चन्दन कुमार झा: अपनेक जुड़ाव साहित्यक संग कोना भेल ?
गुणनाथ झा : साहित्यसँ जुड़ाव तऽ छात्र-जीवने सँ छल । हमर पिताजी पं॰घनानाथ झा सेहो साहित्यकार छलाह । हुनकर तीनटा कृति प्रकाशित सेहो भेल छलन्हि । हुनकर लिखल "भक्त गोविन्ददास" आ' "धरु गोविन्दक पएर" ग्रन्थालय सँ प्रकाशित भेल छलन्हि । ई दुनू पोथी गोविन्ददासक जीवनी छलैक । एकर अलावे "सहोदर वृहत गल्प" सेहो प्रकाशित भेल छलन्हि । हुनकर लिखल "चामुण्डा" आ' "सैव्या हरिश्चन्द्र" एखनो अप्रकाशित अछि मुदा पाण्डुलीपि एखनो उपलब्ध भऽ सकैत छैक । ई पोथी सभ आब हमरो ल'ग उपलब्ध नहि अछि । भऽ सकैत छैक जे दरभंगाक पुस्ताकलयमे कतहु होइ वा पं.चन्द्रनाथ मिश्र"अमर"जी ल'ग सेहो भऽ सकैत छन्हि । ई पोथीसभ जखन प्रकाशित भेलैक तखन हम स्नातकमे पढ़ैत रही आ' हमहीँ एकर प्रूफ देखने रही । ओहि समयमे साहित्य पढ़बाक रुचि तऽ रहए मुदा साहित्य-लेखन हम कोलकाता एलाक बाद प्रारंभ कएलहुँ ।
चन्दन कुमार झा: अहाँ कोलकाता कहिया ऐलहुँ आ' एतय मैथिली साहित्य आ'रंगमंच सँ कोना जुड़लहुँ ?
गुणनाथ झा : हम दिसम्बर १९६३ ईस्वीमे कलकत्ता आयल छलहुँ । तारीख हेतैक २३ वा २४ दिसम्बर । ओहि समयमे हम एम.ए. द्वितीय बरखक छात्र रही आ' एतय एबाक मुख्य-प्रयोजन छल आगाँक पढ़ाइ करब । जीवनमे पहिल बेर कोनो महानगर देखलियैक । कलकत्ता प्रथम दृष्टिए बड़ नीक लागल । ऐठाम हमर प्रथम ठेकान वा बासा छल भवानीपुर । जतए स्व. जयदेव लाभक ठेक रहन्हि । हम हुनके लग रही । ओतए हम मात्र तीन-चारि दिन रहलहुँ आ' एहि क्रममे स्व.श्रीकांत मण्डल भेँट भेल रहथि आ फेर ओ हमर परममित्र भऽ गेलाह । फेर किछु मास हुनके संग बीतल आ कालक्रममे कतेको बासा बदलल तकर आब ठेकानो नहि अछि ।ओही समयमे श्रीकांतजी सँ जे गप्प-सप भेल रहए तकर निचोर जँ कही तऽ यएह छल जे मैथिलीमे आधुनिक नाटकक परम अभाव छलैक जखन कि बङलामे सब प्रकारक नाटक लिखल गेल आ' मंचित होइत छलैक । श्री प्रवीर मुखर्जीक नाट्यदल"राजा-साजा" सँ श्रीकांत जी जुड़ल छलाह । प्रवीरबाबू स्वयं नाटककार, अभिनेता आ निर्देशक छलाह । ओ मैथिली नाटक सभक निर्देशन सेहो करैत छलाह । हमर "पाथेय"के सेहो ओ निर्देशन कएने छलाह आ एकर उल्लेख यादवपुर विश्वविद्यालय सँ प्रकाशित नाट्य-संकलनमे सेहो अछि । प्रवीरदाके नाटकक नीक परख रहन्हि । एहि तरहेँ हुनका सभक गोष्ठीमे श्रीकांतजीक संगे अबरजात भऽ गेल आ कलकत्ता अयलाक बाद शीघ्रे हम मैथिली नाट्य गोष्ठी " मिथिला कला केन्द्र" सँ जुड़ि गेलहुँ । बादमे एकर मंत्री सेहो भेलहुँ ।मुदा एहिक्रममे परमश्रद्धेय प्रबोधबाबूक अथक प्रयासक बादो हमर अपूर्ण पठन-पाठन चिरदिनेक लेल अपूर्ण रहि गले आ एलआइसीमे कार्यरत भऽ गेलहुँ ।
चन्दन कुमार झा: अहाँ नाट्य-लेखन दिश कोना आकर्षित भेलहुँ ?
