विदेह ई-पत्रिकाक ७७म अंक जे नारी विशेषांक छल, अपनामे एकटा अध्याय छल, ओइ अंकसँ किछु रचना आ चर्चा साभार दऽ रहल छी: ......
वीणा ठाकुर
प्राचीन भारतीय संस्कृतिमे मिथिलाक योगदान
1. प्राचीन भारतक इतिहासमे मिथिलाक सांस्कृतिक इतिहास अत्यंत गौरवपूर्ण एवं महिमाशाली रहल अछि। सत्य तँ ई अछि जे मिथिलाक सांस्कृतिक इतिहासक ज्ञान बिना भारतक इति सांस्कृतिक इतिहासक यथार्थ ज्ञान संभव नहि अछि। सुदूर अतीतमे मानव मनीषा आर प्रतिभाक प्रोज्वल प्रकाश एतय विद्दमान छल, धर्म-दर्शन, ज्ञान-विज्ञानक प्रत्येक क्षेत्रमे विश्व विश्रुत ज्ञानी-गुणी जनक जन्मभूमि होएबाक सौभाग्य मिथिलाके प्राप्त छल। धर्म तथा दर्शनक क्षेत्रमे मिथिला नहि मात्र अपन महत्व स्थापित कयलक अपितु ओकर पुष्टि सेहो कयलक तथा तत्कालीन विश्वक चारू-दिशामे ओकर संदेश प्रसारित करैत मानव जातिक कल्याण साधन कयलक। जनक सदृश राजर्षि, याज्ञवल्क्य सदृश ज्ञानी, गार्गी, मैत्रेयी, भारती सदृश विदुषी नारी, जगत-जननी सीताक जन्म स्थली तथा गौतम, कपिल, मंडन मिश्र, वाचस्पति मिश्र, उअदयनाचार्य, गंगेश उपाध्याय, पक्षधर मिश्र, दार्शनिक प्रवर एवं ज्योतिरीश्वर-विद्यापति सदृश कवि तथा विद्वानक जन्म स्थली मिथिला भारतक इतिहासमे अनंत काल धरि अपन उज्वल कीर्त्ति स्थापित कऽ लेने अछि। जाहि प्रकारे प्राचीन युगमे एथेंस युनानि लेल ज्ञान-विज्ञान एवं सभ्यता-संस्कृतिक केन्द्रस्थल छल, तहिना मिथिला सम्पूर्ण भारत वर्ष लेल।
2. प्राचीन संस्कृत वाङ्मयक अवलोकन सँ ज्ञात होइत अछि-जे भू-भाग वर्त्तमानमे बिहार कहल जाइत अछि, ओ प्राचीन कालमे तीन खण्ड राज्यमे वियक्त छल; विदेह, मगध आर अंग। गंगा नदीक दक्षिण-पश्चिममे ‘मगध’ राज्य छल, जकर प्राचीन नाम “कीकट’’ छल आर जे अनार्यक निवास स्थान बुझल जाइत छल। पश्चात् ई प्रदेश मगध नामसँ अभिहित होमय लागल एवं एतुका निवासी के हेय दृष्टिसँ देखल जाइत छल। पाश्चात्य विद्वान वेवर, पार्जिटर आदि विस्तारसँ विचार करैत कहने छथि जे- अनार्थक आगमन एहि ठाम पूर्व दिशसँ बराबर होइत छल आर एहि ठामक निवासी आर्य सभ्यताक अधिपत्य सहजहिं स्वीकार नहि कयलक, ताहि हेतु वैदिक साहित्यमे ई प्रदेश निंदनीय कहल गेल। निरंतरमे कहल गेल अछि- “की कदा नाम देशोऽनार्थ विशेषः” मुदा एहि कीकट प्रदेशमे गया तीर्थ के अत्यंत पवित्र मानल गेल अछि; कीकटेषु गया पुण्या नदी पुण्या पुनः पुनः। च्यवनस्याल्रयं पुण्यं पुण्यं राज गृह वनस”। वौद्धायन धर्मसूत्रमे अंग एवं मगध निवासी