Friday, August 19, 2011

नवेन्दु कुमार झा छठिपर

नवेन्दु कुमार झा छठिपर

नवेन्दु कुमार झा,
समाचार वाचक सह अनुवादक (मैथिली), प्रादेशिक समाचार एकांश, आकाशवाणी, पटना
१.बिहारक लोक पर्व – छठि

पावनि-तिहार हमर सभक सभ्यता-संस्कृतिक परिचायक अछि। हिन्दू धर्ममे पाबनिक विशेष महत्व अछि। हिन्दू धर्मावलम्बी सभक कतेको पाबनिमे छठिक विशेष महत्व अछि। ई पाबनि बिहारक लोक पाबनिक संग महापाबनि सेहो अछि। ई सम्पूर्ण बिहारक संग पूर्वी उत्तर प्रदेश आ महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान आ दिल्लीक बिहारी बहुल क्षेत्र सभमे श्रद्धाक संग मनाओल जाइत अछि। पड़ोसी देश नेपालक मैथिली बहुल क्षेत्रमे सेहो एहि पाबनिक आयोजन कएल जाइत अछि। अगाध श्रद्धा, कड़गर व्रत साधना, एकान्त निष्ठा आ आत्म संयम बाला एहि पाबनिक बिहारमे ओतबे महत्व अछि जतेक महाराष्ट्रमे गणपति महोत्सव, पश्चिम बंगालमे दुर्गापूजा तथा पंजाबमे वैशाखीक अछि। बिहारक किछु क्षेत्रमे एहि पाबनिकेँ “डाला छठि” सेहो कहल जाइत अछि।
ई पाबनि सूर्योपासना आ साधनाक महापाबनि अछि। शक्तिक देवी दुर्गाक आराधनाक समाप्तिक बाद प्रदेशमे छठि पाबनिक आगमनक अभास होमए लगैत अछि आ प्रकाशक पाबनि दीया बातीक समाप्तिक बाद लोक एकर तैयारीमे लागि जाइत छथि। एहि पाबनिमे भगवान सूर्य देव आऽ षष्ठी माय (छठि माता)क आराधना एक संग कएल जाइत अछि। ओना तँ सूर्य देवक पूजाक परम्परा अति प्राचीन अछि आऽ कतेको हजार वर्षसँ हमर सभक सांस्कृतिक विरासत अछि मुदा सूर्य देवक संगहि षष्ठी मायक पूजा एक संग कहियासँ शुरू भेल से एखनो रहस्य बनल अछि।
छठि पाबनिक आयोजन वर्षमे दू बेर होइत अछि। पहिल बेर चैत मासमे आ दोसर बेर कार्तिक मासमे छठिक पाबनि होइत अछि। कार्तिक मासमे एहि पाबनिक आयोजन विस्तृत रूपमे होइत अछि। एहि अवसरपर प्रवासी बिहारी आवश्यक रूपसँ अपन प्रदेश आऽ गाम अबैत छथि आऽ अपन घरपर रहि सम्पूर्ण परिवारक संग एहि पाबनिकेँ मनबैत छथि। श्रद्धा आऽ आस्थाक संग एहि पाबनिकेँ कएलासँ मनोबांक्षित फलक प्राप्ति होइत अछि। धार्मिक ग्रन्थ सभमे ई जनतब देल गेल अछि जे सूर्य देवक पूजा प्राचीन कालसँ प्रसिद्ध अछि आऽ बिहारमे एकर प्रसिद्धि सहज रूपमे देखल जाऽ सकैत अछि।