गुणनाथ झा : कलकत्ता अएलाक बाद एहिठामक मैथिलजनक स्थिति देख मोनमे जेना उड़ि-बीड़ी लागि गेल रहए । दरभंगा धरि हमरा ई ज्ञान नहि रहए जे हमर समाजक लोक एतेक निराखर,एतेक अकिञ्चन आ परदेशोमे एतेक अवहेलित सन जिनगी जिबैत छथि । एहिठामक मैथिल-मैथिलीक ई दृश्य हमर निन्न जेना तोड़ि देलक । मोनमे बेर-बेर हुअए जे स्वजनक एहि दुर्दशाक प्रतिकार हेतु किछु करी । एहन संयोग भेलैक जे एकदिन रासबिहारी मोड़ पर फेर वएह बात उठलै जे कहियो श्रीकांत जी कहने छलाह । स्व.सुखदेव ठाकुर चर्च कए देलखिन्ह जे मैथिली भाषामे आधुनिक नाटकक लेखन नहि भऽ सकैछ । ओहिदिन ई बात जेना हमरा मोनमे गड़िगेल । मोनहि मोन प्रण लेलहुँ जे हम लिखब मैथिलीक आधुनिक विषय पर नाटक । विषय हमरा ल'ग रहबे करए । आ' से एक्कहि मासक अवधिमे हम मधुयामिनी आ पाथेय लिखलहुँ ।ओना एहिसँ पूर्व हम कनिञा-पुतरा लिखने रही मुदा ओकरा हम अपनहुँ आधुनिक नाटकक श्रेणीमे नहि गनैत छी । हमर आधुनिक नाटक-लेखन यात्रा "मधुयामिनी"सँ प्रारंभ भेल । फेर हम कनिञा-पुतरा, शेष नञि, आजुक लोक, लाल बुझक्कर, सातम चरित्र आ' जय मैथिली लिखलहुँ । महाकवि विद्यापति नामक एकटा एकांकी सेहो लिखने छी मुदा आब सोचैत छी जे एकरा पूर्णांक नाटक बना दियैक । एहि नाटक सभक कतेको बेर मंचन भेल । एकर अलावे हालहिमे बाङ्गला एकाङ्की नाट्य-संग्रह जाहिमे बांग्लाक २४ टा नाटककारक २४ टा एकांकीक संकलन अछि,तकर बांग्लासँ मैथिली अनुवाद कएलहुँ । ई पोथी साहित्य अकादमी दिल्ली सँ प्रकाशित अछि । मुदा अपन लिखल नाटक सभमे मात्र “पाथेय” प्रकाशित अछि सेहो आब बजारमे पोथी उपलब्ध नहि छैक । हमरो ल'ग मात्र एक्कहिटा प्रति बाँचल अछि । मधुयामिनी आ सातम चरित्र लोकमंच नामक नाट्य-पत्रिकामे प्रकाशित भेल रहए ।
चन्दन कुमार झा: नाटकक अलावे अपने कोनो आन विधा मे किछु लिखलियैक ?
