जितेन्द्र झा
नव विवाहिताक लेल नव उमंग लाबए एहन मधुश्रावणि
बबिता ठाकुर दिल्लीसँ मधुश्रावणी पुजऽ अपन नैहर जनकपुर आएल छथि । भोरसँ साँझधरि पुजेमे अपस्याँत बबिता मिथिलाक सँस्कृति आ परम्परासँ निकजकाँ भिजबाक अवसर भेटल कहैत खुशी व्यक्त करैत छथि ।
तहिना रीमा झा सेहो काठमाण्डूसँ जनकपुरमेँ आविकऽ मधुश्रावणी पुजलनि । एक निजी च्यानलमे समाचारवाचिका रीमा एहि पावनिसँ आत्मीयता जुडल बतबैत छथि । हिनके सभजकाँ बहुतो मैथिल ललना अपन व्यस्त जीनगीक पन्द्रह दिनमे मधुश्रावणीक आनन्द उठौलनि । पढाइ लिखाइ आ पारिवारिक झन्भटिके कतियबैत नवविवाहितासभ गीत नाद आ खिस्सा पिहानीक आनन्द उठौलनि मधुश्रावणी पावनिमे ।
साओन महिनाक रीमझिम वर्षा आ ताहिमे सखी बहिनपा सभक सँग फुल लोढबाक आनन्द शायदे कोनो आन संस्कृतिमेँ होइक ।
नवविवाहिता मैथिल महिलासभक जीवनमेँ नव रोमाञ्च लऽ कऽ आएल मधुश्रावणी । लोककथा आधारित ई मधुश्रावणी वैवाहिक जीवनके एकटा अदभुत आ हृदयस्पर्शी शुरुवात बनल अछि । नवविवाहिता जोडीके एक दोसराके बुझबाक परखबाक अवसर सेहो जुडा दैत अछि ई पाबनि ।
‘पावनि पूजू आज सोहागिन प्राण नाथके संग हे ।
कारी कम्बल झारि गंगाजल काजर सिन्दुर हाथ हे ।
चानन घसू मेहदी पिसू लिखू मैना पात मे ।
पावनि साजी भरि भरि आनल जाही जुही पात मे ।
कतेक सुन्दर साज सजल अछि लिखल मैना पात मे । ’ (पावनिक गीत )
ओना नोकरिहारा वरसभक लेल मधुश्रावणी पावनि फिक्का रहल । कनिञाक संगहि कोहवर घरमेँ बैसकऽ काम दहन आ गौरी महादेवक विवाहक कथा सुनबाक अवसर अमेरिकामे रहल प्रमोद झाके नहि भेटलनि । जनकपुर पिरडियामाइस्थानक प्रमोद वितलाहा अषाढ महिनामे परिणय सुत्रमे बान्हल छलाह । गामसँ कोशो दूर रहल कनिञासभ भलेहि पुजा पुजऽलेल नैहर पँहुच गेलि होथि मुदा वरसभके त मन मसोसिएकऽ रहऽ पडलनि ।
मिथिलामे पण्डिताइयक प्रथाके विपरीत ई पाबनि महिलेद्वारा पुजाओल जाइत अछि । समाजक वा घर परिवारक प्रौढ महिला पवनैतिके ई पाबनि पुजबैत छथि ।
ई पाबनि नवकनिञा अपन नैहरमे पुजैत छथि तेँ विवाहक बाद सासुरक जिम्मेवारीवहनके दायित्वक बीच नैहरक मनोरन्जन सुखदायी भऽ जाइत अछि । पुजावास्ते प्रयोग होबऽबला सभ समानसभ कनिञाक सासुरेसँ अबैत छैक, पुजा नैहरमे मुदा पुजाक वस्तु सासुरक ।
मधुश्रावणी पुजा कोहवर घरमेँ करबाक प्रचलन अछि । वर कनिञाक नितान्त व्यक्तिगत घर कोहवरके मधुश्रावणीलेल निक जकाँ सजाओल जाइत अछि । विवाहक बाद मधुश्रावणीमे वर कनिञा कोहवरके श्रृंगार बनि जाइत अछि ।
‘कोवर कोवर सुनियै हे प्रभु कोवर कोना होइ हे ।
पिसु पिठार लिखू जल पुरहर कोबर एहन होइ हे ।
ताहि कोवर सासु पलंगा ओछाओल ओलरल धीया जमाय हे ।
घुरि सुतु फिरि सुतु ससुरक वेटिया अहाँ घामे गरमी बहुत हे ।
हम नहि घुरबै अहाँक बोलिया पर घर बाज कुवोल हे । ’ (कोबरक गीत )’
साओन इजोरिया पक्षक तृतीया दिन सिन्दुरदान होइत अछि । ई सिन्दुरदान अहिवातक तेसर सिन्दुरदान होइत अछि । एहिसँ पहिने विवाहक राति आ चतुर्थीक भोरमेँे सिन्दुरदान भेल रहैत छै । मधुश्रावणी विवाहके पुर्णता देबऽबला पाबनि बनि गेल अछि ।
मिथिलामेँ विवाहपुर्व वर कनिञा एक दोसरासँ विल्कुल अन्चिन्हार रहैत अछि एहन मे मधुश्रावणी पावनि आ साओनक महिना सामीप्यतालेल सहज अवसर जुटा दैत अछि । कतबो व्यस्त जीवन होइतो प्रायः नवदम्पत्ति एहिमेँ संगहि कथा सुनैत छथि एहिसँ सामाजिक आ पारिवारिक समरसता बढबामेँ मदति भेटैत अछि ।
मधुश्रावणीमेँ सासुरसँ पठाओल गेल दीपक टेमी दगबाक चलन अछि । एहि चलनके सभ गोट अपने तरहसँ देखैत अछि । टेमीक फोँका सौभाग्यक प्रतीक मानैत अछि मैथिल महिला ।
शीतल बहथु समीर, दही दिश शीतल लेथु उसासे ।
शीतल भानु लहुक लहु उगथु शीतल भरल अकासे ।
शीतल सजनि गीत पुनि शीतल शीतल विधि व्यवहारे ।
शीतल मधुश्रावणी विधि हो शीतल वसन श्रृंगारे ।
शीतल घृत शीतल वर वाती शीतल कामिनी आँगे ।
शीतल अगर सुशीतल चानन शीतल आबथु माँगे ।
शीतल कर लए नयन झपावह शीतल देलह पाने ।
शीतल हो अहिवात कुमर संग शीतल जल अस्नाने । ’ (टेमी कालक गीत)
संस्कृतिविद्सभ मिथिलामेँ मुगल शासकके आक्रमणके बाद पतिव्रताक रक्षाके लेल एहन चलन शुरु भेल कहैत छथि ।
बदलैत समयक प्रभाव मधुश्रावणी पावनि पर सेहो देखा रहल अछि । फुल गुलसँ भरल गामघर आब सुनसान प्राय भऽ रहल अछि । एहनमेँ जाही जुही, अगर तगर, नीम दाडिम आ मेहदीक पातसभ सनके वस्तु भेटब कठिन भऽ जाइत अछि । शहर बजारमे रहनिहार पवनैतिन सभके एहन वस्तुक अभाव खटकल करैत छन्हि । फुल लोढीलेल सेहो आव फुलवारी सभ नहि रहि गेल अछि जे रंग विरंगक फुल तोरि सखी बहिनपा डाला सजेबाक प्रतिस्पर्धा कऽ सकथि । (साभार विदेह- www.videha.co.in )
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