चारि दिन धरि चलै बाला ई धार्मिक अनुष्ठान कार्तिक शुक्ल चतुर्थीसँ शुरु होइत अछि आऽ सप्तमीकेँ समाप्त होइत अछि। पहिल दिन “नहाय-खाय” होइत अछि। एहि दिन पबनैतिन सुविधानुसार नदी, पोखरि आऽ इनार आदिमे स्नान कऽ अरबा चाउरक भात, बुटक दालि आऽ सजिमनिक तरकारी भोजन करैत छथि। पबनैतिनक भोजन कएलाक बाद घरक आन सदस्य भोजन ग्रहण करैत छथि। एहि दिन छठि पाबनि करबाक संकल्प लेल जाइत अछि। दोसर दिन पंचमीकेँ खरना होइत अछि जाहिमे पबनैतिन भरि दिन उपास रहि नदी, पोखरि आ इनारसँ पानि आनि पीतल, ताम्बा अथवा माटिक बर्तनमे खीर, चाउरक आटाक गुलगुला बनबैत छथि आऽ सांसमे नव वस्त्र पहिर चाँद देखि बनल सामग्री, केरा आऽ दूध सूर्य भगवानकेँ समर्पित कऽ शान्त-चित्त भऽ प्रसाद ग्रहण करैत छथि। खरनाक समय कोनो आबाज नहि होमए क चाही। खरनाक विधि विभिन्न स्थानपर बदलैत अछि मुदा मूल रूपमे कोनो परिवर्तन नहि होइत अछि। एकरा बादसँ पबनैतिन उपासमे रहैत छथि आऽ चारिम दिन उगैत सूर्यकेँ अर्घ्य दऽ प्रसाद ग्रहण कऽ उपास तोड़ैत छथि। खरनाकेँ किछु क्षेत्रमे “लोहंडा” सेहो कहल जाइत अछि।
तेसर दिन षष्ठीकेँ पबनैतिन नदी, पोखरि आ इनारमे पानिमे ठाढ़ भऽ कतेको तरहक पकबान, फल-फूल, सुपारी, पान आदिकेँ कांच बासक बनल सूपमे सजा ओहिमे दीप जड़ा डुबैत सूर्य दिस मूँह कऽ भगवान सूर्यकेँ अर्घ्य चढ़बैत छथि। परिवारक आन सदस्य सेहो सूपक आगाँ पानि अथवा दूध ढ़ारि अर्घ्य दैत छथि। षष्ठी दिन भगवान सूर्यकेँ अर्घ्य देलाक बाद प्रदेशक किछु क्षेत्रमे “कोसी भरबाक” परम्परा सेहो अछि। एहि दिन अर्घ्य देलाक बाद स्त्रीगण अपन अंगनाकेँ गोबरसँ निपैत छथि आ ओहिपर अरिपन दैत छथि। एकर बाद चारि टा पैघ कुसियारसँ मंडप बना एकर बीचमे माटिक बनल हाथी रखैत छथि जकर चारु कात दीप बनल रहैत अछि। सभ दीपकेँ मालासँ सजा ओहिमे घी ढ़ारि जड़ाओल जाइत अछि। हाथीक ऊपरमे भगवान भाष्करकेँ अर्पित कएल जाए बाला प्रसाद, ठकुआ, केरा आऽ आन फलकेँ माटिक बर्तनमे राखल जाइत अछि। दीप राति भरि जड़ैत रहैत अछि आ स्त्रीगण मंडपक चारूकात बैसि भरि राति जागल रहि छठि माइक गीत गबैत छथि। भरि राति दीप जड़बऽ आऽ गीत गाबएमे बितैत अछि। षष्ठी जकाँ चारिम दिन सप्तमीकेँ उगैत सूर्यक भिनसरमे समर्पित कएल जाइत अछि। एकर बाद कोसी उठा लेल जाइत अछि। अर्घ्य देलाक बाद सभ लोक पबनैतिनकेँ प्रणाम कऽ आशीर्वाद लैत छथि। लोक पबनैतिनक आशीर्वादकेँ सूर्यदेवक आशीर्वाद मानैत छथि। अमीर-गरीब, बूढ़-जवान, मालिक-नोकर, स्त्री-पुरुष सभ भेदभाव बिसरि पबनैतिनसँ आशीर्वाद लैत छथि। तेजीसँ बदलैत परिवेशक बावजूद ई परम्परा निरन्तर चलि रहल अछि। सप्तमी अर्घ्यक बाद छठि मायक प्रसाद ग्रहण कऽ पबनैतिन अपन उपास समाप्त करैत छथि आ भोजन ग्रहण करैत छथि। एहिक संग चारि दिनक ई धार्मिक अनुष्ठान समाप्त होइत अछि। अन्तिम दिनकेँ पारन सेहो कहल जाइत अछि।