संकीर्णयोनि कहल गेल छथि। मुदा वैदिक युगमे बिहारक एकटा भाग एहन छल जे आर्य सभ्यताक केन्द्रक रूपमे प्रसिद्ध छल आर ओ छल विदेह। शतपथ ब्राह्मणक अनुसार विदेह अपन पुरहितक संग सरस्वती नदीक तीरसँ सदानीरा (गंडकी)क तीरपर आयल छलाह आर नदी पार कऽ ओ पूर्व दिशामे अयलाह आर ओतए बसि गेलाह। इयह विदेह कालातंरमे मिथिला आर तीरभुक्ति नामसँ प्रसिद्ध भेल। वाल्मिकि रामायणक बाल-काण्डमे मिथिलाक चर्च करैत कहल गेल अछि; “रामोऽपिपरमा पूजा गौतमस्य महात्मनः। सकाशाद विधिवत् प्राण्य जगाम मिथिलां ततः”। ‘अनर्घ राघव’मे मिथिलाके विदेहक एकटा नगरी कहल गेल अछि; “वत्स! शृणोषि विदेहेषु मिथिलां नाम नगरीम्”। कालिदासक “रघुवंश”, श्री हर्षक “नहिषधीय चरित” तथा जयदेवक “प्रसन्न राघव” नाटकमे सेहो मिथिलाक उल्लेख भेटैत अछि। ‘भृंगदूत’मे “तीरभुक्ति”क उल्लेख मिथिला लेल बुझल गेल अछि। “गंगातीरावधिरधिगता यदभुवो भृङग युक्तिनाम्ना सैव त्रिभुवनतले विश्रुतः तीरभुक्ति:”।
3. विदेह वशंक सभसँ प्रसिद्ध राजा जनक भेलाह, जे बहुत पैघ ब्रह्मज्ञानी छलाह आर राजर्षि जनक नामसँ विख्यात भेलाह। हिनक राज सभा महाज्ञानी ब्राह्मण विद्वानसँ अलंकृत छल आर जाहिमे सर्व प्रधान ऋषि याज्ञवल्क्य छलाह। “शुक्ल यजुर्वेद’क प्रवर्त्तक याज्ञवल्क्य मानल जाइत छथि। आध्यात्म्य विद्याक संगहि वैदिक कर्मकाण्ड निष्णात ज्ञाता याज्ञवल्क्य: ख्याति सम्पूर्ण ब्रह्मावर्त्तमे व्याप्त छल। राजा जनक स्वंय ब्रह्म विधाय ज्ञाता एवं ब्राह्मणक पोषक छलाह। ब्राह्मग्रंथ आर उपनिषदमे जनक तथा याज्ञवल्क्यक आध्यात्म विधा संबन्धी शास्त्रार्थक चर्चा बहुतो प्रसंगमे कयल गेल अछि, मात्र चर्चा नहि अपितु प्रशंसा सेहो कयल गेल अछि। “बृहदारण्यकोपनिषद”क एक कथामे जनक द्वारा आहूत एक सभाक उल्लेख भेल अछि, जाहिमे कुरू-पांचाल आदि प्रदेशक बहुतो वेदक विद्वान पधारल छलाह आर जिनका सभके शास्त्रार्थमे परास्त कऽ याज्ञवल्क्य राज-सम्मान प्राप्त कयने छलाह। एहि सभामे विदुषी गार्गी सेहो उपस्थित छलीह। गार्गी आर याज्ञवल्क्य मध्य शास्त्रार्थक चर्चा “वृहदारण्यकोपनिषद”मे कयल अछि। तथा याज्ञवल्क्य द्वारा अपन पत्नी विदुषी मैत्रेयीकेँ प्रदत्त आध्यात्म्य तत्वक उपदेशक उल्लेख “बृहदारण्यकोपनिषद”मे अछि। बीतरागी, ब्रह्मज्ञानी आर त्यागी राजा जनकक सम्बन्धमे एकटा उक्ति प्रसिद्ध अछि- मिथिलायां प्रदीप्रायां नमे दहनति किञ्चन (सम्पूर्ण मिथिला जौं प्रदग्ध भऽ जाए, तथापि हमर किछु नष्ट नहि होएत)। शुकदेव सदृश सहज वीतरागी एवं परमज्ञानी पिता व्यासदेवक आज्ञासँ राजा जनकसँ त्राणोपदेश प्राप्त कएने छलाह। भगवान कृष्ण गीतामे प्रवृतिमार्गक आदर्श रूपमे जनकक उल्लेख कएने छथि।