गुणनाथ झा : हाँ नाटकक अलावे हम किछु कविता आ आलेख सेहो लिखलहुँ । ई सभ विभिन्न पत्र-पत्रिकादिमे छपल जेना पटना सँ प्रकाशित "मिथिला मिहिर"मे आ' देवघरसँ प्रकाशित "स्वदेशवाणी" मे ।
चन्दन कुमार झा: अहाँ मिथियात्री नामक नाट्य संस्था सेहो शुरु कएने रही तकर मादेँ किछु जानकारी देल जाउ ।
गुणनाथ झा : जखन हम कलकत्ता आएल रही तहियो आइए जकाँ मिथिला-मैथिली सँ संबंधित अनेक संस्थासभ छलैक । ओहि समयमे दयानंद ठाकुर एकटा नव नारा देने रहथिन्ह जकर चर्चा एखन कतहु नहि होइत देखैत छी । ओ कहलथिन्ह जे सभसंस्थाके एकीकरण कएल जाए मुदा ओहि समयमे हम एहिबातक विरोध कएने रहियैक । हमर मानब रहय जे सभ संस्था सब यदि अलग-अलग थोड़बो-थोड़बो काज करतैक तऽ मैथिलीक लेल कुल मिलाके बेशी काज हेतैक आ एहि सँ मैथिलीक बेशी प्रचार-प्रसार हेतैक । एहि क्रममेँ आपसी मतांतरक चलते मिथिला कला केन्द्र बंद भऽ गेल । हम स्व. फुलेश्वर झा, स्व. विश्वंभर ठाकुर,निरसन लाभ, दयानाथ झा, सूर्यकांत झा,आ' राजेन्द्र मल्लिककेँ संगे मिथियात्रिक स्थापना केलहुँ । दोसरदिश सीताराम चौधरी सेहो मैथिली रंगमंचक स्थापना केलाह । मिथियात्री बेशी दिन नहि चललै मुदा एकर नाट्य प्रस्तुति सालमे दू बेर होइत छलैक आ' आन-आन संस्था सभ प्रायः सालाना आयोजन करैत छल से कम्मो समयमे एकर नाट्यमंचनक संख्या एतेक भऽ गेलैक जे ई मैथिली रंगमंचक इतिहासक एकटा अभिन्न अंग बनि गेल रहैक । मुदा अपन मध्यायुक अबितहि हम आकस्मिक रूपेँ बीमार भऽ गेलहुँ आ' अपेक्षित सहयोगक अभाव मे बुझू तऽ दिवालिया भऽ गेलहुँ ।फलतः ने अभिष्ट दिशामे कोनो काज भऽ सकल आ ने आने किछु । लेकिन सभसँ बेशी जे बातक कचोट अछि से जे आन-आन संस्था सभ तऽ चलिते रहलैक लेकिन फेर हमर कोनो प्रयासक कतहु चर्चो तक किएक नहि भेलैक ? एहिसाल फेर किछु युवासभ सक्रिय भेलाह अछि आ' आशा करैत छी जे पूर्वक “मिथियात्री” आ “झंकार” आपसमे मीलि "मिथियात्रीक झंकार"केँ तत्वाधानमे अगिला दिसंबर तक गोटेक नाटकक मंचन करत ।
चन्दन कुमार झा: गुणनाथ झा मैथिली रंगमंच सँ कतिआएल गेलाह तकर कोन कारण अहाँक नजरि मे अबैत अछि ?