बिहारमे ई पाबनि हिन्दूक संगहि मुसलमान आ सिख सेहो मनबैत अछि। कटिहार जिलाक लक्ष्मीपुर आऽ भोजपुर जिलाक कोइलवर गाममे तीनू धर्मक लोक एहि पाबनिकें मनबैत छथि। लक्ष्मीपुर गामक पश्चिम स्थित नदीक किनारमे तीनू समुदायक श्रद्धालु एकट्ठा होइत छथि आऽ एक संग सूर्यदेवकेँ अर्घ्य दैत छथि, ओतहि, कोइलवर गाममे हिन्दू रोजा रखैत छथि तऽ मुसलमान छठिक पाबनिमे हिन्दू सभक घरमे सूप पठा कऽ एहि पाबनिकेँ मनबैत छथि।
प्रदेशक सांस्कृतिक सम्पन्नताक उदाहरण प्रस्तुत करैत एहि पाबनिमे उपयोगमे आबए बाला वस्तु सभ खेतीक व्यवस्थाक अर्थशास्त्रीय स्वरूप प्रस्तुत करैत अछि। ई एकमात्र एहन धार्मिक अनुष्ठान अछि जाहिमे पंडितक कोनो हस्तक्षेप नहि होइत अछि। बिना पंडितक सम्पन्न होमएबाला एहि पाबनिमे भगवान आऽ भक्तक संग सीधा सम्पर्क होइत अछि। एहि पाबनिमे स्त्रीगणक महत्वपूर्ण भूमिका होइत अछि जे अपन शरीरकेँ तपा कऽ पूरा भक्तिक संग नियम-निष्ठा आऽ पवित्रताकेँ बनाएल रखबाक प्रति विशेष रूपसँ सतर्क रखैत छथि। एहन धारणा अछि जे एहि पाबनिकेँ नियम निष्ठा आऽ पवित्रताक संग नहि कएलासँ एकर विपरीत असरि पबनैतिन आऽ ओकर निकट सम्बन्धी आऽ परिवारपर तुरत पड़ैत अछि। ई मान्यता अछि जेऽ पवित्रताक संग ई पाबनि नहि कएलासँ असाध्य रोग उत्पन्न होएबाक संभावना रहैत अछि। दोसर दिस ईहोमानब अछि जे एहि पाबनिकेँ नियमित रूपेँ कएलासँ सफेद दाग जेहन रोगसँ मुक्ति सेहो भेटैत अछि। एहि पाबनिक बढ़ैत लोकप्रियताकेँ देखि आब पुरुष सेहो ई पाबनि करए लगलाह अछि।
भगवान सूर्यक पूजा भारतक संगहि इन्डोनेशिया, जावा, सुमात्रा आदि कतेको देशमे कएल जाइत अछि, मुदा अन्तर अतबा अछि जे स्थानक परिवर्तनक संग एकर स्वरूप बदलि जाइत अछि। सूर्योपासनाक चरचा विश्वक प्रायः सभ प्राचीन साहित्यमे अलग-अलग रूपमे कएल गेल अछि। एकर चर्चा वेदमे तँ अछिए संगहि सूर्योपनिषद, चाक्षुपोपनिषद, अक्ष्युपनिषद आदिमे सेहो अछि मुदा सूर्य देवक संग सूर्य देवक संग षष्ठी देवी पूजा एक संग कहियासँ कएल जाऽ रहल अछि एकर प्रमान एखन धरि अनुपलब्ध अछि।
कार्तिक मासक षष्ठी तिथि षष्ठी देवी कऽ अछि जे भगवान कार्तिकेयक पत्नी छथि। ई पाबनि सूर्य देव आ षष्ठी देवी एक संग करबाक पाबनि अछि जे पूरा भक्तिक भावक संग मनाओल जाइत अछि। छठिक गीतमे सेहो सूर्य देव आऽ षष्ठी मायक स्तुति एक संग कएल गेल अछि।