4. महर्षि याज्ञवल्क्य द्वारा रचित विख्यात स्मृति ग्रंथ थिक। एहि ग्रंथमे चौदह विद्याक परिगणन एहि प्रकारे कएल गेल अछि – चारि वेद, छह अंग, एक मीमांसा, एक न्याय, एक पुराण आर एक धर्मशास्त्र। सम्पूर्ण वाङ्मयक समावेश एहि चौदह विद्यामे भऽ जाइत अछि, तथा याज्ञवल्क्य स्मृतिक अनुसार हिन्दु सम्पतिक उत्तराधिकार निर्णीत होइत अछि।
5. न्याय दर्शन कर्त्ता महर्षि गौतम मिथिलाक निवासी छलाह, जिनका श्रापसँ हिनक पत्नी अहिल्या पाथरक भऽ गेल छलीह। आर भगवान श्री राम जनकपुर यात्राक मार्गमे चरण स्पर्शसँ हिनक उद्धार कएने छलाह। न्याय शास्त्रक अतिरिक्त गौतम एकटा स्मृतिक रचना सेहो कएने छलाह।
6. विद्वान लोकनिक मतानुसार गौतम रचित ब्रह्म विद्यापर एकटा ग्रंथ छल, जे अनुपलब्ध अछि। वर्त्तमान कालहुँमे गौतम कुंड आर अहिल्या स्थान प्रसिद्ध अछि तथा गौतमक पुत्र शतानन्द राजा जनकक पुरहित छलाह।
7. सांख्य शास्त्रक निर्माता महर्षि कपिलक आश्रय मिथिलामे छल। हिनका द्वारा स्थापित शिवलिंग वर्त्तमानमे कपिलेश्वर नाथ महादेव नामसँ प्रसिद्ध तीर्थ स्थल अछि।
8. आचार्य शंकराचार्यक संग शास्त्रार्थ कएनिहार न्याय आ मीमांसाक अद्वितीय विद्वान मंडन मिश्र सेहो मिथिलाक रत्न छलाह। महिषी गाममे हिनक निवास स्थान छल, जे वर्त्तमानमे सहर्षा जिलामे अवस्थित अछि। हिनक धर्मपत्नी सरस्वतीक साक्षात अवतार विदुषी भारती शंकराचार्य आर मंडन मिश्रक मध्य शास्त्रार्थमे मध्यस्तता कएने छलीह आर मंडनमिश्रक पराजयक पश्चात स्वंय शंकराचार्यकेँ शास्त्रार्थमे पराजित कएने छलीह। कहल जाइत अछि जे मडंन मिश्रक गृहक पता शंकराचार्यसँ पूछबाक क्रममे एकटा पनिभरनी हुनका उत्तर दैत कहने छलनि जे “जगद् ध्रुवं स्याजगद् ध्रुवं आ कीड़ाङ्गना यत्र गिरो गिरंति। द्वारस्थ पीड़ाङ्गणसन्निरन्धो जानोहि तन्मण्डन मिश्र धाय”। ई प्रमाणित करैत अछि जे ओहि कालमे मिथिलामे संस्कृत विद्याक पूर्ण प्रचार छल तथा साधारण स्त्री सेहो सुशिक्षित छलीह।
9. मिथिला निवासी वाचस्पति मिश्र षददर्शनक अतिरिक्त समस्त शास्त्रक विद्वान छलाह। ब्रह्मसूत्र शंकर भाष्यपर हिनक “भामती टीका अत्यंत प्रसिद्ध अछि। वेदांतक ई एकटा प्रमाणिक ग्रंथ मानल जाइत अछि। हिनक रचित अन्य ग्रंथ अछि। ब्रह्म तत्व समीक्षा, न्याय कणिका, सांख्य तत्व कौमुदी, न्याय वर्त्तिक तात्पर्य आ योगदर्शन, ई हिनक विद्या-वेदध्यक परिचायक अछि। एकर काल एगारहम शताब्दी (सवंत) मानल जाइत अछि।
