उमेश मंडल
सुपौलक कथा गोष्ठी : ४ दिसम्बर २०१०
व्यापार संघ भवन सुपौलमे दिनांक ४.१२.२०१०केँ सगर राति दीप जरय'क ७२म कथा गोष्ठी श्री अरविन्द कुमार ठाकुरक संयोजकत्वमे बिपल्व फाउण्डेसन आ प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा आयोजित कएल गेल। सांझ ६ बजे प्रो. सचिन्द्र महतोजी दीप प्रज्वलन सह उद्घाटन केलनि। मंच संचालन श्री अजीत झा आजादजी केलनि आ गोष्ठीक अध्यक्षता श्री रमानन्द झा रमणजी केलनि। एहि अवसरपर जीवकान्त जीक पोथी 'एकहि पच्छ इजोर'क लोकार्पण अजीत आजादक माध्यमसँ अरविन्द ठाकुर जीक द्वारा भेल।
कुल २१गोट नव-पुरान कथाकार अपन-अपन नूतन कथा वा लघुकथाक पाठ केलनि। जे एहि तरहेँ अछि- रंजीत कुमार खाँ राही- (फाेंक), रजनीश कुमार तिवारी- (गप्पी), अरविन्द कुमार ठाकुर- (युटोपिया), अजीत आजाद- (रोग), पंकज सत्यम्- (तर्दनकृवा घुमैत पिबैत), महाकान्त ठाकुर- (शिक्षाक प्रयोजन), चौधरी जयंत तुलसी- (धीपल फाढ़), आशीष चमन- (निष्कर्ष), राजाराम सिंह राठौर- (राखीक रंग फीका), विजय महापात्रा- (मोन किएक पाड़लेँ), जगदीश प्रसाद मंडल- (दोहरी मारि), दुर्गानन्द मंडल- (लबकी कनियाँ), कपिलेश्वर राउत- (किसानक पुजी), मनोज कुमार मंडल- (बेमेल विआह), रामबिलास साहु- (गामक गाछी), बेचन ठाकुर- (अनैतिक विआह), संजय कुमार मंडल- (सिनेह), अकलेश मंडल- (टिटनेस), मुकेश मंडल- (लोभक फल), लक्ष्मी दास- (बुड़िबकक बुड़िबक) आ उमेश मंडल- (युगक खेल आ आधा भगवान)क पाठ केलनि।
प्रो. सचिन्द्र महतो, शैलेन्द्र शैली, महेन्द्र, किशलय कृष्ण, अरविन्द्र ठाकुर पठित कथापर समीक्षा केलनि। ओना तुलसी जयंत चौधरी, राजाराम सिंह राठौर, जगदीश प्रसाद मंडल, महाकान्त ठाकुर, दुर्गानन्द मंडल, आशीष चमन, विजय महापात्रा इत्यादि सेहो किछु कथापर अपन टिप्पणी केलनि।
श्री अजीत कुमार झा आजाद मंच संचालनक संग-संग पठित कथा सभपर आ कएल समीक्षापर अपन किछु विचार माने टिप्पणी करैत रहला, तहिना संयोजक श्री अरविन्द ठाकुरजी सेहो विशेष बात रखलनि जेकर कछु विचारणीय अंश निम्नांकित अछि-
भोजनक वादक समए छल। उमेश मंडल, कपिलेश्वर राउत, अकलेश मंडल, दुर्गानन्द मंडल, लक्ष्मी दास, रामविलास साहु, मनोज कुमार मंडल, बेचन ठाकुरक कथा पाठ भऽ गेल छल। प्राय: एकसँ दू पालीमे। समीक्षक लोकनि हिनकर सबहक कथापर बाजि चूकल छलाह। जाहिमे उमेश मंडलक अाधा भगवान कथापर श्री शैलेन्द्र शैल, अरविन्द ठाकुर राजाराम सिंह राठौर आ तुलसी जयंत चौधरी, कर्मवादी कथाक रूपमे समीक्षा केलनि। जेकर पुन: एकबेर दोहरबैत संचालक श्री अजीत आजाद जी बजै छथि- “उमेश मंडलक कथा आधा भगवान भाग्यवादीसँ कर्मवादी दिशि लऽ जाइत अछि। वास्तवमे ई कथा किसानी जिनगीक लेल नीक प्रयास मानल।”