सूर्योपासनाक संग एहि धार्मिक अनुष्ठानक संबंधमे कतेको कथा प्रचलित अछि। एकटा मान्यता ई अछि जे मधुश्रवामे च्यवन ऋषिक आश्रम छल। ऋषिक पत्नी सुकन्याक पिता जंगलमे शिकार खेलऽ गेलाह तँ हुनका द्वारा छोड़ल गेल तीर च्यवन ऋषिक एकटा आँखिमे लागि गेल जाहिसँ हुनक एकटा आँखि चलि गेल। एहि घटनासँ सुकन्या व्याकुल भऽ गेलीह आऽ जंगलक भ्रमण करए लगलीह। जंगलमे एक दिन एकाएक सूर्य देवक पूजामे लागल एकटा नाग कन्यासँ हुनक भेँट भेल। ओ एहि सम्बन्धमे नागकन्यासँ जनतब लेलनि तँ नागकन्या जनौलक जे षष्ठी आऽ सप्तमीकेँ सूर्य देवक पूजा कएलासँ भक्तक सभ मनोकामना पूरा होइत अछि। एहन चरचा होइत अछि जे च्यवन ऋषि आऽ सुकन्या सूर्य देवक पूजा कएलनि आऽ हुनक आँखि ठीक भऽ गेल। प्राचीन साहित्यसँ ईहो जनतब होइत अछि जे औरंगजेब सेहो औरंगाबाद स्थिति देवक प्रसिद्ध सूर्य मन्दिरमे १६७७ सँ १७०७ ई. धरि नियमित रूपसँ छठिक अवसरपर सूर्य देवक आराधनामे लागि जाइत छल। एहनो चरचा भेटैत अछि जे महाभारतक समय पांडव जखन सभ किछु हारि गेलाह आऽ जंगलमे घुमैत छलाह जखन विपत्ति एहि समयमे द्रौपदी सूर्यदेवक १०८ नामसँ सूर्यक पूजा कएलनि आऽ छठिक व्रत कएलाक बाद पांडवकेँ अपन राज-पाट वापस भेटि गेल। एहि घटनाक बाद लोक सभ एकटा “महाभारत पर्व” सेहो कहए लगलाह। आम जन समूहक मध्य ई धारणा अछि जे एहि धार्मिक अनुष्ठानकेँ निष्ठाक संग कएलासँ मनोवांक्षित फलक प्राप्ति तँ होइते अछि संगहि संतानोत्पत्ति आऽ पारिवारिक शान्ति आऽ चैनक संग असाध्य रोगक निवारण सेहो होइत अछि।
सम्पूर्ण बिहारमे पूरा उत्साह आऽ भक्तिभावक संग मनाओल जाएबाला एहि पाबनिक अतेक महत्व अछि जे गरीब सेहो भीख माँगि कऽ ई पाबनि करैत अछि। कतेको लोक आऽ संगठन एहि अवसरपर फल-फूल आऽ पूजाक सामान बाँटि पुण्यक भागी बनैत छथि। खरना आऽ सप्तमीक दिन लोकसभ माँगियो कऽ प्रसाद जरूर ग्रहण करैत छथि। पबनैतिन सेहो बिना कोनो भेदभावक प्रसाद बँटैत छथि। एहि अवसरपर पूरा प्रदेशमे नदी, पोखरि, कुआ आदिक सफाई कएल जाइत अछि। सम्पूर्ण प्रदेशक शहर गामक सड़क, गली, मोहल्लामे अद्भुत सफाई आऽ प्रकाशक व्यवस्था कएल जाइत अछि। शहर सभमे नदी-पोखरिपर बढ़ैत भीड़ देखि आब लोक सभ अपन मोहल्ला आऽ घरक छत अथवा लग पासमे खाली स्थानपर पोखरि जकाँ संरचना बना ओहिमे पानि जमा दैत छथि आऽ पबनैतिन ओहिमे ठाढ़ भऽ सूर्यदेवकेँ अर्घ्य समर्पित करैत छथि। ई एकमात्र अवसर अछि जखन लोक सभ साक्षात अराध्य देवक पूजा करैत छथि। एहि अवसरपर सम्पूर्ण बिहारमे अमीर-गरीब, ऊँच-नीच आऽ मालिक-मजूरक बीच दूरी समाप्त भऽ जाइत अछि। सभ केओ तन, मन, धनसँ एहि पाबनिमे लागि जाइत अछि आऽ सम्पूर्ण वातावरण छठिमय भऽ जाइत अछि।

२. बिहारमे सूर्योपासनाक प्रमुख केन्द्र-
नवेन्दु कुमार झा,
समाचार वाचक सह अनुवादक (मैथिली), प्रादेशिक समाचार एकांश, आकाशवाणी, पटना