10. मिथिलाक न्याय शास्त्रक प्रसिद्ध पण्डित उदयनाचार्य रचित बहुतो ग्रंथ यथा – कुसुमाञ्जलि, किरणावली, लक्षणावली, न्यायपरिशिष्ट, आत्मतत्व विवेक आदि। स्वाभिमानी पण्डित उदयनाचार्यक ई गर्दौति, एखनहु प्रसिद्ध अछि -
11. ”वयमिह पदविद्यां तर्कमान्वीक्षिको आ।
12. यदि पथि विपथे आ वर्त्तयामस्स पन्था॥
13. उदयति दिशि यस्यां भानुमान् सैव पूर्वा।
14. नहि तरणिरन्दीते दिक् पराधीन वृत्ति:”॥
15. मिथिलाक अन्य प्राचीन दार्शनिकमे गंगेश उपाध्याय आ पक्षधर मिश्रक नाम विशेष रूपसँ उल्लेखनीय अछि। गंगेश उपाध्याय न्याय शास्त्रक अप्रतिम विद्वान छलाह आ खाद्य खडंन मतक खडंन अत्यंत विद्वतासँ कएने छलाह आ हिनक रचित प्रसिद्ध ग्रंथ थिक “तत्व चिंतामणि”।
16. पक्षधर मिश्रक सम्बन्धमे प्रचलित श्लोक-–“शंकर वाचस्पत्योः शंकरवाचस्पती सदृशौ। पक्षधर प्रतिपक्षी लक्षीभूतो नचय्वापि”॥ हिनक विद्वताकेँ प्रमाणित करैत अछि। विद्यापतिक समकालीन पक्षधर मिश्र “तत्व चिंतामणि” ग्रंथक “आलोक” नामक टीका रचना कयलनि संगहि “प्रसन्न राघव” आर “चन्द्रालोक” ग्रंथक सेहो रचना कयलनि।बंगालसँ बहुतो छात्र न्यायशास्त्रक अध्ययन करवा हेतु हिनका सँ अबैत छलाह तथा हिनक बंगाली शिष्य रघुनन्दन नवद्वीपमे न्यायशास्त्रक पठन-पाठन आ प्रचार कयलनि आर पक्षधर मिश्र द्वारा प्रवर्त्तित नव्यन्यायक परम्पराकेँ आँगा बढ़ौलनि।
17. मिथिलावासी गोवर्द्धनाचार्य उदयनाचार्यक शिष्य आ ‘आर्यासप्तशती’क रचयिता छलाह। दर्शनशास्त्रक पण्डितक संगहि कवि सेहो छलाह, जकर प्रमाण उक्त ग्रंथ थिक।
18. भवनाथ मिश्र आ हिनक सुपुत्र शंकर मिश्र दुनू प्रकाण्ड पण्डित छलाह। भवनाथ मिश्र महान पण्डितक संगहि सर्वथा निस्पृह छलाह, कहियो ककरहुँसँ कोनो याचना नहि कयलनि, ताहि हेतु हिनक नाम अयाची मिश्र पड़ि गेल। हिनक पुत्र शंकर मिश्रक ख्याति सम्पूर्ण मिथिलामे एकटा अलौकिक योग्यता सम्पन्न बालक रूपमे ख्यात भऽ गेल। मात्र पाँच वर्षक अवस्थामे हिनक इ महाराज दरभंगाक समक्ष निम्न श्लोक पढ़ि कऽ सुनौने छलाह-
19. ”वालोऽहं जगदान्द नमे वाला सरस्वती।
20. अपूर्णे पंचमे वर्षे वर्णयामि जगत्यायम”॥
21. (हम बालक छी, एखन पाँच वर्षक अवस्था सेहो पूर्ण नहि भेल अछि। मुदा हमर सरस्वती अर्थात् विद्या वला नहि छथि। तीनू लोकक हम वर्णन कऽ सकैत छी।)