अकलेश मंडलक कथा टिटनेस आ दुर्गानन्द मंडलक कथा लबकी कनियाँ'पर श्री अरविन्द ठाकुर बजै छथि- “लबकी कनियाँ कथा मंडलजी बला सुनलहुँ ठीके शैलेन्द्र शैलजी कहलथिहेँ जे ई कथा विषए-वस्तुक खियालसँ ओहिना लगैत अछि जेना राजश्री प्रोजेक्टक सिनेमा चलि रहल हुअए। अकलेश मंडलक कथा टिटनेसपर हम एतबए कहब जे ई कोनाे हेल्थ मेग्जिनमे छपैत तँ उत्तम। हमरा लगैए जे आइ मैथिली साहित्यक चौराहापर किछु ओहन आदमीक उपस्थिति भऽ रहल अछि जे देखबा, सुनबा आ विचार करबा योग्य अछि। आइ बेरमा कथा गोष्ठीकेँ लेल जाए। जेकर संयोजक जगदीश प्रसाद मंडल, मंच संचालक अशोक कुमार मेहता आ अध्यक्ष तारानन्द वियोगी रहथि। तँ हम कहलौं जे ई जे पौतीमे बन्द मैथिलीक दुर्दशा छल ओ आब फूटि बहराएलहेँ। एकरा अहाँ कि कहि सकै छिऐ? आइ साहित्यिक मंचपर टाल ठाेकि कऽ ओ सभ चुनौती बुझू दऽ रहला छथि जे कहियो खबास होइत छलाह। एकरा अन्यथा नहि लेल जाए। जे सत्य छै ओ सोझाँ राखलौं अछि। जगदीश प्रसाद मंडल जीक कथा-उपन्यास जखन हमरा सभ पढ़ै छी तँ जेना लगैए जे एकटा नव दुनियाँमे प्रवेश पौलहुँ अछि। एकदमसँ ओहेन दुनियाँ जै दुनियाँक कल्पनो ने बुझू भेल छल। जहिना विषए-वस्तु तहिना शब्द-संयोजन तहिना दृष्टिकोण....। तँ आब अहाँ सभ ई बुझियौ जे जगदीश मंडलजी एकटा एहेन रेखा खिंचि देलनि। जेकरा धियानमे राखि कऽ अहाँ कथा लिखी तँ उत्तम। आइ जै वर्गसँ अहाँ सभ आबि रहल छी ओइ वर्गमे माने किसानी जिनगीक अनेकानेक विषए-वस्तुक चर्च मंडलजी केलनि अछि। ओकरा धियानमे राखि अहाँ सभ आगाँ लिखी।”
अरविन्द ठाकुरजीक वक्तव्यक बाद माइक लैत अजीत आजादजी बजै छथि- “अरविन्द बाबू ठिके कहै छथि। हिनका बातकेँ हम समर्थन करैत छिअनि। अहुँ सभ कथा गोष्ठीमे अबै छी पहिने तँ जगदीश मंडल एलथि बादमे अहाँ सभकेँ सेहो अनलाह आ अबै छी। जगदीश मंडल आ उमेश मंडलजीकेँ आब हम सभ दूरेसँ चिन्है छिअनि। लेकिन अहाँ सभ ऐ बातकेँ बुझियौ जे कथा कोना लिखा रहलैहेँ। अबै छी, कथा पढ़ै छी, जाइ छी। बड़ नीक मुदा ई बुझियौ जे जै वर्गक अहाँ सभ लोक छी मतलब किसान वर्ग जे आधार भेलै। कृषि आधार छिऐ कि नहि छिऐ? तँ ओइमे जे बात सभ छै, जटीलता सभ छै ओकरा अहाँ सभ नै लिखबै तँ के लिखताह...? तँ ई कहलौं जे एम्हर-ओम्हर नै लिखि ओ सभ लिखल जाए। जैमे एकटा बड़का रेखा, कहबे केलथिहेँ अरविन्द बाबू जे जगदीश मंडल द्वारा खिचि देल गेलहेँ। जँ एकरा नै धियान राखब तँ गोष्ठिमे एनाइ-गेनाइ बुझू नीक नहि। ओना ऐ गोष्ठिसँ बाहरो निकालल जाइ छै।” ई गप्प अध्यक्ष महोदय दिशि तकैत आ मुड़ी डोलबैत अजीत जी अगाँ बजै छथि- “आब एकटा खिस्सा सुनबै छी- यंत्रनाथ मिश्रकेँ गोष्ठीसँ निकालल गेलन्हि, की यौ.....? आश्चर्य लागत जे गेट आउट कहि देल गेलन्हि माने गेटसँ बाहर कऽ देल गेलन्हि।”
वातावरणमे खटमिट्ठी बुझू पसरि गेल। एत्ते बात बजबाक प्रयोजनपर सभकेँ सब तरहक चिन्तन-मनन हुअए लागल। दू-चारि मिनटक लेल शान्त...। एकदम्म शान्ति, सन्नाटा। किछु लोक एक-दोसराक मुँह दिशि तकैत। आ किछु लोक गोष्ठिक गार्जियन श्री रमानन्द झा रमणजी दिशि गोरसपट टकधियान लगेने। मुदा जे किछु....।