गुणनाथ झा : ओना तऽ हमर जन्मो दरबारेक परिवेशमे भेल छल मुदा बचपने सँ हमरा कहियो दरबारीपन नहि सोहाएल । शाइद तइँ हम एकात कऽ देल गेलहुँ । सभदिन हमर मूलमंत्र रहल अछि -"एकला चलो" लेकिन अपन काज करैत रहू । बीचमे कतेको संस्था वा रंगमंच हमरा सम्मानित करबाक आ'कि कहियौ जे अपना गुटमे सम्मिलित करबाक प्रयास कएलनि मुदा हम अपनाभरि एहिसभ सँ बचबाक प्रयास कएलहुँ । हम बुझैत छी जे एखन तक हम कोनो एहन काज करबे नहि कएलहुँ जाहि हेतु हमरा सम्मानित कएल जाए । हमर सोचल बहुत रास काज एखनो अपूर्ण अछि । ई सभ काज जहिया पूर्ण होयत तहिए हम मैथिलीके किछु सेवा कए सकलहुँ से बूझब । ओना कोनो संस्था हमरा सम्मानित केलक कि नहि एहिबातक हर्ष-विषाद हमरा मोनमे कहियो नहि रहल । हमरा लेल असली सम्मान हमर नाटकक दर्शकक थोपड़ी अछि । एकबेर "पाथेय" केर संबंध मे रामलोचनजी कतहु लिखने रहथिन्ह जे पाथेय तऽ एहन नाटक छैक जकरा यदि मंच पर सँ केयो एकगोटे पढ़ि मात्र देतैक तइयो दर्शक नहि हिलत । हमरा लेल एहन तरहक समीक्षा सभसँ पैघ सम्मान थिक । ओना कुल मिलाकऽ कहब जे क्रमशः लोकक धारणा बदलि रहल छैक । आस्था कतहु ने कतहु छैक मुदा कष्ट होइत अछि जखन काजके आगाँ बढैत नहि देखैत छी । संस्था सभसँ साहित्य आ' समाजकेँ कल्याण होइत नहि देखैत छी ।
चन्दन कुमार झा: अपने कहल जे एखनहु किछु काज अपूर्ण अछि । कोन काज छैक ई सभ ? गुणनाथ झा : सभसँ पहिने तऽ जे किछु लिखने छी से समाजक लेल लिखने छी । तैँ समाजक चीज समाजक हाथमे पहुँचि जाइ से प्रयासमे लागल छी । एकरा अलावे मैथिली रंगमंचक उत्थान होइ ताहि खातिर सेहो काज करब ।
अहाँ मैथिली नाटकक भविष्य केहन देखैत छी ?
नाटक एकटा पैघ आ' क्लिष्ट विधा छैक । एकरा लेल रंगमंच चाही संगहि दर्शक सेहो चाही । मुदा, वर्तमान मे नाटकक स्तर आ कलाकारक गुटबाजीमे दर्शक कमि गेलैए । एहनामे कखनो काल तऽ बुझाइत अछि जे मैथिलीमे नाटक कहीँ खतमे ने भऽ जाइ । फेर जखन कखनो नवतुरियाक सक्रियता देखैत छिऐक तऽ एकटा आस सेहो जगैत अछि ।
चन्दन कुमार झा: फेर मैथिली नाटकक विकास कोना हेतइ ?
गुणनाथ झा : नाटकक विकासके लेल आवश्यक छैक जे सम-सामयिक विषय पर केन्द्रित भऽ नाट्य-लेखन कएल जाए । नाटक बिना गुटक वा मंडलीक संभव नहि मुदा रंगमंचक गुटके रचनात्मक हेबाक चाही । नाटकमे संवादक भाषा पर सेहो धेयान देब आवश्यक होइत छैक । भाषा ओहन होइ जकरा पात्र सुगमतापूर्वक उच्चारण कए सकय आ' दर्शकके सेहो तत्काल भाव स्पष्ट होइ। एहिसँ ओवर-एक्टिंग सेहो नहि हेतैक । लेकिन भाषाक सुगमता माने एकदम्मसँ बोलचालक भाषा सेहो नहि हेबाक चाही । साहित्यक गरिमाकेँ सेहो धेयानमे राखल जेबाक चाही । एहिठाम हमरा एकटा बात मोन पड़ैत अछि जे बहुत दिन पहिनेके बात छैक । एकटा नाटककार, जिनकर स्थान वर्तमान मैथिली रंगमंच पर सर्वश्रेष्ठ कहल जाइत छन्हि, के पहिल नाटकक मंचन होइ बला रहैक । संयोग सँ हमर एकटा परिचित कलाकार ओहि रिहर्सल मे रहथि । रिहर्सलेके क्रममे निर्देशक ओहि नाटककारके सूचित कएलखिन्ह जे अहाँक एहि नाटकमे बड्ड गारि छैक से कने कम्म कऽ दियैक । तकर प्रत्युत्तर दैत ओ नाटककार कहलखिन्ह जे हमरा अपना जतेक गारि अबैत अछि ओकर दसांशो नहि एहि नाटकमे छैक । हमरा हुनकर ई बात सुनि छगुन्ता लागि गेल । आब कहू जे एहि सँ नाटकक स्तर केहन बचतैक ? नाट्यकारके हरदम ई प्रयास करबाक चाही जे मैथिली नाटक सर्वभारतीय मंच पर प्रतिष्ठित होइ । मैथिलीक नाटकक पोथीके भारतक आन-आन भाषामे अनुवाद कएल जाए आ' मंचन कएल जाए । तखने मैथिली नाटकक विकास हेतैक ।
चन्दन कुमार झा: तकनीकी दृष्टिकोण सँ मैथिली नाटक कतेक पछुआएल छैक ?