छठि पाबनि बिहारक एकटा लोक पर्व अछि जे प्रायः सभ घरमे मनाओल जाइत अछि। पूरा प्रदेशमे आस्था आऽ श्रद्धाक संग ई चारि दिवसीय अनुष्ठान सम्पन्न होइत अछि। बिहारमे सूर्योपासनाक कतेको केन्द्र अछि। बिहारमे स्थित कतेको सूर्य मन्दिर श्रद्धालु सभकेँ भगवान सूर्यक अर्घ्य देबाक लेल आकर्षित करैत अछि। प्रदेशक संगहि देशक कतेको आन क्षेत्रसँ श्रद्धालु एहि मन्दिर सभमे आबि सूर्य देवक आराधना करैत छथि:-
देवक सूर्य मन्दिर:- औरंगाबाद जिला मुख्यालयसँ बीस किलोमीटरपर देवमे स्थित सूर्य मन्दिर मगध विशिष्ट संस्कृति, आस्था आऽ विश्वासक सर्वाधिक सशक्त आऽ विराट प्रतीक अछि। ई प्राचीन सूर्य मन्दिर अपन शिल्प आऽ स्थापत्यक प्रभावशाली सौम्यक अभिव्यक्त करैत अछि। सूर्य देवक ई विशाल मन्दिर पूर्वाभि,उख नहि भऽ पश्चिमाभिमुख अछि। बिना सिमेन्ट या गार चूनाक आयताकार, वर्गाकार, अर्द्धवृत्ताकार, गोलाकार आऽ त्रिभुजाकार आदि कतेको रूप आऽ आकारमे काटल पत्थरकेँ जोड़िकऽ बनाओल गेल अछि। गोटेक सौ फीट ऊँच एहि सूर्य मन्दिरमे सूर्य देवक तीन रूपक उदयाचल, मध्यांचल तथा अस्ताचलमे विद्यमान छथि। एहि मन्दिरक कारी पाथरिक नक्कासी, अभिषेक करैत अस्ताचलगामी सूर्यक किरण आऽ एहि मन्दिरक महिमाक कारण लोक सभमे अटूट श्रद्धा अछि। एहि कारण प्रति वर्ष चैत आऽ कातिक मासमे देशक कतेको क्षेत्रसँ पबनैतिन एहि ठाम आबि सूर्यदेवकेँ अर्घ्य दैत छथि।
पोखरामाक सूर्य मन्दिर- लखीसराय जिला सूर्यगढ़ा प्रखण्डक पोखरामा गाममे स्थापित सूर्य मन्दिर सूर्य पंचायतन मन्दिर अछि जतए पाँचो देवता शिव, गणेश, विष्णु आऽ देवी दुर्गाक संग सूर्यदेव विराजमान छथि। एहि तरहक प्रदेशक ई पहिल मन्दिर अछि। एकर निर्माण सूर्य देवक प्रेरणासँ भेल अछि। १२०० फीटमे बनल एहि मन्दिरक बगलमे एकटा पोखरि सेहो अछि जतए भगवान सूर्यकेँ अर्घ्य देल जाइत अछि। लोक सभक मान्यता अछि जे सच हृदय, स्वच्छ भाव आऽ पवित्र मनसँ एहि मन्दिरमे छठिक पूजा कएलासँ दैहिक, दैविक आऽ भौतिक पापसँ मुक्ति तँ भेटैते अछि, सूर्य नारायण मनोनुकूल फल सेहो दैत छथि। पोखरामा गाम किउल-भागलपुर रेल खण्डपर कजरा स्टेशनसँ पाँच किलोमीटर उत्तर पश्चिममे तथा सड़क मार्गसँ ई गाम लखीसराय –मुँगेर पथपर लखीसरायसँ पन्द्रह किलोमीटर आऽ अलीनगरसँ चारि किलोमीटरपर अवस्थित अछि।