आगाँ उमेश मंडल (माने हम) हमर नामक चर्च संचालक महोदय पहिनहि उद्वोधित कऽ चूकल छलाह जे एहि पालीक पठित कथापर हमहुँ किछु टिप्पणी करबै। हम प्राय: छुब्ध रही जे ई कोन समीक्षा भेल। एहि तरहक समीक्षासँ नवाङकुरपर आखिर की प्रभाव पड़तनि। खएर जे से हम आगू जा माइक हाथमे लैत बजलहुँ- “जहिना पठित पालीपर समीक्षाक बहाने अन्यान्न विषए-वस्तुपर गप-सप्प राखल तहिना हमहुँ किछु बात राखि रहल छी। सभसँ पहिने हम ओइ कथाकार सभकेँ कहि देबऽ चाहैत छियनि जे पहिल या दोसर कथा लऽ कऽ उपस्थित भेलहुँ आ कथा पाठ केलौं। सबहक कथामे यथार्थ अछि, सुन्नर अछि, कथ्य, शिल्प, भाषा, शैली सभ किछु उत्तम। एक्को पैसा उदास हेबाक प्रयोजन नहि। दोसर गप्प जे अपने सभ एहि बातकेँ बुझल जाए जे जहिना भोजक पाँतिमे बैसल पंचक आगाँ पहिल खेपमे परसल व्यंजनपर कोनो तरहक टिका-तिरस्कारक व्यवहार नहि कएल जाइत हँ, दोसर-तेसर बेर माने परसन लेबाकाल ई जरूर धियान राखल जाइत जे की नीक आ की बेजाए....। तेसर बात अपने सभक द्वारा नव लोककेँ कहल गेलन्हिहेँ जे एना नै ओना आकि ओना नै एना लिखू। कृषि विकासक बात लिखू आ से ई के लिखता अहीं सभ ने लिखबै। ठीक बात मुदा इंजिनियर डाॅक्टरक पढ़ाइ करैबलाक भरमार लागल अछि आनो-आन क्षेत्रमे जिनका पढ़ाइ-लिखाइक सुविधा पर्याप्त छन्हि नम्बर लगौने छथि। लेकिन कृषि-कार्यक पढ़ाइ हेतू किएक ओ सभ विमुख भेल छथि। ई गप्प आ समस्याकेँ के लिखताह? ऐ पर कथा किएक नै लिखल जाइत अछि। ऐ पर अहुँ सभ विचार करू।” अपन बातपर विराम लगा हम माइक संचालक महोदयकेँ हाथमे दैत यथास्थान जा बैस रहलहुँ। गोष्ठिमे बैसल सभ कथाकार आ समीक्षकक मनमे जेना समीक्षाक नव-नव बिम्व नॉचए लगलनि। अध्यक्ष महोदय सेहो उठि कऽ बैस रहला।
अध्यक्ष महोदय दिशि देखैत संचालक एक बेर पुन: अपन बात स्पष्ट करैत बजलाह- “देखियौ हमर कहब छल जे अहाँ सभ एत्ते दूरसँ एलौं जेबा-एबामे बड़ कठिनाइ होइ छै। हमर कहबाक भाव रहए जे जहिना जगदीश बाबू लिखै छथि ओ जे रेखा खिचलन्हिहेँ ओकरा धियानमे राखि.....। अहाँसँ साहित्यमे कि लाभ भेलै। मतलब कि देलिऐ। से जौं नइ तखन तँ.....।”
ऐ बातपर हम पुन: बाजलहुँ- “अजीत बाबू अपने साहित्यिक लाभक बात एहि नव लोकमे तकै छी। मुदा एकबेर अपना दिशि देखल जाए जे स्वयं थोड़ेखन पहिने बजलाैंहेँ जे सत्तरह सालसँ लगातार अहाँ सभ कथा गोष्ठिमे भाग लेलहुँ। आइसँ नै सत्तरह सालसँ। मुदा कएकटा कथा संग्रह देलिऐहेँ?”
अजीत आजाद- “अहीं जकाँ हमरा प्रकाशन नै ने भेट गेल जे......। अक्खैन कियो भार लेथि हम परसू तक तीनटा कथा संग्रह थम्हा दैत छियनि। लेकिन ओहोसँ पैघ बात जे कै स्तरक कथा सभ हमर विभिन्न पत्र-पत्रिकामे छपि चूकल अछि आ कहियासँ तेकरो तँ देखबै।”
अगल-बगलसँ पाँच-छह गोटा एक्केबेर- हँ, से तँ ठीके बात। हँ से तँ ठीके बात। बजैत अागाँक कथा पाठ लेल अग्रसरक विचार प्रकट केलाह। माहौलमे परिवर्त्तन भेल। लगभग चारिटा कथापाठ फेर भेल आ तेकर संक्षिप्त समीक्षा सेहो कएल गेल। तात् भिनसर ६बाजि गेल। श्री रमानन्द झा रमण अपन अध्यक्षीय उद्वोधनमे उपरोक्त झजमझ (मतांतर)पर एक्को शब्द नै बजलाह।
अगिला कथा गोष्ठिक आयोजन श्री विजय महापात्रा जीक संयोजकत्वमे हुनके मातृभूमि महिषी मे कएल जाएत ताहि लेल सुपौलक संयोजक श्री अरविन्द ठाकुरजीक द्वारा दीप आ उपस्थिति पुस्तिका भावी संयोजककेँ समर्पित करैत गोष्ठिक समापन कएल गेल। (साभार विदेह www.videha.co.in)
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