुनू देखबहि‍ पड़त। वि‍द्रूपताक वि‍श्लेषणात्‍मक वर्णन तँ बड्ड नीक मुदा ओकर बखि‍या उघाड़ब वा चीरहरण करब हमरा अवांछनीय लगैत अछि‍। सुधी पाठकक लेल इंगि‍त कऽ देब मात्र वेश भऽ जाइत छैक। सकारात्‍मक पक्षकेँ वि‍शेष रूपेँ दर्शाएब प्राय: सभ रचनाकारक उद्देश्‍य रहि‍ते छन्‍हि‍ कारण नीक साहि‍त्‍य आखि‍र कोन भेल वएह ने जे नीक तथ्‍यकेँ अमूल्‍य नीधि‍ साबि‍त कऽ सकए। तथ्‍यक उत्तमता, उत्‍कृष्‍टता पाठककेँ बि‍नु झकझोरिने नै छोड़ए।

उमेश मण्‍डल-   अहाँ कहि‍या-सँ-कहि‍या धरि‍ प्रवास केलौं? प्रवासमे एतेक दि‍न बि‍तेलाक बादो अहाँक रचनामे मि‍थि‍ला आ ओकर संस्‍कृति‍ मुख्‍य रूपसँ भेटैत अछि‍, की ई नोसटेलजि‍या छी? की प्रवास रहि‍ ओतुक्‍का अनुभवक लेखनक अहाँ प्रथमि‍कता अहाँ नै बुझै छि‍ऐक?
मायानाथ झा-    भारतीय थल सेनाक डाक शाखामे हम अपन जीवनक छत्तीस वर्ष आठ मास सत्रह दि‍न (13. 09. 1969 सँ 31. 05. 2006) बि‍ताओल। इहए हमर प्रवास काल-खण्‍ड थीक। लगभग चारि‍ दशकक बेदाग दीर्घ सेवापर हमरा गर्व अछि‍।
            सैन्‍य वि‍षयपर हम कि‍छु वि‍शेष नै लि‍खलौं अछि‍ से सही, कि‍न्‍तु तकरा हम अपन नैटटेलजि‍या नै मानैत छी। हमर पोथी सभमे लि‍खल भूमि‍का सैन्‍य जीवनक अनुभव आ परि‍पाटीक आधारेपर वर्णित अछि‍। एकटा कवि‍तामे छोटछीन बातक जि‍क्र सेहो अछि‍, नवीन रचना ‘हास्‍य ऊर्जा’ मे अनेक चुटकुलाक समावेश अछि‍। मोनमे जे एकटा वि‍शेष रचना (आत्‍म कथाक रूपमे) अकार नेने अछि‍ तकरा साकार नै कए सकलौं अछि‍। जाधरि‍ भगवतीक कृपा नै हएत ताधरि‍ नै भए सकत कारण हमर वि‍श्वास ओहीपर आधारि‍त अछि‍। जे भवतव्य हो सएह।

