Friday, August 19, 2011

जितेन्द्र झा नव विवाहिताक लेल नव उमंग लाबए एहन मधुश्रावणि

जितेन्द्र झा
नव विवाहिताक लेल नव उमंग लाबए एहन मधुश्रावणि

बबिता ठाकुर दिल्लीसँ मधुश्रावणी पुजऽ अपन नैहर जनकपुर आएल छथि । भोरसँ साँझधरि पुजेमे अपस्याँत बबिता मिथिलाक सँस्कृति आ परम्परासँ निकजकाँ भिजबाक अवसर भेटल कहैत खुशी व्यक्त करैत छथि ।
तहिना रीमा झा सेहो काठमाण्डूसँ जनकपुरमेँ आविकऽ मधुश्रावणी पुजलनि । एक निजी च्यानलमे समाचारवाचिका रीमा एहि पावनिसँ आत्मीयता जुडल बतबैत छथि । हिनके सभजकाँ बहुतो मैथिल ललना अपन व्यस्त जीनगीक पन्द्रह दिनमे मधुश्रावणीक आनन्द उठौलनि । पढाइ लिखाइ आ पारिवारिक झन्भटिके कतियबैत नवविवाहितासभ गीत नाद आ खिस्सा पिहानीक आनन्द उठौलनि मधुश्रावणी पावनिमे ।
साओन महिनाक रीमझिम वर्षा आ ताहिमे सखी बहिनपा सभक सँग फुल लोढबाक आनन्द शायदे कोनो आन संस्कृतिमेँ होइक ।
नवविवाहिता मैथिल महिलासभक जीवनमेँ नव रोमाञ्च लऽ कऽ आएल मधुश्रावणी । लोककथा आधारित ई मधुश्रावणी वैवाहिक जीवनके एकटा अदभुत आ हृदयस्पर्शी शुरुवात बनल अछि । नवविवाहिता जोडीके एक दोसराके बुझबाक परखबाक अवसर सेहो जुडा दैत अछि ई पाबनि ।

‘पावनि पूजू आज सोहागिन प्राण नाथके संग हे ।
कारी कम्बल झारि गंगाजल काजर सिन्दुर हाथ हे ।
चानन घसू मेहदी पिसू लिखू मैना पात मे ।
पावनि साजी भरि भरि आनल जाही जुही पात मे ।
कतेक सुन्दर साज सजल अछि लिखल मैना पात मे । ’ (पावनिक गीत )


ओना नोकरिहारा वरसभक लेल मधुश्रावणी पावनि फिक्का रहल । कनिञाक संगहि कोहवर घरमेँ बैसकऽ काम दहन आ गौरी महादेवक विवाहक कथा सुनबाक अवसर अमेरिकामे रहल प्रमोद झाके नहि भेटलनि । जनकपुर पिरडियामाइस्थानक प्रमोद वितलाहा अषाढ महिनामे परिणय सुत्रमे बान्हल छलाह । गामसँ कोशो दूर रहल कनिञासभ भलेहि पुजा पुजऽलेल नैहर पँहुच गेलि होथि मुदा वरसभके त मन मसोसिएकऽ रहऽ पडलनि ।
मिथिलामे पण्डिताइयक प्रथाके विपरीत ई पाबनि महिलेद्वारा पुजाओल जाइत अछि । समाजक वा घर परिवारक प्रौढ महिला पवनैतिके ई पाबनि पुजबैत छथि ।
ई पाबनि नवकनिञा अपन नैहरमे पुजैत छथि तेँ विवाहक बाद सासुरक जिम्मेवारीवहनके दायित्वक बीच नैहरक मनोरन्जन सुखदायी भऽ जाइत अछि । पुजावास्ते प्रयोग होबऽबला सभ समानसभ कनिञाक सासुरेसँ अबैत छैक, पुजा नैहरमे मुदा पुजाक वस्तु सासुरक ।
मधुश्रावणी पुजा कोहवर घरमेँ करबाक प्रचलन अछि । वर कनिञाक नितान्त व्यक्तिगत घर कोहवरके मधुश्रावणीलेल निक जकाँ सजाओल जाइत अछि । विवाहक बाद मधुश्रावणीमे वर कनिञा कोहवरके श्रृंगार बनि जाइत अछि ।
‘कोवर कोवर सुनियै हे प्रभु कोवर कोना होइ हे ।
पिसु पिठार लिखू जल पुरहर कोबर एहन होइ हे ।
ताहि कोवर सासु पलंगा ओछाओल ओलरल धीया जमाय हे ।
घुरि सुतु फिरि सुतु ससुरक वेटिया अहाँ घामे गरमी बहुत हे ।
हम नहि घुरबै अहाँक बोलिया पर घर बाज कुवोल हे । ’ (कोबरक गीत )’
साओन इजोरिया पक्षक तृतीया दिन सिन्दुरदान होइत अछि । ई सिन्दुरदान अहिवातक तेसर सिन्दुरदान होइत अछि । एहिसँ पहिने विवाहक राति आ चतुर्थीक भोरमेँे सिन्दुरदान भेल रहैत छै । मधुश्रावणी विवाहके पुर्णता देबऽबला पाबनि बनि गेल अछि ।
मिथिलामेँ विवाहपुर्व वर कनिञा एक दोसरासँ विल्कुल अन्चिन्हार रहैत अछि एहन मे मधुश्रावणी पावनि आ साओनक महिना सामीप्यतालेल सहज अवसर जुटा दैत अछि । कतबो व्यस्त जीवन होइतो प्रायः नवदम्पत्ति एहिमेँ संगहि कथा सुनैत छथि एहिसँ सामाजिक आ पारिवारिक समरसता बढबामेँ मदति भेटैत अछि ।
मधुश्रावणीमेँ सासुरसँ पठाओल गेल दीपक टेमी दगबाक चलन अछि । एहि चलनके सभ गोट अपने तरहसँ देखैत अछि । टेमीक फोँका सौभाग्यक प्रतीक मानैत अछि मैथिल महिला ।
शीतल बहथु समीर, दही दिश शीतल लेथु उसासे ।
शीतल भानु लहुक लहु उगथु शीतल भरल अकासे ।
शीतल सजनि गीत पुनि शीतल शीतल विधि व्यवहारे ।
शीतल मधुश्रावणी विधि हो शीतल वसन श्रृंगारे ।
शीतल घृत शीतल वर वाती शीतल कामिनी आँगे ।
शीतल अगर सुशीतल चानन शीतल आबथु माँगे ।
शीतल कर लए नयन झपावह शीतल देलह पाने ।
शीतल हो अहिवात कुमर संग शीतल जल अस्नाने । ’ (टेमी कालक गीत)

संस्कृतिविद्सभ मिथिलामेँ मुगल शासकके आक्रमणके बाद पतिव्रताक रक्षाके लेल एहन चलन शुरु भेल कहैत छथि ।
बदलैत समयक प्रभाव मधुश्रावणी पावनि पर सेहो देखा रहल अछि । फुल गुलसँ भरल गामघर आब सुनसान प्राय भऽ रहल अछि । एहनमेँ जाही जुही, अगर तगर, नीम दाडिम आ मेहदीक पातसभ सनके वस्तु भेटब कठिन भऽ जाइत अछि । शहर बजारमे रहनिहार पवनैतिन सभके एहन वस्तुक अभाव खटकल करैत छन्हि । फुल लोढीलेल सेहो आव फुलवारी सभ नहि रहि गेल अछि जे रंग विरंगक फुल तोरि सखी बहिनपा डाला सजेबाक प्रतिस्पर्धा कऽ सकथि । (साभार विदेह- www.videha.co.in )

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