उलारक सूर्य मन्दिर- राजधानी पटनासँ पचास किलोमीटर दूर दुल्हिन बाजार आऽ पालीगंजक मध्य उलार मोड़सँ एक किलोमीटर दूर अवस्थित उलारक सूर्य मन्दिर अपन विशिष्ट पहचानक कारण प्रसिद्ध अछि। द्वापर कालमे भगवान श्रीकृष्णक वंशक राजा एहि मन्दिरक निर्माण करौने छलाह। गोटेक तीस फीट ऊँच एहि मन्दिरक इतिहास आऽ महत्वक कारण आइयो सभ रवि दिन कतेको हजार श्रद्धालु पैदल चलि कऽ एहि ठाम पूजा-अर्चना करैत छथि। छठिक अवसरपर एहि ठाम पैघ संख्यामे लोक छठि करऽ अबैत छथि।
मधुश्रवाक सूर्य मन्दिर- राजधानी पटनासँ सटल अरवल जिलाक मधुश्रवामे सेहो एकटा प्राचीन सूर्य मन्दिर अछि। कहल जाइत अछि जे मधुश्रवामे च्यवन ऋषिक आश्रम छल। पौराणिक कथाक अनुसार सुकन्या आऽ च्यवन ऋषिक देवार लागल शरीर एहि ठाम ठीक भऽ गेल छल आऽ हुनक फूटल आँखि पूर्ववत भऽ गेल।
सुवासक सूर्य मूर्ति- मुजफ्फरपुर जिलाक गायघाट प्रखण्ड अन्तर्गत दरभंगा-मुजफ्फरपुर राष्ट्रीय उच्च पथपर लढ़ौर पंचायतक सुवास गाममे सेहो भगवान सूर्यक एकटा प्राचीन मूर्ति अछि। एहि गामक लोक एकर पूजा अपन ग्राम देवताक रूपमे करैत छथि। जानकारीक अभावमे ई मूर्ति एकटा छोट मन्दिरमे एखनो स्थापित अछि। हालाँकि एखन धरि प्रदेशक सूर्योपासनाक केन्द्रमे एकर पहचान नहि बनि सकल अछि।
उमगाक सूर्य मन्दिर- औरंगाबाद जिलाक मदनपुर उमगा पर्वत श्रृंखलापर चौदह सौ वर्ष पूर्व एकटा सूर्य मन्दिरक निर्माण कराओल गेल छल जकर शिल्प देवक सूर्य मन्दिरसँ मिलैत अछि। गोटेक साठि फीट ऊँच ई मन्दिर बिना सिमेन्टक प्राचीन पाथरसँ बनल अछि। एहि ठाम सात टा घोड़ापर सवार भगवान सूर्यक प्रतिमा स्थापित अछि। देवसँ गोटेक बारह किलोमीटरपर ई मन्दिर अवस्थित अछि।
बेलाउरक सूर्य मन्दिर- भोजपुर जिलाक उदवन्तनगर प्रखण्डक दक्षिण-पूर्व कोनपर आरा-सहार सड़कपर स्थित बेलाउर सूर्य मन्दिरक लेल प्रसिद्ध अछि। बेलाउरक नयनाभिराम एहि मन्दिरमे सूर्य देवक भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित कएल गेल अछि। एहि ठाम प्रदेशक कोन-कोनसँ लोक सभ मनता मानए अबैत छथि।
औंगारीक सूर्य मन्दिर- नालन्दा जिलाक एकंगरसराय प्रखण्डक एकंगरडीह बजारसँ गोटेक पाँच किलोमीटर दक्षिण ऐतिहासिक औगारी गाममे बनल सूर्य मन्दिरमे सूर्य देव आऽ भगवान विष्णुक उनीस टा प्राचीन प्रतिमा अछि। भगवान सूर्यक बारह टा राशि अछि। एहि सभ राशिक प्रतीक देश भरिक बारह टा सूर्य मन्दिरमे सँ एकटा औंगारीक सूर्य मन्दिर अछि। मन्दिरक लग एकटा विशाल पोखरि सेहो अछि। एहि पोखरिमे स्नान कऽ सूर्य देवकेँ एहि ठाम अर्घ्य देबाक विशेष महत्व अछि। छठिक अवसरपर औंगारीमे पैघ मेला सेहो लगैत अछि।