गुणनाथ झा : बहुत..बहुत पछुआएल छैक । एतय आइधरि कोनो एहन संस्था नहि छैक जतए नाटकक समुचित पढ़ाइ आ ट्रेनिंग देल जाए । बंगाली रंगमंच सँ कतेको गोटे सिनेमामे गेल लेकिन मैथिली रंगमंचमे कतहु एहन व्यवस्था नहि छैक । संगीत आ मंच परहुक प्रकाश व्यवस्था सेहो नाटक मंचनक हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण होइत छैक आ से एहि क्षेत्र सभक विकास हेतु सेहो प्रयासक जरुरति छैक । रंगमंच सँ जुड़ल संस्था सभकेँ नाट्यगृह बनेबा पर सेहो धेयान देबाक चाही ।
चन्दन कुमार झा: वर्तमान मे कोन नाटककार अहाँकेँ सभसँ बेशी प्रभावित करैत छथि ? गुणनाथ झा : आधुनिक मंच पर हम जतेक नाटककारके पढने-देखने छी ताहिमे कियो हमरा प्रभावित नहि करैत छथि । पुरानमे ईशनाथ झाक “उगना” आ “चीनीक लड्डू” एवं गोविन्द झाक “बसात” हमरा बेस प्रभावी लगैत अछि ।
चन्दन कुमार झा: कहल जाइत छैक जे मैथिली रंगमंच पर गुटबाजी के संगे जातिवादिता सेहो छैक । अहाँक केहन अनुभव अछि ?
गुणनाथ झा : हाँ...हम एहि सँ सहमत छी । ओना हमरा व्यक्तिगत रूपे कहियो एहिसँ (जातिवादिता) पाला नहि पड़ल अछि मुदा छैक ..निश्चिते छैक से हम अनुभव कएल । लेकिन ई सभटा नाटकक विकासक बाटमे बाधक छैक । एहिसभसँ हमरा सभकेँ खासकऽ नवतुरियाकेँ बचबाक चाही । रंगकर्मी के जाति-पाति से कोनो लेना-देना नहि हेबाक चाही । ओकरा लेल तऽ रंगमंचे मंदिर हेबाक चाही । ओना एहन तरहक बात बेबहार किछु पाइक लोभमे सेहो किछु लोक करैत छथि । मुदा ई सर्वथा निंदनीय अछि ।
चन्दन कुमार झा: अहाँक अगिला योजना की सभ अछि ?
गुणनाथ झा : अगिला योजना कहबे केलहुँ जे सर्वप्रथम अपन अप्रकाशित कृतिसभकेँ प्रकाशित करेबाक चेष्टा करब बादबाँकि आब अपना तऽ किछु बचल नहि अछि ।कोनो ने कोनो विधि सभटा एहिसभमे उत्सर्ग भऽ गेल ।से आब जीवनो मात्र समाज आ' साहित्येक बलेँ व्यतीत करबाक अछि ।
चन्दन कुमार झा: नवतुरिया के किछु कहए चाहबनि ?
गुणनाथ झा : नवतुरिया केँ एतबे कहबनि जे ओ अपन काज करथि । गुटबाजी आ' जातिवादक फेरमे नहि पड़थि । जौं गुटबाजी रचनात्मक उद्देश्य के लेल हो तऽ गुटबाजियो नीक । जीवनमे कखनो घबरेबाक नहि चाही । समाजक लेल सदति क्रियाशील रही । हमर जीवन एकटा पाठ अछि आ हम एहिसँ जतबा सिखलहुँ ताहि आधार पर कहब जे बाधा-विघ्न जिजीविषाकेँ मात्र तीव्र आ' जाग्रत करैत छैक ।
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