उमेश मण्‍डल-   अहाँ कहि‍यासँ लेखन प्रारम्‍भ केलौं, केकरा लेल लि‍खलौं, आइ-काल्हि‍ केकरा लेल लि‍ख रहल छी?
मायानाथ झा-    हम बाल्‍यावस्‍थेसँ लेखन प्रारम्‍भ केलौं। स्‍वजन गुरुजनकेँ कि‍छु फकरा-पि‍हानी जकाँ बना कऽ सुना दैत छलि‍यनि‍। मोन अछि‍ बहि‍नक सासुरमे बकरी मीयाँ दर्जीपर कि‍छु कड़ी जोड़ि‍ कऽ सुना देने रहि‍ऐ 1956-57क बीच। चवन्नी पारि‍तोषि‍क भेटल रहय। तकर बाद सांस्‍कृति‍क कार्यक्रम सभमे हम अपन भाषा सेनामे हि‍न्‍दी वा भोजपुरीमे पौरोडी बराबरि‍ बनबैत रहलौं अछि‍। पैरोडी गीत आकर्षणक वि‍शेष माध्‍यम बनि‍ जाइत छल। बराबरि‍ सराहना भेटैत रहल। सेनाक अपन शाखाक पत्रि‍का (मेल-मि‍लाप) मे हमर कवि‍ता आ आलेख बराबरि‍ छपैत रहल। पहि‍ल बेर प्राय: 1977-78 मे। कर्णामृत मैथि‍ली पत्रि‍कामे हमर क्रमश: दू गोट कवि‍ता छपल अछि‍, 2004 क सन्‍धि‍ कालमे।
हमरा जनैत कि‍यो लि‍खैत अछि‍ पहि‍ने अपना लेल। अपन लेखन हमरा भरपूर स्‍वान्‍त: सुख दैत अछि‍। तखन तँ लेखक अपन वि‍चार, भाव, मनोव्‍यथा, मोनक खुशी सभटाकेँ लेखनीक माध्‍यमसँ दोसरा तक पहुँचाबए चाहि‍ते अछि‍। भनसीयाक कएल भानसकेँ आन जखन खाइत छैक तखने ने ओकरा नीक भेलैक कि बेजाए से कहैत छैक। सएह बात लेखकोक प्रति‍ होइत छनहि‍। पाठके ने हुनक कृति‍क अवलोकन कए गुण-दोषक वि‍वेचना करैत छथि‍।
ओना हम वि‍शेषतया लि‍खैत छी, बच्‍चा, कि‍शोर, एवं युवा वर्गकेँ धि‍यानमे रखैत। हुनका लोकनि‍मे आजुक ि‍शक्षासँ सशक्त चारि‍त्रि‍क गठन होइत नै देखाइत अछि‍ जे अत्‍यन्‍त दयनीय एवं चि‍न्‍तनीय बात बुझाइत अछि‍। अर्थोपार्जनजनि‍त शि‍क्षा नैति‍कताक आधारशि‍ला कथमपि‍ नै गढ़ि‍ सकैत अछि | दोसर समस्‍या अछि‍ नवका पीढ़ीक अपन भाषासँ वि‍मुख होएब। ओहू पाछू ओएह अर्थ-पि‍शाच आबि‍ गेल छैक। वि‍द्वान भएक पूजि‍त हएब आजुक पीढ़ीक सेहन्‍ता  नै प्रत्‍युत-अरबपति‍ बनि‍ नाम कमाएब नि‍यति‍ छैक।

उमेश मण्‍डल-   की अहाँकेँ ई लगैत रहल अछि‍ जे मुख्‍य धारासँ अहाँ कति‍याएल गेल छी? अहाँक रचनामे समाजकेँ बाहरसँ देखबाक प्रवृति‍क की कारण?
मायानाथ झा-    प्रश्न पूर्णतया बोधगम्‍य नै प्रतीत होइत अछि‍। हमर कोन रचना मुख्‍य धारासँ कति‍आएल लागि‍ रहल अछि‍? मुख्‍य धारासँ अपनेक की तात्‍पर्य अछि‍? हमरा नै बूझि‍ पड़ैत अछि‍ जे हमर कोनो रचना ई लक्षि‍त करैत अछि‍ जे हमर प्रवृत्ति‍ समाजकेँ बाहरसँ देखबाक अछि‍। व्‍यक्‍ति‍क समष्टि समाज होइत छैक‍। समाजसँ बाहर व्‍यक्‍ति‍क अस्‍ति‍त्‍व तँ अर्थहीन भऽ जाइत अछि‍। हँ, बुद्धि‍जीवी समाजक आलोचक,वि‍वेचक एवं चि‍न्‍तक तँ होइते अछि‍। हम तँ अपनाकेँ अपन रचनाक माध्‍यमसँ कोनो रूपमे तइ सीमाक पार जाइत नै बूझि‍ रहल छी।

ि‍वदेह-        अपन साहि‍त्‍य आ रचनामे की स्‍वयंकेँ पूर्णरूपसँ इमानदार राखब आवश्‍यक छै?
मायानाथ झा-    रचनामे कोनो लेखकक ई अभि‍लाषा रहैत छैक जे ओ तथ्यके चरम बि‍न्‍दु तक लऽ जा सकए आ ई ि‍नर्भर करैत छैक ओकर लेखनीक शक्‍ति‍ आ चातुर्यपर। लेखकक ईमानदारीक निर्णायक होइत छथि‍ पाठक। पाठक होइत छथि‍ वि‍भि‍न्न रूचि‍ एवं वि‍चारक। तँए एक्के रचनाक प्रति‍ वि‍भि‍न्न पाठकक प्रति‍क्रि‍या वि‍भि‍न्न होइत अछि‍। रचनाकार अपन हि‍साबेँ अपने जगहपर रहि‍ जाइत अछि‍।