हवेली खड़गपुरक सूर्य मन्दिर- मुंगेर जिलाक हवेली खड़गपुर मुख्यालयसँ गोटेक तीन किलोमीटर उत्तर पश्चिम जमुई-मुंगेर रोडपर अवस्थित सूर्य मन्दिरक निर्माण पाँच दशक पूर्व छात्र सभक पूजा-अर्चनाक लेल बनाओल गेल छल। एकर निर्माण पंडित देवदत्त शर्मा छात्र-छात्रा सभक लेल कएने छलाह जाहिसँ छात्र सभ भगवानक सजीव रूपकेँ महसूस करथि। हालाँकि आब ई मन्दिर भक्त सभक लेल आराधनाक प्रमुख केन्द्र बनि गेल अछि। ई मन्दिरक बाहरी भाग एखनो अर्द्धनिर्मित अछि आऽ स्थानीय जनताक अपेक्षाक शिकार अछि तथापि छठिक अवसरपर पैघ भीड़ एहि ठाम लगैत अछि आऽ चारि दिवसीय एहि अनुष्ठानक अन्तिम दिन “पारण” केँ भगवान सूर्यक प्रतिमापर अर्घ्य चढ़ैबाक लेल होड़ लागल रहैत अछि।
बड़ीजानक सूर्य मन्दिर- किशनगंज जिलाक अररिया-बहादुरगंज रोडसँ दक्षिण बड़ीजानमे भगवान सूर्यक भव्य पुरान मन्दिर अछि। एहि मन्दिरक गर्भ गृहमे उत्तर पालकालीन छओ फीटक सूर्यदेवक प्रतिमा स्थापित अछि।
बड़गावक सूर्य मन्दिर- नालन्दा जिलाक प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालयक खंडहरसँ गोटेक दू किलोमीटर उत्तर-पश्चिममे स्थित बड़गाव नामक स्थानपर भगवान सूर्यक प्राचीन आऽ भव्य मन्दिर अछि। मन्दिरसँ सटल सूर्य तालाब सेहो अछि। मान्यता अछि जे एहि तालाबमे स्नान कएलासँ कुष्ट रोगक निवारण होइत अछि। बेशी संख्यामे लोक एहि ठाम छठि करैत छथि।
देव कुण्डक सूर्य मन्दिर- औरंगाबाद जिलाक पंचरुखिया मोड़सँ पाँच किलोमीटर उत्तर हंसपुरा नामक गामसँ तीन किलोमीटर पूरबमे स्थित अछि देवकुण्डक सूर्य मन्दिर। एहि मन्दिरक दरबाजा पूर्व दिस अछि। चैत आऽ कातिक दुनू मासक छठिमे एहि ठाम भव्य मेला लगैत अछि।
पंडारक सूर्य मन्दिर- पटना जिलाक बाढ़ अनुमंडलसँ गोटेक दस किलोमीटर दूर पंडारक गामक पश्चिम भागमे गंगा नदीक कातमे सूर्य देवक मन्दिर स्थित अछि। एहि मन्दिरक निर्माण द्वापर युगमे श्री कृष्णक अष्ट महिषिमे सँ एक सभसँ सुन्दरी जावन्तीक पुत्र साम्बा करौने छलाह। मन्दिरक गर्भगृहमे कारी पाथरपर पुरान शैलीमे सूर्य देवक सम्मोहक आऽ दुर्लभ प्रतिमा अछि। देशक बारह टा प्रमुख सूर्य मन्दिरमे सँ ईहो एकटा सूर्य मन्दिर अछि।

नूतन झा; गाम : बेल्हवार, मधुबनी, बिहार; जन्म तिथि : ५ दिसम्बर १९७६; शिक्षा - बी एस सी, कल्याण कॉलेज, भिलाई; एम एस सी, कॉर्पोरेटिव कॉलेज, जमशेदपुर; फैशन डिजाइनिंग, एन.आइ.एफ.डी., जमशेदपुर।“मैथिली भाषा आ' मैथिल संस्कृतिक प्रति आस्था आ' आदर हम्मर मोनमे बच्चेसॅं बसल अछि। इंटरनेट पर तिरहुताक्षर लिपिक उपयोग देखि हम मैथिल संस्कृतिक उज्ज्वल भविष्यक हेतु अति आशान्वित छी।”
(साभार विदेह www.videha.co.in)

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