जगदीश मल्लिक (श्री जगदीश मल्लिककेँ विदेह
हस्तकला सम्मान- २०१२ देल गेल। बेचन ठाकुर हुनकासँ साक्षात्कार लेलनि।)
बे.ठाकुर- अहाँकेँ ऐ कार्यक प्रति रुचि केना आ कहियासँ जगल?
जगदीश मल्लिक- पथिया, कोनियाँ, चंङेरा,
बिआहक डाला बनेनाइ हमर खानदानी
पेशा अछि, बच्चेसँ ई सिखाएल गेल।
बे.ठाकुर- ऐ कार्य करबामे अहाँकेँ के प्रोत्साहित करैत अछि?
जगदीश मल्लिक- हमरा लेल ई काज हमर जीविका अछि, हमर माए-बाबू विशेष रूपसँ हमरा प्रोत्साहित करैत रहथि।
बे.ठाकुर- अहाँकेँ कार्य करबामे की प्रोत्साहित करैत अछि?
जगदीश मल्लिक- लोककेँ हमर काजक महीनी नीक लगै छै, सएह हमरा प्रोत्साहित करैत अछि।
बे.ठाकुर- पहिल बेर कोन कृति/ काजसँ अहाँ आरम्भ केलौं आ कहियासँ?
जगदीश मल्लिक- पथिया, कोनियाँ, चंङेरा,
बिआहक डाला, बिअनि, घिरनी,
फिरकी, गुड़चल्ला, बच्चेसँ बनबै छी।
बे.ठाकुर- अहाँ अपन काजमे १.“सोच”, २.“कोनो पुरान वा नव लीख” वा ३ “शिल्प” ऐ तीनूमे सँ केकरा प्रधानता दै छी?
जगदीश मल्लिक- हम अपन काजमे शिल्पकेँ ऐ तीनूमे सँ बेसी प्रधानता दइ छी।
बे.ठाकुर- अहाँ अपन काजक दिशाकेँ, रूपकेँ एक पाँतिमे कोन रूपमे वर्णन करब।
जगदीश मल्लिक- हमर शिल्प लोककेँ नीक
लगै छै, हमरा लोक बिसरि जाइए मुदा हमर शिल्पकेँ मोन राखैए।
बे.ठाकुर- अहाँक काजक समाजमे कोन स्थान छै? की ऐसँ समाजमे परिवर्तन एतै?
जगदीश मल्लिक- लोकक आवश्यकताक पूर्ति
होइ छै, हम सभ अखनो समाजसँ अलगे छलौं मुदा हमर सभक शिल्प अछूत नै अछि।
बे.ठाकुर- अहाँ जइ विधामे लागल छी ओकर की व्यक्तिगत विशेषता छै, ई ऐ क्षेत्रमे कार्यरत दोसर लोकक काजसँ कोन अर्थे भिन्न छै?
जगदीश मल्लिक- हम ऐ विधामे
लागल छी, ऐ क्षेत्रमे लोकक एगो विशेष पहचान रहबाक चाही छलै मुदा से नै छै। सुन्दर कलाकृति बनेनहार अछोप
छै!!
बे.ठाकुर- अहाँक विधाक क्षेत्रमे आन के सभ छथि आ ओ कोन तरहक विशिष्ट काज कऽ रहल छथि?
जगदीश मल्लिक- हमरा विधाक
क्षेत्र जातीय आधारपर अछि आ एकसँ एक बस्तु सभ बनबै छथि।
बे.ठाकुर- की अहाँक काज अहाँक जीवन-यापनक काजमे, घरेलू काजमे बाधा होइए वा सहायता पहुँचाबैए?
जगदीश मल्लिक- हमर यएह जीवन यापन छी तेँ
ई सहायता पहुँचाबैए।
बे.ठाकुर- अहाँ अपन आन रुचिक विषयमे बताउ।
जगदीश मल्लिक- ऐ केँ अलाबा
हमर सभक पुश्तैनी सुअर पालनक व्यवसाय अछि, मुदा नव पीढ़ी पढ़ि सेहो रहल अछि।
बे.ठाकुर- कोनो संदेश जे अहाँ देबए चाही।
जगदीश मल्लिक- ऐ सभसँ की हएत। लोकक
दिमागमे जे खेला छै तकरा दूर करए पड़त। सभकेँ समाजक अंग बुझए पड़त।
शिल्पीकेँ सम्मान देबए पड़त, कोनो काजकेँ खास कऽ हाथसँ करैबला काजकेँ सम्मान देबए पड़त।
कतेक शिल्पी मरि खपि गेला। मिथिलामे कलाक विस्तार केना हएत
जखन सुन्दर वस्तु बनबैबलाकेँ असुन्दर मानि बहिष्कार करब। अहाँ
लोकनि हमर शिल्पकेँ सम्मान देलौं ओइ लेल आभार। पढ़ाइ लिखाइ आ बदलल सोच दिमागी खेलाकेँ
दूर कऽ सकत, गलत सोचकेँ पटकनियाँ दऽ सकत, तखने शिल्प आ शिल्पकार आ हाथसँ काज केनिहारकेँ
सम्मान भेटतै। अहाँ सभ जीती तकर शुभकामना दै छी।
परिचए- श्री जगदीश मल्लिक, पिताक नाओं- स्व. स्वरूप मल्लिक, गाम+पोस्ट- चनौरागंज, भाया- झंझारपुर, जिला- मधुबनी (बिहार) केर स्थायी निवासी छथि। शिल्पकलामे हिनक प्रतिष्ठा छन्हि। हिनक बनाओल पथिया, कोनियाँ, चंङेरा, बिआहक डाला इत्यादि प्रशंसनीय होइत छन्हि। विदेह हस्तकला सम्मान- २०१२ सँ सम्मानित करैत विदेह परिवार प्रसन्नता महसूस कएलक अछि।
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