22. ”अनर्थराघव” नाटकक रचयिता दार्शनिक प्रवर मुरारि मिश्र मिथिलाक निवासी छलाह आ साहित्यशास्त्रक ज्ञाता छलाह। बहुतो ग्रंथक रचयिता महान दार्शनिक वर्द्धमान उपाध्याय सेहो मिथिला निवासी महान विभूति छलाह।
23. महामहोपाध्याय महेश ठाकुर अपन विद्वताक बलपर सम्राट अकबरसँ मिथिला राज्य प्राप्त कयने छलाह। व्याकरण आ न्यायशास्त्रक श्रेष्ठ विद्वान महेश ठाकुर दरभंगा राजवंशक संस्थापक सेहो छलाह। महाराज शिवसिंहक मित्र आ राजपण्डित कवि कोकिल विद्यापति नहि मात्र मैथिली भाषाक सर्वश्रेष्ठ कवि छलाह अपितु हिनक गीत द्वारा विभिन्न भारतीय भाषा अनुप्राणित भेल आर बंगाल, आसाम, उड़ीसामे हिनक गीतक अनुकरणसँ एक नव भाषा साहित्यक उदय भेल जकरा व्रजवुलिक संज्ञा देल गेल।
24. एहि प्रकारे प्राचीन कालहिसँ मिथिला धर्म, दर्शन आ विभिन्न शास्त्रक केन्द्रस्थली रूपमे विख्यात रहल अछि। वेद, वेदांत, न्याय, मीमांसा, धर्मशास्त्र, ज्योतिष, व्याकरण, साहित्य, कर्मकाण्ड कोनो एहन विद्या नहि अछि, जकर विश्व-विख्यात पण्डित एतय नहि भेलाह। मात्र प्राचीन आ मध्ययुगमे नहि अपितु वर्त्तमान कालमे अर्थात् बीसम शताब्दीमे सेहो एहि भूमिकेँ महामहोपाध्याय मीमांसक चित्रधर मिश्र, सर्वतंत्र-स्वतंत्र बच्चा झा, विद्या-वाचस्पति विश्व विख्यात वेदज्ञ मधुसुदन झा, महामहोपाध्याय वैयाकरण केसरी परमेश्वर झा, महामहोपाध्याय जयदेव मिश्र, महावैयाकरण विश्वनाथ झा, महामहोपाध्याय सर गंगानाथ झा, ज्योतिषी बबुआजी मिश्र, विख्यात विद्वान त्रिलोकनाथ मिश्र सदृश विख्यात विद्वान आ साहित्यमर्मज्ञक जन्म देबाक सौभाग्य प्राप्त अछि। एहिमे बच्चा झा अपना समयक दर्शनशास्त्रक अद्वितीय पण्डित छलाह आर दर्शन आ साहित्य विषयपर उच्च कोटिक रचना कयलनि। वैदिक साहित्यक प्रकाण्ड पण्डित मधुसूदन झाक ख्याति देश-विदेशमे विख्यात छलनि। काव्य आ काव्यशास्त्र आर श्रृंगारक क्षेत्रमे सेहो एतय “प्रसन्न राघव”, “अनर्थराघव”, “काव्यप्रदीप”, “रसमंजरी” “रसिक सर्वस्व” आर संगीत शास्त्र सबन्धी ग्रंथ “संगीत सर्वस्व” आ “सरस्वती छद्यलंकार”क रचना भेल। आधुनिक भारतीय आर्यभाषामे सर्वप्रथम गद्य ग्रंथ होयबाक गौरव मिथिला निवासी ज्योतिरिश्वर रचित “वर्णरत्नाकर”केँ प्राप्त अछि।
25. आ एवम् प्रकारे स्वतः सिद्ध अछि जे विश्वव्यापी भारतीय संस्कृतिक केन्द्र स्थल मिथिला रहल अछि, आर मिथिला चिरकालहिसँ अपन महत्वपूर्ण भूमिकाक निर्वाह धर्म, साहित्य, दर्शन आ न्यायक क्षेत्रमे करैत रहल अछि।
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