उमेश मण्‍डल-   मैथि‍ली साहि‍त्‍य आइक दि‍नमे की ई सभ (साहि‍त्‍यकार)क सामुहि‍क दोष स्‍वीकृति‍क रूप नै बुझना जाइत अछि‍?-
मायानाथ झा-    पुन: प्रश्न स्‍पष्‍ट नै अछि‍। तँए हमर कोनो प्रति‍क्रि‍या नै।

उमेश मण्‍डल-   की अहाँकेँ लगैत अछि‍ जे अहाँक पोथीकेँ हि‍न्‍दी, बंग्‍ला, नेपाली, अंग्रजी आदि‍ भाषामे अनुवाद कएल जाएत? तइ स्‍थि‍ति‍मे ओतए एकर कोन रूपेँ स्‍वागत हेतैक? की अहाँक साहि‍त्‍य ओइ भाषा आ संस्‍कृति‍ सभ लेल ओतबे महत्‍वपूर्ण रहतै जते ओ मैथि‍ली भाषा आ संस्‍कृति‍ लेल छै? अहाँक लेखन भाषा-संस्‍कृति‍ नि‍र्पेक्ष कि‍अए नै भऽ सकल?
मायानाथ झा-    हमर पोथी जँ अन्‍य कोनो भाषामे अनुवाद हुअए तँ ओ ओतबे स्‍वागत योग्‍य हएत जतबा ओ अपन भाषामे अछि‍। ओकरामे कोनो एहन बात नै छैक जे दोसर भाषामे अनुवाद भेने ओकर महत्ता न्‍यून भऽ जाइक। हमर पोथीक कोनो कथा भाषा-संस्‍कृति‍सँ तेना भऽ कऽ आबद्ध नै अछि‍ जे दोसराक लेल अग्राह्य बनि‍ जाएत।
 
उमेश मण्‍डल-   अहाँक भाषा तँ मैथि‍ली अछि‍ मुदा अहाँक लेखनपर बाहरी भाषा, संस्‍कृति‍, वि‍चारधाराक प्रभाव पड़ल अछि‍, कतौ-कतौ ई स्‍पष्‍ट अछि‍ मुदा बेसी ठाम नै, एकर की कारण?
मायानाथ झा-    सैन्‍य जीवनक क्रममे हम भारतक वि‍भि‍न्न क्षेत्रमे रहलौं खास कए कऽ पूर्वी एवं उत्तर-पूर्वी क्षेत्रमे। वि‍भि‍न्न भाषासँ पाला पड़ल। मुदा हाबी रहल मुख्‍यतया अपने भाषा। छि‍टपुट रूपेँ आनो भाषाक शब्‍द वि‍शेष रूपमे ऊर्दूक प्रयोगमे आबि‍ गेल हएत। ओना कौखनक कथानकपर वि‍शेष जोर देबाक गैर-भाषीय शब्‍दक प्रयोगकेँ हम अनुचि‍त नै बुझैत छी। सेनामे भाषाक शुद्धतापर ओतेक जोर नै देल जाइत छैक जतेक कथनक स्‍पष्‍टतापर, भलहि‍ं भाषा खि‍चड़ी कि‍एक नै भऽ जाए।

उमेश मण्‍डल-   अहाँक रचनाक प्रचार ऐ पुरस्‍कारक बाद भयंकर रूपसँ भेल अछि‍, अहाँकेँ ऐसँ केहेन अनुभव भऽ रहल अछि‍?
मायानाथ झा-    प्रसन्नता होइत अछि‍, उत्‍साह बढ़ल अछि‍। कि‍न्‍तु, प्रचार जे भेल हो, मुदा पोथीक मांग आइ धरि‍ कतौसँ नै आएल अछि‍, तँए प्रचारकेँ प्रस्‍तर बुझी तँ से आखि‍र केना?
            वि‍देह साहि‍त्‍य सम्‍मानक प्रति‍ सादर आभार।


No comments:

Post a Comment